अंतर्राष्ट्रीय संबंध
तीस्ता नदी जल विवाद और भारत-बांग्लादेश संबंध
- 21 Aug 2020
- 11 min read
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चर्चा में क्यों?
तीस्ता नदी (Teesta River) के प्रबंधन संबंधी एक परियोजना के लिये बांग्लादेश चीन से लगभग 1 अरब डॉलर के ऋण पर चर्चा कर रहा है। ध्यातव्य है कि भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी में पानी के बँटवारे को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। ऐसे में इस वार्ता के निहितार्थ तथा भारत-बांग्लादेश के संबंधों पर इसके प्रभाव का अध्ययन करना आवश्यक है।
प्रमुख बिंदु
- बांग्लादेश की इस परियोजना का उद्देश्य तीस्ता नदी के बेसिन का कुशल प्रबंधन करना, बाढ़ को नियंत्रित करना और ग्रीष्मकाल में जल संकट से निपटना है।
- सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि बांग्लादेश और चीन के बीच इस तरह की ऋण संबंधी चर्चा ऐसे समय में चल रही है जब लद्दाख में हुए गतिरोध के चलते भारत और चीन के संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं।
तीस्ता नदी जल विवाद
- हिमालय से उत्पन्न होने वाली और सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल से होकर असम में ब्रह्मपुत्र नदी (बांग्लादेश में जमुना नदी) में विलय होने वाली तीस्ता नदी के जल का बंटवारा भारत और बांग्लादेश के बीच संभवतः सबसे बड़ा विवाद है।
- तीस्ता नदी सिक्किम के लगभग पूरे मैदानी इलाके को कवर करने के साथ-साथ बांग्लादेश के लगभग 2,800 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को भी कवर करती है, जिसके कारण यह इन क्षेत्रों में रहने वाले हज़ारों लोगों की जल संबंधी आवश्यकता के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
- वहीं पश्चिम बंगाल के लिये भी तीस्ता नदी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है, जितनी सिक्किम और बांग्लादेश के लिये, इसे उत्तर बंगाल में आधा दर्जन ज़िलों की जीवन रेखा माना जाता है।
- गौरतलब है कि दोनों देश सितंबर 2011 में जल-साझाकरण समझौते पर हस्ताक्षर करने की अंतिम प्रक्रिया में थे, किंतु पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस पर आपत्ति जताई और इस समझौते को रद्द कर दिया गया।
- वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद जून 2015 में उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ बांग्लादेश का दौरा किया और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को विश्वास दिलाया कि वे केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोग के माध्यम से तीस्ता पर एक ‘निष्पक्ष समाधान’ तक पहुँच सकते हैं। इस दौरे के पाँच वर्ष बाद भी तीस्ता नदी के जल बँटवारे का मुद्दा अभी तक सुलझ नहीं सकता है।
भारत-बांग्लादेश संबंध: हालिया परिदृश्य
- भारत और बांग्लादेश के मध्य द्विपक्षीय सहयोग की शुरुआत वर्ष 1971 में हो गई थी, जब भारत ने बांग्लादेश राष्ट्र का समर्थन करते हुए अपनी शांति सेना भेजी थी। इसी कारण दोनों के मध्य एक भावनात्मक संबंध भी बना हुआ है।
- बांग्लादेश के साथ भारत का एक मज़बूत संबंध रहा है, खासतौर पर बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता में आने के बाद से।
- बांग्लादेश को भारत के साथ अपनी आर्थिक एवं विकास संबंधी साझेदारी से काफी लाभ प्राप्त हुआ है, बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
- बीते एक दशक में दोनों देशों के बीच होने वाले द्विपक्षीय व्यापार में तेज़ी से वृद्धि दर्ज की गई है, आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2018-19 में भारत से बांग्लादेश में 9.21 बिलियन डॉलर का निर्यात हुआ था और जबकि बांग्लादेश से भारत में 1.04
- बिलियन डॉलर का आयात हुआ था।
- भारत प्रत्येक वर्ष चिकित्सा उपचार, पर्यटन, रोज़गार और मनोरंजन आदि के लिये बांग्लादेशी नागरिकों को 15 से 20 लाख वीज़ा जारी करता है।
- भारत के लिये बांग्लादेश सुरक्षा और पूर्व तथा पूर्वोत्तर राज्यों में शांति व्यवस्था बनाए रखने की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण है। किसी भी देश के लिये यह आवश्यक होता है कि उसके पड़ोसी देशों के साथ उसके रिश्ते अच्छे और मज़बूत रहें, खासकर
- एशियाई क्षेत्र में जहाँ आतंकवाद एक बड़ा खतरा है।
- भारत के लिये बांग्लादेश 'पड़ोस पहले' (Neighbourhood first) की नीति में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार रहा है।
- पिछले पाँच महीनों में भारत और बांग्लादेश ने महामारी से निपटने संबंधी कदमों पर काफी सहयोग किया है।
NRC और CAA को लेकर चिंता
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चीन-बांग्लादेश संबंधों का विकास
- आँकड़े बताते हैं कि चीन बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और आयात का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। वर्ष 2019 में दोनों देशों के बीच लगभग 18 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था।
- सबसे महत्त्वपूर्ण यह है कि दोनों देशों (चीन और बांग्लादेश) के बीच होने वाला द्विपक्षीय व्यापार अधिकांशतः चीन के पक्ष झुका हुआ है।
- हाल ही में चीन ने बांग्लादेश से आयातित होने वाली 97 प्रतिशत वस्तुओं पर शून्य शुल्क की घोषणा की थी। बांग्लादेश में इस कदम का व्यापक रूप से स्वागत किया गया था और उम्मीद जताई जा रही है कि इससे बांग्लादेश से चीन में होने वाले निर्यात में बढ़ोतरी होगी।
- चीन ने बांग्लादेश को लगभग 30 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान करने का वादा किया है। गौरतलब है कि बीते दिनों भारत ने भी बांग्लादेश को 10 बिलियन डॉलर की वित्तीय सहायता प्रदान की थी, जिससे बांग्लादेश को भारत की वित्तीय सहायता 30 बिलियन डॉलर पर पहुँच गई है, इस प्रकार बांग्लादेश भारत से वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाला सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता है।
- इसके अलावा, चीन के साथ बांग्लादेश के मज़बूत रक्षा संबंध स्थिति को जटिल बनाते हैं। वर्तमान में बांग्लादेश के लिये चीन सबसे बड़ा हथियार आपूर्तिकर्ता है, हालाँकि इसका एक ऐतिहासिक पक्ष भी है।
- दरअसल बांग्लादेश की स्वतंत्रता प्राप्ति के के बाद पाकिस्तान सेना के कई अधिकारी, जो चीनी हथियारों से अच्छी तरह से वाकिफ थे, बांग्लादेश सेना में शामिल हो गए और इसलिये बांग्लादेशी सेना में चीनी हथियारों को प्राथमिकता दी जाती है।
- बांग्लादेश की सेना चीनी उपकरणों से लैस है, जिनमें टैंक, मिसाइल लॉन्चर, लड़ाकू विमान और कई हथियार प्रणालियाँ शामिल हैं। हाल ही में बांग्लादेश ने चीन से दो पनडुब्बियाँ भी खरीदी थीं।
- ध्यातव्य है कि बांग्लादेश की सेना में चीन की पहुँच भारत के लिये सुरक्षा की दृष्टि से चिंता का विषय हो सकता है।
आगे की राह
- ध्यातव्य है कि तीस्ता नदी जल विवाद भारत के दृष्टिकोण से काफी महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है, हालाँकि अगले वर्ष होने वाले पश्चिम बंगाल के चुनाव से पूर्व इस मुद्दे को संबोधित करना काफी मुश्किल होगा।
- भारत और बांग्लादेश को दोस्ती और सहयोग के माध्यम से अपनी भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का प्रबंधन करना चाहिये। यह आवश्यक है कि दोनों देश अल्पकालिक लाभ हेतु अपने दीर्घकालिक हितों के साथ समझौता न करें।