डेली न्यूज़ (15 Sep, 2023)



G 20 शिखर सम्मेलन


ग्लोबल स्टॉकटेक रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लोबल स्टॉकटेक रिपोर्ट, संयुक्त राष्ट्र जलवायु सचिवालय, जलवायु परिवर्तन, पेरिस समझौता 2015, ग्रीनहाउस गैस, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान

मेन्स के लिये:

ग्लोबल स्टॉकटेक रिपोर्ट और इसकी सिफारिशें

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नई दिल्ली में 18वें G20 शिखर सम्मेलन के आयोजन से पूर्व जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) द्वारा पहली ग्लोबल स्टॉकटेक की सिंथेसिस रिपोर्ट जारी की गई।

  • यह रिपोर्ट कुल 17 प्रमुख निष्कर्ष प्रस्तुत करती है, जिसमें पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में विश्व की चिंताजनक प्रगति को दर्शाती है। सुधारात्मक कार्रवाई की संभावना के बावजूद रिपोर्ट से यह जानकारी मिलती है कि इस दिशा में वैश्विक प्रयास कम हुए हैं।

ग्लोबल स्टॉकटेक:

  • ग्लोबल स्टॉकटेक वर्ष 2015 में पेरिस समझौते के तहत स्थापित एक आवधिक समीक्षा तंत्र है।
  • इसका प्राथमिक उद्देश्य ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण में अलग-अलग देशों द्वारा किये जा रहे प्रयासों का आकलन करना है।
  • स्टॉकटेक को देशों को अपनी जलवायु महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित करने तथा उत्तरदायी बनाए रखने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • वर्ष 2015 में विभिन्न देशों ने 21वीं सदी के अंत तक वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ने से रोकने और ‘जहाँ तक संभव हो’ 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये पेरिस में प्रतिबद्धता जताई थी। साथ ही उन्होंने ग्रीनहाउस गैसों को नियंत्रित करने में अलग-अलग देशों द्वारा आवधिक समीक्षा अथवा इस दिशा में किये गए प्रयासों का आकलन करने पर भी सहमति जताई थी।
  • हालाँकि अनेक देशों ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (Nationally Determined Contributions- NDC) निर्धारित किये हैं, ऐसे में उनसे अपेक्षा की जाती है वे प्रत्येक पाँच वर्ष पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने हेतु अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को बढ़ावा दें।
  • वर्ष 2020 में नवीनतम NDC प्रस्तुत किये जाने के बावजूद स्टॉकटेक का उद्देश्य वर्ष 2025 में अगले NDC प्रकाशित होने से पहले देशों को उच्चतर लक्ष्य निर्धारित करने के लिये प्रेरित करना भी है।

रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें:

  • पेरिस समझौते का प्रेरक प्रभाव: 
    • पेरिस समझौते ने देशों को लक्ष्य निर्धारित करने और वैश्विक स्थिति की गंभीरता से निपटने में किये जाने वाले प्रयासों पर ज़ोर देने के लिये प्रेरित किया है।
    • सरकारों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढाने में व्यवसायों में जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करते हुए धारणीय स्रोतों व संसाधानों की ओर संक्रमण एवं उनके उपयोग का समर्थन करने की आवश्यकता है तथा इस दिशा में राज्यों व सामुदायिक प्रयासों को मज़बूती प्रदान करना चाहिये। 
    • अर्थव्यवस्था को धारणीय बनाने के प्रयास में किसी भी प्रकार का तीव्र परिवर्तन "विघटनकारी" हो सकता है, ऐसे में देशों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि आर्थिक संक्रमण न्यायसंगत और समावेशी हो।
    • वर्ष 2030 तक वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 43% तक कम करने और वर्ष 2035 तक 60% तक कम करने तथा वैश्विक स्तर पर वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।
    • त्वरित परिवर्तन के दौरान न्यायसंगत और समावेशी आर्थिक संक्रमण को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • न्यायसंगत आर्थिक संक्रमण: 
    • नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि करना और वनोन्मूलन को रोकना: 
    • वर्तमान में नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि करने और जीवाश्म ईंधन के उपयोग में तेज़ी से कमी लाने की आवश्यकता है।
    • वनोन्मूलन और भूमि-क्षरण पर रोक लगाने के साथ वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने की भी आवश्यकता है। साथ ही विभिन्न हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये प्रमुख कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  • खंडित अनुकूलन प्रयास: 
    • यद्यपि पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन के वर्तमान और भविष्य के प्रभावों को अनुकूलित करने में मदद हेतु कदम बढ़ाने के लिये प्रतिबद्ध है, फिर भी अधिकांश प्रयास "खंडित, वृद्धिशील, क्षेत्र-विशिष्ट और क्षेत्रों में असमान रूप से वितरित" पाए गए।
    • अनुकूलन पर पारदर्शी रिपोर्टिंग समझ बढ़ाने, कार्यान्वयन और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुविधाजनक बनाने मदद कर सकती है।
  • हानि और क्षति रोकने के लिये समाधान:
    • 'नुकसान और क्षति' को रोकने, कम करने तथा इनका समाधान करने के लिये जोखिमों को व्यापक रूप से प्रबंधित करने एवं प्रभावित समुदायों को सहायता प्रदान करने के लिये जलवायु और विकास नीतियों पर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से होने वाले नुकसान को रोकने, कम करने और इनका समाधान करने के लिये अनुकूलन और वित्तपोषण व्यवस्था हेतु समर्थन को तेज़ी से नवीन स्रोतों तक विस्तारित करने की आवश्यकता है। 
  • जलवायु वित्त अभिगम में वृद्धि:
    • तत्काल और बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिये वित्तीय प्रवाह को जलवायु-प्रत्यास्थ विकास के अनुरूप बनाने की आवश्यकता है।
    • ग्रीनहाउस गैस के न्यूनतम उत्सर्जन और जलवायु-प्रत्यास्थ विकास का समर्थन करने के लिये वित्तीय प्रवाह में पर्याप्त बदलाव करना आवश्यक है।

ग्लोबल स्टॉकटेक रिपोर्ट के प्रभाव:

  • वैश्विक स्टॉकटेक रिपोर्ट ने G20 नेताओं की घोषणा को प्रभावित किया, जो शिखर सम्मेलन का एक महत्त्वपूर्ण परिणाम था। पहली बार घोषणापत्र ने औपचारिक रूप से नवीकरणीय ऊर्जा में परिवर्तन के लिये पर्याप्त वित्तीय आवश्यकताओं को मान्यता दी।
  • वर्ष 2050 तक निवल-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये यह अनुमान लगाया गया है कि विकासशील देशों को वर्ष 2030 से पूर्व के वर्षों में 5.8 से 5.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी, साथ ही स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के लिये सालाना 4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी।  

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?  (2016)

  1. इस समझौते पर UN के सभी सदस्यों ने हस्ताक्षर किये और यह वर्ष 2017 से लागू होगा।
  2. यह समझौता ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को सीमित करने का लक्ष्य रखता है, जिससे इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान की वृद्धि उद्योग-पूर्व स्तर (Pre-industrial levels) से 2OC या कोशिश करें कि 1.5OC से अधिक न होने पाए।
  3. विकसित देशों ने वैश्विक तापमान में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकारा और जलवायु परिवर्तन का सामना करने तथा अन्य विकासशील देशों की सहायता के लिये वर्ष 2020 से प्रतिवर्ष 1000 अरब डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3 
(b) केवल 2 
(c) केवल 2 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. 'अभीष्ट राष्ट्रीय निर्धारित अंशदान (Intended Nationally Determined Contributions)’ पद को कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में  देखा जाता है? (2016)

(a) युद्ध प्रभावित मध्य-पूर्व के शरणार्थियों के पुनर्वास के लिये यूरोपीय देशों द्वारा दिये गए वचन।
(b) जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना।
(c) एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक) की स्थापना करने में सदस्य राष्ट्रों द्वारा किया गया पूंजी योगदान। 
(d) धारणीय विकास लक्ष्यों के बारे में विश्व के देशों द्वारा बनाई गई कार्य-योजना।

उत्तर: (b)


RBI द्वारा I-CRR को वापस लेने का निर्णय

प्रिलिम्स के लिये:

RBI द्वारा I-CRR को वापस लेने का निर्णय, वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR), वैधानिक तरलता अनुपात, मौद्रिक नीति, भारतीय रिज़र्व बैंक

मेन्स के लिये:

RBI द्वारा I-CRR को वापस लेने का निर्णय, इसकी आवश्यकता और निहितार्थ

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वृद्धिशील नकद आरक्षित अनुपात (I-CRR) को चरणबद्ध तरीके से बंद करने की घोषणा की।

  • केंद्रीय बैंक कई चरणों में  I-CRR के तहत बैंकों द्वारा रखी गई राशि जारी करेगा।

RBI द्वारा I-CRR को वापस लेने की प्रक्रिया:

  • सुचारु परिवर्तन सुनिश्चित करने और सिस्टम की तरलता में अचानक झटके को रोकने के लिये I-CRR को बंद करने का कार्य चरणबद्ध तरीके से किया जाएगा।
    • I-CRR रिवर्सल के पहले और दूसरे चरण में प्रत्येक बैंक की जब्त धनराशि का 25% जारी किया जाएगा। शेष 50% राशि तीसरे चरण में जारी की जाएगी।
  •  इस दृष्टिकोण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बैंकों के पास आगामी त्योहारी सीज़न के दौरान बढ़ी हुई ऋण मांग को पूरा करने के लिये पर्याप्त तरलता हो।

I-CRR:

  • पृष्ठभूमि:
  • I-CRR शुरू करने का उद्देश्य:
    • RBI ने बैंकिंग प्रणाली में अतिरिक्त तरलता को प्रबंधित करने के लिये एक अस्थायी उपाय के रूप में I-CRR की शुरुआत की।
    • अधिशेष तरलता में कई कारकों ने योगदान दिया, जिसमें 2,000 रुपए के नोटों का विमुद्रीकरण भी शामिल है।
    • RBI द्वारा अधिशेष सरकार को हस्तांतरित करना, सरकारी खर्च और पूंजी प्रवाह में वृद्धि करता है। 
    • इस तरलता वृद्धि में मूल्य स्थिरता और वित्तीय स्थिरता को बाधित करने की क्षमता थी, जिसके लिये कुशल तरलता प्रबंधन की आवश्यकता थी।
  • तरलता स्थितियों पर I-CRR का प्रभाव:
    •  I-CRR उपाय बैंकिंग प्रणाली से 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक की अतिरिक्त तरलता को अवशोषित करेगा।
    • I-CRR जनादेश के परिणामस्वरूप 21 अगस्त, 2023 को बैंकिंग प्रणाली की तरलता अस्थायी रूप से घाटे में बदल गई, जो कि वस्तु एवं सेवा कर (GST) से संबंधित बहिर्वाह और रुपए को स्थिर करने के लिये केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप से बढ़ गई।

नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio- CRR):

  • परिचय:
    •  बैंक की कुल जमा राशि के मुकाबले रिज़र्व में रखी जाने वाली नकदी का प्रतिशत CRR कहलाता है।
    • भारत में सभी बैंक (सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (SCB) (RRB सहित), लघु वित्त बैंक (SFB), भुगतान बैंक, प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंक (UCB), राज्य सहकारी बैंक (STCB) और ज़िला केंद्रीय सहकारी बैंकों (DCCB) को RBI के साथ CRR बनाए रखना होगा।
    • प्रत्येक सहकारी बैंक (अनुसूचित सहकारी बैंक नहीं) और स्थानीय क्षेत्र बैंक अपने पास या RBI के पास CRR बनाए रखेंगे।
    • बैंक CRR की राशि को कॉरपोरेट्स या व्यक्तिगत उधारकर्ताओं को उधार नहीं दे सकते हैं, बैंक उस राशि का उपयोग निवेश उद्देश्यों के लिये नहीं कर सकते और बैंक उस पर कोई ब्याज नहीं प्राप्त करते हैं।

नोट: प्राथमिक कृषि ऋण समितियाँ वर्ष 1949 के बैंकिंग विनियमन अधिनियम के अंतर्गत नहीं आती हैं और RBI द्वारा विनियमित नहीं हैं

  • RBI के पास आरक्षित नकदी की आवश्यकता:
    • चूँकि बैंक की जमा राशि का एक हिस्सा RBI के पास होता है, इसलिये यह किसी भी आपात स्थिति में राशि की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
    • जब ग्राहक अपनी जमा राशि वापस चाहते हैं तो नकदी तुरंत उपलब्ध होती है।
    • CRR मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने में मदद करता है। यदि अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति का खतरा है, तो RBI द्वारा CRR बढ़ाया जाता है, ताकि बैंकों को रिज़र्व में अधिक धन रखने की आवश्यकता हो, जिससे बैंकों के पास उपलब्ध धन की मात्रा प्रभावी रूप से कम हो जाती है।
      • इससे अर्थव्यवस्था में धन के अतिरिक्त प्रवाह पर अंकुश लगता है।
    • जब बाज़ार में धनराशि बढ़ाने की आवश्यकता होती है, तो RBI, CRR दर कम कर देता है, जिससे बैंकों को निवेश उद्देश्यों के लिये बड़ी संख्या में व्यवसायों और उद्योगों को ऋण प्रदान करने में मदद मिलती है। कम CRR से अर्थव्यवस्था की विकास दर को भी बढ़ावा मिलता है।
    • CRR और अन्य मौद्रिक साधनों को बनाए रखने की आवश्यकता हर वाणिज्यिक बैंक को होती है, लेकिन NFBC को नहीं। 

विमुद्रीकरण के मामले में RBI द्वारा I-CRR का उपयोग: 

    • RBI ने अचानक तरलता में वृद्धि की स्थिति के लिये I-CRR को लागू करने का विकल्प चुना है, जैसे कि विमुद्रीकरण के दौरान।
      • RBI ने 500 रुपए और 1,000 रुपए के बैंक नोटों के विमुद्रीकरण के बाद नवंबर 2016 में I-CRR का उपयोग किया था।
    • यह RBI को मौद्रिक नीति के अन्य पहलुओं को प्रभावित किये बिना मुद्दे का समाधान करने की अनुमति देता है। यह सटीकता महत्त्वपूर्ण हो सकती है, खासकर विमुद्रीकरण जैसी अनोखी स्थितियों के दौरान।
    • I-CRR को अपेक्षाकृत तेज़ी से लागू किया जा सकता है। जब विमुद्रीकृत नोटों की वापसी जैसी बड़े पैमाने की घटना के कारण तरलता में अचानक वृद्धि होती है, तो केंद्रीय बैंक को एक उपकरण की आवश्यकता हो सकती है जिसे तुरंत प्रभाव में लाया जा सके।
    • I-CRR आमतौर पर एक अस्थायी उपाय माना जाता है। इसे तब शुरू किया जा सकता है जब अतिरिक्त तरलता को अस्थायी रूप से अवशोषित करने की आवश्यकता होती है और तरलता की स्थिति स्थिर होने पर इसे चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा सकता है।
    • लेकिन दूसरी ओर अन्य उपकरण जैसे रेपो रेट, वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) आदि का तरलता पर दीर्घकालिक तथा धीमा प्रभाव हो सकता है।

    RBI के मौद्रिक नीति उपकरण: 

    • गुणात्मक:
      • नैतिक दबाव: यह एक गैर-बाध्यकारी तकनीक है जहाँ RBI बैंकों के ऋण और निवेश व्यवहार को प्रभावित करने के लिये अनुनय एवं संचार का उपयोग करता है।
      • प्रत्यक्ष ऋण नियंत्रण: ये ऐसे उपाय हैं जिनमें विशिष्ट क्षेत्रों या उद्योगों के लिये ऋण के प्रवाह को विनियमित करना शामिल है। RBI नीतिगत उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये कुछ क्षेत्रों को ऋण देने का निर्देश जारी कर सकता है या ऋण सीमा निर्धारित कर सकता है।
      • चयनात्मक क्रेडिट नियंत्रण: ये प्रत्यक्ष क्रेडिट नियंत्रण से अधिक विशिष्ट हैं और अर्थव्यवस्था के विशिष्ट क्षेत्रों में मांग को नियंत्रित करने के लिये उपभोक्ता ऋण जैसे विशेष प्रकार के ऋणों को लक्षित करते हैं।
    • मात्रात्मक:
      • नकद आरक्षित अनुपात (CRR): CRR किसी बैंक की जमा राशि का वह अनुपात है जिसे उसे नकदी के रूप में RBI के पास आरक्षित रखना होता है। CRR को समायोजित करके RBI बैंकों द्वारा ऋण देने के लिये उपलब्ध धन की मात्रा को नियंत्रित कर सकता है।
      • रेपो दर: रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर भारतीय रिज़र्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पावधि के लिये पैसा उधार देता है। रेपो दर में बदलाव किये जाने से इन बैंकों की उधार लेने की लागत और उसके बाद उनकी उधार दरों पर असर पड़ सकता है।
      • रिवर्स रेपो दर: यह वह ब्याज दर है जिस पर बैंक अपना अतिरिक्त धन भारतीय रिज़र्व बैंक के पास जमा रख सकते हैं। यह अल्पकालिक ब्याज दरों के लिये एक आधार प्रदान करने के साथ ही तरलता प्रबंधन में मदद करता है।
      • बैंक दर: वह दर है जिस पर RBI बैंकों और वित्तीय संस्थानों को दीर्घकालिक धन प्रदान करता है। यह दीर्घकालिक मुद्रा बाज़ार में ब्याज दरों को प्रभावित करता है।
      • ओपन मार्केट ऑपरेशंस: इसके अंतर्गत भारतीय रिज़र्व बैंक खुले बाज़ार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद अथवा बिक्री करता है। यह बैंकिंग प्रणाली में धन आपूर्ति और तरलता को प्रभावित करती है।
      • तरलता समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility- LAF): इसमें रेपो दर और रिवर्स रेपो दर शामिल है जिसका उपयोग बैंकों द्वारा उनकी अल्पकालिक तरलता आवश्यकताओं के लिये किया जाता है। यह RBI को प्रतिदिन तरलता स्थितियों का प्रबंधन करने में मदद करता है।
      • मार्जिनल स्टैंडिंग फेसिलिटी (MSF): वह दर जिस पर बैंक सरकारी प्रतिभूतियों के संपार्श्विक के लिये RBI से तुरंत ही ऋण ले सकते हैं। यह बैंकों के लिये वित्तपोषण के द्वितीयक स्रोत के रूप में कार्य करता है।
      • वैधानिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio- SLR): यह किसी बैंक की शुद्ध मांग और सावधि देनदारियों का प्रतिशत है जिसे अनुमोदित प्रतिभूतियों के रूप में बनाए रखना होता है।

      UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

    प्रिलिम्स:

    प्रश्न. भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नकद आरक्षी अनुपात में वृद्धि की घोषणा का क्या अर्थ है? (2010) 

    (a) वाणिज्यिक बैंकों के पास उधार देने के लिये पैसे कम होंगे।
    (b) भारतीय रिज़र्व बैंक के पास उधार देने के लिये पैसे कम होंगे।
    (c) केंद्र सरकार के पास उधार देने के लिये पैसे कम होंगे।
    (d) वाणिज्यिक बैंकों के पास उधार देने के लिये पैसे अधिक होंगे।

    उत्तर: (a)


    प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा शब्द सरकार को ऋण प्रदान करने के लिये वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उपयोग किये जाने वाले तंत्र को दर्शाता है? (2010)

    (a) नकद ऋण अनुपात
    (b) ऋण सेवा दायित्व
    (c) तरलता समायोजन सुविधा
    (d) वैधानिक तरलता अनुपात

    Ans: (D)


    प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2015)

    1. बैंक दर
    2.  खुला बाज़ार परिचालन
    3.  सार्वजनिक ऋण
    4.  सार्वजनिक राजस्व

     उपर्युक्त में से कौन-सा/से मौद्रिक नीति का/के घटक है/हैं?

    (a) केवल 1 
    (b) केवल  2, 3 और 4 
    (c) केवल 1 और 2 
    (d) केवल 1, 3 और 4 

    उत्तर: C


    प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में 'खुला बाज़ार प्रचालन' किसे निर्दिष्ट करता है?   (2013)

    (a) अनुसूचित बैंकों द्वारा RBI से ऋण लेना।
    (b) वाणिज्यिक बैंकों द्वारा उद्योग और व्यापार क्षेत्रों को ऋण देना।
    (c) RBI द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों का क्रय और विक्रय। 
    (d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

    उत्तर: C 


    प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन सा/से सांविधिक आरक्षित आवश्यकताओं का/के उद्देश्य है/हैं? (2014)

    1. केंद्रीय बैंक को बैंकों द्वारा निर्मित की जा सकने वाली अग्रिम राशियों पर नियंत्रण रखने की सक्षमता प्रदान करना।
    2. बैंकों में जनता की जमा राशियों को सुरक्षित व तरल रखना।
    3. व्यावसायिक बैंकों को अत्यधिक लाभ कमाने से रोकना।
    4. बैंकों को दिन-प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त कोष्ठ नकदी (वॉल्ट कैश) रखने को बाध्य करना। 

    नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

    (a) केवल 1 
    (b) केवल 1 और 2 
    (c) केवल 2 और 3 
    (d) 1, 2, 3 और 4 

    उत्तर: (a)


    मेन्स:

    प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी) की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)


    G20 देशों की तुलना में भारत का सामाजिक-आर्थिक प्रदर्शन

    प्रिलिम्स के लिये:

    G20, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, मानव विकास सूचकांक (HDI)

    मेन्स के लिये:

    भारत की वैश्विक स्थिति पर सामाजिक-आर्थिक संकेतकों का प्रभाव

    स्रोत: द हिंदू

    चर्चा में क्यों? 

    हाल ही में भारत ने 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' विषय के तहत नई दिल्ली में 18वें G20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी की।

    • भारत ने वर्ष 2024 की G20 अध्यक्षता ब्राज़ील को सौंप दी है , इसलिये अन्य G20 सदस्यों की तुलना में ब्राज़ील के सामाजिक-आर्थिक प्रदर्शन का आकलन करना महत्त्वपूर्ण है। दुर्भाग्य से, हाल ही में कई सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में भारत ने अपने G20 प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में खराब प्रदर्शन किया है।

    G20 सदस्यों की तुलना में विभिन्न मैट्रिक्स पर भारत की प्रगति: 

      • प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP): 
        • प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद किसी देश की अर्थव्यवस्था में यहाँ के उत्पादकों द्वारा जोड़े गए सकल मूल्य को मिड-इयर जनसंख्या से भाग दिये जाने के बाद प्राप्त मान को कहा जाता है।
        • वर्ष 1970 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 111.97 अमेरिकी डॉलर के साथ, विश्लेषण किये गए 19 देशों में से भारत 18वें स्थान पर था (रूस को छोड़कर)।
          • वर्ष 2022 तक भारत की प्रति व्यक्ति GDP बढ़कर 2,388.62 अमेरिकी डॉलर हो गई, लेकिन यह 19 देशों में सबसे निम्न स्थान पर रही।
      • मानव विकास सूचकांक (HDI):
        • HDI एक समग्र सूचकांक है जो चार संकेतकों को ध्यान में रखते हुए मानव विकास में औसत उपलब्धि को मापता है:
          • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा (सतत् विकास लक्ष्य 3)
          • स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष (सतत् विकास लक्ष्य 4.3)
          • स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष (सतत् विकास लक्ष्य 4.4)
          • सकल राष्ट्रीय आय (GNI) (सतत् विकास लक्ष्य 8.5)
        • HDI को 0 (सबसे खराब) से 1 (सर्वोत्तम) के पैमाने पर मापा जाता है। वर्ष 1990 और वर्ष 2021 के दौरान 19 देशों (यूरोपीय संघ (EU) को छोड़कर) के HDI की तुलना की गई जिसमें भारत का HDI वर्ष 1990 के 0.43 से बढ़कर वर्ष 2021 में 0.63 हो गया है, जो जीवन प्रत्याशा, शिक्षा तथा जीवन स्तर में प्रगति को दर्शाता है।
          • हालाँकि पूर्ण रूप से प्रगति के बावजूद भारत इस सूची में सबसे निम्न स्तर पर है।
      •  स्वास्थ्य मैट्रिक्स:
        • जीवन प्रत्याशा:
          • भारत की औसत जीवन प्रत्याशा वर्ष 1990 के 45.22 वर्ष से बढ़कर वर्ष 2021 में 67.24 वर्ष हो गई है, जिसने दक्षिण अफ्रीका को पीछे छोड़ दिया है लेकिन अभी भी चीन से पीछे है।
        • शिशु मृत्यु दर:
          • वर्ष 1990 में भारत 88.8 की शिशु मृत्यु दर के साथ सबसे अंतिम स्थान पर था। वर्ष 2021 तक यह दर सुधरकर 25.5 हो गई, लेकिन भारत 20 अन्य क्षेत्रों में 19वें स्थान पर रहा।
      • श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR): 
        • 20 क्षेत्रों में 15 वर्ष से अधिक आयु के LFPR की तुलना वर्ष 1990 और 2021-22 के बीच की गई।
          • वर्ष 1990 में 54.2% के LFPR के साथ भारत इटली (49.7%) और सऊदी अरब (53.3%) से ऊपर 18वें स्थान पर था।
          • हालाँकि 2021-22 तक भारत 49.5% LFPR के साथ केवल इटली से आगे रहते हुए गिरकर 19वें स्थान पर पहुँच गया।
      • संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी:
        • वर्ष 1998 और 2022 के बीच 19 देशों(सऊदी अरब को छोड़कर) की संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी की तुलना की गई।
          • भारत की संसद में महिलाओं की हिस्सेदारी वर्ष 1998 के 8.1% से बढ़कर 2022 में 14.9% हो गई।
          • हालाँकि अन्य G20 देशों और EU की तुलना में भारत की रैंक वर्ष 1998 में 15वें स्थान से घटकर वर्ष 2022 में 18वें स्थान पर आ गई, जो जापान से थोड़ा आगे है।
      • पर्यावरणीय प्रदर्शन:
        • भारत ने पिछले तीन दशकों में कार्बन उत्सर्जन पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाया है और लगातार 20 देशों में सबसे कम उत्सर्जक के रूप में रैंकिंग प्रदान की गई है।
          • हालाँकि पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में भारत की प्रगति अपेक्षाकृत धीमी रही है, वर्ष 2015 में नवीकरणीय ऊर्जा से केवल 5.36% विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया गया, जिससे भारत 20 देशों में 13वें स्थान पर है।

      आगे की राह 

      • भारत को उन नीतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो सुनिश्चित यह करें कि आर्थिक विकास समाज के सभी वर्गों तक पहुँचे। हाशिये पर रहने वाले समुदायों, ग्रामीण विकास और कौशल वृद्धि कार्यक्रमों के लिये लक्षित हस्तक्षेप आय असमानताओं को समाप्त करने में मदद कर सकते हैं।
        • नीतियों में विशेष रूप से युवाओं के लिये अधिक रोज़गार के अवसर उत्पन्न करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। उद्यमिता को प्रोत्साहित करने से बेरोज़गारी कम हो सकती है, समावेशी विकास को बढ़ावा मिल सकता है।
      • भारत को मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण और स्वच्छता अवसंरचना में निवेश सहित लक्षित स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेपों के माध्यम से शिशु मृत्यु दर को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
      • कार्यबल और नेतृत्व भूमिकाओं में महिलाओं की भागीदारी सहित लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करना आवश्यक है।
      • पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोतों को अपनाने में तेज़ी लाने के साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिये।
      • अधिक महिलाओं को राजनीति और नेतृत्व की भूमिकाओं के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
      • भ्रष्टाचार विरोधी उपायों को मज़बूत करना और सभी स्तरों पर नैतिक शासन को बढ़ावा देना चाहिये।

        UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

      प्रश्न. G20 के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)

      1. G20 समूह की मूल रूप से स्थापना वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय मुद्दों पर चर्चा के मंच के रूप में की गई थी।
      2. डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा भारत की G20 प्राथमिकताओं में से एक है।

      उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

      (a) केवल 1 
      (b) केवल 2 
      (c) 1 और 2 दोनों 
      (d) न तो 1 और न ही 2

      उत्तर: (c)

      G20:

      • इसकी स्थापना वर्ष 1999 में एशियाई वित्तीय संकट के बाद वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों के लिये वैश्विक आर्थिक और वित्तीय मुद्दों पर चर्चा करने हेतु एक मंच के रूप में की गई थी। अतः कथन 1 सही है।
      • वर्ष 2007 के वैश्विक आर्थिक और वित्तीय संकट के मद्देनज़र तथा वर्ष 2009 में इसे राज्य/शासन प्रमुखों के स्तर तक अपग्रेड किया गया था।
      • G20 शिखर सम्मेलन में प्रतिवर्ष क्रमिक अध्यक्षता दी जाती है।
      • शुरुआत में इसका ध्यान बड़े पैमाने पर व्यापक आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित था, लेकिन बाद में इसने व्यापार, सतत् विकास, स्वास्थ्य, कृषि, ऊर्जा, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और भ्रष्टाचार विरोध को शामिल करने के लिये अपने एजेंडे का विस्तार किया है।

      डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI):

      • यह अनेक उद्देश्यों के लिये एक साझा साधन है। यह डिजिटल परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण प्रवर्तक है और बड़े पैमाने पर सार्वजनिक सेवा वितरण को बेहतर बनाने में सहायता कर रहा है।
      • अच्छी तरह से डिज़ाइन और कार्यान्वित यह देशों को उनकी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को प्राप्त करने और सतत् विकास लक्ष्यों को गति देने में सहायता कर सकता है।
      • भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने भारत की G20 अध्यक्षता के दौरान डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर सामूहिक कार्रवाई हेतु संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के साथ साझेदारी की है। अतः कथन 2 सही है।

      मेन्स:

      प्रश्न. उच्च संवृद्धि के लगातार अनुभव के बावजूद भारत के मानव विकास के निम्नतम संकेतक चल रहे हैं। उन मुद्दों का  परिक्षण कीजिये, जो संतुलित और समावेशी विकास को पकड़ में आने नहीं दे रहे हैं। (2019)


      समुद्री प्रकाश प्रदूषण

      प्रिलिम्स के लिये:

      कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था, प्रवाल और प्लवक

      मेन्स के लिये:

      रात में कृत्रिम प्रकाश (ALAN) - महत्त्व और संबंधित मुद्दे, जीवों पर कृत्रिम बिजली का प्रभाव, प्रकाश प्रदूषण

      स्रोत: डाउन टू अर्थ

      चर्चा में क्यों?  

       भूमि-आधारित जीवन (मनुष्य, जुगनू और पक्षी) पर कृत्रिम प्रकाश का प्रभाव काफी समय से ज्ञात है।

      • हालाँकि हाल ही में अमेरिका स्थित एक अध्ययन में तटीय समुद्री जीवों पर भी प्रकाश प्रदूषण के प्रभाव को लेकर विचार करने का तर्क दिया गया है, जो व्हेल से लेकर मछली, प्रवाल और प्लवक तक सभी को प्रभावित करता है।

      समुद्री पर्यावरण में कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था:

      • परिचय: 
        • कृत्रिम प्रकाश से तात्पर्य उस प्रकाश से है जो कृत्रिम स्रोतों जैसे- मोमबत्तियाँ, आग, बिजली आदि से उत्पन्न होता है।
          • पारिस्थितिकीविदों और जीव विज्ञानियों ने लंबे समय से माना है कि रात में कृत्रिम प्रकाश मनुष्यों तथा स्थलीय वन्यजीवों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
        • हाल के शोध से पता चलता है कि समुद्री जीवन कृत्रिम प्रकाश के प्रति भी संवेदनशील है, जिसमें बेहद निम्न स्तर और कुछ तरंग दैर्ध्य, विशेष रूप से नीली एवं हरी रोशनी शामिल है।
      • समुद्री प्रकाश प्रदूषण: जब इस कृत्रिम प्रकाश का उपयोग अत्यधिक या खराब तरीके से किया जाता है, तो यह प्रकाश प्रदूषण बन जाता है और वन्यजीवों के प्राकृतिक पैटर्न को बाधित करता है, जिससे वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) में वृद्धि होती है।
        • वैज्ञानिकों ने पाया कि समुद्र के 1.9 मिलियन किमी 2 में 1 मीटर की गहराई तक जैविक रूप से महत्त्वपूर्ण मात्रा में कृत्रिम प्रकाश प्रदूषण होता है।
        • समुद्र के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में 10 मीटर, 20 मीटर या उससे अधिक की गहराई तक प्रकाश का प्रभाव देखा जाता है।
          • स्वच्छ जल वाले क्षेत्रों में रात में प्रकाश 40 मीटर से अधिक की गहराई तक पहुँच सकता है।
      • स्रोत:
        • तटीय विकास (उदाहरण के लिये भवन, स्ट्रीटलाइट, बिलबोर्ड, बंदरगाह, घाट, गोदी और लाइट हाउस)।
        • जहाज़ (उदाहरण के लिये मत्स्यन और व्यापारिक समुद्री जहाज़), बंदरगाह और तेल रिग जैसी अपतटीय अवसंरचनाएँ।
        •  समुद्री वातावरण में कुछ सामान्य प्रकार की कृत्रिम रोशनी जैसे- LED, फ्लोरोसेंट, मेटल हैलाइड और प्लाज़्मा लैंप हैं।
          • सफेद LED व्यापक स्पेक्ट्रम प्रकाश उत्पन्न करते हैं जिसे जीवों की एक विस्तृत शृंखला द्वारा महसूस किया जाता है और छोटी तरंग दैर्ध्य (नीली और हरी रोशनी) पर चरम होता है जिसके प्रति कई समुद्री जीव विशेष रूप से संवेदनशील होते हैं।

      नोट: 

      • पृथ्वी प्रतिवर्ष 2.2% की दर से कृत्रिम रूप से प्रदीप्त होती जा रही है। इन प्रदीप्त रातों के परिणामस्वरूप रात्रि में कृत्रिम प्रकाश (ALAN) का बढ़ता हुआ प्रभाव स्थलीय पारिस्थितिकी के लिये केंद्र बिंदु बन गया है।
      • अनुसंधान से पता चला है कि ALAN मानवजनित प्रदूषण का एक प्रमुख रूप है जो शरीर विज्ञान, व्यवहार, जीव-जंतुओं की गतिविधियों, प्रजातियों की अन्योन्य क्रिया, सामुदायिक संरचना और प्रजनन सहित कई प्रकार की जैविक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकता है।

      कृत्रिम प्रदीप्ति का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव:

      • सामान्य चक्रों का विघटन: अध्ययन के अनुसार, समुद्री जीवों को प्राकृतिक प्रकाश/प्रदीप्ति के अनुकूल होने में पहले से ही लाखों वर्षों से अधिक का समय लगा है और अब लगातार बढ़ते मानवजनित प्रकाश प्रदूषण का खतरा उनके लिये कई जोखिम उत्पन्न कर रहा है।
        • कृत्रिम प्रकाश चाँद और तारों की प्रदीप्ति/चमक को आसानी से खत्म कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप उनके हार्मोनल चक्र, अंतर-प्रजाति व्यवहार और प्रजनन चक्र बाधित हो सकते हैं।
      • उदाहरण: उदाहरण के लिये मादा समुद्री कछुए अंडे देने के लिये एक शांत, अँधेरी जगह ढूँढने और रोशनी से बचने की कोशिश करती हैं। हालाँकि कृत्रिम प्रकाश के कारण ऐसा भी हो सकता है कि वे तट पर न आएँ।
        • इसके अलावा उनकी संतति भी जल में चाँदनी की बजाय कृत्रिम रोशनी की ओर बढ़ती हैं और फिर निर्जलीकरण या भूख से मर जाती हैं।
      • LED के गंभीर प्रभाव: LED प्रकाश व्यवस्था का लगातार बढ़ता उपयोग कृत्रिम प्रकाश की प्रकृति को भी बदल रहा है।
      • सुझाव:
        • रात में रोशनी की ओर आकर्षित होने वाले प्रवासी पक्षियों की मदद के लिये भूमि-आधारित लाइट्स आउट प्रयासों (आसमान को अँधेरा रखने के लिये स्थानीय, राज्य और क्षेत्रीय अभियान) को प्रोत्साहित करना। इससे तटीय शहरों के पास समुद्री तंत्रों को भी लाभ होगा।
        • तटीय क्षेत्रों में लाल बत्ती का उपयोग यथासंभव बढ़ाना और समुद्र तट को कृत्रिम रोशनी से बचाने के लिये अवरोध लगाना।
          • दृश्यमान स्पेक्ट्रम में सबसे अधिक तरंग दैर्ध्य वाली लाल रोशनी, समुद्र के जल में काफी दूर तक प्रवेश नहीं कर पाती है।


      ग्रेशम का नियम और मुद्रा विनिमय दर

      स्रोत: द हिंदू 

      प्रिलिम्स के लिये:

      स्थिर विनिमय दर, चल और प्रबंधित चल विनिमय दर, ब्रेटन वुड्स सम्मेलन,  श्रीलंकाई संकट- 2022, मुद्रास्फीति

      मेन्स के लिये :

      स्थिर विनिमय दरों के फायदे और नुकसान, निश्चित विनिमय दरों के विकल्प

      चर्चा में क्यों? 

      ग्रेशम का नियम, जिसका श्रेय अंग्रेज़ फाइनेंसर थॉमस ग्रेशम को दिया जाता है, श्रीलंका में वर्ष 2022 के आर्थिक संकट का एक महत्त्वपूर्ण कारक था। यह संकट श्रीलंका के सेंट्रल बैंक द्वारा श्रीलंकाई रुपए और अमेरिकी डॉलर के बीच एक स्थिर विनिमय दर को लागू करने के कारण उत्पन्न हुआ था। 

      ग्रेशम का नियम:

      • ग्रेशम का नियम एक मौद्रिक सिद्धांत है जो बताता है कि "बुरी मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है"। बुरी मुद्रा वह मुद्रा है जिसका मूल्य उसके अंकित मूल्य के बराबर या उससे कम है। अच्छी मुद्रा में उसके अंकित मूल्य से अधिक मूल्य की संभावना होती है।
        • इसका मतलब यह है कि यदि एक उच्च आंतरिक मूल्य के साथ और एक कम आंतरिक मूल्य के साथ दो प्रकार की मुद्राएँ प्रचलन में हैं, तो लोग अधिक मूल्यवान धन जमा करेंगे और कम मूल्यवान धन व्यय करेंगे।
          • परिणामस्वरूप कम मूल्यवान मुद्रा बाज़ार पर हावी हो जाएगी, जबकि अधिक मूल्यवान मुद्रा प्रचलन से गायब हो जाएगी।
        • यह नियम तब लागू होता है जब सरकार दो मुद्राओं के बीच विनिमय दर तय करती है, जिससे आधिकारिक दर और बाज़ार दर के बीच असमानता उत्पन्न होती है।
          • यह न केवल कागज़ी मुद्राओं पर बल्कि कमोडिटी मुद्राओं और अन्य वस्तुओं पर भी लागू होता है।
      • ग्रेशम के नियम के क्रियान्वयन के उदाहरण:
        • ग्रेशम का नियम श्रीलंका के आर्थिक संकट के दौरान तब महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया जब देश के सेंट्रल बैंक द्वारा श्रीलंकाई रुपए और अमेरिकी डॉलर के बीच एक स्थिर विनिमय दर निर्धारित की गई। 
          • अनौपचारिक बाज़ार दरों से पता चलता है कि अमेरिकी डॉलर का मूल्य बहुत अधिक है, इसके बावजूद सरकार ने एक अमेरिकी डॉलर के लिये 200 श्रीलंकाई रुपए की स्थिर दर पर ज़ोर दिया।
          • इसके कारण श्रीलंकाई रुपए को वास्तव में उससे अधिक मूल्यवान माना जाने लगा और अमेरिकी डॉलर का बाज़ार दरों के अनुसार कम मूल्यांकन किया गया।
        • परिणामस्वरूप आधिकारिक विदेशी मुद्रा बाज़ार में कम अमेरिकी डॉलर उपलब्ध थे और व्यक्तियों ने आधिकारिक लेन-देन में उनका उपयोग करने से बचना शुरू कर दिया।
      • ग्रेशम के नियम की विषमता:
        • ग्रेशम के नियम के विपरीत थियर्स का नियम एक ऐसी घटना पर प्रकाश डालता है जहाँ "अच्छी मुद्रा, बुरी मुद्रा को प्रचलन से बाहर कर देती है।" मुक्त विनिमय दर के माहौल में लोग उच्च-गुणवत्ता वाली मुद्राओं को पसंद करते हैं और जिन्हें वे निम्नतर मानते हैं उन मुद्राओं को धीरे-धीरे त्याग देते हैं ।
          • हाल के वर्षों में निजी क्रिप्टोकरेंसी (अच्छी मुद्रा) के उदय को प्रायः इस उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है कि कैसे सुप्रसिद्ध, निजी मुद्रा उत्पादक सरकार द्वारा जारी मुद्राओं (बुरी मुद्रा) को विस्थापित कर सकते हैं।

      स्थिर विनिमय दर(Fixed Exchange Rate):

      • परिचय: 
        •  निश्चित विनिमय दर, जिसे अधिकीलित विनिमय दर (Pegged Exchange Rate) भी कहा जाता है, किसी सरकार या केंद्रीय बैंक द्वारा लागू एक व्यवस्था है जो देश की आधिकारिक मुद्रा विनिमय दर को दूसरे देश की मुद्रा या सोने की कीमत से जोड़ती है।
          •  स्थिर विनिमय दर प्रणाली का उद्देश्य मुद्रा के मूल्य को एक संकीर्ण दायरे में रखना है।
      • इतिहास: 
        • वर्ष 1944 में हुए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन ने अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थापना की, जो स्थिर विनिमय दरों की विशेषता थी। 
          • सम्मेलन में भाग लेने वाले देश अपनी मुद्राओं को अमेरिकी डॉलर से जोड़ने पर सहमत हुए, जिसे 35 अमेरिकी डॉलर प्रति औंस की निश्चित दर पर सोने में परिवर्तित किया जा सकता था।
        • इसका उद्देश्य स्थिरता को बढ़ावा देना और मुद्राओं के प्रतिस्पर्द्धी अवमूल्यन को रोकना था, जिसने महामंदी एवं द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आर्थिक अस्थिरता में योगदान दिया था।
      • पतन:
        •  ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में स्थापित स्थिर विनिमय दर प्रणाली का पतन निरंतर व्यापार असंतुलन, मुद्रास्फीति, स्पेक्यूलेटिव अटैक्स(किसी देश की मुद्रा की बड़े पैमाने पर और अचानक बिक्री), विनिमय दर समायोजन की कमी और घटते अमेरिकी सोने के भंडार के कारण हुआ था।
        • वर्ष 1971 में "निक्सन शॉक्स", जिसमें अमेरिकी डॉलर की सोने में परिवर्तनीयता को निलंबित करना शामिल था, ने प्रणाली के पतन को चिह्नित किया।
        • इसने प्रमुख मुद्राओं को परिवर्तनीय विनिमय दरों (Floating Exchange Rates) में परिवर्तित कर दिया, जिससे आर्थिक स्थितियों के जवाब में लचीलेपन की अनुमति मिली।

      स्थिर विनिमय दरों के लाभ और हानियाँ:

      • लाभ:
        • मूल्य स्थिरता: स्थिर विनिमय दरें मूल्य स्थिरता प्रदान कर सकती हैं। यह स्थिरता उच्च मुद्रास्फीति दर या अस्थिर मुद्रा वाले देशों के लिये विशेष रूप से लाभदायक हो सकती है।
        • कम लेन-देन लागत: एक निश्चित विनिमय दर प्रणाली में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में लगे व्यवसायों को मुद्रा-संबंधित लेन-देन लागतों जैसे- मुद्रा रूपांतरण शुल्क और विनिमय दर जोखिम प्रबंधन खर्चों का कम सामना करना पड़ सकता है।
        • निवेशक का विश्वास: निश्चित विनिमय दरें निवेशकों का विश्वास बढ़ा सकती हैं। स्थिर मुद्रा वाले देश में निवेशकों द्वारा पूंजी लगाने की अधिक संभावना होती है, जिससे पूंजी की लागत कम हो जाती है और संभावित रूप से आर्थिक विकास में तेज़ी आती है।
      • हानि:
        • मौद्रिक नीति की स्वायत्तता की हानि: एक महत्त्वपूर्ण कमी यह है कि स्थिर विनिमय दरों को अपनाने वाले देश अपनी मौद्रिक नीति पर नियंत्रण छोड़ देते हैं।
          • अधिकीलित विनिमय दर को बनाए रखने के लिये उन्हें एंकर मुद्रा की नीतियों के अनुसार ब्याज दरों और धन आपूर्ति को समायोजित करने की आवश्यकता हो सकती है, जो उनकी घरेलू आर्थिक आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हो सकती है।
        • संभावित हमले: निश्चित विनिमय दर प्रणालियाँ सट्टा हमलों के प्रति संवेदनशील हो सकती हैं।
          • यदि निवेशकों को लगता है कि किसी देश की मुद्रा का मूल्य अधिक है, तो वे बड़े पैमाने पर सेल ऑफ कर सकते हैं, जिससे केंद्रीय बैंक को अधिकीलित विनिमय दर  बनाए रखने के लिये अपने विदेशी मुद्रा भंडार को समाप्त करने हेतु मजबूर होना पड़ेगा।
        • बाहरी निर्भरता: निश्चित विनिमय दर प्रणालियाँ किसी देश के भविष्य को एंकर मुद्रा जारीकर्त्ता की स्थिरता और नीतियों से जोड़ती हैं।
          • यदि एंकर मुद्रा को समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो इसका असर संबंधित देश के विनिमय दर पर भी पड़ सकता है।

      स्थिर विनिमय दरों के विकल्प:

      • फ्लोटिंग विनिमय दर: इसे लचीली विनिमय दर के रूप में भी जाना जाता है, यह एक ऐसी प्रणाली है जहाँ मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा बाज़ार में आपूर्ति और मांग से निर्धारित होता है।
        • इस प्रणाली में विनिमय दर में लगातार उतार-चढ़ाव हो सकता है और आधिकारिक तौर पर यह किसी अन्य मुद्रा या वस्तु से जुड़ी या तय नहीं की जाती है।
        • फ्लोटिंग विनिमय दरें मुद्राओं को आर्थिक स्थितियों, व्यापार असंतुलन और बाज़ार की ताकतों के लिये स्वतंत्र रूप से समायोजित करने की अनुमति देती हैं।
          • उदाहरण: कनाडा और ऑस्ट्रेलिया।
      • प्रबंधित फ्लोट (Managed Float): प्रबंधित फ्लोटिंग विनिमय दर (Managed Float Exchange Rate), जिसे डर्टी फ्लोट भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रणाली है जहाँ किसी देश का केंद्रीय बैंक या सरकार अपनी मुद्रा के मूल्य को प्रभावित करने के लिये कभी-कभी विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करती है।
        • जबकि विनिमय दर में कुछ हद तक परिवर्तन संभव है, अधिकारी कुछ आर्थिक लक्ष्यों के जवाब में इसके मूल्य को स्थिर करने या प्रबंधित करने या अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिये अपनी मुद्रा खरीद या बेच सकते हैं।
          उदाहरण: भारत और चीन।

        UPSC  सिविल सेवा परीक्षा,  विगत वर्ष के प्रश्न  

      प्रिलिम्स:

      प्रश्न. भारतीय रुपए के अवमूल्यन को रोकने के लिये सरकार/RBI द्वारा निम्नलिखित में से कौन सा सबसे संभावित उपाय नहीं है? (2019)

      (a) गैर-आवश्यक वस्तुओं के आयात पर अंकुश लगाना और निर्यात को बढ़ावा देना।
      (b) भारतीय उधारकर्ताओं को रुपया मूल्यवर्ग मसाला बॉण्ड जारी करने के लिये प्रोत्साहित करना।
      (c) बाहरी वाणिज्यिक उधार से संबंधित शर्तों को आसान बनाना।
      (d) विस्तारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण।

      उत्तर: (d) 


      प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2021)

      1. किसी मुद्रा के अवमूल्यन का प्रभाव यह होता है कि वह आवश्यक रूप से:
      2. विदेशी बाज़ारों में घरेलू निर्यात की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करता है। 
      3.  घरेलू मुद्रा के विदेशी मूल्य को बढ़ाता है।  
      4. व्यापार संतुलन में सुधार करता है।

      उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

      (a) केवल 1
      (b) केवल 1 और 2
      (c) केवल 3
      (d) केवल 2 और 3

      उत्तर: (a)  


      मेन्स:

      प्रश्न. विश्व व्यापार में संरक्षणवाद और मुद्रा चालबाज़ियों की हाल की घटनाएँ भारत की समष्टि आर्थिक स्थिरता को किस प्रकार से प्रभावित करेंगी? ( 2018)