पुलिस सुधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सिफारिशें
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ’ वाद, भारतीय विधि आयोग मेन्स के लिये:पुलिस सुधार की आवश्यकता और इससे संबंधित सिफारिशें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग’ (NHRC) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकारों को ‘प्रकाश सिंह बनाम भारत संघ’ वाद (2006) के निर्णय के अनुसार ‘पुलिस शिकायत प्राधिकरण’ स्थापित करने के लिये कहा है।
पुलिस सुधार
- पुलिस सुधारों का उद्देश्य पुलिस संगठनों के मूल्यों, संस्कृति, नीतियों और प्रथाओं को बदलना है।
- यह पुलिस को लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकारों और कानून के शासन के सम्मान के साथ कर्तव्यों का पालन करने की परिकल्पना करता है।
- इसका उद्देश्य पुलिस सुरक्षा क्षेत्र के अन्य हिस्सों, जैसे कि अदालतों और संबंधित विभागों, कार्यकारी, संसदीय या स्वतंत्र अधिकारियों के साथ प्रबंधन या निरीक्षण ज़िम्मेदारियों में सुधार करना भी है।
- पुलिस व्यवस्था भारतीय संविधान की अनुसूची 7 की राज्य सूची के अंतर्गत आती है।
प्रमख बिंदु
- ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग’ की सिफारिशें:
- प्रमाण-भार (Burden of Proof): गृह मंत्रालय और विधि मंत्रालय को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में धारा 114(B) जोड़ने के लिये भारतीय विधि आयोग की 113वीं रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने पर विचार करना चाहिये।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि यदि कोई व्यक्ति पुलिस हिरासत में घायल हो जाता है, तो यह मान लिया जाएगा कि उसे पुलिस द्वारा घायल किया गया था और चोट की व्याख्या करने के लिये सबूत प्रस्तुत करने का भार संबंधित प्राधिकारी पर है।
- प्रौद्योगिकी अनुकूल आपराधिक न्याय प्रणाली: आपराधिक न्याय प्रणाली को गति देने के लिये कानूनी ढाँचे को प्रौद्योगिकी के अनुकूल बनाया जाना चाहिये।
- वर्तमान में कानूनी ढाँचा आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी को अपनाने के लिये उपयुक्त नहीं है।
- जवाबदेही सुनिश्चित करना: आयोग ने यह भी सिफारिश की है कि सभी पुलिस स्टेशनों में नाइट विज़न के साथ सीसीटीवी कैमरे लगाने के सर्वोच्च न्यायालय के दिसंबर 2020 के आदेश को जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु तत्काल प्रभाव से लागू किया जाना चाहिये।
- सामुदायिक पुलिसिंग: आयोग ने सामुदायिक पुलिसिंग के हिस्से के रूप में पुलिस स्टेशनों के साथ प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्त्ताओं और कानून के छात्रों को शामिल करने तथा पुलिस मैनुअल, कानूनों व सलाह में सामुदायिक पुलिसिंग को शामिल करने पर भी ज़ोर दिया।
- प्रमाण-भार (Burden of Proof): गृह मंत्रालय और विधि मंत्रालय को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में धारा 114(B) जोड़ने के लिये भारतीय विधि आयोग की 113वीं रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने पर विचार करना चाहिये।
- प्रकाश सिंह वाद (2006) में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश:
- अपने निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘पुलिस महानिदेशक’ के कार्यकाल और चयन से संबंधित सात दिशा-निर्देश दिये थे, जिसका उद्देश्य ऐसी स्थिति से बचना था, जिसमें कुछ ही महीनों में सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों को पद दिया जाता है।
- किसी भी प्रकार के राजनीतिक हस्तक्षेप से बचने के लिये पुलिस महानिरीक्षक हेतु न्यूनतम कार्यकाल निर्धारित किया गया था, ताकि राजनेताओं द्वारा उन्हें मध्यावधि में स्थानांतरित न किया जा सके।
- साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने ‘पुलिस स्थापना बोर्ड’ (PEB) द्वारा पुलिस अधिकारियों की पोस्टिंग किये जाने के भी निर्देश दिये थे। इस बोर्ड का उद्देश्य राजनीतिक नेताओं को पोस्टिंग और स्थानांतरण संबंधित शक्तियों से वंचित करना था, इस बोर्ड में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और नौकरशाहों को शामिल किया जा सकता है।
- इसके अलावा न्यायालय ने ‘राज्य पुलिस शिकायत प्राधिकरण’ (SPCA) की स्थापना की भी सिफारिश की थी, जहाँ पुलिस कार्रवाई से पीड़ित आम लोग अपनी शिकायत दर्ज करा सकें।
- सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिसिंग व्यवस्था में बेहतर सुधार के लिये जाँच एवं कानून व्यवस्था के कार्यों को अलग करने हेतु ‘राज्य सुरक्षा आयोगों’ (SSC) की स्थापना करने का निर्देश दिया था, जिसमें नागरिक समाज के सदस्य होंगे, साथ ही एक राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग की भी सिफारिश की गई थी।
आगे की राह
- पुलिस बलों का आधुनिकीकरण: पुलिस बलों के आधुनिकीकरण (MPF) की योजना 1969-70 में शुरू की गई थी और पिछले कुछ वर्षों में इसमें कई संशोधन हुए हैं।
- MPF योजना की परिकल्पना में शामिल हैं:
- आधुनिक हथियारों की खरीद
- पुलिस बलों की गतिशीलता
- लॉजिस्टिक समर्थन, पुलिस वायरलेस का उन्नयन आदि
- एक राष्ट्रीय उपग्रह नेटवर्क
- आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: पुलिस सुधारों के साथ-साथ आपराधिक न्याय प्रणाली में भी सुधार की आवश्यकता है। इस संदर्भ में मेनन और मलीमथ समितियों की सिफारिशों को लागू किया जा सकता है। कुछ प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं:
- दोषियों के दबाव के कारण मुकर जाने वाले पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिये एक कोष का निर्माण करना।
- देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधियों से निपटने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर अलग प्राधिकरण की स्थापना।
- संपूर्ण आपराधिक प्रक्रिया प्रणाली में पूर्ण सुधार।