डेली न्यूज़ (17 Apr, 2025)



तमिलनाडु द्वारा केंद्र-राज्य संबंध हेतु समीक्षा समिति का गठन

स्रोत:द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

तमिलनाडु ने केंद्र-राज्य संबंधों की समीक्षा करने तथा संवैधानिक प्रावधानों, शक्ति हस्तांतरण और राज्य सरकार की स्वायत्तता पर ध्यान केंद्रित करते हुए राज्य की स्वायत्तता को मज़बूत करने के उपायों की सिफारिश करने के लिये तीन सदस्यीय उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है।

केंद्र-राज्य संबंधों में प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • विधायी शक्तियों का ह्रास: कई विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया है, जिससे शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर राज्यों का नियंत्रण कम हो गया है।
    • स्वर्ण सिंह समिति (1976) की सिफारिश के बाद 42वें संशोधन अधिनियम 1976 ने शिक्षा, वानिकी, वन्यजीव और पक्षी संरक्षण, न्याय प्रशासन और बाट व माप जैसे पाँच प्रमुख विषयों को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया।
  • राष्ट्रीय नीतियाँ: राज्यों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि राष्ट्रीय नीतियाँ प्रायः राज्य-विशिष्ट नीतियों पर हावी हो जाती हैं, जिससे राज्यों की यह स्वायत्तता सीमित हो जाती है कि वे अपने लोगों के लिये क्या सर्वोत्तम है।
    • तमिलनाडु ने चिंता जताई है कि केंद्र सरकार द्वारा मेडिकल प्रवेश के लिये राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (NEET) के कार्यान्वयन ने राज्य की नीतियों को दरकिनार कर दिया है, जिसमें हाशिये के समुदायों के छात्रों के लिये अवसरों को प्राथमिकता दी गई थी।
    • इसी तरह, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रि-भाषा फार्मूले और तमिलनाडु के शिक्षा कार्यक्रमों के लिये धनराशि रोके जाने से राज्य सरकार का प्रतिरोध बढ़ गया है, तथा राज्य सरकार अपनी भाषाई और सांस्कृतिक विशिष्टता के संरक्षण की दलील दे रही है।
  • राजकोषीय असमानताएँ: राज्यों का तर्क है कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) प्रणाली के कारण राजस्व हानि हुई है, जिससे उन्हें स्थानीय नीतियों को लागू करने के लिये कम वित्तीय स्वतंत्रता मिली है।
    • तमिलनाडु का तर्क है कि वह केंद्र को जो एक रुपए का योगदान देता है, उसके बदले उसे केवल 29 पैसे ही वापस प्राप्त होते हैं, जिससे राष्ट्रीय आर्थिक विकास में उसकी भूमिका हतोत्साहित होती है तथा उसे अपनी सफलता के लिये दंडित महसूस होता है।
  • प्रतिनिधित्व में कमी: तमिलनाडु जैसे राज्य परिसीमन प्रक्रिया से दंडित महसूस करते हैं, जिससे सक्रिय जनसंख्या नियंत्रण उपायों के बावजूद संसद में उनका प्रतिनिधित्व कम हो सकता है।
  • प्रमुख निर्णयों से बहिष्करण: राज्यों का मानना ​​है कि उन्हें प्रायः विमुद्रीकरण (वर्ष 2016) जैसे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय निर्णयों से बाहर रखा जाता है, जिससे भारत के संघीय ढाँचे में परिकल्पित भागीदारीपूर्ण शासन को नुकसान पहुँचता है।

केंद्र-राज्य संबंध के संबंध में विभिन्न आयोगों की प्रमुख अनुशंसाएँ क्या हैं?

  • राजमन्नार समिति (1969): तमिलनाडु द्वारा गठित, राजमन्नार समिति केंद्र-राज्य संबंधों की समीक्षा करने वाली पहली राज्य-स्तरीय पहल थी।
    • इसमें सत्ता के बढ़ते केंद्रीकरण की आलोचना की गई, जिससे राज्य की स्वायत्तता प्रभावित हो रही थी। 
    • यद्यपि संविधान संघीय प्रतीत होता है, लेकिन समिति के अनुसार यह एकात्मक रूप से कार्य करता है, जिससे राज्य केंद्र के प्रशासनिक अंग बन जाते हैं। 
      • इसने अनुच्छेद 256 (राज्यों को संसद द्वारा निर्मित विधि का पालन करना चाहिये), 257 (संघ को कुछ मामलों में राज्यों को निर्देश देने की अनुमति), 365 और 356 को अनुचित केंद्र नियंत्रण को सक्षम करने के लिये चिह्नित किया और अनुच्छेद 356 को निरस्त करने की सिफारिश की।
      • समिति ने पुनः संघीय संतुलन स्थापित करने हेतु अंतर्राज्यीय परिषद (ISC) का सुदृढ़ीकरण करने का आह्वान किया।
  • प्रशासनिक सुधार आयोग (1969): अनुच्छेद 263 के तहत एक ISC की स्थापना करने और राज्य प्रशासन में सहकारी संघवाद तथा निष्पक्षता को बढ़ावा देने के लिये अनुभवी, अपक्षपाती व्यक्तियों को राज्यपाल के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई।
    • इसने राज्यों की केंद्र पर निर्भरता कम करने के लिये अधिक शक्तियाँ और वित्तीय संसाधन सौंपने तथा केंद्रीय सशस्त्र बलों के नियंत्रित परिनियोजन की वकालत की।
  • सरकारिया आयोग (1983): इसके द्वारा यह अनुशंसा की गई कि अनुच्छेद 356 का प्रयोग केवल विरले मामलों में, अंतिम उपाय के रूप में, राज्य को पूर्व चेतावनी देने तथा स्पष्ट औचित्य के साथ किया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त ISC को एक स्थायी निकाय बनाने की सिफारिश की गई, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1990 में राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से इसकी औपचारिक स्थापना हुई।
    • इसमें राज्य के विषयों को प्रभावित करने वाले केंद्रीय विधियों, सूत्र-आधारित केंद्रीय अनुदानों और केंद्रीय बलों की तैनाती में अधिक स्वायत्तता पर राज्य से पूर्व परामर्श की वकालत की गई।
  • पुंछी आयोग (2007): इसने सिफारिश की कि समवर्ती सूची के विषयों पर विधेयक पेश करने से पहले राज्यों से अंतर्राज्यीय परिषद के माध्यम से परामर्श किया जाना चाहिये और राज्य सूची के मामलों पर संघ की संधि-निर्माण शक्ति के विनियमन की मांग की।
    • इससे उनके आंतरिक मामलों में राज्यों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा और सहकारी संघवाद को बढ़ावा मिलेगा।
    • राजकोषीय मामलों में राज्यों को अधिक स्वायत्तता दिए जाने के साथ वित्तीय संसाधनों के आवंटन में सुधार किये जाने का सुझाव दिया गया।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत की संघीय प्रणाली में राज्य की स्वायत्तता के समक्ष चुनौतियों की विवेचना कीजिये और इन मुद्दों के समाधान में विभिन्न आयोगों की सिफारिशों का मूल्यांकन कीजिये।

और पढ़ें: केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. यद्यपि परिसंघीय सिद्धांत हमारे संविधान में प्रबल है और वह सिद्धांत संविधान के आधारिक अभिलक्षणों में से एक है, परंतु यह भी इतना ही सत्य है कि भारतीय संविधान के अधीन परिसंघवाद (फैडरलिज्म) सशक्त केन्द्र के पक्ष में झुका हुआ है। यह एक ऐसा लक्षण है जो प्रबल परिसंघवाद की संकल्पना के विरोध में है। चर्चा कीजिये। (2014)       


भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, G20, पार्टनरशिप फॉर ग्लोबल इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड इन्वेस्टमेंट, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव

मेन्स के लिये:

भारत की बुनियादी ढाँचा कूटनीति, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा, आर्थिक विकास में भू-राजनीति की भूमिका

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने नई दिल्ली में कनेक्टिविटी और आर्थिक विकास पर उच्च स्तरीय गोलमेज़ सम्मेलन में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) को एक पारमहाद्वीपीय पहल के रूप में रेखांकित किया, जो वैश्विक व्यापार गतिशीलता को पुनर्परिभाषित करने और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग बढ़ाने का कार्य करेगा।

IMEC

भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा क्या है?

  • परिचय: IMEC एक रणनीतिक मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी पहल है जिसे नई दिल्ली में वर्ष 2023 में आयोजित G20 शिखर सम्मेलन के दौरान एक समझौता ज्ञापन (MoU) के माध्यम से लॉन्च किया गया था। इसके हस्ताक्षरकर्त्ताओं में भारत, अमेरिका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्राँस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ शामिल हैं।
  • कॉरिडोर खंड: IMEC के दो भाग हैं: पूर्वी कॉरिडोर (भारत से खाड़ी) और उत्तरी कॉरिडोर (खाड़ी से यूरोप)
  • उद्देश्य: भारत, मध्य पूर्व और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ाने के उद्देश्य से बंदरगाहों, रेलवे, सड़कों, समुद्री लाइनों, ऊर्जा पाइपलाइनों और डिजिटल बुनियादी ढाँचे का एक एकीकृत नेटवर्क विकसित करना।
  • भारत के लिये महत्त्व: IMEC के उपयोग से स्वेज़ नहर समुद्री मार्ग की तुलना में रसद लागत 30% तक कम हो जाएगी और परिवहन समय में 40% तक की कमी आएगी, जिससे भारतीय निर्यात की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जाएगी।
    • भारत की वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG) पहल IMEC के ऊर्जा लक्ष्यों के अनुरूप है, जिससे भारत मध्य पूर्व से सौर और हरित हाइड्रोजन ऊर्जा का दोहन करने में सक्षम होगा, जो नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता से समृद्ध क्षेत्र है।
    • IMEC में व्यापार और ऊर्जा सहयोग बढ़ाने के लिये ऊर्जा पाइपलाइन, स्वच्छ ऊर्जा अवसंरचना और अधोसमुद्री केबल शामिल है।
      • यह भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित करेगा, विशेष रूप से बुनियादी ढाँचे, लॉजिस्टिक्स, हरित ऊर्जा और डिजिटल प्रौद्योगिकियों में, जिससे भारत को अल्प लागत वाली नवीकरणीय ऊर्जा का अभिगम प्राप्त करने और निम्न कार्बन अर्थव्यवस्था में संक्रमण करने में मदद मिलेगी।
  • IMEC की स्थिति: वर्ष 2023 में इजरायल-हमास संघर्ष के कारण इस परियोजना में अत्यधिक विलंब हुआ। मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक अस्थिरता से अस्थायी रूप से इसकी विकास गति मंद हो गई है।
    • इसके बावजूद, कूटनीतिक सहभागिता जारी है जहाँ भारत और UAE ने वर्ष 2024 में एक अंतर-सरकारी रूपरेखा समझौते (IGFA) पर हस्ताक्षर किये, यह परिचालन सहयोग और IMEC के लिये एक संयुक्त रसद मंच के निर्माण पर केंद्रित है।

IMEC की प्रगति के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं?

  • भू-राजनीतिक अस्थिरता: इसकी प्रगति के समक्ष गाज़ा संघर्ष एक गंभीर चिंता का विषय है, जिससे पश्चिम एशिया में कूटनीतिक सामान्यीकरण बाधित हो रहा है, जो IMEC की सफलता का एक प्रमुख आधार है।
    • सऊदी-ईरान प्रतिद्वंद्विता और इराक तथा सीरिया में अस्थिरता सहित क्षेत्रीय अस्थिरता, IMEC के तहत बुनियादी ढाँचे के विकास और आपूर्ति शृंखला सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा है।
  • स्पष्ट वित्तीय प्रतिबद्धता का अभाव: IMEC का लक्ष्य बुनियादी ढाँचे के अभाव को पूरा करने के लिये वर्ष 2027 तक 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाना है, लेकिन इसमें हितधारकों के बीच स्पष्ट वित्तीय रोडमैप और लागत-साझाकरण योजना का अभाव है।
    • इस स्तर के बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये दीर्घकालिक निवेश (लगभग 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 8 बिलियन अमेरिकी डॉलर) की आवश्यकता है, जो वैश्विक आर्थिक मंदी के बीच अनिश्चित बना हुआ है।
  • व्यापार व्यवधान की संभावना: स्वेज़ नहर अवरोध (2021) और काला सागर नौवहन व्यवधान (रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण) जैसे उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि समुद्री व्यापार अति संवेदनशील है।
    • IMEC क्षेत्र में इसी प्रकार की घटनाओं से विश्वसनीयता प्रभावित हो सकती है, जबकि हिंद महासागर में चीन जैसी अतिरिक्त आंचलिक शक्तियों के बढ़ते सैन्यीकरण और नौसेना की उपस्थिति से समुद्री विवाद की आशंका बढ़ती है।
  • सीमित भौगोलिक समावेशन: तुर्की, ईरान, कतर और मिस्र जैसे प्रमुख क्षेत्रीय देश वर्तमान में IMEC का हिस्सा नहीं हैं, जिससे इसकी भू-राजनीतिक और आर्थिक पहुँच सीमित हो गई है।
    • IMEC की दीर्घकालिक सफलता सतत् राजनीतिक सहयोग पर निर्भर करती है, जो इसमें शामिल देशों के भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय हितों और गठबंधनों के कारण चुनौतीपूर्ण है।
  • स्थापित मार्गों से प्रतिस्पर्द्धा: स्वेज़ नहर मार्ग अच्छी तरह से स्थापित है, और इसकी तुलना में IMEC की लागत प्रभावशीलता पर अभी भी बहस चल रही है।
    • यदि क्षेत्रीय चुनौतियाँ बनी रहीं तो IMEC एक महँगा विकल्प हो सकता है, जिसमें कोई गारंटीकृत रिटर्न नहीं होगा।
  • तकनीकी चुनौतियाँ: समुद्र के नीचे डेटा केबलों सहित IMEC के डिजिटल बुनियादी ढाँचे को सदस्य देशों के बीच अलग-अलग तकनीकी मानकों के कारण एकीकरण संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
    • निर्बाध कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना जटिल है, और अमेरिका में कोलोनियल पाइपलाइन घटना जैसे साइबर हमलों का जोखिम वैश्विक डिजिटल प्रणालियों की भेद्यता को रेखांकित करता है।

भारत IMEC को प्रभावी कार्यान्वयन की ओर कैसे ले जा सकता है?

  • IMEC की तैयारी के लिये घरेलू बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करना: भारत पश्चिम एशिया में धीमी प्रगति की इस अवधि का उपयोग अपने बंदरगाहों (मुंद्रा (गुजरात), कांडला (गुजरात) और जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (नवी मुंबई)) को मज़बूत करने, IMEC नोड्स के साथ आर्थिक क्षेत्रों को विकसित करने और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में बेहतर एकीकरण के लिये घरेलू रसद को उन्नत करने और भारत को एक विश्वसनीय वैश्विक आपूर्ति शृंखला विकल्प के रूप में स्थापित करने के लिये कर सकता है।
  • व्यापार प्रक्रिया का मानकीकरण: IMEC के तहत कुशल सीमा पार व्यापार के लिये सभी सदस्य देशों को कागज़ी कार्यवाही को न्यूनतम करने और विलंब को कम करने के लिये इंडिया-UAE वर्चुअल ट्रेड कॉरिडोर जैसे ढाँचे को अपनाने की आवश्यकता है।
  • लचीले बुनियादी ढाँचे की ओर: भारत सतत्, जलवायु-लचीले और भू-राजनीतिक रूप से अनुकूलनीय परियोजनाओं के निर्माण के लिये गुणवत्ता बुनियादी ढाँचे के निवेश (QII) के G-20 सिद्धांतों को अपनाने के लिये IMEC देशों का नेतृत्व कर सकता है।
    • यह दृष्टिकोण ग्रीन बॉण्ड और सतत् वित्त के माध्यम से सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और निजी पूंजी को आकर्षित कर सकता है, जिससे राष्ट्रीय बजट पर दबाव कम हो सकता है।
  • क्षेत्रीय सुरक्षा ढाँचे में वृद्धि: भारत IMEC को आतंकवाद, समुद्री डकैती और साइबर खतरों से बचाने के लिये हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) के माध्यम से मज़बूत सुरक्षा संबंधों पर ज़ोर दे सकता है।
  • तकनीकी एकीकरण को बढ़ावा देना: भारत एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) आधारित भुगतान प्रणाली, समुद्र के नीचे केबल, 5G अवसंरचना को बढ़ावा देकर, ई-कॉमर्स, फिनटेक और स्मार्ट सिटी पहलों का समर्थन करते हुए IMEC के साथ डिजिटल विभाजन को कम करते हुए डिजिटल कनेक्टिविटी में अग्रणी हो सकता है।

भारत की अन्य प्रमुख रणनीतिक अवसंरचना पहल

  • अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC): इसे वर्ष 2000 में रूस के बाल्टिक सागर तट को ईरान के माध्यम से भारत के पश्चिमी बंदरगाहों से जोड़ने के लिये प्रस्तावित किया गया था। 
    • रूस, भारत और ईरान ने 7,200 किलोमीटर लंबी अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) के विकास के लिये वर्ष 2002 में प्रारंभिक समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे।
    • वर्तमान में इसमें 13 सदस्य हैं: भारत, ईरान, रूस, अज़रबैजान, आर्मेनिया, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान और सीरिया, तथा बुल्गारिया एक पर्यवेक्षक राज्य है।
  • चाबहार बंदरगाह परियोजना: भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने चाबहार बंदरगाह पर शाहिद बेहेश्टी टर्मिनल विकसित करने के लिये एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो भारत की पहली विदेशी बंदरगाह परियोजना है।
    • इस परियोजना का उद्देश्य पाकिस्तान को दरकिनार कर भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुँच प्रदान करना है, जिससे तीनों देशों के बीच पारगमन व्यापार को बढ़ावा मिलेगा।
  • भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग: इस परियोजना का उद्देश्य भारत के मणिपुर राज्य के मोरेह से शुरू होकर म्याँमार से गुज़रते हुए थाईलैंड के माई सोत पर समाप्त होने वाला सड़क संपर्क बनाना है।
  • कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट:  इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य कोलकाता के पूर्वी बंदरगाह को म्याँमार के सित्तवे बंदरगाह से समुद्र के रास्ते जोड़ना है, जिससे दक्षिण पूर्व एशिया के साथ व्यापार और संपर्क में वृद्धि होगी।

निष्कर्ष

भारत के नेतृत्व में IMEC कनेक्टिविटी को बढ़ाकर और क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देकर वैश्विक व्यापार को नया आकार देने का वादा करता है। IMEC सचिवालय की स्थापना परिचालन को सुव्यवस्थित करने और परियोजना के सुचारू निष्पादन को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण होगी। इसके कार्यान्वयन से सतत् आर्थिक विकास और वैश्विक समृद्धि का एक नया युग शुरू होगा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: क्षेत्रीय भूराजनीति और व्यापार गतिशीलता को नया आकार देने में भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे के रणनीतिक महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में आने वाला 'बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative)' किसके मामलों के संदर्भ में आता है? (2016)

(a) अफ्रीकी संघ
(b) ब्राज़ील
(c) यूरोपीय संघ
(d) चीन

उत्तर: (d)


विनिर्माण कार्यबल में महिलाओं की बढ़ती अनौपचारिकता

प्रिलिम्स के लिये:

अनौपचारिक क्षेत्र, औपचारिक क्षेत्र, कौशल भारत मिशन, डिजिटल साक्षरता अभियान, GDP, कौशल भारत मिशन

मेन्स के लिये:

भारत में विनिर्माण क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी की स्थिति, महिला श्रम भागीदारी से संबंधित चुनौतियाँ, महिला श्रम बल भागीदारी बढ़ाने के लिये प्रमुख पहल।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 17% का योगदान देने वाला विनिर्माण क्षेत्र, विकसित भारत के दृष्टिकोण के तहत आर्थिक विकास के लिये एक प्रमुख चालक माना जाता है। हालाँकि, इस क्षेत्र में, विशेष रूप से औपचारिक रोज़गार में, महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी कम है, जो गहरी संरचनात्मक और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों को दर्शाता है।

भारत पर्याप्त औपचारिक रोज़गार सृजित करने में क्यों संघर्ष करता है?

और पढ़ें: भारत में औपचारिक रोज़गार में गिरावट के कारण

भारत में विनिर्माण क्षेत्र में महिलाओं की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • औपचारिक क्षेत्र: औपचारिक विनिर्माण में महिलाओं की हिस्सेदारी वर्ष 2015-16 में 20.9% से घटकर वर्ष 2022-23 में 18.9% हो गई है, जिसमें 8.34 मिलियन औपचारिक श्रमिकों में से केवल 1.57 मिलियन महिलाएँ हैं।
    • तमिलनाडु में सबसे अधिक (41%) महिलाएँ कार्यरत हैं, इसके बाद कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गुजरात का स्थान है, जहाँ कुल मिलाकर औपचारिक विनिर्माण में लगभग 75% महिलाएँ कार्यरत हैं।
    • बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और हरियाणा में लैंगिक असमानता बहुत अधिक है (6% से भी कम महिलाएँ), और यहाँ तक ​​कि गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे औद्योगिक राज्यों में भी (15% से भी कम महिलाएँ)।
      • इसके विपरीत, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में महिलाओं की भागीदारी अपेक्षाकृत बेहतर है।
    • महिलाएँ ज्यादातर वस्त्र, परिधान और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कार्यरत हैं, जो महिला रोज़गार का 60% है।
    • तंबाकू एकमात्र औपचारिक विनिर्माण उद्योग है जहाँ पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएँ कार्यरत हैं।
  • अनौपचारिक क्षेत्र: अनौपचारिक विनिर्माण कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी 43% है, लेकिन वे अधिकतर कम वेतन वाली, कम कौशल वाली नौकरियों में कार्यरत हैं, जिनमें उन्हें नौकरी की सुरक्षा या लाभ नहीं मिलता।
    • प्रमुख क्षेत्रों में वस्त्र और तंबाकू शामिल हैं, जहाँ अनौपचारिक तंबाकू कार्यबल में 90% से अधिक महिलाएँ हैं।
    • हरियाणा, उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में लैंगिक अंतराल अभी भी उच्च है।
      • तेलंगाना, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में लैंगिक अंतराल नकारात्मक है, जो दर्शाता है कि अनौपचारिक विनिर्माण में पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएँ काम करती हैं।

Employment_Share_In_Economy_as_per_Economic Survey 2024-25

भारत में महिला श्रम बल भागीदारी में बाधा डालने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

और पढ़ें: महिलाओं की कम भागीदारी के मुख्य कारण

नोट

  • सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाना है।
  • यह बुनियादी ढाँचे और FDI को बढ़ावा देने के लिये मेक इन इंडिया, प्रमुख क्षेत्रों को प्रोत्साहित करने के लिये उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI) और वस्त्र क्षेत्र में महिलाओं को कौशल प्रदान करने के लिये समर्थ जैसी योजनाओं के माध्यम से विनिर्माण को बढ़ावा देता है।
  • स्किल इंडिया योजना व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करती है, जबकि मुद्रा योजना जबकि मुद्रा योजना विनिर्माण में महिला उद्यमियों को संपार्श्विक-मुक्त ऋण प्रदान करती है।

औपचारिक विनिर्माण क्षेत्र में महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़ाने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • शिक्षा और कौशल विकास: विनिर्माण क्षेत्र में केवल 30% महिलाओं ने माध्यमिक शिक्षा पूरी की है (जबकि पुरुषों में यह आँकड़ा 47% है), तथा केवल 6% के पास औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण है। 
    • इस अंतराल को कम करने हेतु, कौशल भारत मिशन और इसी प्रकार की पहलों में महिलाओं की भागीदारी का विस्तार किया जाना चाहिये और साथ ही कुशल, बेहतर वेतन वाली नौकरियों तक उनकी पहुँच में सुधार करने के उद्देश्य से प्रौद्योगिकी और अभियांत्रिकी क्षेत्रों में लक्षित कौशल उन्नयन किया जाना चाहिये।
  • क्षेत्रीय विविधीकरण: औपचारिक विनिर्माण में महिलाएँ वस्त्र और खाद्य प्रसंस्करण (60%) जैसे सीमित क्षेत्रों तक ही केंद्रित हैं। 
    • लक्षित प्रशिक्षण और प्रोत्साहन के माध्यम से ऑटोमोटिव और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में उनकी उपस्थिति का विविधीकरण करना, भागीदारी और अवसरों में सुधार लाने की कुंजी है। 
  • सुरक्षित कार्य वातावरण का निर्माण: छात्रावास, परिवहन और बाल देखभाल सुविधाओं के माध्यम से सुरक्षित और समावेशी कार्यस्थलों का निर्माण करने से राज्यों में विनिर्माण क्षेत्र में महिलाओं के प्रवेश और प्रतिधारण को बढ़ावा मिल सकता है।
  • नीतिगत हस्तक्षेप: मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम और कारखाना अधिनियम जैसे अधिनियमों का सुदृढ़ीकरण करने से कार्य स्थितियों और लैंगिक समानता में सुधार हो सकता है। 
    • विनिर्माण क्षेत्र में महिलाओं की अधिक संख्या में नियुक्ति को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार और उद्योग को मातृत्व लाभ की लागत साझा करनी चाहिये, जिससे नियोक्ताओं पर वित्तीय बोझ कम हो जाएगा।

निष्कर्ष:

भारत के विनिर्माण क्षेत्र में महिलाएँ मुख्य रूप से अल्प वेतन वाली, अपर्याप्त परिस्थितियों वाली अनौपचारिक नौकरियों में कार्यरत हैं। इस अंतराल को कम करने हेतु, महिलाओं की शिक्षा, कौशल और कार्यस्थल सुरक्षा का वर्द्धन करना आवश्यक है और साथ ही अनौपचारिक से औपचारिक रोज़गार में उनकी सहभागिता को बढ़ावा देना भी आवश्यक है। समावेशी और सहायक परिवेश स्थापित करने से महिलाएँ सशक्त होंगी और देश के "विकसित भारत" बनने के लक्ष्य को पूरा करने में सहायता मिलेगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत के विनिर्माण क्षेत्र में महिलाओं के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ हैं तथा उनकी भागीदारी और अवसर बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ता है।

उत्तर: (c)


प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013)

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर:(c)


मेन्स: 

प्रश्न. भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)

प्रश्न. "भारत में बनाइये' कार्यक्रम की सफलता, 'कौशल भारत' कार्यक्रम और आमूल श्रम सुधारों की सफलता पर निर्भर करती है।" तर्कसम्मत दलीलों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)

प्रश्न. "जिस समय हम भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश (डेमोग्राफिक डिविडेंड) को शान से प्रदर्शित करते हैं, उस समय हम रोज़गार-योग्यता की पतनशील दरों को नज़रअंदाज़ कर देते हैं।" क्या हम ऐसा करने में कोई चूक कर रहे हैं? भारत को जिन जॉबों की बेसबरी से दरकार है, वे जॉब कहाँ से आएँगे? स्पष्ट कीजिये। (2014)