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डेली न्यूज़

  • 14 Nov, 2023
  • 66 min read
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दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन (आसियान)

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एथिक्स

भारत में बढ़ता वैज्ञानिक कदाचार

प्रिलिम्स के लिये:

वैज्ञानिक कदाचार, इंडिया रिसर्च वॉचडॉग, भारतीय अनुसंधान में प्रत्यावर्तन, साहित्यिक चोरी, प्रयोगात्मक तकनीकों से जुड़े कदाचार और धोखाधड़ी।

मेन्स के लिये:

वैज्ञानिक कदाचार, नैतिकता और मानव इंटरफेस: मानव कार्यों में नैतिकता का सार, निर्धारक तथा परिणाम।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

इंडिया रिसर्च वॉचडॉग के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारतीय शोध में प्रत्यावर्तन की बढ़ती संख्या ने भारत में वैज्ञानिक कदाचार से संबंधित महत्त्वपूर्ण चिंताओं को जन्म दिया है।

वैज्ञानिक कदाचार:

  • परिचय:
    • वैज्ञानिक कदाचार को वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन और प्रकाशन की नैतिकता के स्वीकृत मानकों से विचलन के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
    • वैज्ञानिक कदाचार के कई रूप हो सकते हैं जैसे- साहित्यिक चोरी, प्रयोगात्मक तकनीकों से जुड़ा कदाचार और धोखाधड़ी।
    • जब गलतियों, डेटा निर्माण, साहित्यिक चोरी और कदाचार के अन्य रूपों सहित विभिन्न कारणों से प्रकाशित पत्रों को वैज्ञानिक साहित्य से वापस ले लिया जाता है।
  • उदाहरण:
    • जब किसी वैज्ञानिक जाँच के नतीजे उन प्रमुख जाँचकर्त्ताओं को श्रेय दिये बिना रिपोर्ट किये जाते हैं जिनका काम इसमें शामिल रहा है।
    • वैज्ञानिक धोखाधड़ी, जहाँ लेखक मनगढ़ंत छवियों या डेटा के साथ एक लेख तैयार करता है, जिसे बाद में एक स्वतंत्र निरीक्षण बोर्ड की मंज़ूरी के बिना सहकर्मी-समीक्षित प्रकाशन में प्रस्तुत किया जाता है।

भारत में वैज्ञानिक कदाचार के आँकड़े:

  • वैज्ञानिक प्रत्यावर्तन में वृद्धि:
    • भारत में वर्ष 2017-2019 के बीच दर्ज संख्या की तुलना में वर्ष 2020-2022 के बीच प्रत्यावर्तन में 2.5 गुना वृद्धि हुई है।
      • इसका प्राथमिक कारण कदाचार के रूप में पहचाना जाता है, जहाँ लेखक जान-बूझकर अनैतिक प्रथाओं में संलग्न होते हैं।
  • गुणवत्ता में गिरावट के संकेतक:
    • अनुसंधान आउटपुट और प्रत्यावर्तन के अनुपात का उपयोग गुणवत्ता के लिये एक प्रॉक्सी के रूप में किया जाता है, जिससे भारत में गिरावट का पता चलता है, जिसके कारण अनुपात लगभग आधा हो जाता है। यह शोध की समग्र गुणवत्ता में संभावित गिरावट का संकेत देता है।
  • प्रत्यावर्तन के क्षेत्र:
    • इंजीनियरिंग में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जो वर्ष 2017-2019 की अवधि में  36% बढ़कर सभी प्रत्यावर्तन का लगभग 48% है।
    • इसके अतिरिक्त मानविकी के क्षेत्र में प्रत्यावर्तन में 567% की असाधारण वृद्धि का अनुभव होता है।
  • वैज्ञानिक कदाचार में वृद्धि का कारण:
    • आधे से अधिक उत्तरदाताओं का मानना है कि वृद्धि के पीछे विश्वविद्यालय रैंकिंग पैरामीटर हैं।
    • अन्य 35% ने इसके लिये अनैतिक शोधकर्ताओं को ज़िम्मेदार ठहराया, जबकि 10% ने किसी आरोप की सूचना मिलने पर या किसी अपराधी के 'पकड़े जाने' पर की जाने वाली न्यूनतम कार्रवाई की ओर इशारा किया।
    • प्रत्यावर्तन में वृद्धि में योगदान देने वाले अतिरिक्त कारकों में वर्ष 2017 में स्थापित पीएचडी छात्रों के लिये अनिवार्य प्रकाशन की आवश्यकता शामिल है, जिससे संभावित रूप से निम्न-गुणवत्ता वाले प्रकाशन और प्रीडेटरी पत्रिकाओं का प्रसार हो सकता है।

  • तत्काल कार्रवाई का आह्वान:
    • डेटा को कार्रवाई के लिये एक तत्काल आह्वान के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें भारतीय शिक्षा जगत में अनुसंधान कदाचार की जाँच करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
    • अनुसंधान और शिक्षण दोनों पर संभावित परिणामों को लेकर प्रकाश डाला गया है, घटिया या फर्ज़ी अनुसंधान को रोकने के लिये तत्काल हस्तक्षेप का आग्रह किया गया है।

वैज्ञानिक कदाचार के नैतिक निहितार्थ क्या हैं? 

  • दीर्घकालिक परिणाम:
    • पैमाने की परवाह किये बिना वैज्ञानिक कदाचार के  दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, खासकर जब किसी क्षेत्र के प्रभावशाली व्यक्ति इसमें शामिल हों।
  • शैक्षणिक सत्यनिष्ठा का उल्लंघन:
    • साहित्यिक चोरी, डेटा निर्माण और हेर-फेर सहित वैज्ञानिक कदाचार, शैक्षणिक तथा वैज्ञानिक अखंडता का गंभीर उल्लंघन है। यह ईमानदार और पारदर्शी विद्वतापूर्ण जाँच की नींव को कमज़ोर करता है।
  • दायित्व एवं विश्वसनीयता पर प्रभाव:
    • अनैतिक आचरण वैज्ञानिक निष्कर्षों की विश्वसनीयता को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जिससे अनुसंधान की विश्वसनीयता कम हो जाती है। इससे न केवल व्यक्तिगत शोधकर्त्ताओं की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है अपितु समग्र वैज्ञानिक समुदाय की छवि खराब होती है।
  • गुणवत्ता एवं शिक्षण की संस्कृति से समझौता:
    • अनुसंधान आउटपुट एवं प्रत्यावर्तन के अनुपात में चिंताजनक गिरावट, गुणवत्ता से समझौते का संकेत देती है।
    • इससे शिक्षण की संस्कृति कमज़ोर होती है तथा ज्ञान के विस्तार और उन्नति में बाधा उत्पन्न होती है।

आगे की राह 

  • वैज्ञानिकों ने संस्थागत प्रयासों के अभाव में सहयोगात्मक कार्य की जाँच करने, विश्वसनीय एवं त्रुटिपूर्ण अनुसंधान के बीच अंतर करने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ली है ताकि उनके संपूर्ण कार्य पर सवाल न किये जा सकें।
    • हालाँकि इसका एक व्यापक पुनर्मूल्यांकन होना चाहिये, विशेष रूप से जाने-माने वैज्ञानिकों की ओर से। इसकी जटिलता और बेहतर प्रक्रियाओं एवं मानदंडों की आवश्यकता को पहचानते हुए इस आदर्श धारणा को संशोधित किये जाने की आवश्यकता है कि विज्ञान स्वाभाविक रूप से जटिल और स्वयं-सुधार करने वाला है। 
  • इसमें निरंतर स्व-मूल्यांकन और सुधार को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी को शामिल करने व प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है, जिससे इसे 'विशेष' परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया के बजाय एक मानक अभ्यास में बदला जा सके।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पालतू रेशमकीट कोकून के रंग

प्रिलिम्स के लिये:

रेशम, कैरोटीनॉयड तथा फ्लेवोनोइड, सिल्क समग्र, केंद्रीय रेशम बोर्ड

मेन्स के लिये:

भारत में रेशम उत्पादन, पशुपालन संबंधी अर्थशास्त्र

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

रेशम, जिसे अमूमन "रेशों की रानी" (Queen of fibres) कहा जाता है, सदियों से अपनी सुंदरता एवं विलासिता के लिये मूल्यवान रही है। शोधकर्त्ताओं ने रेशम उत्पादक कीटों के कोकून के रंग और अनुकूलन संबंधी आनुवंशिक कारकों का खुलासा किया है तथा उनके द्वारा रेशम उद्योग में लाए गए परिवर्तन को उजागर किया है।

रेशम में कोकून क्या है?

  • रेशम में कोकून रेशम के धागे की एक सुरक्षात्मक परत होती है जिसे रेशमकीट अपने चारों ओर बुनता है।
  • रेशम का धागा बहुत महीन, मज़बूत और चमकदार होता है। कोकून का आकार आमतौर पर अंडाकार अथवा गोल होता है।
  • कोकून का उपयोग बुने हुए धागे को खोलकर एवं उसे बुनकर रेशमी कपड़ा बनाने के लिये किया जा सकता है।

रेशम शलभ (Silk Moth) पालन से कौन-सी आनुवंशिक अंतर्दृष्टि उजागर होती है?

  • रेशम शलभ पालन का विकास:
    • इसका उत्पादन घरेलू रेशम शलभ (बॉम्बिक्स मोरी) के कोकून द्वारा किया जाता है, जो चीन में 5,000 वर्ष से भी पहले जंगली रेशम कीट (बॉम्बिक्स मंदारिना) से प्राप्त हुआ था।
      • पालतू रेशम शलभ विश्व भर में पाया जाता है, जबकि पैतृक कीट अभी भी चीन, कोरिया, जापान एवं सुदूर-पूर्वी रूस जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है।
  • रेशम के प्रकार:
    • जंगली रेशम (गैर-शहतूत रेशम):
      • जंगली रेशम, जिसमें मुगा, टसर एवं एरी रेशम शामिल हैं, अन्य कीट प्रजातियों से प्राप्त किये जाते हैं जिनके नाम एंथेरिया असामा, एंथेरिया माइलिटा और सामिया सिंथिया रिसिनी हैं।
      • ये कीट मानव देखभाल के बिना स्वतंत्र रूप से जीवित रहते हैं और उनके कैटरपिलर विभिन्न प्रकार के पेड़ों से भोजन प्राप्त करते हैं।
      • भारत में उत्पादित कुल रेशम का लगभग 30% गैर-शहतूत रेशम है।
        • इन रेशमों में शहतूत रेशम के लंबे, महीन और चिकने धागों की तुलना में छोटे, मोटे एवं सख्त धागे होते हैं।
    • शहतूत रेशम (Mulberry Silk):
      • वैश्विक रेशम उत्पादन में रेशम के सबसे सामान्य और व्यापक रूप से उत्पादित प्रकार का हिस्सा लगभग 90% है।
        • यह घरेलू शहतूत रेशमकीट (बॉम्बिक्स मोरी) के कोकून से प्राप्त होता है, जो विशेष रूप से शहतूत की पत्तियों को खाता है।   
      • इसमें लंबे, चिकने और चमकदार रेशे होते हैं जिन्हें अलग-अलग बनावट तथा फिनिश वाले विभिन्न कपड़ों के रूप में बुना जा सकता है।
      • यह कपड़े, बिस्तर, पर्दे, असबाब और सहायक उपकरण जैसे अनुप्रयोगों की एक विस्तृत शृंखला के लिये उपयुक्त है।
  • कोकून का रंग:
    • पैतृक शहतूत कीट (एकसमान) भूरे-पीले कोकून का निर्माण करता है।
      • इसके विपरीत पालतू रेशम कीट कोकून पीले-लाल, सुनहरे, गुलाबी, हल्के हरे, गहरे हरे या सफेद रंग के आकर्षक पैलेट में आते हैं।
    • रेशम कीट के कोकून को रंगने वाले रंगद्रव्य कैरोटीनॉयड और फ्लेवोनोइड नामक रासायनिक यौगिकों से प्राप्त होते हैं, जो शहतूत की पत्तियों से बनते हैं जिन्हें रेशम कीट खाते हैं।
      • रेशम कीट कैरोटीनॉयड और फ्लेवोनोइड को अवशोषित करते हैं तथा उन्हें रेशम ग्रंथियों तक पहुँचाते हैं, जहाँ उन्हें ले जाया जाता है एवं रेशम प्रोटीन से बाँध दिया जाता है।
      • रेशम ग्रंथियों में वर्णक की मात्रा और प्रकार रेशम के धागों के रंग तथा तीव्रता को निर्धारित करते हैं, जिन्हें रेशम के कीड़ों द्वारा कोकून बनाने के लिये बाहर निकाला जाता है।
    • कोकून को रंगने वाले रंगद्रव्य जल में घुलनशील होते हैं, इसलिये वे धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं।
      • बाज़ार में हम जो रंगीन रेशम देखते हैं, वे एसिड रंगों का उपयोग करके तैयार किये जाते हैं।
    • कैरोटीनॉयड और फ्लेवोनोइड के लिये उत्तरदायी जीन में उत्परिवर्तन अलग-अलग रंग के कोकून का कारण बनता है, जो रेशम की विविधता के आणविक आधार में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।   

भारत के रेशम उद्योग की स्थिति:

  • रेशम उत्पादन:
    • भारत, चीन के बाद कच्चे रेशम का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
    • वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश में 33,739 मीट्रिक टन कच्चे रेशम का पर्याप्त उत्पादन हुआ।
      • भारत में शहतूत, टसर, मुगा और एरी सहित विभिन्न प्रकार के रेशम पाए जाते हैं। ये विविधताएँ रेशम कीटों की विशिष्ट आहार आदतों देखी जाती हैं।
    • रेशम उद्योग भारत के सबसे बड़े विदेशी मुद्रा अर्जक (Foreign Exchange Earners) में से एक है, जो देश के आर्थिक परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
  • अग्रणी राज्य:
    • वित्तीय वर्ष 2021-22 में कर्नाटक 32% का महत्त्वपूर्ण योगदान देकर भारत के रेशम उत्पादन में अग्रणी राज्य बनकर उभरा है।
      • अन्य महत्त्वपूर्ण योगदानकर्त्ताओं में आंध्र प्रदेश (25%) के साथ-साथ असम, बिहार, गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य शामिल हैं, जो संपन्न रेशम उद्योग में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
  • शीर्ष आयातक:
    • भारत, विश्व के 30 से अधिक देशों को निर्यात करता है। कुछ शीर्ष आयातक हैं-  संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, चीन, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी।
  • श्रमिक संख्या: 
    • देश का रेशम उत्पादन उद्योग ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में लगभग 9.76 मिलियन लोगों को रोज़गार देता है। भारत में रेशम उत्पादन गतिविधियाँ 52,360 गाँवों में फैली हुई हैं।
  •  केंद्रीय रेशम बोर्ड (CSB):
    • यह एक सांविधिक निकाय है, जिसे वर्ष 1948 में संसद के एक अधिनियम द्वारा भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत स्थापित किया गया था।
      • इसका मुख्यालय बंगलूरू में स्थित है।
    • CSB अनुसंधान, विस्तार, प्रशिक्षण, गुणवत्ता नियंत्रण और विपणन सहायता के माध्यम से भारत में रेशम उत्पादन तथा रेशम उद्योग के समग्र विकास एवं प्रसार के लिये ज़िम्मेदार है।
  • पहल:
    • सिल्क समग्र
    •  पूर्वोत्तर क्षेत्र वस्त्र संवर्द्धन योजना (NERTPS):
      • इस योजना का उद्देश्य एरी और मुगा रेशम पर विशेष ध्यान देने के साथ उत्तर पूर्वी राज्यों में रेशम उत्पादन का पुनरुद्धार, विस्तार और विविधीकरण करना है।

आंतरिक सुरक्षा

बड़े पैमाने पर आधार डेटा उल्लंघन

प्रिलिम्स के लिये:

बड़े पैमाने पर आधार डेटा उल्लंघन, आधार, UIDAI, व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी (PII), साइबर हमला, डार्क वेब, डीप वेब, IT नियम (2021)

मेन्स के लिये:

व्यापक आधार डेटा उल्लंघन, सरकारी नीतियाँ एवं विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिकी साइबर सुरक्षा कंपनी, रिसिक्योरिटी ने कहा कि आधार संख्या और पासपोर्ट विवरण सहित 815 मिलियन भारतीय नागरिकों की व्यक्तिगत रूप से पहचान योग्य जानकारी (Personally Identifiable Information- PII) डार्क वेब पर बेची जा रही थी।

डार्क वेब क्या है?

  • डार्क वेब उन साइट्स को संदर्भित करता है जो अनुक्रमित नहीं हैं तथा केवल विशेष वेब ब्राउज़र के माध्यम से ही पहुँच योग्य हैं। डार्क वेब, डीप वेब का एक छोटा-सा हिस्सा है।
  • हमारे महासागर और हिमखंड दृश्य का उपयोग करते हुए डार्क वेब जलमग्न हिमखंड का निचला सिरा होगा।
  • डार्क वेब इंटरनेट का एक छिपा हुआ भाग है तथा केवल विशेष सॉफ्टवेयर, कॉन्फिगरेशन या प्राधिकरण का उपयोग करके ही इसे एक्सेस किया जा सकता है, जिससे यह इंटरनेट का एक ऐसा क्षेत्र बन जाता है जो औसत उपयोगकर्त्ता के लिये आसानी से उपलब्ध नहीं है।

व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी क्या है तथा धमकी देने वाले अभिकर्त्ताओं को संवेदनशील डेटा तक किस प्रकार पहुँच प्राप्त हुई?

  • व्यक्तिगत पहचान योग्य जानकारी (PII):
    • PII वह जानकारी है जिसे अकेले या अन्य प्रासंगिक डेटा के साथ उपयोग करने पर किसी व्यक्ति की पहचान की जा सकती है।
    • PII पासपोर्ट जानकारी (Passport Information) या अर्द्ध-पहचानकर्त्ता (Quasi-Identifiers) ऐसे प्रत्यक्ष पहचानकर्त्ता हो सकते हैं जिन्हें किसी व्यक्ति की सफलतापूर्वक पहचान के लिये अन्य जानकारी के साथ जोड़ा जा सकता है।
  • संवेदनशील डेटा तक पहुँच:
    • डार्क वेब पर बिक्री के लिये चुराए गए डेटा की पेशकश करने वाले धमकी देने वाले अभिकर्ताओं ने यह बताने से इनकार कर दिया कि उन्होंने डेटा कैसे प्राप्त किया, जिससे आगे की जानकारी के बिना डेटा लीक के स्रोत को इंगित करना असंभव हो गया।
    • ऑनलाइन डेटा बेचते हुए पाए गए दूसरे अभिकर्ता लूसियस ने दावा किया कि उसकी पहुँच लीक हुए 1.8 टेराबाइट डेटा तक है, जो किसी अज्ञात "भारत आंतरिक कानून प्रवर्तन एजेंसी" को प्रभावित कर सकता है। हालाँकि दावे की पुष्टि होना अभी बाकी है।
    • शोधकर्त्ताओं द्वारा देखे गए डेटा नमूनों में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण(UIDAI) तथा आधार कार्ड सहित मतदाता पहचान पत्र के कई संदर्भ शामिल हैं। एक और संभावना यह है कि धमकी देने वाले अभिकर्त्ता ऐसे किसी तीसरे पक्ष की प्रणाली में सेंध लगाने में सफल रहे जिनके पास संबद्ध डेटा एकत्रित था।
  • लीक हुए डेटा से संबंधित खतरे:
    • रिसिक्योरिटी के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है तथा वर्ष 2023 की पहली छमाही में सभी मैलवेयर का पता लगाने में विश्व स्तर पर चौथे स्थान पर है।
    • पश्चिम एशिया में अशांति एवं अराजकता का फायदा उठाने वाले खतरनाक तत्त्वों  द्वारा किये गए हमलों में वृद्धि ने व्यक्तिगत रूप से पहचाने जाने योग्य डेटा को काफी हद तक उजागर कर दिया है, जिससे डिजिटल पहचान योग्य जानकारी की चोरी का खतरा बढ़ गया है।
    • धमकी देने वाले अभिकर्त्ता ऑनलाइन-बैंकिंग चोरी, कर धोखाधड़ी और अन्य साइबर-सक्षम वित्तीय अपराधों को अंजाम देने के लिये चोरी की गई पहचान योग्य जानकारी का इस्तेमाल कर सकते हैं।

डेटा उल्लंघन के विगत मामले:

  • वर्ष 2018, 2019 और 2022 में भी आधार डेटा के लीक होने की सूचना मिली थी, जिसमें बड़े पैमाने पर डेटा लीक के तीन मामले सामने आए थे, जिनमें से एक में PM किसान वेबसाइट पर संग्रहीत किसानों के डेटा को डार्क वेब पर उपलब्ध कराया गया था।
  • इससे पहले वर्ष 2023 में रिपोर्टें सामने आईं कि मैसेजिंग प्लेटफॉर्म टेलीग्राम पर एक बॉट उन भारतीय नागरिकों का व्यक्तिगत डेटा चुरा रहा था, जिन्होंने कोविड-19 वैक्सीन इंटेलिजेंस नेटवर्क (CoWIN) पोर्टल पर पंजीकरण कराया था।

भारत में डेटा गवर्नेंस से संबंधित प्रावधान क्या हैं?

  • IT संशोधन अधिनियम, 2008:
    • मौजूदा गोपनीयता प्रावधान भारत में IT (संशोधन) अधिनियम, 2008 के तहत कुछ गोपनीयता प्रावधान मौजूद हैं।
    • हालाँकि ये प्रावधान काफी हद तक कुछ स्थितियों के लिये विशिष्ट हैं, जैसे मीडिया में किशोरों और बलात्कार पीड़ितों के नाम प्रकाशित करने पर प्रतिबंध।
  • जस्टिस के.एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ 2017:
    • अगस्त 2017 में न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टास्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि भारतीयों के पास निजता का संवैधानिक रूप से संरक्षित मौलिक अधिकार है जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता का आंतरिक हिस्सा है।
  • बी.एन. श्रीकृष्ण समिति 2017:
    • सरकार ने अगस्त 2017 में न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में डेटा संरक्षण हेतु विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त की, जिसने डेटा संरक्षण विधेयक के मसौदे के साथ जुलाई 2018 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
    • रिपोर्ट में भारत में गोपनीयता कानून को मज़बूत करने के लिये कई तरह की सिफारिशें हैं जिनमें डेटा के प्रसंस्करण और संग्रह पर प्रतिबंध, डेटा संरक्षण प्राधिकरण, भूल जाने का अधिकार, डेटा स्थानीयकरण आदि शामिल हैं।
  • सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021:
    • IT नियम (2021) सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को अपने प्लेटफॉर्म पर सामग्री के संबंध में अधिक सक्रिय रहने के लिये बाध्य करता है।
  •  IT अधिनियम, 2000 को प्रतिस्थापित करने के लिये 'डिजिटल इंडिया अधिनियम', 2023 का प्रस्ताव:
    • IT अधिनियम मूल रूप से केवल ई-कॉमर्स लेन-देन की सुरक्षा और साइबर अपराधों को परिभाषित करने के लिये डिज़ाइन किया गया था, यह वर्तमान साइबर सुरक्षा परिदृश्य की बारीकियों से पर्याप्त रूप से नहीं निपट पाया तथा न ही डेटा गोपनीयता अधिकारों को संबोधित करता है।
    • नया डिजिटल इंडिया अधिनियम अधिक नवाचार, स्टार्टअप को सक्षम करके और साथ ही सुरक्षा, विश्वास तथा जवाबदेही के मामले में भारत के नागरिकों की सुरक्षा करके भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये उत्प्रेरक के रूप में कार्य करने की परिकल्पना करता है।

आगे की राह

  • UIDAI ने ‘मास्क्ड’ आधार का उपयोग करने की सिफारिश की, जो गोपनीयता और सुरक्षा को बढ़ाते हुए आधार संख्या के केवल अंतिम चार अंक प्रदर्शित करता है। 
  • इसके अलावा जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये एक उच्चस्तरीय "पहचान समीक्षा समिति" के माध्यम से स्वतंत्र निरीक्षण फिर से शुरू करने हेतु आधार अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिये।
  • सरकार को अनिवार्य आधार उपयोग को स्वीकार्य उद्देश्यों तक सीमित करना चाहिये और आधार प्रमाणीकरण विफल होने पर वैकल्पिक प्रमाणीकरण विधियाँ प्रदान करनी चाहिये।
  • उपयोगकर्त्ता अपने आधार डेटा को UIDAI की वेबसाइट या मोबाइल एप के माध्यम से लॉक करके सुरक्षित रख सकते हैं।

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. आधार कार्ड का उपयोग नागरिकता या अधिवास के प्रमाण के रूप में किया जा सकता हैै।  
  2. एक बार जारी होने के बाद आधार संख्या को जारीकर्त्ता प्राधिकारी द्वारा समाप्त या छोड़ा नहीं जा सकता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों  
(d) न तो 1 और न ही 2  

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • आधार प्लेटफॉर्म सेवा प्रदाताओं को निवासियों की पहचान को सुरक्षित और त्वरित तरीके से इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रमाणित करने में मदद करता है, जिससे सेवा वितरण अधिक लागत प्रभावी एवं कुशल हो जाता है। भारत सरकार और UIDAI के अनुसार आधार नागरिकता का प्रमाण नहीं है। 
  • हालाँकि UIDAI ने आकस्मिकताओं का एक सेट भी प्रकाशित किया है जो उसके द्वारा जारी आधार की अस्वीकृति के लिये उत्तरदायी है। मिश्रित या विषम बायोमेट्रिक जानकारी वाला आधार निष्क्रिय किया जा सकता है। आधार का लगातार तीन वर्षों तक उपयोग न करने पर भी उसे निष्क्रिय किया जा सकता है। 

अतः विकल्प D सही है।


प्रश्न. “ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी” के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2020)

  1. यह एक सार्वजनिक बहीखाता है जिसका निरीक्षण हर कोई कर सकता है, लेकिन जिसे कोई एकल उपयोगकर्त्ता नियंत्रित नहीं करता है। 
  2. ब्लॉकचेन की संरचना और डिज़ाइन ऐसा है कि इसमें मौजूद सारा डेटा क्रिप्टोकरेंसी के बारे में ही होता है। 
  3. ब्लॉकचेन की बुनियादी सुविधाओं पर निर्भर एप्लीकेशन बिना किसी की अनुमति के विकसित किये जा सकते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. सरकार की दो समानांतर चलाई जा रही योजनाओं, अर्थात् ‘आधार कार्ड’ और ‘राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर’ (NPR) एक स्वैच्छिक तथा दूसरी अनिवार्य, ने राष्ट्रीय स्तर पर वाद-विवादों एवं मुकदमेबाज़ी को जन्म दिया है। गुण-अवगुणों के आधार पर चर्चा कीजिये कि क्या दोनों योजनाओं को साथ-साथ चलाना आवश्यकता है या नहीं है? इन योजनाओं के विकासात्मक लाभों और न्यायोचित संवृद्धि को प्राप्त करने की संभाव्यता का विश्लेषण कीजिये। (2014)


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-अमेरिका 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता

प्रिलिम्स के लिये:

भारत और अमेरिका संबंध, भारत-अमेरिका 2+2 संवाद, संयुक्त राष्ट्र, G-20, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन (आसियान), क्वाड।

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका 2+2 संवाद, द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक समूह और भारत से जुड़े समझौते और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समझौते।

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-अमेरिका 2+2 मंत्रिस्तरीय संवाद के 5वें संस्करण का आयोजन किया गया, जिसमें दोनों देशों ने रक्षा, सेमीकंडक्टर, उभरती प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य आदि सहित द्विपक्षीय सहयोग के विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति पर प्रकाश डाला।

  • वर्ष 2018 से अमेरिकी नेताओं के साथ प्रत्येक वर्ष 2+2 बैठकें आयोजित की जा रही हैं।

2+2 बैठक क्या है?

  • परिचय:
    • 2+2 बैठकें दोनों देशों में से प्रत्येक के दो उच्च-स्तरीय प्रतिनिधियों, विदेश एवं रक्षा विभागों के मंत्रियों की भागीदारी का संकेत देती हैं, जिनका उद्देश्य उनके बीच बातचीत के दायरे को बढ़ाना है।
    • इस तरह के तंत्र से साझेदार दोनों पक्षों के राजनीतिक कारकों को ध्यान में रखते हुए एक-दूसरे की रणनीतिक चिंताओं एवं संवेदनशीलताओं को अधिक प्रभावी ढंग से समझने और महत्त्व देने में सक्षम बनाया जा सकता है। इससे बदलते वैश्विक परिवेश में मज़बूत, अधिक एकीकृत रणनीतिक संबंध बनाने में मदद मिलती है।
  • भारत के 2+2 भागीदार:
    • अमेरिका भारत का सबसे पुराना और सबसे प्रमुख 2+2 वार्ता भागीदार है।
    • इसके अतिरिक्त भारत ने ऑस्ट्रेलिया, जापान, यूनाइटेड किंगडम और रूस के मंत्रियों के साथ 2+2 बैठकें की हैं।

भारत-अमेरिका 2+2 वार्ता की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • रक्षा सौदे:
    • दोनों देशों का लक्ष्य रक्षा प्रौद्योगिकियों में गहरी साझेदारी को बढ़ावा देते हुए सहयोगात्मक रूप से रक्षा प्रणालियों का सह-विकास एवं सह-उत्पादन करना है।
    • भारत तथा अमेरिका वर्तमान में MQ-9B मानव रहित हवाई वाहनों की खरीद और भारत में जनरल इलेक्ट्रिक के F-414 जेट इंजन के लाइसेंस प्राप्त निर्माता के लिये सौदे पर बातचीत कर रहे हैं।
      • ये सौदे भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लक्ष्य के अनुरूप हैं।
    • दोनों देशों के मंत्री आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा (Security of Supply Arrangement- SOSA) को अंतिम रूप देने के लिये तत्पर देखे गए, जो रोडमैप में एक प्रमुख प्राथमिकता है तथा यह आपूर्ति शृंखला की अनुकूलता को मज़बूत करते हुए दोनों देशों के रक्षा औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र को एकीकृत करेगा।
  • इन्फेंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स और भविष्य की योजनाएँ:
    • दोनों पक्षों ने रक्षा उद्योग सहयोग रोडमैप के हिस्से के रूप में इन्फेंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स/पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों, विशेष रूप से स्ट्राइकर (Stryker) पर चर्चा की।
    • भारतीय सेना की ज़रूरतों को निर्धारित किये जाने तथा भारतीय व अमेरिकी उद्योग तथा सैन्य टीमों के बीच सहयोग के माध्यम से एक ठोस उत्पादन योजना स्थापित होने के बाद इन्फेंट्री कॉम्बैट प्रणालियों के बीच सहयोग को औपचारिक रूप दिया जाएगा।
  • रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग में प्रगति:
    • दोनों पक्षों ने जून 2023 में लॉन्च किये गए भारत-अमेरिका रक्षा औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र, INDUS-X की प्रगति की समीक्षा की, जिसका उद्देश्य रणनीतिक प्रौद्योगिकी साझेदारी और रक्षा औद्योगिक सहयोग का विस्तार करना है।
  • संयुक्त समुद्री बलों में सदस्यता:
    • बहरीन में मुख्यालय वाली बहुपक्षीय संरचना, संयुक्त समुद्री बलों का पूर्ण सदस्य बनने के भारत के फैसले का अमेरिका के रक्षा सचिव ने स्वागत किया।
      •  यह कदम क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • समुद्री सुरक्षा:
    • दोनों देशों ने महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों की सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने के महत्त्व को स्वीकार करते हुए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित किया।
  • अंतरिक्ष और सेमीकंडक्टर सहयोग:
    • मंत्रियों ने वाणिज्यिक और रक्षा दोनों क्षेत्रों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी मूल्य शृंखला सहयोग बनाने के लिये महत्त्वपूर्ण व उभरती प्रौद्योगिकी (iCET) पर भारत-अमेरिका पहल के तहत हुई तीव्र प्रगति का स्वागत किया।  
    • उन्होंने संबंधित सरकारों, शैक्षणिक, अनुसंधान और कॉर्पोरेट क्षेत्रों से वैश्विक नवाचार में तेज़ी लाने तथा दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लाभ पहुँचाने के लिये क्वांटम, दूरसंचार, जैव प्रौद्योगिकी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता एवं सेमीकंडक्टर जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में इन रणनीतिक साझेदारियों को सक्रिय रूप से जारी रखने का आह्वान किया।
    • उन्होंने रणनीतिक व्यापार संवाद निगरानी तंत्र की शीघ्र बैठक का स्वागत किया।
  • चीन आक्रामकता पर चर्चा:
    • अमेरिका ने इस बात पर ज़ोर दिया कि द्विपक्षीय संबंध चीन द्वारा पेश की गई चुनौतियों से निपटने से परे हैं।
  • भारत-कनाडा विवाद:
    • भारत और कनाडा के बीच विवाद, विशेष रूप से अमेरिका और कनाडा में स्थित खालिस्तान अलगाववादियों से संबंधित सुरक्षा चिंताओं को संबोधित किया गया।
    • भारत ने अपने साझेदारों को मुख्य सुरक्षा चिंताओं से अवगत कराया।
  • इज़रायल-हमास युद्ध:
    • भारत ने इज़रायल-हमास संघर्ष पर अपना रुख दोहराया, टू स्टेट सॉल्यूशन (आधिकारिक तौर पर सीमांकित और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दो देश) तथा बातचीत को जल्द-से-जल्द फिर से शुरू करने का समर्थन किया।
    • अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून के पालन और नागरिक हताहतों की निंदा पर ज़ोर देते हुए मानवीय सहायता प्रदान करने की मांग की गई है।

अमेरिका के साथ भारत के संबंध कैसे रहे हैं?

  • परिचय:
    • अमेरिका-भारत रणनीतिक साझेदारी लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली को बनाए रखने सहित साझा मूल्यों पर आधारित है।
    • व्यापार, निवेश और कनेक्टिविटी के माध्यम से वैश्विक सुरक्षा, स्थिरता तथा आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देने में दोनों के साझा हित हैं।
  • आर्थिक संबंध:
    • दोनों देशों के बीच बढ़ते आर्थिक संबंधों के कारण वर्ष 2022-23 में अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बनकर उभरा है।
    • भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में 7.65% बढ़कर 128.55 अमेरिकी डॉलर हो गया, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 119.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
      • वर्ष 2022-23 में अमेरिका के साथ निर्यात 2.81% बढ़कर 78.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 76.18 बिलियन अमेरिकी डॉलर था तथा आयात लगभग 16% बढ़कर 50.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • संयुक्त राष्ट्र, G-20, दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान), क्षेत्रीय फोरम, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन सहित बहुपक्षीय संगठनों में भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों देश मज़बूत सहयोगी हैं। 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2021 में दो साल के कार्यकाल के लिये भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल करने का स्वागत किया। इसके अतिरिक्त संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का समर्थन किया जिसमें भारत एक स्थायी सदस्य के रूप में शामिल है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत ने एक मुक्त तथा स्वतंत्र भारत-प्रशांत सहयोग को बढ़ावा देने एवं क्षेत्र को उचित लाभ प्रदान करने के लिये ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्वाड समूह का गठन किया है।
    • भारत समृद्धि के लिये हिंद-प्रशांत आर्थिक ढाँचा (Indo-Pacific Economic Framework for Prosperity- IPEF) पर संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ साझेदारी करने वाले बारह देशों में से है।
    • भारत इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन (IORA) का सदस्य है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका एक संवाद भागीदार है।
    • संयुक्त राज्य अमेरिका वर्ष 2021 में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल हो गया, जिसका मुख्यालय भारत में है और यह वर्ष 2022 में यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) में भी शामिल हुआ।
  • आधारभूत समझौते का ट्रोइका:
    • भारत ने अब अमेरिका के साथ सभी चार आधारभूत समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं- वर्ष 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA), वर्ष 2018 में संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA) तथा 2020 में भू-स्थानिक सहयोग के लिये बुनियादी विनिमय तथा सहयोग समझौते (BECA)।
      • जबकि सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (GSOMIA) पर काफी समय पहले हस्ताक्षर किये गए थे, इसके विस्तार, औद्योगिक सुरक्षा अनुबंध (ISA) पर वर्ष 2019 में हस्ताक्षर किये गए थे।

भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर प्रमुख चुनौतियाँ:

  • अमेरिका द्वारा भारतीय विदेश नीति की आलोचना:
    • भारतीय अभिजात वर्ग ने लंबे समय से विश्व को गुटनिरपेक्षता के चश्मे से देखा है, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से ही गठबंधन संबंध अमेरिकी विदेश नीति के केंद्र में रहा है।
      • भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति, विशेषकर शीत युद्ध के दौरान हमेशा पश्चिम और विशेष रूप से अमेरिका के लिये चिंता का विषय रही है।
    • 9/11 के हमलों के बाद अमेरिका ने भारत से अफगानिस्तान में सेना भेजने की मांग की थी लेकिन भारतीय सेना ने इस अनुरोध को स्वीकार नहीं किया था।
      • वर्ष 2003 में जब अमेरिका ने इराक पर हमला किया, तब भी भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री ने सैन्य समर्थन से इनकार कर दिया था।
    • हाल में भी रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत ने अमेरिका के दृष्टिकोण का पालन करने से इनकार कर दिया और राष्ट्रीय आवश्यकता के अनुरूप सस्ते रूसी तेल का आयात रिकॉर्ड स्तर पर जारी रखा है।
      • भारत को ‘इतिहास के सही पक्ष’ में लाने की मांग को लेकर प्रायः अमेरिका समर्थक आवाज़ें उठती रही हैं।
  • अमेरिका के विरोधियों के साथ भारत की संलग्नता:
    • भारत ने ईरान और वेनेज़ुएला के तेल के खुले बाज़ार पहुँच पर अमेरिकी प्रतिबंध की आलोचना की है।
    • ईरान को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) में लाने के लिये भारत ने भी सक्रिय रूप से कार्य किया है।
    • चीन समर्थित एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB) में प्रमुख भागीदार बने रहने के अलावा भारत ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिये चीन के साथ 18 दौर की वार्ता भी संपन्न की है।
  • अमेरिका द्वारा भारतीय लोकतंत्र की आलोचना:
    • विभिन्न अमेरिकी संगठन और फाउंडेशन, कुछ अमेरिकी कॉन्ग्रेस एवं सीनेट सदस्यों के मौन समर्थन के साथ भारत में लोकतांत्रिक विमर्श, प्रेस और धार्मिक स्वतंत्रता एवं अल्पसंख्यकों की वर्तमान स्थिति को प्रश्नगत करने वाली रिपोर्ट्स पेश करते रहे हैं।
  • आर्थिक तनाव:
    • आत्मनिर्भर भारत अभियान ने अमेरिका में इस विचार को तीव्रता प्रदान की है कि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी बंद बाज़ार अर्थव्यवस्था में परिणत होता जा रहा है।
    • अमेरिका ने GSP कार्यक्रम के तहत भारतीय निर्यातकों को प्राप्त शुल्क-मुक्त लाभों की समाप्ति का निर्णय लिया (जून 2019 से प्रभावी), जिससे भारत के दवा, कपड़ा, कृषि उत्पाद और ऑटोमोटिव पार्ट्स जैसे निर्यात-उन्मुख क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं।

आगे की राह 

  • मुक्त, खुले और विनियमित हिंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करने के लिये दोनों देशों के बीच साझेदारी होना महत्त्वपूर्ण है।
  • अद्वितीय जनसांख्यिकीय लाभांश अमेरिकी और भारतीय फर्मों के लिये तकनीकी हस्तांतरण, निर्माण, व्यापार एवं निवेश हेतु बड़े अवसर प्रदान करता है।
  • भारत, अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में अग्रणी अभिकर्त्ता के रूप में उभरने के साथ ही एक अभूतपूर्व परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है। भारत अपनी वर्तमान स्थिति का उपयोग करते हुए आगे बढ़ने के अवसरों का पता लगाने का प्रयास करेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. 'भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज करने में विफल रहा है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)


भारतीय अर्थव्यवस्था

भौतिक से डिजिटल सोने की ओर बदलाव

प्रिलिम्स के लिये:

भौतिक से डिजिटल सोने की ओर बदलाव, गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF), गोल्ड म्यूचुअल फंड तथा सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड, रियल एस्टेट, गोल्ड मुद्रीकरण योजना में बदलाव।

मेन्स के लिये:

भौतिक से डिजिटल सोने की ओर बदलाव, निवेश मॉडल, पूंजी बाज़ार

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF), गोल्ड म्यूचुअल फंड एवं सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड भौतिक सोने की तुलना में अधिक लोकप्रिय हो गए हैं जिनमें विशेषकर भंडारण और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

सोना भारतीय परिवारों से कैसे संबंधित है?

  • भारतीय परिवारों के पास सोने का भार:
    • जेफरीज़ की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2023 तक कुल भारतीय घरेलू संपत्ति का 15.5% सोने में है।
      • जेफरीज़, एक अमेरिकी आधारित निवेश बैंकिंग तथा पूंजी बाज़ार फर्म है जो अमेरिका, यूरोप एवं मध्य पूर्व तथा एशिया में निवेशकों, कंपनियों व सरकारों को अंतर्दृष्टि, विशेषज्ञता एवं निष्पादन सुविधा प्रदान करती है।
    • सोने की कुल हिस्सेदारी में केवल रियल एस्टेट का हिस्सा 50.7%प्रतिशत से अधिक है।
      • शेष हिस्सेदारी में बैंक जमा (14%), बीमा निधि (5.9%), भविष्य और पेंशन निधि (5.8%), इक्विटी (4.7%) एवं नकद (3.4%) शामिल हैं।
    • ऐसा प्रतीत होता है कि भारतीयों का सोने के प्रति रुझान सही है, क्योंकि क्वांटम म्यूचुअल फंड अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला गया है कि जोखिम-रिटर्न के दृष्टिकोण से सोने के लिये 10-15% पोर्टफोलियो आवंटन उचित है।
    • 10-15% आवंटन निवेशकों को समग्र पोर्टफोलियो रिटर्न को प्रभावित किये बिना जोखिम कम करने की अनुमति देता है।

  • भौतिक से डिजिटल की ओर परिवर्तन:
    • परंपरागत रूप से भारतीयों ने छोटे आभूषण अथवा गोल्ड बार और सिक्के खरीदकर सोने की बचत की है, जिसे बाद में शादी जैसे उपयुक्त समय पर बड़े आभूषणों में परिवर्तित कर दिया जाता है अथवा वित्तीय ज़रूरतों के समय परिसमाप्त कर दिया जाता है।
      • गोल्ड बार और सिक्के बहुत तरल होते हैं, उनकी शुद्धता की हमेशा गारंटी नहीं होती है। उनकी भंडारण लागत अधिक होती है तथा वे खुदरा विक्रेता मार्क-अप एवं पुनर्विक्रय के समय कम मूल्य मिलने जैसी समास्याओं से परिपूर्ण हैं।
    • किंतु बदलती जनसांख्यिकी, बैंकिंग सुविधाओं तक अधिक पहुँच, डिजिटल अर्थव्यवस्था के विस्तार और वित्तीय निवेश के तरीकों के बारे में बढ़ती जागरूकता के साथ उपभोक्ता प्राथमिकता धीरे-धीरे भौतिक सोने से डिजिटल रास्ते की ओर बढ़ रही है।
    • इसके कारण आज देश में डिजिटल गोल्ड निवेश के साधन के रूप में गोल्ड ETF और SGB की स्वीकार्यता बढ़ रही है।

सोने में निवेश के लिये डिजिटल माध्यम क्या हैं?

  • गोल्ड ETF:
    • परिचय: स्वर्ण/गोल्ड ETF, जिसका उद्देश्य घरेलू भौतिक सोने की कीमत का आकलन करना है, निष्क्रिय निवेश साधन हैं जो सोने की कीमतों पर आधारित होते हैं तथा सोने को बुलियन में निवेश करते हैं।
      • गोल्ड ETF भौतिक सोने का प्रतिनिधित्व करने वाली इकाइयाँ हैं जो कागज़ अथवा डीमैट रूप में हो सकती हैं।
        • एक गोल्ड ETF इकाई 1 ग्राम सोने के बराबर होती है और इसमें उच्च शुद्धता का भौतिक सोना होता है।
        • वे स्टॉक निवेश के लचीलेपन और सोने के निवेश की सहजता को संयोजित करते हैं।
    • लाभ:
      • ETF की हिस्सेदारी में पूरी पारदर्शिता रखी गई है।
      • गोल्ड ETF में भौतिक सोने के निवेश की तुलना में बहुत कम खर्च होता है।
      • ETFs पर संपत्ति कर, सुरक्षा लेन-देन कर, वैट और बिक्री कर नहीं लगाया जाता है।
      • ETF सुरक्षित और संरक्षित होने के कारण चोरी का कोई डर नहीं होता क्योंकि ये इकाइयाँ धारक के डीमैट खाते में होती हैं।
    • डिजिटल गोल्ड की ओर रुख: गोल्ड ETF में निवेशकों की संख्या जनवरी 2020 में करीब 4.61 लाख से बढ़कर सितंबर 2023 में 48.06 लाख हो गई है।
  • गोल्ड म्यूचुअल फंड:
    • गोल्ड म्यूचुअल फंड व्यवसायिक रूप से प्रबंधित फंड हैं जो सोने से संबंधित विभिन्न परिसंपत्तियों, जैसे- सोने के खनन स्टॉक, बुलियन और खनन कंपनियों में निवेश करने के लिये कई निवेशकों से पैसा इकट्ठा करते हैं।
    • गोल्ड, एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF) की तरह वे निवेशकों को भौतिक सोने में निवेश किये बिना सोने के बाज़ार में निवेश की अनुमति देते हैं।
  • सॉवरेन गोल्ड बॉण्ड:
    • पहली SGB योजना नवंबर 2015 में सरकार द्वारा स्वर्ण मुद्रीकरण योजना के तहत शुरू की गई थी जिसका उद्देश्य भौतिक सोने की मांग को कम करना और घरेलू बचत का एक हिस्सा वित्तीय बचत के रूप में स्थानांतरित करना था ताकि उसे सोने की खरीद के लिये इस्तेमाल किया जा सके।

योजना संबंधी प्रमुख विवरण:

वस्तु

विवरण

जारीकर्त्ता

भारत सरकार की ओर से भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा जारी किया जाता है।

पात्रता

SGB की बिक्री निवासी व्यक्तियों, HUF (हिंदू अविभाजित परिवार), ट्रस्टों, विश्वविद्यालयों और धर्मार्थ संस्थानों के लिये प्रतिबंधित होगी।

अवधि

SGB की अवधि 8 वर्ष की होगी, जिसमें 5वें वर्ष के बाद समय से पहले भुनाने का विकल्प होगा।

न्यूनतम सीमा 

न्यूनतम अनुमेय निवेश की सीमा एक ग्राम सोना होगा।

अधिकतम सीमा

सदस्यता की अधिकतम सीमा प्रति वित्तीय वर्ष व्यक्तियों के लिये 4 किलोग्राम, HUF के लिये 4 किलोग्राम और ट्रस्टों के लिये 20 किलोग्राम तथा धर्मार्थ संस्थाओं के लिये सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित (अप्रैल-मार्च) होगी।

संयुक्त धारक

संयुक्त धारक के मामले में 4 किलोग्राम की निवेश सीमा पहले आवेदक पर ही लागू होगी।

निर्गमन मूल्‍य

इंडिया बुलियन एंड ज्वैलर्स एसोसिएशन लिमिटेड द्वारा प्रकाशित 999 शुद्धता वाले सोने की क्लोज़िंग प्राइस के सामान्य औसत के आधार पर SGB की कीमत भारतीय रुपए में तय की जाएगी। 

ब्‍याज दर 

निवेशकों को निवेश के आरंभिक मूल्‍य (अंकित मूल्य या घोषित मूल्य) पर 2.50 प्रतिशत प्रतिवर्ष की नियत दर पर अर्द्धवार्षिक रूप से देय होगा।

संपार्श्‍विक

SGB को ऋणों के लिये संपार्श्‍विक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।


कर उपचार

आयकर अधिनियम, 1961 के उपबंधों के अनुसार, SGB पर ब्‍याज कर देना होगा। किसी व्‍यक्‍ति को SGB के मोचन से प्राप्‍त पूंजी लाभ कर पर छूट दी गई है। 

व्‍यापार योग्‍यता

SGB स्‍टाक एक्‍सचेंजों में व्‍यापार योग्‍य होंगे।

SLR पात्रता

केवल ग्रहणाधिकार/बंधक/गिरवी रखने की प्रक्रिया के माध्यम से बैंकों द्वारा अर्जित SGB की गणना सांविधिक नकदी अनुपात में की जाएगी।

  • डिजिटल गोल्ड:
    • यह डिजिटल गोल्ड निवेश के प्रकारों में से एक है जहाँ कोई भी छोटे मूल्यवर्ग में सोना ऑनलाइन खरीद सकता है
    • यह निवेशकों को भौतिक सोने के एक हिस्से का मालिक बनने की अनुमति देता है जिसे तिजोरियों में सुरक्षित संग्रहीत किया जाता है
    • यह निवेश निवेशक को भौतिक सोने के निवेश के साथ आने वाली चुनौतियों के बारे में चिंता किये बिना सोने के बाज़ार में निवेश की अनुमति देता है।
    • कई डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म और निवेश एप डिजिटल गोल्ड में निवेश की सुविधा प्रदान करते हैं।

एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF)

  • एक एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF) प्रतिभूतियों की एक बास्केट है जो स्टॉक की तरह ही एक्सचेंज पर व्यापार करती है।
  • एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड, BSE सेंसेक्स की तरह एक सूचकांक की संरचना को दर्शाता है। इसका ट्रेडिंग मूल्य अंतर्निहित शेयरों (जैसे शेयर) के नेट एसेट वैल्यू (NAV) पर आधारित होता है, जिसका यह प्रतिनिधित्व करता है।
  • ETF शेयर की कीमतों में पूरे दिन उतार-चढ़ाव होता रहता है क्योंकि इसे खरीदा और बेचा जाता है। यह म्युचुअल फंड से अलग है जिसका बाज़ार बंद होने के बाद दिन में केवल एक बार व्यापार होता है।
  • एक ETF विभिन्न उद्योगों में सैकड़ों या हज़ारों शेयर रख सकता है, या फिर उसे किसी एक विशेष उद्योग या क्षेत्र में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • बॉण्ड ETF एक प्रकार के ETF हैं जिनमें सरकारी बॉण्ड, कॉरपोरेट बॉण्ड और राज्य तथा स्थानीय बॉण्ड शामिल हो सकते हैं, जिन्हें म्युनिसिपल बॉण्ड कहा जाता है।
    • बॉण्ड एक ऐसा साधन है जो एक निवेशक द्वारा एक उधारकर्त्ता (आमतौर पर कॉर्पोरेट या सरकारी) को दिये गये ऋण का प्रतिनिधित्व करता है।
  • लागत प्रभावी होने के अलावा ETF निवेशकों को विविध निवेश पोर्टफोलियो प्रदान करते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत सरकार की बॉण्ड यील्ड निम्नलिखित में से किससे प्रभावित होती है? (2021)

  1. युनाइटेड स्टेट्स फेडरल रिज़र्व की कार्रवाइयों से
  2. भारतीय रिज़र्व बैंक के कार्य से
  3. मुद्रास्फीति और अल्पकालिक ब्याज दरों के कारण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • बॉण्ड पैसा उधार लेने का साधन है। किसी देश की सरकार या किसी कंपनी द्वारा धन जुटाने के लिये बॉण्ड जारी किया जा सकता है।
  • बॉण्ड यील्ड वह रिटर्न है जो एक निवेशक को बॉण्ड पर मिलता है। प्रतिफल की गणना के लिये गणितीय सूत्र बॉण्ड के मौजूदा बाज़ार मूल्य से विभाजित वार्षिक कूपन दर है।
  • प्रतिफल में उतार-चढ़ाव ब्याज दरों के रुझान पर निर्भर करता है, इसके परिणामस्वरूप निवेशकों को पूंजीगत लाभ या हानि हो सकती है।
  • बाज़ार में बॉण्ड यील्ड बढ़ने से बॉण्ड की कीमत नीचे आ जाएगी।
  • बॉण्ड यील्ड में गिरावट से निवेशक को फायदा होगा क्योंकि बॉण्ड की कीमत बढ़ेगी, जिससे पूंजीगत लाभ होगा।
  • फेड टेपरिंग अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के बॉण्ड खरीद कार्यक्रम में क्रमिक कमी हुई है। इसलिये यूंनाइटेड स्टेट्स फेडरल रिज़र्व की कोई भी कार्रवाई भारत में बॉण्ड यील्ड को प्रभावित करती है। अत: कथन 1 सही है।
  • सरकारी बॉण्ड का प्रतिफल निर्धारित करने में RBI की कार्रवाइयाँ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अर्थव्यवस्था में ब्याज दरों की एक विस्तृत शृंखला को प्रभावित करने में मौद्रिक नीति के लिये संप्रभु यील्ड वक्र का विशेष महत्त्व है। अत: कथन 2 सही है।
  • मुद्रास्फीति और अल्पकालिक ब्याज दरें भी सरकारी बॉण्ड यील्ड को प्रभावित करती हैं। अत: कथन 3 सही है।

अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।


प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले 'आइ.एफ.सी.मसाला बॉण्ड (IFC Masals Bonds)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (इंरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन), जो इन बॉण्डों को प्रस्तावित करता है, विश्व बैंक की एक शाखा है।
  2. ये रुपया अंकित मूल्य वाले बॉण्ड (Rupee-denominated Bonds) हैं और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के ऋण वित्तीयन के स्रोत हैं।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • विश्व बैंक समूह, जो कि विकासशील देशों की वित्तीय और तकनीकी सहायता का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है, में पाँच विशिष्ट लेकिन पूरक संगठन शामिल हैं।
  • पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (IBRD)।
  • अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA)।
  • अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)। अतः कथन 1 सही है।
  • बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA)।
  • निवेश विवादों के निपटान के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID)।
  • मसाला बॉण्ड भारत के बाहर जारी किये गए बॉण्ड होते हैं, लेकिन स्थानीय मुद्रा की बजाय इन्हें भारतीय मुद्रा में निर्दिष्ट किया जाता है। मसाला का अर्थ है 'मसाले' और इस शब्द का इस्तेमाल अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC) द्वारा विदेशी प्लेटफॅार्मों पर भारत की संस्कृति और व्यंजनों को लोकप्रिय बनाने के लिये किया गया था। मसाला बॉण्ड का उद्देश्य भारत में बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करना, उधार के माध्यम से आंतरिक विकास को बढ़ावा देना और भारतीय मुद्रा का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना है। अत: कथन 2 सही है।

अतः विकल्प (C) सही उत्तर है।


प्रश्न. सरकार की 'संप्रभु स्वर्ण बॉण्ड योजना (Sovereign Gold Bond Scheme)' और 'स्वर्ण मुद्रीकरण योजना (Old Monetization Scheme)' का/के उद्देश्य क्या है/हैं? (2016)

  1. भारतीय गृहस्थों के पास निष्क्रिय पड़े स्वर्ण को अर्थव्यवस्था में लाना।
  2. स्वर्ण एवं आभूषण के क्षेत्र में FDI को प्रोत्साहित करना।
  3. स्वर्ण के आयात पर भारत की निर्भरता में कमी लाना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


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