विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
भारत का चंद्रयान-3 और रूस का लूना 25 मिशन
प्रिलिम्स के लिये:चंद्रयान-3, लूना 25, ग्लोनास नेविगेशन सिस्टम, आर्यभट्ट मिशन, गगनयान, सोयुज़ रॉकेट, USSR का इंटर-काॅसमाॅस कार्यक्रम मेन्स के लिये:लूना 25 और चंद्रयान 3 मिशन में अंतर |
चर्चा में क्यों?
रूस का लूना 25 मिशन, जिसे 10 अगस्त, 2023 को सोयुज़ रॉकेट पर लॉन्च किया गया, का लक्ष्य भारत के चंद्रयान-3 से कुछ दिन पहले चंद्र दक्षिणी ध्रुव (Lunar South Pole) के करीब सॉफ्ट-लैंडिंग करना है।
- रूसी अंतरिक्ष एजेंसी राॅसकाॅसमाॅस ने घोषणा की है कि लूना 25 की लैंडिंग से चंद्रयान-3 पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि दोनों के लैंडिंग क्षेत्र अलग-अलग हैं।
चंद्रयान-3 से पहले लूना 25 की चंद्रमा पर पहुँच:
- प्रत्यक्ष प्रक्षेप पथ का लाभ: चंद्रयान-3 की तुलना में लगभग एक महीने बाद लॉन्च होने के बावजूद लूना 25 अपने अधिक प्रत्यक्ष प्रक्षेप पथ (Direct Trajectory) के कारण चंद्रमा पर पहले पहुँचने में सक्षम है।
- पेलोड और ईंधन भंडारण: लूना 25 का 1,750 किलोग्राम का लिफ्ट-ऑफ द्रव्यमान चंद्रयान-3 के 3,900 किलोग्राम की तुलना में काफी हल्का है, जो तेज़ गति से यात्रा करने हेतु महत्त्वपूर्ण है।
- चंद्रयान-3 का घुमावदार मार्ग: चंद्रयान-3 ने कम ईंधन भंडार की भरपाई के लिये चंद्रमा की ओर उड़ान भरने से पहले वेग उत्पन्न करने के लिये एक दीर्घ मार्ग अपनाया, जिसमें वेग उत्पन्न करने हेतु युक्तियाँ शामिल थीं।
- इससे चंद्रमा की कक्षा (Lunar Orbit) तक इसकी यात्रा में 22 दिनों की बढ़ोतरी हुई।
- लूनर डाउन टाइमिंग (Lunar Dawn Timing): अपने लैंडिंग स्थल पर चंद्रोदय से पहले लैंड करने के कारण लूना 25 के पेलोड को पूरे चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर) के दौरान सौर पैनल के माध्यम से पूर्ण ऊर्जा प्राप्त होगी।
नोट: इतिहास में केवल तीन देश ही चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने में सफल रहे हैं: संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ और चीन।
लूना 25 और चंद्रयान-3 के मध्य अन्य अंतर:
- परिचय: लूना 25, 47 वर्षों के बाद रूस की चंद्र अन्वेषण में वापसी का प्रतीक है, जिसका लक्ष्य अंतरिक्ष अन्वेषण में अपनी प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त करना है।
- चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्र मिशन और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का दूसरा प्रयास है।
- पेलोड अंतर: लूना 25 हल्का है और इसमें रोवर का अभाव है, जो मिट्टी की संरचना, धूल के कणों का अध्ययन करने और सतह के पानी का पता लगाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
- चंद्रयान-3 में एक रोवर है जो 500 मीटर तक चलने में सक्षम है, इसका लक्ष्य चंद्रमा पर मिट्टी का अध्ययन करना है और इसमें चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास छाया वाले गड्ढों में पानी-बर्फ का पता लगाने के लिये उपकरण हैं।
- जीवनकाल: लूना 25 को एक साल के मिशन के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो हीटिंग तंत्र और एक गैर-सौर ऊर्जा स्रोत से सुसज्जित है।
- इसके विपरीत चंद्र रात के दौरान हीटिंग की कमी के कारण चंद्रयान-3 को एक चंद्र दिवस के लिये बनाया गया है।
- मिशन का उद्देश्य: रूसी लैंडर के पास मुख्य रूप से आठ पेलोड हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य मिट्टी की संरचना, ध्रुवीय बाह्यमंडल में धूल के कणों का अध्ययन करना और सबसे महत्त्वपूर्ण रूप से सतह पर पानी का पता लगाना है।
- भारतीय मिशन में चंद्रमा पर मिट्टी के साथ-साथ पानी-बर्फ का अध्ययन करने के लिये वैज्ञानिक उपकरण भी हैं। दक्षिणी ध्रुव के पास का स्थान इसलिये चुना गया क्योंकि वहाँ स्थायी छाया में रहने वाले गड्ढे उपस्थित होते हैं, जिससे पानी-बर्फ मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
- यह लैंडर RAMBHA, ChaSTE, ILSA और लेज़र रेट्रोरेफ्लेक्टर ऐरे की सहायता से चंद्रमा की सतह पर प्रयोग/अध्ययन करेगा।
- रोवर दो वैज्ञानिक तकनीकों से लैस है:
- लेज़र एंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप (LIBS)।
- अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर (APXS)।
- भारतीय मिशन में चंद्रमा पर मिट्टी के साथ-साथ पानी-बर्फ का अध्ययन करने के लिये वैज्ञानिक उपकरण भी हैं। दक्षिणी ध्रुव के पास का स्थान इसलिये चुना गया क्योंकि वहाँ स्थायी छाया में रहने वाले गड्ढे उपस्थित होते हैं, जिससे पानी-बर्फ मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
भारत और रूस के बीच अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग की स्थिति:
- भारत के पहले उपग्रह, आर्यभट्ट को वर्ष 1975 में सोवियत संघ द्वारा लॉन्च/प्रक्षेपित किया गया था।
- USSR के इंटर-काॅसमाॅस कार्यक्रम के हिस्से के रूप में वर्ष 1984 में सैल्यूट 7 अंतरिक्ष स्टेशन के लिये सोयुज़ रॉकेट ने उड़ान भरी थी। राकेश शर्मा इस राॅकेट से अंतरिक्ष में जाने वाले एकलौते भारतीय नागरिक हैं।
- वर्ष 2004 में दोनों देशों ने अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने के लिये एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये। इसमें ग्लोनास नेविगेशन प्रणाली का विकास और भारतीय रॉकेटों द्वारा रूसी ग्लोनास उपग्रहों का प्रक्षेपण शामिल था।
- शुरू में ऐसा माना जा रहा था कि चंद्रयान-2 मिशन को भारत और रूस के संयुक्त सहयोग से पूरा किया जाएगा।
- हालाँकि रूस द्वारा चंद्रयान-2 के लिये लैंडर-रोवर को डिज़ाइन करने से मना किये जाने पर भारत को इसे स्वतंत्र रूप से विकसित करना पड़ा।
- इसके अतिरिक्त भारत के पहले मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन: गगनयान का हिस्सा बनने वाले चार अंतरिक्ष यात्रियों को रूसी अनुसंधान केंद्रों में प्रशिक्षित किया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये। इस प्रौद्योगिकी का प्रयोग भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायक हुआ है? (2016) |
स्रोत: द हिंदू
कृषि
यूरिया गोल्ड
प्रिलिम्स के लिये:यूरिया गोल्ड, नीम लेपित यूरिया, तरल नैनो यूरिया, फलीदार फसलें, नाइट्रोजन-फास्फोरस-पोटैशियम (NPK), नाइट्रोजन उपयोग दक्षता मेन्स के लिये:यूरिया गोल्ड की विशेषताएँ, भारत में यूरिया की खपत की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा आधिकारिक तौर पर 'यूरिया गोल्ड' उर्वरक' लॉन्च किया गया। इसे सार्वजनिक क्षेत्र में भारत की अग्रणी उर्वरक और रसायन विनिर्माण कंपनी राष्ट्रीय केमिकल्स एंड फर्टिलाइज़र्स लिमिटेड (RCF) द्वारा विकसित किया गया है।
यूरिया गोल्ड:
- परिचय: यूरिया गोल्ड का निर्माण यूरिया को सल्फर के साथ मिलाकर 37% नाइट्रोजन (N) और 17% सल्फर (S) के साथ एक मिश्रित उर्वरक बनाकर किया जाता है।
- यह पोषक तत्त्व मिश्रण दो प्राथमिक उद्देश्यों को पूरा करता है: भारतीय मृदा में सल्फर की आवश्यकताओं को पूरा करना और नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) में वृद्धि करना।
नोट: सामान्य यूरिया में एकल पौधे के पोषक तत्त्व का 46% नाइट्रोजन होता है।
- विशेषताएँ:
- मृदा की कमियों को संबोधित करना: भारत की मृदा में प्राय: सल्फर की कमी होती है, जो एक आवश्यक तत्त्व है, यह विशेष रूप से तिलहन और दालों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- उर्वरक संरचना में सल्फर को शामिल करके 'यूरिया गोल्ड' का लक्ष्य एक व्यापक पोषक तत्त्व की आपूर्ति प्रदान करना है, ताकि सल्फर पर निर्भर फसलों की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके।
- नाइट्रोजन दक्षता बढ़ाना: 'यूरिया गोल्ड' का एक प्रमुख नवाचार इसकी नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) में सुधार करने की क्षमता है।
- यूरिया पर सल्फर कोटिंग, नाइट्रोजन को धीरे-धीरे जारी करने में सक्षम बनाती है, जिससे लंबे समय तक पोषक तत्त्व उपलब्ध रहते हैं।
- परिणामस्वरूप पौधे अपना हरा रंग अधिक समय तक बनाए रखते हैं। इस घटना के कारण किसान अपने उपयोग की आवृत्ति को कम कर सकते हैं।
- जब किसान देखते हैं कि पत्तियाँ पीली पड़ रही हैं तो वे प्राय: यूरिया का छिड़काव करते हैं।
- संभावित उपज में वृद्धि: 'यूरिया गोल्ड' में बेहतर पोषक तत्त्वों के उपयोग के माध्यम से फसल की पैदावार बढ़ाने की क्षमता है।
- पोषक तत्त्वों के क्रमिक तौर पर निर्मुक्त होने से बर्बादी को कम करने और पौधों में पोषक तत्त्वों के अवशोषण को बढ़ाने में मदद मिलती है, जो अंततः उत्पादकता में वृद्धि करता है।
- मृदा की कमियों को संबोधित करना: भारत की मृदा में प्राय: सल्फर की कमी होती है, जो एक आवश्यक तत्त्व है, यह विशेष रूप से तिलहन और दालों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
भारत में यूरिया की खपत की स्थिति:
- यूरिया का परिचय:
- यूरिया एक सफेद क्रिस्टलीय यौगिक है जिसका उपयोग आमतौर पर कृषि में सिंथेटिक उर्वरक के रूप में किया जाता है।
- जब मिट्टी या फसलों पर इसका छिड़काव किया जाता है, तो यूरिया एंजाइमों द्वारा अमोनिया और कार्बन डाइऑक्साइड में विघटित हो जाता है।
- फिर अमोनिया अमोनियम आयनों में परिवर्तित हो जाता है, जिसे पौधों की जड़ों द्वारा ग्रहण किया जा सकता है जो पौधों की वृद्धि तथा विकास के लिये उपयोगी है।
- भारत में उपभोग की स्थिति:
- यूरिया भारत में व्यापक रूप से प्रयोग किया जाने वाला उर्वरक है, जिसकी खपत/बिक्री वर्ष 2009-10 और 2022-23 के बीच 26.7 मिलियन टन (mt) से बढ़कर 35.7 मिलियन टन (mt) हो गई है।
- यूरिया गोल्ड के समान उपाय:
- नीम कोटेड यूरिया: यह यूरिया का एक संशोधित रूप है जिसे नीम के तेल से लेपित किया जाता है।
- यह नाइट्रोजन के निक्षालन (Leaching) और वाष्पीकरण हानि को कम करता है, इसमें कीटनाशक और नेमाटीसाइडल (Nematicidal) गुण होते हैं तथा मिट्टी की बनावट और जल धारण क्षमता में सुधार होता है।
- तरल नैनो यूरिया: यह एक नैनो-प्रौद्योगिकी-आधारित उर्वरक है जिसे पत्तियों पर छिड़का जाता है तथा पौधों की कोशिकाओं द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है।
- यह फसल की पोषण गुणवत्ता तथा उत्पादकता को बढ़ाता है, उर्वरक की खपत को कम करता है, नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में सुधार करता है और इनपुट लागत को कम करता है।
- नीम कोटेड यूरिया: यह यूरिया का एक संशोधित रूप है जिसे नीम के तेल से लेपित किया जाता है।
- चुनौतियाँ:
- यूरिया आयात और फीडस्टॉक निर्भरता: वर्ष 2022-23 में कुल 35.7 मिलियन टन यूरिया की बिक्री हुई, जिसमें से 7.6 मिलियन मीट्रिक टन यूरिया का आयात किया गया था, आयात पर इस प्रकार की निर्भरता चिंता का विषय है।
- यहाँ तक कि घरेलू स्तर पर यूरिया उत्पादन भी आयातित प्राकृतिक गैस (उत्पादन के लिये आवश्यक फीडस्टॉक) पर बहुत अधिक निर्भर करता है।
- नाइट्रोजन उपयोग दक्षता और हानि: वायुमंडल में अमोनिया गैस के निष्काषित हो जाने और रूपांतरण के बाद नाइट्रेट का भूमिगत रूप से रिसाव जैसे अन्य विभिन्न कारकों के कारण लगभग 65% नाइट्रोजन नष्ट हो जाता है।
- नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में गिरावट के कारण ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिसमें किसानों को अच्छी फसल उपज प्राप्त करने के लिये अधिक उर्वरक का इस्तेमाल करना पड़ता है।
- सब्सिडी का बोझ: किसानों के लिये सस्ती कीमतें सुनिश्चित करने के लिये भारत सरकार द्वारा यूरिया पर भारी सब्सिडी दी जाती है।
- हालाँकि इस सब्सिडी के कारण यूरिया की खपत में काफी वृद्धि, अति उपयोग और अक्षमता के मुद्दे सामने आए हैं।
- कम लागत होने के कारण किसान अक्सर आवश्यकता से अधिक यूरिया का उपयोग करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पोषक तत्त्वों के असंतुलन और पर्यावरणीय निम्नता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- यूरिया आयात और फीडस्टॉक निर्भरता: वर्ष 2022-23 में कुल 35.7 मिलियन टन यूरिया की बिक्री हुई, जिसमें से 7.6 मिलियन मीट्रिक टन यूरिया का आयात किया गया था, आयात पर इस प्रकार की निर्भरता चिंता का विषय है।
आगे की राह
- परिशुद्ध कृषि: वेरिएबल रेट एप्लीकेशन जैसे परिशुद्ध कृषि तकनीकों को लागू करने से विशिष्ट फसल और मृदा की ज़रूरत के आधार पर उर्वरक प्रयोग दर में बदलाव करके यूरिया के उपयोग को अनुकूलित करने में मदद मिल सकती है।
- यह अति प्रयोग को रोकने और पोषक तत्त्वों की बर्बादी को कम करता है।
- पोषक तत्त्व प्रबंधन योजना: फसलों की नाइट्रोजन-फास्फोरस-पोटैशियम (NPK) की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए किसानों को व्यापक पोषक तत्त्व प्रबंधन योजनाओं को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने से संतुलित उर्वरक अनुप्रयोग सुनिश्चित किया जा सकता है।
- इससे यूरिया पर अत्यधिक निर्भरता कम होती है और यह इष्टतम संतुलन (N:P:K= 4:2:1) के साथ अन्य पोषक तत्त्वों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देता है।
- फसल चक्र और विविधीकरण: विविध फसल पैटर्न और फसल चक्र को बढ़ावा देने से यूरिया की अत्यधिक मांग को कम किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये फलीदार फसलें वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर सकती हैं, जिससे नाइट्रोजन युक्त उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है।
- सब्सिडी में सुधार: संतुलित उर्वरक प्रथाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करने के लिये उर्वरक सब्सिडी प्रणाली को धीरे-धीरे तर्कसंगत बनाने तथा इसमें सुधार करने की आवश्यकता है।
- इसमें वैकल्पिक पोषक स्रोतों के लिये सब्सिडी प्रदान करना, किसानों को यूरिया की खपत कम करने के लिये प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
- फोर्टिफिकेशन: यूरिया, DAP और अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के साथ उपयोगी उर्वरकों का फोर्टिफिकेशन, फसल की पैदावार बढ़ाने तथा आयातित पोषक तत्त्वों की उपयोग दक्षता को अधिकतम करने का तरीका है।
- चूँकि भारत में प्राकृतिक गैस, रॉक फॉस्फेट, पोटाश तथा सल्फर के भंडार सीमित हैं, इसलिये इन उर्वरकों को द्वितीयक पोषक तत्त्वों (कैल्शियम तथा मैग्नीशियम) और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों (ज़स्ता, बोरान, मैंगनीज, मोलिब्डेनम, लोहा, ताँबा एवं निकल) के साथ लेपित किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत सरकार कृषि में 'नीम-आलेपित यूरिया (Neem-coated Urea) के उपयोग को क्यो प्रोत्साहित करती है? (2016) (a) मृदा में नीम तेल के निर्मुक्त होने से मृदा सूक्ष्मजीवों द्वारा नाइट्रोजन यौगिकीकरण बढ़ता है। उत्तर: (b) |
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
राज्य विश्वविद्यालय बनेंगे कौशल-आधारित शिक्षा के केंद्र
प्रिलिम्स के लिये:राज्य विश्वविद्यालय कौशल-आधारित शिक्षा, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM), IoEs (उत्कृष्टता संस्थान) मेन्स के लिये:राज्य विश्वविद्यालय बनेंगे कौशल-आधारित शिक्षा के केंद्र |
चर्चा में क्यों?
भारत में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 की कौशल-आधारित शिक्षा और व्यावहारिक शिक्षा पर ज़ोर देने के लिये सराहना की गई है।
- हालाँकि बड़ी संख्या में विज्ञान स्नातकों के बावजूद प्रदान की गई शिक्षा और उद्योग की आवश्यकताओं के बीच अंतर है।
STEM के लिये भारत में उच्च शिक्षा का परिदृश्य:
- 1,113 भारतीय विश्वविद्यालयों में से 422 सार्वजनिक हैं तथा राज्य सरकारों द्वारा प्रबंधित हैं, प्रत्येक में कई राज्य-संबद्ध कॉलेज हैं जो नामांकन के एक बड़े हिस्से को पूरा करते हैं।
- ये विश्वविद्यालय स्नातकों को वैज्ञानिक कार्यबल के रूप में तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science, Technology, Engineering, and Mathematics- STEM) स्नातकों के मामले में BSc पाठ्यक्रमों में छात्रों का कुल नामांकन 50 लाख के करीब है, अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021-2022 के अनुसार, प्रत्येक वर्ष 11 लाख से अधिक छात्र अपनी स्नातक की डिग्री पूरी करते हैं।
- हालाँकि मास्टर स्तर पर विज्ञान स्नातकों की संख्या घटकर 2.9 लाख (BSc स्नातकों का 25%) रह जाती है तथा डॉक्टरेट स्तर पर इससे और अधिक कम, हर साल विज्ञान में केवल 6,000 को PhD प्रदान की जाती है।
- PhD या चयनित पात्रता परीक्षणों के साथ मास्टर डिग्री, विश्वविद्यालयों और राष्ट्रीय संस्थानों में प्रवेश स्तर के वैज्ञानिक अनुसंधान या शिक्षण पदों के लिये पहली आवश्यकता है।
- इसे देखते हुए बड़ी संख्या में (लगभग 8 लाख प्रतिवर्ष) स्नातक (भारत में विज्ञान स्नातक समकक्ष), कार्यबल में तुरंत या निकट भविष्य में प्रवेश करने वाले मानव संसाधनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- भारत में स्नातक स्तर पर अधिकांश विज्ञान स्नातक राज्य-संबद्ध कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से अपनी प्राथमिक डिग्री अर्जित करते हैं।
उच्च शिक्षा के संबंध में राज्य संबद्ध विश्वविद्यालयों के मुद्दे:
- पुराना पाठ्यक्रम: कई राज्य संबद्ध संस्थान ऐसे पाठ्यक्रम और अध्ययन सामग्री प्रदान करते हैं जो पुरानी है और समकालीन प्रौद्योगिकियों एवं प्रगति के अनुरूप नहीं है। इससे प्रासंगिक तथा अद्यतन ज्ञान और कौशल प्राप्त करने की छात्रों की क्षमता बाधित होती है।
- व्यावहारिक प्रशिक्षण का अभाव: विज्ञान पाठ्यक्रमों में अक्सर व्यावहारिक प्रशिक्षण के पर्याप्त अवसरों का अभाव होता है और प्रयोगशाला सुविधाएँ अक्सर अपर्याप्त या उनका खराब रखरखाव होता है। यह छात्रों के व्यावहारिक अनुभव और कौशल विकास को सीमित करता है, जो कि वैज्ञानिक प्रगति के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- सीमित अनुसंधान: राज्य-संबद्ध संस्थानों को संसाधन की कमी का सामना करना पड़ता है और इनमें अधिकांशतः प्रतिष्ठित संस्थानों एवं निजी विश्वविद्यालयों जैसे अनुसंधान-गहन वातावरण नहीं होता है। यह छात्रों तथा संबद्ध संकाय के लिये अनुसंधान के अवसरों एवं वैज्ञानिक प्रगति में योगदान करने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है।
- अस्तित्व संबंधी संकट: उच्च विज्ञान शिक्षा में इन संस्थानों की विशिष्ट भूमिका का अभाव भी चिंता का अन्य विषय है। IoE (उत्कृष्टता संस्थान) अथवा निजी विश्वविद्यालयों के विपरीत राज्य संबद्ध महाविद्यालय में छात्रों की संख्या काफी अधिक होती है, लेकिन अनुसंधान संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये संसाधनों की कमी भी होती है। अनुसंधान और कौशल उन्नयन की आवश्यकता के साथ शिक्षण भूमिका को संतुलित करना एक चुनौती है।
- रोज़गार और कौशल में अंतर: विज्ञान स्नातकों के एक बड़े समूह के बावजूद कई उद्योगों की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल वाले प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी है। यह राज्य संबद्ध संस्थानों द्वारा प्रदान किये गए कौशल और रोज़गार बाज़ार की मांगों के बीच सामंजस्य की कमी को इंगित करता है।
राज्य विश्वविद्यालयों को कौशल-आधारित शिक्षा केंद्र में बदलने की प्रक्रिया:
- पाठ्यक्रम को उद्योग की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करना:
- प्रोग्रामिंग, डेटा विश्लेषण, इंस्ट्रूमेंटेशन, गुणवत्ता आश्वासन और बेंचमार्किंग सहित उद्योग-प्रासंगिक कौशल एवं प्रमाणन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये B.Sc तथा एकीकृत पाठ्यक्रम में सुधार किया जा सकता है।
- उद्योगों के साथ साझेदारी:
- वास्तविकता का अनुभव प्रदान करने और व्यावहारिक प्रशिक्षण को बढ़ाने के लिये सेमिनार, विशेषज्ञ से बातचीत, प्रशिक्षुता, रोज़गार मेलों तथा वित्तपोषण सहायता के माध्यम से विभिन्न उद्योगों के साथ दीर्घकालिक साझेदारी स्थापित करना।
- नौकरी हेतु आवेदन कौशल:
- यह सुनिश्चित करना कि स्नातक नौकरी के लिये तैयार हैं, पदों के लिये आवेदन करने, साक्षात्कार तकनीक एवं वेतन चर्चा सहित नौकरी हेतु आवेदन कौशल सिखाकर पाठ्यक्रम-प्रशिक्षण बढ़ाना।
- अंतर्राष्ट्रीय मॉडल अपनाना:
- अमेरिकी तथा यूरोपीय सामुदायिक कॉलेज एवं तकनीकी विश्वविद्यालय मॉडल से प्रेरणा लेना जो क्षेत्रीय शिक्षा और कार्यबल की तैयारी को प्राथमिकता देते हैं।
- नीति के एकीकरण का उद्देश्य:
- राज्य-संबद्ध संस्थान राष्ट्रीय शिक्षा नीति एवं प्रस्तावित राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन के साथ तालमेल बिठाकर कुशल वैज्ञानिक कर्मियों की भारत की आवश्यकता के साथ स्नातक स्तर की रोजगार संबंधी चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं।
निष्कर्ष
- राज्य-संबद्ध विश्वविद्यालयों को कौशल-आधारित विज्ञान शिक्षा केंद्रों में बदलने से विज्ञान शिक्षा एवं उद्योग की आवश्यकताओं के बीच अंतर को कम किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि स्नातक, कार्यबल के लिये बेहतर ढंग से तैयार हों। यह NEP के व्यापक लक्ष्यों को संरेखित करने के साथ देश की वैज्ञानिक क्षमताओं को बढ़ाता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने देश में शिक्षा प्रणाली के कामकाज़ में किस प्रकार योगदान दिया है? अपने उत्तर को विस्तार से बताइये। (2020) प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की चर्चा कीजिये तथा भारत में उन्हें प्राप्त करने के उपायों को विस्तार से बताइये।(2021) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय राजव्यवस्था
ध्वस्तीकरण अभियान और कानून का शासन
प्रिलिम्स के लिये:ध्वस्तीकरण अभियान, मौलिक अधिकार, कानून का शासन, अनुच्छेद 226, मेनका गांधी मामला (1978), मैग्ना कार्टा का अनुच्छेद 39, अनुच्छेद 21 मेन्स के लिये:ध्वस्तीकरण अभियान और कानून का शासन, ध्वस्तीकरण अभियान के खिलाफ कानून, निर्णय और मामले |
चर्चा में क्यों?
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा में ध्वस्तीकरण अभियान (Demolition Drive) में स्वत: संज्ञान लेते हुए पूछा कि क्या यह जातीय संहार (Ethnic Cleansing) का अभ्यास है और क्या यह मूल अधिकारों (Fundamental Rights) के संभावित उल्लंघन और कानून के शासन के क्षरण पर प्रकाश डालता है।
- हाल ही में हरियाणा में आवासों तथा व्यापारिक प्रतिष्ठानों के ध्वस्तीकरण ने गंभीर संवैधानिक और कानूनी सवाल खड़े कर दिये हैं।
जातीय संहार:
- "जातीय संहार" शब्द की उत्पत्ति 1992 में प्रो. चेरिफ बासिओनी की अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के आयोग द्वारा की गई थी।
- यह एक जातीय या धार्मिक समूह द्वारा हिंसक और आतंक-प्रेरक तरीकों का उपयोग करके विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों से दूसरे समूह को ज़बरन हटाने हेतु जान-बूझकर किये गए कृत्यों को संदर्भित करता है।
- यद्यपि इसे भारतीय कानून में परिभाषित नहीं किया गया है, फिर भी जातीय संहार के कृत्य भारतीय संविधान के भाग III के तहत संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन करते हैं।
न्यायालय के हस्तक्षेप का कारण:
- उच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर संज्ञान लिया कि विध्वंस अभियान "विध्वंस आदेशों और नोटिस" के बिना चलाया गया था, जिससे कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया का उल्लंघन हुआ।
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 आदेश देता है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
- मेनका गांधी मामला, 1978 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय देकर कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के दायरे का विस्तार किया था कि ऐसी प्रक्रिया "निष्पक्ष, उचित और तर्कसंगत होनी चाहिये, काल्पनिक, दमनकारी अथवा मनमानी नहीं", इस निर्णय ने "प्रक्रियात्मक उचित प्रक्रिया" का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
- अनुच्छेद 21 के दायरे के पर्याप्त विस्तार के बावजूद यह एक सविधान के उपहास के समान है कि निर्वाचित सरकारों द्वारा ऐसे बुनियादी सिद्धांतों के प्रति बहुत कम सम्मान प्रदर्शित किया जाता है।
कानून के शासन और कानून द्वारा नियम के विरोधाभास का संविधान पर प्रभाव:
- कानून के शासन को संविधान की एक बुनियादी विशेषता घोषित किया गया है, जबकि कानून द्वारा शासन कानून के शासन की सभी प्रस्तुतियों का विरोधाभास है।
- कानून के शासन का अर्थ है कानून से चलने वाली सरकार, न कि व्यक्तियों द्वारा चलाई जा रही व्यवस्था।
- कानून के शासन की अवधारणा का विवरण मैग्ना कार्टा, वर्ष 1215 के अनुच्छेद 39 में मिलता है, जो यह घोषणा करता है कि किसी देश के कानून के वैध निर्णय के आधार के अतिरिक्त "किसी भी स्वतंत्र व्यक्ति को न कैद किया जाएगा, न निर्वासित किया जाएगा और न ही किसी तरह की कोई क्षति पहुँचाई जाएगी।"
- तब से इस सभ्यतागत यात्रा ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में अपना प्रतिबिंब देखा है और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसकी रूपरेखा का विस्तार किया गया है।
- जब कानून द्वारा शासन लागू होता है तो यह प्रगतिशील यात्रा बर्बरतापूर्वक उलट जाती है।
- कानून द्वारा शासन तब होता है जब राजनीतिक एजेंडे को लागू करने के दौरान कानून का उपयोग दमन, उत्पीड़न और सामाजिक नियंत्रण के साधन के रूप में किया जाता है।
- चयनात्मक सामाजिक नियंत्रण को आगे बढ़ाने के लिये प्रभावितों को नोटिस जारी किये बिना तथा उनकी सुनवाई किये बिना आवासों और इमारतों को ध्वस्त करने का प्रशासनिक कार्य आवश्यक रूप से न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करता है।
अवैध निर्माण की विध्वंसक प्रक्रिया:
- दिल्ली नगर निगम अधिनियम (Delhi Municipal Corporation Act), 1957 जैसे नगरपालिका अधिनियम ऐसे प्रावधान प्रदान करते हैं जो सार्वजनिक सड़कों और फुटपाथों पर अतिक्रमण को रोकते हैं।
- कोई भी कार्रवाई करने से पहले नगर निगम अधिकारियों को आमतौर पर अवैध अतिक्रमण में शामिल व्यक्तियों या प्रतिष्ठानों को नोटिस जारी करना आवश्यक होता है।
- सर्वोच्च न्यायालय सहित न्यायालयों ने उचित प्रक्रिया के महत्त्व पर ज़ोर दिया है तथा प्राय: निर्णय सुनाया है कि किसी भी विध्वंस को अंज़ाम देने से पहले उचित नोटिस और सुनवाई का अवसर आवश्यक है।
- वर्ष 1985 के ओल्गा टेलिस मामले में आजीविका के अधिकार और झुग्गीवासियों के अधिकारों पर ज़ोर देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है।
- यदि व्यक्ति जवाब देने में विफल रहते हैं या संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं देते हैं, तो नगरपालिका अधिकारी विध्वंसक प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकते हैं।
- अधिकारियों से आमतौर पर उल्लंघन की प्रकृति और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने के लिये की गई प्रतिक्रिया को ध्यान में रखते हुए आनुपातिक रूप से कार्य करने की अपेक्षा की जाती है।
विध्वंसक अभियान:
- पर्याप्त आवास का अधिकार:
- आवास का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मान्यता प्राप्त एक मूल अधिकार है।
- ICESCR:
- आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (International Covenant on Economic, Social and Cultural Right- ICESCR) का अनुच्छेद 11.1 प्रत्येक व्यक्ति को अपने और अपने परिवार के लिये पर्याप्त जीवन स्तर के अधिकार को मान्यता देता है, जिसमें पर्याप्त भोजन, कपड़े तथा आवास एवं रहने की स्थिति में निरंतर सुधार शामिल है। ”
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून ढाँचा:
- यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून ढाँचे के तहत एक अच्छी तरह से प्रलेखित अधिकार भी है।
- उदाहरण के लिये मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR) के अनुच्छेद 25 में कहा गया है कि "हर किसी को अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिये पर्याप्त जीवन स्तर का अधिकार है, जिसमें भोजन, कपड़े, आवास तथा चिकित्सा देखभाल शामिल हैं।"
- UDHR के पीछे कोई बाध्यकारी शक्ति नहीं है लेकिन इसे सभी देशों द्वारा नैतिक आचार संहिता (Moral Code of Conduct) के रूप में स्वीकार किया जाता है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून ढाँचे के तहत एक अच्छी तरह से प्रलेखित अधिकार भी है।
- ICCPR:
- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध (ICCPR) के अनुच्छेद 17 में यह भी प्रावधान है कि प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत एवं संयुक्त रूप से संपत्ति रखने का अधिकार है, तथा साथ ही किसी की संपत्ति को बिना कारण बताए उससे नहीं लिया जा सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय के संबंधित निर्णय:
- ओल्गा टेलिस और अन्य बनाम बॉम्बे नगर निगम एवं अन्य, 1985:
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि फुटपाथ पर रहने वालों को अवसर दिये बिना अनुचित बल का प्रयोग कर उन्हें हटाना असंवैधानिक है।
- यह उनकी आजीविका के अधिकार का उल्लंघन है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि फुटपाथ पर रहने वालों को अवसर दिये बिना अनुचित बल का प्रयोग कर उन्हें हटाना असंवैधानिक है।
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ, 1978:
- सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए कहा कि "कानून की उचित प्रक्रिया" "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" का एक अभिन्न अंग है, यह समझाते हुए कि ऐसी प्रक्रिया निष्पक्ष, उचित होनी चाहिये।
- यदि कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया काल्पनिक, दमनकारी तथा मनमानी प्रकृति की है तो इसे बिल्कुल भी प्रक्रिया नहीं माना जाना चाहिये एवं इस प्रकार अनुच्छेद 21 की सभी आवश्यकताएँ पूरी नहीं होंगी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए कहा कि "कानून की उचित प्रक्रिया" "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया" का एक अभिन्न अंग है, यह समझाते हुए कि ऐसी प्रक्रिया निष्पक्ष, उचित होनी चाहिये।
- नगर निगम लुधियाना बनाम इंद्रजीत सिंह, 2008:
- सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि नगरपालिका कानून के अंर्तगत नोटिस देने की आवश्यकता प्रदान की गई है, तो इस आवश्यकता का अनिवार्य रूप से पालन किया जाना चाहिये।
- कोई भी प्राधिकरण कब्ज़ेदार को नोटिस और सुनवाई का अवसर दिये बिना, यहाँ तक कि अवैध निर्माणों को भी सीधे ध्वस्त करने की कार्रवाई नहीं कर सकता है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण निर्णय:
- बचन सिंह बनाम पंजाब राज्य, 1980, विशाखा बनाम राजस्थान राज्य, 1997 और हाल ही में प्रसिद्ध पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ, 2017 जैसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने यह सिद्धांत दिया है कि संविधान के अंर्तगत मौलिक अधिकारों की गारंटी होनी चाहिये। इसे इस तरीके से पढ़ें एवं व्याख्या करें जिससे अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के साथ उनकी अनुरूपता बढ़े।
आगे की राह
- संवैधानिक मूल्यों, विशेषकर कानून के शासन तथा मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के क्षरण के प्रति सतर्कता की आवश्यकता है।
- सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिये न्यायिक हस्तक्षेप महत्त्वपूर्ण है कि न्याय निष्पक्षता से और स्थापित कानूनी प्रक्रियाओं के अनुसार ही लागू हो।
- कानून के शासन और कानून द्वारा शासन के बीच चल रहा संघर्ष एक न्यायपूर्ण तथा समावेशी समाज के लिये संवैधानिक आदर्शों को बनाए रखने के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
MPC के हालिया निर्णय: रेपो, मुद्रास्फीति अनुमान, आई-सीआरआर
प्रिलिम्स के लिये:मौद्रिक नीति समिति, भारतीय रिज़र्व बैंक, हेडलाइन मुद्रास्फीति, वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR), रिवर्स रेपो ऑपरेशन, मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण, खुला बाज़ार संचालन मेन्स के लिये:भारत में अतिरिक्त तरलता के निहितार्थ, अतिरिक्त तरलता को कम करने के लिये RBI द्वारा अपनाए गए उपाय, उच्च मुद्रास्फीति और उच्च तरलता को एक साथ प्रबंधित करने के तरीके |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) की मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee- MPC) ने हाल ही में चालू वित्त वर्ष (2023-24) में खुदरा मुद्रास्फीति के लिये अपने अनुमान को संशोधित करते हुए नीति रेपो दर को 6.5% पर बनाए रखने का विकल्प चुना है।
- इसके अलावा अतिरिक्त तरलता को कम करने के लिये बैंकों के लिये अस्थायी 10% वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR) बनाए रखना आवश्यक है।
MPC के प्रमुख निर्णय:
- रेपो दर को अपरिवर्तित रखना: RBI ने आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति नियंत्रण को संतुलित करने के लिये नीतिगत रेपो दर को 6.5% पर अपरिवर्तित रखने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया।
- मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ाना: चालू वित्त वर्ष में खुदरा मुद्रास्फीति का अनुमान 30 आधार अंक बढ़ाकर 5.4% कर दिया गया है।
- यह समायोजन सब्जियों की बढ़ती कीमतों के कारण हेडलाइन मुद्रास्फीति में बढ़ोतरी की प्रवृत्ति को स्वीकार करता है।
- जबकि सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी अस्थायी होने की अपेक्षा होती है, संभावित अल नीनो (El Nino) मौसम की स्थिति तथा वैश्विक खाद्य कीमतें जैसे बाहरी कारक संभावित जोखिम उत्पन्न करते हैं।
- अनुमानित GDP वृद्धि: MPC ने वर्ष 2023-24 में वास्तविक GDP वृद्धि के अपने अनुमान को 6.5% पर बनाए रखा है।
- वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR): 12 अगस्त, 2023 से प्रभावी, अनुसूचित बैंकों को 19 मई, 2023 तथा 28 जुलाई, 2023 के बीच अपनी मांग और समय देनदारियों में शुद्ध वृद्धि पर 10% का I-CRR बनाए रखना आवश्यक है।
- इस कदम का उद्देश्य अधिशेष तरलता को कम करना है, विशेष रूप से हाल ही में 2000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण के कारण।
- RBI ने बैंकों को उनकी वर्तमान जमा राशि के लिये दंडित करने से रोकने तथा क्रेडिट वृद्धि और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव को सीमित करने के लिये सामान्य CRR (Cash Reserve Ratio) वृद्धि के बजाय I-CRR का विकल्प चुना।
- CRR वृद्धि से ऋण निधि सीमित हो जाएगी तथा उधार लेने की लागत बढ़ जाएगी। I-CRR नियमित बैंकिंग परिचालन को बाधित किये बिना विमुद्रीकरण से अतिरिक्त तरलता को लक्षित करता है।
- मौजूदा CRR 4.5% पर अपरिवर्तित है।
- साथ ही RBI ने स्पष्ट किया कि I-CRR एक अस्थायी उपाय है। वर्ष 2016 में विमुद्रीकरण के समय 100% I-CRR नियोजित किया गया था।
- CRR वृद्धि से ऋण निधि सीमित हो जाएगी तथा उधार लेने की लागत बढ़ जाएगी। I-CRR नियमित बैंकिंग परिचालन को बाधित किये बिना विमुद्रीकरण से अतिरिक्त तरलता को लक्षित करता है।
HDFC लिमिटेड-HDFC बैंक विलय एवं RBI का हालिया कदम:
- अनुमान: इस अतिरिक्त CRR को शुरू करने का RBI का निर्णय विलय के बाद अनुग्रह अवधि के दौरान HDFC बैंक द्वारा प्राप्त किसी भी संभावित लाभ की भरपाई करने का एक प्रयास हो सकता है।
- पृष्ठभूमि: HDFC लिमिटेड एक बैंक नहीं था, लेकिन यह जमा राशि ही एकत्रित कर सकता था। हालाँकि यह CRR नियम के अधीन नहीं था। इसके बाद HDFC लिमिटेड का HDFC बैंक में विलय हो गया, जिससे बैंकिंग प्रणाली में बड़ी मात्रा में जमा राशि आ गई।
- विलय के बाद HDFC बैंक को एक छूट अवधि दी गई थी, जिसके दौरान उसे अपनी नई जमा राशि पर सामान्य 4.5% CRR जमा नहीं करना था।
- इस अनुग्रह अवधि ने बैंक को संभावित रूप से इन महत्त्वपूर्ण जमाओं को कहीं और निवेश करने के साथ ही इन निवेशों से लाभ कमाने की अनुमति दी।
- RBI के वृद्धिशील CRR के हालिया कदम का तात्पर्य है कि HDFC बैंक समेत बैंकों को इन जमाओं का अतिरिक्त 10% RBI के पास रखना होगा।
अतिरिक्त तरलता को कम करने हेतु RBI के अन्य उपाय:
- रिवर्स रेपो परिचालन: RBI रिवर्स रेपो परिचालन संचालित कर सकता है, जहाँ यह बैंकों को धन के बदले में सरकारी प्रतिभूतियों को प्रस्तुत करके अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करता है।
- हालाँकि हाल ही में RBI ने रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने के बजाय I-CRR का उपयोग करने का विकल्प चुना क्योंकि रिवर्स रेपो रेट बढ़ाने से रेपो रेट भी बढ़ जाता जिससे कठोर मौद्रिक नीति की स्थिति के साथ ही आर्थिक सुधार में बाधा उत्पन्न होती है।
- विदेशी मुद्रा परिचालन: विदेशी मुद्रा भंडार बेचने से घरेलू मुद्रा बाज़ार में तरलता कम हो सकती है।
- इस दृष्टिकोण का उपयोग सावधानी से किया जा सकता है, क्योंकि यह विनिमय दर तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रभावित कर सकता है।
- नैतिक प्रेरणा: RBI बैंकों और वित्तीय संस्थानों के साथ संवाद करके उन्हें स्वेच्छा से अपनी तरलता की स्थिति का प्रबंधन करने और अत्यधिक उधार देने पर अंकुश लगाने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
नोट:
- CRR: नकद आरक्षित अनुपात, शुद्ध मांग और समय देनदारियों का एक प्रतिशत, बैंकों को तरलता को नियंत्रित करने के लिये केंद्रीय बैंक (RBI) के पास रखना चाहिये।
- वृद्धिशील CRR: अतिरिक्त तरलता का प्रबंधन एवं अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिये RBI द्वारा बैंकों की CRR अधिक करने आवश्यकता है।
- रेपो दर: यह वाणिज्यिक बैंकों हेतु अल्पकालिक ऋण के लिये RBI द्वारा निर्धारित ब्याज दर है। यह मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने एवं आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये प्रयोग किया जाने वाला एक उपकरण है।
- मुद्रास्फीति: यह एक समयावधि में किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर में निरंतर वृद्धि को संदर्भित करता है, जिससे रुपए की क्रय शक्ति में कमी आती है।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति: यह उस अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति है, जिसमें वस्तुओं की एक टोकरी शामिल होती है।
- खाद्य और ईंधन मुद्रास्फीति भारत में हेडलाइन मुद्रास्फीति के घटकों में से एक है।
- कोर मुद्रास्फीति: यह हेडलाइन मुद्रास्फीति पर नज़र रखने वाली वस्तुओं की टोकरी से अस्थिर वस्तुओं को बाहर करती है। इन अस्थिर वस्तुओं में मुख्य रूप से भोजन और पेय पदार्थ (सब्जियों सहित) तथा ईंधन एवं प्रकाश (कच्चा तेल) सम्मिलित है।
- कोर मुद्रास्फीति = हेडलाइन मुद्रास्फीति - (खाद्य और ईंधन) मुद्रास्फीति।
- हेडलाइन मुद्रास्फीति: यह उस अवधि के लिये कुल मुद्रास्फीति है, जिसमें वस्तुओं की एक टोकरी शामिल होती है।
- मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण: यह एक मौद्रिक नीति ढाँचा है जिसका उद्देश्य मुद्रास्फीति के लिये एक विशिष्ट लक्ष्य सीमा बनाए रखना है।
- उर्जित पटेल समिति (Urjit Patel Committee) ने मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण के उपाय के रूप में थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index) पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) की सिफारिश की।
- तरलता से तात्पर्य उस सुविधा से है जिसके साथ किसी परिसंपत्ति या सुरक्षा को उसकी कीमत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाले बिना बाज़ार में जल्दी से खरीदा या बेचा जा सकता है।
- यह वित्तीय दायित्वों को पूरा करने या निवेश के लिये नकदी या तरल संपत्ति की उपलब्धता को दर्शाता है। सरल शब्दों में तरलता का अर्थ है जब भी आपको ज़रूरत हो अपना पैसा प्राप्त करना।
भारत में अतिरिक्त तरलता के प्रभाव:
- सकारात्मक प्रभाव:
- कम ब्याज दरें: अतिरिक्त तरलता से अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम हो सकती हैं।
- जब धन की प्रचुरता होती है, तो बैंक तथा वित्तीय संस्थान उधारकर्त्ताओं को आकर्षित करने के लिये अपनी उधार दरें कम कर देते हैं।
- यह उधार लेने और निवेश गतिविधियों को प्रोत्साहित कर सकता है तथा आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
- निवेश को प्रोत्साहित करना: कम ब्याज दरों के साथ व्यवसायों को अपने परिचालन का विस्तार करने, नई परियोजनाएँ शुरू करने और नौकरियाँ प्रदान करने के लिये उधार लेना और निवेश करना सस्ता पड़ सकता है।
- इसका आर्थिक गतिविधि और रोज़गार सृजन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- कम ब्याज दरें: अतिरिक्त तरलता से अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें कम हो सकती हैं।
- नकारात्मक प्रभाव:
- मुद्रास्फीति का दबाव: अतिरिक्त तरलता, अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के दबाव में योगदान कर सकती है।
- जब वस्तुओं और सेवाओं की सीमित आपूर्ति के पीछे बहुत अधिक पैसा व्यय होता है, तो कीमतें बढ़ सकती हैं।
- इससे उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति नष्ट हो सकती है तथा उनके समग्र जीवन स्तर में कमी आ सकती है।
- विनिमय दर में अस्थिरता: विदेशी पूंजी के अचानक प्रवाह से मुद्रा के मूल्य में वृद्धि हो सकती है, जिससे निर्यात अधिक महँगा हो जाएगा तथा आयात सस्ता हो जाएगा।
- दूसरी ओर, बहिर्प्रवाह से मुद्रा का अवमूल्यन हो सकता है, जो व्यापार संतुलन और बाहरी ऋण को प्रभावित कर सकता है।
- एसेट प्राइस बबल्स: अतिरिक्त तरलता द्वारा परिसंपत्ति की कीमतों में वृद्धि होने से स्पेकुलेटिव बबल्स (परिसंपत्तियों की कीमतों में तीव्र वृद्धि) की स्थिति भी हो सकती है।
- परिसंपत्तियों की कीमतों में वृद्धि को बुनियादी सिद्धांतों द्वारा समर्थित नहीं किये जाने के परिणामस्वरूप कीमतों में अचानक गिरावट आ सकती है, जिससे वित्तीय अस्थिरता पैदा हो सकती है।
- इससे अर्थव्यवस्था में आय असमानता में वृद्धि हो सकती है।
- आय असमानता: जिन अमीरों का परिसंपत्तियों में अधिक निवेश है, वे अतिरिक्त तरलता के लाभों, जैसे कि उच्च परिसंपत्ति मूल्यों से असंगत रूप से लाभ कमा सकते हैं।
- मुद्रास्फीति का दबाव: अतिरिक्त तरलता, अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति के दबाव में योगदान कर सकती है।
उच्च मुद्रास्फीति और उच्च तरलता का एक साथ प्रबंधन:
- ब्याज दर समायोजन: RBI ब्याज दरों के समायोजन के लिये सतर्कतावादी दृष्टिकोण का सहारा ले सकता है।
- उच्च तरलता ब्याज दरों को कम करने की मांग कर सकती है, लेकिन मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाना भी आवश्यक है।
- तरलता और मुद्रास्फीति दोनों को प्रबंधित करने के लिये वृद्धिशील ब्याज दरों में बढ़ोतरी करना एक संतुलित मार्ग हो सकता है।
- ओपन मार्केट ऑपरेशंस: RBI नियंत्रित ओपन मार्केट ऑपरेशंस का भी उपयोग कर सकता है, इसके तहत मौद्रिक व्यवस्था में निवेश हेतु तरलता को संतुलित करने के लिये सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री की जाती है।
- इससे अति तरलता के मुद्रास्फीतिकारी प्रभावों को कम करने में मदद मिल सकती है।
- लक्षित राजकोषीय उपाय: भारत सरकार मुद्रास्फीति उत्पन्न करने वाले व्यवसायों से निपटने के लिये केंद्रित राजकोषीय रणनीतियों को लागू कर सकती है।
- उदाहरण के लिये कृषि संबंधी बुनियादी ढाँचे और आपूर्ति शृंखला में सुधार हेतु निवेश से खाद्य कीमतों को स्थिर करने में मदद मिल सकती है, यह भारत में मुद्रास्फीति का वर्तमान प्रमुख कारक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न. यदि भारतीय रिज़र्व बैंक प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
मीडिया के प्रभावी स्व-नियमन की आवश्यकता
प्रिलिम्स के लिये:मीडिया का स्व-नियमन, सर्वोच्च न्यायालय, समाचार प्रसारक और डिजिटल एसोसिएशन, प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 मेन्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, मीडिया के प्रभावी स्व-नियमन की वकालत |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने नैतिक आचरण और ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के लिये टेलीविज़न चैनलों द्वारा अपनाए गए स्व-नियामक तंत्र को मज़बूत करने के महत्त्व पर बल दिया है।
- न्यायालय न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) द्वारा स्व-नियमन की प्रभावशीलता के विरुद्ध बॉम्बे उच्च न्यायलय द्वारा की गई टिप्पणियों को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रहा था।
- बॉम्बे उच्च न्यायालय ने मीडिया ट्रायल की आलोचना के साथ ही स्पष्ट किया कि मौजूदा स्व-नियामक तंत्र में वैधानिक तंत्र के चरित्र का अभाव है।
नोट: NBDA [पूर्व में न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (NBA) के नाम से जाना जाता था] निजी टेलीविज़न समाचार, समसामयिक मामलों तथा डिजिटल प्रसारकों का प्रतिनिधित्व करता है। यह भारत में समाचार, समसामयिक मामलों एवं डिजिटल प्रसारकों की सामूहिक आवाज़ है।
- वर्तमान में 27 प्रमुख समाचार और समसामयिक मामलों के प्रसारक (125 समाचार और समसामयिक मामलों के चैनल) NBDA के सदस्य हैं। NBDA इस बढ़ते उद्योग को प्रभावित करने वाले मामलों पर सरकार के समक्ष एक एकीकृत और विश्वसनीय आवाज़ है।
सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- विनियमन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में संतुलन:
- सर्वोच्च न्यायालय ने मीडिया सामग्री में नैतिक मानकों को बनाए रखते हुए सरकार द्वारा पूर्व-सेंसरशिप या पोस्ट-सेंसरशिप से बचने के महत्त्व को स्वीकार किया।
- न्यायालय ने मीडिया आउटलेट्स द्वारा स्व-नियमन के विचार की सराहना की लेकिन इस बात पर ज़ोर दिया कि अनैतिक आचरण को रोकने के लिये ऐसे तंत्र अधिक प्रभावी होने चाहिये।
- नियामक ढाँचे को मज़बूत करने के लिये नोटिस जारी:
- सर्वोच्च न्यायालय ने नियामक ढाँचे में वृद्धि के लिये NBDA और अन्य संबंधित पक्षों को एक नोटिस जारी किया।
- न्यायालय ने इस बात की जाँच करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया कि क्या स्व-नियामक तंत्र स्थापित करने के लिये उठाए गए मौजूदा कदमों को अधिकार क्षेत्र और उल्लंघन के अंतिम परिणामों दोनों के संदर्भ में मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- मीडिया व्यवहार को लेकर चिंताएँ:
- सर्वोच्च न्यायालय ने एक अभिनेता की मौत के बाद मीडिया कवरेज के कारण भड़के उन्माद पर प्रकाश डाला, जहाँ अपराध या निर्दोषता का अनुमान चल रही जाँच को प्रभावित कर सकता है।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मीडिया की भूमिका सार्वजनिक राय को आकार देने के बजाय दोषी साबित होने तक निर्दोषता की धारणा को बनाए रखने की होनी चाहिये।
- ज़ुर्माना और दिशा-निर्देश बढ़ाने का प्रस्ताव:
- न्यायालय ने उल्लंघनों के लिये लगाए गए मौजूदा 1 लाख रुपए के ज़ुर्माने की पर्याप्तता पर सवाल उठाया, सुझाव दिया कि ज़ुर्माना पूरे शो से होने वाले मुनाफे के अनुपात में होना चाहिये।
- मुख्य न्यायाधीश ने प्रतिभूति विनियमन में अभ्यास के समान "अस्वीकरण" का विचार उठाया, जहाँ उल्लंघनकर्त्ता गलत तरीके से अर्जित लाभ लौटाते हैं।
भारत में मीडिया का विनियमन:
- पारंपरिक मीडिया:
- पारंपरिक मीडिया के अंतर्गत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, टीवी, रेडियो आदि शामिल हैं। पारंपरिक मीडिया के आचरण को विनियमित करने के लिये सरकार ने विभिन्न कानूनों के तहत विभिन्न वैधानिक निकायों की स्थापना की है।
- प्रिंट मीडिया को मुख्य रूप से दो प्रमुख अधिनियमों के माध्यम से विनियमित किया जाता है; प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867, जो भारत में मुद्रित पुस्तकों तथा समाचार पत्रों की प्रत्येक प्रति के पंजीकरण, विनियमन एवं संरक्षण का प्रावधान करता है, व दूसरा, प्रेस परिषद अधिनियम, 1978।
- सिनेमा का विनियमन सिनेमैटोग्राफिक अधिनियम, 1952 के माध्यम से किया जाता है। यह अधिनियम सिनेमैटोग्राफिक फिल्मों के प्रमाणीकरण, फिल्मों के प्रदर्शन तथा उन प्रदर्शन को विनियमित करने के लिये केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड नामक एक नियामक निकाय की भी स्थापना का प्रावधान करता है।
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 के माध्यम से दूरसंचार क्षेत्र को विनियमित किया जाता है। इस अधिनियम के तहत भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण विवादों को नियंत्रित करता है, निर्णय देता है, अपीलों का निपटान करता है तथा सेवा प्रदाताओं एवं उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करता है।
- पारंपरिक मीडिया के अंतर्गत समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, टीवी, रेडियो आदि शामिल हैं। पारंपरिक मीडिया के आचरण को विनियमित करने के लिये सरकार ने विभिन्न कानूनों के तहत विभिन्न वैधानिक निकायों की स्थापना की है।
- डिजिटल मीडिया:
- डिजिटल मीडिया में मोटे तौर पर वेबसाइट, ब्लॉग, यूट्यूब जैसे वीडियो प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया साइटें शामिल हैं। चूँकि ये प्लेटफाॅर्म दो अथवा दो से अधिक लोगों के बीच संचार के माध्यम के रूप में कार्य करते हैं, इसलिये इन्हें शासी कानून के तहत "मध्यस्थों" के रूप में जाना जाता है।
- इन्हें सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के प्रावधानों और धारा 69 के तहत बनाए गए नियमों के तहत विनियमित किया जाता है, जिन्हें सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता), नियम 2021 (अब आईटी नियम, 2021) कहा जाता है।
निष्कर्ष:
- टेलीविज़न चैनलों के अनैतिक आचरण के लिये ज़ुर्माने में बदलाव करने का सर्वोच्च न्यायालय का फैसला स्वतंत्र अभिव्यक्ति की सुरक्षा करते हुए मीडिया की नैतिकता और ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग को बनाए रखने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- नियामक निकायों को शामिल करने और सख्त दंड का प्रावधान करने का न्यायालय का निर्णय मीडिया की स्वतंत्रता और नैतिक ज़िम्मेदारी को संतुलित करने की दिशा में न्यायालय के सक्रिय रुख को प्रदर्शित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है/हैं? (2017) 1- सेवा प्रदाता (सर्विस प्रोवाइडर) नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (d)
अतः 1, 2 और 3 सही हैं। इसलिये विकल्प (d) सही उत्तर है। मेन्स:प्रश्न. डिजिटल मीडिया के माध्यम से धार्मिक मतारोपण का परिणाम भारतीय युवकों का आई.एस.आई.एस. में शामिल हो जाना रहा है। आई.एस.आई.एस. क्या है और उसका ध्येय (लक्ष्य) क्या है? आई.एस.आई.एस. हमारे देश की आंतरिक सुरक्षा के लिये किस प्रकार खतरनाक हो सकता है? (2016) प्रश्न. ‘सामाजिक संजाल स्थल’ (Social Networking Sites) क्या होते हैं और इन स्थलों से क्या सुरक्षा उलझनें प्रस्तुत होती हैं? (2013) |