मुख्य परीक्षा
भारत-अमेरिका कृषि व्यापार वार्ता
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता में कृषि बाज़ार तक पहुँच पर प्रकाश डाला गया है। रेसिप्रासिटी (Reciprocity) का हवाला देते हुए अमेरिका चाहता है कि भारत अमेरिकी उपज को अपने कृषि क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति दे।
- हालाँकि, एक बड़ा मुद्दा दोनों देशों में किसानों के लिये सरकारी समर्थन में असमानता है। अमेरिकी किसानों को पर्याप्त समर्थन मिलने से भारत में उनकी उपज सस्ती हो जाती है, जिससे भारतीय किसान प्रभावित होते हैं।
अमेरिका की तुलना में भारत अपने किसानों का समर्थन कैसे करता है?
- समर्थन तंत्र की प्रकृति: भारत के समर्थन में मुख्य रूप से उर्वरक, सिंचाई और विद्युत् जैसे इनपुट पर सब्सिडी के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खरीद और छोटे किसानों की सहायता के लिये क्रेडिट-लिंक्ड योजनाएँ शामिल हैं।
- इसके विपरीत, अमेरिकी सहायता मुख्य रूप से संघीय कार्यक्रमों के तहत प्रत्यक्ष भुगतान के माध्यम से आती है जैसे:
- मूल्य हानि कवरेज़: जब बाज़ार मूल्य एक निर्धारित सीमा से नीचे गिर जाता है तो किसानों को मुआवज़ा दिया जाता है।
- कृषि जोखिम कवरेज़: यह तब भुगतान प्रदान करता है जब किसी फसल से वास्तविक राजस्व बेंचमार्क स्तर से कम होता है।
- डेयरी मार्जिन कवरेज़: डेयरी किसानों को दूध की कीमतों और फीड लागत में उतार-चढ़ाव से बचाता है।
- संघीय फसल बीमा: उपज और मूल्य हानि के विरुद्ध बीमा प्रदान करता है।
- आपदा सहायता: किसानों को प्राकृतिक आपदाओं से निपटने में सहायता करता है।
- इसके विपरीत, अमेरिकी सहायता मुख्य रूप से संघीय कार्यक्रमों के तहत प्रत्यक्ष भुगतान के माध्यम से आती है जैसे:
- वित्तीय समर्थन की तुलना: भारत सरकार कृषि समर्थन पर प्रतिवर्ष अनुमानित 5 लाख करोड़ रुपये (57.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) खर्च करती है, जो कि अमेरिका की औसत वार्षिक वित्तीय समर्थन 32.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
- हालाँकि, जहाँ अमेरिकी सहायता से 2 मिलियन से भी कम किसानों को लाभ पहुँचता है, वहीं भारतीय सहायता लगभग 111 मिलियन किसानों को लाभान्वित करती है।
- अमेरिका प्रति किसान 30,782 अमेरिकी डॉलर (26.8 लाख रुपए) का प्रत्यक्ष भुगतान करता है, जबकि भारत प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-किसान) योजना के तहत प्रति लाभार्थी 6,000 रुपए (69 अमेरिकी डॉलर) प्रदान करता है।
भिन्न सरकारी नीतियों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- भारतीय किसानों के लिये अनुचित प्रतिस्पर्द्धा: सरकार से प्राप्त असमान सहायता के कारण भारतीय किसान भारतीय बाज़ार में कम लागत वाली अमेरिकी उपज के प्रति सुभेद्य हो जाएंगे।
- इससे भारतीय किसानों को उच्च पूंजीगत इनपुट लागत के कारण नुकसान होगा, जिससे भारतीय कृषि उत्पादों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता वैश्विक और घरेलू दोनों बाज़ारों में कम हो जाएगी।
- टैरिफ में कमी बनाम घरेलू नीति लक्ष्य: भारत अपने किसानों की सुरक्षा के लिये कृषि आयात पर उच्च टैरिफ बनाए रखता है, जबकि अमेरिका सुगम बाज़ार पहुँच के उद्देश्य से टैरिफ कम किये जाने का प्रयास करता है।
- टैरिफ में कोई भी भारी कटौती किये जाने से भारत की खाद्य सुरक्षा नीतियाँ प्रभावित हो सकती हैं तथा लाखों भारतीय किसानों की आजीविका को खतरा हो सकता है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) नियम: विश्व व्यापार संगठन (WTO) भारत जैसे विकासशील देशों को उच्च टैरिफ और सब्सिडी के माध्यम से अपने कृषि क्षेत्र की रक्षा करने की अनुमति प्रदान करता है।
- "गैर-पारस्परिकता" के सिद्धांत के अनुसार विकसित देशों को विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को प्रदत्त रियायतों के बदले में समान बाज़ार पहुँच की उम्मीद नहीं करनी चाहिये।
- भारत देश के कृषक वर्ग में कमज़ोर वित्तीय लचीलेपन का उल्लेख करते हुए कृषि बाज़ार के उदारीकरण का विरोध करता है। विश्व व्यापार संगठन के नियमों और किसान सुरक्षा मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, यह संभवतः अमेरिकी मांगों का विरोध करेगा।
और पढ़ें: भारत-अमेरिका कॉम्पैक्ट पहल
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. अमेरिका में कृषि सहायता तंत्र भारत के कृषि सहायता तंत्र से किस प्रकार भिन्न हैं? व्यापार वार्ताओं के लिये उनके निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. सहायिकियाँ सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? लघु और सीमांत कृषकों के लिये फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य और खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है ? (2017) प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डी.बी.टी.) के द्वारा कीमत सहायिकी का प्रतिस्थापन भारत में सहायिकियों के परिदृश्य का किस प्रकार परिवर्तन कर सकता है? चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न. राष्ट्रीय व राजकीय स्तर पर कृषकों को दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायताएँ कौन-कौन सी हैं? कृषि आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। (2013) |


शासन व्यवस्था
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस 2025
पिलिम्स के लिये:विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस, राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) मेन्स के लिये:उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा और संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, पारदर्शिता और जवाबदेही |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने “संधारणीय जीवन शैली के लिये एक उचित बदलाव” थीम के साथ विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस मनाया।
- भारत प्रत्येक वर्ष 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाता है और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 में उपभोक्ता अधिकारों को सुदृढ़ बनाने हेतु व्यापक प्रावधान किये गए हैं।
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस
- 15 मार्च 1983 को स्थापित यह दिन (15 मार्च ) राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के वर्ष 1962 में अमेरिकी कॉन्ग्रेस को दिये गये संबोधन के स्मरण में मनाया जाता है, जिसमें वे उपभोक्ता अधिकारों को औपचारिक रूप से मान्यता प्रदान करने वाले विश्व के पहले नेता बने थे।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 क्या है?
- परिचय: यह एक व्यापक विधान है जिसने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का स्थान लिया है।
- इसका उद्देश्य वैश्वीकरण, प्रौद्योगिकी और ई-कॉमर्स से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करते हुए भारत में उपभोक्ता अधिकारों को सुदृढ़ बनाना है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA): CCPA की स्थापना व्यापार की अनुचित प्रथाओं, भ्रामक विज्ञापनों और उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामलों को विनियमित करने हेतु की गई है।
- उपभोक्ता अधिकार: यह अधिनियम 6 उपभोक्ता अधिकारों को सुदृढ़ करता है, जिनमें सूचित किये जाने का अधिकार, चयन का अधिकार और निवारण पाने का अधिकार शामिल है।
- ई-कॉमर्स विनियमन: ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों को इसके दायरे में लाया गया है, जिससे उन्हें उपभोक्ता शिकायतों के लिये जवाबदेह बनाया गया है।
- उत्पाद दायित्व: निर्माता, सेवा प्रदाता और विक्रेता दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं के लिये उत्तरदायी होते हैं।
- सरलीकृत विवाद समाधान: इसमें मध्यस्थता का प्रावधान किया गया है, जिससे उपभोक्ता न्यायालयों का बोझ कम होता है।
- वर्द्धित शास्तियाँ: इसके अंतर्गत मिथ्यापूर्ण या भ्रामक विज्ञापनों और व्यापार की अनुचित प्रथाओं के लिये कठोर शास्तियों का प्रावधान किया गया है।
- त्वरित समाधान: अधिनियम की धारा 38(7) के अनुसार, उपभोक्ता शिकायतों का समाधान मामले की जटिलता के आधार पर 3 से 5 माह के भीतर किया जाना आवश्यक है।
उपभोक्ता शिकायत निवारण तंत्र के सुदृढ़ीकरण हेतु प्रमुख पहलें कौन-सी हैं?
- ई-दाखिल पोर्टल और ई-जागृति: ई-दाखिल पोर्टल (वर्ष 2020 में लॉन्च) उपभोक्ताओं को ऑनलाइन शिकायत दर्ज करने में सक्षम बनाता है।
- ई-जागृति (वर्ष 2024 में शुरू की गई) अधिक सुव्यवस्थित उपभोक्ता शिकायत निवारण प्रक्रिया के लिये डिजिटल हस्तक्षेप का उपयोग करते हुए केस ट्रैकिंग और प्रबंधन को सुदृढ़ बनाती है।
- राष्ट्रीय उपभोक्ता हेल्पलाइन (NCH) 2.0: NCH 2.0 में शिकायत निवारण में तेज़ी लाने के लिये AI-संचालित वाक् पहचान, बहुभाषी चैटबॉट और 1,000 से अधिक कंपनियों के साथ साझेदारी को एकीकृत किया गया है। यह 17 भाषाओं का समर्थन करता है और व्यापक उपभोक्ता पहुँच के लिये व्हाट्सएप, SMS, उमंग ऐप और अन्य प्लेटफार्मों के माध्यम से सुलभ है।
- उपभोक्ता कल्याण कोष (CWF): CWF उपभोक्ता अधिकारों, वकालत और कानूनी सहायता को मज़बूत करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- ई-कॉमर्स और डिजिटल लेनदेन में उपभोक्ता संरक्षण:
- ई-कॉमर्स नियम, 2020: यह निष्पक्ष व्यावसायिक प्रथाओं, लेनदेन में पारदर्शिता और शिकायत निवारण तंत्र को अनिवार्य करता है।
- डार्क पैटर्न विनियमन, 2023: केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) द्वारा अतिशयोक्तिपूर्ण तात्कालिकता, ज़बरन कृत्यों और प्रच्छन्न लागत जैसी भ्रामक डिजिटल मार्केटिंग प्रथाओं को प्रतिबंधित करने के लिये प्रस्तुत किया गया।
- जागो ग्राहक जागो: यह उपभोक्ता जागरूकता अभियान का एक हिस्सा है जो उपयोगकर्त्ताओं को धोखाधड़ी वाले URL के बारे में सचेत करता है, और उन्हें सूचित ई-कॉमर्स निर्णय लेने के लिये सशक्त बनाता है।
भारत में उपभोक्ता संरक्षण में चुनौतियाँ और आगे की राह क्या हैं?
चुनौतियाँ |
आगे की राह |
जागरूकता: अधिकारों और निवारण तंत्र के बारे में उपभोक्ताओं की जागरूकता कम है। |
व्यापक उपभोक्ता शिक्षा अभियान लागू करना, उपभोक्ता अधिकार शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करना। |
प्रवर्तन: उपभोक्ता न्यायालयों को मामले के समाधान में विलंब का सामना करना पड़ता है, तथा उत्पाद दायित्व प्रावधानों का असंगत ढंग से प्रवर्तन किया जाता है, जिससे उपभोक्ता संरक्षण कमज़ोर होता है। |
न्यायालयीन प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना, उपभोक्ता न्यायालयों का विस्तार करना, वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र को बढ़ाना, तथा स्पष्ट प्रवर्तन दिशानिर्देशों के साथ न्यायिक प्रशिक्षण में सुधार करना। |
डिजिटल मार्केटप्लेस मुद्दे: ई-कॉमर्स, डेटा गोपनीयता और ऑनलाइन धोखाधड़ी से संबंधित चुनौतियाँ। |
ई-कॉमर्स विनियमों को मज़बूत करना, डेटा संरक्षण कानूनों को लागू करना और ऑनलाइन लेनदेन की निगरानी बढ़ाना। |
संसाधन की कमी: उपभोक्ता संरक्षण एजेंसियों को आवंटित संसाधन सीमित हैं। |
उपभोक्ता संरक्षण एजेंसियों के लिये वित्त पोषण बढ़ाना, अधिक कर्मचारी नियुक्त करना तथा बुनियादी ढाँचे में सुधार करना। |
विनियामक ओवरलैप: विभिन्न विनियामक निकायों और कानूनों के बीच ओवरलैप और टकराव। |
विभिन्न नियामक निकायों की भूमिकाओं और ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट करना, नियामक ढाँचे को सुव्यवस्थित करना। |
निष्कर्ष
विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस एक पारदर्शी और निष्पक्ष उपभोक्ता पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। जबकि भारत नीतिगत सुधारों और डिजिटल पहलों के माध्यम से आगे बढ़ रहा है, विलंब से न्याय, डिजिटल धोखाधड़ी और नियामक अंतराल जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। संस्थाओं को मज़बूत करना, जागरूकता बढ़ाना और प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना उपभोक्ता सशक्तीकरण और आर्थिक निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में उपभोक्ता अधिकारों के प्रभावी संरक्षण को सुनिश्चित करने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, और नीतिगत हस्तक्षेपों और संस्थागत सुधारों के माध्यम से इनका समाधान कैसे किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारतीय विधान के प्रावधानों के अंतर्गत उपभोक्ताओं के अधिकारों/ विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) |


शासन व्यवस्था
UNCAT और हिरासत में यातना
प्रिलिम्स के लिये:UNCAT 1984, मानवाधिकार, अनुच्छेद 21, आपराधिक न्याय प्रणाली, NHRC, UDHR, नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध, विधि आयोग। मेन्स के लिये:UNCAT और भारत द्वारा इसका अनुसमर्थन करने की आवश्यकता, हिरासत में यातना से बचने के उपाय। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हिरासत में यातना के खतरों के संबंध में तहव्वुर राणा की अमेरिकी अपील और संजय भंडारी को प्रत्यर्पित करने से ब्रिटेन के उच्च न्यायालय के इनकार ने यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड (UNCAT) 1984 के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन की पुष्टि करने और यातना विरोधी कानून पारित करने में भारत की विफलता फिर से चर्चा का विषय बन गई है।
UNCAT क्या है?
- परिचय: यह विश्व में यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक उपचार या दंड को रोकने के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधि है।
- इसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 10 दिसंबर, 1984 को अपनाया गया तथा 26 जून, 1987 को लागू किया गया ।
- यातना की परिभाषा: UNCAT के अनुच्छेद 1 में यातना को, किसी सार्वजनिक अधिकारी की भागीदारी या सहमति से, सूचना प्राप्त करने, दंड देने या धमकी देने जैसे उद्देश्यों के लिये जानबूझकर गंभीर शारीरिक या मानसिक पीड़ा पहुँचाने के रूप में परिभाषित किया गया है।
- सार्वभौमिक अधिकार क्षेत्र: अनुच्छेद 5 राज्यों को यातना के आरोपी व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने या उन्हें प्रत्यर्पित करने की आवश्यकता पर बल देता है, चाहे अपराध कहीं भी किया गया हो या अपराधी की राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
- राज्य के दायित्व: UNCAT के पक्षकार राज्यों के लिये यह आवश्यक है कि वे:
- यातना पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाएँ (अनुच्छेद 2), युद्ध या अन्य आपात स्थितियों में भी।
- व्यक्तियों के प्रत्यर्पण या निर्वासन पर रोक लगाना (गैर-वापसी का अधिकार) उन देशों में जहाँ उन्हें यातना दिये जाने का खतरा हो (अनुच्छेद 3)
- घरेलू कानून के तहत यातना को अपराध घोषित किया जाएगा (अनुच्छेद 4)।
- यातना के आरोपों की शीघ्र एवं निष्पक्ष जाँच करना (अनुच्छेद 12)।
- यातना के पीड़ितों को निवारण और मुआवजा प्रदान करना (अनुच्छेद 14)।
- यातना (टॉर्चर) के विरुद्ध समिति (CAT.): CAT (अनुच्छेद 17), स्वतंत्र विशेषज्ञों का एक निकाय है जिसे कन्वेंशन के कार्यान्वयन की निगरानी का कार्य सौंपा गया है।
- UNCAT के लिये वैकल्पिक प्रोटोकॉल (OPCAT): वर्ष 2002 में अपनाया गया यह प्रोटोकॉल अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय निकायों द्वारा नियमित रूप से हिरासत में लिये गए लोगों के दौरों के लिये एक निवारक तंत्र का निर्माण करता है।
- भारत और UNCAT: भारत ने वर्ष 1997 में UNCAT पर हस्ताक्षर किये थे लेकिन अभी तक इसका अनुसमर्थन नहीं किया है।
हिरासत में यातना क्या है?
और पढ़ें..: हिरासत में यातना
भारत को UNCAT का अनुसमर्थन करने की आवश्यकता क्यों है?
- प्रत्यर्पण का सुदृढ़ीकरण: इससे वित्तीय मामलों के भगोड़े व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करने में मदद मिलेगी, जिन्हें अक्सर ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों से संरक्षण प्राप्त होता है और साथ ही निष्पक्ष आपराधिक न्याय प्रणाली के लिये भारत की प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होगी।
- हिरासत में यातना का निवारण: NHRC के अनुसार भारत में हिरासत में होने वाली स्थिति "अनियंत्रित" है, जिसमें केवल वर्ष 2019 में 1,731 हिरासत में मौतें दर्ज की गई थी।
- UNCAT का अनुसमर्थन करने के लिये भारत को यातना की रोकथाम करने के उपायों का क्रियान्वन करना होगा।
- संवैधानिक दायित्व: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, जिसमें यातना से सुरक्षा भी शामिल है।
- आरडी उपाध्याय केस, 1999 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया कि हिरासत में यातना मूल अधिकारों का उल्लंघन है और इससे मानव की गरिमा प्रभावित होती है तथा न्यायालयों द्वारा यथार्थवादी विधियों से इसका निवारण किया जाना चाहिये।
- जवाबदेही सुनिश्चित करना: UNCAT के अंतर्गत यातना की जाँच, अभियोजन किये जाने और उसे अपराध घोषित किये जाने का प्रावधान किया गया है तथा भारत द्वारा इसका अनुसमर्थन करने पर देश की विधिक ढाँचे में इनका कार्यान्वन किया जाएगा।
- प्रकाश सिंह केस, 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पुलिस कदाचार के खिलाफ स्वतंत्र निगरानी और नागरिक निवारण के लिये पुलिस शिकायत प्राधिकरण स्थापित करने का आदेश दिया था।
- सुभेद्य समुदायों की सुरक्षा: दलितों, अल्पसंख्यकों और शरणार्थियों सहित उपांतिकीकृत समुदाय हिरासत में हिंसा से असमान रूप से प्रभावित होते हैं।
- UNCAT का अनुसमर्थन करने से सभी आधारों (धर्म, जाति, नस्ल और जातीयता) पर यातना को प्रतिबंधित किया जाएगा तथा युद्ध अथवा आपात स्थितियों में भी मानवीय गरिमा को अक्षुण्ण रखा जाएगा।
UNCAT का अनुसमर्थन न करने से भारत की वैश्विक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- प्रत्यर्पण अनुरोधों पर प्रभाव: विभिन्न मामलों के भगोड़े व्यक्ति भारत में यातना-रोधी कानूनों के अभाव के कारण प्रत्यर्पण से बच जाते हैं, जिससे भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली की प्रभावशीलता पर प्रभाव पड़ रहा है।
- इस विधिक अभाव के कारण अंतर्राष्ट्रीय अपराध और आतंकवाद की रोकथाम करने की भारत की क्षमता कमज़ोर होती है।
- सॉफ्ट पावर पर प्रभाव: हिरासत में यातना की समस्या से निपटने में भारत की विफलता से मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्ध एक लोकतांत्रिक राज्य के रूप में इसकी विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
- अमेरिका के ग्वांतानामो बे उदाहरण से यह स्पष्ट होता है कि राज्य की हिरासत में यातना से किस प्रकार किसी राष्ट्र की नैतिक सत्ता की अपूरणीय क्षति होती है।
यातना-रोधी विधि के लिये क्या अनुशंसाएँ की गई हैं?
- राज्य सभा समिति (2010): यातना निवारण विधेयक, 2010 पर राज्य सभा समिति ने एक व्यापक यातना-विरोधी विधि की अनुशंसा की, जिसे व्यापक राजनीतिक और सार्वजनिक समर्थन प्राप्त हुआ।
- भारतीय विधि आयोग: अपनी 273वीं रिपोर्ट (2017) में आयोग ने UNCAT के अनुसमर्थन और UNCAT का क्रियान्वन किये जाने हेतु एक विधि निर्माण की अनुशंसा की, जिसमें यातना को अपराध घोषित किये जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- इसमें सरकार के विचारार्थ यातना निवारण विधेयक का मसौदा भी प्रस्तुत किया गया।
- सर्वोच्च न्यायालय:
- डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामला, 1997: इसमें हिरासत में यातना की रोकथाम किये जाने तथा गिरफ्तारी और नज़रबंदी में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये गए।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय किया, मामले की जाँच करना और आरोपी से पूछताछ करना पुलिस का अधिकार है, लेकिन जानकारी प्राप्त करने के लिये थर्ड डिग्री यातना का उपयोग किये जाने की अनुमति नहीं है।
- लोक सेवकों द्वारा हिरासत में हिंसा के मामलों में, राज्य भी उनके कार्यों के लिये उत्तरदायी होगा।
- उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राम सागर यादव मामला, 1985: हिरासत में यातना से संबंधित मामलों में साक्ष्य का भार पुलिस अधिकारी पर होता है।
- नंबी नारायणन मामला, 2018: गलत अभियोजन और हिरासत में दुर्व्यवहार के कारण होने वाले मनोवैज्ञानिक आघात पर प्रकाश डाला गया।
- डी.के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामला, 1997: इसमें हिरासत में यातना की रोकथाम किये जाने तथा गिरफ्तारी और नज़रबंदी में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देश निर्धारित किये गए।
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC): NHRC ने सलाह दी कि ज़िला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षकों को हिरासत में यातना की घटनाओं की रिपोर्ट 24 घंटे के भीतर अपने सेक्रेटरी जनरल को देनी चाहिये।
- ऐसा न करना घटना को छिपाने का प्रयास माना जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय दायित्व: संविधान के अनुच्छेद 51(c) और 253 में अंतर्राष्ट्रीय संधियों का पालन करना आवश्यक है।
- भारत ने UDHR (वर्ष 1948) और नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय वाचा (वर्ष 1976) जैसी संधियों का अनुसमर्थन किया है, लेकिन UNCAT का अनुसमर्थन नहीं किया है, जिससे इसके मानवाधिकार ढाँचे में एक महत्त्वपूर्ण अंतर बना हुआ है।
भारत में हिरासत में यातना का समाधान कैसे कर सकता है?
- कानूनी सुधार: UNCAT मानकों के अनुरूप दंड और पीड़ित को मुआवज़ा देने के साथ एक सख्त यातना निवारण कानून बनाना, तथा यातना समाप्त करने के लिये भारत की प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करने के लिये UNCAT का अनुसमर्थन करना।
- संस्थागत जवाबदेही: हिरासत में हिंसा के मामलों में पुलिस के खिलाफ त्वरित, पारदर्शी कार्यवाही करना और पुलिस रिमांड की आवश्यकता वाले संवेदनशील मामलों के लिये ज़िला स्तर पर विशेष टीमों का गठन करना।
- क्षमता निर्माण: पुलिस को मानवाधिकारों, नैतिक पूछताछ और हिरासत में यातना के कानूनी परिणामों के बारे में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये। मजिस्ट्रेटों को रिमांड मूल्यांकन और प्राकृतिक न्याय के बारे में शिक्षित करना।
- हितों के टकराव को रोकने और यातना के मामलों को कम करने के लिये पुलिस में अलग कानून प्रवर्तन और जाँच शाखा की स्थापना की जानी चाहिये।
- न्यायिक निगरानी: मजिस्ट्रेट को जाँच की निगरानी करनी चाहिये, कानूनी अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिये। हिरासत में हिंसा की जाँच के लिये स्वतंत्र निकाय का निर्माण किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
UNCAT का अनुमोदन करने में भारत की विफलता उसके मानवाधिकार रिकॉर्ड को कमज़ोर करती है, प्रत्यर्पण अनुरोधों को बाधित करती है, और हिरासत में यातना जारी रखने की अनुमति देती है। संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने, कमज़ोर समुदायों की रक्षा करने तथा मानवाधिकारों और न्याय के लिये प्रतिबद्ध एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में भारत की वैश्विक विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये यातना-विरोधी कानून बनाना, जवाबदेही और न्यायिक निगरानी को मज़बूत करना आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत में हिरासत में हिंसा और उससे जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिये कानूनी और संस्थागत सुधारों की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिये। (2021) प्रश्न. भारत में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एन.एच.आर.सी.) सर्वाधिक प्रभावी तभी हो सकता है, जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करने वाले अन्य यांत्रिकत्वों (मकैनिज़्म) का पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिप्पणी के प्रकाश में, मानव अधिकार मानकों की प्रोन्नति करने और उनकी रक्षा करने में, न्यायपालिका और अन्य संस्थाओं के प्रभावी पूरक के तौर पर, एन.एच.आर.सी. की भूमिका का आकलन कीजिये। (2014) |


आंतरिक सुरक्षा
भारत की एकीकृत थिएटर कमान
प्रिलिम्स के लिये:एकीकृत थिएटर कमांड, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, कारगिल युद्ध, सीमा सड़क संगठन मेन्स के लिये:भारत में एकीकृत थिएटर कमांड का महत्त्व और चुनौतियाँ, भारत की रक्षा का आधुनिकीकरण |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
रक्षा मंत्रालय (MoD) ने रक्षा पर एक संसदीय स्थायी समिति को सूचित किया है कि एकीकृत थिएटर कमांड (ITC) को लागू करने से पहले कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिये। यह रक्षा मंत्रालय की वर्ष 2025 को 'सुधारों का वर्ष' घोषित करने की घोषणा का हिस्सा है।
एकीकृत थिएटर कमान क्या है?
- परिचय: ITC एक एकीकृत संरचना है जहाँ सेना, नौसेना और वायु सेना की परिसंपत्तियाँ एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र के लिये एक ही कमांडर के अधीन कार्य करती हैं।
- इससे बेहतर समन्वय, तीव्र निर्णय-प्रक्रिया और बेहतर युद्ध प्रभावशीलता सुनिश्चित होती है।
- ITC एकल-सेवा संचालन की कमियों को कम करेगा तथा साइबर और अंतरिक्ष युद्ध जैसी उभरती युद्ध-लड़ने की क्षमताओं को एकीकृत करेगा।
- समिति की प्रमुख सिफारिशें: कारगिल समीक्षा समिति, 1999 ने कारगिल युद्ध के दौरान संयुक्त अभियानों में सुधार लाने और समन्वय विफलताओं को दूर करने के लिये एकीकृत थिएटर कमांड और चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के गठन की सिफारिश की थी।
- शेकटकर समिति, 2016 ने तीनों सेनाओं के बीच तालमेल और संसाधन दक्षता बढ़ाने के लिये तीन एकीकृत थिएटर कमांड (पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी) का प्रस्ताव रखा था।
- भारत में प्रस्तावित थिएटर कमांड: उत्तरी थिएटर कमांड (लखनऊ) चीन से खतरों का सामना करने पर केंद्रित है।
- पश्चिमी थिएटर कमान (जयपुर) पाकिस्तान से खतरों के इर्द-गिर्द केंद्रित है।
- समुद्री थिएटर कमान (तिरुवनंतपुरम) ने हिंद महासागर क्षेत्र में परिचालन प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया।
- थिएटराइज़ेशन की दिशा में प्रगति: सैन्य मामलों के विभाग के प्रमुख के रूप में CDS की नियुक्ति रक्षा बलों के एकीकरण और उन्नति की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।
- अंतर-सेवा संगठन (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) अधिनियम 2023 थिएटर कमांडरों को तीनों सेवाओं पर अनुशासनात्मक नियंत्रण प्रदान करता है और क्रॉस-पोस्टिंग के माध्यम से संयुक्तता को बढ़ावा देता है।
- पहला ट्राई सर्विस कमांड डिफेंस स्टेशन (मुंबई, 2024) तीनों सेवाओं के लिये रसद और रखरखाव सुविधाओं को एक नेतृत्व के अंतर्गत एकीकृत करता है।
मौजूदा ट्राई सर्विस कमांड
- पोर्ट ब्लेयर स्थित अंडमान और निकोबार कमांड भारत की पहली ट्राई सर्विस थिएटर कमांड है, जो दक्षिण-पूर्व एशिया और दक्षिण चीन सागर पर निगरानी रखती है।
- दिल्ली स्थित सामरिक बल कमान (SFC) भारत की परमाणु निवारक क्षमताओं को संभालने के लिये ज़िम्मेदार है।
थिएटर कमांड को लागू करने से पहले किन चुनौतियों का समाधान किया जाना आवश्यक है?
- संयुक्त सिद्धांत का अभाव: भारतीय सशस्त्र बलों के परिचालन क्षेत्र एक-दूसरे से परस्पर व्याप्त (ओवरलैप) होते हैं, लेकिन रणनीतिक संस्कृति और प्राथमिकताएँ भिन्न-भिन्न होती हैं।
- एकीकृत युद्ध-लड़ाई सिद्धांत की कमी कमांड संरचनाओं पर आम सहमति को जटिल बनाती है। भारतीय वायुसेना ने परिचालन नियंत्रण के कमज़ोर होने और सीमित संसाधनों के डर से थिएटर कमांड का विरोध किया है।
- संसाधन आवंटन: भारतीय वायुसेना स्वीकृत 42 के बजाय 31 स्क्वाड्रन के साथ कार्य करती है, जिससे थिएटर आवंटन में लचीलापन सीमित हो जाता है। नौसेना का सीमित बजट समुद्री कमान में उसकी भूमिका को प्रभावित करता है।
- सेना बजटीय आबंटन और जनशक्ति पर हावी है, जिससे कमांड प्रभाव और संसाधन वितरण में संभावित रूप से असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत की सैन्य शिक्षा प्रणाली काफी हद तक सेवा-विशिष्ट बनी हुई है, तथा इसमें संस्थागत क्रॉस-सर्विस प्रशिक्षण का अभाव है।
- एकीकृत कमान संरचना के तहत कार्मिकों को एकीकृत करने से कैरियर की प्रगति, रैंक समतुल्यता और कमान पदानुक्रम के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे संक्रमण जटिल हो जाता है।
- इसके अतिरिक्त, भारत की सैन्य शिक्षा प्रणाली काफी हद तक सेवा-विशिष्ट बनी हुई है, तथा इसमें संस्थागत क्रॉस-सर्विस प्रशिक्षण का अभाव है।
- पुराने उपकरण: मिग-21 जैसी पुरानी प्रणालियाँ अभी भी बिना अपग्रेड के कार्य कर रही हैं, जो खरीद और योजना में गहरी खामियों को दर्शाता है।
- स्वदेशी प्लेटफार्मों (जैसे, अर्जुन टैंक, विमान वाहक पोत INS विशाल) में देरी से क्षमता अंतराल पर प्रकाश पड़ता है जो बल एकीकरण को प्रभावित करता है।
- अवसंरचना एवं रसद: अविकसित अवसंरचना, विशेष रूप से उत्तरी क्षेत्र में, अपर्याप्त सड़क और रेल संपर्क के कारण संयुक्त परिचालन में बाधा उत्पन्न करती है।
- तकनीकी एकीकरण: भारत के थिएटर कमांड को साइबर, अंतरिक्ष और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं को बढ़ाना होगा, क्योंकि चीन की तुलना में भारत में ISR (खुफिया, निगरानी, टोही) एकीकरण अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है।
- दो मोर्चों पर खतरा: भारत के थिएटर कमानों को विभिन्न इलाकों में एक साथ संचालन के लिये तत्परता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सैन्य और आर्थिक रूप से एकजुट चीन और पाकिस्तान से दो मोर्चों पर खतरे के लिये तत्पर रहना चाहिये।
ITC संबंधी चुनौतियों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है?
- एकीकृत सैन्य सिद्धांत: थिएटर कमान संचालनों का मार्गदर्शन करने के लिये सेवाओं के बीच आम सहमति के माध्यम से एक संयुक्त युद्ध सिद्धांत की स्थापना किये जाने की आवश्यकता है।
- CDS के नेतृत्व में तीनों सेनाओं की रणनीतिक योजना और संचालन को बढ़ावा देना चाहिये।
- चरणबद्ध कार्यान्वयन: थिएटर कमान संरचना का मूल्यांकन और परिशोधन करने के लिये वायु रक्षा या समुद्री संचालन जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में पायलट परियोजनाएँ आरंभ की जानी चाहिये।
- कमान और कंट्रोल आर्किटेक्चर का आधुनिकीकरण: देशज रूप से विकसित सुदृढ़, सुरक्षित और अंतर-संचालनीय C4ISR प्रणाली (कमान, नियंत्रण, संचार, कंप्यूटर, आसूचना, निगरानी और टोही) में निवेश करना आवश्यक है।
- साइबर और अंतरिक्ष कमान को थिएटर कमान योजना में एकीकृत किया जाना चाहिये।
- अग्रिम क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देना: सीमा सड़क संगठन (BRO) और वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम के माध्यम से सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे का तेज़ी से विकास किया जाना चाहिये।
- अग्रिम परिनियोजन की दीर्घकालिक स्थिरता के लिये रसद और ऊर्जा आपूर्ति शृंखला में सुधार करना आवश्यक है।
- संयुक्त प्रशिक्षण की स्थापना: राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज की तरह त्रि-सेवा युद्ध कॉलेज का विस्तार करने और संयुक्त प्रशिक्षण मॉड्यूल के साथ सेवा अकादमियों को एकीकृत किये जाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष
एकीकृत थिएटर कमान का लक्ष्य भारत की सेना संरचना का रूपांतरण करना है, लेकिन इसके समक्ष अंतर-सेवा समन्वय और प्रौद्योगिकी एकीकरण जैसी चुनौतियाँ विद्यमान हैं। वर्ष 2025 को "सुधारों का वर्ष" घोषित किये जाने के साथ थिएटरीकरण की संभावना बढ़ रही है, जिससे भारत की रक्षा में वृद्धि होगी।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में एकीकृत थिएटर कमान के कार्यान्वन संबंधी प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं? समाधानों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. सीमा प्रबंधन विभाग निम्नलिखित में से किस केंद्रीय मंत्रालय का एक विभाग है? (2008) (a) रक्षा मंत्रालय उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों पर भी चर्चा कीजिये। (2021) प्रश्न. आंतरिक सुरक्षा खतरों तथा नियंत्रण रेखा (LoC) सहित म्याँमार, बांग्लादेश और पाकिस्तान सीमाओं पर सीमा पार अपराधों का विश्लेषण कीजिये। विभिन्न सुरक्षा बलों द्वारा इस संदर्भ में निभाई गई भूमिका की भी चर्चा कीजिये। (2020) प्रश्न. दुर्गम क्षेत्र एवं कुछ देशों के साथ शत्रुतापूर्ण संबंधों के कारण सीमा प्रबंधन एक कठिन कार्य है। प्रभावशाली सीमा प्रबन्धन की चुनौतियों एवं रणनीतियों पर प्रकाश डालिये। (2016) |

