अरुणाचल प्रदेश: 6वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग
प्रिलिम्स के लिये:6 वीं अनुसूची,अनुच्छेद 371 (ए), 5वीं अनुसूची, स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद, स्वायत्त ज़िला परिषद मेन्स के लिये:भारत के जनजातीय क्षेत्रों के संरक्षण हेतु किये गए संवैधानिक प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में दो स्वायत्त परिषदों (Autonomous Councils) द्वारा पूरे अरुणाचल प्रदेश को संविधान की 6 वीं अनुसूची (6th Schedule) या अनुच्छेद 371 (ए) (Article 371 (A) के दायरे में लाने की मांग की गई है।
प्रमुख बिंदु:
- वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश न तो 5 वीं अनुसूची में शामिल है और न ही 6 वीं अनुसूची के अंतर्गत है। यह इनर लाइन परमिट ( Inner Line Permit- ILP) प्रणाली के अंतर्गत है।
- 6वीं अनुसूची असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा में लागू है।
- 5वीं अनुसूची में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान के क्षेत्र शामिल हैं।
- दूसरी ओर, नगालैंड में अनुच्छेद 371 ए लागू होता है जो नागालैंड को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता है।
- 6 वीं अनुसूची: संविधान की 6 वीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन के लिये इन राज्यों में जनजातीय लोगों के अधिकारों की रक्षा करने का प्रावधान करती है।
- यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत प्रदान किया गया है।
- उपर्युक्त राज्यों में जनजातियों द्वारा राज्यों के अन्य लोगों की जीवन शैली को बहुत अधिक आत्मसात नहीं किया गया है। इन क्षेत्रों में अभी भी नृवैज्ञानिक प्रतिरूपों (Anthropological Specimens) की उपस्थिति है।
- संविधान सभा द्वारा गठित बोरदोलोई समिति (Bordoloi Committee) की रिपोर्टों के आधार पर, 6वीं अनुसूची को पूर्वोत्तर के आदिवासी क्षेत्रों को सीमित स्वायत्तता प्रदान करने के लिये तैयार किया गया था।
- समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिये एक प्रशासनिक प्रणाली की आवश्यकता है।
- इस रिपोर्ट में मैदानी इलाकों के लोगों के शोषण से इन आदिवासी क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये तथा उनके विशिष्ट सामाजिक रीति-रिवाज़ों के संरक्षण का आह्वान किया गया।
6 वीं अनुसूची में प्रशासन:
- 6 वीं अनुसूची क्षेत्र में जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया गया है। स्वायत्त ज़िलों को राज्य विधान मंडल के भीतर स्वायत्तता का अलग दर्ज़ा प्रदान किया जाता है।
- 10 स्वायत्त ज़िले हैं, जिनमें असम, मेघालय और मिज़ोरम प्रत्येक में तीन-तीन एवं एक त्रिपुरा में है।
- प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में एक अलग क्षेत्रीय परिषद भी हो सकती है।
- आदिवासियों को स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद (Autonomous Regional Council) एवं स्वायत्त ज़िला परिषदों (Autonomous District Councils- ADCs) के माध्यम से विधायी और कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता दी गई है।
- ADCs को नागरिक और न्यायिक शक्तियाँ प्राप्त हैं। वे राज्यपाल से उचित अनुमोदन प्राप्त होने पर भूमि, वन, मत्स्य, सामाजिक सुरक्षा आदि जैसे विषयों पर भी कानून बना सकती हैं।
- संसद एवं राज्य विधान सभाओं द्वारा पारित अधिनियमों को इन क्षेत्रों में तब तक लागू नहीं किया जा सकता है जब तक कि राष्ट्रपति और राज्यपाल स्वायत्त क्षेत्रों के लिये कानूनों में संशोधन के साथ या इसके बिना उसे अनुमोदित नहीं कर दे।
- राज्यपाल का नियंत्रण: विभिन्न स्वायत्तता के बावजूद, 6 वीं अनुसूची में शामिल क्षेत्र राज्य के कार्यकारी प्राधिकरण के बाहर नहीं है।
- राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों का निर्माण करने एवं उन्हें पुनः व्यवस्थित करने का अधिकार प्राप्त है। वह स्वायत्त ज़िलों के क्षेत्रों को बढ़ा या घटा सकता है या उनके नाम परिवर्तित कर सकता है या उनकी सीमाओं को परिभाषित कर सकता है।
- यदि एक स्वायत्त ज़िले में विभिन्न जनजातियाँ विद्यमान हैं, तो राज्यपाल ज़िले को कई स्वायत्त क्षेत्रों में भी विभाजित कर सकता है।
स्वायत्त परिषदों की संरचना:
- प्रत्येक स्वायत्त ज़िला एवं क्षेत्रीय परिषद में 30 से अधिक सदस्य नहीं होते हैं, जिनमें चार को राज्यपाल द्वारा एवं अन्य सदस्यों को चुनाव के माध्यम से नामित किया जाता है। ये सभी पाँच वर्ष के लिये सत्ता में बने रहते हैं।
- हालाँकि, बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद एक अपवाद है क्योंकि यहाँ की क्षेत्रीय परिषद 46 सदस्यों से मिलकर बनी है।
अनुच्छेद 371 ए:
- जब तक कि राज्य विधानसभा द्वारा निर्णय नहीं लिया जाता है तब तक निम्नलिखित मामलों से संबंधित संसद के अधिनियम नगालैंड पर लागू नहीं होंगे:
- नागाओं की धार्मिक या सामाजिक प्रथा।
- नागा प्रथागत कानून और प्रक्रिया।
- नाग प्रथा कानून के अनुसार निर्णय लेने वाले नागरिक और आपराधिक न्याय का प्रशासन।
- ज़मीन एवं उसके संसाधनों का स्वामित्व और हस्तांतरण।