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सामाजिक न्याय

राजनीति में महिलाओं के लिये आरक्षण

  • 17 Mar 2023
  • 12 min read

प्रिलिम्स के लिये:

समानता का अधिकार, महिला आरक्षण विधेयक, महिला सशक्तीकरण से संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

मेन्स के लिये:

राजनीति में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्त्व का मुद्दा, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, समावेशी विकास, मानव संसाधन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में एक राजनीतिक दल ने लंबे समय से लंबित महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश करने का आह्वान किया।

भारतीय राजनीति में महिलाओं के लिये आरक्षण की पृष्ठभूमि:

  • राजनीति में महिलाओं के लिये आरक्षण का मुद्दा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के समय सामने आया। वर्ष 1931 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में तीन महिला निकायों, नेताओं- बेगम शाह नवाज़ और सरोजिनी नायडू द्वारा नए संविधान में महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त रूप से जारी आधिकारिक ज्ञापन प्रस्तुत किये गए थे।
  • महिलाओं के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना में वर्ष 1988 में सिफारिश की गई थी कि महिलाओं को पंचायत स्तर से लेकर संसद के स्तर तक आरक्षण प्रदान किया जाना चाहिये।
    • इन सिफारिशों ने संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के ऐतिहासिक अधिनियमन का मार्ग प्रशस्त किया, जो सभी राज्य सरकारों को क्रमशः पंचायती राज संस्थानों एवं इसके हर स्तर पर अध्यक्ष पदों तथा शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं हेतु एक-तिहाई सीटें आरक्षित करने का आदेश देती हैं। इन सीटों में एक-तिहाई सीटें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
    • महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और केरल जैसे कई राज्यों ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिये 50% आरक्षण सुनिश्चित करने हेतु कानूनी प्रावधान किये हैं।

महिला प्रतिनिधित्त्व विधेयक:

  • विधेयक के बारे में: 
    • महिला आरक्षण विधेयक में महिलाओं के लिये लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में 33% सीटें आरक्षित करने का प्रस्ताव है।
    • आरक्षित सीटों को राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में क्रमिक रूप से आवंटित किया जा सकता है।
    • इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 वर्ष बाद महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण समाप्त हो जाएगा।
  • आवश्यकता: 
    • ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत राजनीतिक अधिकारिता (संसद में महिलाओं का प्रतिशत और मंत्री पद) आयाम में 146 में से 48वें स्थान पर है।
      • इस रैंक के बावजूद भारत का स्कोर 0.267 है जो कि काफी कम है। इस श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग वाले कुछ देशों का स्कोर कहीं बेहतर है। उदाहरण के लिये आइसलैंड 0.874 के स्कोर के साथ पहले स्थान पर है और बांग्लादेश 0.546 के स्कोर के साथ 9वें स्थान पर है।
    • महिलाओं का आत्म-प्रतिनिधित्त्व और आत्मनिर्णय का अधिकार।
    • विभिन्न सर्वेक्षणों के अनुसार, महिला पंचायती राज प्रतिनिधियों ने गाँवों में समाज के विकास और समग्र भलाई के लिये सराहनीय काम किया है तथा उनमें से कई निस्संदेह बड़े पैमाने पर काम करना चाहेंगी; हालाँकि वे भारत की राजनीतिक संरचना में विभिन्न चुनौतियों का सामना करती हैं।
  • बिल के खिलाफ तर्क:
    • महिलाएँ कोई सजातीय समुदाय नहीं हैं, जैसे कि कोई जाति समूह। इसलिये महिलाओं के लिये जाति-आधारित आरक्षण हेतु जो तर्क दिये गए हैं, वे उचित नहीं है।
    • महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण का कुछ लोगों द्वारा विरोध किया जाता है। वे दावा करते हैं कि ऐसा करने से संविधान की समानता की गारंटी का उल्लंघन होगा। यदि महिलाओं को आरक्षण दिया जाता है, तो उनका तर्क है कि महिलाएँ योग्यता के आधार पर प्रतिस्पर्द्धा नहीं करेंगी, जिससे महिलाओं की सामाजिक स्थिति में गिरावट आ सकती है।

भारतीय राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व:

  • स्वतंत्रता से पहले:  
    • पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंडों और मानसिकता ने ऐतिहासिक रूप से भारत में महिलाओं को हाशिये पर रखने और उनका शोषण करने की अनुमति दी है।
    • सामाजिक सुधारों की शुरुआत और स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी: महिलाओं ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में प्रभावशाली योगदान दिया, जो बंगाल में स्वदेशी आंदोलन (1905–08) के साथ शुरू हुआ, जिसमें महिलाओं ने राजनीतिक प्रदर्शनों का आयोजन, संसाधन जुटाना एवं आंदोलनों में नेतृत्त्व की स्थिति संभाली।
  • आज़ादी के बाद:  
    • भारत के संविधान ने निर्धारित किया है कि सभी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र पुरुषों एवं महिलाओं के साथ समान व्यवहार करेंगे।
    • वर्तमान में भारतीय संसद की लगभग 14.4% सदस्य महिलाएँ हैं, जो अब तक की सबसे अधिक संख्या है। हालाँकि अंतर-संसदीय संघ के अनुसार, भारत के निम्न सदन में नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका एवं बांग्लादेश जैसे पड़ोसियों की तुलना में महिलाओं का प्रतिशत कम है।
    • भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) के नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, अक्तूबर 2021 में महिला प्रतिनिधि संसद के कुल सदस्यों का 10.5% हैं।
    • भारत में सभी राज्य विधानसभाओं में महिला सदस्यों (MLA) के लिये परिदृश्य और भी बदतर है, जिसका राष्ट्रीय औसत 9% है। आज़ादी के पिछले 75 वर्षों में लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व 10% भी नहीं बढ़ा है।

भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के मूल्यांकन हेतु मानदंड: 

  • मतदाता के रूप में महिलाएँ:  
    • वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में पुरुषों की तुलना में लगभग उतनी ही महिलाओं ने मतदान किया, यह राजनीति में लैंगिक समानता की दिशा में भारत की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण अवसर है, जिसे "क्वाइट रिवाॅल्यूशन ऑफ सेल्फ एम्पावरमेंट" कहा गया गया है। इस बढ़ती भागीदारी के विशेषकर वर्ष 1990 के दशक के दौरान से कई कारण रहे हैं।
  • उम्मीदवार के रूप में महिलाएँ: 
    • सामान्यतः संसदीय चुनावों में महिला उम्मीदवारों का अनुपात समय के साथ बढ़ा है लेकिन पुरुष उम्मीदवारों की तुलना में यह कम रहा। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाग लेने वाले 8,049 उम्मीदवारों में 9% से कम महिलाएँ थीं। 

भारत में महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्त्व को बेहतर करने हेतु उपाय: 

  • भारतीय राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व अनेक वर्षों से चर्चा का विषय रहा है और इसमें कुछ प्रगति भी हुई है किंतु अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना शेष है। भारतीय राजनीति में महिलाओं के बेहतर प्रतिनिधित्त्व हेतु कुछ तरीके इस प्रकार हैं: 
    • सीटों का आरक्षण: स्थानीय निकायों और विधानसभाओं में महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्त्व में वृद्धि करने का एक सफल तरीका रहा है। महिलाओं को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने के अधिक अवसर प्रदान करने हेतु ऐसी और अधिक आरक्षण नीतियाँ लागू की जा सकती हैं।
    • जागरूक और शिक्षित करना: महिलाओं में उनके अधिकारों और राजनीति में भागीदारी के महत्त्व के विषय में जागरूकता पैदा करना आवश्यक है। शैक्षिक कार्यक्रम तथा जागरूकता अभियान महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने में मदद कर सकते हैं।
    • लिंग आधारित हिंसा और उत्पीड़न को रोकने हेतु आवश्यक कदम: लिंग आधारित हिंसा एवं उत्पीड़न राजनीति में महिलाओं की भागीदारी की दिशा में प्रमुख बाधाएँ हैं। नीति तथा विधिक उपायों के माध्यम से इन मुद्दों को हल करने से राजनीति में महिलाओं के लिये सुरक्षित और अधिक सहायक वातावरण तैयार हो सकता है।
    • चुनावी प्रक्रिया में सुधार: अधिक महिलाओं का चयन सुनिश्चित करने हेतु आनुपातिक प्रतिनिधित्त्व और अधिमान्य मतदान प्रणाली को लागू करने जैसे सुधार राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्त्व को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • भारतीय राजनीति में महिलाओं की संख्या बढ़ाने के उपाय सीमित हैं। दीर्घकालिक प्रभाव के लिये कई चुनौतियों से निपटने हेतु एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. "स्थानीय स्वशासन के संस्थानों में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षण का भारतीय राजनीतिक प्रक्रम के पितृसत्तात्मक अभिलक्षण पर एक सीमित प्रभाव पड़ा है।" टिप्पणी कीजिये। (2019) 

स्रोत: द हिंदू

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