इन्फोग्राफिक्स
शासन व्यवस्था
ULB चुनावों में महिला आरक्षण का नगालैंड का विरोध
प्रिलिम्स के लिये:शहरी स्थानीय निकाय, महिलाओं के लिये आरक्षण मेन्स के लिये:संविधान के अनुच्छेद 371A द्वारा नगालैंड को प्राप्त विशेष प्रावधान, भारत में शहरी स्थानीय निकायों (ULB) की संरचना और कार्य |
चर्चा में क्यों?
शहरी स्थानीय निकाय (ULB) चुनावों में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण को लेकर नगालैंड में हालिया विवाद के कारण राज्य में विभिन्न हितधारकों के बीच बहस शुरू हो गई है।
- यह मुद्दा नगालैंड नगरपालिका अधिनियम, 2001 पर केंद्रित है जिसके तहत भारतीय संविधान के 74वें संशोधन के अनुसार ULB चुनावों में महिलाओं के लिये 33% आरक्षण अनिवार्य है।
74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम:
- वर्ष 1992 में पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान 74वें संशोधन अधिनियम के माध्यम से शहरी स्थानीय सरकारों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया था। यह 1 जून, 1993 को लागू हुआ।
- इसमें भाग IX-A जोड़ा गया है और अनुच्छेद 243-P से लेकर 243-ZG तक प्रावधान शामिल हैं।
- इसके अतिरिक्त इस अधिनियम के तहत संविधान में 12वीं अनुसूची को भी शामिल किया गया। इसमें नगर पालिकाओं के 18 कार्यात्मक विषय शामिल हैं।
ULB चुनावों में महिला आरक्षण का नगालैंड के विरोध का कारण:
- महिलाओं के लिये आरक्षण का विषय परंपरा के खिलाफ:
- अधिकांश पारंपरिक आदिवासी और शहरी संगठन महिलाओं के लिये सीटों के 33% आरक्षण का विरोध करते हैं, उनका तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 371A द्वारा नगालैंड को प्रदान किये गए विशेष प्रावधानों का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 371A के अनुसार,नगालैंड विधानसभा की सहमति के बिना, संसद नगाओं के सामाजिक अथवा धार्मिक रीति-रिवाजों, कानूनी विवादों को हल करने के उनके प्रथागत कानूनों और प्रक्रियाओं को प्रभावित करने वाले कानूनों को पारित नहीं कर सकती है।
- नगालैंड के शीर्ष आदिवासी निकाय, नगा होहो का तर्क है कि महिलाएँ पारंपरिक रूप से निर्णय लेने वाली संस्थाओं का हिस्सा नहीं रही हैं।
- नगालैंड एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ ULB की सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित नहीं हैं।
- अधिकांश पारंपरिक आदिवासी और शहरी संगठन महिलाओं के लिये सीटों के 33% आरक्षण का विरोध करते हैं, उनका तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 371A द्वारा नगालैंड को प्रदान किये गए विशेष प्रावधानों का उल्लंघन है।
- प्रदर्शनकारियों की मांग:
- आदिवासी निकायों और नागरिक समाज संगठनों ने तब तक चुनावों का बहिष्कार करने की धमकी दी है जब तक कि नगरपालिका अधिनियम, 2001 में महिला आरक्षण को ध्यान में रखते हुए "नगा लोगों की मांग की पूरी तरह से समीक्षा और पुनर्लेखन नहीं किया जाता है" ताकि यह अनुच्छेद 371A का उल्लंघन न करे।
- नगालैंड में पिछला ULB चुनाव:
- नगालैंड में पहला और एकमात्र निकाय चुनाव 2004 में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण के बिना आयोजित किया गया था।
- वर्ष 2006 में राज्य सरकार ने महिलाओं के लिये 33% आरक्षण को शामिल करने हेतु नगरपालिका अधिनियम 2001 में संशोधन किया, जिसका व्यापक विरोध हुआ और परिणामस्वरूप वर्ष 2009 में ULB चुनावों को अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दिया गया था।
- मार्च 2012 में चुनाव कराने के प्रयासों का भी व्यापक विरोध हुआ, साथ ही सितंबर 2012 में राज्य विधानसभा ने नगालैंड को महिलाओं हेतु आरक्षण से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 243T से छूट देने का प्रस्ताव पारित किया।
- इस प्रस्ताव को वर्ष 2016 में रद्द कर दिया गया था और 33 प्रतिशत आरक्षण के साथ नागरिक निकायों के चुनावों को एक महीने बाद अधिसूचित किया गया जिस कारण फिर से व्यापक अशांति देखी गई।
- सरकार ने फरवरी 2017 में चुनावों को शून्य और निरस्त घोषित करने की प्रक्रिया की घोषणा की।
- वर्ष 2006 में राज्य सरकार ने महिलाओं के लिये 33% आरक्षण को शामिल करने हेतु नगरपालिका अधिनियम 2001 में संशोधन किया, जिसका व्यापक विरोध हुआ और परिणामस्वरूप वर्ष 2009 में ULB चुनावों को अनिश्चित काल के लिये स्थगित कर दिया गया था।
- नगालैंड में पहला और एकमात्र निकाय चुनाव 2004 में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण के बिना आयोजित किया गया था।
शहरी स्थानीय निकाय (ULB):
- विषय:
- शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) छोटे स्थानीय निकाय हैं जो एक निर्दिष्ट आबादी वाले शहर या कस्बे को प्रशासित या नियंत्रित करते हैं।
- ULBs के अधिकार क्षेत्र में संबंधित राज्य सरकारों द्वारा सौंपे गए कार्यों की एक लंबी सूची है जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य, कल्याण, नियामक कार्य, सार्वजनिक सुरक्षा, सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे और विकास गतिविधियाँ आदि शामिल हैं।
- संरचना:
- शहरी स्थानीय सरकार में आठ प्रकार के शहरी स्थानीय निकाय शामिल हैं।
- नगर निगम:
- नगर निगम आमतौर पर बड़े शहरों जैसे- बंगलूरू, दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि में हैं।
- नगर पालिका:
- छोटे शहरों में नगर पालिकाओं का प्रावधान है।
- नगर पालिकाओं को अकसर अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे- नगर पालिका परिषद, नगर पालिका समिति, नगर पालिका बोर्ड आदि।
- अधिसूचित क्षेत्र समिति:
- तेज़ी से विकसित हो रहे कस्बों और मूलभूत सुविधाओं से वंचित कस्बों के लिये अधिसूचित क्षेत्र समितियों का गठन किया जाता है।
- अधिसूचित क्षेत्र समिति के सभी सदस्यों को राज्य सरकार द्वारा मनोनीत किया जाता है।
- नगर क्षेत्र समिति:
- नगर क्षेत्र समिति की व्यवस्था छोटे शहरों में पाई जाती है।
- इसे स्ट्रीट लाइटिंग, ड्रेनेज रोड और कंज़र्वेंसी की व्यवस्था आदि सुनिश्चित करने का अधिकार प्राप्त है।
- छावनी बोर्ड:
- यह आमतौर पर छावनी क्षेत्र में रहने वाली नागरिक आबादी के प्रशासन के लिये स्थापित किया जाता है।
- इसे केंद्र सरकार द्वारा स्थापित और नियंत्रित किया जाता है।
- टाउनशिप:
- टाउनशिप संयंत्र के आस-पास स्थापित कॉलोनियों में रहने वाले कर्मचारियों और श्रमिकों को बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने के लिये शहरी सरकार का दूसरा रूप है।
- इसका कोई निर्वाचित सदस्य नहीं है और यह केवल नौकरशाही संरचना का विस्तार है।
- पोर्ट ट्रस्ट:
- पोर्ट ट्रस्ट मुंबई, चेन्नई, कोलकाता आदि बंदरगाह क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं।
- यह पोर्ट (बंदरगाह) का प्रबंधन और देखभाल करता है।
- यह उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को बुनियादी नागरिक सुविधाएँ भी प्रदान करता है।
- विशेष प्रयोजन एजेंसी:
- ये एजेंसियाँ नगर निगमों या नगरपालिकाओं से संबंधित निर्दिष्ट गतिविधियों या विशिष्ट कार्यों को पूरा करती हैं।
- नगर निगम:
- शहरी स्थानीय सरकार में आठ प्रकार के शहरी स्थानीय निकाय शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के हाल के निर्देशों को 'नगाओं' द्वारा उनके राज्य को मिली विशिष्ट स्थिति को रद्द करने के खतरे के रूप में देखा गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371A के आलोक में इसकी विवेचना कीजिये। (2013) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
संगठन से समृद्धि: DAY-NRLM
प्रिलिम्स के लिये:संगठन से समृद्धि, दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM), स्वयं सहायता समूह, GDP, ग्रामीण परिवार, केंद्र प्रायोजित योजना। मेन्स के लिये:ग्रामीण भारत और भारतीय अर्थव्यवस्था पर DAY-NRLM का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM) ने "संगठन से समृद्धि- किसी ग्रामीण महिला को पीछे नहीं छोड़ना (Sangathan Se Samridhhi– Leaving no Rural Woman Behind)" अभियान लॉन्च किया। इसका उद्देश्य स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups- SHG) के अंतर्गत सभी कमज़ोर और सीमांत ग्रामीण परिवारों को लाना है।
संगठन से समृद्धि अभियान:
- परिचय:
- यह अभियान आज़ादी का अमृत महोत्सव समावेशी विकास के अंतर्गत लॉन्च किया गया है और इसका उद्देश्य पात्र ग्रामीण परिवारों की 10 करोड़ महिलाओं को संगठित करना है।
- इसका उद्देश्य स्वयं सहायता समूह के अंतर्गत सभी कमज़ोर और सीमांत ग्रामीण परिवारों को लाना है, ताकि वे ऐसे कार्यक्रम के अंतर्गत प्रदान किये जा रहे लाभों को प्राप्त कर सकें।
- यह अभियान 1.1 लाख स्वयं सहायता समूह बनाने की विचार के साथ सभी राज्यों में चलाया जाएगा। इसके तहत प्रस्तावित कार्य इस प्रकार हैं:
- ग्राम संगठनों की सामान्य बैठकें आयोजित करना।
- स्वयं सहायता समूह चैंपियनों द्वारा अनुभव साझा करते हुए परिवारों को इसमें शामिल करने के लिये प्रेरित करना।
- सामूहिक संसाधन व्यक्ति अभियान (Community Resource Persondrives) का आयोजन
- स्वयं सहायता समूह बैंक खाते खोलना तथा अन्य हितधारकों द्वारा संवर्द्धित SHG का सामान्य डाटाबेस तैयार करना।
- ऐसे अभियान की आवश्यकता:
- भारत की कुल आबादी का 65% ग्रामीण आबादी है और इन क्षेत्रों की महिलाओं को भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान करने हेतु सभी संभव अवसर प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है।
- जब इतनी बड़ी संख्या में महिलाएँ SHG का हिस्सा बनेंगी, तो इसका देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) पर काफी प्रभाव पड़ेगा।
महिला सशक्तीकरण में SHGs की भूमिका:
- आर्थिक सशक्तीकरण:
- SHGs महिला उद्यमियों को उनके व्यवसायों को बनाए रखने हेतु सूक्ष्म ऋण प्रदान करते हैं, साथ ही उनके लिये अधिक अभिकर्तृत्त्व एवं निर्णय लेने के कौशल विकसित करने हेतु एक बेहतर वातावरण भी बनाते हैं।
- इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंशियल मैनेजमेंट एंड रिसर्च (IFMR) द्वारा वर्ष 2022 के एक अध्ययन के अनुसार, SHGs द्वारा सहायता प्राप्त महिलाओं की नियमित रूप से बचत करने की संभावना 10% अधिक थी, जिसके परिणामस्वरूप अगली पीढ़ी के लिये बेहतर भविष्य की दिशा में काम करते हुए आर्थिक सशक्तीकरण हुआ।
- SHGs महिला उद्यमियों को उनके व्यवसायों को बनाए रखने हेतु सूक्ष्म ऋण प्रदान करते हैं, साथ ही उनके लिये अधिक अभिकर्तृत्त्व एवं निर्णय लेने के कौशल विकसित करने हेतु एक बेहतर वातावरण भी बनाते हैं।
- महिला उद्यमिता:
- SHGs महिला उद्यमियों हेतु उद्यमशीलता प्रशिक्षण, आजीविका संवर्द्धन एवं सामुदायिक विकास से लेकर अन्य सेवाएँ भी प्रदान करते हैं।
- अकेले महाराष्ट्र में 527,000 SHGs हैं, जो भारत में महिलाओं के नेतृत्त्व वाली सभी छोटे पैमाने की औद्योगिक इकाइयों का 50% से अधिक हिस्सा है।
- यह एक स्पष्ट संकेत है कि SHGs महिला उद्यमिता के समग्र विकास का नेतृत्त्व कर सकते हैं।
- कौशल विकास:
- स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण का कार्य भी करते हैं। महिलाएँ सिलाई, हस्तशिल्प या खेती की तकनीक जैसे नए कौशल सीख सकती हैं।
- इससे न केवल उन्हें अपनी आय क्षमता में सुधार करने में मदद मिलती है बल्कि उनके आत्मविश्वास और आत्म-सम्मान में भी वृद्धि होती है।
- सामाजिक अधिकारिता:
- स्वयं सहायता समूह महिलाओं को एक साथ आने और अपने अनुभव साझा करने के लिये एक मंच प्रदान करते हैं। इससे महिलाओं में एकजुटता की भावना पैदा होती है तथा सामाजिक बाधाओं को तोड़ने में मदद मिलती है।
- यह महिलाओं को घरेलू और सामुदायिक स्तर पर निर्णय लेने में भागीदार बनने में सक्षम बनाता है, जिससे उन्हें एक पहचान मिलती है और उनका जीवन पर अधिक नियंत्रण होता है।
दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन:
- विषय:
- यह वर्ष 2011 में ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया एक केंद्र प्रायोजित कार्यक्रम है।
- इसका उद्देश्य देश भर में ग्रामीण गरीब परिवारों के लिये अनेक प्रकार की आजीविकाओं को बढ़ावा देने और वित्तीय सेवाओं तक बेहतर पहुँच के माध्यम से ग्रामीण गरीबी को खत्म करना है।
- कार्य पद्धति:
- इसमें स्वयं सहायता की भावना से सामुदायिक पेशेवरों के माध्यम से सामुदायिक संस्थानों के साथ कार्य करना शामिल है जो DAY-NRLM का एक अनूठा प्रस्ताव है।
- यह आजीविका को प्रभावित करता है, जैसे:
- ग्रामीण परिवारों को SHGs में संगठित करना।
- प्रत्येक ग्रामीण गरीब परिवार से एक महिला सदस्य को स्वयं सहायता समूहों में संगठित करना।
- SHG सदस्यों को प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में सहायता करना।
- अपने स्वयं के संस्थानों और बैंकों से वित्तीय संसाधनों तक पहुँच प्रदान करना।
- उप कार्यक्रम:
- महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना: इसका उद्देश्य ऐसे कृषि-पारिस्थितिक प्रथाओं को बढ़ावा देना है जो महिला किसानों की आय में वृद्धि करते हैं और उनकी इनपुट लागत और जोखिम को कम करते हैं।
- स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (SVEP): इसका उद्देश्य स्थानीय उद्यमों की स्थापना के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमियों का समर्थन करना है।
- आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना (AGEY): AGEY को अगस्त 2017 में शुरू किया गया था, जिसके तहत दूरदराज़ के ग्रामीण गाँवों को जोड़ने के लिये सुरक्षित, सस्ती और सामुदायिक निगरानी वाली ग्रामीण परिवहन सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
- दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDUGKY): इसका उद्देश्य ग्रामीण युवाओं को प्लेसमेंट से जुड़े कौशल प्रदान करना ताकि वे अर्थव्यवस्था में अपेक्षाकृत उच्च मज़दूरी वाले रोज़गार प्राप्त कर सकें।
- ग्रामीण स्वरोज़गार संस्थान (RSETIs): DAY-NRLM, 31 बैंकों और राज्य सरकारों के साथ साझेदारी में ग्रामीण युवाओं को लाभकारी स्वरोज़गार स्थापित करने हेतु कुशल बनाने के लिये ग्रामीण स्वरोज़गार संस्थानों (RSETIs) को सहायता प्रदान कर रहा है।
- परिणाम:
- जुलाई 2022 तक 8.35 करोड़ महिलाएँ NRLM से जुड़ी थीं और बैंकों के 5.9 लाख करोड़ रुपए जुड़े थे, जबकि NPA घटकर 2.5% रह गया है।
- इस योजना में वर्ष 2014 तक 2.35 लाख घरों को शामिल किया गया था जिसमें 9.58% की गैर-निष्पादित संपत्ति (Non-Performing Assets- NPA) के साथ बैंकों द्वारा 80,000 करोड़ रुपए दिये गए थे।
- मई 2021 तक भारत में 7,83,389 गाँवों में 75 मिलियन सदस्यों के साथ 6.9 मिलियन SHG हैं।
- NRLM ने ग्रामीण परिवारों को शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल जैसी आवश्यक सेवाओं तक अधिक पहुँच हेतु सक्षम बनाया है।
- इसने खाद्य सुरक्षा और स्कूलों में नामांकन में सुधार किया है, महिलाओं को खाद्यान्न उत्पादन हेतु भूमि तक पहुँच प्रदान की है तथा दहेज, बाल विवाह एवं लड़कियों के खिलाफ भेदभाव जैसे मुद्दों पर महिला समूहों पर प्रभाव डाला है।
- जुलाई 2022 तक 8.35 करोड़ महिलाएँ NRLM से जुड़ी थीं और बैंकों के 5.9 लाख करोड़ रुपए जुड़े थे, जबकि NPA घटकर 2.5% रह गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ग्रामीण क्षेत्रीय निर्धनों के आजीविका विकल्पों को सुधारने का किस प्रकार प्रयास करता है? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. "वर्तमान समय में स्वयं सहायता समूहों का उद्भव राज्य के विकासात्मक गतिविधियों से धीमे परंतु निरंतर पीछे हटने का संकेत है"। विकासात्मक गतिविधियों में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका का एवं भारत सरकार द्वारा स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करने के लिये किये गए उपायों का परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2017) प्रश्न. आत्मनिर्भर समूह (एस.एच.जी.) बैंक अनुबंधन कार्यक्रम (एस.बी.एल.पी.), जो कि भारत का स्वयं का नवाचार है, निर्धनता न्यूनीकरण और महिला सशक्तीकरण कार्यक्रमों में एक सर्वाधिक प्रभावी कार्यक्रम साबित हुआ है। सविस्तार स्पष्ट कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2015) |
स्रोत: पी.आई.बी.
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-UAE खाद्य सुरक्षा साझेदारी
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य सुरक्षा, पोषण अभियान, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, I2U2 शिखर सम्मेलन 2022, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA), पोषक अनाज का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष। मेन्स के लिये:भारत-UAE खाद्य सुरक्षा साझेदारी के प्रमुख क्षेत्र, वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये प्रमुख चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
संयुक्त अरब अमीरात (UAE), जिसकी खाद्य सुरक्षा वैश्विक बाज़ारों से होने वाले आयात पर निर्भर है, अब आपूर्ति शृंखला संकट का सामना करने के लिये खाद्य पहुँच और तत्परता के दोहरे उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
- भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक है और खाद्य सुरक्षा को मज़बूती प्रदान करने की संयुक्त अरब अमीरात की महत्त्वाकांक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण भागीदार है।
- भारत-UAE खाद्य सुरक्षा साझेदारी अभिसरण के कई बिंदुओं से लाभान्वित होती है।
वैश्विक खाद्य सुरक्षा साझेदारी को मज़बूत करने की दिशा में भारत-संयुक्त अरब अमीरात की भूमिका:
- भारत की क्षमता:
- कृषि-निर्यात पर मज़बूत पकड़:
- प्रचुर कृषि योग्य भूमि, अनुकूल जलवायु और बढ़ता खाद्य उत्पादन तथा प्रसंस्करण क्षेत्र के परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर कृषि-निर्यात के प्रमुखतम स्रोत के रूप में भारत की स्थिति मज़बूत है।
- मानवीय सहायता:
- भारत क्षेत्रीय और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए विकासशील देशों को मानवीय खाद्य सहायता प्रदान करने में भी शामिल रहा है।
- फूड पार्क और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन:
- भारत ने द्विपक्षीय व्यापार समझौतों से लाभान्वित होने के लिये फूड पार्क और आधुनिक आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण निवेश किया है, जो वैश्विक खाद्य बाज़ार में उत्कृष्टता प्राप्त करने के अपने इरादे को प्रदर्शित करता है।
- सरकारी पहल:
- भारत विश्व का सबसे बड़ा खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम- सार्वजनिक वितरण प्रणाली चलाता है, लगभग 800 मिलियन नागरिकों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराता है, दैनिक भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करता है।
- भारत का पोषण अभियान बच्चों और महिलाओं के लिये विश्व का सबसे बड़ा पोषण कार्यक्रम है, जो खाद्य सुरक्षा में पोषण के महत्त्व पर ज़ोर देता है।
- कृषि-निर्यात पर मज़बूत पकड़:
- UAE's का योगदान:
- निवेश:
- UAE ने I2U2 शिखर सम्मेलन 2022 के दौरान भारत में फूड पार्कों के निर्माण के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की प्रतिबद्धता जताई है।
- खाद्य सुरक्षा कॉरिडोर:
- संयुक्त अरब अमीरात ने वैश्विक खाद्य मूल्य शृंखला में भारत की उपस्थिति को और अधिक बढ़ाते हुए व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) के साथ-साथ एक खाद्य सुरक्षा कॉरिडोर पर हस्ताक्षर किये हैं।
- एग्रीओटा:
- दुबई मल्टी कमोडिटीज़ सेंटर ने कृषि-व्यापार और कमोडिटी प्लेटफॉर्म एग्रीओटा लॉन्च किया है, जो भारतीय किसानों को UAE के खाद्य पारिस्थितिकी तंत्र से जोड़ता है तथा अमीरात के बाज़ारों तक सीधी पहुँच में सक्षम बनाता है।
- निवेश:
- महत्त्व:
- भारत के लिये नए बाज़ारों का प्रवेश द्वार:
- एशिया और यूरोप के बीच संयुक्त अरब अमीरात का रणनीतिक स्थान पश्चिम एशिया एवं अफ्रीका के लिये भारत के खाद्य निर्यात प्रवेश द्वार के रूप में कार्य कर सकता है, जो अपने खाद्य भंडार को बनाए रखने तथा उसमें विविधता लाकर लाभ प्रदान कर सकता है।
- भारत, संयुक्त अरब अमीरात की निजी क्षेत्र की परियोजनाओं, गैर-कृषि-रोज़गार पैदा करने और किसानों के उत्पादों का बेहतर मूल्य प्रदान कर लाभान्वित होने के लिये तत्पर है।
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा भागीदारी के लिये संरचना:
- भारत की G-20 अध्यक्षता ग्लोबल साउथ में खाद्य सुरक्षा के लिये सफल रणनीतियों और रूपरेखाओं को प्रदर्शित करने का एक उपयुक्त अवसर प्रदान करती है।
- भारत खाद्यान्न के एक स्थायी, समावेशी, कुशल और लचीले भविष्य के निर्माण के लिये UAE के साथ समुद्री व्यापार मार्गों का लाभ उठा सकता है और स्थति को मज़बूत कर सकता है क्योंकि यह वैश्विक विकास एजेंडा निर्धारित करता है।
- भारत के लिये नए बाज़ारों का प्रवेश द्वार:
वैश्विक खाद्य सुरक्षा के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ:
- जलवायु परिवर्तन का खतरा: संयुक्त राष्ट्र ने जलवायु परिवर्तन तथा चरम मौसमी घटनाओं को बढ़ती खाद्य असुरक्षा का प्रमुख कारक बताया है।
- बढ़ते तापमान, मौसम की परिवर्तनशीलता, आक्रामक फसलें एवं कीट तथा लगातार बढ़ते चरम मौसमी घटनाओं का खेती पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण कृषि उत्पादन में कमी तथा खेतों की उत्पादकता व पोषण गुणवत्ता कमज़ोर होती है जो अंततः किसानों की आय में कमी का कारण बनता है।
- अस्थिर बाज़ार मूल्य: वैश्वीकरण की अवधारणा ने कृषि वाणिज्य को अधिक खुलापन प्रदान किया है, लेकिन यह अधिक स्थिर बाज़ार मूल्य निर्धारण का आश्वासन देने में असमर्थ है।
- अंतिम वस्तुओं हेतु लाभकारी कीमतों की कमी, संकटग्रस्त बिक्री, अनुपयुक्त बाज़ार कीमतों के साथ संयुक्त उच्च कृषि लागत खाद्य सुरक्षा के मार्ग में बाधा के रूप में कार्य करती है।
- व्यापार व्यवधान: भू-राजनीतिक तनाव एवं व्यापार विवादों के परिणामस्वरूप व्यापार में व्यवधान आ सकता है, जिसमें व्यापार प्रतिरोध, प्रतिबंध एवं टैरिफ शामिल हैं, जो खाद्य व्यापार तथा खाद्य कीमतों एवं उपलब्धता को प्रभावित कर सकते हैं।
- यह विशेष रूप से उन देशों को प्रभावित कर सकता है जो खाद्य आयात पर बहुत अधिक निर्भर होते हैं, इससे खाद्य की कमी एवं खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है, जिससे कमज़ोर आबादी हेतु भोजन कम सुलभ हो पाता है।
आगे की राह
- जलवायु लचीलापन बढ़ाना: जल प्रबंधन, मृदा संरक्षण एवं जलवायु-स्मार्ट प्रौद्योगिकियों जैसे जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन उपायों में निवेश, खाद्य उत्पादन तथा खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
- जलवायु अनुकूल फसलों को प्रोत्साहन: जलवायु-लचीली फसलों के विकास एवं वितरण के लिये निवेश की आवश्यकता है जो तापमान भिन्नता और वर्षा में उतार-चढ़ाव को सहन कर सके।
- सरकारों को जल और पोषक तत्त्व-कुशल फसलों (जैसे बाज़रा और दालें) के उत्पादन को प्रोत्साहित करने के साथ ही किसानों के लिये आकर्षक न्यूनतम समर्थन मूल्य तथा इनपुट सब्सिडी की घोषणा करनी चाहिये।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) महासभा द्वारा अपने 75वें सत्र में वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया जाना इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
- कृषि कूटनीति: भारत अफ्रीका और एशिया के अन्य विकासशील देशों को प्रौद्योगिकी साझेदारी, सूखा प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देने में संयुक्त अनुसंधान, जलवायु स्मार्ट कृषि को बढ़ावा देने के माध्यम से अपने समर्थन में वृद्धि कर सकता है जिससे भारत को वैश्विक दक्षिण के एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित होने में मदद मिल सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. जलवायु अनुकूल कृषि (क्लाइमेट-स्मार्ट एग्रीकल्चर) के लिये भारत की तैयारी के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के अधीन बनाए गए उपबंधों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के माध्यम से सरकारी प्रदेय व्यवस्था में सुधार एक प्रगतिशील कदम है, किंतु इसकी अपनी सीमाएँ भी हैं। टिप्पणी कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2015) |
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
यमन में शांति की उम्मीद
प्रिलिम्स के लिये:हौथिस, यमन का क्षेत्र और पड़ोस, ऑपरेशन राहत मेन्स के लिये:यमन गृह युद्ध, हौथी संघर्ष का महत्त्व, भारत की रुचि |
चर्चा में क्यों?
यमन में युद्धरत पक्ष सैकड़ों कैदियों की अदला-बदली कर रहे हैं, जिसने सऊदी समर्थित सरकारी बलों और ईरान समर्थित हौथी विद्रोहियों के बीच एक स्थायी युद्धविराम की उम्मीद जगाई है।
यमन में युद्ध की शुरुआत:
- यमन गृह युद्ध 2011 में सत्तावादी राष्ट्रपति अली अब्दुल्ला सालेह (Ali Abdullah Saleh) के अपदस्थ होने के बाद शुरू हुआ। नए राष्ट्रपति, अब्दरब्बुह मंसूर हादी, आर्थिक और सुरक्षा समस्याओं के कारण देश को स्थिरता प्रदान करने में असमर्थ रहे।
- जैदी शिया मुस्लिम अल्पसंख्यक समूह हौथिस ने इसका फायदा उठाया और वर्ष 2014 में उत्तर और राजधानी सना पर नियंत्रण कर लिया।
- इसने सऊदी अरब को चिंतित कर दिया, जिसे डर था कि हौथिस उनके प्रतिद्वंद्वी ईरान के सहयोगी बन जाएंगे। सऊदी अरब ने तब एक गठबंधन का नेतृत्व किया जिसमें अन्य अरब देश शामिल थे और वर्ष 2015 में यमन में सेना भेजी। हालाँकि वे सना के साथ-साथ देश के उत्तर से हौथियों को खदेड़ने में असमर्थ थे।
- अप्रैल 2022 में संयुक्त राष्ट्र ने सऊदी के नेतृत्त्व वाले गठबंधन और हौथी विद्रोहियों के बीच संघर्ष विराम की मध्यस्थता की, हालाँकि पक्षकार छह महीने बाद इसे नवीनीकृत करने में विफल रहे।
स्टॉकहोम समझौता:
- यमन के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण रखने वाले युद्धरत पक्षों ने दिसंबर 2018 में संघर्ष-संबंधी बंदियों को मुक्त करने के लिये स्टॉकहोम समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा मध्यस्थता किये गए समझौते के तीन मुख्य घटक थे:
- हुदायाह समझौता:
- हुदायाह समझौते में होदेइदाह शहर में युद्धविराम और शहर में कोई सैन्य सुदृढ़ीकरण न होने जैसे अन्य खंड शामिल थे और संयुक्त राष्ट्र की उपस्थिति को मज़बूत किया गया था।
- कैदी विनिमय समझौता:
- अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति इस प्रक्रिया की देख-रेख और समर्थन करेगी, जिसकी देख-रेख यमन के महासचिव के विशेष दूत के कार्यालय द्वारा की गई थी।
- उनका उद्देश्य मौलिक मानवीय सिद्धांतों और प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करना है जो यमन में घटनाओं के दौरान अपनी स्वतंत्रता से वंचित सभी व्यक्तियों की रिहाई या स्थानांतरण या प्रत्यावर्तन की सुविधा प्रदान करते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय रेड क्रॉस समिति इस प्रक्रिया की देख-रेख और समर्थन करेगी, जिसकी देख-रेख यमन के महासचिव के विशेष दूत के कार्यालय द्वारा की गई थी।
- ताइज़ समझौता:
- ताइज़ समझौते में नागरिक समाज और संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी के साथ एक संयुक्त समिति का गठन शामिल है।
- हुदायाह समझौता:
इस युद्ध का यमन पर प्रभाव:
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, यमन में अब दुनिया का सबसे बड़ा मानवीय संकट है, जिसकी 80% आबादी सहायता और सुरक्षा पर निर्भर है।
- वर्ष 2015 से 30 लाख से अधिक लोग अपने घरों से विस्थापित हुए हैं और स्वास्थ्य सेवा, जल, स्वच्छता एवं शिक्षा जैसे सार्वजनिक सेवा क्षेत्र या तो समाप्त हो गए हैं या गंभीर स्थिति में हैं।
- यमन आर्थिक रूप से संकट में है, आर्थिक उत्पादन में 90 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ है, साथ ही 6,00,000 से अधिक लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है। देश की आधी से ज़्यादा आबादी व्यापक गरीबी में जी रही है।
यमन संकट के कारण भारत और विश्व की चिंताएँ:
- वैश्विक:
- अंतर्राष्ट्रीय तेल शिपमेंट के लिये अदान की खाड़ी से लाल सागर को जोड़ने वाले जलसंधि में यमन का अवस्थित होना यह चिंता उत्पन्न करता है कि कि यमन संकट विश्व भर में तेल की कीमतों को किस प्रकार प्रभावित करेगा।
- यमन में अल-कायदा और IS से जुड़े समूहों की उपस्थिति वैश्विक सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा करती है।
- भारत:
- यमन भारत के लिये कच्चे तेल का एक प्रमुख स्रोत है और तेल आपूर्ति शृंखला में कोई भी व्यवधान भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
- यमन, सऊदी अरब, ईरान में रह रहे भारतीय प्रवासियों की बड़ी आबादी भारत के लिये एक चुनौती है।
- भारत पर अपने नागरिकों की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करने एवं प्रेषित धन (Remittances) में किसी भी व्यवधान के प्रभाव का प्रबंधन करने की ज़िम्मेदारी है, जो भारत में कई परिवारों के लिये आय का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- यमन, सऊदी अरब, ईरान में रह रहे भारतीय प्रवासियों की बड़ी आबादी भारत के लिये एक चुनौती है।
- यमन भारत के लिये कच्चे तेल का एक प्रमुख स्रोत है और तेल आपूर्ति शृंखला में कोई भी व्यवधान भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
भारत की पहलें:
- ऑपरेशन राहत:
- भारत ने अप्रैल 2015 में यमन से 4000 से अधिक भारतीय नागरिकों को निकालने के लिये बड़े पैमाने पर हवाई और समुद्री अभियान शुरू किये।
- मानवीय सहायता:
- भारत ने अतीत में यमन को भोजन एवं चिकित्सा सहायता प्रदान की है तथा विगत कुछ वर्षों में हज़ारों यमन- नागरिकों ने भारत में चिकित्सा उपचार का लाभ उठाया है।
- भारत विभिन्न भारतीय संस्थानों में बड़ी संख्या में यमन- नागरिकों को शिक्षा की सुविधा भी प्रदान करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित में से किन देशों में लाखों लोग या तो भयंकर अकाल एवं कुपोषण से प्रभावित हुए या उनकी युद्ध/संजातीय संघर्ष के चलते उत्पन्न भुखमरी के कारण मृत्यु हुई? (2018) (a) अंगोला और ज़ाम्बिया उत्तर: (d) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023
प्रिलिम्स के लिये:पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड, रेबीज़, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र, वन हेल्थ। मेन्स के लिये:भारत में रेबीज़ की स्थिति, पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023 जारी किया है। यह नियम पशु जन्म नियंत्रण (कुत्ते) नियम, 2001 का स्थान लेगा, जिसे पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत जारी किया गया है
पशु जन्म नियंत्रण नियम, 2023:
- पृष्ठभूमि:
- नवंबर 2022 तक संसद में पेश किये गए आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 और 2022 के बीच भारत में स्ट्रीट डॉग/ कुत्तों के काटने के 160 मिलियन मामले दर्ज किये गए।
- जिससे कुत्ते के मालिक, कुत्ते के भोजन और देखभाल करने वालों के खिलाफ प्रतिशोध के कृत्यों के साथ-साथ शहरी निवासियों के बीच संघर्ष भी बढ़ गया है।
- प्रावधान:
- नियमों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय पशु कल्याण बोर्ड और आवारा पशुओं को होने वाली परेशानियों के उन्मूलन के लिये लोगों से संबंधित दिशा-निर्देशों के अनुसार तैयार किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न आदेशों में विशेष रूप से उल्लेख किया है कि कुत्तों के स्थानांतरण की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
- नियमों का उद्देश्य पशु जन्म नियंत्रण (ABC) कार्यक्रमों के माध्यम से आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करना है।
- एबीसी कार्यक्रमों को चलाने की ज़िम्मेदारी संबंधित स्थानीय निकायों, नगर पालिकाओं, नगर निगमों और पंचायतों की है।
- नगर निगमों को ABC और एंटी रेबीज़ कार्यक्रम को संयुक्त रूप से लागू करने की आवश्यकता है।
- यह एक क्षेत्र में कुत्तों को स्थानांतरित किये बिना मानव और आवारा कुत्तों के संघर्ष से निपटने के तरीके पर दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- यह पशु कल्याण सुनिश्चित करने, ABC कार्यक्रमों को चलाने में शामिल क्रूरता को संबोधित करने पर भी महत्त्व देता है।
- नियमों को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भारतीय पशु कल्याण बोर्ड और आवारा पशुओं को होने वाली परेशानियों के उन्मूलन के लिये लोगों से संबंधित दिशा-निर्देशों के अनुसार तैयार किया गया है।
रेबीज़
- परिचय:
- रेबीज़ एक वैक्सीन द्वारा रोकथाम योग्य ज़ूनोटिक विषाणु जनित बीमारी है।
- एशिया और अफ्रीका में 95% से अधिक मानव मौतें इसके कारण होती हैं और यह बीमारी अंटार्कटिक को छोड़कर सभी महाद्वीपों पर देखी गई है।
- रेबीज़ एक वैक्सीन द्वारा रोकथाम योग्य ज़ूनोटिक विषाणु जनित बीमारी है।
- कारण:
- यह राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) वायरस के कारण होता है जो पागल जानवर (कुत्ते, बिल्ली, बंदर आदि) की लार में मौजूद होता है।
- यह एक संक्रमित पशु के काटने के बाद अनिवार्य रूप से फैलता है जिससे घाव में लार और वायरस का प्रवेश होता है।
- WHO के अनुसार, कुत्ते मानव रेबीज़ से होने वाली मौतों का मुख्य स्रोत हैं, जो मनुष्यों को रेबीज़ के सभी संचरणों में 99% तक योगदान देते हैं।
- भारत में रेबीज़ की स्थिति:
- भारत रेबीज़ के लिये स्थानिक है एवं विश्व में रेबीज़ से होने वाली कुल मौतों में 36% मौतें भारत में देखी गई हैं।
- WHO के अनुसार, भारत में रिपोर्ट किये गए रेबीज़ के लगभग 30-60% मामले और मौतों में 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चे शामिल हैं, क्योंकि जानवर के काटने के कारण बच्चों में उत्पन्न होने वाले लक्षणों की पहचान करना मुश्किल है और इसकी रिपोर्ट भी नहीं की जाती है।
- उपचार:
- रेबीज़ को पालतू जानवरों का टीकाकरण कर, वन्य जीवन से दूर रखकर तथा लक्षणों के शुरू होने से पहले संभावित जोखिम को चिकित्सा देखभाल प्रदान करके रोका जा सकता है
- रेबीज़ को पालतू जानवरों का टीकाकरण कर, वन्य जीवन से दूर रखकर तथा लक्षणों के शुरू होने से पहले संभावित जोखिम को चिकित्सा देखभाल प्रदान करके रोका जा सकता है
- रेबीज़ नियंत्रण से संबंधित पहल:
- वैश्विक:
- यूनाइटेड अगेंस्ट रेबीज़ फोरम: UAR फोरम विभिन्न संगठनों, मंत्रालयों एवं देशों के वैश्विक विशेषज्ञों को एक साथ लाता है ताकि वे वर्ष 2030 तक रेबीज़ के कारण होने वाली मृत्यु को शून्य तक लाने के प्रयासों को सुविधाजनक बनाने हेतु विशिष्ट उद्देश्यों एवं गतिविधियों की दिशा में काम कर सकें।
- भारत की पहल:
- वर्ष 2030 तक कुत्तों से होने वाले रेबीज़ के उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan For Dog Mediated Rabies Elimination- NAPRE): NAPRE को राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) द्वारा मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी मंत्रालय के सहयोग से तैयार किया गया था।
- रेबीज़ के उन्मूलन हेतु इसका दृष्टिकोण विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं रेबीज़ नियंत्रण के वैश्विक गठबंधन (GARC) जैसी कई अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों की सिफारिशों पर आधारित है।
- वैश्विक:
निष्कर्ष:
- भारत वन हेल्थ नेटवर्क बनाने के लिये उत्सुक है, यह न केवल रेबीज़ बल्कि पशु और मानव स्वास्थ्य तथा अन्य प्रासंगिक क्षेत्रों के बीच बेहतर समन्वय एवं संचार के माध्यम से मानव-पशु-पर्यावरण इंटरफेस पर कई स्वास्थ्य जोखिमों की निगरानी तथा स्वास्थ्य प्रणाली को भी मज़बूत करेगा।
स्रोत: पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट: UNFPA
प्रिलिम्स के लिये:UNFPA, प्रजनन दर, जनसांख्यिकीय लाभांश, सतत् विकास लक्ष्य, ECOSOC मेन्स के लिये:विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2023 जारी की है, जिसमें कहा गया है कि भारत वर्ष 2023 के मध्य तक विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा और भारत की जनसंख्या चीन से भी अधिक हो जाएगी।
- विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट प्रतिवर्ष प्रकाशित होती है जो विश्व जनसंख्या और जनसांख्यिकी में विकासात्मक प्रवृत्तियों को शामिल करती है एवं उनका विश्लेषण करती है, साथ ही विशिष्ट क्षेत्रों, देशों और जनसंख्या समूहों तथा उनके समक्ष आने वाली विशिष्ट चुनौतियों पर प्रकाश डालती है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- जनसंख्या अनुमान:
- जुलाई 2023 तक चीन की 142.57 करोड़ जनसंख्या की तुलना में भारत की जनसंख्या 142.86 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है।
- भारत की 25% जनसंख्या 0-14 वर्ष आयु वर्ग में, 18% जनसंख्या 10-19 वर्ष आयु वर्ग में, 26% जनसंख्या 10-24 वर्ष आयु वर्ग में, 68% जनसंख्या 15-64 वर्ष आयु वर्ग में और 7% जनसंख्या 65 वर्ष से ऊपर की आयु की है।
- अपने एशियाई पड़ोसी देश की तुलना में भारत में 29 लाख अधिक लोग होंगे।
- संयुक्त राज्य अमेरिका तीसरा सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है, जिसकी जनसंख्या 340 मिलियन है।
- जुलाई 2023 तक चीन की 142.57 करोड़ जनसंख्या की तुलना में भारत की जनसंख्या 142.86 करोड़ तक पहुँचने का अनुमान है।
- धीमी जनसंख्या वृद्धि :
- अनुमानित वैश्विक आबादी के एक\-तिहाई से अधिक होने के बावजूद भारत और चीन दोनों में जनसंख्या वृद्धि धीमी रही है।
- प्रजनन दर:
- भारत की कुल प्रजनन दर 2 आँकी गई थी, जो विश्व औसत 2.3 से कम है।
- विकसित क्षेत्रों में प्रजनन दर 1.5, कम विकसित क्षेत्रों में 2.4 और कम विकसित देशों में 3.9 होने का अनुमान है।
- जीवन प्रत्याशा:
- एक भारतीय पुरुष की औसत जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष और महिलाओं की 74 वर्ष अनुमानित है।
- वैश्विक स्तर पर औसतन पुरुषों के लिये जीवन प्रत्याशा 71 वर्ष तथा महिलाओं के लिये 76 वर्ष होने का अनुमान है।
- विकसित क्षेत्रों हेतु पुरुषों के लिये औसत जीवन प्रत्याशा 77 वर्ष और महिलाओं के लिये 83 वर्ष अनुमानित की गई थी, जो कि सबसे अधिक है।
- कम विकसित क्षेत्रों के लिये पुरुषों हेतु 70 वर्ष और महिलाओं के लिये 74 वर्ष है, जबकि कम विकसित देशों में यह पुरुषों के लिये 63 वर्ष और महिलाओं हेतु 68 वर्ष अनुमानित है।
- लैंगिक अधिकार:
- विगत 12 महीनों में 18% महिलाओं द्वारा अंतरंग साथी द्वारा हिंसा की सूचना दी गई थी, जबकि 66% महिलाओं ने भारत में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा प्रजनन अधिकारों पर स्वयं निर्णय लिया था।
- 80% से अधिक महिलाओं के पास अपने स्वयं के स्वास्थ्य सेवा के बारे में निर्णय लेने में कुछ सहयोग था।
- जनसंख्या वृद्धि संकेंद्रण:
- वर्ष 2050 तक वैश्विक जनसंख्या में अनुमानित वृद्धि का आधे से अधिक आठ देशों - कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मिस्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और संयुक्त गणराज्य तंज़ानिया में संकेंद्रण होगा।
अनुशंसाएँ:
- भारत के पास 25 वर्ष से कम आयु की लगभग आधी आबादी के साथ जनसांख्यिकीय लाभांश से लाभान्वित होने का एक समयबद्ध अवसर है। हालाँकि मुख्य लक्ष्य महिलाओं को अधिक अधिकार देना है ताकि वे परिवार नियोजन में अपनी भूमिका सुनिश्चित कर सकें।
- स्थायी भविष्य का निर्धारण करने में सबसे महत्त्वपूर्ण कारकों में से एक लैंगिक समानता है, जो महिला सशक्तीकरण तथा लड़कियों और महिलाओं हेतु अधिक शारीरिक स्वायत्तता सुनिश्चित करेगी।
- उच्च जनसंख्या के बावजूद संपन्न और समावेशी समुदायों का निर्माण किया जा सकता है यदि राष्ट्र मौलिक रूप से परिवर्तन करने के इच्छुक हैं जो इस बात पर निर्भर करेगा कि वे जनसंख्या परिवर्तन को लेकर किस प्रकार को दृष्टिकोण रखते हैं एवं तैयारी करते हैं।
- उच्च प्रजनन क्षमता वाले देशों को शिक्षा और परिवार नियोजन के माध्यम से सशक्तीकरण, आर्थिक विकास एवं मानव पूंजी विकास के रूप में भारी लाभांश प्राप्त करने हेतु जाना जाता है।
- सभी सरकारों को मानवाधिकारों को बनाए रखना चाहिये, पेंशन और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मज़बूत करना चाहिये, सक्रिय एवं स्वस्थ उम्र को बढ़ावा देना चाहिये, प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिये, साथ ही जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों को कम करना चाहिये।
भारत हेतु अवसर और चुनौतियाँ:
- अवसर:
- जनसांख्यिकीय लाभांश:
- भारत की जनसंख्या एक बड़े कार्यबल के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है, जो आर्थिक विकास को चलाने में मदद कर सकती है।
- भारत की 68% आबादी 15 से 64 वर्ष आयु वर्ग की है, जो कामकाज़ी या काम करने में सक्षम आबादी में महत्त्वपूर्ण योगदान करती है।
- यह निश्चित रूप से एक जनसांख्यिकीय लाभांश है जब दुनिया के बहुत सारे उन्नत देश अपनी जनसंख्या के वृद्ध होने की चुनौती का सामना कर रहे हैं क्योंकि इसकी वजह से कार्यशील लोगों की संख्या कम हो जाती है।
- व्यवसायों और नवाचार को आकर्षित करने में मदद:
- बड़ी आबादी के साथ भारत एक विशाल और विकसित होते उपभोक्ता बाज़ार का प्रतिनिधित्त्व करता है जिसमें निवेश को आकर्षित करने और घरेलू उत्पादन में वृद्धि करने की क्षमता है।
- विनिर्माण कार्य के लिये चीन की तुलना में अब भारत पश्चिमी देशों से बड़े व्यवसायों को आकर्षित करने के लिये अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठा सकता है।
- विशाल और विविधतापूर्ण आबादी नवाचार का स्रोत व केंद्र दोनों हो सकती है, क्योंकि यह विभिन्न दृष्टिकोणों और विचारों को एक एकजुट करती है।
- सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता:
- बढ़ती जनसंख्या के साथ भारत को संभवतः वैश्विक मंच पर अधिक शक्ति और प्रभाव का दावा करने में मदद मिल सकती है।
- भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्य होने का दावा कर सकता है।
- ग्लोबल साउथ का नेतृत्त्वकर्त्ता:
- सबसे अधिक आबादी वाले देश का दर्जा भारत को ग्लोबल साउथ में नेतृत्त्व का दावा करने में भी मदद करेगा जिसके लिये वह वर्ष 2022 में G20 की अध्यक्षता के बाद से प्रयासरत है।
- जनसांख्यिकीय लाभांश:
- कमियाँ:
- बेरोज़गारी और सामाजिक समस्याएँ:
- उदाहरण के लिये सिविल सेवा क्षेत्र में मात्र 700 पदों के लिये लगभग 6.5 लाख उम्मीदवार प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जबकि रेलवे में कुछ सौ निम्न-श्रेणी की नौकरियों के लिये हज़ारों युवा प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
- उच्च बेरोज़गारी के रूप में भारत की युवा आबादी एक बड़ी समस्या का सामना कर रही है, जो आवश्यक रोज़गार के अवसरों की कमी के कारण और भी बदतर हो गई है।
- उदाहरण के लिये सिविल सेवा क्षेत्र में मात्र 700 पदों के लिये लगभग 6.5 लाख उम्मीदवार प्रतिस्पर्द्धा करते हैं, जबकि रेलवे में कुछ सौ निम्न-श्रेणी की नौकरियों के लिये हज़ारों युवा प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।
- बेरोज़गारी न केवल आर्थिक तनाव की ओर ले जाती है बल्कि सामाजिक समस्याओं में भी वृद्धि करती है, खासकर तब जब कामकाज़ी उम्र की आबादी का एक बड़ा हिस्सा उपयुक्त रोज़गार पाने में असमर्थ होता है।
- गरीब श्रम बल की भागीदारी:
- भारत की विशाल जनसंख्या विशेष रूप से महिलाओं की श्रम बल भागीदारी में कमी है।
- वर्ष 2021 में भारत की महिला श्रम बल भागीदारी दर 19% थी, जो विश्व औसत 25.1% से कम है और लंबे समय से इसमें गिरावट देखी जा रही है है।
- भारत के प्रधानमंत्री का लक्ष्य वर्ष 2047 तक 50% महिला कार्यबल सुनिश्चित करना है।
- गरीबी:
- भारत की आबादी में गरीबी में रहने वाले लोगों की एक महत्त्वपूर्ण संख्या शामिल है, जो असमानता, अपराध और सामाजिक अशांति जैसे मुद्दों को बढ़ा सकती है।
- बेरोज़गारी और सामाजिक समस्याएँ:
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA):
- परिचय:
- यह संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) का एक सहायक अंग है जो इसके यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में काम करता है।
- UNFPA का जनादेश संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (Economic and Social Council- ECOSOC) द्वारा स्थापित किया गया है।
- स्थापना:
- इसे वर्ष 1967 में ट्रस्ट फंड के रूप में स्थापित किया गया था, इसका परिचालन वर्ष 1969 में शुरू हुआ।
- इसे वर्ष 1987 में आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष नाम दिया गया, लेकिन इसका संक्षिप्त नाम UNFPA (जनसंख्या गतिविधियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कोष) को भी बरकरार रखा गया।
- उद्देश्य:
- UNFPA स्वास्थ्य (SDG3), शिक्षा (SDG4) और लैंगिक समानता (SDG5) पर सतत् विकास लक्ष्यों से निपटने के लिये सीधे काम करता है।
- निधि:
- UNFPA को संयुक्त राष्ट्र के बजट का समर्थन प्राप्त नहीं है, इसके बजाय यह पूरी तरह से दाता सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र, फाउंडेशन और व्यक्तियों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. किसी भी देश के संदर्भ में निम्नलिखित में से किसे उस देश की सामाजिक पूंजी (सोशल कैपिटल) के भाग के रूप समझा जाएगा? (2019) (a) जनसंख्या में साक्षरों का अनुपात उत्तर: (d) प्रश्न. भारत को "जनसांख्यिकीय लाभांश" वाला देश माना जाता है। इसकी वजह है (2011) (a) इसकी 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में उच्च जनसंख्या उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) प्रश्न. ''महिला सशक्तीकरण जनसंख्या संवृद्धि को नियंत्रित करने की कुंजी है।'' चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न. समालोचनापूर्वक परीक्षण कीजिये कि क्या बढ़ती हुई जनसंख्या निर्धनता का मुख्य कारण है या निर्धनता जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण है। (2015) |