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डेली न्यूज़

  • 19 Dec, 2020
  • 62 min read
भारतीय राजनीति

संवैधानिक विफलता से संबंधित उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय (HC) के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता की जाँच करने का इरादा व्यक्त किया गया था, जो कि संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करने हेतु आवश्यक है।

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय खंडपीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश को ‘निराशाजनक’ बताते हुए इस मामले को क्रिसमस के अवकाश के बाद के लिये सूचीबद्ध किया है।

प्रमुख बिंदु

आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय (HC) का निर्णय

  • अक्तूबर 2020 में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं की सुनवाई करते हुए आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय (HC) ने स्वतः संज्ञान लेकर राज्य अधिवक्ता को यह तय करने में सहयोग करने हेतु तलब किया था कि राज्य की मौजूदा स्थिति के मद्देनज़र न्यायालय को संवैधानिक तंत्र की विफलता के निष्कर्ष तक पहुँचना चाहिये अथवा नहीं।
    • बंदी प्रत्यक्षीकरण उस व्यक्ति के संबंध में न्यायालय द्वारा जारी आदेश होता है, जिसे किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा हिरासत में रखा गया है। यह किसी व्यक्ति को जबरन हिरासत में रखने के विरुद्ध होता है।
    • यह रिट मनमाने ढंग से हिरासत में लिये जाने के विरुद्ध व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है और इसे सार्वजनिक प्राधिकरणों या व्यक्तिगत दोनों के विरुद्ध जारी किया जा सकता है।

राज्य सरकार की अपील

  • राज्य सरकार का तर्क है कि उच्च न्यायालय ने बिना किसी वैध आधार के संवैधानिक तंत्र की विफलता की बात की है।
  • राज्य सरकार ने कहा कि संवैधानिक तंत्र की विफलता से संबंधित अनुच्छेद 356 के तहत निर्धारित शक्तियाँ विशिष्ट रूप से कार्यपालिका में निहित हैं न कि न्यायपालिका में।
  • संवैधानिक ढाँचे के तहत राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर निर्णय लेना न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र नहीं है, क्योंकि उनके पास इस संबंध में कोई भी न्यायिक मानक मौजूद नहीं है।
  • यह अधिकार कार्यपालिका में निहित है और इस प्रकार के अधिकार के प्रयोग का निर्णय विस्तृत तथ्यात्मक विश्लेषण पर आधारित होना अनिवार्य है।
  • इस तरह आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय का आदेश कार्यपालिका की शक्तियों पर एक गंभीर अतिक्रमण है और साथ ही यह ‘शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत’ का भी उल्लंघन करता है, अतः यह निर्णय संविधान की मूल संरचना के विरुद्ध है।
    • शक्ति के पृथक्करण से आशय सरकार के कार्यों (विधायी, कार्यकारी और न्यायिक) के विभाजन से है।
    • चूँकि किसी भी कानून के निर्माण, क्रियान्वयन और प्रशासन के लिये राज्य के तीन अंगों (विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका) की आवश्यकता होती है, जिससे मनमाने ढंग से शक्तियों के प्रयोग की संभावना कम हो जाती है।

राष्ट्रपति शासन

  • यह राज्य सरकार के निलंबन और उस राज्य के प्रत्यक्ष तौर पर केंद्र सरकार के नियंत्रण में आने की स्थिति को संदर्भित करता है। इसे 'राज्य आपातकाल' या 'संवैधानिक आपातकाल' के रूप में भी जाना जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1994 में बोम्मई मामले में उन सभी स्थितियों को सूचीबद्ध किया था, जहाँ अनुच्छेद 356 के तहत शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता था।
    • ऐसी ही एक स्थिति है- ‘त्रिशंकु सदन’ (Hung Assembly) यानी वह स्थिति जहाँ आम चुनावों के बाद कोई भी दल बहुमत हासिल नहीं पाता है।
  • केंद्रीय मंत्रिपरिषद (कार्यपालिका) की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 356 के माध्यम से राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है।
    • राष्ट्रपति शासन तब लागू किया जाता है, जब राष्ट्रपति, राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट प्राप्त करने पर इस बात से सहमत हो कि राज्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई है, जहाँ राज्य का प्रशासन संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा रहा है।
  • संसदीय स्वीकृति और अवधि:
    • राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद दो महीने की अवधि के भीतर इसके लिये संसद के दोनों सदनों से मंज़ूरी लेना आवश्यक होता है।
    • यह मंज़ूरी दोनों सदनों में साधारण बहुमत यानी सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से प्राप्त की जा सकती है।
    • प्रारंभ में राष्ट्रपति शासन केवल छह महीने के लिये वैध होता है और इसे संसद की मंज़ूरी से अधिकतम तीन वर्ष के लिये बढ़ावा जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

आरक्षण पर सिफारिशें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (Indian Institutes of Technology- IITs) में छात्रों के प्रवेश और संकाय (Faculty) की भर्ती में आरक्षण के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु सरकार द्वारा नियुक्त आठ सदस्यीय समिति ने सुझाव प्रस्तुत किया है।

प्रमुख बिंदु

समिति के विषय में:

  • इस समिति की अध्यक्षता IIT दिल्ली के निदेशक ने की और इसमें आईआईटी कानपुर के निदेशक, सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग के सचिव, जनजातीय मामलों, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग के प्रतिनिधियों के अलावा IIT बॉम्बे तथा IIT मद्रास के सदस्य शामिल थे।
  • यह जून 2020 में शिक्षा मंत्रालय को सौंपी गई थी, जिसे सूचना का अधिकार (Right to Information) अधिनियम, 2005 के तहत उपलब्ध कराया गया।

सुझाव: 

  • राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थानों के रूप में स्थापित और मान्यता प्राप्त होने के कारण IIT को केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम, 2019 की अनुसूची में उल्लिखित "उत्कृष्टता के संस्थानों" (Institutions of Excellence) की सूची में शामिल किया जाना चाहिये।
    • अधिनियम की धारा 4 "उत्कृष्टता, अनुसंधान, राष्ट्रीय और सामरिक महत्व के संस्थानों" को अनुसूची में उल्लिखित और "अल्पसंख्यक संस्थानों" को आरक्षण प्रदान करने से छूट देती है।
    • अधिनियम की धारा 4 के तहत IIT संस्थानों को छोड़कर कई अनुसंधान संस्थान जैसे- टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, नेशनल ब्रेन रिसर्च सेंटर, स्पेस फिजिक्स लेबोरेटरी आदि  शामिल हैं।
  • समिति ने सिफारिश की है कि यदि आरक्षण से पूर्ण छूट देना संभव न हो तो आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) सहित सभी श्रेणियों के लिये आरक्षण नीतियों को  केवल सहायक प्रोफेसर ग्रेड I और ग्रेड II तक ही सीमित रखा जाना चाहिये।
  • किसी विशेष वर्ष की अनुपलब्धता के कारण रिक्त पदों को बाद के वर्षों  के लिये आरक्षित करना।
  • आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों को आकर्षित करने के लिये विशेष भर्ती अभियान संचलित करना।
  • अनेक मुद्दों को संबोधित करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि "एक निर्धारित समय में  लक्ष्यों को प्राप्त करने पर ज़ोर देने वाली प्रणाली" और "विशिष्ट कोटा" नीति का पालन नहीं किया जाना चाहिये ताकि IIT उत्कृष्टता, उत्पादन, अनुसंधान और शिक्षण के मामले में दुनिया के अन्य शीर्ष संस्थानों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सके।
  • पैनल PhD कार्यक्रम में शामिल होने के इच्छुक आरक्षित वर्गों के छात्रों के लिये दो-वर्षीय अनुसंधान सहायता का प्रस्ताव करता है।
    • पैनल ने इस बिंदु पर प्रकाश डाला कि PhD कार्यक्रम में आरक्षित श्रेणी के छात्रों का नामांकन कम होने के कारण IIT संस्थानों में संकाय के रूप में भर्ती के लिये उपलब्ध आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवारों की संख्या गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है।

केंद्रीय शैक्षिक संस्थान (शिक्षक संवर्ग में आरक्षण) अधिनियम, 2019

  • यह शिक्षक संवर्ग की सीधी भर्ती में अनुसूचित जातियों,अनुसूचित जनजातियों, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (SCs/STs/SEBCs/EWS) के लिये पदों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • अधिनियम कुछ मामलों में लागू नहीं होता है:
    • अधिनियम की अनुसूची में निर्दिष्ट उत्कृष्टता, अनुसंधान संस्थानों, राष्ट्रीय और सामरिक महत्त्व के संस्थानों पर।
    • एक अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान पर।
  • फिर भी केंद्र सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना द्वारा समय-समय पर इसकी अनुसूची में संशोधन कर सकती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

यंग चैंपियंस ऑफ द अर्थ: UN

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme- UNEP) द्वारा घोषित प्रतिष्ठित "यंग चैंपियंस ऑफ द अर्थ" (Young champions Of The Earth) के सात विजेताओं में एक 29 वर्षीय भारतीय उद्यमी भी शामिल है। यह पुरस्कार नए विचारों और नवोन्मेषी कदमों के माध्यम से पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों के समाधान की दिशा में काम करने वालों को  दिया जाता है।

प्रमुख बिंदु

यंग चैंपियंस ऑफ़ द अर्थ के संबंध में:

  • यंग चैंपियंस ऑफ द अर्थ की शुरुआत वर्ष 2017 में की गई थी, इसका उद्देश्य 18 से 30 वर्ष की आयु के ऐसे व्यक्तियों को प्रोत्साहित करना है, जिनमें सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव पैदा करने की क्षमता है। 
  • वर्ष 2020 में, विश्व के प्रत्येक से सात युवा चैंपियंस चुने जाएंगे, ये हैं- अफ्रीका, यूरोप, लैटिन अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, पश्चिम एशिया तथा दो का चयन एशिया एवं प्रशांत से। 
  • प्रत्येक विजेता को निम्नलिखित लाभ होंगे-
    • सीड फंडिंग में 10,000 अमेरिकी डॉलर।
    • संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठक में उपस्थिति।
    • चैंपियंस ऑफ़ अर्थ अवार्ड समारोह में गणमान्य लोगों से परिचय।
    • साक्षात्कार और ऑनलाइन तथा वैश्विक मीडिया के माध्यम से प्रचार और मान्यता।

वर्ष 2020 के 7 विजेता:

  • फतेहमा अल्ज़ेला, कुवैत: फतेहमा ने एक गैर-लाभकारी रीसाइक्लिंग पहल ‘इको स्टार’ की स्थापना की। यह कुवैत में स्कूलों, घरों और व्यवसायों से कचरे के बदले पेड़ों और पौधों का आदान-प्रदान करता’ है। 
  • लेफतेरिस अरपाकिस, ग्रीस: (मेडिटेरेनियन क्लीनअप) ये समुद्र से प्लास्टिक एकत्र करने के लिये स्थानीय मछली पकड़ने वाले समुदाय को प्रशिक्षित, सशक्त और प्रोत्साहित करते हैं तथा एकत्र किये गए प्लास्टिक का पुनर्चक्रण किया जाता है।
  • मैक्स हिडाल्गो क्विंटो, पेरू (यावा): इन्होंने पोर्टेबल पवन टरबाइन का निर्माण किया, जो वायुमंडलीय आर्द्रता और धुंध से प्रतिदिन 300 लीटर पानी का उत्पादन करने में सक्षम  है।
  • निरिया एलिसिया गार्सिया, संयुक्त राज्य अमेरिका: (Run4Salmon) संयुक्त राज्य अमेरिका में गार्सिया ने चिनूक सामन प्रजातियों की रक्षा के लिये अपने कई साल समर्पित किये हैं, जिनकी संख्या काफी लंबे समय से पश्चिम अमेरिका में लुप्तप्राय स्थिति में रही है।
  • नजांबी मती, केन्या: (हरित केन्या का निर्माण) इन्हें पुनर्चक्रित प्लास्टिक, कचरे और रेत से कम लागत वाली निर्माण सामग्री बनाने के लिये यह पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है।
  • शियाओयुआन रेन, चीन: ( MyH2O) यह स्वच्छ पानी के लिये एक डेटा प्लेटफ़ॉर्म है जो ग्रामीण चीन के एक हजार गाँवों में भूजल की गुणवत्ता का परीक्षण और रिकॉर्ड का पता लगाता है, जिससे उन्हें स्वच्छ जल की उपलब्धता वाले स्थान का पता चल सके है।
  • विद्युत मोहन, भारत: (टेकाचार) इन्होंने सस्ते और पोर्टेबल बायोमास अपग्रेडिंग उपकरण बनाए हैं।

टेकाचार:

टेकाचार के संबंध में:

  • टेकाचार एक सामाजिक उद्यम है जिसकी स्थापना वर्ष 2018 में विद्युत मोहन द्वारा की गई थी।
  • यह उद्यम किसानों को अपनी फसल का अपशिष्ट न जलाने के लिये प्रेरित करता है और इन अपशिष्टों का इस्तेमाल से उन्हें अतिरिक्त आमदनी के उपाय बताता है।
  • यह जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और प्रदूषण के त्रिस्तरीय संकट का एक सार्थक और तत्काल समाधान है।

प्रक्रिया: 

  • टेकाचार में किसानों से चावल की भूसी, पुआल और नारियल के छिलके खरीदकर उन्हें चारकोल में परिवर्तित किया जाता है।

लाभ: 

  • कृषि अवशेषों को खुले में जलाना विश्व के कई हिस्सों में वायु प्रदूषण का एक बड़ा कारक है और यह अभिनव तकनीक किसानों को यह समझाने में मदद कर सकती है कि वर्तमान में हमारे पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करने के लिये कचरे को कैसे एक मूल्यवान संसाधन के रूप में बदला जा सकता है।
  • यह ग्रामीण किसानों को उनकी फसल के अवशेषों को ईंधन, उर्वरकों और मूल्यवर्द्धित रसायनों जैसे सक्रिय कार्बन (AC) में परिवर्तित करके 40% अधिक आय अर्जित करने में सक्षम बनाता है।

क्षमता: 

  • वर्ष 2030 तक टेकाचार इस समस्या से प्रभावित 300 मिलियन किसानों की समस्या को हल कर सकता है, यह ग्रामीण आय में अतिरिक्त 4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की  और रोजगार में भी वृद्धि करेगा तथा CO2 के उत्सर्जन में भी कमी करेगा है।

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम

(United Nations Environment Programme- UNEP):

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है। इसकी स्थापना 1972 में मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम में आयोजित संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान हुई थी।
  • इसका मुख्यालय नैरोबी (केन्या) में है। इस संगठन का उद्देश्य मानव द्वारा पर्यावरण को प्रभावित करने वाले सभी मामलों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना तथा पर्यावरण संबंधी जानकारी का संग्रहण, मूल्यांकन एवं पारस्परिक सहयोग सुनिश्चित करना है।
  • UNEP पर्यावरण संबंधी समस्याओं के तकनीकी एवं सामान्य निदान हेतु एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करता है।
  • UNEP अन्य संयुक्त राष्ट्र निकायों के साथ सहयोग करते हुए सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुका है।
  • प्रमुख रिपोर्ट: उत्सर्जन गैप रिपोर्ट, वैश्विक पर्यावरण आउटलुक, फ्रंटियर्स, इन्वेस्ट इनटू हेल्थी प्लानेट।
  • प्रमुख अभियान: बीट पोल्यूशन, UN75, विश्व पर्यावरण दिवस, वाइल्ड फॉर लाईफ।

स्रोत:  इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

बिटकॉइन: महत्त्व और चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में बिटकॉइन (एक क्रिप्टो-करेंसी) ने 20,000 अमेरिकी डॉलर के मूल्य को पार कर लिया है।

  • चूँकि बिटकॉइन जैसी क्रिप्टो-करेंसीज़ के मूल्य काफी अस्थिर होते हैं, इसलिये बिटकॉइन के मूल्य में हालिया वृद्धि की कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं की जा सकती है।
  • क्रिप्टो-करेंसी का आशय एक विशिष्ट प्रकार की डिजिटल मुद्रा से है, जो कि विकेंद्रीकृत होती है और इसे क्रिप्टोग्राफिक एन्क्रिप्शन तकनीक के माध्यम से संरक्षित किया जाता है।
    • बिटकॉइन, एथरियम और रिपल आदि क्रिप्टो-करेंसी के कुछ प्रमुख उदाहरण हैं।

प्रमुख बिंदु

परिचय

  • बिटकॉइन एक प्रकार की डिजिटल मुद्रा या क्रिप्टो-करेंसी है, जो तत्काल भुगतान को सक्षम बनाती है। बिटकॉइन को वर्ष 2009 में प्रस्तुत किया गया था। 
    • यह एक ओपन-सोर्स प्रोटोकॉल पर आधारित है और इसे किसी भी केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा जारी नहीं किया जाता है।

इतिहास

  • बिटकॉइन की उत्पत्ति को लेकर अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं है। कई लोग मानते हैं कि वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के बाद सातोशी नाकामोतो नामक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह द्वारा बिटकॉइन के रूप में पहली क्रिप्टो-करेंसी विकसित की गई थी, हालाँकि सातोशी नाकामोतो के बारे में कोई सूचना उपलब्ध नहीं है।

प्रयोग

  • मूलतः बिटकॉइन का उद्देश्य ‘फिएट’ करेंसी का एक विकल्प और किसी वित्तीय लेन-देन में शामिल दो पक्षों के बीच सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत विनिमय का प्रत्यक्ष माध्यम प्रदान करना था। 
    • ‘फिएट’ करेंसी किसी देश की सरकार या केंद्रीय बैंक द्वारा जारी मुद्रा होती है।
      • यह केंद्रीय बैंकों को अर्थव्यवस्था पर अधिक नियंत्रण प्रदान करती है, क्योंकि इसके माध्यम से केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा के प्रवाह को नियंत्रित कर सकते हैं।
      • अधिकांश आधुनिक कागज़ी मुद्राएँ जैसे कि अमेरिकी डॉलर और भारतीय रुपया आदि फिएट’ करेंसी के उदाहरण हैं।

बिटकॉइन का रिकॉर्ड (ब्लॉकचेन)

  • बिटकॉइन में अब तक किये गए सभी लेन-देन एन्क्रिप्टेड रूप में एक सार्वजनिक बही-खाते’ (Public Ledger) में मौजूद हैं।
    • लेन-देन को बिटकॉइन की उप-इकाइयों के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।
      • सातोशी एक बिटकॉइन का सबसे छोटी इकाई होती है।
  • इस तरह हम कह सकते हैं कि ब्लॉकचेन एक साझा तथा अपरिवर्तनीय खाता-बही है जो एक व्यापार नेटवर्क में लेन-देन को रिकॉर्ड करने तथा संपत्तियों को ट्रैक करने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाता है।
    • संपत्ति, मूर्त (घर, कार, नकदी, भूमि) अथवा अमूर्त (बौद्धिक संपदा, पेटेंट, कॉपीराइट) किसी भी रूप में हो सकती है।
  • वस्तुतः ब्लॉकचेन नेटवर्क पर ऐसी सभी चीज़ों को ट्रैक करने के साथ ही लेन-देन किया जा सकता है, जिनका कुछ मूल्य है। इससे जोखिम और लागत दोनों में कटौती होती है।
    • ‘ब्लॉकचेन’ तकनीक को समझने के लिये ‘गूगल डॉक’ (Google Doc) का उदाहरण लिया जा सकता है।
    • जब ‘गूगल डॉक’ में कोई एक ‘डॉक्यूमेंट’ बनाया जाता है और इसे लोगों के समूह के साथ साझा किया जाता है, तो वह ‘डॉक्यूमेंट’ कॉपी या स्थानांतरित होने के बजाय लोगों के बीच वितरित हो जाता है। 
    • यह एक विकेंद्रीकृत वितरण शृंखला का निर्माण करता है, जो सभी को एक ही समय में उस ‘डॉक्यूमेंट’ तक पहुँच प्रदान करता है। 
  • विगत कुछ वर्षों में ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी के कई नवीन अनुप्रयोग सामने आए हैं। 
    • आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की सरकारों ने ब्लॉकचेन तकनीक की ट्रैक करने की विशेषता को ध्यान में रखते हुए भूमि रिकॉर्ड के लिये इसका प्रयोग किया है।
    • चुनाव आयोग (EC) भी दूरस्थ स्थान से मतदान करने में सक्षम बनाने के लिये ब्लॉकचेन तकनीक के उपयोग की संभावनाएँ तलाश रहा है।

बिटकॉइन प्राप्त करना

  • बिटकॉइन को मुख्यतः तीन तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है: 
    • यदि आवश्यक कंप्यूटिंग क्षमता उपलब्ध है तो एक नया बिटकॉइन की माइनिंग की जा सकती है।
    • एक्सचेंजों के माध्यम से भी बिटकॉइन खरीदा जा सकता है।
    • इसके अलावा पर्सन-टू-पर्सन लेन-देन के माध्यम से भी बिटकॉइन को प्राप्त किया जा सकता है।
  • बिटकॉइन माइनर वे लोग होते हैं, जो बिटकॉइन लेन-देन को सत्यापित करते हैं और अपने कंप्यूटर हार्डवेयर के माध्यम से बिटकॉइन नेटवर्क को सुरक्षित करते हैं। इसे बिटकॉइन माइनिंग कहा जाता है।
    • बिटकॉइन प्रोटोकॉल को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि नए बिटकॉइन का निर्माण एक निश्चित दर पर ही होता है।
    • किसी भी डेवलपर या माइनर के पास अपने लाभ को बढ़ाने के लिये सिस्टम में हेरफेर करने की शक्ति नहीं होती है।
    • बिटकॉइन का एक महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि केवल 21 मिलियन बिटकॉइन इकाइयां ही बनाई जा सकती हैं।
  • बिटकॉइन एक्सचेंज एक बैंक की तरह ही कार्य करता है, जहाँ एक व्यक्ति पारंपरिक मुद्रा के साथ बिटकॉइन खरीदता है और बेचता है। मांग और आपूर्ति के आधार पर बिटकॉइन की कीमत में उतार-चढ़ाव होता रहता है।

बिटकॉइन विनियमन

  • बिटकॉइन की आपूर्ति को सिस्टम के उपयोगकर्त्ताओं की सहमति और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर द्वारा नियंत्रित किया जाता है और कोई भी सरकार, बैंक, संगठन या व्यक्ति इसके साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकता है।
  • बिटकॉइन का उद्देश्य ही एक वैश्विक विकेंद्रीकृत मुद्रा का निर्माण करना है और यदि इसे किसी केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा विनियमित किया जाता है तो यह अपने उद्देश्य को पूरा करने में विफल हो जाएगी।
  • गौरतलब है कि दुनिया भर की कई सरकारें अपनी राष्ट्रीय मुद्रा के डिजिटल संस्करण यानी डिजिटल मुद्रा को लॉन्च करने की दिशा में कार्य कर रही हैं, जो कि उस देश के केंद्रीय बैंक द्वारा विनियमित की जाएगी।

भारत में बिटकॉइन (या क्रिप्टो-करेंसी) की वैधता

  • वित्तीय वर्ष 2018-19 के बजट भाषण के दौरान वित्त मंत्री ने घोषणा की थी कि सरकार क्रिप्टो-करेंसी को कानूनी निविदा के रूप में नहीं मानती है और सभी प्रकार की अवैध गतिविधियों के वित्तपोषण में तथा भुगतान प्रणाली के एक हिस्से के रूप में इसके उपयोग को रोकने के लिये सभी उपाय करेगी।
  • अप्रैल 2018 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सभी वित्तीय संस्थाओं को किसी भी प्रकार की क्रिप्टो-करेंसी में लेन-देन न करने और इससे संबंधित लेन-देनों को सुविधा न प्रदान करने का निर्देश दिया था। 
    • हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने क्रिप्टो-करेंसी पर रिज़र्व बैंक द्वारा लागू किये गए प्रतिबंध को समाप्त कर दिया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि क्रिप्टोकरेंसी प्रकृति में एक ‘वस्तु/कमोडिटी’ है और इसलिये इसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।

हालिया मूल्य वृद्धि के संभावित कारण

  • महामारी के दौरान वैश्विक स्तर पर क्रिप्टो-करेंसी की स्वीकृति में वृद्धि हुई है, जो कि बिटकॉइन की मूल्य वृद्धि का संभावित कारण हो सकता है।
  • ‘पेपाल’ (PayPal) जैसी बड़ी भुगतान कंपनियों और भारतीय स्टेट बैंक, ICICI बैंक, HDFC बैंक और यस बैंक जैसे भारतीय ऋणदाताओं ने बिटकॉइन को वैधता प्रदान की है।
  • कुछ पेंशन फंड और बीमा फंड बिटकॉइन में निवेश कर रहे हैं।

Blockchain-Technology

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

यूनेस्को की मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची

चर्चा में क्यों?

हाल ही में यूनेस्को (UNESCO) ने अंतर-सरकारी समिति के 15वें सत्र में  मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में सिंगापुर के हॉकर संस्कृति (Hawker Culture) को शामिल किया है।

प्रमुख बिंदु

सिंगापुर में हॉकर संस्कृति: 

  • सिंगापुर में हॉकर एक जीवंत संस्कृति (Living Heritage) है जो स्ट्रीट फूड तैयार करने वालों, सामुदायिक भोजन कक्ष में भोजन करने और मिलने वाले लोगों की वजह से विकसित हुई है। 
  • यह सिंगापुर की बहुसांस्कृतिक पहचान (Multicultural Identity) को एक व्यक्ति और एक राष्ट्र के रूप में दर्शाती है तथा सभी जातियों व सामाजिक स्तरों से परे सिंगापुर की यह पहचान दृढ़ता के साथ प्रदर्शित होती है।

यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची:

  • यह प्रतिष्ठित सूची उन अमूर्त विरासतों से मिलकर बनी है जो सांस्कृतिक विरासत की विविधता को प्रदर्शित करने और इसके महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने में मदद करते हैं।
  • यह सूची 2008 में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा पर कन्वेंशन के समय स्थापित की गई थी।

यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त भारत की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत:

  • संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture) ने भी भारत  की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की राष्ट्रीय सूची (National List of Intangible Cultural Heritage) का मसौदा लॉन्च किया है।
    • राष्ट्रीय ICH सूची भारतीय अमूर्त विरासत में मौजूद सांस्कृतिक विविधता को पहचानने का एक प्रयास है।
    • यह पहल संस्कृति मंत्रालय के विज़न 2024 (Vision 2024) का एक हिस्सा है।

यूनेस्को

  • संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन' (UNESCO), संयुक्त राष्ट्र (United Nation- UN) की एक विशेष एजेंसी है। यह संगठन शिक्षा, विज्ञान एवं संस्कृति के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से शांति स्थापित करने का  प्रयास करता है। 
  • यूनेस्को के कार्यक्रम एजेंडा 2030 में परिभाषित सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals) की प्राप्ति में योगदान करते हैं, जिसे 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया था।
  • इसके 193 सदस्य देश और 11 संबद्ध सदस्य हैं। भारत वर्ष 1946 में यूनेस्को में शामिल हुआ था।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल ने यूनेस्को की सदस्यता वर्ष 2019 में औपचारिक रूप से छोड़ दी थी।
  • इसका मुख्यालय पेरिस (फ्राँस) में है।
  • यूनेस्को का अंतर-सरकारी महासागरीय आयोग (Intergovernmental Oceanographic Commission of UNESCO) आपदा न्यूनीकरण रणनीति के हिस्से के रूप में महासागर आधारित सुनामी चेतावनी प्रणाली स्थापित करने हेतु वैश्विक प्रयास का नेतृत्व कर रहा है।
    • हाल ही में इसने ओडिशा के दो गाँवों (वेंकटरायपुर और नोलियासाह) को सुनामी से निपटने हेतु तैयारियों के लिये ‘सुनामी रेडी’ (Tsunami Ready) के रूप में नामित किया है।

यूनेस्को की अन्य पहलें:

मानव व जीवमंडल कार्यक्रम:

  • बायोस्फीयर रिज़र्व, जैविक और सांस्कृतिक विविधता के सामंजस्यपूर्ण प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • भारत में 18 अधिसूचित बायोस्फीयर रिज़र्वों में से 12 वर्ल्ड नेटवर्क ऑफ बायोस्फीयर रिज़र्व (World Network of Biosphere Reserve) के तहत आते हैं, इनमें से पन्ना बायोस्फीयर रिज़र्व सबसे नया है।

विश्व विरासत कार्यक्रम:

  • विश्व धरोहर स्थल (World Heritage Site) उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्यों के प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण को बढ़ावा देते हैं।
  • भारत में यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त कुल 38 विरासत धरोहर स्थल (30 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित) हैं। इनमें शामिल जयपुर शहर (राजस्थान) सबसे नया है।

यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क नेटवर्क:

  • ग्लोबल जियोपार्क (Global Geopark) एकीकृत भू-वैज्ञानिक क्षेत्र होते हैं जहाँ अंतर्राष्ट्रीय भूगर्भीय महत्त्व के स्थलों व परिदृश्यों का प्रबंधन सुरक्षा, शिक्षा और टिकाऊ विकास की समग्र अवधारणा के साथ किया जाता है।
  • इस पार्क की स्थापना की प्रक्रिया निचले स्तर से शुरू की जाती है जिसमें सभी प्रासंगिक स्थानीय दावेदारों जैसे कि भू-मालिकों, सामुदायिक समूहों, पर्यटन सेवा प्रदाताओं आदि को शामिल किया जाता है।
  • भारत में यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क मान्यता प्राप्त स्थल नहीं है।

यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज़ नेटवर्क:

  • यूनेस्को क्रिएटिव सिटीज़ नेटवर्क (UNESCO Creative Cities Network) को 2004 में उन शहरों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया था जिन्होंने रचनात्मकता को स्थायी शहरी विकास हेतु एक रणनीतिक कारक के रूप में पहचाना है।
  • इस नेटवर्क में सात (शिल्प और लोक कला, मीडिया कला, फिल्म, डिज़ाइन, गैस्ट्रोनॉमी, साहित्य और संगीत) रचनात्मक क्षेत्र शामिल हैं।
  • UCCN में पाँच भारतीय शहर भी शामिल हैं:
    • हैदराबाद - पाक कला- Gastronomy (2019)।
    • मुंबई - फिल्म (2019)।
    • चेन्नई - संगीत का रचनात्मक शहर (2017)।
    • जयपुर - शिल्प और लोक कला (2015)।
    • वाराणसी - संगीत का रचनात्मक शहर (2015)।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-बांग्लादेश आभासी शिखर बैठक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और बांग्लादेश के बीच एक आभासी बैठक का आयोजन किया गया जिसमें द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं पर व्यापक चर्चा की गई तथा विभिन्न क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान किया गया।

  • बांग्लादेश ने मार्च 2021 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगाँठ और बांग्लादेश-भारत के राजनयिक संबंधों के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर समारोह में शामिल होने के लिये भारत को आमंत्रित भी किया।

प्रमुख बिंदु:

द्विपक्षीय दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर और परियोजनाओं का उद्घाटन:

  • विभिन्न क्षेत्रों जैसे- हाइड्रोकार्बन, हाथी संरक्षण, स्वच्छता एवं कृषि में सहयोग का विस्तार करने के लिये सात समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए तथा 1965 से पहले के रेल संपर्क को फिर से बहाल किया।
  • महात्मा गांधी और बांग्लादेश के संस्थापक, शेख मुजीबुर रहमान पर एक डिजिटल प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया।

स्वास्थ्य क्षेत्र में सहयोग:

  • भारत की पड़ोस पहले की नीति (नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी) के तहत सर्वोच्च प्राथमिकता को दोहराते हुए भारत ने बांग्लादेश को आश्वस्त किया कि भारत में कोविड-19 के टीकों का उत्पादन शुरू होते ही उसे बांग्लादेश को उपलब्ध कराया जाएगा। 
  • भारत ने चिकित्सीय सहयोग और टीके के उत्पादन में साझेदारी की भी पेशकश की। 
  • बांग्लादेश ने भारत द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों के लिये क्षमता निर्माण के पाठ्यक्रमों का बांग्ला भाषा में संचालन किये जाने की सराहना की।

सांस्कृतिक सहयोग:

  • बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की जन्म शताब्दी के अवसर पर भारत सरकार द्वारा जारी एक स्मृति डाक टिकट का संयुक्त रूप से अनावरण किया गया। 
  • भारत ने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती समारोह के अवसर पर उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी करने के लिये बांग्लादेश सरकार का धन्यवाद किया।
  • बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान मुजीब नगर से बांग्लादेश-भारत सीमा पर स्थित नदिया तक जाने वाली सड़क के ऐतिहासिक महत्त्व को याद करते हुए बांग्लादेश ने इस सड़क का नाम "शधिनोता शोरोक" (Shadhinota Shorok) यानी स्वाधीनता सड़क रखने के प्रस्ताव पर भारत से विचार करने का अनुरोध किया।

सीमा प्रबंधन और सुरक्षा सहयोग:

  • दोनों पक्षों ने निर्धारित सीमा के सीमांकन को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से नक्शे का एक नया सेट तैयार करने के लिये संयुक्त सीमा सम्मेलन की एक बैठक जल्द आयोजित करने पर सहमति व्यक्त की।
  • कुहसियारा नदी से लगी अंतर्राष्ट्रीय सीमा को एक निर्धारित सीमा में परिवर्तित करने के लिये आवश्यक कार्य करने पर भी दोनों देशों ने सहमति व्यक्त की।
    • कुहसियारा नदी (जो भारत में बराक नदी के रूप में जानी जाती है) भारत-बांग्लादेश के बीच की सीमा-पारीय नदियों में से एक है।
  • बांग्लादेश देश ने राजशाही ज़िले के पास पद्मा नदी (बांग्लादेश में गंगा का मुख्य प्रवाह) से लगे नदी मार्ग के ज़रिये 1.3 किलोमीटर की निर्बाध आवाजाही का अनुरोध दोहराया। भारत ने इस अनुरोध पर विचार करने का आश्वासन दिया है।
  • दोनों पक्षों ने समन्वित सीमा प्रबंधन योजना (Coordinated Border Management Plan) के पूर्ण कार्यान्वयन पर ज़ोर दिया। 
  • दोनों पक्षों ने हथियारों, नशीले पदार्थों और नकली मुद्रा की तस्करी के खिलाफ तथा मानव तस्करी, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने के लिये दोनों ओर के सीमा सुरक्षा बलों के सशक्त प्रयासों पर संतोष व्यक्त किया।
  • प्राकृतिक आपदाओं के कारण दोनों देशों के लगातार ग्रस्त रहने जैसी स्थिति को देखते हुए दोनों पक्षों के अधिकारियों को आपदा प्रबंधन सहयोग के क्षेत्र में समझौता ज्ञापन को शीघ्र पूरा करने का निर्देश दिया गया।
  • बांग्लादेश ने वैध दस्तावेज़ों के साथ यात्रा करने वाले बांग्लादेशियों के लिये भारत में भू-बंदरगाहों से प्रवेश/निकास पर जारी शेष प्रतिबंधों को चरणबद्ध तरीके से हटाने की भारत की प्रतिबद्धता को जल्द लागू करने का अनुरोध किया।

विकास के लिये व्यापार में साझेदारी:

  • बांग्लादेश ने दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र- साफ्टा (South Asian Free Trade Area- SAFTA) के तहत भारत को बांग्लादेश से होने वाले निर्यात को वर्ष 2011 से शुल्क मुक्त और कोटा मुक्त किये जाने की सराहना की। 
  • दोनों देशों ने बंदरगाह संबंधी रोक, प्रक्रियात्मक अड़चनों और क्वारंटीन संबंधी प्रतिबंधों समेत गैर–प्रशुल्क बाधाओं और व्यापार सुगमता के मसलों को हल करने पर ज़ोर दिया ताकि दोनों देश साफ्टा प्रावधानों के लचीलेपन का पूरा लाभ उठा सकें।
  • दोनों देशों ने अधिकारियों को द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (Comprehensive Economic Partnership Agreement- CEPA) के लिये चल रहे संयुक्त अध्ययन को शीघ्रता से पूरा करने का निर्देश दिया।
  • दोनों देशों ने भारत-बांग्लादेश वस्त्र उद्योग मंच (Textile Industry Forum) की पहली बैठक का स्वागत करते हुए कपड़ा उद्योग के क्षेत्र में बेहतर संपर्क और सहयोग हेतु समझौता ज्ञापन पर चल रही बातचीत को जल्द-से-जल्द पूरा करने का निर्देश दिया।

समृद्धि के लिये संपर्क:

  • दोनों देशों ने संयुक्त रूप से हल्दीबाड़ी (भारत) और चिल्हाटी (बांग्लादेश) के बीच हाल ही में बहाल किये गइ रेल संपर्क का उद्घाटन किया और यह उल्लेख किया कि यह रेल संपर्क दोनों देशों के व्यापार और लोगों के बीच संबंधों को और मज़बूत करेगा।
  • अंतर्देशीय जल पारगमन एवं व्यापार प्रोटोकॉल (Protocol on Inland Water Transit and Trade-PIWTT) के दूसरे परिशिष्ट पर हस्ताक्षर का स्वागत किया गया। 
  • सामानों और यात्रियों की आवाजाही शुरू करने हेतु बांग्लादेश, भारत और नेपाल के लिये सक्षम समझौता ज्ञापन पर शीघ्र हस्ताक्षर के ज़रिये बांग्लादेश-भूटान-भारत-नेपाल (BBIN) मोटर वाहन समझौता (जिसमें भूटान के लिये बाद में इसमें शामिल होने का प्रावधान है) को जल्द लागू करने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • बांग्लादेश ने भारत, म्याँमार, थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना में गहरी रुचि दिखाई और दक्षिण एवं दक्षिण-पूर्व एशिया के क्षेत्रों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिये इस परियोजना के साथ जुड़ने में सक्षम होने के लिये भारत का समर्थन मांगा।
  • दोनों ओर के यात्रियों की अत्यंत महत्त्वपूर्ण ज़रूरतों को पूरा करने के लिये एयर ट्रेवल बबल शुरू करने पर संतोष व्यक्त किया गया। 

जल संसाधन, बिजली और ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग:

  • बांग्लादेश ने तीस्ता नदी के पानी के बँटवारे के लिये अंतरिम समझौते पर जल्द हस्ताक्षर करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, एस पर वर्ष 2011 में दोनों सरकारों द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी।
  • मनु, मुहुरी, खोवाई, गुमटी, धारला और दुधकुमार नाम की छह संयुक्त नदियों के पानी के बँटवारे पर अंतरिम समझौते की रूपरेखा को जल्द पूरा करने की जरुरत को रेखांकित किया गया।
  • संयुक्त नदी आयोग (Joint Rivers Commission-JRC) के सकारात्मक योगदान को ध्यान में रखते हुए संयुक्त नदी आयोग के सचिव स्तर के अगले दौर की बैठक जल्द-से-जल्द होने की आशा व्यक्त की गई।
  • भारत-बांग्लादेश मैत्री पाइपलाइन, मैत्री सुपर थर्मल पावर परियोजना के साथ-साथ अन्य विभिन्न परियोजनाओं के कार्यान्वयन में तेज़ी लाने पर सहमति व्यक्त की गई।
  • दोनों पक्षों ने हाइड्रोकार्बन के क्षेत्र में सहयोग से जुड़े फ्रेमवर्क ऑफ अंडरस्टैंडिंग पर हस्ताक्षर करने का स्वागत किया, जो कि निवेश, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, संयुक्त अध्ययन, प्रशिक्षण और हाइड्रोकार्बन कनेक्टिविटी को प्रोत्साहन देकर ऊर्जा संपर्क में और अधिक वृद्धि करेगा। 
  • जैव ईंधन क्षेत्र समेत ऊर्जा दक्षता और स्वच्छ ऊर्जा के मामले में आपसी सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति व्यक्त की गई है।

म्याँमार के रखाइन प्रांत से ज़बरन विस्थापित लोग:

  • भारत ने रोहिंग्या संकट में म्याँमार के रखाइन प्रांत से ज़बरन विस्थापित 1.1 मिलियन लोगों को आश्रय देने और मानवीय सहायता प्रदान करने के लिये बांग्लादेश की उदारता की सराहना की।

क्षेत्र और विश्व में साझेदार:

  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) के लिये चुने जाने में भारत का समर्थन करने के लिये बांग्लादेश को धन्यवाद दिया।
  • दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के शुरुआती सुधारों, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने, सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) की प्राप्ति और प्रवासियों के अधिकारों की सुरक्षा के लिये साथ मिलकर कार्य जारी रखने पर सहमति व्यक्त की। 
  • कोविड-19 के प्रकोप के बाद के क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक परिदृश्यों को देखते हुए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) और बिम्सटेक (BIMSTEC) जैसे क्षेत्रीय संगठनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया गया। 
  • बांग्लादेश ने मार्च 2020 में कोविड-19 के प्रकोप के दौरान दक्षेस नेताओं का वीडियो सम्मेलन बुलाने तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्र में वैश्विक महामारी के प्रभाव का मुकाबला करने के लिये सार्क इमरजेंसी रिस्पांस फंड के निर्माण के प्रस्ताव के लिये भी भारत को धन्यवाद दिया। 
  • बांग्लादेश 2021 में इंडियन ओसियन रिम एसोसिएशन (IORA) की अध्यक्षता ग्रहण करेगा और उसने व्यापक समुद्री सुरक्षा की दिशा में काम करने के लिये भारत के समर्थन का अनुरोध किया।
  • बांग्लादेश ने न्यू डेवलपमेंट बैंक के काम की सराहना की और इस संस्थान में शामिल होने के लिये बांग्लादेश को आमंत्रित करने हेतु भारत को धन्यवाद दिया।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

CMS-01 उपग्रह का प्रक्षेपण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अपने ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (PSLV - C50) के माध्यम से ‘सीएमएस-01’ (CMS-01) नामक एक संचार उपग्रह को प्रक्षेपित किया है।

  • गौरतलब है कि इससे पहले नवंबर 2020 में इसरो ने भारत के पृथ्वी अवलोकन उपग्रह, EOS-01 के साथ नौ अन्य ग्राहक उपग्रहों (Customer Satellites) को लॉन्च किया था।

प्रमुख बिंदु: 

  • CMS -01 एक संचार उपग्रह है जिसकी परिकल्पना विस्तारित सी बैंड आवृत्ति स्पेक्ट्रम में सेवाएँ प्रदान करने के लिये की गई है।
    • सी बैंड 4.0 से 8.0 गीगाहर्ट्ज़ (GHz) तक फ्रीक्वेंसी की माइक्रोवेव रेंज में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के एक हिस्से को संदर्भित करता है।
  • इसके कवरेज  क्षेत्र में भारतीय मुख्य भूमि के साथ अंडमान और निकोबार तथा लक्षद्वीप द्वीप समूह शामिल होंगे।
  • इस उपग्रह का जीवन काल (सक्रिय रहने की अवधि)  सात वर्ष से अधिक होने की संभावना है।
  • उपग्रह को पूर्वनिर्धारित उप-भूसमकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) में प्रविष्ट कराया गया था। इसकी दिशा और स्थिति कुछ बदलावों के बाद इसे भू-समकालिक कक्षा  में अपने निर्दिष्ट स्लॉट में स्थापित करेगी।
  • यह उपग्रह GSAT-12 का स्थान लेगा और इसकी सेवाओं को बढ़ाएगा। 
    • GSAT -12, इसरो द्वारा बनाया गया एक संचार उपग्रह है, जो टेली-एजुकेशन, टेली-मेडिसिन और ग्राम संसाधन केंद्रों (VRC) के लिये विभिन्न संचार सुविधाएँ प्रदान करता है।
      • ग्रामीण क्षेत्रों को अंतरिक्ष आधारित सेवाओं की सीधी पहुँच प्रदान करने के लिये इसरो द्वारा गैर-सरकारी संगठनों/ट्रस्टों और राज्य/केंद्रीय एजेंसियों के साथ मिलकर ‘ग्राम संसाधन केंद्र’ (VRC)  नामक कार्यक्रम की शुरुआत की गई है।

इसरो का अगला प्रक्षेपण :

  •  ‘पीएसएलवी-सी 51’ (PSLV-C51) इसरो का अगला विशेष मिशन होगा, क्योंकि यह भारत सरकार द्वारा घोषित अंतरिक्ष सुधार कार्यक्रम के तहत देश का पहला उपग्रह होगा।
    •  सरकार द्वारा ‘भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र' (IN-SPACe) की स्थापना किये जाने के साथ ही अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी क्षेत्र के लिये खोलने की घोषणा की गई थी।
    • IN-SPACe को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों और एक अनुकूल नियामक वातावरण के माध्यम से अंतरिक्ष गतिविधियों में निजी उद्योगों को समर्थन व बढ़ावा देने तथा उनका मार्गदर्शन करने के लिये शुरू किया गया है।
  •  पीएसएलवी-सी 51 (PSLV-C51) द्वारा प्रक्षेपित उपग्रह:
    • पीएसएलवी-सी 51  के साथ ‘पिक्सेल इंडिया’ (Pixxel India) के ‘आनंद', स्पेस किड्ज़ इंडिया के ‘सतीश सैट’ (Satish Sat) और कुछ विश्वविद्यालयों के एक संघ से ‘यूनिटी सैट (Unity Sat) नामक उपग्रहों को प्रक्षेपित किया जाएगा।

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान:

  •  भारत का ‘ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान’ (PSLV) तीसरी पीढ़ी का प्रक्षेपण यान है।
  • पीएसएलवी पहला लॉन्च वाहन है जो तरल चरण (Liquid Stages) से सुसज्जित है।
  • PSLV का पहला सफल प्रक्षेपण अक्तूबर 1994 में किया गया था। PSLV का उपयोग भारत के दो सबसे महत्त्वपूर्ण मिशनों (वर्ष 2008 के चंद्रयान -I और वर्ष 2013 के मार्स ऑर्बिटर स्पेसक्राफ्ट) के लिये  भी किया गया था। 
  • 'भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान मार्क II’ (GSLV MkII) और GSLV MkIII दो अन्य महत्त्वपूर्ण प्रक्षेपण यान हैं।
    • GSLV Mk III को 4 टन वज़न वर्ग के उपग्रहों को भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) या लगभग 10 टन वज़न वर्ग के उपग्रह को  पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में ले जाने के लिये विकसित किया गया है, जो GSLVk II की क्षमता से दोगुना है।
    • चंद्रयान -2 अंतरिक्षयान को लॉन्च करने के लिये चुना गया GSLV MkIII, इसरो द्वारा विकसित एक तीन-चरण वाला हैवी लिफ्ट प्रक्षेपण यान है। इस प्रक्षेपण यान में दो ठोस स्ट्रैप-ऑन, एक कोर तरल बूस्टर और एक क्रायोजेनिक ऊपरी चरण है।
      • GSLV MkII, भारत द्वारा विकसित सबसे बड़ा प्रक्षेपण यान है, जो वर्तमान में प्रचालन में है। यह चौथी पीढ़ी का तीन चरणों वाला प्रक्षेपण यान है जिसमें चार तरल स्ट्रैप-ऑन हैं। स्वदेशी रूप से विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (CUS), GSLV Mk II के तीसरे चरण के रूप में कार्य करता है।

भू-समकालिक कक्षा:

  • भू-समकालिक कक्षा पृथ्वी की एक उच्च कक्षा है जो उपग्रहों को पृथ्वी के घूर्णन गति से मेल खाने में सक्षम बनाती है। पृथ्वी की भूमध्य रेखा से 22,236 मील ऊपर स्थित  कक्षा मौसम, संचार और निगरानी के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थान है।

भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा:

  • पृथ्वी की भू-समकालिक (और भूस्थिर) कक्षाओं को प्राप्त करने के लिये एक अंतरिक्षयान को पहले अंडाकार कक्षा में प्रक्षेपित किया जाता है। इसे भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (GTO) कहा जाता है।
  • एक जीटीओ अत्यधिक अंडाकार होता है। इसका भू-समीपक (पृथ्वी का निकटतम) बिंदु  आम तौर पर पृथ्वी की निचली कक्षा (LEO) के बराबर होता है, जबकि इसका चरम बिंदु (Apogee) या पृथ्वी से सबसे दूर का बिंदु भू-स्थिर कक्षा के बराबर उँचाई पर भू-समकालिक कक्षा के बराबर होता है।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

सशस्त्र बलों को सौंपी गई रक्षा प्रणालियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रक्षा मंत्री ने थल सेना, नौसेना और वायु सेना को तीन प्रणालियाँ क्रमशः बॉर्डर सर्विलांस सिस्टम (Border Surveillance System- BOSS), इंडियन मेरिटाइम सिचुएशनल अवेयरनेस सिस्टम (IMSAS) तथा अस्त्र एमके-I (ASTRA Mk-I) सौंपीं।

  • ये तीनों प्रणालियाँ रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की प्रयोगशालाओं में स्वदेशी रूप से विकसित की गई हैं जिससे रक्षा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उच्च आत्मनिर्भरता आएगी।
  • रक्षा मंत्री ने विभिन्न श्रेणियों में उत्कृष्ट योगदान के लिये DRDO के वैज्ञानिकों को पुरस्कार प्रदान किये।

प्रमुख बिंदु:

इंडियन मेरिटाइम सिचुएशनल अवेयरनेस सिस्टम (IMSAS) :

  • यह एक अत्याधुनिक, पूरी तरह से स्वदेशी, उच्च प्रदर्शन वाला इंटेलिजेंट सॉफ्टवेयर सिस्टम है, जो भारतीय नौसेना को ग्लोबल मेरिटाइम सिचुएशनल पिक्चर, मैरिन प्लानिंग टूल्स और विश्लेषणात्मक क्षमता प्रदान करता है। 
  • यह प्रणाली नौसेना कमान एवं नियंत्रण (Command and control- C2) को सक्षम करने के लिये समुद्र में प्रत्येक जहाज़ को नौसेना मुख्यालय से मेरिटाइम ऑपरेशनल पिक्चर उपलब्ध कराती है। 
  • इस उत्पाद की संकल्पना एवं विकास, सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स (CAIR), बंगलूरू और भारतीय नौसेना ने संयुक्त रूप से किया है। वहीं भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), बंगलूरू ने इसे लागू किया है।  

अस्त्र Mk-I:

  • अस्त्र एमके-I स्वदेशी रूप से विकसित ‘दृश्य सीमा से परे’ (Beyond Visual Range- BVR) पहली मिसाइल है, जिसे सुखोई-30, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA), मिग-29 और मिग-29के से प्रक्षेपित किया जा सकता है। 
    • वैश्विक स्तर पर कुछ देशों के पास ही इस तरह की हथियार प्रणाली को डिज़ाइन और उत्पादन करने की विशेषज्ञता एवं क्षमता है। 
  • रक्षा अनुसंधान व विकास प्रयोगशाला (DRDL), हैदराबाद द्वारा सफलतापूर्वक विकसित और भारत डायनामिक्स लिमिटेड (BDL), हैदराबाद द्वारा तैयार की गई अस्त्र हथियार प्रणाली ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक बड़ा योगदान है।

बॉर्डर सर्विलांस सिस्टम (BOSS):

  • यह सभी मौसमों में काम करने वाला एक इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस सिस्टम है, जिसे इंस्ट्रूमेंट्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (IRDE), देहरादून द्वारा सफलतापूर्वक अभिकल्पित और विकसित किया गया है। 
  • इस प्रणाली को दिन-रात निगरानी के लिये लद्दाख सीमा क्षेत्र में तैनात किया गया है। यह प्रणाली सुदूर संचालन क्षमता के साथ कठिन एवं अधिक ऊँचाई वाले और शून्य से नीचे तापमान वाले क्षेत्रों (Sub-zero Temperature Areas) में घुसपैठ का स्वत: पता लगाकर जाँच और निगरानी की सुविधा प्रदान करती है। 
  • इस प्रणाली का उत्पादन भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL), मछलीपटनम द्वारा किया गया है।

उत्कृष्ट योगदान हेतु पुरस्कार:

  • DRDO लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार-2018:
    • यह पुरस्कार एन.वी. कदम को मिसाइलों से संबंधित नियंत्रण और मार्गदर्शन योजनाओं को विकसित करने में योगदान के लिये दिया गया।
  • प्रौद्योगिकी समावेशन के लिये अकादमिक और उद्योग क्षेत्र को भी उत्कृष्टता पुरस्कार दिये गए
  • व्यक्तिगत पुरस्कार, समूह पुरस्कार, टेक्नोलॉजी स्पिन-ऑफ अवार्ड्स और टेक्नो मैनिजिरीअल अवार्ड्स सहित अन्य श्रेणियों में भी पुरस्कार दिये गए।

स्रोत: पी.आई.बी.


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