भूगोल
भूस्खलन और फ्लैश फ्लड
प्रिलिम्स के लियेफ्लैश फ्लड, भूस्खलन, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण मेन्स के लियेफ्लैश फ्लड और भूस्खलन के कारण तथा इनका प्रबंधन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सों में हुई भारी बारिश के कारण फ्लैश फ्लड (Flash Flood) और भूस्खलन (Landslide) की स्थिति उत्पन्न हो गई।
प्रमुख बिंदु
भूस्खलन:
- परिचय:
- भूस्खलन को सामान्य रूप से शैल, मलबा या ढाल से गिरने वाली मिट्टी के बृहत संचलन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- यह एक प्रकार के वृहद् पैमाने पर अपक्षय है, जिससे गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव में मिट्टी और चट्टान समूह खिसककर ढाल से नीचे गिरते हैं।
- भूस्खलन शब्द में ढलान संचलन के पाँच तरीके शामिल हैं: गिरना (Fall), लटकना (Topple), फिसलना (Slide), फैलाना (Spread) और प्रवाह (Flow)।
- कारण:
- ढलान संचलन तब होता है जब नीचे की ओर (मुख्य रूप से गुरुत्वाकर्षण के कारण) कार्य करने वाले बल ढलान निर्मित करने वाली पृथ्वी जनित सामग्री से अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं।
- भू-स्खलन तीन प्रमुख कारकों के कारण होता है: भू-विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान और मानव गतिविधि।
- भू-विज्ञान भू-पदार्थों की विशेषताओं को संदर्भित करता है। पृथ्वी या चट्टान कमज़ोर या खंडित हो सकती है या अलग-अलग परतों में विभिन्न बल और कठोरता हो सकती है।
- भू-आकृतिक विज्ञान भूमि की संरचना को संदर्भित करता है। उदाहरण के लिये वैसे ढलान जिनकी वनस्पति आग या सूखे की चपेट में आने से नष्ट हो जाती है, भूस्खलन के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं।
- वनस्पति आवरण में पौधे मृदा को जड़ों में बाँधकर रखते हैं, वृक्षों, झाड़ियों और अन्य पौधों की अनुपस्थिति में भूस्खलन की अधिक संभावना होती है।
- मानव गतिविधि जिसमें कृषि और निर्माण कार्य शामिल हैं, में भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- भूस्खलन संभावित क्षेत्र:
- संपूर्ण हिमालय पथ, उत्तर-पूर्वी भारत के उप-हिमालयी क्षेत्रों में पहाड़ियाँ/पहाड़, पश्चिमी घाट, तमिलनाडु कोंकण क्षेत्र में नीलगिरि भूस्खलन-प्रवण क्षेत्र हैं।
- निवारण (Mitigation) :
- भूस्खलन संभावी क्षेत्रों में सड़क और बड़े बाँध बनाने जैसे निर्माण कार्य तथा विकास कार्य पर प्रतिबंध होना चाहिये।
- इन क्षेत्रों में कृषि नदी घाटी तथा मध्यम ढाल वाले क्षेत्रों तक सीमित होनी चाहिये।
- उच्च सुभेद्यता वाले क्षेत्रों में बड़ी बस्तियों के विकास पर नियंत्रण।
- जल बहाव को कम करने के लिये वृहत् स्तर पर वनीकरण को बढ़ावा देना और बाँधों का निर्माण करना चाहिये।
- पूर्वोत्तर पहाड़ी राज्यों के झूमिंग कृषि (स्थानांतरण कृषि या झूम कृषि ) वाले क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर कृषि की जानी चाहिये।
उठाए गए कदम:
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने देश में संपूर्ण 4,20,000 वर्ग किमी. के भूस्खलन-प्रवण क्षेत्र के 85% के लिये एक राष्ट्रीय भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण तैयार किया है। आपदा की प्रवृत्ति के अनुसार क्षेत्रों को अलग-अलग ज़ोन में बाँटा गया है।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली में सुधार करके निगरानी और संवेदनशील क्षेत्रों में भूस्खलन से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है।
फ्लैश फ्लड:
- फ्लैश फ्लड के विषय में:
- यह घटना बारिश के दौरान या उसके बाद जल स्तर में हुई अचानक वृद्धि को संदर्भित करती है।
- यह बहुत ही उच्च स्थानों पर छोटी अवधि में घटित होने वाली घटना है, आमतौर पर वर्षा और फ्लैश फ्लड के बीच छह घंटे से कम का अंतर होता है।
- फ्लैश घटना, खराब जल निकासी लाइनों या पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करने वाले अतिक्रमण के कारण भयानक हो जाती है।
- कारण:
- यह घटना भारी बारिश की वजह से तेज़ आँधी, तूफान, उष्णकटिबंधीय तूफान, बर्फ का पिघलना आदि के कारण हो सकती है।
- फ्लैश फ्लड की घटना बाँध टूटने और/या मलबा प्रवाह के कारण भी हो सकती है।
- फ्लैश फ्लड के लिये ज्वालामुखी उद्गार भी उत्तरदायी है, क्योंकि ज्वालामुखी उद्गार के बाद आस-पास के क्षेत्रों के तापमान में तेज़ी से वृद्धि होती है जिससे इन क्षेत्रों में मौजूद ग्लेशियर पिघलने लगते हैं।
- फ्लैश फ्लड के स्वरूप को वर्षा की तीव्रता, वर्षा का वितरण, भूमि उपयोग का प्रकार तथा स्थलाकृति, वनस्पति प्रकार एवं विकास/घनत्व, मिट्टी का प्रकार आदि सभी बिंदु निर्धारित करते हैं।
न्यूनीकरण:
- लोगों को घाटियों के बजाय ढलानों वाले दृढ़ ज़मीन वाले क्षेत्रों में रहना चाहिये।
- जिन क्षेत्रों में ज़मीन पर दरारें विकसित हो गई हैं, वहाँ वर्षा जल और सतही जल की पहुँच को रोकने के लिये उचित कदम उठाए जाने चाहिये।
- "अंधाधुंध" और "अवैज्ञानिक" निर्माण कार्यों पर प्रतिबंध लगाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
विश्व युवा कौशल दिवस
प्रिलिम्स के लियेविश्व युवा कौशल दिवस, इंचियोन घोषणा, जन शिक्षण संस्थान, संयुक्त राष्ट्र महासभा मेन्स के लियेमानव संसाधन में कौशल विकास की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व युवा कौशल दिवस (World Youth Skills Day) मनाया गया, यह प्रत्येक वर्ष 15 जुलाई को मनाया जाता है।
- इसे वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly- UNGA) द्वारा नामित किया गया था।
प्रमुख बिंदु
विश्व युवा कौशल दिवस के विषय में:
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य विश्व के युवाओं को रोज़गार, काम और उद्यमिता के लिये आवश्यक कौशल प्रदान करना है।
- इंचियोन घोषणा: एजुकेशन 2030 मिशन (Incheon Declaration: Education 2030) जो मुख्यतः तकनीकी एवं व्यावसायिक कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करता है, की प्राप्ति करना।"
- यह दृष्टिकोण सतत् विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goal)-4 द्वारा पूरी तरह से धारण कर लिया गया है, जिसका उद्देश्य "समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना तथा सभी के लिये आजीवन अवसरों को बढ़ावा देना है”।
- लैंगिक असमानता को दूर करने के लिये।
- वर्ष 2021 की थीम:
- 'युवा कौशल पोस्ट-महामारी की पुनर्कल्पना' (Reimagining Youth Skills Post-Pandemic)।
कोविड-19 के दौरान युवा रोज़गार और स्कूलों की स्थिति:
- यूनेस्को (UNESCO) के अनुमानों के अनुसार, मार्च 2020 और मई 2021 के बीच 50% देशों में 30 सप्ताह से अधिक समय तक स्कूल बंद रहे थे।
- तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण (Technical and Vocational Education and Training- TVET) के एक सर्वेक्षण के उत्तरदाताओं (जिसे यूनेस्को, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और विश्व बैंक द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था) ने खुलासा किया कि दूरस्थ शिक्षा कौशल प्रदान करने का सबसे सामान्य तरीका था।
- वयस्कों (Adult) के 3.7% की तुलना में युवा (Youth) रोज़गार पिछले वर्ष 8.7% गिर गया।
भारत द्वारा घोषणा:
- प्रधानमंत्री ने 75 नए स्वीकृत जन शिक्षण संस्थानों (Jan Shikshan Sansthan- JSS) की घोषणा की और इसके लिये विशेष रूप से बनाया गया एक पोर्टल भी लॉन्च किया।
- जेएसएस का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-साक्षर, नव-साक्षर और साथ ही स्कूल छोड़ने वालों को संबंधित क्षेत्र के बाज़ार के लिये प्रासंगिक कौशल की पहचान करके व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना है।
- उद्योग की मांग के अनुरूप 57 नए पाठ्यक्रमों को शुरू किया गया।
युवा कौशल के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम
- औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र (ITI): वर्ष 1950 में संकल्पित औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र (ITIs) का उद्देश्य भारत में मौजूदा प्रशिक्षण पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार और आधुनिकीकरण करना है।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY): वर्ष 2015 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य भारत के युवाओं को मुफ्त कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना 3.0 : इसे भारत के युवाओं को रोज़गारपरक कौशल में दक्ष बनाने हेतु वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया, जिसमें 300 से अधिक कौशल पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।
- पूर्व शिक्षण मान्यता (RPL) कार्यक्रम: व्यक्तियों द्वारा अधिगृहीत पूर्व कौशल को मान्यता प्रदान करने के लिये इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई थी। यह प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) के प्रमुख घटकों में से एक है।
- इसके तहत एक व्यक्ति का मूल्यांकन कौशल के एक निश्चित सेट के साथ या पूर्व शिक्षण अनुभव के आधार पर किया जाता है और उसे राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) के अनुसार ग्रेड के साथ प्रमाणित किया जाता है।
- राष्ट्रीय कॅरियर सेवा (NCS) परियोजना : राष्ट्रीय कॅरियर सेवा (National Career Service- NCS) परियोजना के तहत रोज़गार चाहने वाले पंजीकृत उम्मीदवारों के लिये वर्ष 2015 में ‘मुफ्त ऑनलाइन कॅरियर कौशल प्रशिक्षण’ की शुरुआत की गई।
- कौशल प्रबंधन और प्रशिक्षण केंद्र प्रत्यायन (SMART): यह देश के कौशल पारिस्थितिकी तंत्र में प्रशिक्षण केंद्रों के प्रत्यायन, ग्रेडिंग, संबद्धता और निरंतर निगरानी पर केंद्रित एक एकल विंडो आईटी एप्लीकेशन प्रदान करता है।
- आजीविका संवर्द्धन हेतु कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता (SANKALP) योजना: यह योजना अभिसरण एवं समन्वय के माध्यम से ज़िला-स्तरीय कौशल पारिस्थितिकी तंत्र पर ध्यान केंद्रित करती है। यह विश्व बैंक के सहयोग से शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
- औद्योगिक मूल्य संवर्द्धन के लिये कौशल सुदृढ़ीकरण (STRIVE): औद्योगिक मूल्य संवर्द्धन के लिये कौशल सुदृढ़ीकरण: स्ट्राइव योजना आईटीआई और शिक्षुता के माध्यम से प्रदान किये जाने वाले कौशल प्रशिक्षण की प्रासंगिकता एवं दक्षता में सुधार लाने के उद्देश्य से विश्व बैंक की सहायता प्राप्त भारत सरकार की परियोजना है।
- प्रधानमंत्री युवा योजना (युवा उद्यमिता विकास अभियान): वर्ष 2016 में शुरू किये गए इस कार्यक्रम का उद्देश्य उद्यमिता शिक्षा और प्रशिक्षण के माध्यम से उद्यमिता विकास के लिये एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाना; उद्यमशीलता समर्थन नेटवर्क की वकालत करना तथा आसान पहुँच सुनिश्चित करना एवं समावेशी विकास के लिये सामाजिक उद्यमों को बढ़ावा देना है।
- युवा, आगामी और बहुमुखी लेखक (YUVA) योजना, युवा लेखकों को प्रशिक्षित करने के लिये एक परामर्श कार्यक्रम है।
- कौशलाचार्य पुरस्कार: इस पुरस्कार को कौशल प्रशिक्षकों द्वारा दिये गए योगदान को मान्यता देने और अधिक प्रशिक्षकों को कौशल भारत मिशन में शामिल होने के लिये प्रेरित करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- स्कीम फॉर हायर एजुकेशन यूथ इन अप्रेंटिसशिप एंड स्किल्स’ अथवा ‘श्रेयस (SHREYAS): इस योजना की शुरुआत राष्ट्रीय शिक्षुता प्रोत्साहन योजना (NAPS) के माध्यम से वर्ष 2019 सत्र के सामान्य स्नातकों को उद्योग शिक्षुता अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी।
- आत्मनिर्भर कुशल कर्मचारी-नियोक्ता मानचित्रण यानी ‘असीम’ (ASEEM): वर्ष 2020 में शुरू किया गया यह पोर्टल कौशल युक्त लोगों को स्थायी आजीविका के अवसर खोजने में मदद करता है।
जनजातीय समुदाय के लिये विशेष पहल:
- गोल कार्यक्रम (Going Online As Leaders' -GOAL): इस कार्यक्रम को इस प्रकार से डिज़ाइन किया गया है जिससे आदिवासी युवाओं और महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों यथा- बागवानी, खाद्य प्रसंस्करण, मधुमक्खी पालन, आदिवासी कला एवं संस्कृति आदि में डिजिटल कौशल व प्रौद्योगिकी के माध्यम से दीर्घकालिक स्तर पर ज्ञान प्राप्त हो सके।
- इसी प्रकार वन धन योजना आदिवासी समाज को नए अवसरों से प्रभावी ढंग से जोड़ रही है।
स्रोत: पीआईबी
जैव विविधता और पर्यावरण
अमेज़न वन: कार्बन उत्सर्जक के रूप में
प्रिलिम्स के लिये:उष्णकटिबंधीय वन, अमेज़न वर्षा वन मेन्स के लिये:अमेज़न वनों का कार्बन उत्सर्जक के रूप में परिवर्तित होने का कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार, अमेज़न के जंगलों/वनों ने कार्बन डाइऑक्साइड ( Carbon dioxide- CO2) को अवशोषित करने के बजाय इसका उत्सर्जन करना शुरू कर दिया है।
- वर्ष 1960 के बाद से बढ़ते पेड़ों और पौधों ने सभी जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन का लगभग एक- चौथाई हिस्सा अवशोषित कर लिया है, जिसमें अमेज़न सबसे बड़े उष्णकटिबंधीय वन (Tropical Forest) के रूप में एक प्रमुख भूमिका निभा रहा है।
प्रमुख बिंदु:
अध्ययन के प्रमुख तथ्य:
- पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी ब्राज़ील में अत्यधिक वनों की कटाई (40 वर्षों के दौरान) के कारण इसने जंगल को CO2 के स्रोत में बदल दिया है जो पृथ्वी को गर्म करने की क्षमता रखता है।
- इसने शुष्क मौसम के दौरान वर्षा की लंबी अवधि और तापमान में वृद्धि को भी प्रभावित किया है।
- न केवल अमेज़न के वर्षा वन बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ जंगल भी पिछले कुछ वर्षों में वृक्षारोपण और आग के परिणामस्वरूप कार्बन स्रोतों में परिवर्तित हो गए हैं।
- वर्ष 2013 से जंगलों में आग लगने की दर दोगुनी हो गई है। जिसका एक प्रमुख कारण यह है कि किसान अगली फसल प्राप्त करने हेतु ज़मीन को साफ करने हेतु जलाते है।
- अधिकांश उत्सर्जन आग के कारण होता है।
- बिना आग के भी अमेज़न के एक हिस्से में विशेष रूप से कार्बन उत्सर्जन की चिंताजनक स्थिति देखी गई है जो संभवत प्रत्येक वर्ष वनों की कटाई और अगले वर्ष के लिये फसल प्राप्ति हेतु जंगलों को साफ करने के उद्देश्य से लगाई जाने वाली आग का परिणाम था।
वनों की कटाई का कारण:
- राज्य की नीतियांँ जो आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करती हैं, जैसे- रेलवे और सड़क विस्तार परियोजनाओं ने अमेज़न और मध्य अमेरिका में "अनजाने में वनों की कटाई" को प्रोत्साहित किया है।
- 1970 और 1980 के दशक में वनों की कटाई तब शुरू हुई जब पशुपालन और सोया की खेती हेतु बड़े पैमाने पर वनों का रूपांतरण (Forest Conversion) शुरू हुआ।
अमेज़न वर्षा वन:
- ये विशाल उष्णकटिबंधीय वर्षावन हैं जो उत्तरी दक्षिण अमेरिका में अमेज़न नदी और इसकी सहायक नदियों के जल निकासी बेसिन पर कब्ज़ा कर रहे हैं।
- उष्णकटिबंधीय बंद वितान वन होते हैं जो भूमध्य रेखा के उत्तर या दक्षिण में 28 डिग्री के भीतर पाए जाते हैं।
- यहाँ या तो मौसमी रूप से या पूरे वर्ष में प्रतिवर्ष 200 सेमी. से अधिक वर्षा होती है।
- तापमान समान रूप से उच्च होता है (20 डिग्री सेल्सियस और 35 डिग्री सेल्सियस के बीच)।
- इस तरह के वन एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, मध्य अमेरिका, मैक्सिको और कई प्रशांत द्वीपों में पाए जाते हैं।
- अमेज़न वर्षावन लगभग 80% अमेज़न बेसिन को कवर करते हैं और वे दुनिया की लगभग 1/5 भूमि पर रहने वाली प्रजातियों का घर है और सैकड़ों स्वदेशी समूहों तथा कई अलग-अलग जनजातियों सहित लगभग 30 मिलियन लोगों का घर भी है।
- अमेज़न बेसिन 6 मिलियन वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र के साथ विशाल है, यह भारत के आकार का लगभग दोगुना है।
- यह बेसिन दुनिया के ताजे पानी के प्रवाह का लगभग 20% महासागरों से प्राप्त करता है।
- ब्राज़ील के कुल क्षेत्रफल का लगभग 40% हिस्सा, उत्तर में गुयाना हाइलैंड्स, पश्चिम में एंडीज़ पर्वत, दक्षिण में ब्राज़ील के केंद्रीय पठार और पूर्व में अटलांटिक महासागर से घिरा है।
आगे की राह
- यदि उष्णकटिबंधीय वनों की कार्बन सिंक के रूप में कार्य करने की क्षमता को बनाए रखना है, तो जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन को कम करने के साथ ही तापमान में वृद्धि को सीमित करने की आवश्यकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
स्थगन प्रस्ताव
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय संसद में प्रस्तावों के प्रकार मेन्स के लिये:तीन विवादास्पद कृषि कानून |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में शिरोमणि अकाली दल (राजनीतिक दल) ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों पर सरकार के खिलाफ लोकसभा में स्थगन प्रस्ताव (Adjournment Motion) लाने का फैसला किया है।
- प्रस्ताव और संकल्प सामान्य जनहित के मामले पर सदन में चर्चा करने के लिये प्रक्रियात्मक उपकरण हैं।
प्रमुख बिंदु:
- स्थगन प्रस्ताव को केवल लोकसभा में तत्काल सार्वजनिक महत्त्व के एक निश्चित मामले पर सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिये प्रस्तुत किया जाता है।
- इसमें सरकार के खिलाफ निंदा का तत्त्व शामिल है, इसलिये राज्यसभा को इस उपकरण का उपयोग करने की अनुमति नहीं है।
- इसे एक असाधारण उपकरण के रूप में माना जाता है क्योंकि यह सदन के सामान्य कार्य को बाधित करता है। इसे स्वीकार करने के लिये 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता है।
- इस प्रस्ताव पर कम-से-कम दो घंटे तीस मिनट तक चर्चा चलनी चाहिये।
- स्थगन प्रस्ताव की निम्नलिखित सीमाएँ भी हैं
- इस प्रस्ताव के तहत जिस मामले पर चर्चा की जानी है, वह निश्चित होना चाहिये। किसी स्थगन प्रस्ताव को तब तक स्वीकृत नहीं किया जाता जब तक उसके तथ्य निश्चित नहीं होते हैं।
- स्थगन प्रस्ताव के तहत किसी ऐसे मामले पर चर्चा नही की जा सकती है जो सदन में पहले से चला आ रहा हो अर्थात् वह मामला अविलंबित होना अनिवार्य है।
- वह मामला लोक महत्त्व का हो और इतना महत्त्वपूर्ण होना चाहिये कि उसके लिये सदन की आम कार्यवाही रोकी जा सके।
- इसका संबंध हाल ही में घटी किसी विशेष घटना से होना चाहिये।
- विषय का संबंध विशेषाधिकार के मामले से नहीं होना चाहिये और इसके तहत न्यायालय में विचाराधीन किसी मामले पर चर्चा नहीं की जा सकती है।
- मामला ऐसा होना चाहिये जिसके लिये प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भारत सरकार ज़िम्मेदार हो।
भारतीय संसद में प्रस्तावों के प्रकार
विशेषाधिकार प्रस्ताव:
- यह किसी सदस्य द्वारा तब प्रस्तुत किया जाता है जब उसे लगता है कि किसी मंत्री ने किसी मामले के तथ्यों को रोककर या गलत या विकृत तथ्य देकर सदन या उसके एक या अधिक सदस्यों के विशेषाधिकार का उल्लंघन किया है। इसका उद्देश्य संबंधित मंत्री की निंदा करना है।
- इसे राज्यसभा के साथ-साथ लोकसभा में भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
निंदा प्रस्ताव:
- लोकसभा में इसे स्वीकार करने का कारण बताना अनिवार्य है। इसे एक मंत्री या मंत्रियों के समूह या पूरी मंत्रिपरिषद के खिलाफ प्रस्तुत किया जा सकता है।
- इसे विशिष्ट नीतियों और कार्यों के लिये मंत्रिपरिषद की निंदा करने हेतु स्थानांतरित किया गया है। इसे केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है।
ध्यानाकर्षण प्रस्ताव:
- यह संसद में एक सदस्य द्वारा तत्काल सार्वजनिक महत्त्व के मामले पर एक मंत्री का ध्यान आकर्षित करने और उस मामले पर एक आधिकारिक बयान मांगने के लिये प्रस्तुत किया जाता है।
- इसे राज्यसभा के साथ-साथ लोकसभा में भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
स्थगन प्रस्ताव
- इसे लोकसभा में हाल के किसी अविलंबनीय लोक महत्त्व के परिभाषित मामले की ओर सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिये प्रस्तुत किया जाता है। इसमें सरकार के खिलाफ निंदा का एक तत्त्व शामिल होता है।
- इसे केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
अनियत दिवस प्रस्ताव
- यह एक ऐसा प्रस्ताव है जिसे अध्यक्ष ने स्वीकार कर लिया है लेकिन इस पर चर्चा के लिये कोई तारीख तय नहीं की गई है।
- इसे राज्यसभा के साथ-साथ लोकसभा में भी प्रस्तुत किया जा सकता है।
अविश्वास प्रस्ताव
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-75 में कहा गया है कि केंद्रीय मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है, अर्थात् इस सदन में बहुमत हासिल होने पर ही मंत्रिपरिषद बनी रह सकती है। इसके खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है। प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिये 50 सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता होती है।
- इसे केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
धन्यवाद प्रस्ताव
- प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र और प्रत्येक वित्तीय वर्ष के पहले सत्र को राष्ट्रपति द्वारा संबोधित किया जाता है। राष्ट्रपति के इस अभिभाषण पर संसद के दोनों सदनों में 'धन्यवाद प्रस्ताव' पर चर्चा होती है।
- धन्यवाद प्रस्ताव को सदन में पारित किया जाना चाहिये। अन्यथा यह सरकार की हार के समान है।
कटौती प्रस्ताव
- कटौती प्रस्ताव लोकसभा के सदस्यों में निहित एक विशेष शक्ति है जो अनुदान की मांग के हिस्से के रूप में वित्त विधेयक में सरकार द्वारा विशिष्ट आवंटन के लिये चर्चा की जा रही मांग का विरोध करती है।
- यदि प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया जाता है, तो यह अविश्वास प्रस्ताव के समान होगा और यदि सरकार निम्न सदन में बहुमत सिद्ध करने में विफल रहती है, तो वह सदन के मानदंडों के अनुसार इस्तीफा देने के लिये बाध्य होगी।
- निम्नलिखित में से किसी भी तरीके से मांग की मात्रा को कम करने के लिये एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जा सकता है:
- नीति कटौती प्रस्ताव: इसे इस तरह से प्रस्तुत किया जाता है कि मांग की राशि घटाकर 1 रुपया कर दी जाए", (मांग में अंतर्निहित नीति से अननुमोदन प्रकट करने के लिये हो) ऐसा प्रस्ताव "नीति कटौती प्रस्ताव" कहा जाएगा।
- अर्थव्यवस्था में कटौती का प्रस्ताव: इसे इस तरह से पेश किया जाता है कि मांग की राशि एक निर्दिष्ट राशि से कम हो जाए।
- टोकन कटौती प्रस्ताव: इसके अंतर्गत सदस्य किसी मंत्रालय की अनुदान मांगों में से 100 रुपए की टोकन कटौती का प्रस्ताव करते हैं। सरकार से कोई विशेष शिकायत होने पर भी सदस्य ऐसा करते हैं।
- इसे केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
दक्षिण अफ्रीका में हिंसक विरोध प्रदर्शन
प्रिलिम्स के लिये:दक्षिण अफ्रीका की भौगौलिक अवस्थिति मेन्स के लिये:भारत-दक्षिण अफ्रीका संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दक्षिण अफ्रीका में दंगों और लूटपाट में 70 से अधिक लोगों की मृत्यु हो गई, साथ ही व्यवसायों और देश की बुनियादी अवसंरचना को भी गंभीर नुकसान पहुँचा है।
- वर्ष 1994 में श्वेत अल्पसंख्यक शासन के अंत के बाद इस घटना को सबसे महत्त्वपूर्ण नागरिक अशांति के रूप में देखा जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
हालिया हिंसा के कारण
- इन विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत पूर्व राष्ट्रपति जैकब जुमा की रिहाई के आह्वान को लेकर हुई थी, जिन्होंने वर्ष 2009-18 तक देश में बतौर राष्ट्रपति कार्य किया और वर्तमान में वे भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
- पूर्व कैबिनेट मंत्रियों, उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारियों और राज्य के स्वामित्व वाले उद्यमों के अधिकारियों ने जैकब जुमा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।
- कई लोगों का मानना है कि राष्ट्रपति के रूप में उनके उत्तराधिकारी सिरिल रामफोसा निर्णायक नेतृत्त्व प्रदान करने में विफल रहे हैं, वे न तो जैकब जुमा की कैद को लेकर लोगों के गुस्से को शांत कर पाए और न ही दक्षिण अफ्रीका के नागरिकों को यह आश्वासन दे पाए कि वे सुरक्षित रहेंगे।
- यद्यपि जैकब जुमा की कैद के कारण हिंसा को बढ़ावा मिला है, किंतु यह हिंसा मुख्य तौर पर महामारी और विफल अर्थव्यवस्था के बीच देश में अंतर्निहित समस्याओं से प्रेरित है।
- वर्ष 2020 में दक्षिण अफ्रीका में वर्ष 1946 के बाद से वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद में सबसे तीव्र गिरावट देखी गई थी।
- वर्ष 2021 के पहले तीन महीनों में बेरोज़गारी 32.6% के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर थी।
सरकार की प्रतिक्रिया
- दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने हिंसा की निंदा की है और कहा है कि हिंसा का कोई औचित्य नहीं है। सरकार के मुताबिक, बहुत सारे अपराधी या अवसरवादी व्यक्ति इस अवधि के दौरान स्वयं को समृद्ध करने की कोशिश कर रहे हैं।
- सरकार ने दक्षिण अफ्रीकी पुलिस की सहायता के लिये सेना भी तैनात की है, हालाँकि दंगे और लूटपाट अभी भी बंद नहीं हुए हैं।
भारत-दक्षिण अफ्रीका संबंध
पृष्ठभूमि:
- दक्षिण अफ्रीका में स्वतंत्रता और न्याय के लिये संघर्ष के समय से भारत के संबंध उसके साथ हैं, जब महात्मा गांधी ने एक सदी पहले दक्षिण अफ्रीका में अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था।
- भारत, दक्षिण अफ्रीका में हुए रंगभेद विरोधी आंदोलन के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में सबसे आगे था। यह वहाँ की रंगभेदी सरकार के साथ व्यापार संबंधों को तोड़ने (वर्ष 1946 में) वाला पहला देश था और बाद में इसने इस सरकार पर पूर्ण राजनयिक, वाणिज्यिक, सांस्कृतिक तथा खेल प्रतिबंध भी लगाए।
- दक्षिण अफ्रीका ने अपनी रंगभेद नीति को समाप्त करने के चार दशकों के बाद वर्ष 1993 में भारत से व्यापार और व्यावसायिक संबंधों को फिर से स्थापित किया।
- दोनों देशों के बीच नवंबर 1993 में राजनयिक और वाणिज्यिक संबंध बहाल किये गए।
राजनीतिक संबंध:
- वर्ष 1994 में दक्षिण अफ्रीका ने लोकतंत्र की प्राप्ति के बाद मार्च 1997 में भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच सामरिक साझेदारी पर लाल किला घोषणा (Red Fort Declaration on Strategic Partnership) पर हस्ताक्षर किये, जिसने पुन: संबंध के लिये नए मानदंड निर्धारित किये।
- दोनों देशों के बीच सामरिक साझेदारी की फिर से तशवेन घोषणा (Tshwane Declaration- अक्तूबर 2006) में पुष्टि की गई।
- ये दोनों घोषणाएँ महत्त्वपूर्ण रही हैं जिन्होंने अतीत में दक्षिण अफ्रीका और भारत दोनों को अपने-अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों को प्राप्त करने में योगदान दिया है।
- भारत और दक्षिण अफ्रीका का वैश्विक शासन/बहुपक्षीय मंचों पर अपने विचारों तथा प्रयासों को समन्वित कर एक साथ काम करने का एक लंबा इतिहास रहा है।
- उदाहरण के लिये: ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका), आईबीएसए (भारत, ब्राज़ील तथा दक्षिण अफ्रीका), जी20, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) एवं विश्व व्यापार संगठन (WTO)।
आर्थिक
- भारत, दक्षिण अफ्रीका का पाँचवाँ सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है और चौथा सबसे बड़ा आयात मूल देश है तथा एशिया में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- दोनों देश आने वाले वर्षों में व्यापार बढ़ाने के लिये काम कर रहे हैं। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान में 10 अरब अमेरिकी डॉलर का है।
- वर्ष 2016 में दोनों देश रक्षा क्षेत्र में विशेष रूप से 'मेक इन इंडिया' पहल, ऊर्जा क्षेत्र, कृषि-प्रसंस्करण, मानव संसाधन विकास और बुनियादी ढाँचे के विकास के तहत दक्षिण अफ्रीकी निजी क्षेत्र हेतु उपलब्ध अवसरों के संदर्भ में सहयोग के लिये सहमत हुए।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
- दोनों देशों के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने विशेष रूप से ‘स्क्वायर किलोमीटर एरे’ (SKA) परियोजना में सहयोग किया है।
संस्कृति:
- भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICAR) की मदद से पूरे दक्षिण अफ्रीका में सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक गहन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें दक्षिण अफ्रीकी नागरिकों के लिये छात्रवृत्ति प्रदान करना भी शामिल है।
- 9वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन सितंबर 2012 में जोहान्सबर्ग में आयोजित किया गया था
भारतीय समुदाय:
- भारतीय मूल के समुदाय का बड़ा हिस्सा वर्ष 1860 के बाद से दक्षिण अफ्रीका में कृषि श्रमिकों के रूप में चीनी और अन्य कृषि बागानों में तथा मिल संचालकों के रूप में काम करने के लिये आया था।
- अफ्रीकी महाद्वीप में दक्षिण अफ्रीका सर्वाधिक भारतीय डायस्पोरा का घर है, जिसकी कुल संख्या 1,218,000 है, जो दक्षिण अफ्रीका की कुल आबादी का 3% है।
- वर्ष 2003 के बाद से भारत प्रत्येक वर्ष 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाता है (जिस दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे)।
आगे की राह:
- भारत-दक्षिण अफ्रीका की साझेदारी प्रगतिशील और अग्रगामी रही है। उनकी समृद्ध संस्कृति एवं लोगों के बीच संपर्क भारत-दक्षिण अफ्रीका संबंधों को गुणवत्ता प्रदान करते हैं।
- यह स्वाभाविक है कि दक्षिण अफ्रीका को एशिया में अन्य भागीदारों की आवश्यकता है जैसे- भारत अफ्रीका में अन्य को साझेदार बनाने में लगा हुआ है। हालाँकि भारत और दक्षिण अफ्रीका दोनों को लगातार इस बात को ध्यान में रखना होगा कि उनके अपने द्विपक्षीय संबंध प्राथमिकता के पात्र हैं और इसमें अपार संभावनाएँ हैं।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
नवीकरणीय ऊर्जा के लिये उभरते बाज़ार
प्रिलिम्स के लियेनवीकरणीय ऊर्जा मेन्स के लियेऊर्जा ट्रांज़िशन और इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, उभरते बाज़ारों द्वारा कम लागत वाले नवीकरणीय ऊर्जा के अवसरों पर अधिक ध्यान केंद्रित किये जाने से विश्व भर में जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन का स्तर अपने चरम पर पहुँच गया है और जल्द ही इसमें कमी देखने को मिलेगी।
- यह रिपोर्ट भारत की ‘ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद’ (CEEW) और वित्तीय थिंक टैंक ‘कार्बन ट्रैकर’ (दोनों गैर-लाभकारी संगठन हैं) द्वारा प्रकाशित की गई थी।
प्रमुख बिंदु
निष्कर्ष
- उभरते बाज़ार वैश्विक ऊर्जा ट्रांज़िशन की कुंजी हैं:
- उभरते बाज़ार वैश्विक ऊर्जा ट्रांज़िशन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये वर्ष 2019 से वर्ष 2040 के बीच कुल बिजली की मांग में सभी अपेक्षित वृद्धि के 88 के लिये उत्तरदायी होंगे।
- समग्र तौर पर मौजूदा उभरते बाज़ार में बिजली की मांग का 82% और अपेक्षित मांग वृद्धि का 86% उन देशों से आता है, जो कोयला एवं गैस का आयात करते हैं तथा इन देशों के पास सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा में स्विच करने हेतु महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन हैं।
- सही नीतियों के साथ इस परिवर्तन के लिये प्रौद्योगिकी और लागत बाधाओं को आसानी से पार किया जा सकता है।
- उभरते बाज़ारों में ट्रांज़िशन की स्थिति अलग है क्योंकि उन्हें करोड़ों लोगों को नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुँच प्रदान करने के साथ-साथ निचले स्तर पर बिजली की मांग में वृद्धि को भी पूरा करना है।
- विकसित बाज़ारों में बिजली उत्पादन के लिये जीवाश्म ईंधन की मांग में 20% की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि वर्ष 2007 में अपने चरम स्तर पर थी।
- उभरते बाज़ार वैश्विक ऊर्जा ट्रांज़िशन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये वर्ष 2019 से वर्ष 2040 के बीच कुल बिजली की मांग में सभी अपेक्षित वृद्धि के 88 के लिये उत्तरदायी होंगे।
- उभरते बाज़ारों के चार प्रमुख समूह:
- चीन, बिजली की मांग के लगभग आधे हिस्से के लिये उत्तरदायी है और 39% अपेक्षित वृद्धि की भी उम्मीद है।
- भारत या वियतनाम जैसे कोयला और गैस के अन्य आयातक, मांग के तिहाई और वृद्धि के लगभग आधे हिस्से के लिये उत्तरदायी हैं।
- रूस या इंडोनेशिया जैसे कोयला और गैस निर्यातक मांग के 16% लेकिन वृद्धि के केवल 10% के लिये उत्तरदायी हैं।
- कोयला और गैस निर्यातक देशों में ऊर्जा ट्रांज़िशन का प्रतिरोध अधिक होने की संभावना है।
- नाइजीरिया या इराक जैसे ‘संवेदनशील’ देश मांग के 3% और वृद्धि के इतने ही हिस्से के लिये उत्तरदायी हैं।
- भारत एक मिसाल के तौर पर:
- भारत की उभरते बाज़ार में बिजली की मांग 9% और अपेक्षित मांग वृद्धि में 20% की हिस्सेदारी है जो परिवर्तन की गति और स्तर को दर्शाता है।
- वर्ष 2010 में 20GW से कम सौर ऊर्जा उत्पादन से यह मई 2021 में 96GW सौर, पवन बायोमास और छोटे हाइड्रो के स्तर तक बढ़ गया है।
- बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के साथ नवीकरणीय ऊर्जा देश की बिजली उत्पादन क्षमता में 142GW या 37% हिस्सेदारी रखती है तथा वर्ष 2030 तक इसके तहत 450GW का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- वर्ष 2018 में जीवाश्म ईंधन उत्पादन की मांग एक स्तर पर पहुँच गई तथा वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में इसमें गिरावट देखी गई।
- जबकि जीवाश्म ईंधन की मांग निकट भविष्य में बिजली की मांग को पूरा करने हेतु फिर से बढ़ सकती है, किंतु भारत ने इस बात को साबित किया है कि किस प्रकार बाज़ार डिज़ाइन और नीतिगत प्राथमिकताओं के माध्यम से सभी घरों को बिजली से जोड़ने और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
सुझाव:
- एक सहायक नीति वातावरण, नवीकरणीय ऊर्जा के विकास को गति देने की कुंजी है।
- यदि देश बाज़ारों को उदार और नीलामी को प्रतिस्पर्द्धी बनाते हैं, तो वे लागत में कटौती कर अंतर्राष्ट्रीय वित्त को आकर्षित कर सकते हैं क्योंकि ऐसा करने पर जीवाश्म ईंधन में निवेश को रोका जा सकता है।
- नीलामी से भारत को वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा की लागत को कम करने में मदद मिलेगी।
- विकसित देश नीतिगत समर्थन, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता और पूंजी लागत को कम करके विकास वित्त का उपयोग उभरते बाजारों में अक्षय ऊर्जा के प्रसार में तीव्रता लाने हेतु कर सकते हैं।
अक्षय ऊर्जा के लिये भारतीय पहल
- केंद्रीय बजट 2021-22 के तहत एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (National Hydrogen Energy Mission-NHM) की घोषणा की गई है, जो हाइड्रोजन को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिये एक रोडमैप तैयार करेगा।
- इस पहल में परिवहन क्षेत्र में बदलाव लाने की क्षमता है।
जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन JNNSM):
- इस मिशन को वर्ष 2009 से वर्ष 2022 तक 20,000 मेगावाट ग्रिड से जुड़ी सौर ऊर्जा के उत्पादन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ लॉन्च किया गया था।
- 2010-15 के दौरान स्थापित सौर क्षमता का 18 मेगावाट से लगभग 3800 मेगावाट के साथ इस क्षेत्र में तेज़ी से विकास हुआ है।
- यह भारत के प्रधानमंत्री और फ्राँस के राष्ट्रपति द्वारा 30 नवंबर, 2015 को फ्राँस की राजधानी पेरिस में आयोजित कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़-21 (COP-21) के दौरान शुरू की गई पहल है जिसमें 121 संभावित सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था, जो पूर्ण या आंशिक रूप से कर्क और मकर रेखा के बीच स्थित हैं।
- कुसुम का अभिप्राय किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाभियान से है।
- इसका उद्देश्य 2022 तक 25,750 मेगावाट की सौर ऊर्जा क्षमता का उपयोग करके किसानों को वित्तीय और जल सुरक्षा प्रदान करना है।
राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति:
- राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, बुनियादी ढांँचे तथा भूमि के इष्टतम एवं कुशल उपयोग के लिये ग्रिड कनेक्टेड विंड-सोलर पीवी सिस्टम (Wind-Solar PV Hybrid Systems) को बढ़ावा देने हेतु एक रूपरेखा प्रस्तुत करना है।
- पवन-सौर पीवी हाइब्रिड सिस्टम अक्षय ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तनशीलता को कम करने तथा बेहतर ग्रिड स्थिरता प्राप्त करने में सहायक होगा।
- इसका उद्देश्य घरों की छत पर सौर पैनल स्थापित कर सौर ऊर्जा उत्पन्न करना है।
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ग्रिड से जुड़ी रूफटॉप सौर योजना (द्वितीय चरण) की कार्यान्वयन एजेंसी है।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में वस्त्र उद्योग
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन, जूट आईकेयर, रेशम उत्पादन, भारतीय सकल घरेलू उत्पाद, तकनीकी वस्त्र, रेशम समग्र योजना, एकीकृत वस्त्र पार्क योजना, संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना मेन्स के लियेवस्त्र उद्योग एवं इसकी चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय कपड़ा मंत्री ने कपड़ा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये कपड़ा मंत्रालय (Ministry of Textile) द्वारा की गई पहलों की गहन समीक्षा की।
प्रमुख बिंदु
कपड़ा और वस्त्र उद्योग के विषय में:
- कपड़ा और वस्त्र उद्योग श्रम प्रधान क्षेत्र है जो भारत में 45 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है, रोज़गार के मामले में इस क्षेत्र का कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा स्थान है।
- भारत का कपड़ा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है और पारंपरिक कौशल, विरासत तथा संस्कृति का भंडार एवं वाहक है।
- इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है-
- असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने का है जो पारंपरिक उपकरणों और विधियों का उपयोग करता है। इसमें हथकरघा, हस्तशिल्प एवं रेशम उत्पादन शामिल हैं।
- संगठित क्षेत्र आधुनिक मशीनरी और तकनीकों का उपयोग करता है तथा इसमें कताई, परिधान एवं वस्त्र शामिल हैं।
वस्त्र उद्योग का महत्त्व:
- यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.3%, औद्योगिक उत्पादन का 7%, भारत की निर्यात आय में 12% और कुल रोज़गार में 21% से अधिक का योगदान देता है।
- भारत 6% वैश्विक हिस्सेदारी के साथ तकनीकी वस्त्रों (Technical Textile) का छठा (विश्व में कपास और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक) बड़ा उत्पादक देश है।
- तकनीकी वस्त्र कार्यात्मक कपड़े होते हैं जो ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा आदि सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होते हैं।
- भारत विश्व में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश भी है जिसकी विश्व में हाथ से बुने हुए कपड़े के मामले में 95% हिस्सेदारी है।
भारतीय वस्त्र उद्योग की चुनौतियाँ
- अत्यधिक खंडित: भारतीय वस्त्र उद्योग अत्यधिक खंडित है और इसमें मुख्य तौर पर असंगठित क्षेत्र तथा छोटे एवं मध्यम उद्योगों का प्रभुत्व देखने को मिलता है।
- पुरानी तकनीक: भारतीय वस्त्र उद्योग के समक्ष नवीनतम तकनीक तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है (विशेषकर लघु उद्योगों में) और ऐसी स्थिति में यह अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार में वैश्विक मानकों को पूरा करने में विफल रहा है।
- कर संरचना संबंधी मुद्दे: कर संरचना जैसे- वस्तु एवं सेवा कर (GST) घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में वस्त्र उद्योग को महँगा एवं अप्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
- स्थिर निर्यात: इस क्षेत्र का निर्यात स्थिर है और पिछले छह वर्षों से 40 अरब डॉलर के स्तर पर बना हुआ है।
- व्यापकता का अभाव: भारत में परिधान इकाइयों का औसत आकार 100 मशीनों का है जो बांग्लादेश की तुलना में बहुत कम है, जहाँ प्रति कारखाना औसतन कम-से-कम 500 मशीनें हैं।
- विदेशी निवेश की कमी: ऊपर दी गई चुनौतियों के कारण विदेशी निवेशक वस्त्र उद्योग में निवेश करने के बारे में बहुत उत्साहित नहीं हैं जो कि एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है।
- यद्यपि इस क्षेत्र में पिछले पाँच वर्षों के दौरान निवेश में तेज़ी देखी गई है, किंतु उद्योग ने अप्रैल 2000 से दिसंबर 2019 तक केवल 3.41 बिलियन अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया है।
प्रमुख पहल:
- संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (Amended Technology Upgradation Fund Scheme- ATUFS): वर्ष 2015 में सरकार ने कपड़ा उद्योग के प्रौद्योगिकी उन्नयन हेतु "संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (ATUFS) को मंज़ूरी दी।
- एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (Scheme for Integrated Textile Parks- SITP): यह योजना कपड़ा इकाइयों की स्थापना के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाओं के निर्माण हेतु सहायता प्रदान करती है।।
- समर्थ (कपड़ा क्षेत्र में क्षमता निर्माण हेतु योजना): कुशल श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिये वस्त्र क्षेत्र में क्षमता निर्माण हेतु समर्थ योजना (SAMARTH Scheme) की शुरुआत की गई।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र वस्त्र संवर्द्धन योजना (North East Region Textile Promotion Scheme- NERTPS): यह कपड़ा उद्योग के सभी क्षेत्रों को बुनियादी ढांँचा, क्षमता निर्माण और विपणन सहायता प्रदान करके NER में कपड़ा उद्योग को बढ़ावा देने से संबंधित योजना है।
- पावर-टेक्स इंडिया: इसमें पावरलूम टेक्सटाइल में नए अनुसंधान और विकास, नए बाज़ार, ब्रांडिंग, सब्सिडी और श्रमिकों हेतु कल्याणकारी योजनाएंँ शामिल हैं।
- रेशम समग्र योजना: यह योजना घरेलू रेशम की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती है ताकि आयातित रेशम पर देश की निर्भरता कम हो सके।
- जूट आईकेयर: वर्ष 2015 में शुरू की गई इस पायलट परियोजना का उद्देश्य जूट की खेती करने वालों को रियायती दरों पर प्रमाणित बीज प्रदान करना और पानी सीमित परिस्थितियों में कई नई विकसित रेटिंग प्रौद्योगिकियों को लोकप्रिय बनाने के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना है।
- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन: इसका उद्देश्य देश को तकनीकी वस्त्रों में वैश्विक नेता के रूप में स्थान देना और घरेलू बाज़ार में तकनीकी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ाना है। इसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक घरेलू बाज़ार का आकार 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाना है।
आगे की राह:
- वस्त्र क्षेत्र में काफी संभावनाएँ हैं और इसे नवाचारों, नवीनतम प्रौद्योगिकी और सुविधाओं का उपयोग करके महसूस किया जाना चाहिये।
- भारत वस्त्र उद्योग के लिये मेगा अपैरल पार्क और साझा बुनियादी ढाँचे की स्थापना करके इस क्षेत्र को संगठित कर सकता है। अप्रचलित मशीनरी और प्रौद्योगिकी के आधुनिकीकरण पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- भारत को वस्त्र क्षेत्र के विकास हेतु एक व्यापक खाका तैयार करने की ज़रूरत है। इसके एक बार तैयार हो जाने के बाद देश को इसे हासिल करने के लिये मिशन मोड में कार्य करने की ज़रूरत होगी।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
ड्रोन नीति का मसौदा, 2021
प्रिलिम्स के लिये:मानवरहित विमान प्रणाली, ड्रोन उड़ान संबंधी नियम मेन्स के लिये:ड्रोन नियम 2021 का मसौदा तथा इसके निहितार्थ |
चर्चा में क्यों?
नागर विमानन मंत्रालय (Ministry of Civil Aviation) ने ‘‘विश्वास, स्वप्रमाणन एवं बिना किसी हस्तक्षेप के निगरानी’’ के आधार पर भारत में ड्रोन का आसानी से इस्तेमाल सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मसौदा नियम जारी किये हैं।
- नए नियम मार्च 2021 में अधिसूचित मौजूदा मानवरहित विमान प्रणाली (Unmanned Aircraft System- UAS) नियमों का स्थान लेंगे।
प्रमुख बिंदु:
उद्देश्य:
- विभिन्न प्रकार अनुमोदन प्राप्त करने के लिये व्यवसाय के अनुकूल सिंगल-विंडो ऑनलाइन सिस्टम के रूप में "डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म" का निर्माण करना।
- डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म पर मानव हस्तक्षेप न्यूनतम होगा और अधिकांश अनुमतियाँ सेल्फ-जनरेटेड होंगी।
प्रावधान:
- अनुमोदन: विशिष्ट प्राधिकार संख्या, विशिष्ट प्रोटोटाइप पहचान संख्या, अनुरूपता प्रमाणपत्र, रखरखाव प्रमाणपत्र, आयात क्लियरंस, मौजूदा ड्रोन की स्वीकृति, संचालन परमिट, अनुसंधान एवं विकास संगठन का प्राधिकार, छात्र रिमोट पायलट लाइसेंस, रिपोट पायलट प्रशिक्षक प्राधिकार, ड्रोन पोर्ट प्राधिकार आदि संबंधी मंज़ूरी को रद्द करना।
- शुल्क को न्यूनतम स्तर पर करना।
- डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म: डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म पर हरे, पीले और लाल ज़ोन के तौर पर वायुसीमा मानचित्र प्रदर्शित किया जायेगा।
- यह एक सुरक्षित और स्केलेबल प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराएगा जो ‘नो पर्मिशन–नो टेक-ऑफ’ (NPNT), वास्तविक समय में ट्रैकिंग, जियो-फेंसिंग जैसे सुरक्षा तत्त्वों को समर्थन प्रदान करेगा।
- हवाई अड्डे की परिधि में कमी: मसौदा नियम हवाई अड्डे की परिधि को 45 किमी. से घटाकर 12 किमी. करने का प्रावधान करते हैं।
- नियम के अनुसार, हरे ज़ोन में 400 फीट तक और हवाईअड्डे की 8 से 12 किमी. की परिधि में 200 फीट तक की उड़ान के लिये ‘नो फ्लाइट’ अनुमति लेना आवश्यक होगा।
- पायलट लाइसेंस: गैर-व्यावसायिक उपयोग, नैनो ड्रोन और अनुसंधान एवं विकास संगठनों के माइक्रो ड्रोन के लिये किसी पायलट लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी।
- भारत में पंजीकृत विदेशी स्वामित्व वाली कंपनियों द्वारा ड्रोन संचालन पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।
- ड्रोन कॉरिडोर: मंत्रालय कार्गो डिलीवरी के लिये ड्रोन कॉरिडोर के विकास की सुविधा भी देगा और व्यापार के अनुकूल नियामक व्यवस्था की सुविधा के लिये एक ड्रोन संवर्द्धन परिषद की स्थापना की जाएगी।
- सुरक्षा विशेषताएँ: मसौदा नियम में रीयल-टाइम ट्रैकिंग और जियो-फेंसिंग जैसी सुरक्षा सुविधाओं का भी प्रावधान है, जिन्हें भविष्य में अधिसूचित किये जाने की आशा है और अनुपालन के लिये छह महीने का समय दिया जाएगा।
- ड्रोन कवरेज़ में वृद्धि: ड्रोन कवरेज़ को 300 किलोग्राम से बढ़ाकर 500 किलोग्राम कर दिया गया है। इसमें ड्रोन टैक्सी भी शामिल हैं, जबकि उड़ान योग्यता प्रमाणपत्र जारी करने का काम भारतीय गुणवत्ता परिषद तथा इसके द्वारा अधिकृत प्रमाणन संस्थाओं को सौंपा गया है।
विश्लेषण:
- जम्मू में हाल की ड्रोन घटनाओं के बाद भी ड्रोन नीति को उदार बनाने का निर्णय इसके उपयोग को बढ़ावा देने के लिये सरकार के साहसिक दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है और ड्रोन द्वारा उत्पन्न खतरे को दूर करने हेतु काउंटर-ड्रोन तकनीक के विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
- वर्तमान मसौदा एक स्वागत योग्य कदम है जो भारत में ड्रोन प्रौद्योगिकी में निवेश को सुविधाजनक बनाने में सहायता करेगा।
भारत में ड्रोन विनियमों के नियम:
ड्रोन
- ड्रोन मानव रहित विमान (Unmanned Aircraft) के लिये प्रयुक्त एक आम शब्दावली है। मानव रहित विमान के तीन उप-सेट हैं- रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट (Remotely Piloted Aircraft), ऑटोनॉमस एयरक्राफ्ट (Autonomous Aircraft) और मॉडल एयरक्राफ्ट (Model Aircraft)।
- रिमोटली पायलटेड एयरक्राफ्ट में रिमोट पायलट स्टेशन, आवश्यक कमांड और कंट्रोल लिंक तथा अन्य घटक होते हैं।
- ड्रोन को उनके वज़न के आधार पर पाँच श्रेणियों में बाँटा गया है-
- नैनो- 250 ग्राम से कम
- माइक्रो- 250 ग्राम से 2 किग्रा. तक
- स्माल- 2 किग्रा. से 25 किग्रा. तक
- मीडियम- 25 किग्रा. से 150 किग्रा. तक
- लार्ज- 150 किग्रा. से अधिक
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
भारत में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर
प्रिलिम्स के लिये:न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, गैर-संचारी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर मेन्स के लिये:न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिये ज़िम्मेदार कारक और उनसे निपटने के उपाय |
चर्चा में क्यों?
लैंसेट ग्लोबल हेल्थ (Lancet Global Health) में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में वर्ष 1990 से 2019 तक भारत में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर से संबंधित मामलों का पहला व्यापक विश्लेषण प्रकाशित किया गया है।
- यह अध्ययन ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ स्टडी 2019 का एक हिस्सा है, जिसे इंडिया स्टेट लेवल डिज़ीज़ बर्डन इनिशिएटिव (India State-Level Disease Burden Initiative) द्वारा प्रकाशित किया गया था।
- इंडिया स्टेट लेवल डिज़ीज़ बर्डन इनिशिएटिव अन्य सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों के साथ-साथ इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research- ICMR) की एक संयुक्त पहल है।
न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर/तंत्रिका संबंधी विकार
- अर्थ: न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर केंद्रीय और परिधीय तंत्रिका तंत्र (Central and Peripheral Nervous System) से संबंधित रोग हैं, दूसरे शब्दों में मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी, कपाल तंत्रिकाएंँ, परिधीय तंत्रिकाएंँ, तंत्रिका जोड़, स्वायत्त तंत्रिका तंत्र, न्यूरोमस्कुलर जंक्शन और मांसपेशियों से संबंधित विकार।
- गैर-संचारी तंत्रिका संबंधी विकार: इसमें स्ट्रोक, सिरदर्द, मिरगी, सेरेब्रल पाल्सी, अल्ज़ाइमर रोग (Alzheimer’s Disease ) और मस्तिष्क एवं केंद्रीय तंत्रिका तंत्र का कैंसर, पार्किंसंस रोग (Parkinson’s Disease), मल्टीपल स्केलेरोसिस (Multiple Sclerosis), मोटर न्यूरॉन रोग (Motor Neuron Diseases) व अन्य तंत्रिका संबंधी विकार शामिल होते हैं।
- संचारी तंत्रिका संबंधी विकार: इंसेफेलाइटिस (Encephalitis), मेनिनजाइटिस (Meningitis), टेटनस (Tetanus)।
- चोट से संबंधित तंत्रिका संबंधी विकार: दर्दनाक मस्तिष्क की चोटें, रीढ़ की हड्डी की चोटें।
प्रमुख बिंदु:
डेटा विश्लेषण:
- भारत में कुल रोगों में 10% योगदान न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का है।
- देश में गैर-संचारी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का बोझ बढ़ रहा है, जो मुख्य रूप से जनसंख्या की उम्र बढ़ने के कारण है।
- भारत में कुल विकलांगता समायोजित जीवन-वर्ष (Disability Adjusted Life-Years- DALY) में गैर-संचारी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का योगदान वर्ष 1990 में 4% से दोगुना होकर वर्ष 2019 में 8·2% हो गया और चोट से संबंधित न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का योगदान 0·2% से बढ़कर 0·6% हो गया है।
- विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years- DALYs) समय से पहले मृत्यु के कारण खोए हुए जीवन के वर्षों की संख्या और बीमारी या चोट के कारण विकलांगता के साथ रहने वाले वर्षों की एक भारित माप है।
- जबकि संचारी रोगों ने पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में कुल न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के बोझ में योगदान दिया, अन्य सभी आयु समूहों में गैर-संचारी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का सबसे अधिक योगदान था।
- भारत में संक्रामक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का बोझ कम हो गया है, हालाँकि कम विकसित राज्यों में यह बोझ अधिक है।
राज्यवार परिदृश्य:
- इस अवधि के दौरान न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के मामलों में विकलांगता- समायोजित जीवन वर्षों (DALY) की उच्चतम दर देश के पूर्वी और पूर्वोत्तर राज्यों जैसे- पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा, त्रिपुरा और असम में थी।
- वर्ष 2019 में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में संचारी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर जैसे- इंसेफेलाइटिस, मेनिनजाइटिस व टेटनस की विकलांगता- समायोजित जीवन वर्ष (DALY) दर सर्वाधिक थी।
- वर्ष 2019 में भारत के दक्षिणी राज्यों जैसे- तमिलनाडु एवं केरल, इसके बाद पश्चिम में गोवा तथा उत्तर में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में क्षति से संबंधित न्यूरोलॉजिकल स्थितियों की विकलांगता-समायोजित जीवन वर्षों (DALY) की दर सर्वाधिक थी।
प्रमुख मस्तिष्क संबंधी विकार:
- स्ट्रोक, सिरदर्द विकार और मिर्गी भारत में स्नायविक विकारों के बोझ में प्रमुख योगदानकर्ता हैं।
- गैर-संचारी तंत्रिका संबंधी विकारों में स्ट्रोक भारत में मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है, तथा डिमेंशिया (मनोभ्रंश) अत्यधिक तीव्र गति से प्रसारित होने वाला तंत्रिका/मस्तिष्क संबंधी विकार है।
- सिरदर्द प्रत्येक 3 में से 1 भारतीय को प्रभावित करने वाला सामान्य तंत्रिका संबंधी विकार है तथा इसे अक्सर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्राथमिकता के संदर्भ में उपेक्षित किया जाता है।
- माइग्रेन पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करता है, जो कामकाजी उम्र की आबादी में वयस्कों को बहुत प्रभावित करता है।
तंत्रिका संबंधी रोगों के लिये ज़िम्मेदार कारक:
- न्यूरोलॉजिकल विकारों के लिये ज्ञात जोखिम कारकों में बोझ, उच्च रक्तचाप, वायु प्रदूषण, आहार संबंधी जोखिम, प्लाज़्मा ग्लूकोज़ और उच्च बॉडी-मास इंडेक्स प्रमुख योगदानकर्त्ता हैं।
आगे की राह:
- प्रत्येक राज्य में तंत्रिका विज्ञान सेवाओं की योजना: इस अध्ययन में प्रत्येक राज्य में तंत्रिका संबंधी विकारों के बोझ को कम करने के लिये जागरूकता बढ़ाने, शीघ्र पहचान, लागत प्रभावी उपचार और अन्य प्रयासों के बीच पुनर्वास का आह्वान किया गया है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में सिरदर्द: सिरदर्द, विशेष रूप से माइग्रेन को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में पहचाना जाना चाहिये और इसे राष्ट्रीय गैर-संचारी रोग कार्यक्रम के तहत शामिल किया जाना चाहिये।
- तंत्रिका विज्ञान कार्यबल को सुदृढ़ बनाना: प्रशिक्षित न्यूरोलॉजी कार्यबल की कमी को दूर करने और देश में तंत्रिका संबंधी विकारों का शीघ्र पता लगाने तथा लागत प्रभावी प्रबंधन को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
- सुरक्षित जन्म को बढ़ावा देना: सुरक्षित जन्म पर ध्यान केंद्रित करने वाली नीतियाँ और प्रथाएँ, सिर की चोट और स्ट्रोक को रोकने से मिर्गी को रोकने में मदद मिलेगी।