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डेली न्यूज़

  • 19 Mar, 2025
  • 41 min read
सामाजिक न्याय

कैंसर को अधिसूचित रोग बनाने पर बहस

प्रिलिम्स के लिये:

कैंसर, विश्व स्वास्थ्य संगठन, राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम, सर्वाइकल कैंसर

मेन्स के लिये:

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य नीतियाँ, भारत में रोग अधिसूचना, कैंसर की रोकथाम

स्रोत:द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारत में कैंसर को अधिसूचित रोग बनाने की मांग बढ़ रही है, लेकिन केंद्र सरकार इसकी गैर-संचारी प्रकृति का तर्क देते हुए इसका विरोध कर रही है।

  • सर्पदंश को अधिसूचित योग्य रोग के रूप में शामिल करना (वर्ष 2024) तथा अमेरिका द्वारा लेड/सीसा विषाक्तता को अधिसूचना योग्य रोग के रूप में सूचीबद्ध करना (वर्ष 1995) जैसे वैश्विक उदाहरण इस तर्क को चुनौती देते हैं, जिससे कैंसर अधिसूचना पर भारत के रुख का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता पड़ती है।

भारत में अधिसूचित रोग क्या है?

  • परिचय: अधिसूचित रोग वह रोग है जिसे स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं द्वारा वास्तविक समय महामारी विज्ञान ट्रैकिंग, संसाधन आवंटन और शीघ्र हस्तक्षेप के लिये कानूनी रूप से सरकारी अधिकारियों को सूचित किया जाना चाहिये।
    • महामारी रोग अधिनियम, 1897 महामारी रोग (बड़ी संख्या में रोग का तेज़ी से संचरण) की रिपोर्टिंग की अधिसूचना और विनियमन को नियंत्रित करता है।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैश्विक रोग निगरानी और नियंत्रण में सहायता के लिये कुछ रोगों के लिये अधिसूचना जारी करना अनिवार्य कर दिया है।
  • उदाहरण: तपेदिक, मलेरिया और कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारियाँ आमतौर पर संचरण की क्षमता के कारण सूचित करने योग्य होती हैं।
  • हालाँकि, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने सर्पदंश को गैर-संचारी होने के बावजूद एक अधिसूचित रोग के रूप में वर्गीकृत किया है।

कैंसर को अधिसूचित रोग के रूप में वर्गीकृत करने पर बहस क्या है?

पक्ष में तर्क

  • बेहतर डेटा संग्रहण: राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (NCRP) भारत की केवल 16% आबादी को कवर करता है, इसमें व्यापक डेटा का अभाव है, जिसकी संसदीय समिति ने आलोचना की है तथा बेहतर ट्रैकिंग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
    • उन्नत डेटा के साथ, धूम्रपान, वायु प्रदूषण और एस्बेस्टस के संपर्क जैसे जोखिम कारकों को नियंत्रित करके लगभग 50% कैंसर से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है।
    • कुछ कैंसर, जैसे सर्वाइकल कैंसर, ह्यूमन पैपिलोमावायरस (संपर्क से संचरित) से जुड़े होते हैं, जिसके कारण विशेषज्ञ कैंसर को अनिवार्य डेटा संग्रह के लिये "डॉक्यूमेंटेबल डिज़ीज" के रूप में वर्गीकृत करने का प्रस्ताव देते हैं।
    • कैंसर को अधिसूचित करने से इसकी घटना, व्यापकता और मृत्यु दर पर वास्तविक समय का डेटा सुनिश्चित होगा तथा तंबाकू, वायु प्रदूषण और कैंसरकारी रसायनों जैसे जोखिम कारकों को नियंत्रित करके इसे रोका जा सकेगा।
  • भारतीय राज्यों का दृष्टिकोण: 17 राज्यों ने राष्ट्रीय स्तर के जनादेश की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए, प्रशासनिक आदेशों के माध्यम से कैंसर को अधिसूचित किया है।
    • केरल और मिज़ोरम जैसे उच्च कैंसर की घटनाओं वाले राज्य बेहतर हस्तक्षेप के लिये अनिवार्य अधिसूचना से लाभान्वित हो सकते हैं।
  • वैश्विक उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों ने कैंसर को अधिसूचित कर दिया है, जबकि यूनाइटेड किंगडम ने कैंसर पंजीकरण को अनिवार्य कर दिया है, इसके विपरीत, भारत का NCRP पंजीकरण स्वैच्छिक बना हुआ है।

विपक्ष में तर्क

  • गैर-संचारी प्रकृति: संक्रामक रोगों के विपरीत, कैंसर संक्रामक नहीं है या तत्काल सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरा नहीं है, जिससे अनिवार्य अधिसूचना अनावश्यक हो जाती है।
  • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ: अधिसूचित रोग व्यक्तिगत गोपनीयता की तुलना में सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं, जो लोगों को निदान प्राप्त करने से रोक सकता है।
    • कैंसर एक सामाजिक कलंक (Social Stigma) है, और मामलों की रिपोर्ट करने की कानूनी बाध्यता के कारण रोगी समय पर उपचार लेने की इच्छा कम कर सकते हैं।
  • स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं पर बोझ: यदि अधिसूचना अनिवार्य कर दी जाती है तो चिकित्सकों को अनावश्यक विधिक कार्रवाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
    • कैंसर के लिये व्यक्तिगत दीर्घकालिक उपचार की आवश्यकता होती है, और अधिसूचना का उपयोग आमतौर पर आपातकालीन रोकथाम के लिये किया जाता है, न कि दीर्घकालिक रोगों के लिये।

भारत में कैंसर का वर्तमान निगरानी तंत्र

  • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के तहत NCRP, अस्पताल-आधारित (HBR) और जनसंख्या-आधारित रजिस्ट्री (PBR) के माध्यम से कैंसर की जनसांख्यिकी, निदान, उपचार और उत्तरजीविता पर नज़र रखता है। 
    • वर्ष 2022 तक, भारत में 269 HBR और 38 PBR हैं, लेकिन कवरेज अपर्याप्त है। 
    • वर्ष 2023 में 14 लाख से अधिक कैंसर के मामले थे, जिसमें प्रति एक लाख लोगों में 100 का निदान किया गया।

कैंसर निगरानी का सुदृढ़ीकरण करने हेतु भारत को क्या करने की आवश्यकता है?

  • चरणबद्ध अधिसूचना दृष्टिकोण: गर्भाशय-ग्रीवा और फेफड़े के कैंसर जैसे उच्च जोखिम वाले कैंसरों को अनिवार्य डेटा संग्रह के लिये "दस्तावेज़ योग्य रोगों" के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये।
  • डिजिटल स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों का एकीकरण: एक केंद्रीकृत कैंसर रजिस्ट्री तैयार करने हेतु कैंसर डेटा संग्रह को आयुष्मान भारत डिजिटल मिशन (ABDM) के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
    • लक्षित अनुवर्ती कार्रवाई और उपचार अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये कैंसर स्क्रीनिंग रिकॉर्ड को CoWIN जैसे प्लेटफार्मों के साथ एकीकृत किया जाना चाहिये।
  • कैंसर रिपोर्टिंग: समग्र देश में जाँच और कैंसर संबंधी सुविधाओं का विस्तार करने के लिये PBR की संख्या में वृद्धि करने तथा उच्च जोखिम वाले कैंसरों के लिये स्क्रीनिंग सुविधा का क्रियान्वन किये जाने की आवश्यकता है।
    • स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं (जैसे मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता) को कैंसर के मामलों की सक्रिय रूप से रिपोर्ट करने और घर-घर जाकर लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से उनका सशक्तीकरण करने की आवश्यकता है।
    • प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत कैंसर कवरेज का विस्तार करने और बीमा सहायता में वृद्धि करने की आवश्यकता है, क्योंकि इसका उपचार दीर्घकालिक और महँगा है। 
      • इससे निम्न आय वाले परिवारों के लिये निःशुल्क जाँच संभव हो सकेगी, तथा यह सुनिश्चित होगा कि वित्तीय बाधाओं के कारण निदान और उपचार में देरी न हो।
  • पूर्वधारणा में परिवर्तन: कैंसर की रिपोर्टिंग को कलंक मुक्त करने और जाँच को सामान्य बनाने के लिये आध्यात्मिक अभिकर्त्ताओं, प्रभावशाली व्यक्तियों और मीडिया हस्तियों के साथ साझेदारी की जानी चाहिये।
    • कैंसर से उबरने वाले लोगों को “राजदूत” की संज्ञा देकर उन्हें बढ़ावा देने की आवश्यकता है और उनकी कहानियों को साझा किया जाना चाहिये ताकि रोग का शीघ्र पता लगाने तथा रोग से संबंधित डर को खत्म करने के लिये लोगों को प्रेरित किया जा सके।

Cancer

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में कैंसर को अधिसूचित रोग बनाने के लाभ और चुनौतियों पर चर्चा करें। क्या भारत को राष्ट्रीय स्तर पर अनिवार्य कैंसर रिपोर्टिंग प्रणाली अपनानी चाहिए? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कैंसरग्रस्त ट्यूमर के उपचार के संदर्भ में, साइबरनाइफ नामक एक उपकरण चर्चा में रहा है। इस संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है? (2010)

(a) यह एक रोबोटिक इमेज गाइडेड सिस्टम है।
(b) यह विकिरण की अत्यंत सटीक डोज़ प्रदान करता है।
(c) इसमें सब-मिलीमीटर सटीकता प्राप्त करने की क्षमता है।
(d) यह शरीर में ट्यूमर के प्रसार को मैप कर सकता है। 

उत्तर: (d)


प्रश्न. 'RNA अंतर्क्षेप [RNA इंटरफे्रेंस (RNAi)]' प्रौद्योगिकी ने पिछले कुछ वर्षों में लोकप्रियता हासिल कर ली है। क्यों? (2019) 

  1. यह जीन अनभिव्यक्तीकरण (जीन साइलेंसिंग) रोगोपचारों के विकास में प्रयुक्त होता है।  
  2. इसे कैंसर की चिकित्सा में रोगोपचार विकसित करने हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है।  
  3. इसे हॉर्मोन प्रतिस्थापन रोगोपचार विकसित करने हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है।  
  4. इसे ऐसी फसल पादपों को उगाने के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है, जो विषाणु रोगजनकों के लिये प्रतिरोधी हो।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) 1, 2 और 4
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. “कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता होने के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना सतत् विकास के लिये एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" परीक्षण कीजिये। (2021)

प्रश्न. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' को प्राप्त करने के लिये समुचित स्थानीय समुदाय-स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (2018)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-न्यूज़ीलैंड संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

रायसीना डायलॉग, ऑथराइज्ड इकोनॉमिक ऑपरेटर्स म्यूचुअल रिकॉग्निशन अरेंजमेंट (AEO-MRA), हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI), डिजिटल अर्थव्यवस्था, ओपनिंग डोर टू इंडिया नीति, सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी (SPS), परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) 

मेन्स के लिये :

भारत-न्यूज़ीलैंड संबंधों की मुख्य विशेषताएँ, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत की आधिकारिक यात्रा के दौरान, न्यूज़ीलैंड (NZ) के प्रधानमंत्री ने भारत के प्रधानमंत्री के साथ द्विपक्षीय वार्ता की तथा भारत-न्यूज़ीलैंड संयुक्त वक्तव्य जारी किया।

  • न्यूज़ीलैंड के प्रधानमंत्री 10 वें रायसीना डायलॉग में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित हुए और उद्घाटन को संबोधित किया।

भारत-न्यूज़ीलैंड संयुक्त वक्तव्य की मुख्य बिंदु क्या हैं?

  • आर्थिक सहयोग: दोनों पक्ष न्यूज़ीलैंड की "ओपनिंग डोर टू इंडिया" की नीति के अनुसार एक संतुलित, महत्त्वाकांक्षी और पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यापार समझौते के लिये वार्ता शुरू करने पर सहमत हुए।
  • सुरक्षा सहयोग: सैन्य अभ्यास और नौसैनिक अभियानों जैसे नियमित आयोजनों के लिये रक्षा सहयोग समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए और न्यूज़ीलैंड ने भारत की हिंद-प्रशांत महासागर पहल (IPOI) में शामिल होने में रुचि व्यक्त की।
  • वैश्विक सहयोग: दोनों देशों ने एक स्वतंत्र, समावेशी और स्थिर हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बनाए रखने, UNCLOS के तहत नियम-आधारित व्यवस्था और नौवहन स्वतंत्रता का समर्थन करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
  • जलवायु परिवर्तन: न्यूज़ीलैंड ने भारत के ISA के प्रति समर्थन की पुष्टि की, CDRI में शामिल हुआ, तथा सतत् विकास लक्ष्यों, पेरिस जलवायु समझौते और आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये सेंडाई फ्रेमवर्क पर सहयोग करने पर सहमति व्यक्त की।
  • शिक्षा और खेल: वर्ष 2026 में खेल संबंधों के 100 वर्ष पूर्ण होने का जश्न मनाने की योजना के साथ, शैक्षणिक भागीदारी, छात्र आदान-प्रदान और खेल संबंधों को मज़बूत करने के लिये एक नवीनीकृत शिक्षा सहयोग व्यवस्था और एक खेल सहयोग समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।
  • प्रवासी: दोनों नेताओं ने संबंधों को मज़बूत करने में भारतीय प्रवासियों (न्यूज़ीलैंड की जनसंख्या का 6%) की भूमिका को स्वीकार किया तथा छात्रों और पर्यटकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की। 
    • भारत ने कुछ अवैध तत्त्वों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों को उज़ागर करते हुए न्यूज़ीलैंड में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर चिंता जताई।

New_Zealand

और पढ़ें: रायसीना डायलॉग क्या है?

भारत और न्यूज़ीलैंड एक दूसरे के लिये क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?

न्यूज़ीलैंड के लिये भारत का महत्त्व

  • आर्थिक साझेदारी का विस्तार: 1.4 बिलियन की आबादी, बढ़ता मध्यम वर्ग और विस्तारित सेवा क्षेत्र के साथ, भारत न्यूज़ीलैंड को कृषि उत्पादों, डेयरी, मांस, शराब के निर्यात और डिजिटल सेवाओं में सहयोग के महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।
  • कुशल कार्यबल: भारत न्यूज़ीलैंड के लिये कुशल प्रवासियों का सबसे बड़ा स्रोत है और अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, इसके IT, इंजीनियरिंग और स्वास्थ्य सेवा के पेशेवर न्यूज़ीलैंड की कौशल की कमी को दूर करने में मदद करते हैं।
  • डिजिटल अर्थव्यवस्था: 880 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं और वैश्विक डेटा खपत में अग्रणी होने के साथ, भारत एक प्रमुख डिजिटल अर्थव्यवस्था है, जो न्यूज़ीलैंड की तकनीकी फर्मों को IT, AI, फिनटेक और डिजिटल वाणिज्य सहयोग के अवसर प्रदान करता है।
  • सामरिक सहयोग: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का बढ़ता प्रभाव न्यूज़ीलैंड के क्षेत्रीय स्थिरता के लक्ष्य का समर्थन करता है, तथा इसकी सामरिक स्थिति को मज़बूत करता है।

भारत के लिये न्यूज़ीलैंड का महत्त्व

  • उन्नत कृषि पद्धतियाँ: डेयरी और बागवानी में न्यूज़ीलैंड की विशेषज्ञता भारत के कृषि आधुनिकीकरण में सहायता कर सकती है, जबकि खाद्य प्रसंस्करण और रसद में सहयोग से खाद्य सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण   होगा।
  • कौशल विकास: न्यूज़ीलैंड की उच्च स्तरीय शिक्षा भारतीय छात्रों को आकर्षित करती है, जबकि इसके व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम भारत को अपने कौशल अंतराल का निवारण करने और रोज़गार क्षमता में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
  • स्वच्छ ऊर्जा: जलवायु प्रौद्योगिकी और संधारणीयता में न्यूज़ीलैंड की विशेषज्ञता भारत के निम्न-कार्बन परिवर्तन में सहायक है, तथा इसकी कंपनियों को HolonIQ के इंडो-पैसिफिक क्लाइमेट टेक 100 की मान्यता प्राप्त है।
    • HolonIQ की इंडो-पैसिफिक क्लाइमेट टेक 100 सूची में प्रतिवर्ष 14 IPEF साझेदार देशों के शीर्ष जलवायु तकनीक स्टार्टअप को सम्मानित किया जाता है।
  • आकर्षक बाज़ार: न्यूज़ीलैंड का विशाल EEZ और समुद्री सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उसे चीन के प्रशांत विस्तार के बीच भारत की निगरानी प्रणालियों, गश्ती नौकाओं और रडारों का संभावित खरीदार बनाती हैं।
    • न्यूज़ीलैंड की जैविक, संधारणीय, हस्तनिर्मित वस्तुओं की मांग भारत के प्रीमियम रेशम, ऊन और हस्तशिल्प उत्पादों के अनुरूप है।

न्यूज़ीलैंड की "ओपनिंग डोर टू इंडिया" नीति क्या है?

  • न्यूज़ीलैंड की ओपनिंग डोर टू इंडिया नीति वर्ष 2011 में भारत के साथ न्यूज़ीलैंड के आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों का सुदृढ़ीकरण करने के उद्देश्य से शुरू की गई एक रणनीतिक पहल है।
  • प्रमुख घटक:

Opening_Doors_to_India_Policy

भारत-न्यूज़ीलैंड संबंधों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ विद्यमान हैं?

  • अवरुद्ध FTA वार्ता: मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ता वर्ष 2010 में शुरू हुई थी, लेकिन वर्ष 2015 में भारत द्वारा न्यूज़ीलैंड के डेयरी और कृषि निर्यात पर अपने स्थानीय उद्योग की रक्षा के लिये उच्च टैरिफ लगाए जाने के कारण यह अवरुद्ध हो गई।
  • गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTB): अंगूर, भिंडी और आम जैसे भारतीय निर्यात के समक्ष न्यूज़ीलैंड में सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी (SPS) संबंधी बाधाएँ हैं, जबकि मानकों और प्रमाणन के लिये पारस्परिक मान्यता व्यवस्था (MRA) के अभाव से व्यापार और जटिल हो जाता है।
  • व्यापार में कमी: वर्ष 2023-24 में, भारत के साथ न्यूज़ीलैंड का व्यापार केवल 1.75 बिलियन अमरीकी डॉलर था, जिसमें 0.84 बिलियन अमरीकी डॉलर का निर्यात और 0.91 बिलियन अमरीकी डॉलर का आयात था।
  • सीमित बाज़ार जागरूकता: बाज़ार संबंधी जटिलताओं से न्यूज़ीलैंड के भारत के साथ व्यापार में बाधा उत्पन्न होती है, जबकि भारत न्यूज़ीलैंड को मुख्य रूप से पर्यटन स्थल की दृष्टि से देखता है जिससे नवाचार, प्रौद्योगिकी और संधारणीयता में इसकी क्षमता उपेक्षित रह जाती है।
  • भू-राजनीतिक मतभेद: न्यूज़ीलैंड की विदेश नीति ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे सहयोगियों द्वारा निर्धारित होती है, जबकि चीन पर इसकी आर्थिक निर्भरता से क्षेत्रीय सुरक्षा और व्यापार पर भारत के साथ मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं।

आगे की राह

  • FTA वार्ता पर अंतिम निर्धारण: डेयरी और टैरिफ विवादों को वार्ता के माध्यम से हल करने, प्रारंभिक फसल समझौते में विस्तार करने, तथा बागवानी, फार्मा और तकनीक में क्षेत्र-विशिष्ट सौदों पर ध्यान केंद्रित करने से व्यापार और FTA प्रगति को बढ़ावा मिल सकता है।
  • बाजार पहुँच में विस्तार: मानकों के लिये MRA को तीव्र गति से आगे बढ़ाने, तकनीकी सहयोग के माध्यम से NTB को कम करने, तथा व्यापार मेलों, व्यापार प्रतिनिधिमंडलों और कार्यशालाओं के माध्यम से बाज़ार जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • जलवायु परिवर्तन और संधारणीयता: भारत के स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण के लिये न्यूज़ीलैंड की जलवायु तकनीक और नवीकरणीय ऊर्जा विशेषज्ञता का पूर्ण उपयोग करना चाहिये तथा  CDRI के माध्यम से आपदा तत्परता को सुदृढ़ बनाना और सतत् कृषि एवं खाद्य सुरक्षा पर सहयोग करना चाहिये।
  • रक्षा सहयोग: क्षेत्रीय स्थिरता के लिये IPOI के अंतर्गत सहयोग में विस्तार करने, संयुक्त अभ्यास और आसूचना जानकारी साझा करने के माध्यम से समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने तथा आतंकवाद-रोधी प्रयासों में सहयोग करने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत-न्यूज़ीलैंड संबंधों में प्रमुख चुनौतियों का परीक्षण कीजिये और सहयोग में सुधार करने के उपायों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. भारत-प्रशांत महासागर क्षेत्र में चीन की महत्त्वाकांक्षाओं का मुकाबला करना नई त्रि-राष्ट्र साझेदारी AUKUS का उद्देश्य है। क्या यह इस क्षेत्र में मौज़ूदा साझेदारी का स्थान लेने जा रहा है? वर्तमान परिदृश्य में AUKUS की शक्ति और प्रभाव की विवेचना कीजिये। (2021)

प्रश्न. ‘चतुर्भुजीय सुरक्षा संवाद (क्वाड)’ वर्तमान समय में स्वयं को सैन्य गठबंधन से एक व्यापारिक गुट में रूपांतरित कर रहा है - विवेचना कीजिये। (2020)


मुख्य परीक्षा

नरसु अप्पा माली केस 1951

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

संविधान के तहत व्यक्तिगत कानूनों की जाँच की जा सकती है या नहीं, इस पर बहस लंबे समय से बॉम्बे राज्य बनाम नरसु अप्पा माली केस, 1951 के महत्त्वपूर्ण निर्णय से प्रभावित रही है।

  • यह मामला, विशेष रूप से समान नागरिक संहिता (UCC) और धार्मिक कानून के अंतर्गत लैंगिक न्याय से संबंधित चर्चाओं में,  आज भी प्रासंगिक है।

बॉम्बे राज्य बनाम नरसु अप्पा माली मामला, 1951 क्या है? 

  • पृष्ठभूमि: महाराष्ट्र के निवासी नरसु अप्पा माली को बॉम्बे (हिंदू द्विविवाह रोकथाम) अधिनियम, 1946 के तहत एक सत्र न्यायालय द्वारा प्रथा के अनुसार दूसरी शादी करने के लिये दोषी ठहराया गया था।
    • इस अधिनियम के तहत द्विविवाह को दंडनीय अपराध माना गया।
    • न्यायालय ने फैसला दिया कि यह कानून अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है, भले ही यह केवल हिंदुओं पर लागू होता है, जबकि मुस्लिम पुरुष एक से अधिक विवाह कर सकते हैं।
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय: इसने वर्ष 1946 के कानून की संवैधानिकता को बरकरार रखा और कहा कि व्यक्तिगत कानून, जब तक संहिताबद्ध नहीं हो जाते, मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के लिये जाँच के अधीन नहीं हैं।
    • न्यायालय द्वारा फैसला सुनाया गया कि व्यक्तिगत कानून अनुच्छेद 13 के तहत संवैधानिक जाँच से मुक्त हैं, यहाँ तक कि प्रतिगामी प्रथाओं की भी अनुमति दी गई है। 
  • बाद के मामलों पर प्रभाव: 
    • ट्रिपल तलाक मामला, 2017: सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने तत्काल ट्रिपल तलाक ((तलाक-ए-बिद्दत)) को खारिज कर दिया है तथा निर्णय दिया कि यह शरीयत अधिनियम, 1937 के तहत संहिताबद्ध है और संवैधानिक जाँच के अधीन है।
    • सबरीमाला मामला, 2018: सर्वोच्च न्यायालय ने नरसु फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि व्यक्तिगत कानूनों सहित सभी कानूनों को संवैधानिक सिद्धांतों का पालन करना चाहिये।
  • वर्तमान मामला: विशेषज्ञों का तर्क है कि लैंगिक न्याय के लिये नरसु फैसले पर पुनर्विचार किया जाना चाहिये।
    • इसे अक्सर व्यक्तिगत कानूनों में हस्तक्षेप न करने को उचित ठहराने के लिये उद्धृत किया जाता है, जिसके कारण विवाह, उत्तराधिकार और रीति-रिवाज़ों पर परस्पर विरोधी निर्णय सामने आते हैं।

पर्सनल लॉ में न्यायिक हस्तक्षेप से संबंधित अन्य मामले 

  • शाहबानो केस, 1985: मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार को मान्यता दी गई तथा व्यक्तिगत कानूनों में लैंगिक न्याय की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
  • सरला मुद्गल केस, 1995: सर्वोच्च न्यायालय ने हिंदू पुरुषों को केवल बहुविवाह करने हेतु इस्लाम धर्म अपनाने से रोकने के लिये समान नागरिक संहिता का समर्थन किया।
  • शायरा बानो केस, 2017: ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक घोषित किया गया, लैंगिक न्याय को बढ़ावा दिया गया।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: स्वीय विधियों को धार्मिक परंपराओं के स्थान पर सांविधानिक नैतिकता के अनुरूप होना चाहिये। चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. उन संभावित कारकों पर चर्चा कीजिये जो भारत को अपने नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता लागू करने से रोकते हैं, जैसा कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में प्रदान किया गया है। (2015)


कृषि

भारत में कृषि संधारणीयता का सुनिश्चय

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA), मृदा क्षरण, कार्बन पृथक्करण, राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC), रोग-रोधी फसल

मेन्स के लिये:

पर्यावरण क्षरण की रोकथाम हेतु संधारणीय कृषि की आवश्यकता

स्रोत: बिज़नेस लाइन

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने ICAR द्वारा 'भारतीय कृषि की संधारणीयता का स्थानिक आकलन' विषयक नीति पत्र जारी किये जाने की सूचना दी और राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) के महत्त्व पर ज़ोर दिया।

  • इसके अनुसार जल अभाव, मृदा क्षरण और सामाजिक-आर्थिक सुभेद्यताओं  के कारण भारत की कृषि संधारणीयता गंभीर खतरे में है।

ICAR के नीति पत्र के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • समग्र सूचकांक: राष्ट्रीय औसत संधारणीयता सूचकांक 0.49 है, जो संधारणीयता के मध्यम स्तर का द्योतक है।
    • यह सूचकांक 51 संकेतकों पर आधारित है, जिसमें पर्यावरणीय स्थिति, मृदा और जल गुणवत्ता तथा सामाजिक-आर्थिक विकास शामिल हैं।

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  • राज्यों का प्रदर्शन: मिज़ोरम, केरल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मणिपुर, पश्चिम बंगाल और उत्तराखंड का फसल विविधीकरण, बुनियादी ढाँचे, ऋण सुविधा और सतत् इनपुट के कारण राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन रहा।
    • राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब , बिहार, हरियाणा, झारखंड और असम में शुष्क परिस्थितियों, जलवायु परिवर्तन और गहन कृषि प्रथाओं के कारण उच्च जोखिम की स्थिति है।
  • कृषि के लिये प्रमुख खतरे:
    • जल अभाव: पंजाब, राजस्थान और हरियाणा में अतिदोहन की दर 50% से अधिक होने के साथ भौम जलस्तर निरंतर कम हो रहा है।
      • जल की लवणता बढ़ रही है, जिससे पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और गुजरात में जलभृतों पर मुख्य रूप से प्रभाव पड़ रहा है।
    • मृदा क्षरण: अनुमानतः वर्ष 2050 तक कृषि भूमि से मृदा अपरदन प्रतिवर्ष 10 टन प्रति हेक्टेयर हो जाएगा।
      • अनुमानित रूप से वर्ष 2030 तक लवणता प्रभावित क्षेत्र 6.7 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 11 मिलियन हेक्टेयर हो जायेगा।
    • फसल उपज में कमी: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक वर्षा आधारित चावल की उपज में 20% और वर्ष 2080 तक 47% की कमी आ सकती है। गेहूँ की उपज में वर्ष 2050 तक 19.3% और वर्ष 2080 तक 40% की कमी आ सकती है।
    • अनियमित वर्षा: भारत की 80% वर्षा जून और सितंबर के बीच होती है, जिससे बाढ़ और सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है, जबकि वर्षा आधारित क्षेत्रों में मानसून की शुष्कता बढ़ रही है।
      • अनुमान है कि 2050 तक खरीफ और रबी सीज़न के दौरान वर्षा में वृद्धि होगी, जिसके परिणामस्वरूप जलभराव, कीट और रोग के प्रकोप की संभावना में वृद्धि होगी।

सतत् कृषि क्या है?

  • परिचय: यह एक समग्र कृषि दृष्टिकोण है जो वर्तमान खाद्य और फाइबर आवश्यकताओं को पूरा करता है तथा भावी पीढ़ियों के लिये संसाधनों को संरक्षित करता है। 
    • इसमें फसल चक्र, जैविक कृषि और समुदाय समर्थित कृषि जैसी प्रथाएँ शामिल हैं, जो पर्यावरणीय स्वास्थ्य, आर्थिक व्यवहार्यता और सामाजिक समानता सुनिश्चित करती हैं।
  • लाभ:
    • पर्यावरणीय लाभ: मृदा स्वास्थ्य में सुधार, जल संरक्षण, जैवविविधता की सुरक्षा, तथा कार्बन उत्सर्जन में कमी।
    • आर्थिक लाभ: दीर्घकालिक उत्पादकता सुनिश्चित करती है, लागत कम करती है, बाज़ार के अवसर पैदा करती है, और जलवायु लचीलापन बढ़ाती है।
    • सामाजिक लाभ: स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन का उत्पादन होता है, रोज़गार सृजित होता है, तथा खाद्य सुरक्षा मज़बूत होती है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन: जैविक कृषि, संरक्षित जुताई और कृषि वानिकी कार्बन को पृथक्करण करती है, उत्सर्जन को कम करती है, तथा जलवायु लचीलापन बढ़ाती है।

राष्ट्रीय सतत्  कृषि मिशन (NMSA) क्या है?

  • परिचय: NMSA जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत एक प्रमुख पहल है जिसका उद्देश्य भारत में सतत् कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना है।
  • उद्देश्य:
    • कृषि उत्पादकता में वृद्धि: वर्षा आधारित क्षेत्रों में उत्पादकता में सुधार लाना, जो भारत के शुद्ध बोये गये क्षेत्र का 60% तथा कुल खाद्यान्न उत्पादन का 40% है।
    • सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देंना: मृदा और जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत् उपयोग को प्रोत्साहित करना।
    • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन: कृषि को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति लचीला बनाने के लिये अनुकूलन उपायों को लागू करना।
    • आजीविका विविधता: एकीकृत कृषि प्रणालियों के माध्यम से किसानों को उनकी आय के स्रोतों में विविधता लाने में सहायता करना।
  • कार्यवाही कार्यक्रम (POA): NMSA भारतीय कृषि के दस प्रमुख आयामों पर ध्यान केंद्रित करता है:

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  • सतत्  विकास लक्ष्यों के साथ संरेखण: NMSA सतत् कृषि पद्धतियों और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलेपन को बढ़ावा देकर सतत विकास लक्ष्य 2 (भूखमरी को समाप्त करना) और सतत् विकास लक्ष्य 13 (जलवायु कार्यवाही) में योगदान देता है।

आगे की राह:

  • किसानों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन: जैविक खेती, फसल चक्र और कृषि वानिकी जैसी सतत् पद्धतियों को अपनाने वाले किसानों को वित्तीय पुरस्कार प्रदान करना तथा जैविक उर्वरकों, जैव कीटनाशकों और अन्य पर्यावरण अनुकूल आदानों के लिये सब्सिडी प्रदान करना।
  • अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना: सूखा, कीट और रोग प्रतिरोधी फसलों के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना, तथा छोटे किसानों के लिये किफायती जैविक इनपुट विकसित करना।
  • सतत् उत्पादन के लिये बाज़ार तक पहुँच: फसल-उपरांत होने वाले नुकसान को कम करने के लिये भंडारण, परिवहन और प्रसंस्करण में सुधार करना, तथा सतत् उत्पादन के लिये किसानों से उपभोक्ताओं तक सीधे बिक्री को सक्षम बनाना।
  • पर्यावरणीय विनियमों को सुदृढ़ करना: जल उपयोग, उर्वरकों और कीटनाशकों के अति प्रयोग तथा प्रदूषण को रोकने के लिये सख्त विनियमन लागू करना, तथा अनुपालन की सावधानीपूर्वक जाँच करना।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भूजल की कमी और मृदा क्षरण भारतीय कृषि के लिये गंभीर जोखिम उत्पन्न करते हैं। इन चुनौतियों को कम करने में राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA) की भूमिका पर चर्चा करें।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. इस पहल का उद्देश्य उचित उत्पादन और कटाई के बाद की तकनीकों का प्रदर्शन करना तथा मूल्यवर्द्धन तकनीकों को समेकित तरीके से क्लस्टर दृष्टिकोण के साथ प्रदर्शित करना है।
  2.  इस योजना में गरीब, छोटे, सीमांत और आदिवासी किसानों की बड़ी हिस्सेदारी है।
  3.  इस योजना का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य वाणिज्यिक फसलों के किसानों को पोषक तत्त्वों और सूक्ष्म सिंचाई उपकरणों के आवश्यक आदानों की निःशुल्क किट देकर बाजरा की खेती में स्थानांतरित करने के लिये प्रोत्साहित करना है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: c


प्रश्न: निम्नलिखित अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. खाद्य एवं कृषि के लिये पादप आनुवंशिक संसाधनों पर अंतर्राष्ट्रीय संधि
  2.  मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन
  3.  विश्व विरासत सम्मेलन

उपर्युक्त में से किसका/किनका जैवविविधता पर प्रभाव पड़ता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) कृषि उत्पादन को बनाए रखने में किस सीमा तक सहायक है? (2019)


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