डेली न्यूज़ (20 Jul, 2024)



एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में भर्ती संबंधी चिंताएँ

प्रिलिम्स के लिये:

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) योजना, जनजातीय क्षेत्र, जनजातीय शिक्षा, स्थानीय भाषा और संस्कृति। 

मेन्स के लिये:

हिंदी दक्षता की आवश्यकता, भर्ती का केंद्रीकरण

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

देश भर में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (Eklavya Model Residential Schools- EMRS) के लिये शिक्षक भर्ती के संबंध में केंद्रीय बजट 2023 में किये गए हालिया संशोधनों जिनके अंतर्गत भर्ती के केंद्रीकरण ने हिंदी दक्षता को अनिवार्य किया है जिसने कई प्रकार की चिंताओं को उज़ागर किया है।

  • इस परिवर्तन के कारण हिंदी भाषी राज्यों से भर्ती किये गए कई शिक्षक दक्षिणी राज्यों में नियुक्ति के खिलाफ विरोध कर रहे हैं, क्योंकि ये यहाँ की भाषा, भोजन और संस्कृति से अपरिचित हैं इस कारण बड़ी संख्या में इनके द्वारा स्थानांतरण का अनुरोध किया जा रहा है।
  • इससे संबंधित एक और चिंता यह भी है कि इन परिवर्तनों ने जनजातीय विद्यार्थियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जिन्हें ऐसे शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जा रहा है जो स्थानीय भाषा और संस्कृति से अपरिचित हैं।

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) क्या हैं?

  • EMRS पूरे भारत में भारतीय जनजातियों (ST-अनुसूचित जनजाति) के लिये मॉडल आवासीय विद्यालय बनाने की एक योजना है। इसकी शुरुआत वर्ष 1997-98 में हुई थी। 
    • इन विद्यालयों का विकास जनजातीय विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये किया जा रहा है, जिसमें शैक्षणिक के साथ-साथ समग्र विकास की ओर भी ध्यान दिया जाएगा।
    • EMRS में CBSE पाठ्यक्रम का अनुसरण किया जाता है।
  • इस योजना का उद्देश्य जवाहर नवोदय विद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों की तरह ही विद्यालय बनाना है, जिसमें स्थानीय कला तथा संस्कृति को संरक्षित करने के लिये अत्याधुनिक सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, साथ ही खेल एवं कौशल विकास में प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाएगा। वित्त वर्ष 2018-19 में EMRS योजना को नया रूप दिया गया।
  • संसद के वर्ष 2023 के बजट सत्र के दौरान, वित्त मंत्री ने घोषणा की कि EMRSमें कर्मचारियों की भर्ती की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय आदिवासी छात्र शिक्षा सोसायटी (National Education Society for Tribal Students- NESTS) को हस्तांतरित की जाएगी।
    • NESTS को अब देश भर में 400 से अधिक एकलव्य स्कूलों में 38,000 पदों पर स्टाफ उपलब्ध कराने का काम सौंपा गया है।
    • भर्ती के केंद्रीकरण का उद्देश्य EMRS प्रणाली में शिक्षकों की गंभीर कमी को दूर करना तथा राज्यों में भर्ती नियमों को मानकीकृत करना था।

नोट: जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) के तहत, आदिवासी छात्रों के लिये राष्ट्रीय शिक्षा सोसायटी (NESTS) की स्थापना एक स्वतंत्र संस्था के रूप में की गई थी। इसका लक्ष्य एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में शिक्षकों एवं छात्रों के प्रशिक्षण के साथ-साथ क्षमता निर्माण करना है।

जनजातीय शिक्षा हेतु अन्य पहल

  • राजीव गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप योजना (RGNF): RGNF की शुरुआत वर्ष 2005-2006 में की गई थी जिसका उद्देश्य ST समुदाय के छात्रों को विज्ञान, मानविकी, सामाजिक विज्ञान तथा इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी में नियमित और पूर्णकालिक एम.फिल तथा पीएचडी डिग्री जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करना था।
  • जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र: इस योजना का उद्देश्य ST छात्रों की योग्यता और साथ ही वर्तमान बाज़ार रुझान के आधार पर उनके कौशल का विकास करना है।
  • राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति योजना: यह अनुसूचित जातियों, विमुक्त घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों, भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा पारंपरिक कारीगरों की श्रेणी से संबंधित निम्न आय वाले छात्रों को विदेश में अध्ययन करके उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा प्रदान करने के लिये एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है।
  • जनजातीय स्कूलों के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के लिये पहल: इस पहल का उद्देश्य सामाजिक कल्याण तथा सतत् विकास हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता पाठ्यक्रम प्रदान करके, शिक्षकों के प्रशिक्षण एवं AI-आधारित परियोजनाओं पर छात्रों को परामर्श देकर एक समावेशी, कौशल-आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। 

EMRS में भर्ती से संबंधित हालिया मुद्दा क्या है?

  • हिंदी दक्षता की आवश्यकता:
    • हाल ही में भर्ती के केंद्रीकरण ने हिंदी दक्षता को अनिवार्य आवश्यकता के रूप में पेश किया है।
    • इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में हिंदी भाषी राज्यों से भर्ती किये गए कर्मचारियों को दक्षिणी राज्यों में EMRS में तैनात किया जा रहा है, जहाँ की भाषा, भोजन और संस्कृति उनके लिये अपरिचित है।
    • सरकार ने कहा है कि बुनियादी हिंदी भाषा दक्षता की आवश्यकता असामान्य नहीं है क्योंकि यह जवाहर नवोदय विद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों में भर्ती के लिये भी अनिवार्य है।
  • आदिवासी छात्रों पर प्रभाव:
    • एकलव्य विद्यालयों में अधिकांश आदिवासी विद्यार्थी ऐसे शिक्षकों से लाभान्वित होंगे जो उनके स्थानीय सांस्कृतिक संदर्भों को समझते हैं, क्योंकि इन समुदायों के पास बहुत विशिष्ट संदर्भ होते हैं जिनके तहत शिक्षण को अनुकूल बनाया जा सकता है।
      • सरकारी अधिकारियों ने कहा कि भर्ती किये गए शिक्षकों से दो वर्ष के भीतर स्थानीय भाषा सीखने की अपेक्षा की जाती है लेकिन भर्ती किये गए शिक्षकों में एक नई, पूर्ण रूप से अलग भाषा सीखने को लेकर आशंकाएँ हैं।
    • गैर-स्थानीय शिक्षकों की नियुक्ति से जनजातीय विद्यार्थियों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि वे ऐसे शिक्षकों के साथ तालमेल नहीं बैठा पाएंगे जो उनके सांस्कृतिक संदर्भ से परिचित नहीं हैं।

आगे की राह 

  • स्थानीयकृत भर्ती:
    • शिक्षकों का छात्रों के सांस्कृतिक और भाषाई संदर्भों से परिचित होना सुनिश्चित करने हेतु शिक्षकों की भर्ती में स्थानीय समुदायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • स्थानीय परंपराओं का सम्मान करते हुए शिक्षण विधियों की विविधता सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय और गैर-स्थानीय दोनों प्रकार के शिक्षकों की भर्ती की जानी चाहिये।
  • भाषा संबंधी अनुकूल आवश्यकताएँ:
    • गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में अनुकूलन की अनुमति देने के लिये भर्ती में अनिवार्य हिंदी योग्यता आवश्यकता का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
    • शिक्षकों को उनके नियोजित किये गए क्षेत्रों की स्थानीय भाषाएँ सीखने के लिये भाषा सहायता कार्यक्रमों को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • सांस्कृतिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण:
    • सभी शिक्षकों, विशेष रूप से गैर-स्थानीय क्षेत्रों के शिक्षकों को व्यापक सांस्कृतिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये ताकि उन्हें उस समुदाय को समझने और उसमें एकीकृत होने में मदद मिल सके जिसकी वे सेवा करेंगे।
    • स्थानीय सांस्कृतिक संदर्भों और भाषा कौशल पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्तमान में जारी पेशेवर/व्यावसायिक विकास कार्यक्रमों का उन्नयन किया जाना चाहिये।
  • नीति समीक्षा:
    • शिक्षकों और छात्रों दोनों पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिये भर्ती नीति की नियमित समीक्षा की जानी चाहिये ताकि उभरते मुद्दों को संबोधित करने के लिये आवश्यक समायोजन किये जा सकें।
    • नीतियों का विभिन्न राज्यों के विविध सांस्कृतिक और भाषाई परिदृश्यों के अनुकूल होना सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) से संबंधित मुद्दों पर चर्चा कीजिये। साथ ही यह भी बताइए कि उन्हें कैसे हल किया जाए?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में विशिष्टत: असुरक्षित जनजातीय समूहों ख्पर्टिकुलरली वल्नरेबल ट्राइबल ग्रुप्स (PVTGs)] के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

1. PVTGs देश के 18 राज्यों तथा एक संघ राज्यक्षेत्र में निवास करते हैं।
2. स्थिर या कम होती जनसंख्या, PVTG स्थिति के निर्धारण के मानदंडों में से एक है।
3. देश में अब तक 95 PVTGs आधिकारिक रूप से अधिसूचित हैं।
4. PVTGs की सूची में ईरूलार और कोंडा रेड्डी जनजातियाँ शामिल की गई हैं।

उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं?

(a) 1, 2 और 3
(b) 2, 3 और 4
(c) 1, 2 और 4
(d) 1, 3 और 4

उत्तर: (c)


निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिये आरक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 16(4), अनुच्छेद 16(2), अनुच्छेद 19(1)(g), अनुच्छेद 19(1)(d) एवं (e), संवैधानिक नैतिकता, आरक्षण नीति

मेन्स के लिये:

निवास के आधार पर आरक्षण: वैधता, पक्ष और विपक्ष में तर्क, आगे की राह

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक सरकार ने उद्योग जगत की आलोचना के बाद निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिये आरक्षण अनिवार्य करने वाले “उद्योगों, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के कर्नाटक राज्य रोज़गार विधेयक, 2024” पर प्रतिबंध लगा दिया है।

  • सरकार ने अब राज्य विधानसभा में विधेयक को पुनः प्रस्तुत करने से पहले इसकी व्यापक समीक्षा करने का निर्णय लिया है।

हरियाणा में 10% अग्निवीर कोटा

  • हाल ही में हरियाणा सरकार ने वर्ष 2022 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई अग्निपथ योजना के तहत भर्ती होने वाले अग्निवीरों के लिये रोज़गार के अवसर प्रदान करने की घोषणा की है। इसमें निम्नलिखित प्रावधान किये गए हैं-
    • कांस्टेबल, माइनिंग गार्ड, फॉरेस्ट गार्ड, जेल वार्डर और एसपीओ भर्तियों में 10% आरक्षण।
    • ग्रुप-बी और ग्रुप-सी के पदों के लिये आयु में छूट।
    • ग्रुप-सी में 5% और ग्रुप-बी की सीधी भर्तियों में 1% आरक्षण।
    • अग्निवीरों को काम पर रखने वाली निजी फर्मों के लिये सब्सिडी।
    • बिज़नेस स्टार्टअप के लिये ऋण ब्याज लाभ।
    • अग्निवीरों के लिये शस्त्र लाइसेंस और सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता।

कर्नाटक का निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिये आरक्षण विधेयक क्या है?

  • आरक्षण नीति: विधेयक कर्नाटक में निजी क्षेत्र की कंपनियों, उद्योगों और उद्यमों के भीतर गैर-प्रबंधन पदों में 'स्थानीय उम्मीदवारों' के लिये 75% तथा प्रबंधन पदों पर 50% का पर्याप्त आरक्षण अनिवार्य करता है।
  • 'स्थानीय उम्मीदवार' की परिभाषा: यह "स्थानीय उम्मीदवारों" को ऐसे व्यक्तियों के रूप में परिभाषित करता है जो राज्य में पैदा हुए हैं या कम-से-कम 15 वर्षों से कर्नाटक में रह रहे हैं एवं कन्नड़ बोलने, पढ़ने और लिखने में सक्षम हैं।
  • कार्य वर्गीकरण: यह कार्यों को प्रबंधन और गैर-प्रबंधन भूमिकाओं में वर्गीकृत करता है
    • प्रबंधन भूमिकाओं में पर्यवेक्षी, प्रबंधकीय, तकनीकी, संचालनात्मक और प्रशासनिक पद शामिल होंगे।
    • गैर-प्रबंधन भूमिकाओं में आईटी-आईटीईएस सेक्टर में लिपिक, अकुशल, अर्द्ध-कुशल और कुशल पद शामिल होंगे।
  • कौशल विकास प्रावधान: उद्योगों को स्थानीय उम्मीदवारों के लिये कौशल अंतर को दूर करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने की आवश्यकता होती है, योग्य स्थानीय उम्मीदवारों की अनुपस्थिति में कार्यान्वयन के लिये 3 वर्ष की समय-सीमा होती है।
  • लचीले प्रावधान: यह विशिष्ट परिस्थितियों में गैर-प्रबंधन पदों पर आरक्षण कोटा में कमी करके 50% तथा प्रबंधन पदों पर 25% करने का प्रावधान करता है।

नोट:

  • आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं झारखंड सहित कई राज्यों ने भी नौकरी में आरक्षण के लिये मूल निवासियों से संबंधित विधेयक या विनियमन की घोषणा की है।
  • आंध्र प्रदेश विधानसभा में वर्ष 2019 में पारित जॉब कोटा बिल में स्थानीय लोगों के लिये तीन-चौथाई निजी नौकरियाँ भी आरक्षित की गईं।

निवास-आधारित आरक्षण से संबंधित विधिक चुनौतियाँ क्या हैं?

  • समानता एवं सकारात्मक कार्रवाई में संतुलन: निवास-आधारित आरक्षण भारत के संविधान के अंर्तगत एक विधिक चुनौती प्रस्तुत करता है।
    • अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है, जबकि अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध) तथा अनुच्छेद 16 (सार्वजनिक रोज़गार में अवसर की समानता) गैर-निवासी उम्मीदवारों के प्रति पूर्वाग्रह के बिना पिछड़े वर्गों को लाभ पहुँचाने के लिये विशेष प्रावधान की अनुमति प्रदान करते हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के निर्णय:
    • डॉ. प्रदीप जैन बनाम भारत संघ (1984) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यद्यपि स्थानीय उम्मीदवारों को कुछ वरीयता दी जा सकती है, लेकिन यह पूर्णतः नहीं होनी चाहिये और गैर-स्थानीय उम्मीदवारों को पूरी तरह से इससे वंचित नहीं किया जाना चाहिये।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश सरकार से बी.एड सीटों में 75% अधिवास कोटा की समीक्षा करने को कहा।
    • नवंबर 2023 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिये 75% आरक्षण अनिवार्य करने वाले हरियाणा के कानून को असंवैधानिक माना।
    • न्यायालय ने नागरिकों के बीच कृत्रिम विभाजन पैदा करने और अहस्तक्षेप सिद्धांतों को बाधित करने के लिये कानून की आलोचना की। इसके बाद, हरियाणा सरकार ने इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।
  • कोटे की सीमा: इंद्रा साहनी मामले (1992) में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया था कि कुल आरक्षण, जिसमें स्थानीय आरक्षण भी शामिल है, उपलब्ध सीटों या पदों के 50% से अधिक नहीं होना चाहिये। यह सीमा आरक्षण की सभी श्रेणियों पर लागू होती है, जैसा कि मुख्य रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये आरक्षण को संबोधित करने वाले फैसले पर ज़ोर दिया गया है।

निजी क्षेत्र आरक्षण विधेयक के पक्ष में तर्क क्या हैं?

  • स्थानीय रोज़गार सृजन: इस नीति का उद्देश्य स्थानीय निवासियों के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ाना, बेरोज़गारी को कम करना तथा यह सुनिश्चित करना है कि आर्थिक लाभ राज्य के भीतर ही बरकरार रहें
  • आर्थिक समता एवं संतुलित क्षेत्रीय विकास: इस नीति का उद्देश्य राज्य के भीतर संसाधन वितरण में असमानताओं को दूर करके आर्थिक समानता को बढ़ावा देना है।
    • इसके अतिरिक्त यह आर्थिक अवसरों को केवल कुछ शहरी केंद्रों तक ही सीमित रखने के बजाय विभिन्न क्षेत्रों में फैलाकर संतुलित क्षेत्रीय विकास का समर्थन करता है।
  • कौशल विकास: अनिवार्य प्रशिक्षण कार्यक्रम स्थानीय कार्यबल के कौशल को बढ़ा सकते हैं, जिससे वे अधिक प्रतिस्पर्द्धी बन सकते हैं तथा उद्योग की मांगों को पूरा करने के लिये बेहतर ढंग से सक्षम हो सकते हैं।
  • सामाजिक स्थिरता: स्थानीय लोगों को अधिक रोज़गार के अवसर प्रदान करने से उनमें अपनत्व की भावना को बढ़ावा मिलेगा, सामाजिक तनाव कम होगा तथा सामुदायिक सद्भाव को बढ़ावा मिलेगा
  • प्रतिभा प्रतिधारण: यह नीति राज्य के भीतर कुशल व्यक्तियों संलग्न रखने, प्रतिभा पलायन को रोकने और उनकी विशेषज्ञता को स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान सुनिश्चित करने में मदद कर सकती है।
  • सांस्कृतिक संरक्षण: भाषा दक्षता की आवश्यकता स्थानीय भाषा और संस्कृति को संरक्षित तथा बढ़ावा देने में मदद करती है, जिससे एक मज़बूत सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा मिलता है।

निजी क्षेत्र आरक्षण विधेयक के विरुद्ध तर्क क्या हैं?

  • व्यावसायिक प्रतिस्पर्द्धा पर प्रभाव: यह नीति कंपनियों की सर्वोत्तम प्रतिभाओं को नियुक्त करने की क्षमता को सीमित कर सकती है, जिससे उनकी कार्यकुशलता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
  • कौशल की कमी: स्थानीय कार्यबल में विशिष्ट भूमिकाओं के लिये आवश्यक कौशल का अभाव हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप परिचालन अक्षमताएँ और प्रशिक्षण लागत में वृद्धि हो सकती है।
  • निवेश निरोधक: स्थानीय स्तर पर नियुक्ति संबंधी प्रतिबंध घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों को हतोत्साहित कर सकते हैं, जिससे राज्य के आर्थिक विकास तथा रोज़गार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • विधिक एवं प्रशासनिक बोझ: नीति का अनुपालन सुनिश्चित करने के क्रम में कंपनियों को अतिरिक्त विधिक एवं प्रशासनिक लागत का सामना करना पड़ सकता है।
  • भेदभाव संबंधी चिंताएँ: इस नीति की आलोचना इस आधार पर की गई है कि इसमें गैर-स्थानीय उम्मीदवारों के प्रति भेदभाव किया गया है तथा यह समान अवसर के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
  • आर्थिक प्रभाव: अधिवास-आधारित आरक्षण व्यवसायों को रोककर और नौकरी के अवसरों को सीमित करके राज्य की आर्थिक वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
    • इसके अलावा, जिन क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में आंतरिक प्रवास हो रहा है, वहाँ ऐसी नीतियाँ राष्ट्रीय एकीकरण और आर्थिक गतिशीलता में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।
  • सामाजिक तनाव: यह नीति स्थानीय और गैर-स्थानीय निवासियों के बीच सामाजिक तनाव को बढ़ा सकती है, विभाजनकारी माहौल पैदा कर सकती है तथा सामाजिक एकता को कमज़ोर कर सकती है।

आगे की राह

  • आरक्षण नीति को इस तरह से लागू किया जा सकता है कि देश में जनशक्ति संसाधनों की मुक्त आवाजाही में बाधा न आए।
  • राज्य में अर्थव्यवस्था और उद्योगों पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिये आरक्षण नीति की समय-समय पर समीक्षा की जा सकती है।
  • यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि लिया गया कोई भी नीतिगत निर्णय भारत के संविधान के अनुपालन में हो और नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में निजी रोज़गार में राज्य द्वारा लगाए गए अधिवास आरक्षण के पक्ष और विपक्ष में तर्कों का आकलन कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)


भारत के विकास में वित्तीय क्षेत्र की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

विकसित राष्ट्र का दर्जा, भारतीय रिज़र्व बैंक, पूंजी निर्माण, सतत् विकास, लो-कार्बन इकॉनमी, नवीकरणीय ऊर्जा, वित्तीय समावेशन, बैंकों का निजीकरण, हरित परियोजनाएँ, इक्विटी बाज़ार, बेसल समिति, कॉर्पोरेट बॉण्ड 

मेन्स के लिये:

बैंकों का निजीकरण, बेसल समिति, विकसित राष्ट्र का दर्जा

स्रोत: लाइव मिंट

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2047 में अपनी स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगाँठ के समय तक एक विकसित राष्ट्र बनने का भारत का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य इस बात पर निर्भर करता है कि उसका वित्तीय क्षेत्र कितनी अच्छी तरह से विकसित है।

भारत के विकास में वित्तीय क्षेत्र किस प्रकार सहयोग कर सकता है?

  • सतत् उच्च वृद्धि: भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत को विकसित राष्ट्र बनने के लिये आगामी 25 वर्षों तक 7.6% वार्षिक दर से विकास करने की आवश्यकता है।
    • उच्च विकास दर को दीर्घावधि तक बनाए रखने के लिये एक स्थिर, कुशल और अभिनव वित्तीय प्रणाली की आवश्यकता होगी जो मैक्रो-वित्तीय स्थिरता से समझौता किये बिना भारतीय परिवारों तथा व्यवसायों एवं सरकारों की आवश्यकताओं को पूरा करे।
  • बचत का एकत्रीकरण: पूंजी निर्माण हेतु घरेलू एवं बाहरी दोनों स्रोतों पर ध्यान केंद्रित करते हुए पूंजी संचय तीव्रता से होना चाहिये।
    • वित्त एवं पूंजी की मांग बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं, विनिर्माण की बढ़ती आवश्यकताओं, औपचारिक अर्थव्यवस्था के विस्तार और बढ़ती व्यापार गतिविधियों से उत्पन्न होगी।
    • वित्त एवं पूंजी की आपूर्ति के लिये घरेलू बचत, चिरस्थायी विदेशी पूंजी जुटाने और जमा, ऋण तथा इक्विटी बाज़ारों को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  • बैंकिंग क्षेत्र की भूमिका:
    • नए वित्तीय संस्थान की आवश्यकता: डिजिटल, थोक/निवेश और विशिष्ट बैंकों सहित विभिन्न आकारों के बैंकों तथा NBFC की एक विविध श्रेणी वित्तीय समावेशन का समर्थन करने एवं बड़े पैमाने की परियोजनाओं को निधि प्रदान करने के लिये आवश्यक है।
    • फिनटेक कंपनियों की भूमिका: वित्तीय पहुँच और समावेशन को आगे बढ़ाने तथा आने वाले वर्षों में बैंकिंग एवं वित्तीय प्रणाली में दक्षता बढ़ाने में फिनटेक कंपनियों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
      • रिज़र्व बैंक की नीतियों के अनुसार फिनटेक कंपनियाँ अपनी बैलेंस शीट पर ऋण नहीं दे सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष वित्तीय जोखिम भी कम हो गए हैं।
    • बैंकों का निजीकरण: मार्च 2024 की तिमाही की बैंक बैलेंस शीट के अनुसार, सात PSB के पास शुद्ध NPA में ऋण अग्रिम का 1% से भी कम है। कोई भी PSB अब भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई फ्रेमवर्क के तहत नहीं है जो ऋण प्रतिबंध लगाता है।
      • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण करने से नौकरशाही संबंधी बाधाएँ और वेतन संबंधी प्रतिबंध हट जाएंगे, जिससे बैंकिंग क्षेत्र में समानता आएगी, उनकी लाभप्रदता तथा मूल्यांकन में वृद्धि होगी एवं संभवतः वे निजी बैंकों के बराबर आ जाएंगे, जिससे ऋण तक पहुँच, निवेश व रोज़गार वृद्धि को लाभ होगा।
  • पूंजी बाज़ार की भूमिका:
    • सरकार का लक्ष्य है कि भारत वर्ष 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुँच जाए और वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद उत्सर्जन को कम कर दे, लेकिन इन लक्ष्यों को प्राप्त करना आवश्यक परियोजनाओं तथा योजनाओं के लिये वित्त पर निर्भर करेगा।
      • 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर को पार करने वाले बाज़ार पूंजीकरण के साथ भारतीय बाज़ार अब आकार के मामले में विश्व में चौथे स्थान पर है, जो अमेरिका, चीन और जापान की तुलना में पीछे है। हाल ही में बाज़ार पूंजीकरण से सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 150% को पार कर गया है।
    • भारतीय पूंजी बाज़ार तकनीकी परिवर्तनों के अनुकूलन ढालने में सुसज्जित है, यह नियामकों के साथ-साथ संस्थान और प्रतिभागी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) एवं मशीन लर्निंग (ML) का उपयोग करने में कुशल है, जो भारत के विकास लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये इक्विटी बाज़ारों की स्थिति का निर्माण करते हैं।

वित्तीय क्षेत्र को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?

  • वित्तीय पहुँच का विस्तार करने और दक्षता में सुधार करने में फिनटेक कंपनियों की भूमिका के बावजूद उनकी तीव्र वृद्धि ग्राहकों की सुरक्षा तथा बैंकों एवं गैर-बैंकों दोनों के लिये संभावित अप्रत्यक्ष जोखिम जैसी चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है।
  • उभरते केंद्रीकृत जोखिमों के बारे में भी चिंताएँ हैं क्योंकि बड़ी तकनीकी कंपनियाँ फिनटेक क्षेत्र पर तेज़ी से हावी हो रही हैं। फिनटेक कंपनियाँ, जो वर्तमान में अनियमित हैं, व्यवहार्यता और प्रभावशीलता की चुनौतियों के बावजूद प्रत्यक्ष विनियामक निरीक्षण की माँग का सामना करती हैं।
  • डिजिटल लेंडिंग, बाय नाउ पे लेटर (BNPL) और पे-एज़-यू-गो स्कीम्स के तीव्र पैमानों (Rapid Scale) को अपनाने की दरों के कारण संभावित अति-विस्तारण तथा विवेक रहित उत्साह (Irrational Enthusiasm) संबंधी चुनौती का सामना करना पड़ता है।
    • सामान्य जोखिमों में गलत बिक्री और अत्यधिक जोखिम शामिल हैं।
  • डेटा सुरक्षा, गोपनीयता, साइबर सुरक्षा और परिचालन संबंधी मुद्दों से जुड़े जोखिमों से एक चुनौती उत्पन्न होती है, जिस पर भी विचार किया जाना चाहिये।
  • PSB अपनी बैलेंस शीट में सुधार के बावज़ूद भारतीय निजी बैंकों की तुलना में प्राइस-टू-बुक गुणक के साथ काफी कम संघर्ष करते हैं, जो संभावित रूप से कम प्रदर्शन का संकेत देता है।
  • निजी बैंक प्रायः जमा पूंजी के लिये प्रतिस्पर्द्धा करने की आवश्यकता से बचने के लिये न्यून ऋण वृद्धि लेकिन उच्च मार्जिन बनाए रखने का विकल्प चुनते हैं। 
    • इसके परिणामस्वरूप जमा दरें कम हो जाती हैं, जिससे भारतीय बचतकर्त्ता इक्विटी और आवास निवेश को प्राथमिकता दे सकते हैं, जिससे जमा वृद्धि के लिये चुनौती उत्पन्न हो सकती है।
  • भारत के अविकसित कॉर्पोरेट बॉण्ड बाज़ार को अपनी संपूर्ण क्षमता का उपयोग करने के लिये सरकार के तत्काल ध्यान की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • बैंकिंग क्षेत्र:
    • बैंकों की पर्याप्त पूंजी आवश्यकताओं के कारण व्यापारिक और औद्योगिक घरानों, निजी इक्विटी, उद्यम पूंजी कोषों तथा विदेशी बैंकों को बैंकों में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी की अनुमति देने की अनिच्छा पर पुनर्विचार किया जाना चाहिये।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि बैंक, NBFC और फिनटेक कंपनियाँ अत्यधिक उत्साह की प्रवृत्ति के बावजूद सुरक्षित, संरक्षित तथा कुशलतापूर्वक काम करें, बैंकिंग प्रणाली हेतु मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था स्थापित करने एवं उस पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय निपटान बैंक (BIS) के अंतर्गत बैंकिंग पर्यवेक्षण पर बेसल समिति द्वारा विकसित सुस्थापित सुरक्षा उपायों को अपनाना और लागू करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिन्हें वैश्विक वित्तीय विकास तथा अनुभवों के आधार पर कई वर्षों के दौरान परिष्कृत किया गया है।
  • पूंजी और प्रतिभूति बाज़ार:
    • तेज़ी से बढ़ते क्षेत्रों द्वारा बाज़ार जोखिमों के कमज़ोर आकलन से रोकने के लिये विनियामक ध्यान बढ़ाने की आवश्यकता है। विनियामकों को संभावित मुद्दों का अनुमान लगाना चाहिये और नवाचार हेतु जगह छोड़ते हुए सुरक्षा उपायों को लागू करना चाहिये।
    • सर्वोच्च प्राथमिकता सरकारी प्रतिभूतियों और कॉर्पोरेट बॉण्डों के लिये बॉण्ड बाज़ार विनियमन को एकीकृत करना तथा निवेशकों, व्यापारियों एवं हितधारकों हेतु प्रक्रियाओं को सरल बनाना होना चाहिये।
    • विकासशील बॉण्ड बाज़ार पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये, क्योंकि यह हरित और ऊर्जा परिवर्तन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो तेज़ी से विदेशी निवेश पर निर्भर होंगे, जिसके लिये विशिष्ट सुविधाजनक उपायों की आवश्यकता होगी।
  • अन्य उपाय:
    • बैंकों के अलावा वित्तीय क्षेत्र के अन्य भागों, जैसे बीमा और ऊर्जा क्षेत्र के वित्त का निजीकरण भी एक साथ उठाए जाने वाले कदमों के रूप में विचार किया जाना चाहिये।
    • भारत में शहरी बुनियादी ढाँचे का पुनरुद्धार अत्यंत महत्त्वपूर्ण बना हुआ है, विशेष रूप से यह देखते हुए कि अनुमान है कि वर्ष 2050 तक 800 मिलियन लोग शहरी क्षेत्रों में निवास करेंगे, हालाँकि वर्ष 2015 से नगरपालिका बॉण्ड को बढ़ावा देने के प्रयासों के बावजूद नगरपालिकाएँ विकास परियोजनाओं के लिये संसाधनों तथा वित्तपोषण की कमी से जूझ रही हैं।
    • परियोजना वित्तपोषण पर भारतीय रिज़र्व बैंक के हाल के विवेकपूर्ण दिशा-निर्देशों के अनुरूप प्रतिचक्रीय बफर्स ​​और मानक परिसंपत्तियों के लिये प्रावधानों के कार्यान्वयन पर विचार किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त करने की दिशा में देश की यात्रा को सुविधाजनक बनाने में भारत के वित्तीय क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. भारत में ‘शहरी सहकारी बैंकों’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. राज्य सरकारों द्वारा स्थापित स्थानीय मंडलों द्वारा उनका पर्यवेक्षण एवं विनियमन किया जाता है। 
  2. वे इक्विटी शेयर और अधिमान शेयर जारी कर सकते हैं।
  3. उन्हें वर्ष 1966 में एक संशोधन द्वारा बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के कार्य-क्षेत्र में लाया गया था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1  
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन भारत में सभी ATM को जोड़ता है? (2018)

(a) भारतीय बैंक संघ
(b) नेशनल सिक्योरिटीज़ डिपॉज़िटरी लिमिटेड
(c) भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम
(d) भारतीय रिज़र्व बैंक

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. प्रधानमंत्री जन धन योजना (पी.एम.जे.डी.वाई.) बैंकरहितों को संस्थागत वित्त में लाने के लिये आवश्यक है। क्या आप सहमत है कि इससे भारतीय समाज के गरीब तबके के लोगों का वित्तीय समावेश होगा? अपने मत की पुष्टि करने के लिये तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2016)


मक्का उत्पादन में हरित क्रांति

प्रिलिम्स के लिये:

हरित क्रांति, मक्का, अनाज फसल, इथेनॉल, इथेनॉल सम्मिश्रण, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा, कृषि संसाधन, हरित क्रांति

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मक्का उद्योग में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है, जो सामान्य चारा फसल से ईंधन एवं औद्योगिक क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में विकसित हुआ है।

  • यह बदलाव एक व्यापक हरित क्रांति का संकेत है, जो गेहूँ और चावल में की गई ऐतिहासिक प्रगति को दर्शाता है, लेकिन यह प्रगति निजी क्षेत्र के नवाचारों से प्रेरित है।

भारत में मक्का उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • उत्पादन में तीन गुना वृद्धि: वर्ष 1999-2000 से भारत के मक्का उत्पादन में तीन गुना से भी अधिक वृद्धि हुई है, जो 11.5 मिलियन टन से बढ़कर वार्षिक 35 मिलियन टन से भी अधिक हो गई है, साथ ही प्रति हेक्टेयर औसत उपज भी 1.8 से बढ़कर 3.3 टन हो गई है।
    • भारत पाँचवाँ सबसे बड़ा मक्का उत्पादक है, जो वर्ष 2020 में वैश्विक उत्पादन का 2.59% है।
    • चावल तथा गेहूँ के बाद मक्का भारत में तीसरी सबसे महत्त्वपूर्ण अनाज फसल है। यह देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन का लगभग 10% है।
  • उपज में सुधार: इसी अवधि में प्रति हेक्टेयर औसत उपज 1.8 से बढ़कर 3.3 टन हो गई है।
  • प्रमुख राज्य: कर्नाटक, मध्यप्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश मुख्य मक्का उपज वाले राज्य हैं।
  • वर्ष भर खेती: मक्के का उत्पादन संपूर्ण वर्ष होता है, मुख्य रूप से खरीफ फसल के रूप में (मक्का की खेती का 85% क्षेत्र इसी मौसम में होता है)।
  • निर्यात मात्रा: भारत ने वर्ष 2022-23 में 8,987.13 करोड़ रुपए मूल्य के 3,453,680.58 मीट्रिक टन मक्का का निर्यात किया।
    • प्रमुख निर्यात गंतव्य: बांग्लादेश, वियतनाम, नेपाल, मलेशिया और श्रीलंका भारतीय मक्का के प्रमुख बाज़ार हैं।
  • प्रमुख उपयोग: लगभग 60% मक्के का उपयोग मुर्गी और पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, जबकि केवल लगभग 20% का ही मनुष्यों द्वारा सीधे उपभोग किया जाता है।
    • मक्का पशुधन आहार में एक प्राथमिक ऊर्जा स्रोत है, जिसमें 55-65% ब्रॉयलर आहार और 15-20% मवेशी आहार मक्का से प्राप्त होता है।
    • स्टार्च और इथेनॉल: मक्का के दानों में 68-72% स्टार्च होता है, जिसका उपयोग कपड़ा, कागज़ और फार्मास्यूटिकल्स जैसे उद्योगों में किया जाता है। 
      • हाल के घटनाक्रमों ने इथेनॉल उत्पादन के लिये मक्का के उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर दिया है , विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा चिंताओं के कारण इथेनॉल सम्मिश्रण में चावल के विकल्प के रूप में।
      • पेराई के मौसम के दौरान, भट्टियाँ (distilleries) गन्ने के शिरे और जूस/सिरप से संचालित होती हैं, जबकि ऑफ-सीज़न में इनके संचालन हेतु अनाज का उपयोग किया जाता है तथा हाल ही में इन्होंने मक्के का उपयोग शुरू किया है।

मक्के की हरित क्रांति की तुलना गेहूँ और चावल से कैसे की जा सकती है?

  • स्व-परागण बनाम पर-परागण: स्व-परागण वाले गेहूँ और चावल के विपरीत, मक्का की पर-परागण वाली प्रकृति संकर प्रजनन को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाती है।
    • गेहूँ और चावल में हरित क्रांति का कारण उच्च उपज देने वाली किस्मों की खेती करना था, जो स्वयं परागण करने वाले पौधे थे तथा जिनका संकरण नहीं किया जा सकता था।
    • मक्के में हरित क्रांति निजी क्षेत्र के नेतृत्व में हुई है और वर्तमान में भी जारी है। मक्के की खेती में 80% से ज़्यादा हिस्सा निजी क्षेत्र की संकर किस्मों (Hybrids) का है तथा उच्च पैदावार केवल पहली पीढ़ी तक ही सीमित है।
      • यदि किसान इन उपजों से अनाज बचाकर उन्हें बीज के रूप में पुनः उपयोग में लाते हैं, तो वे वही उपज नहीं प्राप्त कर सकते (बीजों की स्वतः समाप्ति प्रकृति)।
  • मक्के की खेती में नवोन्मेष: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने उच्च एमाइलोपेक्टिन स्टार्च घटक के साथ भारत की पहली "मोमी" मक्का (Waxy Maize) संकर (AQWH-4) विकसित की है, जो इसे इथेनॉल उत्पादन के लिये बेहतर बनाती है।
    • मक्के में स्टार्च दो पॉलिमरों का मिश्रण होता है, जिसमें ग्लूकोज़ अणु एक सीधी शृंखला (एमाइलोज) और शाखित रूप (एमाइलोपेक्टिन) में एक साथ बँधे होते हैं।
    • सामान्य मक्के के स्टार्च में 30% एमाइलोजा और 70% एमाइलोपेक्टिन होता है, जबकि IARI के मोमी मक्का संकर (Waxy Maize Hybrid) में 93.9% एमाइलोपेक्टिन होता है।
      • एमाइलोज स्टार्च अनाज को कठोर बनाता है, जबकि एमाइलोपेक्टिन इसे नरम बनाता है, जिससे स्टार्च की रिकवरी और किण्वन दर प्रभावित होती है।
      • अनाज की मृदुता आटा उत्पादन के लिये इसे अच्छी तरह से पीसने में सहायक होती है। उच्च एमाइलोपेक्टिन वाले कणिकाओं को ग्लूकोज़ इकाइयों में आसानी से तोड़ा जा सकता है। फिर ग्लूकोज़ को खमीर का उपयोग करके इथेनॉल में किण्वित किया जाता है।
    • सामान्य मक्के के दानों में 68-72% स्टार्च होता है, लेकिन केवल 58-62% ही रिकवरी योग्य होता है। नए पूसा वैक्सी मक्का हाइब्रिड-1 में 71-72% स्टार्च है और रिकवरी 68-70% है।
      • यह संकर किस्म प्रति हेक्टेयर 7.3 टन की औसत उपज प्रदान करती है और इसकी क्षमता 8.8 टन तक पहुँचने की है।
  • निजी क्षेत्र की भूमिका: अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूँ सुधार केंद्र (International Maize and Wheat Improvement Center- CIMMYT) ने कुनिगल (कर्नाटक) में मक्का डबल हैप्लोइड (DH) फैसिलिटी स्थापित की है, जो उच्च उपज वाली, आनुवंशिक रूप से शुद्ध अंतःप्रजनन किस्मों का उत्पादन करती है। 
    • यह फैसिलिटी संसाधान के विकास को गति प्रदान करती है तथा उत्पादन क्षमता में वृद्धि करती है।
    • पारंपरिक प्रक्रिया में, 6 से 8 पीढ़ियों तक लगातार स्व-परागण द्वारा अंतःप्रजनन किस्में तैयार की जाती हैं। DH तकनीक केवल दो फसल चक्रों के बाद पूरी तरह से समान किस्म के उत्पादन को सक्षम बनाती है।
    • वर्ष 2022 में, कुनिगल फैसिलिटी ने 29,622 मक्का डीएच किस्मों का उत्पादन और साझाकरण किया। ये किस्में उच्च उपज देने वाली, सूखे, गर्मी और जल-जमाव के प्रति सहिष्णु, पोषक तत्त्वों के उपयोग में कुशल तथा कीटों और फॉल आर्मीवर्म व मक्का की खेती के लिये घातक नेक्रोसिस जैसी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी हैं।
    • माहिको, श्रीराम बायोसीड, एडवांटा सीड्स जैसी कंपनियाँ उच्च उपज वाली मक्का संकर किस्मों के विकास और प्रचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

भारत में मक्के के उत्पादन को प्रोत्साहित करने हेतु कौन-सी पहलें की गई हैं?

हरित क्रांति:

  • 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग ने इसका नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप गेहूँ की उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYVs) का विकास हुआ और वर्ष 1970 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
  • भारत में, एम.एस. स्वामीनाथन ने हरित क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे खाद्यान्न उत्पादन, विशेष रूप से गहूँ और चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 
    • इस क्रांति ने भारत को वर्ष 1967-68 और वर्ष 1977-78 के बीच खाद्यान्न की कमी वाले देश से खाद्य उत्पादन में विश्व के अग्रणी कृषि देशों में से एक बना दिया।
  • इसमें वर्षा पर निर्भरता कम करने के लिये विभिन्न सिंचाई विधियों को शामिल करना, श्रम लागत को कम करने तथा दक्षता बढ़ाने के लिये प्रमुख कृषि पद्धतियों का मशीनीकरण करना और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने व फसलों की सुरक्षा के लिये रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग शामिल था।
    • फसल की सघनता और उपज बढ़ाने के लिये मौजूदा कृषि भूमि पर दोहरी फसल उगाने की विधि को अपनाया गया।
    • सिंचाई और उच्च उपज वाली फसलों (HYV) के बीजों का उपयोग करके, विशेष रूप से अर्द्ध-शुष्क तथा शुष्क क्षेत्रों में अधिक भूमि को खेती के अंतर्गत लाकर कृषि क्षेत्र का विस्तार किया गया।
  • हरित क्रांति के कारण अनाज उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे भारत विश्व के सबसे बड़े कृषि उत्पादकों में से एक बन गया। 
    • परिणामस्वरूप, भारत गेहूँ, चावल और अन्य खाद्यान्नों का शुद्ध निर्यातक बन गया तथा हाल के वर्षों में निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया। 
  • उच्च उत्पादकता ने आय में वृद्धि के माध्यम से कई छोटे किसानों को गरीबी से बाहर निकालकर गरीबी उन्मूलन में भी योगदान दिया।
  • हरित क्रांति ने कई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत कीं, जिनमें सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों से पर्यावरण का क्षरण, मृदा अपरदन तथा जल प्रदूषण शामिल हैं। इसके कारण जैवविविधता और फसलों की आनुवंशिक विविधता को क्षति पहुँची, देशी फसलों का विस्थापन हुआ तथा खेती के पारंपरिक तौर-तरीके भी प्रभावित हुए।
    • इसके अतिरिक्त, इससे फसलों पर कीटों, बीमारियों और जलवायु परिवर्तन का खतरा भी बढ़ गया।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के मक्का उद्योग के एक बुनियादी चारा फसल से ईंधन और औद्योगिक क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में हाल के परिवर्तन पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: नीचे चार ऊर्जा फसलों के नाम दिये गए हैं। इनमें से किस एक की खेती एथेनॉल के लिये की जा सकती है? (2010)

(a) जट्रोफा
(b) मक्का
(c) पौन्गामिया
(d) सूरजमुखी

उत्तर: (b)