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वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, 2022

  • 14 Jul 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व आर्थिक मंच, वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, 2022

मेन्स के लिये:

वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक, 2022, लिंग, महिलाओं से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (WEF) ने वर्ष 2022 के लिये अपने वैश्विक लैंगिक अंतराल (Global Gender Gap-GGG) सूचकांक में भारत को 146 देशों में से 135वें स्थान पर रखा है।

  • भारत का समग्र स्कोर 0.625 (वर्ष 2021 में) से बढ़कर 0.629 हो गया है, जो पिछले 16 वर्षों में सातवाँ उच्चतम स्कोर है।
    • वर्ष 2021 में भारत 156 देशों में 140वें स्थान पर था।
  • लैंगिक अंतराल महिलाओं और पुरुषों के बीच का अंतर है जो सामाजिक, राजनीतिक, बौद्धिक, सांस्कृतिक या आर्थिक उपलब्धियों या दृष्टिकोण में परिलक्षित होता है।

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वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक: 

  • परिचय:
    • यह उप-मैट्रिक्स के साथ चार प्रमुख आयामों में लैंगिक समानता की दिशा में उनकी प्रगति पर देशों का मूल्यांकन करता है।
      • आर्थिक भागीदारी और अवसर
      • शिक्षा का अवसर।
      • स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता।
      • राजनीतिक सशक्तीकरण।
    • चार उप-सूचकांकों में से प्रत्येक पर और साथ ही समग्र सूचकांक पर GGG सूचकांक 0 और 1 के बीच स्कोर प्रदान करता है, जहाँ 1 पूर्ण लैंगिक समानता दिखाता है और 0 पूर्ण असमानता की स्थिति को दर्शाता है।
    • यह सबसे लंबे समय तक चलने वाला सूचकांक है, जो वर्ष 2006 में स्थापना के बाद से समय के साथ लैंगिक अंतरालों को समाप्त करने की दिशा में प्रगति को ट्रैक करता है।
  • उद्देश्य:
    • स्वास्थ्य, शिक्षा, अर्थव्यवस्था और राजनीति पर महिलाओं व पुरुषों के बीच सापेक्ष अंतराल पर प्रगति को ट्रैक करने के लिये दिशासूचक के रूप में कार्य करना।
    • इस वार्षिक मानदंड के माध्यम से प्रत्येक देश के हितधारक प्रत्येक विशिष्ट आर्थिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक संदर्भ में प्रासंगिक प्राथमिकताएँ निर्धारित करने में सक्षम होते हैं।

भारत की चार प्रमुख आयामों पर स्थिति:

  • राजनीतिक आधिकारिता (संसद में और मंत्री पदों पर महिलाओं का प्रतिशत):
    • भारत का सर्वोच्च स्थान (146 में से 48वाँ) है।
    • अपनी रैंक के बावजूद इसका स्कोर 0.267 पर काफी कम है।
      • इस श्रेणी में कुछ सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग वाले देश बहुत बेहतर स्कोर करते हैं। 
      • उदाहरण के लिये आइसलैंड 0.874 के स्कोर के साथ प्रथम स्थान पर है और बांग्लादेश 0.546 के स्कोर के साथ 9वें स्थान पर है।
  • आर्थिक भागीदारी और अवसर (श्रम बल में महिलाओं का प्रतिशत, समान कार्य के लिये वेतन समानता, अर्जित आय):
    • रिपोर्ट में भारत 146 देशों में से 143वें स्थान पर है, भले ही इसका स्कोर वर्ष 2021 में 0.326 से 0.350 तक सुधरा है। 
      • वर्ष 2021 में भारत 156 देशों में से 151वें स्थान पर था। 
    • भारत का स्कोर वैश्विक औसत से काफी कम है और इस मापविधि पर भारत से केवल ईरान, पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही पीछे हैं। 
  • शिक्षा प्राप्ति (प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक शिक्षा में साक्षरता दर नामांकन दर):
    • भारत 146 में से 107वें स्थान पर है और पिछले वर्ष से इसका स्कोर थोड़ा खराब रहा है।
      • वर्ष 2021 में भारत 156 में से 114वें स्थान पर था।
  • स्वास्थ्य और उत्तरजीविता (जन्म के समय लिंगानुपात तथा स्वस्थ जीवन प्रत्याशा):
  • भारत सभी देशों में अंतिम (146वें) स्थान पर है।
  • इसका स्कोर वर्ष 2021 से नहीं बदला है जब यह 156 देशों में से 155वें स्थान पर था।

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन में लैंगिक अंतर को कम करने के लिये भारतीय पहलें

आर्थिक भागीदारी और स्वास्थ्य तथा उत्तरजीविता:

  • बेटी बचाओ बेटी पढाओ: यह बालिकाओं की सुरक्षा, अस्तित्व और शिक्षा सुनिश्चित करता है।
  • महिला शक्ति केंद्र: इसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को कौशल विकास और रोजगार के अवसरों के साथ सशक्त बनाना है।
  • महिला पुलिस स्वयंसेवक: इसमें राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में महिला पुलिस स्वयंसेवकों को शामिल करने की परिकल्पना की गई है जो पुलिस एवं समुदाय के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं तथा संकट में महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करते हैं।
  • राष्ट्रीय महिला कोष: यह एक शीर्ष सूक्ष्म वित्त संगठन है जो गरीब महिलाओं को विभिन्न आजीविका और आय सृजन गतिविधियों के लिये रियायती शर्तों पर सूक्ष्म ऋण प्रदान करता है।
  • सुकन्या समृद्धि योजना:  इस योजना के तहत बैंक खाते खोलकर लड़कियों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाया गया है।
  • महिला उद्यमिता: महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने स्टैंडअप इंडिया और महिला ई-हाट (महिला उद्यमियों / SHGs / गैर सरकारी संगठनों का समर्थन करने के लिये ऑनलाइन विपणन मंच), उद्यमिता व कौशल विकास कार्यक्रम (ईएसएसडीपी) जैसे कार्यक्रम शुरू किये हैं।
  • कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय: इन्हें शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉक (ईबीबी) में खोला गया है।
  • राजनीतिक आरक्षण: सरकार ने पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की हैं।

वैश्विक निष्कर्ष:

  • रैंकिंग:
    • 146 देशों में आइसलैंड ने दुनिया के सबसे अधिक लैंगिक समानता  (Gender-Equal) वाले देश के रूप में अपना स्थान बरकरार रखा है।
    • फिनलैंड, नॉर्वे, न्यूज़ीलैंड और स्वीडन क्रमशः सूची में शीर्ष पाँच देश हैं। 
    • रिपोर्ट में अफगानिस्तान सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला देश है।
  • परिदृश्य:
    • कुल मिलाकर GGG 68.1% की गिरावट के साथ बंद हुआ है। प्रगति की वर्तमान दर पर इसे पूर्ण समता तक पहुँचने में 132 वर्ष लगेंगे।
    • यद्यपि किसी भी देश ने पूर्ण लैंगिक समानता हासिल नहीं की लेकिन शीर्ष 3 अर्थव्यवस्थाओं ऐसी हैं जिन्होंने लैंगिक अंतराल को 80% तक कम किया है:
      • आइसलैंड (90.8%)
      • फिनलैंड (86%),
      • नॉर्वे (84.5%)
    • दक्षिण एशिया को लैंगिक समानता तक पहुँचने में सबसे अधिक समय (अनुमानतः 197 वर्ष) लगेगा।
  • कोविड-19 का प्रभाव:
    • कोविड-19 महामारी के कारण लैंगिक समानता की दिशा में होने वा प्रगति अवरुद्ध हुई है यहाँ तक कि कुछ मामलों में यह पूर्व स्थिति में भी पहुँची है।
    • महिलाओं पर मंदी का अधिक प्रभाव पड़ा है, जिसे व्यापक रूप से 'शीसेशन' (shecession) नाम दिया गया है, क्योंकि महिलाएँ कोविड से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों जैसे- रिटेल और आतिथ्य (hospitality) में कार्यरत थीं।
    • महामारी के कारण आई मंदी ने महिलाओं को वर्ष 2009 के वित्तीय संकट की तुलना में अधिक प्रभावित किया है।

विश्व आर्थिक मंच :

Global-Gender-Gap-Index-2022

स्रोत: द हिंदू

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