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भारतीय राजनीति

विरोध का अधिकार

  • 22 Oct 2021
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये: 

विरोध का अधिकार, अनुच्छेद 19

मेन्स के लिये:  

विरोध का अधिकार- संबंधित प्रावधान तथा इस संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय 

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि किसानों को विरोध करने का अधिकार है, लेकिन सड़कों (नागरिकों के आवागमन के अधिकार में बाधा) को अनिश्चित काल के लिये अवरुद्ध नहीं किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • विरोध का अधिकार:
    • हालाँकि विरोध का अधिकार मौलिक अधिकारों के तहत एक स्पष्ट अधिकार नहीं है, इसे अनुच्छेद 19 के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत  शामिल किया जा सकता है।
      • अनुच्छेद 19(1)(a): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सरकार के आचरण पर स्वतंत्र रूप से अपनी राय व्यक्त करने का अधिकार देता है।
      • अनुच्छेद 19(1)(b): राजनीतिक उद्देश्यों के लिये संघ बनाने के लिये संघ (Association) के अधिकार की आवश्यकता होती है।
        • इनका गठन सरकार के निर्णयों को सामूहिक रूप से चुनौती देने के लिये किया जा सकता है।
      • अनुच्छेद 19(1)(c) : शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने का अधिकार लोगों को प्रदर्शनों, आंदोलनों और सार्वजनिक सभाओं द्वारा सरकार के कार्यों पर सवाल उठाने तथा आपत्ति जताने व निरंतर विरोध आंदोलन शुरू करने की अनुमति देता है।
      • ये अधिकार प्रत्येक नागरिक को शांतिपूर्वक ढंग से एकत्रित होने और राज्य की कार्रवाई या निष्क्रियता का विरोध करने में सक्षम बनाते हैं।
    • विरोध का अधिकार यह सुनिश्चित करता है कि लोग सजगता/निगारानी पूर्ण ढंग से कार्य कर सकें और सरकारों के कृत्यों की लगातार निगरानी कर सकें।
      • यह सरकारों को उनकी नीतियों और कार्यों के बारे में प्रतिक्रिया प्रदान करता है जिसके बाद संबंधित सरकार परामर्श, बैठकों और चर्चा के माध्यम से अपनी गलतियों को पहचानती है और सुधारती है।
  • विरोध के अधिकार पर प्रतिबंध:
    • अनुच्छेद 19(2) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाता है। ये उचित प्रतिबंध निम्नलिखित आधार पर लगाए गए हैं:
      • भारत की संप्रभुता और अखंडता,
      • राज्य की सुरक्षा,
      • विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध,
      • सार्वजनिक व्यवस्था,
      • शालीनता या नैतिकता
      • न्यायालय की अवमानना,
      • मानहानि
      • किसी अपराध के लिये उकसाना।
    • इसके अलावा, विरोध के दौरान हिंसा का सहारा लेना नागरिकों के एक प्रमुख मौलिक कर्तव्य का उल्लंघन है।
      • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A में मौलिक कर्त्तव्यों के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक के लिये "सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने और हिंसा से दूर रहने" का प्रावधान किया गया है।
  • संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2019 में शाहीन बाग विरोध के संबंध में याचिका पर सुनवाई करते हुए कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार को बरकरार रखा, लेकिन यह भी साफ कर दिया कि अनिश्चित काल के लिये सार्वजनिक रास्तों और सार्वजनिक स्थानों पर कब्ज़ा नहीं किया जा सकता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने मज़दूर किसान शक्ति संगठन बनाम भारत संघ और एक अन्य मामले में अपने 2018 के फैसले का उल्लेख किया, जो दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शनों से संबंधित था।
      • निर्णय ने स्थानीय निवासियों के हितों को प्रदर्शनकारियों के हितों के साथ संतुलित करने का प्रयास किया और पुलिस को शांतिपूर्ण विरोध एवं प्रदर्शनों हेतु क्षेत्र के सीमित उपयोग के लिये एक उचित व्यवस्था करने तथा इसके लिये मानदंड निर्धारित करने का निर्देश दिया।
    • रामलीला मैदान घटना बनाम गृह सचिव, भारत संघ एवं अन्य मामले (2012) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था, "नागरिकों को एकत्रित होने और शांतिपूर्ण विरोध का मौलिक अधिकार है जिसे एक मनमानी कार्यकारी या विधायी कार्रवाई से नहीं हटाया जा सकता है"।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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