भारतीय इतिहास
आज़ाद हिंद फौज की विरासत
प्रिलिम्स के लिये:आज़ाद हिंद फौज (INA), नेताजी सुभाष चंद्र बोस, कर्तव्य पथ, भारतीय स्वतंत्रता लीग, स्वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार, रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह, INA पर अभियोग मेन्स के लिये:आज़ाद हिंद फौज की भूमिका और विरासत |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
आज़ाद हिंद फौज (INA) के एक सेवानिवृत्त सैनिक ने कर्तव्य पथ पर स्थित नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर अपना 99वाँ जन्मदिन मनाया।
- ये 17 वर्ष की आयु में 1 नवंबर 1943 को INA में शामिल हुए थे।
आज़ाद हिंद फौज (INA) क्या थी?
- परिचय: यह द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में ब्रिटिश शासन का सामना करने के उद्देश्य से गठित एक सैन्य बल था और इसने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- गठन:
- मोहन सिंह: उन्होंने भारतीय युद्धबंदियों (POW) से एक सेना गठित करने का प्रस्ताव किया और जापानी समर्थन प्राप्त किया। उन्होंने शुरुआत में INA का नेतृत्व किया, जिसमें लगभग 40,000 सैनिकों की भर्ती की गई।
- हालाँकि, सैनिकों की संख्या को लेकर जापानियों के साथ संघर्ष के कारण उन्हें हटा दिया गया।
- रासबिहारी बोस: यह एक अनुभवी क्रांतिकारी थे और इन्होने INA के लिये समर्थन जुटाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई और टोक्यो में भारतीय स्वतंत्रता लीग का गठन किया (1942)।
- सुभाष चंद्र बोस: 25 अगस्त 1943 को बोस को INA का सुप्रीम कमांडर नियुक्त किया गया और बाद में 21 अक्तूबर 1943 को उन्होंने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अनंतिम सरकार अथवा आज़ाद हिंद की स्थापना की।
- इसे जापान, जर्मनी, इटली और चीन (वांग जिंगवेई के नेतृत्व में) सहित 9 देशों द्वारा मान्यता दी गई।
- चलो दिल्ली अभियान के तहत INA ने मणिपुर के मोइरांग में भारतीय धरती पर अपना झंडा फहराया, लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के कारण यह अभियान इम्फाल में समाप्त हो गया।
- मोहन सिंह: उन्होंने भारतीय युद्धबंदियों (POW) से एक सेना गठित करने का प्रस्ताव किया और जापानी समर्थन प्राप्त किया। उन्होंने शुरुआत में INA का नेतृत्व किया, जिसमें लगभग 40,000 सैनिकों की भर्ती की गई।
- पतन: जापान की हार (1944-45) से INA कमज़ोर हो गई। 15 अगस्त 1945 को जापान के आत्मसमर्पण के बाद INA ने भी आत्मसमर्पण कर दिया।
- 18 अगस्त 1945 को, कथित तौर पर ताइवान विमान दुर्घटना में सुभाष बोस की मृत्यु हो गई, जिसके कारण INA को भंग कर दिया गया।
- INA पर अभियोग: INA की हार के बाद, अनेक INA सैनिकों को युद्धबंदियों के रूप में कोर्ट मार्शल किया गया, जिससे देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया, जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को बढ़ावा दिया।
- नवंबर 1945 में लाल किले में हुए पहले मुकदमे में तीन अधिकारी प्रेम कुमार सहगल (एक हिंदू), शाह नवाज खान (एक मुस्लिम) और गुरबख्श सिंह ढिल्लों (एक सिख) शामिल थे, जिन्होंने INA की एकता पर जोर दिया।
- बॉम्बे कॉन्ग्रेस अधिवेशन (सितंबर 1945) में INA युद्धबंदियों के समर्थन में एक प्रस्ताव पारित किया गया। प्रख्यात वकील भूलाभाई देसाई, तेज बहादुर सप्रू, जवाहरलाल नेहरू और आसफ अली ने उनका प्रतिवाद किया।
- प्रमुख राष्ट्रवादी प्रदर्शन (1945-46): इस अवधि के दौरान तीन प्रमुख हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए:
- 21 नवंबर 1945: INA मुकदमों के खिलाफ कलकत्ता में छात्र विरोध प्रदर्शन के कारण पुलिस गोलीबारी हुई।
- 11 फरवरी 1946: INA अधिकारी राशिद अली की सजा के विरोध में कलकत्ता में प्रदर्शन शुरू हो गये।
- 18 फरवरी 1946: रॉयल इंडियन नेवी (RIN) के सैनिकों ने बॉम्बे में विद्रोह कर दिया।
और पढ़े: |
आज़ाद हिंद फौज (INA) का महत्त्व क्या है?
- ब्रिटिश सत्ता को प्रत्यक्ष चुनौती: INA के गठन और सैन्य अभियानों ने धुरी शक्तियों (जापान और जर्मनी) की मदद से भारत को सैन्य रूप से स्वतंत्र कराने का प्रयास करके ब्रिटिश शासन को प्रत्यक्ष चुनौती दी।
- राष्ट्रवादी एकता: INA मुकदमों ने धार्मिक और राजनीतिक विभाजनों से ऊपर उठकर भारतीयों को एकजुट किया, जिससे देशव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।
- काॅन्ग्रेस, मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा और कम्युनिस्ट जैसे राजनीतिक दल ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ एकजुट थे।
- भारतीय सशस्त्र बलों पर प्रभाव: INA ने भारतीय सैनिकों के बीच सहानुभूति को प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप रॉयल इंडियन नेवी विद्रोह (वर्ष 1946) हुआ, जहाँ 20,000 नाविकों ने विद्रोह किया, जो ब्रिटिश नियंत्रण में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।
- ब्रिटिशों की वापसी: वर्ष 1956 में, ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने स्वीकार किया कि INA ब्रिटेन के बाहर निकलने की कुंजी थी, क्योंकि भारतीय सेना के अब ब्रिटिश ताज के प्रति वफादार नहीं होने के डर से स्वतंत्रता में तेज़ी आई।
- विरासत और प्रतीकात्मकता: INA सशस्त्र प्रतिरोध का प्रतीक बन गया, जिसने भारत की रक्षा और रणनीतिक दृष्टिकोण में भावी पीढ़ियों को प्रेरित किया।
- INA का नारा "जय हिंद" राष्ट्रीय एकता का नारा बना हुआ है।
और पढ़ें: रास बिहारी बोस के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
निष्कर्ष
- आज़ाद हिंद फौज (INA) ने ब्रिटिश शासन को प्रत्यक्ष चुनौती देकर, राष्ट्रवादी एकता को बढ़ावा देकर और सशस्त्र बलों के विद्रोह को प्रेरित करके भारत की स्वतंत्रता में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके प्रभाव ने ब्रिटिश वापसी को तेज़ कर दिया और इसकी विरासत भारत के रणनीतिक दृष्टिकोण, सैन्य लोकाचार और राष्ट्रीय पहचान को प्रभावित करती रही है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में आज़ाद हिंद फौज (INA) की भूमिका पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. औपनिवेशिक भारत के संदर्भ में शाह नवाज खान, प्रेम कुमार सहगल और गुरबख्श सिंह ढिल्लों किस रूप में याद किये जाते हैं? (2021) (a) स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के नेता के रूप में उत्तर: (d) प्रश्न . भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान निम्नलिखित में से किसने 'फ्री इंडियन लीजन' नामक सेना स्थापित की थी? (2008) (a) लाला हरदयाल उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न: गांधीवादी प्रावस्था के दौरान विभिन्न स्वरों ने राष्ट्रवादी आंदोलन को सुदृढ़ एवं समृद्ध बनाया था। विस्तारपूर्वक स्पष्ट कीजिये। (2019) प्रश्न: स्वतंत्रता के लिये संघर्ष में सुभाषचंद्र बोस एवं महात्मा गांधी के मध्य दृष्टिकोण की भिन्नताओं पर प्रकाश डालिये। (2016) प्रश्न: महात्मा गांधी के बिना भारत की स्वतंत्रता की उपलब्धि कितनी भिन्न हुई होती? चर्चा कीजिये। (2015) प्रश्न: किन प्रकारों से नौसैनिक विद्रोह भारत में अंग्रेज़ों की औपनिवेशिक महत्त्वाकांक्षाओं की शव-पेटिका में लगी अंतिम कील साबित हुआ था? (2014) |


मुख्य परीक्षा
व्यसन का तंत्रिका विज्ञान
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
मस्तिष्क जागरूकता सप्ताह [Brain Awareness Week (10-16 मार्च)] के दौरान, एक अध्ययन से पता चला कि व्यसन में मस्तिष्क में एक जटिल तंत्रिका सर्किट शामिल होता है जो तृष्णा, भावनात्मक विनियमन और निर्णयन को प्रभावित करता है।
- यह व्यसन को नैतिक विफलता के बजाय एक दीर्घकालिक मस्तिष्क स्थिति के रूप में रेखांकित करता है, तथा अधिक प्रभावी उपचार रणनीतियों का मार्ग प्रशस्त करता है।
तंत्रिका विज्ञान व्यसन की व्याख्या कैसे करता है?
- व्यसन में मस्तिष्क की भूमिका: अध्ययन में व्यसन में शामिल 3 प्रमुख मस्तिष्क भागों पर प्रकाश डाला गया है, अर्थात, आधारीय गुच्छिकाएँ (Basal Ganglia), एक्सटेंडेड एमिगडाला (Extended Amygdala) और पुरोमुखीय वल्कुट (Prefrontal Cortex)।
- आधारीय गुच्छिकाएँ (Basal Ganglia): यह मस्तिष्क को आनंददायक गतिविधियों की प्रेरणा देता है, चाहे वह भोजन, सामाजिक संपर्क या मादक द्रव्यों से हो।
- यह आनंददायक व्यवहार को सुदृढ़ करने के लिये डोपामाइन और सेरोटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के साथ कार्य करता है।
- एक्सटेंडेड एमिगडाला (Extended Amygdala): जब मादक द्रव्यों का उपयोग बंद हो जाता है तो यह दुश्चिंता, उत्तेजनशीलता और व्यग्रता पैदा करता है, जिससे नुकसान के बावजूद उपयोग जारी रहता है।
- पुरोमुखीय वल्कुट (Prefrontal Cortex): यह बताता है कि मादक द्रव्यों के हानिकारक प्रभावों को जानने के बावजूद भी उनका उपयोग क्यों जारी रहता है, जो कि व्यसन का एक प्रमुख लक्षण है।
- पुरोमुखीय वल्कुट, जो निर्णय लेने, समय प्रबंधन और प्राथमिकता निर्धारण का कार्य करता है, इस त्रिक को पूर्ण करता है।
- आधारीय गुच्छिकाएँ (Basal Ganglia): यह मस्तिष्क को आनंददायक गतिविधियों की प्रेरणा देता है, चाहे वह भोजन, सामाजिक संपर्क या मादक द्रव्यों से हो।
- किशोरों की सुभेद्यता: किशोरावस्था मादक द्रव्यों के सेवन के लिये एक गंभीर “जोखिम अवधि” होती है, क्योंकि इस दौरान इस वर्ग के बालकों का मस्तिष्क विकास के चरण में होता है।
- प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स, जो आवेगों और निर्णयन को नियंत्रित करता है, सबसे अंत में परिपक्व होता है। यह किशोरों को व्यसन के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है।
- व्यसन के अन्य कारण:
- आनुवंशिक प्रवृत्ति: कुछ व्यक्ति जैविक रूप से व्यसन के प्रति अधिक प्रवण होते हैं।
- मनोवैज्ञानिक कारक: आघात, तनाव और मानसिक स्वास्थ्य विकार व्यसन के प्रति सुभेद्यता को बढ़ाते हैं।
- परिवेश संबंधी प्रभाव: पारिवारिक वृत्त, साथियों का दबाव और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- प्रथमतः सेवन की आयु: अल्प आयु में संपर्क से दीर्घकालिक निर्भरता का जोखिम बढ़ जाता है।
नोट:
- मस्तिष्क बिम्बन (जैसे, MRI) से व्यसन के कारण होने वाले संरचनात्मक और जैव रासायनिक परिवर्तनों की पहचान करने में मदद मिली है।
- संज्ञानात्मक-व्यवहार चिकित्सा (Cognitive-Behavioral Therapies- CBT) और न्यूरोफीडबैक तकनीकों से मस्तिष्क को पुनः स्वस्थ करने में सहायता मिल रही है।
ब्रेन अवेयरनेस वीक (BAW) क्या है?
- परिचय: यह प्रत्येक वर्ष मार्च माह के तीसरे सप्ताह में मनाया जाता है, जिसमें जीव विज्ञान को समझने, रोगों की रोकथाम करने और स्वास्थ्य सेवा में सुधार करने में मस्तिष्क विज्ञान की भूमिका को उजागर किया जाता है।
- यह न्यूयॉर्क में स्थित निजी लोकोपकारी संगठन दाना फाउंडेशन द्वारा प्रत्येक वर्ष आयोजित किया जाता है, जो तंत्रिका विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने हेतु समर्पित है।
- कालक्रम:
- उद्देश्य और सहयोग: मस्तिष्क के प्रकार्यों, विकारों और अनुसंधान प्रगति के संबंध में जनता को शिक्षित करना।


शासन व्यवस्था
भारत में ऑनलाइन गेमिंग का विनियमन
प्रिलिम्स के लिये:ऑनलाइन गेमिंग, रियल मनी गेमिंग (आरएमजी) उद्योग, डिजिटल भुगतान प्रणाली, राज्य सूची, विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (फेमा)। मेन्स के लिये:भारत में गेमिंग उद्योग के उदय के लिये अग्रणी कारक, आचार संहिता की आवश्यकता और भारत के ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र को विनियमन मुक्त करना। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
अनेक विशेषज्ञों ने ऑनलाइन गेमिंग में अत्यधिक सख्त विनियमन की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित कर महँगे करों और अस्पष्ट कानूनी स्थिति की ओर इशारा किया है, तथा सरकार से उन्हें अधिक स्वतंत्रता के साथ कार्य करने की अनुमति देने का आग्रह किया है।
- इसके अतिरिक्त, भारत के रियल मनी गेमिंग (आरएमजी) उद्योग ने नैतिक और पारदर्शी व्यावसायिक प्रथाओं को स्थापित करने के लिये सामूहिक रूप से एक आचार संहिता पर हस्ताक्षर किये हैं।
RMG उद्योग क्या है?
- परिचय: यह वित्त वर्ष 2023-24 में 3.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का राजस्व उत्पन्न करता है और इसमें ड्रीम 11 और पोकरबाजी (PokerBaazi) जैसे प्लेटफॉर्म शामिल हैं जहाँ उपयोगकर्त्ता पैसे जीतने या हारने की संभावना के साथ वास्तविक पैसा लगाते हैं।
- आचार संहिता की आवश्यकता:
- कानूनी दबाव: तमिलनाडु जैसे राज्यों द्वारा आधार सत्यापन और गेमप्ले ब्लैकआउट (आधी रात से सुबह 5 बजे तक) सहित सख्त नियम लागू करने का प्रयास किया गया।
- केंद्रीय विनियमन का अभाव: RMG उद्योग के लिये केंद्र सरकार के प्रस्तावित नियमों को अभी तक लागू नहीं किया गया है, जिससे फर्मों पर स्वयं विनियमन का दबाव बढ़ रहा है ।
- उद्योगों की छवि: स्व-नियमन RMG कंपनियों को ज़िम्मेदारी और वैधता प्रदर्शित करने में मदद करता है।
- अपतटीय प्लेटफार्मों से प्रतिस्पर्द्धा: अंतर्राष्ट्रीय गेमिंग वेबसाइटें, जो GST और आईडी सत्यापन आवश्यकताओं को दरकिनार करती हैं, तेज़ी से बढ़ रही हैं, जिससे घरेलू प्लेटफार्मों के लिये स्वयं को अलग करने के लिये नैतिक प्रतिबद्धताएँ महत्त्वपूर्ण हो गई हैं।
ऑनलाइन गेमिंग क्या है?
- ऑनलाइन गेमिंग से तात्पर्य इंटरनेट पर वीडियो गेम खेलने से है, जो खिलाड़ियों को कंप्यूटर, गेमिंग कंसोल या स्मार्टफोन के माध्यम से कनेक्ट करने की अनुमति प्रदान करता है।
- यह खिलाड़ियों के बीच वास्तविक समय में वार्तालाप और प्रतिस्पर्द्धा की सुविधा प्रदान करता है, चाहे वे कहीं भी स्थित हों।
- वर्गीकरण:
- कौशल-आधारित खेल: वे मौके की बजाय कौशल को प्राथमिकता देते हैं, जो भारत में वैध हैं। उदाहरण के लिये, गेम 24X7, ड्रीम 11 और मोबाइल प्रीमियर लीग (एमपीएल)।
- गेम्स ऑफ चैन्स: इनका परिणाम मुख्य रूप से कौशल के बजाय भाग्य पर निर्भर करता है तथा भारत में ये अवैध हैं। उदाहरण के लिये, रूलेट, जो मुख्य रूप से मौद्रिक पुरस्कारों के लिये खिलाड़ियों को आकर्षित करता है।
- बाज़ार का आकार: वर्ष 2023 में, भारत 568 मिलियन गेमर्स तथा 9.5 बिलियन ऐप डाउनलोड के साथ विश्व का सबसे बड़ा गेमिंग बाज़ार बन जाएगा।
- वर्ष 2023 में इस बाज़ार का मूल्य 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, तथा अनुमान है कि वर्ष 2028 तक यह 8.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगा।
- विकास के प्रमुख घटक :
- युवा जनसांख्यिकी: भारत की लगभग आधी जनसंख्या 25 वर्ष से कम आयु की है, जिससे गेमिंग के प्रति लोगों की संख्या बहुत अधिक हो गई है।
- स्मार्टफोन का प्रसार: स्मार्टफोन उपयोगकर्त्ताओं की संख्या वर्ष 2017 में 468 मिलियन से बढ़कर वर्ष 2025 में 1.2 बिलियन होने की उम्मीद है।
- इंटरनेट पहुँच: भारत में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपयोगकर्त्ता आधार है, जिसके वर्ष 2025 तक 900 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
- स्थानीयकृत सामग्री: खेलों को भारतीय प्राथमिकताओं के अनुसार अनुकूलित किया जा रहा है, जिसमें क्षेत्रीय भाषा विकल्प (गुजराती, बांग्ला, मराठी, तेलुगु, आदि) और फेस्टिवल-थीम वाले कार्यक्रम शामिल हैं।
- तेज़ी से बढ़ता IT सेक्टर: वर्ष 2010 में, भारत में केवल 25 ऑनलाइन गेम डेवलपमेंट कंपनियाँ थीं; वर्ष 2019 तक, इनकी संख्या 275 हो गई, जो विश्वव्यापी गेम डेवलपमेंट उद्योग में योगदान दे रही हैं।
- डिजिटल भुगतान : डिजिटल भुगतान प्रणाली के उपयोगकर्त्ता वर्ष 2019 में 10 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2025 में 46.52 करोड़ हो गए, जिससे ऑनलाइन लेनदेन की सुविधा मिली।
- दुष्प्रभाव:
- अविरति (Addiction): WHO ने आधिकारिक तौर पर 'गेमिंग डिसऑर्डर' को रोगों के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण के तहत एक व्यवहारिक अविरति के रूप में शामिल करने के लिये मतदान किया है।
- भावनात्मक लक्षण: व्यग्रता, उत्तेजनशीलता, सामाजिक अलगाव।
- शारीरिक लक्षण: थकान और माइग्रेन, कार्पल टनल सिंड्रोम (उंगलियों और हाथों में दर्द)।
और पढ़ें: गेमिंग क्षेत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
गेम ऑफ स्किल और गेम ऑफ चांस के बीच अंतर
पहलू |
गेम ऑफ स्किल |
गेम ऑफ चांस |
परिभाषा |
ऐसे खेल जहाँ परिणाम मुख्य रूप से खिलाड़ी के ज्ञान, रणनीति और कौशल से निर्धारित होता है। |
ऐसे खेल जहाँ परिणाम मुख्य रूप से यादृच्छिक कारकों और भाग्य पर आधारित होते हैं। |
प्रमुख निर्धारक कारक |
खिलाड़ी का कौशल, निर्णयन की क्षमता और अभ्यास। |
यादृच्छिकता, संभावना और भाग्य। |
परिणाम पर नियंत्रण |
उच्च - खिलाड़ियों के कार्य सीधे परिणाम को प्रभावित करते हैं। |
निम्न - खिलाड़ियों का परिणामों पर बहुत कम या कोई नियंत्रण नहीं होता। |
उदाहरण |
शतरंज, पोकर (कौशल-आधारित), ई-स्पोर्ट्स (डोटा 2, काउंटर-स्ट्राइक), फैंटेसी स्पोर्ट्स, स्पोर्ट्स बेटिंग (ज्ञान-आधारित)। |
स्लॉट मशीनें, रूलेट, लॉटरी, स्क्रैच कार्ड, अधिकांश कैसिनो गेम। |
विधिक स्थिति |
प्रायः जुआ कानूनों से छूट प्राप्त या लचीला विनियमन। |
शोषण और अविरति (Addiction) की संभावना के कारण सख्ती से विनियमित। |
भारत में ऑनलाइन गेमिंग कैसे विनियमित है?
- विधिक प्रावधान:
- भारत के संविधान में राज्य सूची की प्रविष्टि 34 के अंतर्गत राज्य विधानसभाओं को गेमिंग, बेटिंग और गैंबलिंग पर कानून बनाने का विशेष अधिकार है।
- सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023: इसमें ऑनलाइन गेम, ऑनलाइन गेमिंग मध्यस्थ, स्व-नियामक निकाय, ऑनलाइन RMG और अनुमेय खेलों को परिभाषित किया गया है।
- पुरस्कार प्रतियोगिता अधिनियम, 1955 पुरस्कार-आधारित प्रतियोगिताओं को नियंत्रित करता है।
- सार्वजनिक जुआ अधिनियम, 1867 (PGA) कौशल-आधारित खेलों को दंड से छूट देता है।
- FDI प्रतिबंध: भारत की FDI नीति लाइसेंसिंग और ब्रांड समझौतों सहित लॉटरी, जुआ और बेटिंग में विदेशी निवेश और प्रौद्योगिकी सहयोग पर प्रतिबंध लगाती है।
- विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 (FEMA) के तहत लॉटरी जीत, रेसिंग, घुड़सवारी से होने वाली आय के लिये धन प्रेषण प्रतिबंधित है।
- न्यायिक दृष्टिकोण: डॉ. के.आर. लक्ष्मणन मामले, 1996 में, सर्वोच्च न्यायालय ने हॉर्स रेस बेटिंग को कौशल का खेल माना और इसे अधिकांश जुआ प्रतिबंधों से मुक्त कर दिया।
- गीता रानी मामला, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय को अभी यह विनिश्चित करना है कि बेटिंग कौशल का खेल है या नहीं।
- कराधान: केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (संशोधन) अधिनियम, 2023 ने ऑनलाइन गेमिंग में प्रवेश राशि के पूर्ण अंकित मूल्य पर 28% कर लागू किया।
- आयकर अधिनियम, 1961 के अंतर्गत , लॉटरी, कार्ड गेम या किसी भी खेल (कौशल-आधारित खेल सहित) से 10,000 रुपए से अधिक की जीत पर 30% (अधिभार और उपकर को छोड़कर) कर लगाया जाता है।
ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र में नियमों में छूट की क्या आवश्यकता है?
- आर्थिक विकास और रोज़गार: ऑनलाइन गेमिंग उद्योग एक उभरता हुआ क्षेत्र है, जिसका अनुमानित बाज़ार आकार वर्ष 2028 तक 8.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा।
- विनियमन से निवेश और विस्तार को बढ़ावा मिलेगा, जिससे 2 से 3 लाख अतिरिक्त रोज़गार का सृजन होगा।
- प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ में वृद्धि: भारत की विशाल बाज़ार क्षमता को ऐसे नियमों के माध्यम से सुदृढ़ बनाया जा सकता है, जो स्टार्टअप्स को कर और विधिक बाधाओं का सामना करने के बजाय वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में मदद करेंगे।
- नियामक स्पष्टता सुनिश्चित करना: ऑनलाइन गेमिंग कंपनियाँ बनाम GST मामले, 2025 में, 1.12 लाख करोड़ रुपए की पूर्वव्यापी GST मांग पर सर्वोच्च न्यायालय की रोक स्पष्ट और स्थिर नीतियों की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
- अस्पष्ट कर संरचनाओं से अननुमेय व्यावसायिक परिवेश का निर्माण होता है, जिससे निवेश और विकास बाधित होता है।
- पूंजी पलायन की रोकथाम: 28% GST के साथ ऑनलाइन गेमिंग को द्यूत और मद्य की समान श्रेणी में रखा गया है, जिससे व्यवसाय विदेशी प्लेटफाॅर्मों के उपयोग की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
- इसके परिणामस्वरूप कर राजस्व की हानि होती है तथा अनियमित ऑनलाइन बेटिंग से जोखिम बढ़ता है।
- नवप्रवर्तन को प्रोत्साहन: इस क्षेत्र में स्टार्टअप्स नवप्रवर्तन और विस्तार के स्थान पर विधिक केसों में अपने संसाधनों का उपयोग करने हेतु विवश होते हैं।
- एक स्थिर नियामक ढाँचा से निवेश आकर्षित किया जा सकता है, तकनीकी प्रगति को बढ़ावा दिया जा सकता है और ऑनलाइन गेमिंग में भारत को प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
आगे की राह
- कराधान को युक्तिसंगत बनाना: सरकार को निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिये खेल वर्गीकरण (कौशल-आधारित बनाम मौका-आधारित) के आधार पर स्तरीय कराधान पर विचार करना चाहिये और निवेश स्थिरता के लिये पूर्वव्यापी GST मांगों पर पुनर्विचार करना चाहिये।
- गेमिंग प्लेटफाॅर्म का वर्गीकरण: उपयोगकर्ता आधार के आधार पर गेमिंग प्लेटफाॅर्म को वर्गीकृत करने से लक्षित विनियमन के माध्यम से उत्तरदायित्वपूर्ण गेमिंग को बढ़ावा मिल सकता है। उदाहरण के लिये,
- बालक एवं किशोर (18 वर्ष से कम): अभिभावकीय नियंत्रण, समय सीमा।
- युवा वयस्क (18-25): जागरूकता अभियान, व्यय सीमाएँ।
- वयस्क (25+): द्यूत की सीमा, मानसिक स्वास्थ्य सहायता।
- एकसमान विनियामक ढाँचा: उद्योग और सरकार को शामिल करने वाले सह-विनियामक मॉडल से अनुपालन सुनिश्चित किया जा सकता है और उत्तरदायित्वपूर्ण गेमिंग को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- राष्ट्रीय गेमिंग नीति में RMG आचार संहिता से प्राप्त जानकारी को शामिल करने से विनियमन और अधिक सुदृढ़ होगा।
- उत्तरदायित्वपूर्ण गेमिंग: प्लेटफॉर्मों द्वारा गेमिंग के व्यसन के जोखिम और हेल्पलाइन सहायता के बारे में जागरूकता अभियान आयोजित किया जाना अनिवार्य किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये, तमिलनाडु ऑनलाइन गेमिंग अथॉरिटी उत्तरदायित्वपूर्ण ऑनलाइन गेमिंग सुनिश्चित करती है और विशेष रूप से युवाओं में इसके व्यसन को रोकती है।
- यदि डेटा संरक्षण नियमों का सख्ती से प्रवर्तन किया जाए तो उपयोगकर्त्ता डेटा की दुरुपयोग से सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में ऑनलाइन गेमिंग उद्योग की संवृद्धि के प्रमुख चालकों और इसके अत्यधिक विनियमन से उत्पन्न चुनौतियों की विवेचना कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. चर्चा कीजिये कि किस प्रकार उभरती प्रौद्योगिकियाँ और वैश्वीकरण मनी लॉन्ड्ऱिग में योगदान करते हैं। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर मनी लॉन्ड्ऱिग की समस्या से निपटने के लिये किये जाने वाले उपायों को विस्तार से समझाइये। (2021) |


जैव विविधता और पर्यावरण
वाॅटर सर्कुलरिटी
प्रिलिम्स के लिये:समग्र जल प्रबंधन सूचकांक, वाॅटर सर्कुलरिटी, उद्योग 4.0, 3G इथेनॉल उत्पादन, अमृत 2.0, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मेन्स के लिये:भारत में जल संकट और प्रबंधन, भारत में अपशिष्ट जल उपचार और पुन: उपयोग, सर्कुलर इकोनॉमी |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन, "वेस्ट टू वर्थ: मैनेजिंग इंडियाज़ अर्बन वाटर क्राइसिस थ्रू वेस्टवाटर रीयूज़", में जल अभाव और पर्यावरणीय क्षरण दोनों के समाधान के रूप में उपचारित अपशिष्ट जल का पुनः उपयोग किये जाने द्वारा वाॅटर सर्कुलरिटी (जल संसाधनों का पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण) की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग पर अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- भारत में जल का बढ़ता अभाव: प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता के मामले में भारत विश्व स्तर पर 132वें स्थान पर है (भारत-WRIS), जहाँ अलवणीय जल संसाधनों में वर्ष 1951 के 5,200 क्यूबिक मीटर (m³) में 73% की कमी हुई है।
- केंद्रीय जल आयोग के अनुमान अनुसार वर्ष 2021 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1,486 m³ थी, जो वर्ष 2031 तक घटकर 1,367 m³ हो जाएगी।
- भारत पहले से ही जल-संकटग्रस्त राष्ट्र है (प्रति व्यक्ति 1,700 m³ से कम) तथा यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई तो इसके जल-विरल (प्रति व्यक्ति 1,000 m³ से कम) होने का खतरा है।
- भारत पृथ्वी के 2% भूभाग पर विस्तृत है, लेकिन वैश्विक अलवणीय जल संसाधनों का केवल 4% ही इसके पास है, जबकि यहाँ विश्व की 18% जनसंख्या और 15% पशुधन का भरण-पोषण होता है, जिससे इसकी जल आपूर्ति पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
- अपशिष्ट जल उत्पादन संकट: वर्ष 2020-21 में, भारत के नगरीय क्षत्रों से 72,368 मिलियन लीटर प्रति दिन (MLD) सीवेज उत्पन्न हुआ, लेकिन केवल 44% (31,841 MLD) ही उपचार योग्य था, जिसकी परिचालन क्षमता 26,869 MLD थी।
- परिणामस्वरूप, केवल 28% (20,236 MLD) का उपचार किया गया, जबकि 72% अनुपचारित रहा, जिससे जल क्षेत्र और भूमि प्रदूषित हुई।
- आगामी 25 वर्षों में अपशिष्ट जल उत्पादन में 75-80% की वृद्धि होने की उम्मीद है, जो वर्ष 2050 तक सालाना 48 BCM हो जाएगा, जो वर्तमान उपचार क्षमता का 3.5 गुना है।
- अपशिष्ट जल एक अप्रयुक्त संसाधन है जो पर्यावरण प्रदूषण को कम करते हुए अलवणीय जल की आपूर्ति को पूरक बना सकता है।
- जल विनियमन संबंधी चुनौतियाँ: भारत के नगर जल के लिये दूरवर्ती नदियों (बंगलुरु (कावेरी) और हैदराबाद (कृष्णा, गोदावरी)) पर अत्यधिक निर्भर हैं। इस निर्भरता से लागत बढ़ती है और विशेषकर नगरोपांत क्षेत्रों और अनौपचारिक बस्तियों में जल अभाव और असमान पहुँच की समस्या उत्पन्न होती है।
- NITI आयोग समग्र जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार 16 राज्यों का स्कोर 100 में से 50 से कम है, जो खराब जल प्रबंधन को दर्शाता है। अधिकांश शहर जल क्षेत्रों में अनुपचारित अथवा आंशिक रूप से उपचारित सीवेज का निपटान करते हैं।
- केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के आदेशानुसार शहरों द्वारा अपने उपचारित जल का कम से कम 20% पुनः उपयोग किया जाना अनिवार्य है किंतु इसका उचित अनुपालन न नहीं किया जाता है।
- अपशिष्ट जल का कृषि और उद्योग में अनौपचारिक रूप से पुनः उपयोग किया जाता है, लेकिन इसके लिये कोई संरचित नीति नहीं बनाई जाती। किसान स्वास्थ्य को खतरे में डालकर अनुपचारित सीवेज़ का उपयोग करते हैं।
- बड़ी सिंचाई परियोजनाओं को शहरी क्षेत्रों में जलापूर्ति के लिये पुनः तैयार किया गया है (नर्मदा परियोजना (गुजरात), बीसलपुर परियोजना (राजस्थान)), जिससे कृषि के लिये जल की उपलब्धता कम हो गई है।
वाॅटर सर्कुलरिटी क्या है?
- परिचय: वाॅटर सर्कुलरिटी, लोगों, प्रकृति और व्यवसायों के लिये मूल्य को अधिकतम करने हेतु जल उपचार चक्र के भीतर संसाधनों के पुनर्चक्रण, पुनः उपयोग और पुनर्प्राप्ति की प्रथा है। इससे अपशिष्ट कम होता है, प्रदूषण कम होता है, तथा प्राकृतिक प्रणालियों का पुनरुद्धार होता है।
- वाॅटर सर्कुलरिटी के लाभ: उपचारित अपशिष्ट जल का पुनर्चक्रण करने से औद्योगिक जल लागत कम हो जाती है, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) मॉडल पर चलने वाले विद्युत संयंत्रों और डेटा केंद्रों में, क्योंकि इससे शीतलन के लिये स्वच्छ जल का उपयोग किया जाता है और उद्योग 4.0 को समर्थन मिलता है।
- भारत में, प्रति वर्ष उत्पन्न होने वाले लगभग 317 वर्ग किलोमीटर नगरपालिका अपशिष्ट जल से संभावित रूप से 40 मिलियन हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकती है, जो कुल सिंचित भूमि का 10% है।
- एक अध्ययन में पाया गया है कि ताप विद्युत संयंत्रों में अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण से प्रतिवर्ष 10 मिलियन क्यूबिक मीटर जल की बचत हो सकती है तथा प्रतिवर्ष 300 मिलियन अमेरिकी डॉलर का लाभ हो सकता है।
- भारत के श्रेणी I और II के शहर प्रतिदिन 2,500 टन पोषक तत्त्व (6,400 MLD सीवेज़ जल से) उत्पन्न करते हैं, जिसका मूल्य 19.5 मिलियन रुपए है। उपचारित सीवेज से पोषक तत्त्वों (नाइट्रोजन, फास्फोरस) को पुनः प्राप्त करके जैविक उर्वरकों का उत्पादन किया जा सकता है, कृत्रिम विकल्पों पर निर्भरता कम की जा सकती है, मृदा स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है, तथा फसल उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है।
- कृत्रिम भूजल पुनर्भरण के लिये उपचारित सीवेज़ का उपयोग करना, घटते जलभृतों को फिर से भरने में मदद करना और जल सुरक्षा में सुधार करना।
- अपशिष्ट जल से बायोगैस निष्कर्षण जल संचालित सेवाओं को शक्ति प्रदान कर सकता है, जबकि शैवाल जैव ईंधन उत्पादन (जिसे 3G इथेनॉल उत्पादन के रूप में जाना जाता है) पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है और भारत की जलवायु नीतियों का समर्थन कर सकता है।
भारत में अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग को बढ़ावा देने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- वाटर क्रेडिट: वाटर रीयूज़ क्रेडिट उद्योगों को कार्बन ट्रेडिंग प्रणालियों के समान जल-कुशल प्रथाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
- विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार: विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल उपचार प्रणालियाँ (घर, समुदाय, संस्थान) केंद्रीकृत बड़े सीवेज़ उपचार संयंत्रों (STP) पर दबाव को कम कर सकती हैं और स्थानीय पुन: उपयोग को बढ़ा सकती हैं।
- अमृत 2.0 के अंतर्गत स्मार्ट शहरों में स्थानीय अपशिष्ट जल उपचार और पुनः उपयोग प्रणालियों को एकीकृत करना।
- उद्योग एवं विद्युत संयंत्र: STP के 50 किमी के भीतर ताप विद्युत संयंत्रों में 100% उपचारित अपशिष्ट जल के उपयोग को लागू करना (विद्युत टैरिफ नीति 2016 के अनुसार)।
- उपलब्ध उपचारित अपशिष्ट जल के बावजूद अभी भी स्वच्छ जल का उपयोग करने वाले उद्योगों पर जल निष्कर्षण शुल्क आरोपित करना।
- अपशिष्ट जल वितरण नेटवर्क: अप्रयुक्त नहर नेटवर्क को अपशिष्ट जल आपूर्ति चैनलों में परिवर्तित करना (उदाहरण के लिये, सिंचाई के लिये उपचारित अपशिष्ट जल को चैनल में लाने की उत्तर प्रदेश की पहल के समान)।
- कर एवं वित्तीय प्रोत्साहन: अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण में निजी निवेश के लिये कम ब्याज दर पर ऋण प्रदान करना तथा शून्य तरल निर्वहन (ZLD) प्रणाली (जो तरल अपशिष्ट निर्वहन को समाप्त करती है) को अपनाने के लिये प्रोत्साहन देना।
- नियंत्रण एवं विनियमन: नियमित ऑडिट के साथ केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के उत्सर्जन मानकों को लागू करना तथा वास्तविक समय जल गुणवत्ता निगरानी के लिये सभी STP में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IOT) आधारित सेंसर विकसित करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था? (2021) (a) धौलावीरा उत्तर: (a) व्याख्या:
प्रश्न 2. 'वाटर क्रेडिट' (WaterCredit) के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (वर्ष 2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
मेन्स:प्रश्न 1 जल संरक्षण और जल सुरक्षा के लिये भारत सरकार द्वारा शुरू किये गए जल शक्ति अभियान की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? (वर्ष 2020) प्रश्न 2. घटते जल-परिदृश्य को देखते हुए जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपाय सुझाएँ ताकि इसका विवेकपूर्ण उपयोग किया जा सके। (वर्ष 2020) |


भारतीय इतिहास
डॉ. बी.आर. अंबेडकर के दार्शनिक दृष्टिकोण
प्रिलिम्स के लिये:डॉ. बी.आर. अंबेडकर, मौलिक अधिकार, बंधुत्व मेन्स के लिये:अंबेडकर का सामाजिक न्याय का दर्शन, गांधी के ग्राम स्वराज की तुलना अंबेडकर के मज़बूत केंद्रीकृत लोकतंत्र के दृष्टिकोण से करना। |
स्रोत:द हिंदू
चर्चा में क्यों?
बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर (1891-1956) के सामाजिक न्याय, समानता और स्वतंत्रता के दर्शन, विशेष रूप से जाति और लैंगिक असमानता के संदर्भ में, ने नए सिरे से ध्यान आकर्षित किया है।
डॉ. बी.आर. अंबेडकर के दार्शनिक दृष्टिकोण क्या हैं?
- प्रयोजनवाद: जॉन डेवी (एक अमेरिकी दार्शनिक) से प्रभावित होकर, अंबेडकर ने वास्तविक जगत के मुद्दों, जैसे जाति व्यवस्था, सामाजिक अन्याय और आर्थिक असमानता को संबोधित करने के लिये प्रयोजनवाद (व्यावहारिक तरीके से समस्याओं का समाधान करना) को लागू किया।
- उनका दृष्टिकोण अमूर्त या सैद्धांतिक रूपरेखाओं के बजाय क्रिया-उन्मुख समाधानों पर ज़ोर देता था।
- जाति व्यवस्था की आलोचना: अंबेडकर ने हिंदू जाति व्यवस्था की कड़ी आलोचना करते हुए इसे दमनकारी और अन्यायपूर्ण बताया तथा तर्क और समानता पर आधारित समाज की वकालत की।
- उन्होंने दलितों को व्यवस्थागत उत्पीड़न का शिकार माना, जिन्हें बुनियादी अधिकारों और सम्मान से वंचित रखा गया।
- अंबेडकर ने बौद्ध धर्म को नवयान बौद्ध धर्म के रूप में पुनर्निर्मित किया, जिसमें अनुष्ठानों की अपेक्षा सामाजिक समानता और नैतिक जीवन पर ध्यान केंद्रित किया गया, जो उनके कार्य "द बुद्ध एंड हिज धम्म" में परिलक्षित होता है।
- द एनीहिलेशन ऑफ कास्ट (वर्ष 1936) में उन्होंने तर्क दिया कि जाति केवल श्रम का विभाजन नहीं है बल्कि श्रमिकों का विभाजन है जो सामाजिक और आर्थिक असमानता को कायम रखती है।
- विधिक और संवैधानिक: भारतीय संविधान के मुख्य वास्तुकार के रूप में, अंबेडकर का मानना था कि भारत की नींव स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर आधारित होनी चाहिये, जो फ्राँसीसी क्रांति (1789-1799) से प्रेरित थी।
- उन्होंने कहा कि "समानता के बिना स्वतंत्रता, कुछ लोगों के वर्चस्व को जन्म देती है, और स्वतंत्रता के बिना समानता, उत्पीड़न को जन्म देती है", और संवैधानिक नैतिकता पर ज़ोर देते हुए कहा कि विधियों को न्याय और मानवीय गरिमा के मूल्यों को प्रतिबिंबित करने के लिये विकसित किया जाना चाहिये।
- उन्होंने विधि के शासन, मौलिक अधिकारों और उत्पीड़ितों के उत्थान के लिये सकारात्मक कार्यवाही का समर्थन किया। उनके अनुसार भारतीय समाज में बंधुत्व वह तत्त्व है जो लुप्त है, क्योंकि यह जाति और पदानुक्रम से विभाजित है।
- राजनीतिक दर्शन: बी.आर. अंबेडकर ने लोकतंत्र को सिर्फ एक राजनीतिक प्रणाली के रूप में नहीं बल्कि एक जीवन पद्धति के रूप में देखा, जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर ज़ोर दिया गया।
- आर्थिक दर्शन: बी.आर. अंबेडकर ने अनियमित पूंजीवाद और चरम समाजवाद दोनों को अस्वीकार कर दिया तथा एक मध्यम मार्ग का समर्थन किया, जिसमें राज्य आर्थिक नियोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
- भूमि सुधार, श्रम अधिकार और आर्थिक नियोजन पर उनके विचार हाशिये पर पड़े समुदायों के उत्थान पर केंद्रित थे।
- आर्थिक दर्शन: बी.आर. अंबेडकर ने अनियमित पूंजीवाद और चरम समाजवाद दोनों को अस्वीकार कर दिया तथा एक मध्यम मार्ग का समर्थन किया, जिसमें राज्य आर्थिक नियोजन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता था।
- लैंगिक न्याय: बी.आर. अंबेडकर लैंगिक समानता के प्रबल समर्थक थे तथा जाति और पितृसत्ता के बीच अंतर्संबंध को मान्यता देते थे।
- उन्होंने हिंदू कोड बिल का मसौदा तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य विवाह, उत्तराधिकार और तलाक से संबंधित व्यक्तिगत कानूनों में सुधार करना था।
- उन्होंने समतावादी समाज के निर्माण में महिला शिक्षा और सशक्तीकरण के महत्त्व पर बल दिया।
- गांधीवाद पर विचार: अंबेडकर गांधीवाद के कट्टर आलोचक थे, उन्होंने इसके जाति सुधारों को अपर्याप्त बताया और कानूनी उन्मूलन का समर्थन किया। जाति, धर्म और दलित प्रतिनिधित्व में मतभेदों के बावजूद, दोनों ने सामाजिक न्याय और राष्ट्र निर्माण की मांग की।
नोट: नवयान (नया वाहन) बौद्ध धर्म, जिसकी स्थापना 1956 में बी.आर. अंबेडकर ने की थी, बौद्ध धर्म की एक पुनर्व्याख्या है, जो पारंपरिक आध्यात्मिक सिद्धांतों की तुलना में सामाजिक समानता और वर्ग संघर्ष पर ज़ोर देती है।
- यह चार आर्य सत्य, कर्म, पुनर्जन्म, निर्वाण और मठजीवन जैसे प्रमुख बौद्ध सिद्धांतों को अस्वीकार करतें हैं, तथा उन्हें निराशावादी और सामाजिक न्याय के लिये अप्रासंगिक मानते हैं।
- दलितों का नवयान में सामूहिक धर्मांतरण वर्ष 1956 में शुरू हुआ, तथा 14 अक्तूबर को धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस के रूप में मनाया गया।
गांधी और अंबेडकर के दर्शन की तुलना
पहलू |
महात्मा गांधी |
डॉ. बी.आर. अंबेडकर |
जाति प्रथा |
महात्मा गांधी वर्ण व्यवस्था में विश्वास तथा अस्पृश्यता का विरोध करते थे, और दलितों को समाज में उनकी स्थिति सुधारने के लिये उन्हें "हरिजन" (भगवान की संतान) कहकर पुकारा। |
जाति और अस्पृश्यता को अविभाज्य मानते हुए, उन्होंने जाति के पूर्ण उन्मूलन का समर्थन किया। उन्होंने " दलित" शब्द को प्राथमिकता दी, जो आत्म-सम्मान और प्रतिरोध का प्रतीक है। |
लोकतंत्र और शासन |
नैतिक अनुनय और अहिंसा के माध्यम से क्रमिक सुधार की मांग की। |
दमनकारी संरचनाओं को ध्वस्त करने के लिये कानूनी और संस्थागत सुधारों की वकालत की। |
उत्थान की विधि |
उच्च जातियों से दलितों का उत्थान करने और उन्हें हिंदू धर्म में एकीकृत करने की अपील की |
शिक्षा, आरक्षण और आत्मनिर्भरता के माध्यम से दलितों को सशक्त बनाना। |
आर्थिक दृष्टिकोण |
ग्राम अर्थव्यवस्था (ग्रामराज), आत्मनिर्भरता और सादा जीवन को प्राथमिकता दी गई। |
आर्थिक प्रगति के लिये औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण का समर्थन किया |
धर्म |
अंतर-धार्मिक सद्भाव में विश्वास के साथ गांधीजी एक हिंदू सुधारवादी रहे। |
समानता के लिये हिंदू धर्म का त्याग कर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। |
विभाजन के भय से पृथक निर्वाचिका का विरोध किया। |
दलितों के राजनीतिक अधिकारों की संरक्षा हेतु पृथक निर्वाचिका की मांग की। |
|
विरासत |
अहिंसा और नैतिक नेतृत्व के लिये जाने के साथ राष्ट्रपिता के रूप में स्मरण किया जाता है। |
भारतीय संविधान के निर्माता और “भारतीय संविधान के जनक” के रूप में संदर्भित किया जाता है। अंबेडकर दलित अधिकारों और सामाजिक न्याय के समर्थक थे। |
समकालीन विश्व में अंबेडकर के दर्शन की प्रासंगिकता क्या है?
- सामाजिक न्याय: अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिये आरक्षण नीतियाँ (सकारात्मक कार्रवाई) सामाजिक उत्थान के लिये उनके दृष्टिकोण से प्रेरित हैं।
- जाति आधारित हिंसा और भेदभाव के खिलाफ आंदोलन वर्तमान में भी सामाजिक न्याय की उनकी वकालत से प्रेरित हैं।
- संवैधानिक लोकतंत्र: बहुसंख्यकवाद, अल्पसंख्यकों पर हमले और नागरिक स्वतंत्रता का हनन जैसी बढ़ती चुनौतियाँ संवैधानिक नैतिकता के उनके आह्वान को पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक बनाती हैं।
- सशक्तीकरण के लिये शिक्षा: अंबेडकर का कथन "शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो" सशक्तीकरण के लिये शिक्षा और अन्याय के विरुद्ध प्रतिरोध पर ज़ोर देता है।
- उपांतिकीकृत छात्रों के लिये छात्रवृत्ति, कौशल विकास कार्यक्रम और सुविधा वंचितों के लिये निःशुल्क शिक्षा जैसी प्रोत्साहनकारी नीतियाँ।
- लैंगिक समानता: अंबेडकर महिला सशक्तीकरण के प्रबल समर्थक थे, उनका कार्य समान वेतन और वैयक्तिक कानून सुधार सहित महिला अधिकारों संबंधी चर्चाओं में वर्तमान में भी प्रासंगिक है।
- आर्थिक समानता और श्रम अधिकार: अंबेडकर के अनुसार सामाजिक असमानता का उन्मूलन करने की दृष्टि से आर्थिक न्याय अत्यावश्यक है।
- बढ़ती बेरोज़गारी, धन असमानता और श्रम शोषण के बीच राज्य-नेतृत्व वाले औद्योगीकरण, भूमि सुधार तथा श्रम अधिकारों के लिये उनकी वकालत प्रासंगिक बनी हुई है ।
निष्कर्ष
डॉ. बी.आर. अंबेडकर का दर्शन सामाजिक न्याय, जाति प्रथा उन्मूलन और लैंगिक समानता संबंधी समस्याओं का निवारण करने की दृष्टि से वर्तमान में भी अत्यंत प्रासंगिक है। भेदभाव, आर्थिक असमानता और राजनीतिक बहुसंख्यकवाद जैसी चुनौतियों के बावजूद, अंबेडकर के विचारों में एक समावेशी और न्यायपूर्ण समाज की अभिकल्पना है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. अंबेडकर का सामाजिक लोकतंत्र, आर्थिक न्याय और संवैधानिक नैतिकता का दर्शन समकालीन चुनौतियों के समाधान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बना हुआ है। चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस पार्टी की स्थापना डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने की थी? (2012)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. अलग-अलग दृष्टिकोण और रणनीतियों के बावजूद महात्मा गांधी तथा डॉ. बी.आर. अंबेडकर का दलितों के उत्थान का एक सामान्य लक्ष्य था। स्पष्ट कीजिये। (2015) |


शासन व्यवस्था
भारत में चुनाव सुधार
प्रिलिम्स के लिये:भारत का निर्वाचन आयोग (ECI), मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC), RPA, 1951, EVM, VVPAT, मतदाता सूची प्रबंधन प्रणाली (ERONET), स्टार प्रचारक, टोटलाइज़र मशीन, आदर्श आचार संहिता (MCC), विधि आयोग, ARC मेन्स के लिये:भारत की निर्वाचन प्रक्रिया से संबंधित चिंताएँ और इनका समाधान करने के उपाय |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत निर्वाचन आयोग (ECI) ने मतदाता सूची में हेराफेरी और डुप्लिकेट मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) संख्या के आरोपों के बीच निर्वाचन प्रक्रिया में सुधार करने पर चर्चा करने हेतु राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया है।
निर्वाचन के विनियमन संबंधी विधिक प्रावधान क्या हैं?
- अनुच्छेद 324: इसके अंतर्गत निर्वाचन आयोग को मतदाता सूची तैयार करने तथा संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के संचालन का पर्यवेक्षण, निर्देशन और नियंत्रण करने का अधिकार प्राप्त है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950: इसमें मुख्य निर्वाचन अधिकारी, ज़िला निर्वाचन अधिकारी और निर्वाचक रजिस्ट्रीकरण अधिकारी जैसे निर्वाचन अधिकारियों के साथ-साथ संसदीय, विधानसभा और परिषद निर्वाचन क्षेत्रों के लिये मतदाता सूची के प्रावधान शामिल हैं।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA): यह अधिनियम निर्वाचन पूर्व प्रक्रिया, मुख्य रूप से मतदाता सूची की तैयारी और अनुरक्षण से संबंधित है।
- निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत मतदाता सूची से संबंधित प्रावधानों के कार्यान्वयन के लिये विस्तृत प्रक्रियाएँ निर्धारित की गई हैं।
- उदाहरणार्थ, मतदाता सूची में नाम शामिल किये जाने, सुधार करने या हटाने संबंधी दिशा-निर्देश।
- परिसीमन अधिनियम, 2002: इसे नवीनतम जनगणना आँकड़ों के आधार पर संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं को पुनः निर्धारित करने हेतु अधिनियमित किया गया था।
नोट: मतदान पद्धतियों का क्रमिक विकास:
- 1952 एवं 1957: प्रत्येक उम्मीदवार के लिये अलग मतपेटी।
- 1962: उम्मीदवारों के नाम और प्रतीक के साथ मतपत्रों की शुरूआत।
- 2004: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की शुरूआत।
- 2019: EVM सहित वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर्चियों का अनिवार्य उपयोग।
चुनाव प्रक्रिया संबंधी प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?
मतदान और मतगणना संबंधी मुद्दे:
- EVM में हेरफेर किये जाने की चिंता: कई लोगों ने EVM में हेरफेर किये जाने की चिंता का हवाला देते हुए पुनः पेपर बैलेट का उपयोग किये जाने की मांग की।
- पूर्ण VVPAT सत्यापन: EVM के आलोचक पूर्ण VVPAT-EVM सुमेलन की मांग कर रहे हैं, जो वर्तमान में प्रति विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र/खंड में पाँच मशीनों के लिये किया जाता है।
- इसके स्थान पर, सर्वोच्च न्यायालय ने इंजीनियरों को हेरफेर का संदेह होने की दशा में 5% EVM में माइक्रोकंट्रोलर की बर्न मेमोरी की जाँच किये जाने को निर्देश दिया।
- कथित मतदाता सूची में हेराफेरी: विपक्षी दलों ने दावा किया कि महाराष्ट्र और दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले बड़ी संख्या में फर्जी मतदाताओं को जोड़ा गया।
- निर्वाचन आयोग ने दोहराव का कारण ERONET (इलेक्टोरल रोल मैनेजमेंट सिस्टम) का अंगीकरण करने से पूर्ण विकेंद्रीकृत EPIC आवंटन को बताया।
- ERONET देश भर में कुशल मतदाता सूची प्रबंधन के लिये ECI द्वारा एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म है।
- डुप्लिकेट EPIC नंबर: पश्चिम बंगाल, गुजरात, हरियाणा और पंजाब जैसे राज्यों में कुछ मतदाताओं के EPIC नंबर कथित तौर पर एक जैसे हैं।
- चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि मतदाता अपने निर्धारित मतदान केंद्र पर ही मतदान कर सकते हैं, चाहे उनका EPIC नंबर कुछ भी हो।
अभियान प्रक्रिया संबंधी मुद्दे:
- आदर्श आचार संहिता (MCC) का उल्लंघन: स्टार प्रचारक अक्सर अनुचित भाषा का प्रयोग करते हैं, जाति/सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काते हैं तथा असत्यापित आरोप लगाते हैं।
- चुनाव व्यय: जबकि पार्टी का खर्च अप्रतिबंधित है, उम्मीदवार अनुमत राशि से अधिक खर्च करते हैं।
- राजनीतिक दल वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान लगभग 1,00,000 करोड़ रुपए खर्च हुए।
- राजनीति का अपराधीकरण: वर्ष 2024 में, निर्वाचित सांसदों में से 46% (251) पर आपराधिक मामले दर्ज है, जिनमें से 31% (170) पर बलात्कार, हत्या और अपहरण जैसे गंभीर आरोप है।
किन सुधारों की आवश्यकता है?
मतदान और मतगणना सुधार
- VVPAT: राज्यों को क्षेत्रों में विभाजित किया जाना चाहिये, तथा किसी भी विसंगति के लिये प्रभावित क्षेत्र में पूर्ण मैनुअल VVPAT गणना शुरू की जानी चाहिये।
- दूसरे या तीसरे स्थान पर आने वाले उम्मीदवारों को संदिग्ध छेड़छाड़ के मामले में 5% EVM सत्यापन का अनुरोध करना चाहिये।
- टोटलाइजर मशीनें: मतदाता की गोपनीयता बनाए रखने के लिये, ECI के वर्ष 2016 के प्रस्ताव में उम्मीदवार-वार परिणाम घोषित करने से पहले 14 EVM के वोटों को संयोजित करने के लिये 'टोटलाइजर' मशीनों का उपयोग करने की सिफारिश की गई है।
- फर्जी मतदाताओं से संबंधित चिंताएँ: फर्जी मतदाताओं और डुप्लिकेट EPIC कार्ड को रोकने के लिये, चर्चा और गोपनीयता आश्वासन के बाद आधार-EPIC लिंकिंग पर विचार किया जा सकता है।
- इस बीच, चुनाव आयोग को डुप्लीकेट मतदाता पहचान-पत्रों को समाप्त तथा विशिष्ट EPIC संख्या सुनिश्चित करनी चाहिये।
अभियान और चुनाव सुधार:
- आदर्श आचार संहिता का अधिक सशक्त प्रवर्तन: चुनाव आयोग को आदर्श आचार संहिता के गंभीर उल्लंघन के लिये किसी नेता का 'स्टार प्रचारक' का दर्जा रद्द करने तथा अभियान व्यय में छूट समाप्त करने का अधिकार होना चाहिये।
- प्रतीक आदेश, 1968 के तहत, चुनाव आयोग आदर्श आचार संहिता या उसके निर्देशों का पालन न करने पर किसी पार्टी की मान्यता निलंबित या वापस भी ले सकता है।
- चुनाव व्यय का विनियमन: जन प्रतिनिधि कानून, 1951 में संशोधन किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी राजनीतिक दल द्वारा अपने उम्मीदवार को दिया जाने वाला धन निर्धारित चुनाव व्यय सीमा के अंतर्गत आता है।
- राजनीतिक दलों के व्यय की भी एक सीमा होनी चाहिये।
- राजनीति का अपराधीकरण: पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन बनाम भारत संघ केस, 2018 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को सख्ती से लागू करना , जिसके तहत उम्मीदवारों और पार्टियों को चुनाव से पहले व्यापक रूप से प्रसारित मीडिया में तीन बार आपराधिक रिकॉर्ड घोषित करना आवश्यक है।
नोट: उम्मीदवारों के लिये चुनाव व्यय की सीमा बड़े राज्यों में लोकसभा सीटों के लिये 95 लाख रुपए और विधानसभा सीटों के लिये 40 लाख रुपए तथा छोटे राज्यों में क्रमशः 75 लाख रुपए और 28 लाख रुपए निर्धारित की गई है।
- वर्तमान में, चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों पर कोई व्यय सीमा नहीं लगाई जाती है, जिससे उन्हें अप्रतिबंधित व्यय की अनुमति मिलती है।
चुनाव सुधार पर समिति/आयोग की सिफारिशें क्या हैं?
- वोहरा समिति (वर्ष 1993): इसने सख्त पृष्ठभूमि जाँच और अपराधी-राजनेता-नौकरशाह संबंधों के बारे में गुप्त जानकारी एकत्र करने, उसका विश्लेषण करने और उस पर कार्यवाही करने के लिये एक नोडल एजेंसी के गठन की सिफारिश की।
- काले धन और बाहुबल पर अंकुश लगाने के लिये चुनावी कानूनों को मज़बूत करना।
- निर्वाचन आयोग: निर्वाचन आयोग ने सिफारिश की है कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसे अपराध के लिये आरोप तय किये गए हैं, जिसके लिये पाँच वर्ष से अधिक की सजा का प्रावधान है, उन्हें भी चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
- विधि आयोग: विधि आयोग की 244 वीं रिपोर्ट (वर्ष 2014) में सिफारिश की गई:
- आरोप तय होने के बाद राजनेताओं को अयोग्य घोषित करना।
- 1951 के लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत मिथ्यापूर्ण शपथ-पत्र देने के लिये न्यूनतम सजा को बढ़ाकर दो वर्ष करना, तथा दोषसिद्धि के आधार पर अपराधी को अयोग्य घोषित करना।
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC): द्वितीय ARC की शासन में नैतिकता संबंधी रिपोर्ट ने चुनावों में अवैध धन पर अंकुश लगाने के लिये आंशिक राज्य वित्त पोषण का समर्थन किया, जैसा कि चुनावों के राज्य वित्त पोषण पर इंद्रजीत गुप्ता समिति (वर्ष 1998) द्वारा पहले ही सिफारिश की जा चुकी है।
आगे की राह
- ECI को सुदृढ़ बनाना: उम्मीदवारों के आपराधिक रिकॉर्ड और वित्तीय प्रकटन को सत्यापित करने के लिये ECI को अधिक विनियामक शक्तियाँ प्रदान करना।
- राजनीति में अपराधीकरण को संबोधित करना: भ्रष्टाचार, आतंकवाद और यौन अपराधों जैसे गंभीर अपराधों के लिये अयोग्यता को छह वर्ष से आगे बढ़ाना तथा अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिये MP/MLA के मुकदमों में तेज़ी लाना।
- चुनावी पारदर्शिता: राजनीतिक वित्तपोषण और व्यय का वास्तविक समय पर प्रकटन अनिवार्य करना तथा भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों को चुनावी कदाचार की जाँच करने का अधिकार देना।
- लोकतांत्रिक अखंडता सुनिश्चित करने के लिये राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के अंतर्गत लाना।
- मतदाता जागरूकता: चुनावों की निगरानी में मीडिया और नागरिक समाज को समर्थन प्रदान करना तथा सार्वजनिक जीवन में जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये राजनीतिक नेताओं के लिये नैतिक प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत की चुनावी प्रक्रिया में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और चुनावी पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के लिये सुधारों का सुझाव दीजिये।। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न .1 निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर:(b) मेन्सप्रश्न 1. लोक प्रतिनिधित्त्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022) |

