भारतीय राजनीति
महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद
- 30 Dec 2022
- 11 min read
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 131, सर्वोच्च न्यायालय, सरकारिया आयोग, संविधान का अनुच्छेद 263। मेन्स के लिये:भारत में अंतर-राज्यीय विवाद महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद और आगे की राह। |
चर्चा में क्यों?
महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद की गंभीरता को देखते हुए दोनों राज्यों ने विवाद को हल करने के लिये कानूनी लड़ाई का समर्थन करने हेतु एक सर्वसम्मत प्रस्ताव पारित किया है।
महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद:
- परिचय:
- उत्तरी कर्नाटक में बेलगावी, कारवार और निपानी को लेकर सीमा संबंधी विवाद काफी पुराना है।
- वर्ष 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार, जब राज्य की सीमाओं को भाषायी आधार पर निर्धारित किया गया, तब बेलगावी पूर्ववर्ती मैसूर राज्य का हिस्सा बन गया।
- यह अधिनियम वर्ष 1953 में नियुक्त न्यायमूर्ति फज़ल अली आयोग के निष्कर्षों पर आधारित था और उन्होंने दो वर्ष बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
- महाराष्ट्र का दावा है कि बेलगावी के कुछ हिस्से, जहाँ मराठी प्रमुख भाषा है, महाराष्ट्र के अंतर्गत रहने चाहिये।
- अक्तूबर 1966 में केंद्र ने महाराष्ट्र, कर्नाटक और केरल में सीमा विवाद को हल करने के लिये भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मेहर चंद महाजन के नेतृत्त्व में महाजन आयोग की स्थापना की।
- इस आयोग ने सिफारिश की कि बेलगाम और 247 गाँव कर्नाटक के अंतर्गत रहें। महाराष्ट्र ने इस रिपोर्ट को खारिज़ कर दिया और वर्ष 2004 में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।
- महाराष्ट्र के दावे का आधार:
- महाराष्ट्र का अपनी सीमा के पुन: समायोजन का दावा सामीप्य, सापेक्ष भाषायी बहुमत और लोगों की इच्छा के आधार पर था। बेलगावी और आसपास के क्षेत्रों में मराठी भाषी लोगों तथा भाषायी एकरूपता के आधार पर दावे का मुख्य कारण कारवार एवं सुपा क्षेत्र में मराठी की बोली के रूप में उद्धृत भाषा कोंकणी का प्रयोग है।
- इसका तर्क इस विचार पर केंद्रित था कि गणना समुदायों के आधार पर होनी चाहिये, और इसने प्रत्येक गाँव में भाषायी निवासियों की संख्या/आबादी को सूचीबद्ध किया।
- महाराष्ट्र ने इस ऐतिहासिक तथ्य की ओर भी इशारा किया कि इन मराठी भाषी क्षेत्रों के राजस्व अभिलेख भी मराठी में ही होते हैं।
- कर्नाटक की स्थिति:
- कर्नाटक ने तर्क दिया है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार सीमाओं का समझौता अंतिम है।
- राज्य की सीमा न तो अस्थायी थी और न ही लचीली। राज्य का तर्क है कि यह मुद्दा उन सीमा मुद्दों को फिर से खोल देगा जिन पर अधिनियम के तहत विचार नहीं किया गया है, अत: ऐसी मांग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
समस्या के समाधान के लिये उठाए गए कदम:
- अंतर-राज्यीय विवादों को अक्सर दोनों पक्षों के सहयोग से हल करने का प्रयास किया जाता है, जिसमें केंद्र एक सूत्रधार या तटस्थ मध्यस्थ के रूप में काम करता है।
- यदि मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल किया जाता है, तो संसद राज्य की सीमाओं को बदलने के लिये कानून ला सकती है, जैसे बिहार-उत्तर प्रदेश (सीमाओं का परिवर्तन) अधिनियम 1968 और हरियाणा-उत्तर प्रदेश (सीमाओं का परिवर्तन) अधिनियम 1979।
- बेलगावी मामले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों से मुलाकात की और उन्हें सभी सीमा मुद्दों को हल करने के लिये प्रत्येक पक्ष के तीन मंत्रियों वाली छह सदस्यीय टीम बनाने के लिये कहा।
अन्य उपलब्ध तरीके:
- न्यायिक निवारण:
- सर्वोच्च न्यायालय अपने मूल क्षेत्राधिकार के तहत राज्यों के बीच विवादों का निपटारा करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार, भारत सरकार और किसी राज्य के बीच या दो या दो से अधिक राज्यों के बीच किसी भी प्रकार के विवाद को सुलझाना सर्वोच्च न्यायालय का मूल क्षेत्राधिकार है।
- अंतर-राज्यीय परिषद:
- संविधान का अनुच्छेद 263 राष्ट्रपति को राज्यों के बीच विवादों के समाधान के लिये अंतर-राज्यीय परिषद गठित करने की शक्ति देता है।
- परिषद की परिकल्पना राज्यों और केंद्र के बीच चर्चा के लिये एक मंच के रूप में की गई है।
- वर्ष 1988 में सरकारिया आयोग ने सुझाव दिया कि परिषद को एक स्थायी निकाय के रूप में गठित किया जाना चाहिये तथा वर्ष 1990 में यह राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से अस्तित्व में आया।
अन्य अंतर्राज्यीय विवाद:
असम-अरुणाचल प्रदेश: |
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असम-मिज़ोरम: |
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असम-नगालैंड: |
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असम-मेघालय: |
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हरियाणा-हिमाचल प्रदेश: |
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लद्दाख-हिमाचल प्रदेश: |
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आगे की राह
- राज्यों के बीच सीमा विवादों को वास्तविक सीमा स्थानों के उपग्रह मानचित्रण का उपयोग करके सुलझाया जा सकता है।
- अंतर-राज्यीय परिषद को पुनर्जीवित करना अंतर-राज्यीय विवाद के समाधान का एक विकल्प हो सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 263 के तहत अंतर-राज्यीय परिषद से विवादों की जाँच और सलाह देने, सभी राज्यों के लिये सामान्य विषयों पर चर्चा करने तथा बेहतर नीति समन्वय हेतु सिफारिशें करने की अपेक्षा की जाती है।
- इसी तरह सामाजिक और आर्थिक नियोजन, सीमा विवाद, अंतर-राज्यीय परिवहन आदि से संबंधित मुद्दों पर प्रत्येक क्षेत्र में राज्यों के लिये सामान्य चिंता के मामलों पर चर्चा करने हेतु क्षेत्रीय परिषदों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है।
- भारत अनेकता में एकता का प्रतीक है। हालाँकि इस एकता को और मज़बूत करने के लिये केंद्र व राज्य सरकारों दोनों को सहकारी संघवाद के लोकाचार को आत्मसात करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का फैसला करने के लिये भारत के सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति किसके अंतर्गत है? (2014) (a) सलाहकार क्षेत्राधिकार उत्तर: (c) |