भारतीय अर्थव्यवस्था
LRS के तहत भारत के बाहर अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड व्यय
प्रिलिम्स के लिये:विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, स्रोत पर कर वसूली, भारतीय रिज़र्व बैंक, उदारीकृत प्रेषण योजना (LRS) मेन्स के लिये:उदारीकृत प्रेषण योजना, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वित्त मंत्रालय, भारत सरकार ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के परामर्श से उदारीकृत प्रेषण योजना (LRS) के तहत भारत के बहिर्वाह अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड खर्च को शामिल करते हुए विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) में महत्त्वपूर्ण संशोधन किये हैं।
- यह विदेशी यात्रा में खर्च में वृद्धि की पृष्ठभूमि के अंतर्गत आता है। भारतीयों ने वित्त वर्ष 2022-23 के अप्रैल-फरवरी के दौरान विदेशी यात्रा पर 12.51 बिलियन अमेरिकी डाॅलर खर्च किये, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 104% अधिक है।
- यह समावेशन 1 जुलाई, 2023 से प्रभावी वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में घोषित स्रोत पर एकत्रित कर (TCS) की उच्च दर की वसूली को सक्षम बनाता है।
मुख्य विवरण और निहितार्थ:
- LRS में अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड व्यय को शामिल करना:
- संशोधन से उच्च मूल्य के विदेशी लेन-देन की निगरानी की सुविधा की उम्मीद है, लेकिन यह भारत से विदेशी वस्तुओं/सेवाओं की खरीद के लिये भुगतान पर लागू नहीं होता है।
- नियम 7 का लोप और LRS का विस्तार:
- पहले विदेश यात्रा के दौरान खर्च के लिये अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड का उपयोग LRS के अंतर्गत नहीं आता था।
- विदेशी मुद्रा प्रबंधन (चालू खाता लेन-देन) नियमावली, 2000 के नियम 7, जिसमें LRS से इस तरह के खर्च को बाहर रखा गया है, को हटा दिया गया है।
- यह संशोधन अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड लेन-देन को प्रति वित्तीय वर्ष प्रति व्यक्ति 250,000 अमेरिका डॉलर की समग्र LRS सीमा निर्धारित करने में शामिल करने की अनुमति देता है।
- कर निहितार्थ:
- 1 जुलाई, 2023 तक (चिकित्सा और शिक्षा से जुड़े क्षेत्रों को छोड़कर) ऐसे लेन-देन पर 5% की TCS लेवी लागू होगी।
- 1 जुलाई, 2023 के बाद भारत के बाहर क्रेडिट कार्ड खर्च के लिये TCS की दर बढ़कर 20% हो जाएगी।
- नए प्रावधान 'शिक्षा' और 'चिकित्सा' उद्देश्यों के लिये भुगतान पर लागू नहीं होंगे और भारत में रहते हुए निवासियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट कार्ड के उपयोग में परिवर्तन को प्रभावित नहीं करेंगे।
- विदेशी क्रेडिट कार्ड खर्च पर TCS लगाने की प्रणाली को अभी तक क्रियाशील नहीं किया गया है, जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिये अनुपालन चुनौतियों का सामना करती है।
- अनुपालन और रिफंड पर प्रभाव:
- इन परिवर्तनों के कारण बैंकों और वित्तीय संस्थानों के अनुपालन बोझ में वृद्धि का अनुमान है।
- करदाता टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय TCS लेवी पर रिफंड का दावा कर सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कर विभाग द्वारा रिफंड शुरू होने तक फंड लॉक हो सकता है।
उदारीकृत प्रेषण योजना क्या है?
- संबंध:
- यह भारतीय रिज़र्व बैंक की योजना है जिसको वर्ष 2004 में शुरू किया गया था।
- योजना के अंतर्गत नाबालिगों के साथ-साथ सभी निवासी व्यक्तियों को किसी भी अनुमत चालू या पूंजी खाता लेन-देन या दोनों के संयोजन के लिये प्रति वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) में 2,50,000 अमेरिकी डॉलर तक मुक्त रूप से विप्रेषित करने की अनुमति है।
- अयोग्यता:
- यह योजना निगमों, भागीदारी फर्मों, हिंदू अविभाजित परिवार (HUF), ट्रस्टों आदि के लिये उपलब्ध नहीं है।
- हालाँकि LRS केअंतर्गत प्रेषण की आवृत्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं है, एक बार वित्तीय वर्ष के दौरान 2,50,000 अमेरिकी डॉलर तक की राशि के लिये प्रेषण किया जाता है उस स्थिति में एक निवासी व्यक्ति इस योजना के अंतर्गत आगे के किसी प्रेषण को करने के लिये पात्र नहीं होगा।
- प्रेषित धन का उपयोग यहाँ किया जा सकता है?
- यात्रा (निजी या व्यवसाय के लिये), चिकित्सा उपचार, अध्ययन, उपहार और दान, निकट संबंधियों की देखभाल आदि से संबंधित व्यय।
- शेयरों, ऋण उपकरणों में निवेश और विदेशी बाज़ार में अचल संपत्तियों को खरीदना।
- योजना के अंतर्गत अनुमत लेन-देन करने के लिये व्यक्ति भारत के बाहर बैंकों के साथ विदेशी मुद्रा खाते खोल सकते हैं और उन्हें बनाए रख सकते हैं ।
- प्रतिबंधित लेन-देन:
- अनुसूची-I के अंतर्गत विशेष रूप से निषिद्ध कोई भी उद्देश्य (जैसे लॉटरी टिकटों की खरीद, प्रतिबंधित पत्रिकाएँ आदि) या विदेशी मुद्रा प्रबंधन (चालू खाता लेन-देन) नियम, 2000 की अनुसूची II के तहत प्रतिबंधित कोई भी वस्तु शामिल है।
- विदेश में विदेशी मुद्रा में व्यापार करना।
- फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) द्वारा समय-समय पर "गैर-सहयोगी देशों और क्षेत्रों" के रूप में पहचाने जाने वाले देशों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूंजीगत खाता प्रेषण करना।
- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उन व्यक्तियों और संस्थाओं को विप्रेषण करना जिन्हें रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकों को अलग से दी गई सलाह के अनुसार आतंकवाद के कृत्यों को महत्त्वपूर्ण जोखिम के रूप में पहचानना है।
- आवश्यकताएँ:
- निवासी व्यक्ति के लिये अधिकृत व्यक्तियों के माध्यम से किये गए LRS के तहत सभी लेन-देन को अपना स्थायी खाता संख्या (PAN) प्रदान करना अनिवार्य है।
टैक्स कलेक्शन एट सोर्स (TCS):
- TCS एक विक्रेता द्वारा देय कर है, जिसे वह कुछ वस्तुओं या सेवाओं की बिक्री के समय खरीदार से वसूलता है।
- TCS आयकर अधिनियम की धारा 206C द्वारा शासित है जो उन वस्तुओं या सेवाओं को निर्दिष्ट करती है जिन पर TCS लागू है और TCS की दरें लागू है।
- शराब, लकड़ी, तेंदू पत्ते, कबाड़, खनिज, मोटर वाहन, पार्किंग स्थल, टोल प्लाज़ा, खनन एवं उत्खनन, LRS के तहत विदेशी प्रेषण आदि कुछ सामान या सेवाएँ हैं जिन पर TCS लागू है।
- कर अधिकारियों के पास TCS जमा करने और विक्रेता के पास जमा करने के लिये टैक्स कलेक्शन अकाउंट नंबर (TAN) होना चाहिये।
- विक्रेता को एक निर्दिष्ट समय-सीमा के अंदर खरीदार को एक TCS प्रमाणपत्र जारी करना चाहिये जिसमें एकत्रित और जमा की गई कर की राशि दर्शाई गई हो।
- खरीदार अपना आयकर रिटर्न दाखिल करते समय अपनी आय से कटौती की गई TCS की राशि हेतु क्रेडिट का दावा कर सकता है।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999:
- भारत में विदेशी मुद्रा लेन-देन के प्रशासन के लिये कानूनी ढाँचा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 द्वारा प्रदान किया गया है।
- FEMA जो कि 1 जून, 2000 से प्रभावी हुआ, के तहत विदेशी मुद्रा से जुड़े सभी लेन-देन को पूंजी या चालू खाता लेन-देन के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- चालू खाता लेन-देन:
- निवासी द्वारा किये गए सभी लेन-देन जिनके कारण उसकी संपत्ति या देनदारियों (भारत के बाहर आकस्मिक देनदारियों सहित) में कोई परिवर्तन न हो, को चालू खाता लेन-देन के अंतर्गत रखा जाता है।
- उदाहरणार्थ- विदेशी व्यापार के संबंध में भुगतान, विदेश यात्रा, शिक्षा आदि पर व्यय।
- पूंजी खाता लेन-देन:
- इसमें वे लेन-देन शामिल हैं जो भारत के निवासी द्वारा किये जाते हैं जिससे भारत के बाहर उसकी परिसंपत्ति या देनदारियाँ बदल जाती हैं (या तो बढ़ जाती है या घट जाती है)।
- उदाहरण: विदेशी प्रतिभूतियों में निवेश, भारत के बाहर अचल संपत्ति का अधिग्रहण आदि।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
भारत का फार्मास्यूटिकल उद्योग
प्रिलिम्स के लिये:भारत का फार्मास्यूटिकल उद्योग, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO), बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) कानून, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना मेन्स के लिये:भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग की स्थिति, भारत के फार्मा सेक्टर की प्रमुख चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े निर्माता के रूप में विख्यात भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग को उत्पाद की गुणवत्ता और सुरक्षा से संबंधित महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- दूषित और घटिया दवाओं की हाल की घटनाओं ने नियामक फ्रेमवर्क और उच्च गुणवत्ता वाले दवा उत्पादों को सुनिश्चित करने के लिये उद्योग की प्रतिबद्धता के बारे में चिंता जताई है।
गुणवत्ता नियंत्रण विफलताओं को उजागर करने वाली घटनाएँ:
- जनवरी 2020 में जम्मू में 12 बच्चों की विषाक्त दवा खाने से मौत हो गई थी, जिसमें डायथिलीन ग्लाइकोल पाया गया था, जिससे किडनी में ज़हर फैल गया था।
- मार्च 2021 में Nycup सिरप में सक्रिय अवयवों का स्तर कम पाया गया।
- अक्तूबर 2022 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने एक चिकित्सा उत्पाद चेतावनी जारी की, जिसके कारण पश्चिम अफ्रीकी देश गाम्बिया में बच्चों में तीव्र गुर्दे की क्षतिऔर 66 मौतों की सूचना है।
- भारत स्थित मेडेन फार्मास्यूटिकल्स के चार उत्पादों को अस्वीकार्य मात्रा में डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल से विषाक्त पाया गया था। ये दोनों ही मनुष्यों के लिये विषाक्त हैं।
- दिसंबर 2022 में सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइज़ेशन (CDSCO) ने उज़्बेकिस्तान में 18 बच्चों की मौत के संबंध में जाँच शुरू की जो कथित रूप से भारतीय फर्म मैरियन बायोटेक द्वारा निर्मित एक खाँसी की दवा थी।
- हाल ही में यूएस सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) और फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (USFDA) ने कथित रूप से भारत से आयातित आई ड्रॉप्स से जुड़े दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया स्ट्रेन पर चिंता व्यक्त की थी।
- हाल के नियामक निरीक्षणों से पता चला है कि 48 दवाएँ गुणवत्ता मानकों को पूरा करने में विफल रही हैं।
- उच्च रक्तचाप, एलर्जी और जीवाणु संक्रमण जैसी सामान्य स्थितियों के लिये उपयोग की जाने वाली 3% दवाएँ निम्नकोटि की पाई गईं।
भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग की स्थिति:
- परिचय:
- भारत वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्माता है। इसका फार्मास्युटिकल उद्योग सस्ती जेनेरिक दवाएँ प्रदान कर वैश्विक स्वास्थ्य सेवा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- फार्मास्युटिकल्स का एक प्रमुख निर्यातक होने के साथ इसका वर्तमान मूल्य USD 50 बिलियन का है जिसमें 200 से अधिक देशों में भारतीय फार्मा कंपनियों का निर्यात होता है।
- यह वर्ष 2024 तक 65 बिलियन अमेरिकी डॉलर तथा वर्ष 2030 तक 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
- भारत के फार्मा क्षेत्र के साथ प्रमुख चुनौतियाँ:
- IPR नियमों का उल्लंघन:
- भारतीय दवा कंपनियों को बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) कानूनों के उल्लंघन के आरोपों का सामना करना पड़ा है, जिसके परिणामस्वरूप बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के साथ कानूनी विवाद हुए हैं।
- ऐसा ही एक मामला वर्ष 2014 में स्विस दवा कंपनी रॉश और भारतीय दवा निर्माता सिप्ला से जुड़ा था।
- रॉश ने सिप्ला पर दवा के एक सामान्य संस्करण का उत्पादन करके कैंसर की दवा टार्सेवा (Tarceva) के लिये अपने पेटेंट का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। विवाद बढ़ गया, जिससे दोनों कंपनियों के बीच न्यायालयी लड़ाई छिड़ गई।
- वर्ष 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने रॉश के पक्ष में निर्णय सुनाया, जिसमें पुष्टि की गई कि सिप्ला ने वास्तव में रॉश के पेटेंट अधिकारों का उल्लंघन किया था। परिणामस्वरूप सिप्ला को रॉश को हर्जाना देने का आदेश दिया गया।
- मूल्य निर्धारण और सामर्थ्य: भारत अपनी जेनेरिक दवा निर्माण क्षमताओं के लिये जाना जाता है, जिसने विश्व स्तर पर सस्ती स्वास्थ्य सेवा में योगदान दिया है।
- हालाँकि भारत के अंदर फार्मास्यूटिकल्स का मूल्य निर्धारण एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है। दवा कंपनियों की लाभप्रदता के साथ सस्ती दवाओं की आवश्यकता को संतुलित करना एक नाजुक कार्य है।
- IPR नियमों का उल्लंघन:
-
- स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना और पहुँच: भारत के मज़बूत फार्मास्यूटिकल उद्योग के बावजूद आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से हेतु स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच चुनौती बनी हुई है।
- अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना, स्वास्थ्य सुविधाओं का असमान वितरण और कम स्वास्थ्य बीमा कवरेज जैसे मुद्दे दवाओं तक पहुँचने में बाधाएँ उत्पन्न करते हैं।
- स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना और पहुँच: भारत के मज़बूत फार्मास्यूटिकल उद्योग के बावजूद आबादी के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से हेतु स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच चुनौती बनी हुई है।
- संबंधित सरकारी पहलें:
भारत के फार्मा क्षेत्र में सुधार हेतु पहल:
- विधायी परिवर्तन और केंद्रीकृत डेटाबेस:
- औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 को संशोधित करने की आवश्यकता है साथ ही एक केंद्रीकृत ड्रग्स डेटाबेस की स्थापना निगरानी बढ़ा सकती है एवं सभी निर्माताओं हेतु प्रभावी विनियमन सुनिश्चित कर सकती है।
- भारत में 36 क्षेत्रीय दवा नियामक हैं, उन्हें एक इकाई में समेकित करने से विनियामक निगरानी एवं प्रभाव नेटवर्क के जोखिम को कम किया जा सकता है।
- साथ ही उत्पाद की गुणवत्ता में स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु सभी राज्यों में सामान्य गुणवत्ता मानकों को लागू करना आवश्यक है।
- प्रमाणन को प्रोत्साहित करना:
- WHO के गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस सर्टिफिकेशन प्राप्त करने हेतु अधिक फार्मास्यूटिकल निर्माण इकाइयों को प्रोत्साहित करने से उद्योग-व्यापी गुणवत्ता मानकों को बढ़ाया जा सकता है।
- पारदर्शिता, विश्वसनीयता और जवाबदेही:
- नियामक और उद्योग को भारत की दवा नियामक व्यवस्था को बढ़ाने हेतु सहयोग करना चाहिये, साथ ही इसे पारदर्शी, विश्वसनीय एवं वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना चाहिये।
- दवा आवेदन मूल्यांकन, निरीक्षण रिकॉर्ड और उल्लंघन इतिहास के सार्वजनिक खुलासे के माध्यम से जवाबदेही सुनिश्चित की जा सकती है।
- भारतीय औषधि महानियंत्रक (DGCI) द्वारा 18 फार्मा कंपनियों का मैन्युफैक्चरिंग लाइसेंस रद्द करना एक सकारात्मक कदम है।
- हालाँकि गुणवत्ता के मुद्दों के मूल कारणों को दूर करने के लिये अधिक व्यापक उपायों की आवश्यकता है।
- नियामक और उद्योग को भारत की दवा नियामक व्यवस्था को बढ़ाने हेतु सहयोग करना चाहिये, साथ ही इसे पारदर्शी, विश्वसनीय एवं वैश्विक मानकों के अनुरूप बनाना चाहिये।
- सतत् विनिर्माण प्रथाओं पर ध्यान:
- हरित रसायन, अपशिष्ट में कमी और ऊर्जा दक्षता सहित टिकाऊ विनिर्माण प्रथाओं पर बल, लागत को कम करते हुए क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिरता में वृद्धि कर सकता है।
- पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाने से सकारात्मक ब्रांड छवि में भी योगदान दिया जा सकता है और पर्यावरण के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं को आकर्षित किया जा सकता है।
- हरित रसायन, अपशिष्ट में कमी और ऊर्जा दक्षता सहित टिकाऊ विनिर्माण प्रथाओं पर बल, लागत को कम करते हुए क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिरता में वृद्धि कर सकता है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. भारत सरकार दवा के पारंपरिक ज्ञान को दवा कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू को अनुमति देने वाले कानून को बरकरार रखा
प्रिलिम्स के लिये:जल्लीकट्टू, सर्वोच्च न्यायालय, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960, पोंगल। मेन्स के लिये:जल्लीकट्टू के अभ्यास के पक्ष और विपक्ष में तर्क। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने जल्लीकट्टू, कंबाला और बैलगाड़ी दौड़ के पारंपरिक सांँडों को वश में करने वाले खेलों की अनुमति देने के लिये तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 में किये गए संशोधनों को बरकरार रखा है।
- इस मामले में जल्लीकट्टू की अनुमति देने वाले तमिलनाडु संशोधन को चुनौती शामिल है, इस तर्क के आधार पर कि यह जानवरों के प्रति क्रूरता पर रोक लगाने वाले केंद्रीय कानून के खिलाफ है।
न्यायालय का निर्णय क्या है?
- SC ने कहा कि राज्य संशोधन (पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017 और पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम (जल्लीकट्टू का आयोजन) 2017 के नियम) ने संविधान और सर्वोच्च न्यायालय के 2014 के जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगाने के निर्णय का उल्लंघन नहीं किया।
- न्यायालय ने कहा कि संशोधन अधिनियम ने भाग लेने वाले जानवरों को "सामान्य चोट/दर्द और क्रूरता" दी।
- निर्णय में कहा गया है कि जल्लीकट्टू पर 2017 का संशोधन अधिनियम और नियम संविधान की समवर्ती सूची की प्रविष्टि 17 (जानवरों के प्रति क्रूरता की रोकथाम), अनुच्छेद 51A (G) (प्रेम करने वाले जीवों के प्रति दया) के साथ समय पर हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने जानवरों के प्रति क्रूरता के आधार पर भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराज वाद में मई 2014 में एक निर्णय के माध्यम से जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया।
- न्यायालय ने कहा कि अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 48 से भी "संबंधित" नहीं था, जो "कृषि और पशुपालन को व्यवस्थित करने" के लिये राज्य के कर्तव्य से संबंधित है।
- यह भी कहा गया कि सांस्कृतिक परंपरा के नाम पर कानून का कोई भी उल्लंघन दंडनीय होगा।
- न्यायालय ने निर्णय किया कि जल्लीकट्टू की सांस्कृतिक विरासत की स्थिति का निर्धारण राज्य की विधानसभा के लिये बेहतर है, न कि कानून की न्यायालय में।
जल्लीकट्टू क्या है?
- परिचय:
- जल्लीकट्टू एक पारंपरिक खेल है जो तमिलनाडु में लोकप्रिय है।
- इस खेल में लोगों की भीड़ में एक जंगली सांँड को छोड़ना शामिल है, और प्रतिभागी सांँड के कूबड़ को पकड़ने और यथासंभव लंबे समय तक सवारी करने का प्रयास करते हैं या इसे नियंत्रण में लाने का प्रयास करते हैं।
- यह जनवरी के महीने में तमिल फसल उत्सव, पोंगल के दौरान मनाया जाता है।
- अभ्यास के पक्ष में तर्क:
- जल्लीकट्टू को तमिलनाडु में एक धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम माना जाता है, जिसे लोगों द्वारा उनकी जाति या पंथ की परवाह किये बिना मनाया जाता है।
- राज्य सरकार का तर्क है कि सदियों पुरानी इस प्रथा पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के बजाय, समाज की प्रगति के रूप में इसे विनियमित और सुधारा जा सकता है।
- उनका मानना है कि जल्लीकट्टू पर रोक लगाने को समुदाय की संस्कृति और भावनाओं पर हमले के तौर पर देखा जाएगा।
- सरकार का दावा है कि जल्लीकट्टू पशुधन की एक मूल्यवान स्वदेशी नस्ल के संरक्षण में एक भूमिका निभाता है और यह आयोजन स्वयं करुणा और मानवता के सिद्धांतों के खिलाफ नहीं जाता है।
- वे इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भविष्य की पीढ़ियों के लिये जल्लीकट्टू के संरक्षण को सुनिश्चित करने के लिये हाई स्कूल पाठ्यक्रम में जल्लीकट्टू के महत्त्व को पढ़ाया जा रहा है।
- विपक्ष में तर्क:
- यह तर्क दिया जाता है कि जानवरों सहित सभी जीवित प्राणियों में अंतर्निहित स्वतंत्रता है, जैसा कि संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त है।
- जल्लीकट्टू के परिणामस्वरूप राज्य के विभिन्न जिलों में मनुष्यों और सांँडों दोनों की मौत तथा चोटें आई हैं।
- यह देखा गया है कि पालतू जानवर अक्सर सांँडों के प्रति आक्रामक रूप से व्यवहार करते हैं, जिससे वे अत्यधिक क्रूरता का शिकार हो जाते हैं।
- आलोचकों ने जल्लीकट्टू की तुलना सती और दहेज जैसी प्रथाओं से की, जिन्हें कभी संस्कृति का हिस्सा माना जाता था लेकिन कानून के माध्यम से समाप्त कर दिया गया था।
नोट: कंबाला दलदल और मिट्टी से भरे धान के खेतों में एक पारंपरिक भैंसा दौड़ है जो आमतौर पर नवंबर से मार्च तक तटीय कर्नाटक (उडुपी और दक्षिण कन्नड़) में होती है।
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960
- इस अधिनियम का उद्देश्य ‘पशुओं को अनावश्यक दर्द पहुँचाने या पीड़ा देने से रोकना’ है, जिसके लिये अधिनियम में पशुओं के प्रति अनावश्यक क्रूरता और पीड़ा पहुँचाने के लिये दंड का प्रावधान किया गया है।
- वर्ष 1962 में इस अधिनियम की धारा 4 के तहत भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (AWBI) की स्थापना की गई थी।
- यह अधिनियम पशुओं और पशुओं के विभिन्न रूपों को परिभाषित करने के साथ ही वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये पशुओं पर प्रयोग (experiment) से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- पहले अपराध के मामले में ज़ुर्माना जो दस रुपए से कम नहीं होगा लेकिन यह पचास रुपए तक हो सकता है।
- यह वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये पशुओं पर प्रयोग से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- यह अधिनियम पशुओं की प्रदर्शनी और पशुओं का प्रदर्शन करने वालों के खिलाफ अपराधों से संबंधित प्रावधान करता है।
- पिछले अपराध के तीन वर्ष के भीतर किये गए दूसरे या बाद के अपराध के मामले में ज़ुर्माना पच्चीस रुपए से कम नहीं होगा, लेकिन यह एक सौ रुपए तक हो सकता है या तीन महीने तक कारावास की सज़ा या दोनों हो सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
मेन्सप्र. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के लिये क्या चुनौतियाँ हैं? (2019) |
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
पोखरण-II की 25वीं वर्षगाँठ
प्रिलिम्स के लिये:पोखरण- I, पोखरण- II, परमाणु अप्रसार संधि (NPT), राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस, 'नो फर्स्ट यूज़' नीति मेन्स के लिये:भारत की परमाणु क्षमताओं को आकार देने में पोखरण- II का महत्त्व, भारत का परमाणु सिद्धांत और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
भारत ने 11 मई, 2023 को पोखरण-II की 25वीं वर्षगाँठ मनाई, जो सफल परमाणु बम परीक्षण विस्फोटों को चिह्नित करती है और परमाणु शक्ति बनने की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ।
- 11 मई को उन भारतीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों एवं प्रौद्योगिकीविदों को सम्मानित करने के लिये राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के रूप में भी मनाया जाता है, जिन्होंने देश की वैज्ञानिक एवं तकनीकी उन्नति हेतु कार्य किया तथा पोखरण परीक्षणों के सफल आयोजन को सुनिश्चित किया।
पोखरण-II और परमाणु शक्ति के रूप में भारत की यात्रा:
- उद्भव:
- वर्ष 1945 में प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी होमी जे. भाभा ने बॉम्बे में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना हेतु सिफारिश की, जो परमाणु भौतिकी अनुसंधान के लिये समर्पित था।
- TIFR परमाणु भौतिकी के अध्ययन के लिये समर्पित भारत का पहला शोध संस्थान है।
- स्वतंत्रता के बाद भाभा ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को परमाणु ऊर्जा के महत्त्व के बारे में आश्वस्त किया और वर्ष 1954 में भाभा के निर्देशन में परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) की स्थापना की गई, जिसके प्रथम निदेशक होमी जहाँगीर भाभा थे।
- सार्वजनिक पहुँच से दूर DAE स्वायत्त रूप से संचालित है।
- वर्ष 1945 में प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी होमी जे. भाभा ने बॉम्बे में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) की स्थापना हेतु सिफारिश की, जो परमाणु भौतिकी अनुसंधान के लिये समर्पित था।
- भारत के परमाणु हथियारों की खोज का कारण:
- भारत के परमाणु हथियारों की खोज चीन और पाकिस्तान से इसकी संप्रभुता एवं सुरक्षा खतरों पर चिंताओं से प्रेरित थी।
- वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध और वर्ष 1964 में चीन के परमाणु परीक्षण ने भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता को बढ़ा दिया।
- वर्ष 1965 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध, जिसमें पाकिस्तान को चीन का समर्थन प्राप्त था, ने रक्षा क्षमताओं में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता पर बल दिया।
- पोखरण- I:
- परिचय:
- वर्ष 1970 के दशक तक भारत परमाणु बम परीक्षण करने में सक्षम था।
- पोखरण-I भारत का पहला परमाणु बम परीक्षण था जो 18 मई, 1974 को राजस्थान के पोखरण टेस्ट रेंज में किया गया था।
- इसका कोड-नेम स्माइलिंग बुद्धा था और आधिकारिक तौर पर इसे "कुछ सैन्य प्रभाव" के साथ "शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण" के रूप में वर्णित किया गया था।
- भारत अमेरिका, सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्राँस और चीन के बाद परमाणु हथियार क्षमता वाला दुनिया का छठा देश बन गया है।
- वर्ष 1970 के दशक तक भारत परमाणु बम परीक्षण करने में सक्षम था।
- परीक्षण के निहितार्थ:
- परीक्षणों को लगभग सार्वभौमिक निंदा और विशेष रूप से अमेरिका एवं कनाडा से गंभीर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा था।
- इसने परमाणु प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति को बाधित किया, साथ ही परमाणु के क्षेत्र में विकास की गति को को धीमा कर दिया था।
- घरेलू राजनीतिक अस्थिरता, जैसे वर्ष 1975 का आपातकाल एवं परमाणु हथियारों का विरोध भी प्रगति में बाधा बन गया।
- पोखरण-I के बाद:
- पाकिस्तान की इस क्षेत्र में उपलब्धियों के कारण 1980 के दशक में परमाणु हथियारों के विकास को पुनः बढ़ावा दिया गया।
- भारत ने अपने मिसाइल कार्यक्रम हेतु वित्तीयन में वृद्धि की और अपने प्लूटोनियम भंडार का विस्तार किया।
- परिचय:
- पोखरण-II:
- परिचय:
- पोखरण-द्वितीय राजस्थान के पोखरण रेगिस्तान में 11-13 मई, 1998 के बीच भारत द्वारा किये गए पाँच परमाणु बम परीक्षण विस्फोटों की शृंखला को संदर्भित करता है।
- कोड नाम - ऑपरेशन शक्ति, इस घटना ने भारत के दूसरे सफल प्रयास को चिह्नित किया।
- महत्त्व:
- पोखरण-द्वितीय ने परमाणु शक्ति के रूप में भारत की स्थिति को मज़बूत किया।
- इसने परमाणु हथियारों को रखने और तैनात करने की भारत की क्षमता का प्रदर्शन किया, इस प्रकार इसकी निवारक क्षमताओं को बढ़ाया।
- प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर खुद को पोखरण-द्वितीय के बाद परमाणु हथियार रखने वाले राज्य के रूप में घोषित किया।
- निहितार्थ:
- जबकि वर्ष 1998 में हुए परीक्षणों के कारण भी कुछ देशों (जैसे अमेरिका) ने प्रतिबंध लगाए, निंदा (Condemnation) 1974 की तरह सार्वभौमिक थी।
- भारत ने तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और बाज़ार क्षमता के बल पर एक प्रमुख राष्ट्र राज्य के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत किया।
- परिचय:
- भारत का परमाणु सिद्धांत:
- भारत ने विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध की नीति अपनाई, जिसमें कहा गया कि वह निवारक उद्देश्यों के लिये पर्याप्त परमाणु शस्त्रागार बनाए रखेगा लेकिन हथियारों की दौड़ में शामिल नहीं होगा।
- वर्ष 2003 में भारत आधिकारिक तौर पर अपने परमाणु सिद्धांत के साथ सामने आया, जिसमें स्पष्ट रूप से नो फर्स्ट यूज़ नीति (No First Use Doctrine) नीति पर विस्तार से बताया गया था।
- भारत की वर्तमान परमाणु क्षमता:
- फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स (FAS) के अनुसार, भारत के पास वर्तमान में लगभग 160 परमाणु हथियार हैं।
- भारत ने भूमि, वायु और समुद्र से परमाणु हथियारों के प्रक्षेपण की अनुमति देते हुए एक परिचालन परमाणु ट्रायड क्षमता प्राप्त की है।
- ट्रायड डिलीवरी सिस्टम में अग्नि, पृथ्वी और के-सीरीज़ बैलिस्टिक मिसाइल, लड़ाकू विमान एवं परमाणु पनडुब्बियाँ शामिल हैं।
परमाणु हथियारों के बारे में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर भारत की स्थिति:
- अप्रसार संधि (NPT) 1968:
- भारत इसका हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है; संधि की कथित भेदभावपूर्ण प्रकृति और परमाणु हथियार वाले राज्यों से पारस्परिक दायित्वों की कमी के बारे में चिंताओं का हवाला देते हुए NPT को स्वीकार करने से इनकार कर दिया गया।
- व्यापक परमाणु-परीक्षण-प्रतिबंध संधि (CTBT):
- भारत ने सीटीबीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं क्योंकि यह परमाणु हथियार संपन्न राज्यों (NWS) की समयबद्ध निरस्त्रीकरण प्रतिबद्धता का प्रबल समर्थक है और यह CTBT पर हस्ताक्षर न करने के कारण के रूप में इसमें प्रतिबद्धता की कमी का दावा करता है।
- परमाणु हथियार निषेध संधि (TPNW):
- यह 22 जनवरी, 2021 से प्रभावी है और भारत इस संधि का सदस्य नहीं है।
- परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG):
- भारत NSG का सदस्य नहीं है।
- वासेनार अरेंजमेंट:
- भारत दिसंबर 2017 को 42वें सदस्य के रूप में इसमें शामिल हुआ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त में से कौन-से परमाणु हथियार संपन्न राज्य हैं जिन्हें परमाणु हथियारों के अप्रसार पर संधि द्वारा मान्यता प्राप्त है, जिसे आमतौर पर परमाणु अप्रसार संधि (NPT) के रूप में जाना जाता है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. किसी देश के 'परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह' का सदस्य बनने का/के क्या परिणाम है/ हैं? (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. क्या भारत को अपनी बढ़ती ऊर्जा आवश्यकताओं को देखते हुए नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करते रहना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और आशंकाओं पर चर्चा कीजिये। (2018) प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की सवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिये। भारत में तीव्र प्रजनक रिएक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ हैं? (2017) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
स्वयं सहायता समूह कुदुंबश्री
प्रिलिम्स के लिये:स्वयं सहायता समूह, कुदुंबश्री, गरीबी उन्मूलन, नाबार्ड, स्थानीय स्वशासन, उज्ज्वला योजना मेन्स के लिये:महिला अधिकारिता और गरीबी उन्मूलन में स्वयं सहायता समूह की भूमिका। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के राष्ट्रपति ने देश में सबसे बड़े स्वयं सहायता समूह (Self Help Group- SHG) नेटवर्क, कुदुंबश्री के 25वीं वर्षगाँठ समारोह की शुरुआत की।
- राष्ट्रपति ने "चुवाडु" (जिसका अर्थ पदचिह्न है) नामक एक पुस्तिका भी जारी की जिसमें इस समूह के भविष्य उन्मुखी विचारों को रेखांकित किया गया है एवं इसकी अब तक की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला गया है।
कुदुंबश्री:
- परिचय:
- कुदुंबश्री की स्थापना वर्ष 1997 में केरल में की गई थी, जिसका उद्देश्य सरकार द्वारा नियुक्त कार्यबल की सिफारिशों के बाद गरीबी उन्मूलन एवं महिलाओं को सशक्त बनाना था।
- मिशन को भारत सरकार और नाबार्ड (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) के सहयोग से शुरू किया गया था।
- मलयालम भाषा में कुदुंबश्री का अर्थ है 'परिवार की समृद्धि' और इसलिये यह गरीबी उन्मूलन एवं महिला सशक्तीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है, लोकतांत्रिक नेतृत्व को बढ़ावा देता है तथा "कुदुंबश्री परिवार" के अंतर्गत एक सहायक संरचना प्रदान करता है।
- कुदुंबश्री की स्थापना वर्ष 1997 में केरल में की गई थी, जिसका उद्देश्य सरकार द्वारा नियुक्त कार्यबल की सिफारिशों के बाद गरीबी उन्मूलन एवं महिलाओं को सशक्त बनाना था।
- संचालन: मिशन त्रि-स्तरीय संरचना के माध्यम से संचालित होता है, जिसमें शामिल हैं,
- प्राथमिक स्तर पर नेबरहुड ग्रुप (NHGs)
- वार्ड स्तर पर क्षेत्र विकास समितियाँ (ADS)
- स्थानीय सरकार के स्तर पर सामुदायिक विकास सोसायटी (CDS)
- यह संरचना स्वयं सहायता समूहों के एक बड़े नेटवर्क का निर्माण करती है।
- लक्ष्य:
- कुदुंबश्री का लक्ष्य स्थानीय स्वशासन की सक्रिय भागीदारी के साथ 10 वर्षों की एक विशिष्ट समय सीमा के भीतर गरीबी को पूर्ण रूप से समाप्त करना है।
- अपने मिशन एवं स्वयं सहायता समूह दृष्टिकोण के माध्यम से, कुदुंबश्री का उद्देश्य परिवारों का उत्थान करना तथा महिलाओं को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति एवं समग्र कल्याण में सुधार हेतु सशक्त बनाना है।
- महत्त्व:
- इस समूह ने महिलाओं को सशक्त बनाने, रोज़गार सृजित करने, गरीबी को करने के साथ ही विभिन्न सामाजिक पहलें शुरू की हैं।
- यह केरल की सबसे बड़ी सामाजिक पूंजी बन गई है तथा इसके सदस्य स्थानीय सरकारी निकायों में निर्वाचित प्रतिनिधि हैं।
- पाँच वर्ष पूर्व केरल में आई भीषण बाढ़ के दौरान स्वयं सहायता समूह नेटवर्क, कुदुंबश्री ने मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में 7 करोड़ रुपए का अनुदान दिया था।
- इस समूह ने Google और Apple जैसी प्रौद्योगिकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों की तुलना में अधिक धन का योगदान दिया और यहाँ तक कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के योगदान को भी पीछे छोड़ दिया।
- कुदुंबश्री के कई कार्यकर्त्ता स्वयं बाढ़ के शिकार हुए, फिर भी उन्होंने राहत कोष में योगदान देकर दूसरों की मदद की।
स्वयं सहायता समूह:
- परिचय:
- स्वयं सहायता समूह (SHG) कुछ ऐसे लोगों का एक अनौपचारिक संघ होता है जो अपने रहन-सहन की परिस्थितियों में सुधार करने के लिये स्वेच्छा से एक साथ आते हैं।
- सामान्यतः एक ही सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों का ऐसा स्वैच्छिक संगठन स्वयं सहायता समूह (SHG) कहलाता है, जिसके सदस्य एक-दूसरे के सहयोग के माध्यम से अपनी साझा समस्याओं का समाधान करते हैं।
- SHG स्वरोज़गार और गरीबी उन्मूलन को प्रोत्साहित करने के लिये "स्वयं सहायता" (Self-Employment) की धारणा पर विश्वास करता है।
- उद्देश्य:
- रोज़गार और आय सृजन गतिविधियों के क्षेत्र में गरीबों तथा हाशिये पर पड़े लोगों की कार्यात्मक क्षमता का निर्माण करना।
- सामूहिक नेतृत्व और आपसी विमर्श के माध्यम से संघर्षों का समाधान करना।
- बाज़ार संचालित दरों पर समूह द्वारा तय की गई शर्तों के साथ संपार्श्विक मुक्त ऋण (Collateral Free Loans) प्रदान करना।
- संगठित स्रोतों से उधार लेने का प्रस्ताव रखने वाले सदस्यों के लिये सामूहिक गारंटी प्रणाली के रूप में कार्य करना।
- निर्धन अपनी बचत को एकत्रित करते हैं और इसे बैंकों में जमा करते हैं। बदले में उन्हें अपनी सूक्ष्म इकाई उद्यम शुरू करने के लिये कम ब्याज दर पर आसानी से ऋण प्राप्त होता है।
महिला सशक्तीकरण और गरीबी से लड़ने में स्वयं सहायता समूहों की भूमिका:
- आर्थिक सशक्तीकरण:
- SHG ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को आय के स्वतंत्र स्रोत बनाने का अवसर प्रदान करते हैं। महिलाएँ अपना खुद का व्यवसाय शुरू करने और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने के लिये अपने कौशल एवं प्रतिभा का उपयोग कर सकती हैं।
- स्वयं सहायता समूहों (SHG) के माध्यम से पूंजी तक पहुँच महिलाओं को अपने उद्यमों में निवेश करने और अपनी आर्थिक गतिविधियों का विस्तार करने में सक्षम बनाती है।
- सामाजिक बाधाओं से आगे निकलना:
- प्रतिगामी सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने और महिलाओं को निर्णय लेने हेतु सशक्त बनाने में स्वयं सहायता समूह महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- SHG में भागीदारी के माध्यम से महिलाएँ आत्मविश्वास, मुखरता और नेतृत्त्व कौशल हासिल करती हैं, जो उन्हें लैंगिक रूढ़ियों को चुनौती देने में मदद करती हैं।
- सशक्त महिलाएँ स्थानीय शासन (जैसे, ग्राम सभा) में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं और यहाँ तक कि चुनाव भी लड़ती हैं।
- बेहतर सामाजिक-आर्थिक स्थिति:
- SHG के गठन से समाज और परिवारों में महिलाओं की स्थिति में सुधार करने में कई प्रकार का प्रभाव पड़ता है।
- महिलाएँ बेहतर सामाजिक-आर्थिक स्थिति का अनुभव करती हैं, जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और संसाधनों तक बेहतर पहुँच शामिल है।
- SHG महिलाओं को अपनी राय व्यक्त करने और निर्णय लेने की प्रक्रिया में योगदान देने के लिये एक मंच प्रदान करके उनके आत्म-सम्मान और आत्मविश्वास में योगदान करते हैं।
- वित्तीय सेवाओं तक अभिगम:
- NABARD जैसे संगठनों द्वारा संचालित SHG-बैंक लिंकेज कार्यक्रम, SHG के लिये ऋण तक आसान पहुँच की सुविधा प्रदान करते हैं।
- प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र के उधार मानदंड और सुनिश्चित प्रतिफल बैंकों को स्वयं सहायता समूहों को उधार देने के लिये प्रोत्साहित करते हैं।
- यह पारंपरिक साहूकारों और गैर-संस्थागत स्रोतों पर महिलाओं की निर्भरता को कम करता है, जिससे बेहतर और अधिक किफायती वित्तीय सेवाएँ प्राप्त होती हैं।
- रोज़गार के वैकल्पिक अवसर:
- SHG सूक्ष्म उद्यम स्थापित करने के लिये सहायता प्रदान करते हैं तथा महिलाओं को कृषि आधारित आजीविका के विकल्प प्रदान करते हैं।
- महिलाएँ अपने आय स्रोतों में विविधता लाते हुए व्यक्तिगत व्यवसाय जैसे सिलाई, किराने की दुकान और रिपेयर सर्विसेज़ स्थापित कर सकती हैं।
महिला सशक्तीकरण और गरीबी उन्मूलन से संबंधित पहलें
- उज्ज्वला योजना
- स्वाधार गृह
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
- प्रधानमंत्री महिला शक्ति केंद्र योजना
- महिला ई हाट
- महिला बैंक
- महिला कॉयर योजना
- महिला उद्यमिता मंच (WEP)
- महिला प्रशिक्षण और रोज़गार कार्यक्रम सहयोग योजना (STEP)
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: क्या लैंगिक असमानता, गरीबी और कुपोषण के दुश्चक्र को महिला के स्वयं सहायता समूहों को सूक्ष्म वित्त (माइक्रोफाइनेंस) प्रदान करके तोड़ा जा सकता है? सोदाहरण स्पष्ट कीजिये। |