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भारतीय अर्थव्यवस्था

विदेशी संप्रभु बॉण्ड

  • 24 Jul 2019
  • 5 min read

संदर्भ

2019-20 के बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने विदेशी संप्रभु बॉण्ड (Foreign sovereign bond) का जिक्र किया। इस बॉण्ड के माध्यम से सरकार द्वारा अपने सकल उधारियों का एक हिस्सा विदेशी बाज़ारों से प्राप्त करने का अनुमान व्यक्त किया गया है।

बॉण्ड क्या है?

  • संप्रभु बॉण्ड सरकार द्वारा जारी प्रतिभूतियाँ (Securities) होती है जिनके द्वारा सरकार राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) के वित्तीयन तथा अस्थायी नकदी बेमेल (Temporary Cash Mismatch) का प्रबंधन करती है।
  • यह रुपए अथवा विदेशी मुद्रा (डॉलर, आदि) में भी जारी किया जा सकता है। भारत में अभी तक सरकार ने केवल घरेलू बाज़ार में स्थानीय मुद्रा (रुपया आधारित) में ही संप्रभु बॉण्ड जारी किये है। हालाँकि अब भारत सरकार द्वारा विदेशी संप्रभु बॉण्ड विदेशी मुद्रा (डॉलर) में भी जारी किये जाएंगे।
  • ऐसे निवेशकों के लिये मुद्रा स्थिरता महत्त्वपूर्ण होती है जो रुपए आधारित सरकारी बॉण्ड में निवेश करने का जोखिम उठाते हैं। ऐसी स्थिति में विदेशी संप्रभु बॉण्ड एक बड़ा अंतर उत्पन्न करते हैं। विदेशी मुद्रा (अधिकतर अमेरिकी डॉलर में) में जारी सरकारी बॉण्ड में मुद्रा जोखिम निवेशक से जारीकर्त्ता (सरकार) की ओर स्थानांतरित हो जाता है। इस तरह के बॉण्ड के लेन-देन का निपटारा यूरोक्लियर (Euroclear) पर किया जा सकता है, यह दुनिया की सबसे बड़ी प्रतिभूति निपटान प्रणाली है जो निवेश को विदेशी निवेशकों के लिये आसान बनाती है।

लाभ:

  • अन्य उभरते बाज़ारों की तुलना में वैश्विक ऋण बाज़ार सूचकांकों (Global Debt Indices) में भारत का प्रतिनिधित्व काफी कम है। यह वैश्विक ऋण सूचकांकों में भारत के सरकारी बॉण्ड को शामिल करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे भारत में अधिक विदेशी धन की आवक हो सकेगी।
  • भारतीय संप्रभु बॉण्ड के वैश्विक बेंचमार्क (Global Benchmarks) में शामिल होने से रुपए आधारित संप्रभु बॉण्ड (Rupee Denominated Sovereign Bonds) भी खरीदारों को आकर्षित कर सकेंगे।
  • जिस दर पर सरकार विदेशों से संप्रभु बॉण्ड (Foreign Sovereign Bond) द्वारा उधार लेगी, वह अन्य कॉर्पोरेट बॉण्ड के मूल्य निर्धारण के लिये एक मानदंड (Yardstick) के रूप में कार्य करेगा, जिससे भारत इंक को विदेशों से धन जुटाने में मदद मिलेगी।

हानियाँ:

  • भारत द्वारा बॉण्ड के माध्यम से प्राप्त होने वाले विदेशी धन से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होगी, इससे डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपए का अधिमूल्यन होगा जो आयात को प्रोत्साहित (जबकि सरकार आयात को नियंत्रित करना चाहती है) करेगा जबकि निर्यात को हतोत्साहित (जबकि सरकार इसे प्रोत्साहित करना चाहती है) करेगा।
  • डॉलर आधारित संप्रभु बॉण्ड वैश्विक ब्याज दरों के प्रति अधिक संवेदनशील होते है। ऐसे में यह भारतीय अर्थव्यवस्था को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते है। वर्तमान में भारतीय ऋण में विदेशी निवेशकों की भागीदारी कम है, यह सरकारी प्रतिभूति का मात्र 3.6% है, जबकि इंडोनेशिया में यह 38% और मलेशिया में 24% है। इस संदर्भ में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा आवश्यक प्रयास किये जा रहे हैं ताकि विदेशी निवेशकों के लिये निवेश की स्थिति को और आसान बनाया जा सकें।

घरेलू बाज़ार पर प्रभाव:

  • इस प्रकार का कदम घरेलू बाज़ार में सरकारी बॉण्ड के प्रतिफल (Bond Yield) को कम कर सकता है जिससे घरेलू, बचत, डाकघर जमाओं के ब्याज दरों में कमी आ सकती है।

यूरोक्लियर (Euroclear)

यूरोक्लियर एक बेल्ज़ियम-आधारित वित्तीय सेवा कंपनी (Financial Services Company) है जो प्रतिभूतियों के लेन-देन के निपटान (Settlement of Securities Transactions) के साथ-साथ इन प्रतिभूतियों की सुरक्षित और परिसंपत्ति सेवाओं (Asset Servicing) में विशेषज्ञता रखती है।

स्रोत: द हिंदू

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