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अंतर्राष्ट्रीय संस्थान/संगठन


महत्त्वपूर्ण संस्थान

G-7

  • 12 Dec 2019
  • 12 min read

 Last Updated: July 2022 

G7 में कनाडा, फ्रांँस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। यह एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसका गठन वर्ष 1975 में उस समय की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं द्वारा वैश्विक मुद्दों पर चर्चा करने के लिये एक अनौपचारिक मंच के रूप में किया गया था। इसके तहत वैश्विक आर्थिक व्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और ऊर्जा नीति जैसे साझा हित के मुद्दों पर चर्चा करने के लिये वार्षिक रूप से बैठक की जाती है।

  • हाल ही में 48वें G-7 शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री ने G-7 राष्ट्रों को देश में उभर रही स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के विशाल बाज़ार में निवेश करने के लिये आमंत्रित किया।
  • G-7 की वर्ष 2022 की अध्यक्षता जर्मनी के पास है।
  • जर्मन प्रेसीडेंसी ने अर्जेंटीना, भारत, इंडोनेशिया, सेनेगल और दक्षिण अफ्रीका को G-7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित किया है।

इतिहास

  • G-7 की उत्पत्ति 1973 के तेल संकट के मद्देनज़र फ्रांँस, पश्चिम जर्मनी, यू.एस., ग्रेट ब्रिटेन और जापान (पाँच देशों के समूह/Group of Five) के वित्त मंत्रियों की अनौपचारिक बैठक से हुई।
    • वैश्विक तेल संकट पर आगे की चर्चा के लिये वर्ष 1975 में फ्रांँस के राष्ट्रपति ने पश्चिम जर्मनी, यू.एस., ग्रेट ब्रिटेन, जापान और इटली के नेताओं को रामबौइलेट (फ्रांस) में आमंत्रित किया था।

सदस्यता

  • फ्रांँस, पश्चिम जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1975 में छह देशों के समूह (Group of Six) का गठन किया ताकि औद्योगिक लोकतंत्रों की आर्थिक चिंताओं को दूर करने के लिये एक मंच प्रदान किया जा सके।
    • 1976 में कनाडा को भी समूह में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया और सभी G-7 राष्ट्रों की पहली बैठक संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वर्ष 1976 में प्यूर्टो रिको में आयोजित की गई।
  • यूरोपीय संघ ने "गैर-गणनीय" (Non enumerated) सदस्य के रूप में वर्ष 1981 से G-7 बैठकों में पूर्णकालिक भागीदारी प्रारंभ की है।
    • इसका प्रतिनिधित्व यूरोपीय परिषद के अध्यक्षों द्वारा किया जाता है, जो यूरोपीय संघ के सदस्य देशों के नेताओं और यूरोपीय आयोग (यूरोपीय संघ की कार्यकारी शाखा) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • 1997 में इस मूल सात देशों के समूह में रूस के शामिल होने के बाद G-7 को कई वर्षों तक G-8 के रूप में जाना जाता था। G-7 में रूस को शामिल करने का उद्देश्य 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद पूर्वी और पश्चिमी देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना था।
    • रूस द्वारा यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र के अधिग्रहण के बाद वर्ष 2014 में रूस की सदस्यता रद्द कर दी गई और यह समूह पुनः G-7 कहा जाने लगा।
  • इसकी सदस्यता के लिये कोई औपचारिक मानदंड नहीं है, लेकिन इसके सभी प्रतिभागी अति विकसित व लोकतांत्रिक देश हैं। G-7 के सदस्य देशों का कुल सकल घरेलू उत्पाद वैश्विक अर्थव्यवस्था का लगभग 50 प्रतिशत है और यह विश्व की 10 प्रतिशत आबादी का प्रतिनिधित्व करता है।

शिखर सम्मेलन में भागीदारी

  • इसके शिखर सम्मेलन का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है और समूह के सदस्यों द्वारा इसकी मेज़बानी बारी-बारी से की जाती है। मेज़बान देश न केवल G-7 की अध्यक्षता करता है, बल्कि उस वर्ष के कार्य-विषय/एजेंडा का भी निर्धारण करता है।
  • मेज़बान देश द्वारा वैश्विक नेताओं को शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिये विशेष आमंत्रण दिया जाता है। चीन, भारत, मेक्सिको और ब्राज़ील जैसे देशों ने विभिन्न अवसरों पर इसके शिखर सम्मेलनों में भाग लिया है।
    • G-7 के शिखर सम्मेलन में यूरोपीय संघ, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र जैसे महत्तवपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के नेताओं को भी आमंत्रित किया जाता है।

शेरपा (Sherpas)

  • चर्चा के लिये आरक्षित विषयों और अनुवर्ती बैठकों सहित शिखर सम्मेलन के ज़मीनी स्तर के कार्य "शेरपा" द्वारा किए जाते हैं, जो आमतौर पर व्यक्तिगत प्रतिनिधि या राजदूत जैसे राजनयिक होते हैं।

G-7

G-7 और G-20

  • G-20 की स्थापना 1997-1998 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद 1999 में हुई थी, जिसकी आरंभिक बैठक में वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों ने भाग लिया था।
  • वर्ष 2008 के वित्तीय संकट की प्रतिक्रिया के रूप में वाशिंगटन डी.सी. में आयोजित G-20 के उद्घाटन शिखर सम्मेलन में राष्ट्र प्रमुख स्तर के प्रतिनिधियों की भागीदारी सुनिश्चित की गई।
  • G-7 मुख्य रूप से वैश्विक राजनीति से संबंध रखता है, जबकि G-20 एक व्यापक समूह है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर केंद्रित है। इसे ‘वित्तीय बाज़ारों और विश्व अर्थव्यवस्था पर शिखर सम्मेलन’ के रूप में भी जाना जाता है यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के 80 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करता है।
  • G-20 में G-7 देशों के अलावा अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, चीन, भारत, इंडोनेशिया, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया और तुर्की शामिल हैं।

G-7 की शक्ति कमज़ोर कैसे हुई?

  • शक्ति में सूक्ष्म परिवर्तन: हालाँकि वर्ष 2008 में G-8 ने खाद्य मुद्रास्फीति और विश्व के अन्य सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की किंतु वह वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट पर संवाद करने से चूक गया।
    • जबकि इसी शिखर सम्मेलन में G-20 ने इस समस्या के मूल को संबोधित करते हुए संयुक्त राज्य अमेरिका से अपने वित्तीय बाज़ारों को अधिक विनियमित करने का अनुरोध किया।
    • इसके उपरांत ही यह स्पष्ट हो गया कि वित्तीय संकट से वृहत रूप से बचने में सफल रहे G-20 देशों के उभरते हुए बाज़ार किसी भी वैश्विक पहल के नैसर्गिक आवश्यक भागीदार हैं।
    • G-20 शिखर सम्मेलन का उभार वैश्विक नेताओं की सबसे महत्त्वपूर्ण बैठक के रूप में हुआ और इसने G-8 के महत्त्व को कम कर दिया।
    • परिणामस्वरूप इसने पुरानी विश्व व्यवस्था के अंत और एक नई व्यवस्था के आरंभ का संकेत दिया।
  • आलोचकों का मत है कि G-7 की छोटी और अपेक्षाकृत समरूप सदस्यता सामूहिक निर्णयन को तो बढ़ावा देती है, लेकिन इसमें प्रायः उन निर्णयों को अंतिम परिणाम तक पहुँचाने की इच्छाशक्ति का अभाव होता है और साथ ही इसकी सदस्यता से महत्त्वपूर्ण उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं को वंचित रखना इसकी एक बड़ी कमी है।
    • G-7 एक अनौपचारिक समूह है और निर्णयों को अनिवार्य रूप से लागू करने की क्षमता नहीं रखता, इसलिये शिखर सम्मेलन के अंत में नेताओं द्वारा की गई घोषणाएँ बाध्यकारी नहीं होतीं।
  • G-20 (जो भारत, चीन, ब्राज़ील जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है) के उभार ने G-7 जैसे पश्चिमी देशों के वर्चस्व वाले समूह को चुनौती दी है।

G-20 and G-7

G-7 और FATF

  • धनशोधन (Money Laundering) पर बढ़ती वैश्विक चिंता को प्रतिक्रिया स्वरूप वर्ष 1989 में पेरिस में G-7 द्वारा धनशोधन की समस्या के समाधान हेतु वित्तीय कार्रवाई कार्यबल (Financial Action Task Force on Money Laundering-FATF) का गठन किया गया।
    • वर्ष 2001 में इसकी कार्रवाई के दायरे का विस्तार करते हुए आतंकवाद के वित्तपोषण को भी इसमें शामिल कर दिया गया।
  • बैंकिंग प्रणाली और वित्तीय संस्थानों के समक्ष विद्यमान खतरे को चिह्नित करते हुए G-7 के राष्ट्रों या सरकार प्रमुखों और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष ने G-7 सदस्य देशों, यूरोपीय आयोग आठ अन्य देशों के सयुंक्त टास्क फोर्स या कार्य बल का गठन किया।
  • FATF का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि "वित्तीय प्रणाली और वृहत अर्थव्यवस्था को मनी लॉन्ड्रिंग के खतरे तथा आतंकवाद के वित्तपोषण व प्रसार से बचाया जाए ताकि वित्तीय क्षेत्र की अखंडता मज़बूत हो और बचाव एवं सुरक्षा में योगदान दिया जा सके।"

G-7 शिखर सम्मेलन की अन्य मुख्य विशेषताएंँ:

  • पीजीआईआई (PGII):
    • विकासशील और मध्यम आय वाले देशों को "गेम-चेंजिंग" और "पारदर्शी" बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को वितरित करने हेतु G-7 ने पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट (Partnership for Global Infrastructure and Investment-PGII) के तहत सालाना सामूहिक रूप से वर्ष 2027 तक 600 बिलियन डॉलर जुटाने की घोषणा की।
  • लाइफ कैंपेन:
    • भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर लाइफ (लाइफस्टाइल फॉर एन्वायरनमेंट) अभियान/कैम्पैन पर प्रकाश डाला गया।
      • इस अभियान का लक्ष्य पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को प्रोत्साहित करना है।
  • रूस-यूक्रेन संकट पर रुख:
    • रूस-यूक्रेन संकट के चलते ऊर्जा की कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ गई हैं। भारतीय प्रधानमंत्री ने अमीर और गरीब देशों की आबादी के बीच समान ऊर्जा वितरण की आवश्यकता को संबोधित किया।
    • रूस-यूक्रेन युद्ध पर प्रधानमंत्री ने अपना रुख दोहराया कि शत्रुता का तत्काल अंत होना चाहिये और बातचीत एवं कूटनीति का रास्ता चुनकर एक संकल्प पर पहुंँचा जाना चाहिये।
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