NGOs का FCRA लाइसेंस रद्द
प्रिलिम्स के लिये:विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) 2010, गैर-सरकारी संगठन (NGOs), संविधान के अनुच्छेद-19 और 20, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार मेन्स के लिये:भारत में काम कर रहे गैर-सरकारी संगठनों के FCRA पंजीकरण को रद्द करने से संबंधित मुद्दे, FCRA से संबंधित विवाद, विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2020 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने विभिन्न गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) के विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010 के तहत पंजीकरण को रद्द कर दिया है।
- FCRA लाइसेंस के निलंबन का मतलब है कि गैर-सरकारी संगठन अब दाताओं से विदेशी धन प्राप्त नहीं कर सकेंगे, जब तक कि गृह मंत्रालय द्वारा जाँच नहीं की जाती है। विदेशी धन प्राप्त करने हेतु संघों और गैर-सरकारी संगठनों के लिये FCRA पंजीकरण अनिवार्य है।
प्रमुख बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- वडोदरा स्थित एक गैर-सरकारी संगठन का FCRA पंजीकरण रद्द कर दिया गया है, क्योंकि उस पर हिंदू समुदाय के सदस्यों को अवैध रूप से धर्म परिवर्तित करने, CAA के विरोध प्रदर्शनों को वित्तपोषित करने से संबंधित आपराधिक गतिविधियों में संलग्न होने का आरोप लगाया गया है।
- इसके अलावा दो अन्य ईसाई गैर-सरकारी संगठनों- तमिलनाडु स्थित ‘न्यू होप फाउंडेशन’ और कर्नाटक के ‘होली स्पिरिट मिनिस्ट्री’ का भी FCRA पंजीकरण रद्द कर दिया गया है।
- साथ ही बीते दिनों अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर ‘AFMI चैरिटेबल ट्रस्ट’ का FCRA पंजीकरण भी रद्द कर दिया गया था।
- पूर्व संदर्भ श्रेणी:
- गृह मंत्रालय ने 10 ऑस्ट्रेलियाई, अमेरिकी और यूरोपीय दानदाताओं को अपनी निगरानी सूची में शामिल किया है।
- जिसके बाद भारतीय रिज़र्व बैंक ने सभी बैंकों को लिखा था कि इन विदेशी दानदाताओं द्वारा भेजे गए किसी भी फंड को मंत्रालय के संज्ञान में लाया जाना चाहिये और अनुमति के बिना इसकी मंज़ूरी नहीं दी जानी चाहिये।
- सभी दानदाता जिन्हें वॉचलिस्ट या ‘पूर्व संदर्भ श्रेणी’ में रखा गया है, वे अधिकांशतः जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण और बाल अधिकारों के क्षेत्र में काम करते हैं।
- गृह मंत्रालय ने 10 ऑस्ट्रेलियाई, अमेरिकी और यूरोपीय दानदाताओं को अपनी निगरानी सूची में शामिल किया है।
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA), 2010: भारत में विदेशी वित्तपोषण को इस अधिनियम के तहत विनियमित किया जाता है और गृह मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- किसी व्यक्ति विशिष्ट या गैर-सरकारी संगठन को गृह मंत्रालय की अनुमति के बिना विदेशी योगदान स्वीकार करने की अनुमति होती है।
- हालाँकि इस तरह के विदेशी योगदान की स्वीकृति हेतु मौद्रिक सीमा 25,000 रुपए से कम होनी चाहिये।
- अधिनियम यह सुनिश्चित करता है कि विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले उस उद्देश्य का पालन करते हैं जिसके लिये ऐसा योगदान प्राप्त किया गया है।
- अधिनियम के तहत संगठनों को प्रत्येक पाँच वर्ष में पंजीकरण कराना आवश्यक है।
- पंजीकृत गैर-सरकारी संगठन निम्नलिखित पाँच उद्देश्यों हेतु विदेशी योगदान प्राप्त कर सकते हैं:
- सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक।
- विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020
- विदेशी अंशदान स्वीकार करने पर रोक: अधिनियम लोक सेवकों को विदेशी अंशदान प्राप्त करने से रोकता है।
- लोक सेवक में वे सभी व्यक्ति शामिल हैं, जो सरकार की सेवा में या वेतन पर कार्यरत हैं अथवा जिन्हें किसी लोक सेवा के लिये सरकार से मेहनताना मिलता है।
- विदेशी अंशदान का हस्तांतरण: अधिनियम विदेशी अंशदान को स्वीकार करने के लिये पंजीकृत किसी अन्य व्यक्ति को विदेशी अंशदान के हस्तांतरण पर रोक लगाता है।
- पंजीकरण के लिये आधार: अधिनियम पहचान दस्तावेज़ के रूप में विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले व्यक्ति, सभी पदाधिकारियों, निदेशकों या प्रमुख पदाधिकारियों के लिये आधार संख्या अनिवार्य बनाता है।
- FCRA अकाउंट: विधेयक में यह निर्धारित किया गया है कि विदेशी अंशदान केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), नई दिल्ली की उस शाखा में ही लिया जाएगा, जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी।
- प्रशासनिक उद्देश्यों के लिये विदेशी अंशदान के उपयोग में कमी: अधिनियम के अनुसार, प्राप्त कुल विदेशी धन के 20% से अधिक का उपयोग प्रशासनिक खर्चों के लिये नहीं किया जा सकता है। FCRA, 2010 में यह सीमा 50% थी।
- प्रमाण पत्र का समर्पण/विलोपन:अधिनियम केंद्र सरकार को किसी व्यक्ति के पंजीकरण प्रमाण पत्र को विलोपित (Surrender) करने की अनुमति देता है।
- विदेशी अंशदान स्वीकार करने पर रोक: अधिनियम लोक सेवकों को विदेशी अंशदान प्राप्त करने से रोकता है।
FCRA से संबंधित मुद्दे:
- FCRA भारत में कार्य करने वाले गैर-सरकारी संगठनों के धन प्राप्ति के विदेशी स्रोतों को नियंत्रित करता है। यह "राष्ट्रीय हित के लिये हानिकारक किसी भी गतिविधि हेतु" विदेशी योगदान की प्राप्ति को प्रतिबंधित करता है।
- अधिनियम में यह भी कहा गया है कि सरकार अनुमति देने से इनकार कर सकती है यदि उसे लगता है कि NGO को मिला दान "सार्वजनिक हित" या "राज्य के आर्थिक हित" पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
- हालाँकि ‘सार्वजनिक हित’ के निर्धारण हेतु कोई स्पष्ट मार्गदर्शन नहीं है।
- FCRA प्रतिबंधों का संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) और 19(1)(C) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा संघ की स्वतंत्रता दोनों अधिकारों पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दो तरह से प्रभावित होता है:
- केवल कुछ राजनीतिक समूहों को विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति देना और अन्य को नहीं, सरकार के पक्ष में पूर्वाग्रह पैदा उत्पन्न कर सकता है।
- जब NGOs द्वारा शासन पद्धति की आलोचना की जाती है तो उन्हें बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता होती है, क्योकि सरकार की बहुत अधिक आलोचना उनके अस्तित्व के लिये खतरा उत्पन्न कर सकती है।
- FCRA मानदंड आलोचनात्मक आवाजों की जनहित के खिलाफ घोषणा करके उन्हें दबा सकते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर इस द्रुतशीतन प्रभाव से ‘सेल्फ-सेंसरशिप’ का निर्माण हो सकता है।
- जनहित पर अस्पष्ट दिशा-निर्देशों की तरह श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) मामले में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए को रद्द कर दिया। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस अधिनियम का इस्तेमाल इस तरह से किया जा सकता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित हो।
- केवल कुछ राजनीतिक समूहों को विदेशी सहायता प्राप्त करने की अनुमति देना और अन्य को नहीं, सरकार के पक्ष में पूर्वाग्रह पैदा उत्पन्न कर सकता है।
- इसके अलावा यह देखते हुए कि संघ की स्वतंत्रता का अधिकार ‘मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’ (अनुच्छेद 20) का हिस्सा है, इस अधिकार का उल्लंघन भी मानवाधिकारों का उल्लंघन है।
- अप्रैल 2016 में शांतिपूर्ण सभा और एसोसिएशन की स्वतंत्रता के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष प्रतिवेदक ने FCRA, 2010 का कानूनी विश्लेषण किया।
- इसमें कहा गया है कि FCRA के तहत लागू ‘जनहित’ और ‘आर्थिक हित’ के नाम पर प्रतिबंध ‘वैध प्रतिबंधों’ के परीक्षण में विफल रहे हैं।
- शर्तें बहुत अस्पष्ट थीं और इस प्रावधान को मनमाने ढंग से लागू करने के लिये राज्य को अत्यधिक विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान की गईं।
- इस संदर्भ में भ्रष्ट गैर-सरकारी संगठनों को विनियमित करना आवश्यक है और जनहित जैसे शब्दों पर स्पष्टता की आवश्यकता है।
आगे की राह
- विदेशी योगदान पर अत्यधिक विनियमन गैर-सरकारी संगठनों के काम-काज को प्रभावित कर सकता है जो कि ज़मीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू करने में सहायक होते हैं। ये उन अंतरालों को भरते हैं, जहाँ सरकार अपना काम करने में विफल रहती है।
- इस विनियम को वैश्विक समुदाय के कामकाज के लिये आवश्यक राष्ट्रीय सीमाओं के पार संसाधनों के बँटवारे में बाधा नहीं डालनी चाहिये और जब तक यह मानने का कारण न हो कि अवैध गतिविधियों की सहायता के लिये धन का उपयोग किया जा रहा है, तब तक इसे हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
अग्नि प्राइम मिसाइल
प्रिलिम्स के लिये:अग्नि-पी मिसाइल, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल (वायु संस्करण), वर्टिकल लॉन्च शॉर्ट रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (वीएल-एसआरएसएएम), नाग, आकाश, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ), आईजीएमडीपी। मेन्स के लिये:अन्य देशों की तुलना में भारत की मिसाइल प्रौद्योगिकी और संबंधित उदाहरण, भारत में मिसाइल प्रौद्योगिकी का विकास। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने नई पीढ़ी की परमाणु सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल 'अग्नि प्राइम' का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
- यह मिसाइल का दूसरा परीक्षण है, पहला परीक्षण जून 2021 में हुआ था।
- अग्नि-पी मिसाइल का लक्ष्य भारत की विश्वसनीय प्रतिरोधक क्षमता को और मज़बूत करना है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- अग्नि-पी एक दो चरणों वाली कनस्तरीकृत ठोस प्रणोदक मिसाइल है जिसमें दोहरी नेविगेशन और मार्गदर्शन प्रणाली है।
- इसे अत्यधिक कौशल और सटीकता सहित बेहतर मापदंडों के साथ अग्नि श्रेणी की मिसाइलों की एक नई पीढ़ी का उन्नत संस्करण कहा गया है।
- मिसाइलों के कनस्तरीकरण से मिसाइल को लॉन्च करने के लिये आवश्यक समय कम हो जाता है, जबकि भंडारण और संचालन में आसानी होती है।
- सतह-से-सतह पर मार करने वाली इस बैलिस्टिक मिसाइल की मारक क्षमता 1,000 से 2,000 किमी. है।
- मिसाइलों की अग्नि श्रेणी:
- अग्नि श्रेणी की मिसाइलें भारत की परमाणु प्रक्षेपण क्षमता का मुख्य आधार हैं, इनमें पृथ्वी- कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, पनडुब्बी से लॉन्च की गई बैलिस्टिक मिसाइल और लड़ाकू विमान भी शामिल हैं।
- 5,000 किमी. से अधिक रेंज वाली एक अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) अग्नि-V का कई बार परीक्षण किया गया था और इसे शामिल करने के लिये मान्य किया गया था।
- अग्नि-पी और अग्नि-5 बैलिस्टिक मिसाइलों की उत्पत्ति एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP) से हुई है, जिसका नेतृत्त्व डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख और पूर्व भारतीय राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने 1980 के दशक की शुरुआत में किया था।
- अग्नि श्रेणी की मिसाइलें भारत की परमाणु प्रक्षेपण क्षमता का मुख्य आधार हैं, इनमें पृथ्वी- कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल, पनडुब्बी से लॉन्च की गई बैलिस्टिक मिसाइल और लड़ाकू विमान भी शामिल हैं।
- अग्नि मिसाइलों की अन्य रेंज:
- अग्नि I: 700-800 किमी. की सीमा।
- अग्नि II: रेंज 2000 किमी. से अधिक।
- अग्नि III: 2,500 किमी. से अधिक की सीमा
- अग्नि IV: इसकी रेंज 3,500 किमी. से अधिक है और यह एक रोड मोबाइल लॉन्चर से फायर कर सकती है।
- अग्नि V: अग्नि शृंखला की सबसे लंबी, एक अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) है जिसकी रेंज 5,000 किमी. से अधिक है।
- हाल ही में परीक्षण की गई मिसाइल:
- ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल (वायु संस्करण)
- वर्टिकल लॉन्च शॉर्ट रेंज सरफेस टू एयर मिसाइल (VL-SRSAM)
एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम ( IGMDP):
- इसकी स्थापना का विचार प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा दिया गया था। इसका उद्देश्य मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था। इसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 1983 में अनुमोदित किया गया था और मार्च 2012 में पूरा किया गया था।
- इस कार्यक्रम के तहत विकसित 5 मिसाइलें (P-A-T-N-A) हैं:
- पृथ्वी: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम कम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल।
- अग्नि: सतह-से-सतह पर मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली बैलिस्टिक मिसाइल, यानी अग्नि (1,2,3,4,5)।
- त्रिशूल: सतह से आकाश में मार करने में सक्षम कम दूरी वाली मिसाइल।
- नाग: तीसरी पीढ़ी की टैंक भेदी मिसाइल।
- आकाश: सतह से आकाश में मार करने में सक्षम मध्यम दूरी वाली मिसाइल।
भारत में मिसाइल प्रौद्योगिकी का इतिहास:
- मिसाइल प्रौद्योगिकी के बारे में:
- आज़ादी से पहले भारत में कई राज्य अपनी युद्ध तकनीकों के हिस्से के रूप में रॉकेट (Rockets) का उपयोग कर रहे थे।
- मैसूर के शासक हैदर अली ने 18वीं शताब्दी के मध्य में अपनी सेना में लोहे के आवरण वाले रॉकेटों को शामिल करना शुरू किया।
- आज़ादी के समय भारत के पास कोई स्वदेशी मिसाइल क्षमता नहीं थी।
- वर्ष 1958 में सरकार द्वारा स्पेशल वेपन डेवलपमेंट टीम (Special Weapon Development Team) गठित की गई।
- बाद में इसका विस्तार कर इसे रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (DRDL) कहा जाने लगा जिसे वर्ष 1962 में दिल्ली से हैदराबाद हस्तांतरित कर दिया गया।
- वर्ष 1972 में मध्यम दूरी की सतह-से-सतह पर मार करने वाली मिसाइल के विकास के लिये प्रोजेक्ट डेविल (Project Devil) शुरू किया गया था।
- वर्ष 1982 तक DRDL द्वारा एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (Integrated Guided Missiles Development Programme- IGMDP) के तहत कई मिसाइल प्रौद्योगिकियों पर कार्य किया गया।
- आज़ादी से पहले भारत में कई राज्य अपनी युद्ध तकनीकों के हिस्से के रूप में रॉकेट (Rockets) का उपयोग कर रहे थे।
- भारत के पास उपलब्ध मिसाइलों के प्रकार:
- सरफेस-लॉन्च सिस्टम:
- सेवरल एयर-लॉन्च सिस्टम:
- भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण मिसाइलें:
- अग्नि (लगभग 5,000 किमी. रेंज):
- यह भारत की एकमात्र अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (Inter-Continental Ballistic Missile- ICBM) है, जो केवल कुछ देशों के पास उपलब्ध है।
- पृथ्वी:
- यह 350 किमी. की रेंज वाली सतह-से-सतह पर मार करने वाली कम दूरी की मिसाइल है और इसके सामरिक उपयोग हैं।
- अप्रैल 2019 में भारत द्वारा एक एंटी-सैटेलाइट सिस्टम का भी परीक्षण किया गया।
- पृथ्वी डिफेंस व्हीकल MK 2 नामक एक संशोधित एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल का उपयोग कम ऊँचाई की कक्षा के उपग्रह को हिट करने लिये किया गया।
- अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत इस क्षमता को प्राप्त करने वाला देश है।
- यह 350 किमी. की रेंज वाली सतह-से-सतह पर मार करने वाली कम दूरी की मिसाइल है और इसके सामरिक उपयोग हैं।
- अग्नि (लगभग 5,000 किमी. रेंज):
- हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी:
- इस तकनीक के मामले में संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत दुनिया का चौथा देश है।
- ‘रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन’ ने सितंबर 2020 में एक ‘हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डिमॉन्स्ट्रेटर व्हीकल’ (HSTDV) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था और अपनी हाइपरसोनिक एयर-ब्रीदिंग स्क्रैमजेट तकनीक का प्रदर्शन किया था।
- पाकिस्तान और चीन की तुलना में भारत की मिसाइल तकनीक:
- भारत
- ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ (IGMP) के तहत पहले ‘पृथ्वी’ और फिर ‘अग्नि’ मिसाइल को विकसित किया गया।
- ‘ब्रह्मोस’ (ध्वनि की गति से 2.5-3 गुना तेज़) के विकसित होने पर यह दुनिया के सबसे तेज़ मिसाइलों में से एक था।
- भारत अग्नि VI और अग्नि VII पर काम कर रहा है, जिनकी रेंज काफी अधिक होगी।
- चीन और पाकिस्तान
- यद्यपि चीन भारत से आगे है, किंतु कई विशेषज्ञ मानते हैं कि ‘चीन के विषय में बहुत से तथ्य केवल मनोवैज्ञानिक हैं।’
- चीन ने पाकिस्तान को तकनीक दी है, "लेकिन तकनीक प्राप्त करना और वास्तव में उसका उपयोग करना तथा उसके बाद एक नीति विकसित करना पूर्णतः अलग-अलग हैं।
- भारत की परमाणु मिसाइलें- ‘पृथ्वी’ और ‘अग्नि’ हैं, लेकिन उनसे परे सामरिक परमाणु हथियारों को भारतीय वायु सेना के कुछ लड़ाकू जेट विमानों से या सेना की बंदूकों से दागा जा सकता है, जिनकी सीमा कम होती है, लगभग 50 किलोमीटर है।
- भारत
स्रोत: द हिंदू
तीसरा भारत-मध्य एशिया संवाद
प्रिलिम्स के लिये:इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC), मध्य एशियाई देश, चाबहार पोर्ट, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन, फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स स्टैंडर्ड्स, इंटरनेशनल सोलर एलायंस (ISA), कोलिशन फॉर डिजास्टर रेजिलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर (CDRI), भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (आईटीईसी)। मेन्स के लिये:अफगानिस्तान में शांति की बहाली में भारत-मध्य एशियाई देशों का महत्त्व, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये समर्थन, भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच संबंध। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत-मध्य एशिया वार्ता की तीसरी बैठक नई दिल्ली में आयोजित की गई थी।
- यह भारत और मध्य एशियाई देशों जैसे- कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के बीच एक मंत्री स्तरीय संवाद है।
- भारत ने वर्ष 2020 में भारत-मध्य एशिया वार्ता की दूसरी बैठक की मेज़बानी की थी।
प्रमुख बिंदु:
- अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा:
- भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारे पर अश्गाबात समझौते के इष्टतम उपयोग पर ज़ोर दिया गया है।
- INSTC के ढाँचे के भीतर चाबहार बंदरगाह को शामिल करने पर ज़ोर दिया और मध्य तथा दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संपर्क के विकास एवं मज़बूती से संबंधित मुद्दों पर सहयोग में रुचि व्यक्त की गई है।
- उत्तर-दक्षिण देशों की पारगमन और परिवहन क्षमता को विकसित करने, क्षेत्रीय रसद नेटवर्क में सुधार करने और नए परिवहन गलियारे बनाने के लिये संयुक्त पहल को बढ़ावा देने हेतु सहमति दर्ज की गई है।
- भारत और मध्य एशियाई राज्यों के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं की मुक्त आवाज़ाही के लिये संयुक्त कार्य समूहों की स्थापना की संभावना तलाशने हेतु सहमति व्यक्त की गई है।
- भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारे पर अश्गाबात समझौते के इष्टतम उपयोग पर ज़ोर दिया गया है।
- कनेक्टिविटी परियोजनाएँ:
- कनेक्टिविटी पहल (चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव) पारदर्शिता, व्यापक भागीदारी, स्थानीय प्राथमिकताओं, वित्तीय स्थिरता और सभी देशों की संप्रभुता तथा क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान के सिद्धांतों पर आधारित होनी चाहिये।
- अफगानिस्तान की स्थिति:
- अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति और तालिबान के कब्ज़े के बाद क्षेत्र पर इसके प्रभाव पर चर्चा की गई।
- वर्तमान मानवीय स्थिति, आतंकवाद, क्षेत्रीय अखंडता, संप्रभुता के सम्मान और एकता जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की गई है।
- सभी आतंकी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने पर ज़ोर दिया।
- इस बात पर ज़ोर दिया गया कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल आतंकवादी हमलों की योजना बनाने के लिये नहीं किया जाना चाहिये, साथ ही अफगान लोगों को तत्काल मानवीय सहायता प्रदान करने का वचन भी दिया गया।
- आतंकवाद के सभी रूपों की निंदा की गई और ‘सुरक्षित पनाहगाह प्रदान करने, सीमा पार आतंकवाद, आतंकवादी वित्तपोषण, हथियारों और नशीली दवाओं की तस्करी, कट्टरपंथी विचारधारा के प्रसार व दुष्प्रचार तथा हिंसा को भड़काने हेतु साइबर स्पेस के दुरुपयोग द्वारा आतंकवादी प्रॉक्सी का उपयोग करने का विरोध किया गया।
- इस दौरान शांतिपूर्ण और स्थिर अफगानिस्तान का समर्थन किया गया और उसके आंतरिक मामलों में संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और गैर-हस्तक्षेप के सिद्धांतों पर बल दिया गया।
- ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ के ‘प्रस्ताव 2593’ के महत्त्व को इंगित किया गया, जो कि ‘स्पष्ट तौर पर मांग करता है कि अफगान क्षेत्र का उपयोग आतंकवादी कृत्यों को आश्रय, प्रशिक्षण, योजना या वित्तपोषण के लिये नहीं किया जाए और सभी आतंकवादी समूहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई का आह्वान किया जाए।
- अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति और तालिबान के कब्ज़े के बाद क्षेत्र पर इसके प्रभाव पर चर्चा की गई।
- आतंकवाद विरोधी प्रयास:
- आतंकवादी कृत्यों के अपराधियों, आयोजकों, वित्तपोषकों और प्रायोजकों को ‘प्रत्यर्पण या मुकदमे’ के सिद्धांत के अनुसार न्याय के दायरे में लाया जाना चाहिये।
- विश्व समुदाय से प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों, वैश्विक आतंकवाद विरोधी रणनीति और वित्तीय कार्रवाई टास्क फोर्स मानकों को लागू करने का आह्वान किया गया।
- लाइन ऑफ क्रेडिट
- सभी देश वर्तमान में मध्य एशिया में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये पिछले वर्ष भारत द्वारा घोषित 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण के उपयोग पर चर्चा कर रहे हैं।
- ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ एक पूर्व निर्धारित उधार सीमा है, जिसे किसी भी समय प्रयोग किया जा सकता है।
- उधारकर्त्ता आवश्यकतानुसार पैसे निकाल सकता है, जब तक कि सीमा पूरी नहीं हो जाती है और जैसे ही लिये गए पैसों का भुगतान कर दिया जाता है, तो दोबारा उधार लिया जा सकता है।
- सभी देश वर्तमान में मध्य एशिया में बुनियादी अवसंरचना परियोजनाओं के लिये पिछले वर्ष भारत द्वारा घोषित 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के ऋण के उपयोग पर चर्चा कर रहे हैं।
- महामारी के बाद रिकवरी:
- सभी देशों ने व्यापक टीकाकरण के महत्त्व पर ज़ोर दिया और वैक्सीन साझा करने, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, स्थानीय उत्पादन क्षमता के विकास, चिकित्सा उत्पादों के लिये आपूर्ति शृंखला को बढ़ावा देने एवं मूल्य पारदर्शिता सुनिश्चित कर सहयोग का आह्वान किया गया।
- पर्यटन की बहाली:
- भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच पर्यटन एवं व्यापारिक संबंधों की क्रमिक बहाली का समर्थन किया गया।
- कज़ाखस्तान और किर्गिज़स्तान के विदेश मंत्रियों ने भारत एवं उनके देशों के बीच कोविड-19 टीकाकरण प्रमाणपत्रों की पारस्परिक मान्यता का स्वागत किया, जबकि ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के मंत्रियों ने प्रमाणपत्रों की शीघ्र पारस्परिक मान्यता की मांग की।
- ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध:
- भारत के साथ अपने क्षेत्र के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों की स्थापना और कनेक्टिविटी, परिवहन, पारगमन एवं ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग की संभावना को उजागर करने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA):
- भारत ने पेरिस समझौते के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये सौर ऊर्जा के सामूहिक, तीव्र और बड़े पैमाने पर परिनियोजन में "अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA)" पहल की भूमिका पर प्रकाश डाला।
- आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन:
- भारत ने आर्थिक नुकसान को कम करने एवं आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा देने में "आपदा प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन (CDRI)" की भूमिका को भी रेखांकित किया।
- UNSC में स्थायी सदस्यता:
- विस्तारित और संशोधित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये अपने देशों के समर्थन को दोहराया गया।
- UNSC में चल रहे भारत के अस्थायी कार्यकाल और इसकी प्राथमिकताओं का स्वागत किया गया।
- भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग:
- अपने देशों के क्षमता निर्माण और मानव संसाधन विकास, विशेष रूप से अंग्रेज़ी भाषा में सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार कौशल में भारतीय तकनीकी तथा आर्थिक सहयोग (आईटीईसी) कार्यक्रम की महत्त्वपूर्ण भूमिका की सराहना की गई।
भारत-मध्य एशिया वार्ता
- यह भारत और मध्य एशियाई देशों जैसे- कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान व उज़्बेकिस्तान के बीच एक मंत्री स्तरीय संवाद है।
- शीत युद्ध के पश्चात् वर्ष 1991 में USSR के पतन के बाद सभी पाँच राष्ट्र स्वतंत्र राज्य बन गए।
- तुर्कमेनिस्तान को छोड़कर वार्ता में भाग लेने वाले सभी देश शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य हैं।
- बातचीत कई मुद्दों पर केंद्रित है जिसमें कनेक्टिविटी में सुधार और युद्ध से तबाह अफगानिस्तान में स्थिरता संबंधी उपाय शामिल हैं।
स्रोत: द हिंदू
खनिज नियमों में संशोधन
प्रिलिम्स के लिये:खनिज की विशेषताएंँ; खनिज (खनिज सामग्री के साक्ष्य) नियम, 2015 और खनिज (नीलामी) चौथा संशोधन नियम, 2021; राष्ट्रीय खनिज नीति 2019; भारत में खनिज। मेन्स के लिये:भारत का खनन क्षेत्र, भारत में खनिज वितरण, खनिज नियमों में संशोधन और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
खनिज (खनिज सामग्री के साक्ष्य) दूसरा संशोधन नियम, 2021 और खनिज (नीलामी) चौथा संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया गया है।
- ये दोनों नियम क्रमश: खनिज (खनिज सामग्री के साक्ष्य) नियम, 2015 [एमईएमसी नियम] और खनिज (नीलामी) नियम, 2015 [नीलामी नियम] में संशोधन करते हैं।
- इससे पहले लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने खान और खनिज (विकास तथा विनियमन) संशोधन विधेयक, 2021 को मंज़ूरी दी थी।
खनिज (खनिज सामग्री के साक्ष्य) नियम, 2015:
- खनिज (खनिज सामग्री के साक्ष्य) नियम, 2015 को जून 2021 में संशोधित किया गया है ताकि अन्य बातों के साथ-साथ उन क्षेत्रों के संबंध में एक समग्र लाइसेंस प्रदान करने हेतु नीलामी का प्रावधान किया जा सके जहांँ कम-से-कम टोही सर्वेक्षण (जी4) स्तर पूरा हो चुका हो अथवा जहांँ उपलब्ध भू-विज्ञान के आंँकड़ों के आधार पर ब्लॉक की खनिज क्षमता की पहचान कर ली गई हो लेकिन संसाधन अभी तक स्थापित नहीं किये गए हों।
- एक टोही सर्वेक्षण किसी विशिष्ट स्थान एवं विशिष्ट समय में संभावित ऐतिहासिक संसाधनों का एक स्नैपशॉट (Snapshot) प्रदान करता है।
- इन संशोधनों का उद्देश्य नीलामी के लिये अधिक खनिज ब्लॉकों की पहचान करना और इस प्रकार अन्वेषण एवं उत्पादन की गति को बढ़ाना था जिसके परिणामस्वरूप देश में खनिजों की उपलब्धता में सुधार हुआ तथा इस क्षेत्र में रोज़गार में वृद्धि हुई।
खनिज (नीलामी) नियम, 2015:
- अन्य बातों के साथ-साथ समग्र लाइसेंस के लिये ऐसे ब्लॉकों की नीलामी को सक्षम बनाने हेतु बोली सुरक्षा, प्रदर्शन सुरक्षा और अन्य पात्रता शर्तों को निर्धारित करने के लिये इसमें संशोधन किया गया।
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने संभावित बोलीदाताओं और अन्य हितधारकों की सहायता के लिये ऑनलाइन कोर बिज़नेस इंटीग्रेटेड सिस्टम प्रोजेक्ट (ओसीबीआईएस) पोर्टल में भू-वैज्ञानिकों के लिये संभावित क्षेत्रों हेतु आधारभूत भू-विज्ञान डेटाबेस भी उपलब्ध कराया है।
प्रमुख बिंदु
- खनिज (खनिज सामग्री के साक्ष्य) द्वितीय संशोधन नियम, 2021:
- यह किसी भी व्यक्ति (जो नीलामी में भाग लेने का इरादा रखता है) को समग्र लाइसेंसिंग प्रक्रिया के लिये नीलामी हेतु उपयुक्त ब्लॉक प्रस्तावित करने में सक्षम करेगा, जहाँ उपलब्ध भू-विज्ञान डेटा के आधार पर ब्लॉक की खनिज क्षमता की पहचान की गई है।
- राज्य सरकार द्वारा गठित एक समिति इस प्रकार प्रस्तावित ब्लॉकों की खनिज क्षमता का आकलन करेगी और नीलामी के लिये ब्लॉक की सिफारिश करेगी।
- खनिज (नीलामी) चौथा संशोधन नियम, 2021:
- यह प्रावधान करेगा कि यदि किसी व्यक्ति द्वारा प्रस्तावित ब्लॉकों को नीलामी के लिये अधिसूचित किया जाता है, तो उक्त व्यक्ति को उसके द्वारा प्रस्तावित ब्लॉकों की नीलामी में बोली सुरक्षा राशि की केवल आधी राशि जमा करने के लिये प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा।
- सभी मामलों में खनन पट्टा क्षेत्र के आंशिक समर्पण की अनुमति दी गई है।
- अभी तक आंशिक समर्पण की अनुमति केवल वन संबंधी मंज़ूरी न मिलने की स्थिति में ही दी जाती थी।
- खनन या खनिज प्रसाधन के दौरान उत्पन्न होने वाले थ्रेशोल्ड मूल्य से नीचे के ओवरबर्डन/अपशिष्ट रॉक/खनिज के निपटान की अनुमति देने के लिये भी प्रावधान शामिल किये गए हैं।
- खनन पट्टा स्वीकृत करने के लिये न्यूनतम क्षेत्र सीमा को 5 हेक्टेयर से 4 हेक्टेयर कर दिया गया है। कुछ विशिष्ट जमाओं के लिये यह न्यूनतम 2 हेक्टेयर भी है।
- उद्देश्य:
- नीलामी के लिये अधिक खनिज ब्लॉकों की पहचान करना और इस प्रकार अन्वेषण एवं उत्पादन की गति में वृद्धि करना, जिसके परिणामस्वरूप देश में खनिजों की उपलब्धता में सुधार हो सकेगा।
- महत्त्व:
- यह नीलामी में अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित करेगा और प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देगा।
- यह राज्य सरकारों को समग्र लाइसेंस की नीलामी के लिये और अधिक ब्लॉकों की पहचान करने की सुविधा प्रदान करेगा।
- खनन से संबंधित पहलें:
- राष्ट्रीय खनिज नीति 2019
- नीलाम किये गए ग्रीनफील्ड खनिज ब्लॉकों का शीघ्र संचालन सुनिश्चित करने हेतु पहल शुरू की गई है।
- खनन क्षेत्र में करों को युक्तिसंगत बनाने पर भी विचार किया जा रहा है।
- ‘आत्मनिर्भर भारत योजना’ के तहत खनिज क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ाने और अन्य सुधारों की घोषणा की गई है।
- ज़िला खनिज फाउंडेशन निधि
भारत में खनिज:
- भारत खनिज संसाधनों की दृष्टि से समृद्ध है। अन्वेषणों में 20,000 से अधिक ज्ञात खनिज ज़मा और 60 से अधिक खनिजों के पुनर्प्राप्ति योग्य भंडार पाए गए हैं।
- भारत के 11 राज्यों (आंध्र प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान और कर्नाटक) में कुल परिचालन खदानों की संख्या का 90% हिस्सा है।
- विश्व स्तर पर भारत को क्रोमाइट, लौह अयस्क, कोयला और बॉक्साइट जैसे मूल्यवान खनिजों के प्रमुख उत्पादकों में से एक के रूप में स्थान दिया गया है।
- भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्र लगभग 328 मिलियन हेक्टेयर है, जिसमें से खनन पट्टा (ईंधन, परमाणु और लघु खनिजों के अलावा) लगभग 0.14% है, जिसका बमुश्किल 20% खनन किया जाता है।.
- भारतीय उप-मृदा तटवर्ती और अपतटीय कच्चे तेल एवं गैस, कोयला, लौह अयस्क, तांबा, बॉक्साइट, आदि से समृद्ध है।
- भारत 95 खनिजों का उत्पादन करता है, जिसमें 4 ईंधन, 10 धातु, 23 गैर-धातु, 3 परमाणु और 55 लघु खनिज (भवन और अन्य सामग्री सहित) शामिल हैं।