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विशेष : अश्गाबात समझौते का सदस्य बना भारत

  • 06 Feb 2018
  • 16 min read

संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
3 फरवरी को भारत को अश्गाबात (Ashgabat) समझौते में उसका बहुप्रतीक्षित स्थान मिल गया और इससे फारस की खाड़ी तथा मध्य एशियाई देशों के बीच माल परिवहन आसान बनाने वाले अश्गाबात समझौते में भारत विधिवत शामिल हो गया। उज्बेकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान और ओमान इसके संस्थापक देश हैं, जिनके बीच यह पारगमन समझौता 25 अप्रैल, 2011 को हुआ था। साथ ही उज्बेकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान और ओमान के विदेश मंत्रियों की बैठक में इन देशों के साथ कतर के बीच परिवहन गलियारा बनाने का समझौता हुआ।

कतर बाहर, कज़ाकिस्तान-पाकिस्तान अंदर 

  • 2013 में कतर इस समझौते से बाहर आ गया। इसके बाद इस पर दोबारा काम शुरू हुआ और इसीलिये इसे लागू करने में देरी हुई।
  • बाद में इस समझौते से कज़ाकिस्तान भी 15 फरवरी 2015 को जुड़ गया। 
  • 2016 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने इसमें शामिल होने की घोषणा की। 
  • 23 मार्च, 2016 को भारत सरकार ने इस समझौते में शामिल होने का फैसला किया। 

व्यापक विचार-विमर्श के बाद अश्गाबात समझौते में प्रमुख राष्ट्र (डिपोजिटरी स्टेट) के रूप में तुर्कमेनिस्तान द्वारा भारत को सूचित किया गया कि चारों संस्थापक सदस्यों ने भारत को इसमें शामिल करने पर अपनी सहमति दे दी है। इसके बाद ही भारत को इस समझौते का सदस्य बनाया गया। इस समझौते का नाम तुर्कमेनिस्तान की राजधानी अश्गाबात के नाम पर रखा गया है। इस समझौते को उज्बेकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति इस्माइल करीमोव के दिमाग की उपज माना जाता है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

इस समझौते के तहत दो चरणों में काम होना है:

  • पहले चरण में उज्बेकिस्तान, ईरान, तुर्कमेनिस्तान को रेल लाइन से जोड़ा जाना है।
  • दूसरे चरण में समुद्री मार्ग के ज़रिये ईरान के बंदर अब्बास और चाबहार बंदरगाहों तक माल गलियारा विकसित किया जाना है। 

भारत को होने वाले लाभ 

  • अश्गाबात समझौता मध्य एशिया एवं फारस की खाड़ी के बीच वस्तुओं की आवाजाही को सुगम बनाने वाला एक अंतरराष्ट्रीय परिवहन एवं पारगमन गलियारा है।  
  • इस समझौते में शामिल होने से भारत को यूरेशिया क्षेत्र के साथ व्यापार एवं व्यावसायिक संपर्क बढ़ाने में आसानी होगी। 
  • इससे भारत को ईरान के रास्ते से होकर मध्य एशिया में पहुँचने की एक और राह मिल गई है।
  • भारत चाबहार से अफगानिस्तान तक जो रास्ता बना रहा है, वह अश्गाबात परिवहन एवं पारगमन गलियारे से भी जुड़ेगा।
  • इस समझौते से जुड़े देश भौगोलिक रूप से भारत से बहुत अधिक दूर नहीं हैं, लेकिन इनसे हमारा संपर्क बेहद कम है। 
  • भारत लंबे समय से यूरोप और मध्य एशिया तक अपनी पहुँच बनाने के लिये सुगम, सस्ते  तथा छोटे रास्ते खोजने में लगा है। 
  • पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत के लिये मध्य एशिया और यूरोप तक समुद्री पहुँच बनाना संभव नहीं था, लेकिन अश्गाबात समझौते में शामिल होने के बाद भारत की राह कुछ आसान अवश्य हो जाएगी। 

यह समझौता भारत के उत्पाद यूरोप तक पहुँचाने में मददगार साबित होगा।  इसके अलावा, यह संपर्क बढ़ाने के लिये अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) को क्रियान्वित करने के भारत के प्रयासों को समन्वित करेगा।

अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी)
चीन की ‘वन बेल्ट, वन रोड’ पहल की पृष्ठभूमि में ईरान, रूस, भारत के सहयोग वाले बहुपक्षीय परिवहन कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कोरिडोर (आईएनएसटीसी) का महत्त्व काफी बढ़ गया है जो हिंद महासागर और फारस की खाड़ी को ईरान के जरिये कैस्पियन सागर से जोड़ेगा और फिर रूस से होते हुए उत्तरी यूरोप तक पहुंच बनाएगा। 

  • इस अंतरराष्ट्रीय गलियारे की परिकल्पना को सितंबर 2000 में तब आगे बढ़ाया गया था, जब सेंट पीटर्सबर्ग में इसको लेकर कुछ देशों के बीच सहमति बनी। 
  • रूस, भारत और ईरान के बीच लगभग 7200 किमी. लंबे आईएनएसटीसी  के लिये समझौता हुआ था।
  • उपरोक्त तीनों देशों के अलावा अज़रबैजान, बेलारूस, आर्मेनिया और कज़ाकिस्तान भी आईएनएसटीसी में शामिल हैं। 
  • इसके अमल में आने पर भारत से माल को पहुँचाने के समय और लागत में 30 से 40 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है। अभी भारत से रूस तक माल परिवहन में 50 से 55 दिन का समय लगता है और इसीलिये रूसी कारोबारी चीन, तुर्की या दुबई से आवश्यक वस्तुओं का आयात करते हैं, क्योंकि वे इतने लंबे समय तक पैसा फँसाना नहीं चाहते। 
  • इसके तहत माल परिवहन के लिये जहाज़, सड़क और रेलमार्ग द्वारा मध्य एशिया तथा यूरोप के बीच कनेक्टिविटी कायम करने का लक्ष्य रखा गया है। 
  • आईएनएसटीसी का उद्देश्य मुंबई, मास्को, बाकू, तेहरान, बंदर अब्बास, अस्त्राखान और बंदर अंज़ली जैसे महत्त्वपूर्ण बंदरगाहों के बीच संपर्क कायम करना है।
  • आईएनएसटीसी परियोजना क्रियान्वित होने पर यह परिवहन समय घटकर लगभग आधा रह जाएगा और माल की परिवहन लागत भी घट जाएगी। 
  • यह परिवहन गलियारा जब पूरी तरह संचालन में आ जाएगा तो भारत और यूरेशिया के बीच सामानों की आवाजाही की अवधि और लागत में कमी आएगी तथा भारत एवं साधन संपन्न रूस के साथ-साथ यूरोप के बाज़ारों में आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ेंगी।
  • इस परियोजना में ईरान के चाबहार बंदरगाह की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, जिसका विकास भारत के सहयोग से किया जा रहा है। चाबहार बंदरगाह का सर्वश्रेष्ठ उपयोग करने से भारत के लिये मध्य एशिया तक पहुँच आसान हो जाएगी। 
  • पश्चिम एवं मध्य एशिया में भारत के सामरिक हितों और दक्षिण, मध्य एवं पश्चिम क्षेत्र के बीच वृहद् आर्थिक तथाऊर्जा सहयोग की जरूरत को देखते हुए विस्तारित पड़ोस की अवधारणा के लिये आईएनएसटीसी परियोजना महत्त्वपूर्ण है। 

चीन की चुनौती
चीन हमारा सबसे बड़ा पड़ोसी देश है और आर्थिक रूप से मज़बूत चीन का उदय एक ऐसी वास्तविकता है जिसका सामना आज संपूर्ण विश्व कर रहा है। चीन के साथ हमारे संबंधों में प्रभाव और संसाधनों के लिये उत्तरोत्तर बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा के स्थिति बनी हुई है और बनी रहेगी, क्योंकि दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्था का तीव्र विकास हो रहा है। 

भारत और चीन ने अनेक क्षेत्रों में बातचीत तथा द्विपक्षीय संबंधों को गहन बनाने के लिये पिछले कुछ वर्षों के दौरान कई प्रयास किये हैं और अनसुलझे सीमा प्रश्न के बावजूद भारत-चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में अमन-चैन कायम रहा है। 

किसी अन्य देश की तुलना में चीन के साथ भारत के व्यापार में तीव्र वृद्धि हुई है। भारत चीन के साथ अपने संबंधों को  केवल प्रतिस्पर्द्धा के रूप में नहीं देखता, बल्कि यह मानता है कि दोनों देश साथ-साथ आगे बढ़े हैं। अपनी सैन्य ताकत, तीव्र सैन्य आधुनिकीकरण और स्पष्ट आर्थिक क्षमताओं को प्रदर्शित करने की चीन की उत्तरोत्तर बढ़ती क्षमता से हमारे क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति के समीकरण में बड़ा बदलाव आया है। इन कारणों से आज भारत-चीन समीकरणों की जटिलता और बढ़ी है।

(टीम दृष्टि इनपुट)

  • चीन की ओर से पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर से होते हुए ‘वन बेल्ट, वन रोड’ परियोजना पर पहल तेज़ होने के बीच अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन  गलियारे को काफी महत्त्वपूर्ण माना जा रहा है। 
  • 2005 से 2012 तक इस परियोजना के विकास की रफ्तार काफी मंद रही थी और 2013 में इसका पहला ड्राई रन संचालित किया गया था। 

हो चुका है ड्राई रन 
न्हावा शेवा (मुंबई)-बंदर अब्बास (ईरान)-बाकू (अज़रबैजान) मार्ग पर आईएनएसटीसी का ड्राई रन किया जा चुका है। इस ड्राई रन का उद्देश्य इसकी राह में आने वाली बाधाओं एवं कमियों का पता लगाना था। ड्राई रन द्वारा पता लगाई गई कुछ कमियाँ भारत से  ईरान के लिये अनियमित शिपिंग सेवाएँ, बिल ऑफ लोडिंग के लिये बीमा कवर, अपेक्षित नॉन वेसल कंटेनर कैरियर आदि का नहीं होना हैं। चूँकि आईएनएसटीसी एक बहुपक्षीय करार है, इसलिये इन कमियों को दूर करने के उपायों और आईएनएसटीसी के प्रचालन के लिये तय की गई समय-सीमा के बारे में संबंधित पक्षों को साथ मिल-बैठकर विचार करना होगा।

(टीम दृष्टि इनपुट)

कनेक्टिविटी से जुड़ी अन्य परियोजनाएँ जिनसे भारत जुड़ा है 

  • चाबहार-जाहेदान रेल लाइन 
  • बीबीआईएन परियोजना 
  • ढाका-चेन्नई-कोलंबो एयर कनेक्टिविटी 
  • चटगाँव-कोलकाता-कोलंबो शिपिंग कनेक्टिविटी
  • बांग्लादेश-उत्तर बंगाल रेल लिंक
  • भारत के ज़रिये बांग्लादेश-भूटान इंटरनेट केबल योजना 
  • गेलीफुंग (भूटान) से भारत होते हुए नकुगाँव (बांग्लादेश) लैंड पोर्ट योजना 
  • कोलकाता-सितवे बंदरगाह कनेक्टिविटी के लिये कालादान परियोजना
  • भारत-म्यांमार-थाईलैंड के बीच 1360 किमी. लंबी एशियन ट्राईलेटरल हाईवे परियोजना 
  • एशियाई राजमार्ग परियोजना 
  • आसियान संपर्क योजना

RCEP और भारत 

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) एक मुक्त व्यापार समझौता है, जिसकी औपचारिक शुरुआत 2012 में कंबोडिया में आयोजित 21वें आसियान शिखर सम्मेलन में हुई थी। 
  • इसका उद्देश्य व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिये इसके सदस्य देशों के बीच व्यापार नियमों को उदार एवं सरल बनाना है।
  • भारत इसे अमलीजामा पहनाने का समर्थन तो करता है, साथ ही यह सुनिश्चित भी करना चाहता है कि इसमें शामिल एशिया-प्रशांत क्षेत्र के सभी 16  देशों के बीच यह संतुलित हो, ताकि इस मेगा व्यापार समझौते का लाभ सभी को समान रूप से मिल सके। 
  • आरसीईपी के प्रमुख साझेदार देशों में ज़्यादातर पूर्वी एशियाई देश शामिल हैं, जो भारत के विपरीत (जिसकी घरेलू अर्थव्यवस्था ही इसकी मुख्य शक्ति है) निर्यात आधारित विकास मॉडल में विशेषज्ञता हासिल किये हुए हैं।
  • यह मेगा मुक्त व्यापार समझौता आसियान के 10 सदस्य देशों तथा छह अन्य देशों (ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) के बीच होना है, जिनके साथ आसियान का मुक्त व्यापार समझौता है
  • इसके सदस्य देशों की कुल जीडीपी लगभग 24 ट्रिलियन डॉलर और इसकी जनसंख्या विश्व की कुल जनसंख्या का 39 प्रतिशत है। 
  • ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम इसके सदस्य हैं तथा ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड सहभागी देश हैं।

(टीम दृष्टि इनपुट)

निष्कर्ष: आर्थिक शक्ति के एशिया में स्थानांतरण होने की पृष्ठभूमि में भारत की वैश्विक भूमिका का उल्लेख निरंतर किया जाता रहा है। वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में होने वाली आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद भारत के गतिशील विकास की चर्चा अनिवार्य रूप से लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर की जाती है। विश्व की एक प्रमुख अर्थव्यवस्था, सिद्ध वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिक क्षमताओं के साथ एक ज़िम्मेदार परमाणु शस्त्र संपन्न देश तथा स्थिर लोकतंत्र के रूप में भारत का बदलाव सही मायनों में एक बड़ी उपलब्धि है। अपनी जनसंख्या, अपने संसाधनों और सामरिक अवस्थिति के आधार पर आज भारत का शुमार विश्व की बड़ी ताकतों में होने लगा है। पूंजीगत प्रवाह, प्रौद्योगिकी और नवाचारों तक पहुँच, एक मुक्त, स्वच्छ एवं खुली विश्व व्यापार व्यवस्था को बढ़ावा देना भारत जैसे देश की विकास अनिवार्यताओं के अनुरूप है। इसके लिये शांतिपूर्ण एवं स्थिर पड़ोस और शांतिपूर्ण वाह्य परिवेश तथा महत्त्वपूर्ण ताकतों के साथ संतुलित संबंधों और एक स्थायी एवं न्यायसंगत बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था की आवश्यकता है। पिछले कुछ समय से वैश्विक पटल पर भारत से एक नई किस्म की वैश्विक भूमिका निभाने की अपेक्षा की जाती रही है और भारत यह भूमिका निभा भी रहा है।

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