शासन व्यवस्था
केंद्र-राज्य विवाद और अनुच्छेद-131
- 23 Jan 2020
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में संविधान के अनुच्छेद-131 और उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
हाल ही में केरल सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act-CCA) की संवैधानिकता को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय (SC) में एक याचिका दायर की है। इसी के साथ केरल, सर्वोच्च न्यायालय में अधिनियम की संवैधानिकता को चुनौती देने वाला पहला राज्य बन गया है। केरल के अलावा छत्तीसगढ़ सरकार ने भी राष्ट्रीय जाँच एजेंसी अधिनियम (NIA Act) को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। दोनों ही राज्यों की सरकारों ने याचिका दायर करने के लिये संविधान के अनुच्छेद-131 को आधार बनाया है। ऐसी स्थिति में भारत के संघीय ढाँचे से संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं जिनका विश्लेषण करना आवश्यक है।
क्या कहता है अनुच्छेद-131?
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद-131 सर्वोच्च न्यायालय को भारत के संघीय ढाँचे की विभिन्न इकाइयों के बीच किसी विवाद पर आरंभिक अधिकारिता की शक्ति प्रदान करता है। ये विवाद निम्नलिखित हैं-
- केंद्र तथा एक या अधिक राज्यों के बीच।
- केंद्र और कोई राज्य या राज्यों का एक ओर होना एवं एक या अधिक राज्यों का दूसरी ओर होना।
- दो या अधिक राज्यों के बीच।
- उपर्युक्त मामलों में सर्वोच्च न्यायालय को आरंभिक अधिकारिता की शक्ति प्राप्त है, जिसका अर्थ है कि देश में कोई अन्य न्यायालय इस प्रकार के विवादों का फैसला नहीं कर सकता है।
- हम कह सकते हैं कि अनुच्छेद 131 के तहत विवाद के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिये किसी विवाद का संघीय ढाँचे की विभिन्न इकाइयों के बीच होना अनिवार्य है।
अनुच्छेद-131 के तहत योग्य मामले
- अनुच्छेद-131 के तहत राज्य सरकार और केंद्र सरकार के मध्य उन विवादों की सुनवाई की जा सकती है जिनमें कानून या तथ्य का प्रश्न निहित हो और जिन पर राज्य या केंद्र के कानूनी अधिकार का अस्तित्त्व निर्भर करता है।
- इस प्रकार राजनीतिक भावना से प्रेरित विवादों के निपटारे के लिये इस अनुच्छेद का प्रयोग नहीं किया जा सकता। वर्ष 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के बीच विवाद के मामले पर सुनवाई करने हेतु असहमति जताई थी।
- यदि केंद्र या राज्य के विरुद्ध किसी नागरिक द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कोई याचिका दायर की जाती है तो उसे इस अनुच्छेद के तहत नहीं लिया जाएगा।
केरल और छत्तीसगढ़ से संबंधित विवाद
- केरल सरकार ने याचिका दायर करते हुए कहा कि केंद्र द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) का अनुपालन करने के लिये अनुच्छेद- 256 के तहत राज्यों को बाध्य किया जाएगा, जो कि ‘स्पष्ट रूप से एकपक्षीय, अनुचित, तर्कहीन और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला कृत्य’ होगा।
- केरल सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि CAA को संविधान के अनुच्छेद- 14 (विधि के समक्ष समता), अनुच्छेद- 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता) और अनुच्छेद- 25 (अंतःकरण और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण एवं प्रसार की स्वतंत्रता) के सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए।
- दरअसल नागरिकता संशोधन अधिनियम के तहत 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में आकर रहने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को अवैध प्रवासी न मानने तथा उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
- संशोधित अधिनियम के आलोचकों का कहना है कि यह धर्म के आधार पर भेदभाव करता है और संविधान का उल्लंघन करता है।
संविधान का अनुच्छेद-256
संविधान के अनुच्छेद-256 के अनुसार, प्रत्येक राज्य की कार्यकारी शक्ति को संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिये। ज्ञात हो कि यदि कोई राज्य संसद द्वारा बनाए गए कानून को लागू करने में असफल रहता है तो उस पर संविधान का अनुच्छेद-365 लागू किया जा सकेगा, जिसके अनुसार यदि कोई राज्य संघ की कार्यकारी शक्ति का प्रयोग करते हुए दिये गए निर्देशों का अनुपालन करने या उसे प्रभावी करने में असफल रहता है तो राष्ट्रपति के लिये यह मानना विधिपूर्ण होगा कि ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें उस राज्य का शासन संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता। साथ ही उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकेगा।
- केरल के अलावा छत्तीसगढ़ सरकार ने भी राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) अधिनियम, 2008 को असंवैधानिक घोषित करने के लिये अनुच्छेद-131 का प्रयोग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की है।
- छत्तीसगढ़ सरकार के अनुसार, यह अधिनियम ‘पुलिस’ के विषय में राज्य सरकारों की संप्रभुता का उल्लंघन करता है। ज्ञात हो कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, ‘पुलिस’ राज्य सूची का विषय है।
क्या SC अधिनियम को असंवैधानिक घोषित कर सकता है?
- वर्ष 2011 में मध्य प्रदेश राज्य बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि केंद्रीय कानूनों की वैधता को संविधान के अनुच्छेद-32 के तहत तो चुनौती दी जा सकती है, किंतु अनुच्छेद-131 के तहत नहीं।
- इस मामले में मध्य प्रदेश ने अनुच्छेद-131 के तहत मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने की मांग करते हुए कहा था कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन करते हैं।
- तीन वर्षों बाद वर्ष 2014 में दो-न्यायाधीशों की पीठ ने झारखंड बनाम बिहार राज्य मामले की सुनवाई करते हुए उक्त फैसले से असहमति व्यक्त की थी, पीठ के अनुसार किसी अधिनियम की संवैधानिकता की जाँच करने के लिये अनुच्छेद-131 का प्रयोग किया जा सकता है।
- झारखंड बनाम बिहार राज्य मामला अब तीन न्यायधीशों की बड़ी पीठ के पास है जिसकी सुनवाई फरवरी 2020 में की जानी है। स्पष्ट है कि इस मामले में बड़ी खंडपीठ के फैसले का प्रभाव केरल राज्य बनाम भारत संघ के मामले पर पड़ सकता है।
अनुच्छेद-131 से संबंधित अन्य विवाद
- आरंभिक/मूल अधिकारिता को लेकर पहला मामला वर्ष 1961 में पश्चिम बंगाल बनाम भारत संघ का था जिसमें पश्चिम बंगाल सरकार ने संसद द्वारा पारित कोयला खदान क्षेत्र (अधिग्रहण एवं विकास) अधिनियम, 1957 को न्यायालय में चुनौती दी थी।
- वर्ष 1978 में कर्नाटक राज्य बनाम भारत संघ मामले में न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती ने निर्णय दिया था कि राज्य को यह दिखाने की आवश्यकता नहीं है कि उसके कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया गया है लेकिन इसमें कानूनी सवाल मौजूद होना चाहिये।
- उक्त मामले में यह कहा गया था कि अनुच्छेद-131 द्वारा कानून की संवैधानिकता की जाँच की जा सकती है, किंतु वर्ष 2011 में मध्य प्रदेश राज्य बनाम भारत संघ मामले में न्यायालय का निर्णय इससे इतर था। हालाँकि यह मामला भी न्यायालय के तीन जजों वाली पीठ के समक्ष लंबित है।
- वर्ष 2012 को झारखंड बनाम बिहार राज्य का मामला जिसमें अविभाजित बिहार राज्य में रोज़गार अवधि के लिये झारखंड के कर्मचारियों को पेंशन का भुगतान करने हेतु बिहार के दायित्त्व का मुद्दा शामिल है। यह मामला भी न्यायालय की बड़ी खंडपीठ की सुनवाई के लिये लंबित है।
आगे की राह
- सर्वोच्च न्यायालय को राजनीतिक रूप से प्रेरित याचिकाओं की सुनवाई से बचने का प्रयास करना चाहिये। साथ ही राज्यों के प्रतिनिधियों को किसी भी कानून के संबंध में अपनी चिंताओं को संसद के समक्ष कानून निर्माण के समय रखना चाहिये।
- विदित हो कि संघवाद दो तरफ जाने वाली सड़क की तरह है, इसमें दोनों पक्षों को एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करना चाहिये जिसे संविधान द्वारा निर्धारित किया गया है।
- जब तक न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से किसी अधिनियम को शून्य अथवा असंवैधानिक घोषित नहीं किया जाता, तब तक राज्य केंद्रीय कानूनों को लागू करने के लिये बाध्य हैं।
प्रश्न: संविधान के अनुच्छेद-131 के आलोक में चर्चा कीजिये कि क्या संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा असंवैधानिक घोषित करना उचित है?