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शासन व्यवस्था

हरियाणा का निजी क्षेत्र कोटा कानून

  • 22 Nov 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स  के लिये:

अनुच्छेद 16(4), अनुच्छेद 19, समानता का अधिकार, मौलिक अधिकार

मेन्स के लिये:

निजी क्षेत्र में रोज़गार आरक्षण, रोज़गार में स्थानीय आरक्षण और निहितार्थ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020 को रद्द कर दिया है, जिसमें निजी क्षेत्र के रोज़गार में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 75% आरक्षण अनिवार्य था।

  • न्यायालय ने कानून को असंवैधानिक और नागरिकों एवं नियोक्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया है।

हरियाणा निजी क्षेत्र कोटा कानून क्या है?

  • हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवारों का रोज़गार अधिनियम, 2020 राज्य सरकार द्वारा मार्च 2021 में अधिनियमित किया गया था।
    • कानून में 30,000 रुपए (मूल रूप से 50,000 रुपए) से कम मासिक वेतन वाले निजी क्षेत्र के रोज़गार में स्थानीय उम्मीदवारों के लिये 10 वर्षों तक 75% आरक्षण का प्रावधान है।
  • इस अधिनियम में कंपनियों, सोसायटी, ट्रस्ट, साझेदारी फर्म और बड़े व्यक्तिगत नियोक्ताओं सहित विभिन्न संस्थाएँ शामिल थीं।
    • इसमें 10 या अधिक कर्मचारियों वाले नियोक्ता शामिल थे, लेकिन केंद्र या राज्य सरकारों और उनके संगठनों को छूट थी।
  • कानून के अनुसार, नियोक्ताओं को अपने कर्मचारियों को सरकारी पोर्टल पर पंजीकृत करना होगा और स्थानीय उम्मीदवारों के लिये अधिवास प्रमाण पत्र प्राप्त करना होगा।
    • हरियाणा राज्य का निवासी "स्थानीय उम्मीदवार" एक निर्दिष्ट ऑनलाइन पोर्टल पर पंजीकरण करके आरक्षण का लाभ उठा सकता है।
  • इस कानून का उद्देश्य स्थानीय युवाओं, विशेषकर अकुशल तथा अर्द्ध-कुशल श्रमिकों के लिये रोज़गार के अवसर एवं उनका कौशल विकास करना व अन्य राज्यों से आने वाले प्रवासियों की संख्या को कम करना था।

नोट:

  • आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और झारखंड सहित अन्य राज्यों में भी निवासियों के लिये रोज़गार आरक्षण विधेयक अथवा कानूनों की घोषणा की गई है।
  • रोज़गार कोटा विधेयक के तहत आंध्र प्रदेश के निवासियों के लिये तीन-चौथाई निजी नौकरियाँ आरक्षित हैं, जिसे वर्ष 2019 में राज्य की विधानसभा द्वारा अनुमोदित किया गया था।

हरियाणा द्वारा निजी क्षेत्र की नौकरियों में दिये गए आरक्षण से संबंधित क्या चिंताएँ हैं?

  • फरीदाबाद इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन तथा अन्य हरियाणा-आधारित एसोसिएशंस ने यह कहते हुए उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया कि हरियाणा "धरती के पुत्र" की नीति शुरू कर निजी क्षेत्र में आरक्षण सुनिश्चित करना चाहता है, जो नियोक्ताओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
    • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि निजी क्षेत्र की नौकरियाँ पूर्ण रूप से कौशल तथा विश्लेषणात्मक विवेक पर आधारित होती हैं एवं कर्मचारियों को भारत के किसी भी हिस्से में कार्य करने का मौलिक अधिकार है।
    • उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि नियोक्ताओं को स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिये बाध्य करने का सरकार का कृत्य संविधान के संघीय ढाँचे का उल्लंघन है, जो सार्वजनिक हित के विपरीत है एवं केवल एक वर्ग को लाभ पहुँचा रहा है।
  • हरियाणा सरकार ने तर्क दिया कि उसके पास संविधान के अनुच्छेद 16(4) के तहत इस तरह के आरक्षण प्रदान करने की शक्ति है, जिसमें कहा गया है कि सार्वजनिक रोज़गार में समानता का अधिकार राज्य को किसी भी पिछड़े वर्ग के लिये आरक्षण प्रदान करने से नहीं रोकता है, जिनका राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
    • हरियाणा सरकार ने कहा कि राज्य में रहने वाले लोगों के जीवन और आजीविका के अधिकार तथा उनके स्वास्थ्य, रहने की स्थिति एवं रोज़गार के अधिकार की रक्षा के लिये कानून आवश्यक था।

उच्च न्यायालय ने क्या फैसला दिया?

  • न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 6, स्थानीय उम्मीदवारों पर त्रैमासिक रिपोर्ट अनिवार्य करती है और धारा 8, जो अधिकृत अधिकारियों को सत्यापन करने में सक्षम बनाती है, की "इंस्पेक्टर राज" स्थापित करने के रूप में आलोचना की गई।
    • इंस्पेक्टर राज का तात्पर्य कारखानों और औद्योगिक इकाइयों पर सरकार द्वारा अत्यधिक विनियमन/पर्यवेक्षण से है।
  • न्यायालय ने कहा कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह कानून जन्म स्थान और निवास स्थान के आधार पर नागरिकों व नियोक्ताओं के खिलाफ भेदभाव करता है।
    • अनुच्छेद 14 भारत के क्षेत्र के भीतर सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानूनों के समान संरक्षण की गारंटी देता है।
  • कानून ने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) के तहत व्यापार और वाणिज्य की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन किया, क्योंकि इसने योग्य तथा उपयुक्त स्थानीय उम्मीदवारों के बावजूद  नियोक्ताओं द्वारा उन्हें नियुक्त करने पर अनुचित प्रतिबंध लगा दिया।
  • न्यायालय का मानना है कि निजी नियोक्ताओं को केवल स्थानीय उम्मीदवारों को नियुक्त करने के लिये मजबूर करना संविधान की दृष्टि से अनुचित है, क्योंकि इससे राज्यों द्वारा अपने निवासियों के लिये समान सुरक्षा प्रदान करने हेतु व्यापक अधिनियम बनाए जा सकते हैं, जिससे ऐसी बाधाएँ उत्पन्न हो सकती हैं जो संविधान के निर्माताओं द्वारा नहीं बनाई गई थीं।
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