डेली न्यूज़ (17 Jun, 2024)



सिल्क रोड के मार्ग में बदलाव

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन, सिल्क रोड, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा तथा भारत के संबंध में इसके निहितार्थ।

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों?

साइंस बुलेटिन पत्रिका में प्रकाशित चीनी वैज्ञानिकों के एक हालिया अध्ययन के अनुसार, प्राचीन सिल्क रोड का मुख्य मार्ग जलवायु परिवर्तन के कारण उत्तर की ओर स्थानांतरित हुआ है। 

  • यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन एवं मानव समाजों के स्थानिक विकास के बीच संबंधों के परीक्षण के क्रम में महत्त्वपूर्ण है।

सिल्क रोड:

  • परिचय:
    • सिल्क रोड यूरोप के अटलांटिक समुद्र तट को एशिया के प्रशांत तट से जोड़ने वाले व्यापारिक मार्गों का एक विशाल नेटवर्क था।
    • इसका नाम इस मार्ग के सुदूर पूर्वी छोर पर स्थित चीन से होने वाले आकर्षक रेशम के व्यापार के कारण रखा गया था। 
    • रेशम के अलावा, इस मार्ग का उपयोग मसालों, सोने तथा कीमती पत्थरों जैसी अन्य वस्तुओं के व्यापार हेतु किया जाता था।
  • मार्ग:
    • यह मार्ग समरकंद, बेबीलोन और कुस्तुंतुनिया  सहित कई महत्त्वपूर्ण शहरों एवं राज्यों से होकर गुज़रता था।
  • इतिहास:
    • सिल्क रोड का इतिहास 1,500 वर्षों से भी अधिक का है, जिसे पारंपरिक तौर पर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व (जब यूरोप एवं चीन के बीच संपर्क और भी मज़बूत हुए थे) का माना जाता है।
    • दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में चीन के हान राजवंश के सम्राट वू (Wu) ने अपने राजदूत झांग कियान को "पश्चिमी क्षेत्रों" (झिंजियांग और उससे आगे के क्षेत्रों) में भेजा। इससे सिल्क रोड के तारिम बेसिन मार्ग का क्रमिक विकास हुआ।
      • इस अग्रणी प्रयास के लिये झांग कियान को "सिल्क रोड का जनक" होने का श्रेय दिया जाता है।
    • चीन की तत्कालीन राजधानी (शियान) की ओर आने वाले या वहाँ से जाने वाले व्यापारियों द्वारा तारिम बेसिन मार्ग का उपयोग किया जाता था और यह तियानशान, कुनलुन तथा पामीर जैसे पहाड़ों से घिरे बेसिन के किनारे से होकर गुज़रता था एवं तकला मकान का रेगिस्तान भी इस बेसिन से संलग्न था।
    • तारिम बेसिन से होकर यात्रा करने के बाद व्यापारी पश्चिम की ओर लेवंत (आधुनिक सीरिया, जॉर्डन एवं लेबनान) और अनातेलिया की ओर बढ़ते थे, जहाँ वस्तुओं को भूमध्यसागरीय बंदरगाहों के जहाज़ो तक पहुँचाया जाता था तथा यहाँ से इनका स्थानांतरण पश्चिमी यूरोप की ओर होता था।
    • इस मार्ग ने यूरेशिया के विपरीत छोरों के बीच वस्तुओं, लोगों, विचारों, धर्मों और यहाँ तक ​​कि बीमारियों के प्रसार के साथ यूरोप तथा एशिया की सभ्यताओं के बीच सांस्कृतिक एवं आर्थिक आदान-प्रदान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सिल्क रोड का मार्ग कैसे बदला गया?

  • पुराना मार्ग (तारिम बेसिन मार्ग):
    • सिल्क रोड का मूल मुख्य मार्ग तारिम बेसिन के चारों ओर से होकर गुज़रता था, जो उत्तर में तियानशान पर्वतमाला (Tianshan Mountains) और दक्षिण में कुनलुन पर्वतमाला (Kunlun Mountains) के बीच स्थित है।
    • व्यापारियों ने तारिम बेसिन की कठोर रेगिस्तानी परिस्थितियों से बचने के लिये यह मार्ग चुना।
  • नया मार्ग (जुंगगर बेसिन मार्ग):
    • लगभग 420-850 ई. की अवधि के दौरान कारवाँ ने सिल्क रोड पर तारिम बेसिन के आसपास के पारंपरिक मार्ग का अनुसरण नहीं किया।
      • इसके बजाय उन्होंने तियानशान पर्वतमाला (आधुनिक शिनजियांग के जुंगगर बेसिन में) की उत्तरी ढलानों का उपयोग करना शुरू कर दिया, जिसे ऐतिहासिक रूप से जुंगारिया कहा जाता था।
      • इस "नए उत्तरी" मार्ग ने अंततः तारिम बेसिन मार्ग को पूरी तरह से प्रतिस्थापित कर दिया।
    • नये मार्ग के परिणाम:
      • इसने तुर्को-सोग्डियन सांस्कृतिक क्षेत्र के विकास को बढ़ावा दिया।
      • इसने चीनी राजवंशों और मध्य तथा पश्चिम एशिया के खानाबदोश साम्राज्यों, जैसे खज़र साम्राज्य (Khazar Empire), के बीच संचार तथा व्यापार को सुगम बनाया।
      • इस बदलाव से यूरेशिया में संचार और व्यापार में सुधार हुआ तथा प्रशांत तथा अटलांटिक क्षेत्रों के बीच कनेक्टिविटी स्थापित हुई।

सिल्क रोड के स्थानांतरण के पीछे क्या कारण थे?

  • जलवायु परिवर्तन:
    • शोधकर्त्ताओं ने पूर्व जलवायु (Past Climate) का पुनर्निर्माण करने के लिये चिरोनोमिड (झील मक्खियों) जीवाश्मों का उपयोग किया और तारिम बेसिन में शीतलक (Cooling) और शुष्कन (Drying) की अवधि (420-600 ई.) पाई गई, जिसका अर्थ है कि उस समय के दौरान इस क्षेत्र में तापमान में कमी आई तथा वर्षा भी कम हुई (जलवायु परिवर्तन)
      • बर्फ के पिघलने से प्राप्त होने वाले जल और वर्षा में कमी के कारण तारिम बेसिन को जल की कमी का सामना करना पड़ा जिसके चलते यह पारंपरिक मार्ग कम व्यवहार्य हो गया। इस प्रकार पारंपरिक मार्ग से होकर गुज़रने वाले कारवाँ (Caravans) तियानशान पहाड़ों के साथ उत्तरी मार्ग की तरफ स्थानांतरित हो गए क्योंकि वहाँ अधिक प्रचुर एवं सतत् जल संसाधन उपलब्ध थे।
  • भू-राजनीतिक कारक:
    • तारिम बेसिन में जलवायु में सुधार होने के बाद भी (600-850 ई. के बीच गर्म और आर्द्र), व्यापार मार्ग उत्तरी जुंगगर बेसिन मार्ग पर बना रहा।
    • इसका कारण शिनजियांग के दक्षिण में टुबो साम्राज्य (तिब्बत) का उदय है, जिसकी विस्तारित शक्ति का टकराव चीन के तांग राजवंश से हुआ, जिससे पारंपरिक तारिम बेसिन मार्ग व्यापार के लिये संभवतः कम सुरक्षित या राजनीतिक दृष्टि से कम अनुकूल हो गया।

सिल्क रूट का क्या ऐतिहासिक महत्त्व क्या था?

  • आर्थिक महत्त्व:
    • सिल्क रोड मुख्य व्यापार मार्ग के रूप में कार्य करता था, जिससे चीन, भारत, फारस, अरब और भूमध्य सागर के बीच रेशम, मसाले, मूल्यवान धातुओं और रत्नों जैसे उच्च-स्तरीय उत्पादों का व्यापार संभव हुआ।
    • इससे अत्यधिक धन अर्जन और समृद्धि की प्राप्ति हुई, जिससे इस प्राचीन मार्ग के आस-पास स्थित समाजों की आर्थिक उन्नति व प्रगति में सहायता मिली।
  • संस्कृति का आदान-प्रदान:
    • सिल्क रूट ने पूर्व और पश्चिम में सांस्कृतिक, कलात्मक एवं धार्मिक विचारों के आदान-प्रदान को सुगम बनाया, जिससे बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम तथा अन्य मान्यताओं का प्रसार हुआ। इससे प्रौद्योगिकी, कृषि प्रथाओं और कलात्मक परंपराओं का हस्तांतरण भी संभव हुआ।
    • सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध बनाते हुए तथा एक विविध एवं परस्पर संबद्ध विश्व के निर्माण में योगदान देते हुए इस आदान-प्रदान ने संस्कृतियों, भाषाओं और ज्ञान के सम्मिश्रण को बढ़ावा दिया
  • भू-राजनीतिक महत्त्व:
    • सिल्क रूट व्यापार मार्गों का एक महत्त्वपूर्ण जाल था, जो शासन करने वाले साम्राज्यों को शक्ति और प्रभुत्व प्रदान करता था। इसकी सुरक्षा हेतु किलेबंदी की गई और साथ ही सैन्य चौकियाँ तथा कूटनीतिक संबंध स्थापित किये गए।
    • इस मार्ग पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये हुई प्रतिस्पर्द्धा ने यूरेशिया के भू-राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया, जिसने सदियों तक विभिन्न सभ्यताओं के उत्थान और पतन को प्रभावित किया।
  • प्रौद्योगिकी संबंधी प्रगति:
    • सिल्क रूट ने पूर्व और पश्चिम के बीच कम्पास (दिशा निरूपण यंत्र), बारूद और मुद्रण जैसी तकनीकी नवाचारों के आदान-प्रदान को सक्षम बनाया।
    • इसने ऊँट कारवाँ और समुद्री नौपरिवहन सहित परिवहन की उन्नत विधियों के विकास को भी बढ़ावा दिया।
  • विरासत और समकालीन प्रासंगिकता:
    • बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसी पहल वर्तमान आर्थिक और भू-राजनीतिक गतिशीलता में इसके महत्त्व को उजागर करती। यह पहल दर्शाती है कि सिल्क रूट वर्तमान में भी आधुनिक व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को प्रभावित करता है।

सिल्क रूट का अंत किस प्रकार हुआ और वर्तमान में इसके पुनर्रुत्थान हेतु क्या प्रयास किये जा रहे हैं?

  • सिल्क रूट का अंत:
    • वर्ष 1453 में ओटोमन साम्राज्य ने पश्चिम के साथ व्यापार बंद कर दिया, जिससे पूर्व और पश्चिम अलग हो गए तथा अंततः मूल सिल्क रूट तिरोहित हो गया। बाद के समय में अधिक कुशल पूर्व-पश्चिम व्यापार के लिये वैकल्पिक समुद्री मार्गों की खोज की गई।
  • सिल्क रूट का पुनर्रुत्थान:
    • वर्ष 2013 में, चीन ने सिल्क रूट को पुनः क्रियाशील बनाने के लिये "वन बेल्ट, वन रोड" (OBOR) अथवा बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव रणनीति की पहल की। 
    • इसका उद्देश्य एशिया, यूरोप और पूर्वी अफ्रीका के 60 से अधिक देशों के साथ कनेक्टिविटी स्थापित करना है।

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) क्या है?

  • परिचय:
    • यह वैश्विक कनेक्टिविटी और सहयोग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से शुरू की गई एक बहुआयामी विकास रणनीति है।
    • इसकी शुरुआत वर्ष 2013 में की गई थी और इसका उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को स्थलीय और समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य बुनियादी ढाँचे, व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ाकर अंतर्राष्ट्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
  • BRI के मार्ग:
    • सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट:
      • BRI का यह खंड स्थल मार्गों के नेटवर्क के माध्यम से यूरेशिया में कनेक्टिविटी, बुनियादी ढाँचे और व्यापार संबंधों को बेहतर बनाने हेतु समर्पित है।
    • मेरीटाइम सिल्क रोड:
      • यह बंदरगाहों, शिपिंग मार्गों एवं समुद्री अवसंरचना परियोजनाओं के रूप में समुद्री संपर्क और सहयोग पर ज़ोर देता है।
        • यह दक्षिण चीन सागर से शुरू होकर भारत-चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा हिंद महासागर के इर्द-गिर्द होते हुए अफ्रीका और यूरोप तक पहुँचता है।
  • भौगोलिक गलियारे:
    • भूमि आधारित सिल्क रोड इकॉनमी बेल्ट में विकास के लिये 6 प्रमुख गलियारों की परिकल्पना की गई है:
      • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC)
      • नया यूरेशियन लैंड ब्रिज आर्थिक गलियारा।
      • चीन-इंडोचाइना प्रायद्वीप आर्थिक गलियारा।
      • चीन-मंगोलिया-रूस आर्थिक गलियारा।
      • चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा।
      • चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाले बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उल्लेख किसके संदर्भ में किया जाता है? (2016)

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: d


मेन्स

प्रश्न. चीन-पकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी.पी.ई.सी.) को चीन की अपेक्षाकृत अधिक विशाल ‘वन बेल्ट वन रोड’ पहल के एक मूलभूत भाग के रूप में देखा जा रहा है। सी.पी.ई.सी. का संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत कीजिये और भारत द्वारा उससे किनारा करने के कारण गिनाइये। (2018)

प्रश्न. “चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को एशिया में संभाव्य सैन्य शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।” इस कथन के प्रकाश में उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2017)


भारतीय अर्थव्यवस्था की उभरती हुई बौद्धिक शक्ति

प्रिलिम्स के लिये:  

वैश्विक क्षमता केंद्र , बहुराष्ट्रीय निगम, कृत्रिम बुद्धिमत्ता/मशीन लर्निंग,अनुसंधान एवं विकास  

मेन्स के लिये:

वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के बारे में, उनके प्रभाव एवं वर्तमान स्थिति, GCC के उदय के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन

स्रोत: इकोनोमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों? 

हाल के वर्षों में, भारत का बहुराष्ट्रीय निगमों (Multinational Corporations- MNC) के लिये एक बैक-ऑफिस सेवा प्रदाता से एक रणनीतिक बौद्धिक केंद्र के रूप में रूपांतरण, वैश्विक क्षमता केंद्रों (Global Capability Centers- GCC) के उदय से प्रेरित है।

  • GCC बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्थापित अपतटीय इकाइयाँ हैं, जो विश्व भर में अलग-अलग स्थानों पर विशिष्ट प्रतिभा, लागत लाभ एवं परिचालन दक्षता का उपयोग करके रणनीतिक कार्यों का निष्पादन करती हैं।

GCC के उदय के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में कौन-से प्रमुख परिवर्तन हुए हैं?

  • बैक-ऑफिस से रणनीतिक साझेदार तक:
    • परंपरागत रूप से वर्ष 1990 से 2000 के दशक में वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की भूमिका मुख्य रूप से टेलीमार्केटिंग तथा डेटा एंट्री जैसे बैक-ऑफिस कार्यों तक ही केंद्रित थी।
    • हालाँकि, अब वे अनुसंधान एवं विकास, एनालिसिस, कृत्रिम बुद्धिमत्ता/मशीन लर्निंग, रोबोटिकप्रोसेस ऑटोमेशन एवं प्रोडक्ट डेवलपमेंट जैसे जटिल कार्यों में भी शामिल हो गए हैं, जिसके परिणामस्वरूप भारत वैश्विक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ता के रूप में स्थापित हुआ है।
  • कौशल विकास एवं प्रतिभा पूल विकास:
    • योग्य श्रमिकों के लिये GCC की आवश्यकता भारत की शिक्षा एवं प्रशिक्षण प्रणाली में सुधार को प्रेरित कर रही है।
    • शैक्षणिक संस्थान GCC की उभरती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये क्रिटिकल थिंकिंग एवं समस्या समाधान क्षमताओं के साथ-साथ STEM क्षेत्रों (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) में कौशल विकसित करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
  • नवाचार एवं ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था:
    • GCC न केवल कार्यों की नक़ल करते हैं बल्कि अपनी मूल कंपनियों के लिये नवाचार केंद्र भी बन रहे हैं।
    • इससे भारत में अनुसंधान एवं विकास की संस्कृति को बढ़ावा मिला है, जिससे नवीन प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ समाधानों का सृजन होता है।
    • बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा भारतीय कार्यबल में ज्ञान के प्रसार से न केवल नवाचार को बढ़ावा मिला है बल्कि अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति भी मज़बूत हुई है।
  • नौकरियों के परिदृश्य में बदलाव
    • GCC द्वारा पारंपरिक आईटी सेवाओं से परे विभिन्न क्षेत्रों में उच्च वेतन वाले रोज़गार सृजित किये जा रहे हैं। 
    • इस बदलाव से इंजीनियर, डेटा साइंटिस्ट एवं फाइनेंसियल एनालिस्ट सहित विभिन्न प्रतिभा समूहों के लोग इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। 
    • GCC से कॅरियर की बेहतर संभावनाएँ मिलने के साथ कुशल पेशेवरों के जीवन स्तर में समग्र रूप से सुधार हो रहा है। 
  • आईटी परिदृश्य का विकास: 
    • GCC से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्लाउड कंप्यूटिंग एवं बिग डेटा एनालिटिक्स जैसी अत्याधुनिक तकनीकों में निवेश को प्रोत्साहन मिल रहा है। 
    • उन्नत तकनीकों पर ध्यान देने से भारत को वैश्विक आईटी सर्विस मार्केट में अग्रणी बनाने में सहायता मिली है। 
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि: 
    • GCC का उदय, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की क्षमताओं का परिचायक है। 
    • इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ, भारत की प्रतिभा एवं लागत-दक्षता से संबंधित लाभों को तीव्रता से स्वीकार कर रही हैं। 
    • इससे विदेशी निवेश आकर्षित होने के साथ वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा मिल रहा है।

ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर/वैश्विक क्षमता केंद्र (GCCs):

  • परिचय:
    • ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जिन्हें ग्लोबल इन-हाउस सेंटर -GICs के रूप में भी जाना जाता है) विश्व भर के देशों में बहुराष्ट्रीय निगमों (MNC) द्वारा स्थापित रणनीतिक केंद्र हैं।
    • वैश्विक कॉर्पोरेट ढाँचे के तहत आंतरिक संस्थाओं के रूप में कार्य करते हुए ये केंद्र आईटी सेवाओं, अनुसंधान एवं विकास, ग्राहक सहायता तथा विभिन्न अन्य व्यावसायिक कार्यों सहित विशेष सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • GCC के उदहारण:
    • जनरल इलेक्ट्रिक (GE) द्वारा बंगलूरू में स्थापित GCC का उद्देश्य अपने विमानन एवं स्वास्थ्य सेवा व्यवसायों हेतु अनुसंधान एवं विकास तथा इंजीनियरिंग पर ध्यान केंद्रित करना है। 
    • नेस्ले द्वारा स्विट्ज़रलैंड के लॉज़ेन में स्थापित GCC का उद्देश्य अपने खाद्य तथा पेय ब्रांडों के विकास के साथ नवाचार को बढ़ावा देना है।
  • वर्तमान स्थिति:
    • वर्ष 2022-23 में 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर के बाज़ार मूल्य वाले लगभग 1,600 GCC से 1.7 मिलियन लोगों को रोज़गार प्राप्त करने में सहायता मिली। 
    • GCC के अंतर्गत व्यावसायिक और परामर्शी सेवाएँ सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला क्षेत्र हैं, जबकि भारत के सेवा निर्यात में इनकी हिस्सेदारी केवल 25% है।
    • पिछले चार वर्षों में इनकी 31% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) कंप्यूटर सेवाओं (16% सीएजीआर) और अनुसंधान और विकास सेवाओं (13% CAGR) से काफी आगे है।
  • GCC के लाभ:
    • लागत दक्षता: कम परिचालन लागत वाले देश में GCC की स्थापना करने से बहुराष्ट्रीय कंपनी को काफी बचत हो सकती है।
    • परिचालन दक्षता: GCC विशिष्ट कार्यों का संचालन कर सकते हैं, जिससे मुख्यालय के संसाधन मुक्त होकर अन्य प्रमुख व्यावसायिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
    • बाज़ार पहुँच: GCC स्थानीय बाज़ारों, ग्राहकों की प्राथमिकताओं और विनियामक वातावरण के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान कर सकते हैं, जिससे बहुराष्ट्रीय कंपनी को क्षेत्रीय सफलता के लिये अपने प्रस्तावों तथा रणनीतियों को अनुकूलित करने में मदद मिलेगी।
  • स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
    • GCC मेज़बान देश में उच्च-कौशल दक्षता वाली नौकरियों का सृजन करते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था और ज्ञान आधार को बढ़ावा मिलता है।
    • ये मेज़बान देश के भीतर ज्ञान हस्तांतरण और प्रौद्योगिकी को अपनाने में योगदान देते हैं।
    • GCC अपने देश के कुशल कार्यबल और कारोबारी माहौल का प्रदर्शन करके विदेशी निवेश को बढ़ाने में उत्प्रेरक का कार्य भी कर सकते हैं।

निष्कर्ष

GCC का उदय वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की भूमिका में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन को दर्शाता है। अपनी बौद्धिक पूंजी का लाभ उठाकर, भारत एक सेवा प्रदाता से बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये एक रणनीतिक भागीदार के रूप में परिवर्तित हो रहा है। इस प्रवृत्ति का भारत के आर्थिक विकास और वैश्विक तकनीकी परिदृश्य दोनों पर स्थायी प्रभाव पड़ने की संभावना है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) क्या हैं? GCC के उदय के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था में हुए प्रमुख परिवर्तनों की विवेचना कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020) 

(a) यह मूलत: किसी सूचीबद्ध कंपनी में पूंजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है।
(b) यह मुख्यत: ऋण सृजित न करने वाला पूंजी प्रवाह है।
(c) यह ऐसा निवेश है जिससे ऋण-समाशोधन अपेक्षित होता है।
(d) यह विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाने वाला निवेश है।

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021)  

  1. विदेशी मुद्रा संपरिवर्तनीय बॉण्ड 
  2. कुछ शर्तों के साथ विदेशी संस्थागत निवेश  
  3. वैश्विक निक्षेपागार (डिपॉज़िटरी) प्राप्तियाँ  
  4. अनिवासी विदेशी जमा

उपर्युक्त में से किसे/किन्हें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सम्मिलित किया जा सकता है/किये जा सकते हैं?

(a) केवल 1, 2 और 3  
(b) केवल 3 
(c) केवल 2 और 4  
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (a) 


मेन्स:

प्रश्न. “WTO के अधिक व्यापक लक्ष्य और उद्देश्य वैश्वीकरण के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का प्रबंधन तथा प्रोन्नति करना है। परंतु (संधि) वार्ताओं की दोहा परिधि मृतोंमुखी प्रतीत होती है जिसका कारण विकसित और विकासशील देशों के बीच मतभेद है।'' भारतीय परिप्रेक्ष्य में इस पर चर्चा कीजिये। (2016)

प्रश्न. यदि 'व्यापार युद्ध' के वर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू. टी. ओ.) को ज़िंदा बने रहना है, तो उसके सुधार के कौन-कौन से प्रमुख क्षेत्र हैं, विशेष रूप से भारत के हित को ध्यान में रखते हुए? (2018)


50वाँ G7 शिखर सम्मेलन

प्रिलिम्स के लिये:

G7 शिखर सम्मेलन, G7, हिंद-प्रशांत क्षेत्र

मेन्स के लिये:

वैश्विक चुनौतियों से निपटने में G7 शिखर सम्मेलन की भूमिका, क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में क्वाड का महत्व, भारत की विदेश नीति, जलवायु परिवर्तन और वैश्विक सुरक्षा के बीच संबंध

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा  में क्यों?

भारत के प्रधानमंत्री ने 13 से 15 जून, 2024 तक इटली में आयोजित वार्षिक G7 शिखर सम्मेलन में भाग लिया। यह शिखर सम्मेलन समूह की 50वीं वर्षगाँठ पर आयोजित किया गया।

  • लगातार तीसरे कार्यकाल के लिये पदभार ग्रहण करने के पश्चात् भारतीय प्रधानमंत्री की यह प्रथम विदेश यात्रा थी।

इटली में आयोजित 50वें G7 शिखर सम्मेलन से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • G7 पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट को प्रोत्साहन:
    • 50वें G7 शिखर सम्मेलन में शामिल नेताओं ने G7 पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (Partnership for Global Infrastructure and Investment- PGII) की महत्त्वपूर्ण पहलों को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया।
    • इस पहल की शुरुआत अमेरिका और G7 सहयोगियों द्वारा वर्ष 2022 में आयोजित 48वें G7 शिखर सम्मेलन में की गई थी। इसका उद्देश्य विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचा संबंधी कमियों को दूर करना है।
    • यह निम्न और मध्यम आय वाले देशों की बृहत् आधारभूत अवसंरचना संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु "मूल्य-संचालित, उच्च प्रभाव और पारदर्शी” आधारभूत अवसंरचना साझेदारी है।
    • इसके तहत, G7 विकासशील और मध्यम आय वाले देशों को आधारभूत अवसंरचना परियोजनाएँ  प्रदान करने के लिये वर्ष 2027 तक 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर की राशि आवंटित करेगा।
  • भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEC) को समर्थन और प्रोत्साहन:
    • G7 राष्ट्रों नें IMEC को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता व्यक्त की। 
    • IMEC का लक्ष्य भारत, मध्य पूर्व और यूरोप को जोड़ने वाले रेल, सड़क और समुद्री मार्ग सहित एक व्यापक परिवहन नेटवर्क स्थापित करना है।
    • IMEC:
      • सितंबर 2023 में नई दिल्ली में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन में इस पर हस्ताक्षर किये गए थे। 
      • यह परियोजना PGII का हिस्सा है। 
      • प्रस्तावित IMEC में रेलमार्ग, शिप-टू-रेल नेटवर्क और सड़क परिवहन मार्ग शामिल होंगे जो 2 गलियारों तक विस्तृत होंगे, अर्थात्: 
        • पूर्वी गलियारा (East Corridor): यह भारत को अरब खाड़ी से जोड़ता है,
        • उत्तरी गलियारा (Northern Corridor): यह खाड़ी को यूरोप से जोड़ता है।
      • IMEC गलियारे में एक विद्युत केबल, एक हाइड्रोजन पाइपलाइन और एक हाई-स्पीड डेटा केबल भी शामिल होंगे। 
      • भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, UAE, यूरोपीय संघ, इटली, फ्राँस और जर्मनी IMEC के हस्ताक्षरकर्त्ता हैं।
  • आधारभूत अवसंरचना परियोजनाओं का समर्थन:
    • G7 ने मध्य अफ्रीका में लोबिटो कॉरिडोर तथा लूज़ोन कॉरिडोर एवं मिडल कॉरिडोर के लिये भी समर्थन व्यक्त किया।
      • लोबिटो कॉरिडोर: यह अंगोला के अटलांटिक तट पर स्थित लोबिटो के बंदरगाह शहर से कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) और ज़ाम्बिया तक विस्तृत है।
      • लूज़ोन कॉरिडोर: यह फिलीपींस के लूज़ोन द्वीप पर स्थित एक रणनीतिक आर्थिक और अवसंरचना गलियारा है। लूज़ोन फिलीपींस का सबसे बड़ा और सबसे अधिक आबादी वाला द्वीप है।
      • मिडल कॉरिडोर: इसे ट्रांस-कैस्पियन अंतर्राष्ट्रीय परिवहन मार्ग (TITR) के नाम से भी जाना जाता है, जो यूरोप और एशिया को जोड़ने वाला एक प्रमुख लॉजिस्टिक्स/रसद और परिवहन नेटवर्क है।
        • यह मार्ग जिन क्षेत्रों से होकर गुज़रता है उनके बीच आर्थिक सहयोग और व्यापार को बढ़ावा देते हुए पारंपरिक उत्तरी एवं दक्षिणी गलियारों के लिये विकल्प के रूप में कार्य करता है। 
      • ग्रेट ग्रीन वॉल इनिशिएटिव: यह अफ्रीका के साहेल क्षेत्र में मरुस्थलीकरण और मृदा अपरदन की रोकथाम करने के उद्देश्य से शुरू की गई परियोजना है। 
        • इसका उद्देश्य सहारा मरूस्थल को बढ़ने से रोकने, जैवविविधता में सुधार करने और स्थानीय समुदायों के लिये आर्थिक अवसरों की उपलब्धता में मदद हेतु अफ्रीका में पश्चिम से पूर्व तक वृक्षों की एक शृंखला विकसित करना है।
  • AI गवर्नेंस की अंतरसंचालनीयता में वृद्धि करना: 
    • G-7 के नेता अधिक निश्चितता, पारदर्शिता एवं जवाबदेहिता को बढ़ावा देने के लिये अपने AI गवर्नेंस दृष्टिकोणों के बीच अंतरसंचालनीयता में वृद्धि  के प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
    • यह जोखिमों को इस तरह से प्रबंधित करने पर ध्यान केंद्रित करता है जो नवाचार का समर्थन करें और साथ ही स्वस्थ, समावेशी एवं दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बढ़ावा दें।
  • यूक्रेन के लिये असाधारण राजस्व त्वरण (Extraordinary Revenue Acceleration- ERA) ऋण: 
    • G-7 द्वारा वर्ष 2024 के अंत तक यूक्रेन को लगभग 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त धनराशि प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की गई है।

G-7 क्या है?

  • परिचय:
    • G-7 विश्व की सर्वाधिक विकसित तथा उन्नत अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का समूह है, इस समूह में फ्राँस, जर्मनी, इटली, यूनाइटेड किंगडम, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा शामिल है।
    • यूरोपीय संघ (EU), IMF, विश्व बैंक तथा संयुक्त राष्ट्र जैसे महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के नेताओं को भी आमंत्रित किया गया है।
    • इसके शिखर सम्मेलन प्रतिवर्ष आयोजित किये जाते हैं तथा समूह के सदस्यों द्वारा बारी-बारी से इनका आयोजन किया जाता है।
  • गठन:
    • G-7 की उत्पत्ति वर्ष 1973 के तेल संकट और उसके परिणामस्वरूप उत्पन्न वित्तीय संकट- जिसके कारण 6 प्रमुख औद्योगिक देशों के नेताओं को वर्ष 1975 में एक बैठक बुलाने के लिये बाध्य होना पड़ा, की पृष्ठभूमि में हुई।
    • इसमें भाग लेने वाले देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, पश्चिम जर्मनी, जापान तथा इटली  थे।
    • कनाडा, वर्ष 1976 में इसमें शामिल हुआ, जिसके परिणामस्वरूप G7 का गठन हुआ।
    • वर्ष 1997 में रूस के G-7 में शामिल होने के बाद इसे कई वर्षों तक 'G-8' के नाम से जाना जाता था, लेकिन वर्ष 2014 में यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र पर अधिकार करने के बाद रूस को इस समूह से निष्कासित कर दिया गया जिसके बाद इसका नाम बदलकर पुनः G-7 कर दिया गया।
  • समूहों की प्रकृति:
    • अनौपचारिक समूह: G-7 एक अनौपचारिक समूह है जो औपचारिक संधियों के दायरे से बाहर करता है और इसमें स्थायी नौकरशाही का अभाव है। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र (अध्यक्षता करने वाला राष्ट्र) बारी-बारी से चर्चाओं का नेतृत्व करता है।
    • सर्वसम्मति से निर्णय: कानूनी प्रवर्तन के अभाव के बावजूद, G-7 की शक्ति इसके सदस्यों के आर्थिक एवं राजनीतिक प्रभुत्व से उत्पन्न होती है। यदि ये प्रमुख शक्तियाँ किसी कार्रवाई पर सहमत हो जाएँ तो वैश्विक मुद्दों को व्यापक तौर पर प्रभावित कर सकती है।
    • सीमित वैधानिक शक्ति: G-7 प्रत्यक्ष रूप से कानून नहीं बना सकता, हालाँकि इसकी घोषणाएँ एवं समन्वित प्रयास अंतर्राष्ट्रीय नीतियों को प्रभावित कर सकते हैं और साथ ही वैश्विक एजेंडे को भी आकार प्रदान के सकते हैं।
  • उद्देश्य:
    • संवाद को सुगम बनाना: G-7 सदस्य देशों के लिये महत्त्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर व्यापक एवं स्पष्ट चर्चा करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है। इससे उन्हें विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने के साथ-साथ आम सहमति बनाने का अवसर प्राप्त होता है।
    • सामूहिक कार्रवाई को बढ़ावा देना: इसका उद्देश्य वैश्विक चुनौतियों के लिये समन्वित राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ विकसित करना है। इसमें व्यापार समझौतों, सुरक्षा खतरों या जलवायु परिवर्तन पहलों जैसे मुद्दों पर सहयोगात्मक प्रयास शामिल हो सकते हैं।
    • एजेंडा निर्धारित करना: G-7 की चर्चाएँ एवं घोषणाएँ महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर वैश्विक संवाद की दिशा को प्रभावित कर सकती हैं। इससे अंतर्राष्ट्रीय नीतियों एवं प्राथमिकताओं को आकार देने में सहायता प्राप्त हो सकती है।
  • महत्त्व:
    • धन: वैश्विक निवल संपत्ति को 60% तक नियंत्रित करना।
    • विकास: वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 46% भाग को संचालित करना।
    • जनसंख्या: यह समूह विश्व की 10% आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।

नोट

  • भारत, G-7 का सदस्य नहीं है। तथापि, भारत ने क्रमशः फ्राँस, यू.के. तथा जर्मनी द्वारा क्रमशः वर्ष 2019, वर्ष 2021 एवं वर्ष 2022 में आयोजित G-7 शिखर सम्मेलन में अतिथि के रूप में भाग लिया।

G-7 में भारत की भूमिका महत्त्वपूर्ण क्यों है?

  • भारत का आर्थिक महत्त्व:
    • 3.57 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद (नॉमिनल) के साथ, भारत की अर्थव्यवस्था G-7 के 4 सदस्य देशों - फ्राँस, इटली, यूके तथा कनाडा से बड़ी है। 
    • IMF के अनुसार, भारत विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
    • भारत में प्रचुर मात्रा में युवा और कुशल कार्यबल, इसकी बाज़ार क्षमता, कम विनिर्माण लागत तथा व्यवसाय हेतु अनुकूल परिवेश इसे एक आकर्षक निवेश गंतव्य बनाते हैं।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत का सामरिक महत्त्व:
    • भारत, चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने में (विशेष रूप से हिंद महासागर में) पश्चिम के लिये एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार के रूप में उभरा है।
    • अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, जर्मनी और जापान के साथ भारत की रणनीतिक साझेदारियाँ तथा इटली के साथ तेज़ी से बढ़ते संबंध, उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता बनाते हैं।
  • यूरोपीय ऊर्जा संकट से निपटने में भारत की भूमिका:
    • रूसी तेल (Russian Oil) को रियायती दरों पर प्राप्त करने तथा यूरोप को परिष्कृत ईंधन की आपूर्ति करने की भारत की क्षमता ने उसे यूरोपीय ऊर्जा संकट से निपटने में एक महत्त्वपूर्ण अभिकर्त्ता बना दिया है।
      • यूक्रेन में युद्ध के कारण यूरोप में ऊर्जा संकट उत्पन्न हो गया है क्योंकि यूरोप के देशों ने रूस से ऊर्जा आयात में कटौती कर दी है। भारत रूसी तेल के लिये पारगमन देश के रूप में काम कर रहा है। इस तेल को पुनः भारत में परिष्कृत किया जाता है और यूरोप को निर्यात किया जाता है, जिससे उनकी अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव कम करने में मदद मिलती है।
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष में मध्यस्थता के लिये भारत की क्षमता:
    • रूस और पश्चिमी देशों के साथ भारत के दीर्घकालिक संबंध उसे यूक्रेन संघर्ष में संभावित मध्यस्थ के रूप में स्थापित करते हैं। अपने तटस्थ रुख का लाभ उठाकर भारत दोनों पक्षों के लिये एक मार्ग का सुझाव दे सकता है तथा युद्ध को समाप्त करने हेतु वार्तालाप और कूटनीति को को सुगम बना सकता है।

1973-74 का तेल संकट

  • परिचय:
    • यह तेल की कीमतों में अचानक वृद्धि और आपूर्ति में कमी की अवधि को संदर्भित करता है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था अस्थिर हो गई थी, क्योंकि तेल कई देशों के लिये ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत था।
  • कारण:
    • योम किप्पुर युद्ध (अक्टूबर 1973): मिस्र और सीरिया ने इज़रायल पर अचानक हमला कर दिया। संघर्ष के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका ने इज़रायली सेना को पुनः आपूर्ति करके हस्तक्षेप किया।
    • ओपेक का राजनीतिक लाभ: पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (Organization of the Petroleum Exporting Countries -OPEC), जिसमें प्रमुख तेल उत्पादक देश शामिल हैं, ने प्रतिक्रियास्वरूप तेल को राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग करने का निर्णय लिया।
  • OPEC की कार्रवाई:
    • तेल के व्यापार पर प्रतिबंध: OPEC, विशेषकर इसके अरब सदस्यों ने इज़रायल का समर्थन करने वाले देशों को किये जाने वाले तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका और कुछ यूरोपीय देश भी शामिल थे।
    • उत्पादन में कटौती: ओपेक ने समग्र तेल उत्पादन में भी कटौती कर दी, जिससे आपूर्ति और भी कठिन हो गई।
  • प्रभाव:
    • आपूर्ति में कमी: प्रतिबंध और उत्पादन में कटौती के कारण वैश्विक स्तर पर तेल की कमी हो गई। कई देशों में गैस स्टेशनों पर लंबी लाइनें लग गईं और राशनिंग (अर्थ- दुर्लभ संसाधनों, खाद्य पदार्थों, औद्योगिक उत्पादन आदि के वितरण पर कृत्रिम नियंत्रण) आवश्यक हो गया।
    • मूल्य वृद्धि: तेल की उपलब्धता कम होने से कीमतों में भारी वृद्धि (3 अमेरिकी डॉलर से 11 अमेरिकी डॉलर तक) हुई।
    • आर्थिक मंदी: तेल की बढ़ती कीमतों का व्यापक असर हुआ। परिवहन लागत में वृद्धि हुई, जिससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ गईं। इससे कई देशों में मुद्रास्फीति तथा आर्थिक स्थिरता को बढ़ावा मिला।

पश्चिम और चीन-रूस के बीच शक्ति संघर्ष को संतुलित करने में भारत के सामने कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • रक्षा निर्भरता: 60% से अधिक सैन्य उपकरणों के लिये भारत की रूस पर निर्भरता एक जटिल स्थिति उत्पन्न करती है। पश्चिमी देशों और रूस  के बीच तनावपूर्ण संबंध आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकते हैं और भारत को अपनी रक्षा साझेदारी में विविधता लाने हेतु विवश कर सकते हैं।
  • आर्थिक अंतर-निर्भरता: अमेरिका और चीन दोनों के साथ आर्थिक संबंधों को गहरा करने से भारत पर संभावित रूप से दबाव बढ़ सकता है। इन प्रतिस्पर्द्धी संस्थाओं के साथ व्यापार संबंधों को संतुलित करना महत्त्वपूर्ण होगा।
  • भिन्न दृष्टिकोण: रूस और चीन का सामना कैसे किया जाए इस बारे में पश्चिमी देशों के बीच व्याप्त मतभेद भारत के लिये अनिश्चितता पैदा करते हैं। एक गुट के साथ बहुत अधिक निकटता से जुड़ना दूसरे गुट को अलग-थलग कर सकता है।
  • घरेलू राजनीतिक उथल-पुथल: पश्चिमी लोकतंत्रों में आंतरिक राजनीतिक विभाजन नीतिगत असंगतियों को जन्म दे सकता है, जिससे भारत की रणनीतिक गणनाएँ और अधिक जटिल हो सकती हैं।
  • सीमा विवाद: चीन के साथ अनसुलझे क्षेत्रीय विवाद, साथ ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता से भारत के लिये सुरक्षा संबंधी खतरे उत्पन्न होते हैं।
  • भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: इस क्षेत्र में अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा से भारत को ऐसे मुद्दों पर किसी एक पक्ष का समर्थन करने के लिये मज़बूर होना पड़ सकता है जो संभवतः प्रत्यक्ष रूप से इसके राष्ट्रीय हितों के अनुकूल न हों।

निष्कर्ष:

G7 में भारत की भागीदारी आर्थिक, भू-राजनीतिक एवं रणनीतिक चुनौतियों के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी आर्थिक स्थिति और रणनीतिक महत्त्व से लेकर यूरोपीय ऊर्जा संकट में भूमिका के साथ संघर्ष की स्थिति में मध्यस्थता के रूप में G7 शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी निर्णायक है। जैसे-जैसे वैश्विक व्यवस्था विकसित हो रही है, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के भविष्य को आकार देने में भारत के साथ G7 का सहयोग भी आवश्यक होगा।।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

G7 समूह में भारत की भागीदारी के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये। इसके सदस्यों के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों के बारे में बताते हुए भारत के समक्ष विद्यमान चुनौतियों पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. ‘अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (Intended Nationally Determined Contributions)’ पद को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में देखा जाता है? (2016)

(a) युद्ध-प्रभावित मध्य-पूर्व के शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा दिये गए वचन
(b) जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना
(c) एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक) की स्थापना करने में सदस्य राष्ट्रों द्वारा किया गया पूंजी योगदान
(d)  धारणीय विकास लक्ष्यों के बारे में विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना

उत्तर: (b)


प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. इस समझौते पर UN के सभी सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किये और यह वर्ष 2017 से लागू होगा।
  2. यह समझौता ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को सीमित करने का लक्ष्य रखता है जिससे इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान की वृद्धि उद्योग-पूर्व स्तर (Pre Industrial Level) से 20C  या कोशिश करें कि 1.50C से भी अधिक न होने पाए।
  3. विकसित देशो ने वैश्विक तापन में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकारा और जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विकासशील देशों की सहायता के लिये 2020 से प्रतिवर्ष 1000 अरब डॉलर देने ई प्रतिबद्धता जताई।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं?

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया एवं न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब एवं वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया

उत्तर : (a)


मेन्स

प्रश्न. ‘जलवायु परिवर्तन’ एक वैश्विक समस्या है। भारत जलवायु परिवर्तन से किस प्रकार प्रभावित होगा? जलवायु परिवर्तन के द्वारा भारत के हिमालयी और समुद्रतटीय राज्य किस प्रकार प्रभावित होंगे? (2017)

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021)


चाइल्ड फूड पाॅवर्टी

प्रिलिम्स के लिये:

चाइल्ड फूड पाॅवर्टी, बाल कुपोषण, चाइल्ड स्टंटिंग, UNICEF, मध्याह्न भोजन (MDM) योजना, पोषण अभियान, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013

मेन्स के लिये:

बाल खाद्य गरीबी पर UNICEF की रिपोर्ट, बच्चों के विकास पर इसका प्रभाव, वैश्विक स्तर पर गंभीर बाल खाद्य गरीबी को समाप्त करने के उपाय।

स्रोत: UNICEF  

चर्चा में क्यों?

UNICEF की हालिया रिपोर्ट- 'चाइल्ड फूड पाॅवर्टी: न्यूट्रीशन डिप्राईवेशन इन अर्ली चाइल्डहुड' में प्रारंभिक बाल्यावस्था में चाइल्ड फूड पाॅवर्टी की स्थिति, प्रवृत्तियों एवं असमानताओं का विश्लेषण किया गया है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

  • वैश्विक स्तर पर 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 181 मिलियन बच्चे (इस आयु वर्ग के चार बच्चों में से एक) गंभीर फूड पाॅवर्टी/खाद्य अभाव का सामना कर रहे हैं।
    • UNICEF के वैश्विक डेटाबेस, 2023 के अनुसार, भारत के 40% बच्चे गंभीर खाद्य अभाव का सामना कर रहे हैं।
  • गंभीर चाइल्ड फूड पाॅवर्टी के समाधान की दिशा में प्रगति धीमी बनी हुई है लेकिन कुछ क्षेत्र और देश इस दिशा में सही प्रगति का संकेत दे रहे हैं।
  • चाइल्ड फूड पाॅवर्टी की गंभीरता से गरीब एवं संपन्न, दोनों ही परिवारों के बच्चे प्रभावित होते हैं, इससे प्रदर्शित होता है कि घरेलू आय इस मुद्दे के समाधान का एकमात्र कारक नहीं है।
  • गंभीर फूड पाॅवर्टी का सामना कर रहे बच्चों को पोषक तत्त्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ न मिलने के कारण अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों का सेवन करना पड़ता है।
  • वैश्विक खाद्य एवं पोषण संकट के साथ ही स्थानीय संघर्ष एवं जलवायु असंतुलन से यह स्थिति और विकराल (खासकर कमज़ोर देशों में) हो जाती है।
    • कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य और सोमालिया जैसे क्षेत्रों के सुभेद्य/कमज़ोर समुदायों में 80% से अधिक अभिभावकों से यह पता चला है कि उनके बच्चे धन या अन्य संसाधनों की कमी के कारण पूरे दिन के लिये पर्याप्त भोजन उपभोग का नहीं कर पा रहे हैं।
  • चाइल्ड फूड पाॅवर्टी, बाल कुपोषण का प्रमुख कारण है। चाइल्ड स्टंटिंग के उच्च प्रसार वाले देशों में गंभीर चाइल्ड फूड पाॅवर्टी का प्रसार तीन गुना अधिक है।

चाइल्ड फूड पाॅवर्टी:

  • परिचय: 
    • UNICEF के अनुसार चाइल्ड फूड पाॅवर्टी का आशय प्रारंभिक बाल्यावस्था में (5 वर्ष से कम उम्र) पौष्टिक तथा विविध आहार तक पहुँच न होने के साथ उसका उपभोग करने में असमर्थता है।
    • चाइल्ड फूड पाॅवर्टी या बाल कुपोषण शब्द के तहत दो विशिष्ट समूह शामिल हैं:
      • इसमें पहला समूह है 'बाल अल्पपोषण- जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं-
        • चाइल्ड स्टंटिंग Child Stunting (आयु के अनुसार कम ऊँचाई), 
        • चाइल्ड वेस्टिंग Child Wasting (ऊँचाई के अनुसार कम वज़न)
        • अल्प-वज़न (आयु के अनुसार कम वज़न) और
        • पोषक तत्त्वों का अभाव (प्रमुख विटामिन एवं खनिजों का अभाव)
      • इसमें दूसरा समूह है बच्चों का अधिक वज़न, मोटापा और आहार संबंधी आदतें। 
        • बाल्यावस्था में अधिक वज़न तब होता है जब बच्चों द्वारा भोजन और पेय पदार्थों से ग्रहण की जाने वाली कैलोरी, उनकी ऊर्जा आवश्यकताओं से अधिक हो जाती है।

नोट

  • छिपी हुई भूख (Hidden Hunger), कुपोषण का एक रूप है जिसे सूक्ष्मपोषकों की कमी के रूप में भी जाना जाता है। यह स्थिति व्यक्तियों को अपने आहार में आवश्यक विटामिन और खनिजों की पर्याप्त मात्रा नहीं मिलने पर होती है।

चाइल्ड फूड पाॅवर्टी के प्रमुख कारण क्या हैं?

  • अनुपयुक्त खाद्य वातावरण: 
    • ग्रामीण क्षेत्रों में व्यवधान: प्रतिकूल मौसम, विषम जलवायु, असुरक्षा अथवा खराब बुनियादी ढाँचा ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में खाद्य के उत्पादन और उसकी पहुँच को बाधित करते हैं। 
      • उदाहरण: सोमालिया जैसे अफ्रीकी देशों में सूखे और बाढ़ से खाद्य उत्पादन प्रभावित हुआ जिससे उन क्षेत्रों में बच्चों के लिये विविध व स्वस्थ खाद्य पदार्थों तक पहुँच सीमित हो गई। 
    • अस्वास्थ्यकर विकल्पों की अधिकता: विश्व स्तर पर, शहरी क्षेत्रों में स्थित दुकानों और बाज़ारों में अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ (कम पोषक तत्त्व, अस्वास्थ्यकर वसा, उच्च शुगर और नमक की बहुलता वाले) उपलब्ध होते हैं जिनका अत्यधिक विज्ञापन किया जाता है और प्रायः ये अन्य स्वास्थ्यवर्द्धक विकल्पों की तुलना में सस्ते होते हैं।
  • प्रारंभिक बाल्यावस्था के दौरान आहार की अनुपयुक्त पद्धतियाँ:
    • पीढ़ीगत ज्ञान अंतराल: बच्चों को आहार देने के तरीकों के बारे में गलत जानकारी और उचित मार्गदर्शन की कमी पीढ़ियों से चली आ रही है, जिसके कारण छोटे बच्चों के लिये अपर्याप्त आहार की समस्या बनी हुई है।
    • लैंगिक असमानता: कुछ देशों में ऐसे भेदभावपूर्ण लैंगिक मानदंड विद्यमान हैं जो महिलाओं की सूचना तक पहुँच और आय सृजन के माध्यमों को सीमित करते हैं, जिससे बच्चों के आहार के बारे में उचित निर्णय लेने की उनकी क्षमता बाधित होती है।
  • घरेलू आय निर्धनता:
    • पौष्टिक खाद्य पदार्थों के वहन की अक्षमता: पौष्टिक खाद्य पदार्थ, प्रमुख तौर पर पशु से प्राप्त होने वाले प्रोटीन (अंडे, माँस, मछली) और फलों व सब्जियों की कीमत, प्रायः मुख्य खाद्य पदार्थों की की अपेक्षा अधिक होती है। इससे निम्न आय अर्जित करने वाले परिवारों के लिये अपने बच्चों के लिये संतुलित आहार का खर्च वहन करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 
      • उदाहरण: मुद्रास्फीति के कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि होती है जिससे गरीबी में रहने वाले परिवारों की पौष्टिक खाद्य पदार्थों की पहुँच बाधित हो सकती है, जिससे उन्हें कम पौष्टिक आहार वाले विकल्पों के चयन को प्राथमिकता देनी पड़ती है।
  • खाद्य एवं स्वास्थ्य प्रणालियों की विफलता:
    • खाद्य प्रणालियाँ परिवारों और बच्चों के लिये वहनीय, विविध और पौष्टिक भोजन विकल्प प्रदान करने में विफल हो रही हैं।
    • स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के अंतर्गत बच्चों के आहार के संबंध में पर्याप्त जानकारी, परामर्श और सहायता तक पहुँच का अभाव परिवारों की उचित विकल्प का चयन करने की क्षमता को बाधित करता है।
    • इसके अतिरिक्त, अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा जाल के कारण, विशेषकर आर्थिक तंगी के दौरान, सुभेद्य बच्चों के लिये कुपोषण का खतरा बढ़ जाता है।

चाइल्ड फूड पाॅवर्टी के प्रभाव क्या हैं?

  • विकास एवं वृद्धि में बाधा:
    • शारीरिक विकास: कुपोषण, विशेष रूप से अल्पपोषण, शारीरिक विकास को अवरुद्ध कर सकता है। अवरुद्ध विकास माँसपेशियों और हड्डियों के विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है, जिससे समग्र शारीरिक स्वास्थ्य एवं कद प्रभावित होता है।
    • संज्ञानात्मक विकास: कुपोषित बच्चों में प्राय: मस्तिष्क के विकास के लिये ज़रूरी पोषक तत्त्वों की कमी होती है। इससे संज्ञानात्मक कार्य में कमी, सीखने एवं शैक्षणिक क्षमता में कमी हो सकती है।
  • कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र:
    • कुपोषण प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करता है, जिससे बच्चे डायरिया, निमोनिया एवं खसरा जैसी संक्रामक बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं। ये बीमारियाँ पोषण संबंधी स्थिति को और अधिक खराब कर सकती हैं, जिससे एक दुष्चक्र बन सकता है।
    • गंभीर कुपोषण से बच्चों में मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है, विशेषकर जीवन के पहले पाँच वर्षों में।
  • दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएँ:
    • दीर्घकालिक बीमारियाँ: बाल्यावस्था में कुपोषण के कारण जीवन में आगे चलकर मधुमेह, हृदय रोग और कुछ कैंसर जैसी दीर्घकालिक बीमारियाँ होने का जोखिम बढ़ जाता है। यह लंबे समय में स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों पर अत्यधिक बोझ डाल सकता है।
    • उत्पादकता में कमी: कुपोषण के कारण होने वाली संज्ञानात्मक एवं शारीरिक सीमाएँ वयस्क होने पर बच्चे की अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच में बाधक हो सकती हैं। इसका परिणाम कार्यबल में कम उत्पादकता के साथ-साथ आर्थिक अवसरों की कमी के रूप में सामने आ सकता है।
  • निर्धनता के चक्र का बने रहना:
    • कुपोषण का अनुभव करने वाले बच्चे प्राय: निर्धनता की पृष्ठभूमि से आते हैं। उनके स्वास्थ्य, विकास एवं शिक्षा पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव गरीबी या निर्धनता से बचने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकते हैं, जिससे वे और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ एक दुष्चक्र में फँस सकती हैं।

विश्व स्तर पर गंभीर चाइल्ड फूड पाॅवर्टी को समाप्त करने की दिशा में कौन-से कदम उठाए जा सकते हैं?

  • नीति-आधारित लक्ष्य निर्धारित करना:
    • प्रासंगिक क्षेत्रीय एवं बहुक्षेत्रीय योजनाओं में समयबद्ध लक्ष्यों और परिणामों के साथ चाइल्ड फूड पाॅवर्टी उन्मूलन को एक नीतिगत अनिवार्यता के रूप में देखा जाना चाहिये।
  • खाद्य प्रणालियों में परिवर्तन:
    • सुलभता पर ध्यान देना: पौष्टिक खाद्य पदार्थों को विशेष रूप से आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये सरलता से उपलब्ध कराना महत्त्वपूर्ण है। इसमें शामिल हैं:
      • पोषक तत्त्वों से भरपूर फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिये अनुदान एवं प्रशिक्षण के माध्यम से छोटे किसानों को सहायता प्रदान करना।
      • खाद्य अपशिष्ट को कम करने के साथ-साथ विशेष रूप से दूर-दराज के क्षेत्रों में विविध खाद्य समूहों तक वर्ष भर पहुँच सुनिश्चित करने के लिये भंडारण सुविधाओं एवं परिवहन नेटवर्क जैसे बुनियादी ढाँचे में निवेश करना।
    • सामर्थ्य:उच्च खाद्य कीमतें एक बड़ी बाधा हैं। निम्न आय वाले परिवारों के लिये लक्षित खाद्य सब्सिडी, स्कूल फीडिंग कार्यक्रम तथा मूल्य स्थिरीकरण उपायों जैसी पहल इस अंतराल को कम करने में सहायता प्रदान कर सकती हैं।
  • खाद्य उद्योग का विनियमन:
    • अस्वास्थ्यकर विपणन पर रोक लगाना: बच्चों को लक्षित करने वाले अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों और पेय पदार्थों के विपणन को प्रतिबंधित करना आवश्यक है।
      • इसमें विज्ञापन सामग्री, प्लेसमेंट (उदाहरण के लिये स्कूलों के पास) और आयु प्रतिबंधों संबंधी विनियमों को लागू करना शामिल हो सकता है।
    • पारदर्शिता को बढ़ावा देना: खाद्य लेबलिंग में पारदर्शिता को बढ़ावा देने से परिवारों को सूचित विकल्प चुनने में मदद मिलती है। चीनी, नमक और अस्वास्थ्यकर वसा सहित पोषण सामग्री को उजागर करने वाली स्पष्ट लेबलिंग प्रणाली उपभोक्ताओं को सशक्त बना सकती है।
  • स्वास्थ्य प्रणालियों का सशक्तीकरण:
    • प्रारंभिक बाल्यावस्था पोषण सेवाएँ: प्रसवपूर्व देखभाल और शिशु देखभाल जैसी मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं में पोषण परामर्श और सहायता को एकीकृत करना महत्त्वपूर्ण है।
      • स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर पोषक तत्त्वों के सेवन को अनुकूलतम बनाने के लिये शिशुओं और छोटे बच्चों के आहार संबंधी उपयुक्त तरीकों पर मार्गदर्शन कर सकते हैं।
    • सामुदायिक पहुँच: परिवारों के लिये पोषण शिक्षा कार्यक्रम बच्चों के विकास हेतु संतुलित आहार के महत्त्व के बारे में जागरूकता को बढ़ा सकते हैं।
    • सामाजिक सुरक्षा तंत्र: कमज़ोर परिवारों को आय सहायता प्रदान करने वाले सामाजिक सुरक्षा तंत्र को मज़बूत करने से पौष्टिक भोजन प्राप्त करने की उनकी क्षमता में सुधार हो सकता है।
  • डेटा और निगरानी:
    • बेहतर डेटा संग्रहण: विभिन्न क्षेत्रों और जनसांख्यिकी में चाइल्ड फूड पाॅवर्टी की व्यापकता और गंभीरता का सटीक आकलन करने के लिये मज़बूत डेटा संग्रहण प्रणालियों में निवेश करना आवश्यक है।
      • इससे लक्षित हस्तक्षेप संभव हो पाता है तथा राष्ट्रीय और वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में प्रगति की निगरानी की जा सकती है।
    • शीघ्र निदान: बच्चों में बढ़ती खाद्य गरीबी का शीघ्र पता लगाने से, विशेष रूप से नाजुक और मानवीय संदर्भों में, स्थिति को और अधिक खराब होने से रोकने हेतु समय पर प्रतिक्रिया और संसाधन आवंटन संभव हो जाता है।

बाल खाद्य गरीबी से संबंधित भारतीय पहल क्या हैं?

निष्कर्ष

यूनिसेफ की यह रिपोर्ट चाइल्ड फूड पाॅवर्टी का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करती है, जिसमें इसकी चिंताजनक व्यापकता और इसके हानिकारक परिणामों पर प्रकाश डाला गया है। उल्लिखित सिफारिशों के माध्यम से निर्णायक कार्रवाई करके, सरकारें, साझेदार तथा संगठन एक साथ मिलकर एक ऐसे विश्व का निर्माण कर सकते हैं जहाँ सभी बच्चों को पौष्टिक एवं विविध आहार उपलब्ध हो, जिससे वे अपनी पूरी क्षमता तक पहुँच सकें व गरीबी के चक्र को तोड़ सकें।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: चाइल्ड फूड पाॅवर्टी क्या है? बच्चों के विकास पर इसके प्रभाव पर चर्चा करते हुए, वैश्विक स्तर पर गंभीर बाल खाद्य गरीबी को समाप्त करने के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से वह/वे सूचक है/हैं जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भूखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग उपयोग किया गया है? (2016)

  1. अल्पपोषण
  2. शिशु वृद्धिरोधन 
  3. शिशु मृत्यु दर

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) 1, 2 और 3
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: C


मेन्स:

प्रश्न. आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैं कि अधिकरण सामान्य न्यायालयों की अधिकारिता को कम करते हैं? उपर्युक्त को दृष्टिगत रखते हुए भारत में अधिकरणों की संवैधानिक वैधता तथा सक्षमता की विवेचना कीजिये? (2018)