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RERA की पूर्वव्यापी व्याख्या

  • 19 Nov 2021
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 14,  अनुच्छेद 19, 

मेन्स के लिये:

रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 के महत्त्वपूर्ण प्रावधान एवं उनकी आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 (RERA) को पूर्वव्यापी बताते हुए इसकी व्याख्या की गई है।

  • सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का उद्देश्य होमबॉयर्स (Homebuyers) के हितों को सुरक्षित करना है, जो  खरीदारों के लिये एक बड़ी राहत होगी, यह समाधान प्रक्रिया को गति देता है और राज्य सरकारों के लिये   कानूनी गतिविधियों को आसान बनाता है।

Brick-by-Brick

प्रमुख बिंदु 

  • पूर्वव्यापी कार्यान्वयन:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात की पुष्टि की कि RERA 2016 के प्रावधान उन परियोजनाओं पर लागू होते हैं जो परिचालन में थीं और जिनके लिये कानून के अधिनियमन के समय पूर्णता प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं किया गया था।
      • अधिनियम के तहत अचल संपत्ति परियोजनाओं का पंजीकरण करना अनिवार्य था।
      • यह उन परियोजनाओं के लिये अनिवार्य है जो अधिनियम के प्रारंभ होने की तिथि से चल रही हैं, विशेष रूप से जिन परियोजनाओं के लिये पूर्णता प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया था। प्रमोटर परियोजना के पंजीकरण के लिये प्राधिकरण को आवेदन करने के लिये बाध्य होंगे।
    • उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना और तमिलनाडु राज्यों में  RERA प्राधिकरणों के नियम वर्तमान में इस स्थिति के अनुरूप नहीं हैं और सभी चल रही परियोजनाओं को RERA के तहत शामिल करने के लिये अपने नियमों में संशोधन करने की आवश्यकता हो सकती है।
  • निवेश की गई राशि की वसूली:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि आवंटियों द्वारा निवेश की गई राशि को नियामक प्राधिकरण या निर्णायक अधिकारी द्वारा निर्धारित ब्याज के साथ बिल्डर्स से भूमि राजस्व के बकाया के रूप में वसूल किया जा सकता है।
      • बिल्डर्स का तर्क है कि होमबॉयर्स (Homebuyers) केवल भूमि के बकाया के रूप में ब्याज या जुर्माना वसूलने के हकदार हैं। 
      • हालांँकि अधिनियम की योजना को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा है कि आवंटी को जो राशि वापस की जानी है वह उसकी अपनी बचत है। प्राधिकरण द्वारा गणना/मात्रा के अनुसार ब्याज के साथ राशि वसूली योग्य हो जाती है और ऐसा बकाया कानून में लागू होता है।
  • डेवलपर्स हेतु ​जुर्माना:
    • किसी भी RERA आदेश को चुनौती देने से पहले रियल एस्टेट डेवलपर्स के लिये नियामक द्वारा आदेशित दंड का कम-से-कम 30% या पूरी राशि, जमा करना अनिवार्य है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल वास्तविक अपील दायर की जाएगी और गृह खरीदारों के हितों की रक्षा होगी।
      • सर्वोच्च न्यायालय ने बताया किया कि अधिनियम के तहत पूर्व-जमा वाले प्रमोटर पर दायित्व, किसी भी परिस्थिति में भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) या अनुच्छेद 19(1) (g) (जो किसी भी पेशे का अभ्यास करने की स्वतंत्रता या भारत के संविधान के किसी भी व्यवसाय, व्यापार या व्यवसाय को चलाने का अधिकार प्रदान करता है) का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता है।
        • अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा अपील पर विचार करने के लिये अपील दायर करने वाले बिल्डर्स/प्रमोटर्स को पूर्व-जमा करना आवश्यक है।
        • एक प्रमोटर को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसे प्रोजेक्ट (रियल एस्टेट प्रोजेक्ट) को बढ़ावा देने का काम सौंपा जाता है, जिसे डेवलपर द्वारा विकसित या निर्मित किया गया था। 
      • विधायिका का प्रयोजन यह सुनिश्चित करना प्रतीत होता है कि डिक्री होल्डर (सफल पार्टी) के अधिकारों की रक्षा की जानी है और केवल वास्तविक अपीलों पर विचार किया जाना है।

रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 (RERA)

  • आवश्यकता:
    • सबसे बड़े निवेश क्षेत्र को सुरक्षित करना: रियल एस्टेट क्षेत्र का विनियमन 2013 से चर्चा में था, और RERA अधिनियम अंततः 2016 में अस्तित्व में आया। डेटा से पता चलता है कि एक औसत भारतीय परिवार की कुल संपत्ति का 77% से अधिक रियल एस्टेट में होता है और यह किसी व्यक्ति का उसके जीवनकाल में सबसे बड़ा निवेश है।
    • जवाबदेहिता सुनिश्चित करना: कानून निर्माण से पहले रियल एस्टेट और हाउसिंग सेक्टर काफी हद तक अनियंत्रित था, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता बिल्डर्स और डेवलपर्स को जवाबदेह ठहराने में असमर्थ थे।
      • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 घर खरीदारों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अपर्याप्त था।
      • रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम को उपभोक्ताओं के प्रति अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने, धोखाधड़ी और विलंबता को कम करने और एक फास्ट ट्रैक विवाद समाधान तंत्र स्थापित करने के उद्देश्य से पारित किया गया था।
  • मुख्य प्रावधान:
    • राज्य स्तरीय नियामक प्राधिकरणों की स्थापना- रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (RERA) अधिनियम राज्य सरकारों को निम्नलिखित अधिदेश के साथ एक से अधिक नियामक प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान करता है:
      • अचल संपत्ति परियोजनाओं का एक पंजीकृत डेटाबेस और उसे बनाए रखना; इसे जनता के देखने के लिये अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करना।
      • प्रमोटर्स, खरीदारों और रियल एस्टेट एजेंटों के हितों की सुरक्षा।
      • सतत् और किफायती आवासों का विकास।
      • सरकार को सलाह देना और उसके विनियमों एवं अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करना।
    • रियल एस्टेट अपीलीय न्यायाधिकरण की स्थापना: इन न्यायाधिकरणों में RERA के निर्णयों के विरुद्ध अपील की जा सकती है।
    • अनिवार्य पंजीकरण: कम-से-कम 500 वर्ग मीटर या आठ अपार्टमेंट के प्लॉट आकार वाली सभी परियोजनाओं को नियामक प्राधिकरणों के साथ पंजीकृत करने की आवश्यकता है।
    • जमा: खरीदारों से एकत्र किये गए धन का 70% केवल उस परियोजना के निर्माण हेतु एक अलग ‘एस्क्रो बैंक खाते’ में जमा करना।
    • दायित्व: पाँच वर्ष के लिये संरचनात्मक दोषों की मरम्मत के लिये डेवलपर का दायित्व।
    • चूक के मामले में दंडात्मक ब्याज: दोनों पक्षों से किसी भी चूक के मामले में प्रमोटर और खरीदार दोनों समान ब्याज दर का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी हैं
    • अग्रिम भुगतान सीमा: एक प्रमोटर पहले बिक्री के लिये समझौता किये बिना किसी व्यक्ति से अग्रिम भुगतान या आवेदन शुल्क के रूप में भूखंड, अपार्टमेंट या भवन की लागत का 10% से अधिक स्वीकार नहीं कर सकता है।
    • कार्पेट एरिया: कार्पेट एरिया को फ्लैट के ‘नेट यूज़ेबल फ्लोर एरिया’ के रूप में परिभाषित किया जाता है। खरीदारों से कार्पेट एरिया के लिये शुल्क लिया जाएगा, न कि सुपर बिल्ट-अप एरिया के लिये।
    • सज़ा: अपीलीय न्यायाधिकरणों और नियामक प्राधिकरणों के आदेशों के उल्लंघन पर डेवलपर्स के लिये तीन वर्ष तक और एजेंटों तथा खरीदारों के मामले में एक वर्ष तक की कैद।
  • अधिनियम का कार्यान्वयन:
    • 34 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने रेरा के तहत नियमों को अधिसूचित किया है, जबकि नगालैंड में इसे लागू करने की प्रक्रिया चल रही है।
    • पश्चिम बंगाल ने रेरा के तहत नियमों को अधिसूचित करने के बजाय अपना खुद का कानून - पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंडस्ट्री रेगुलेशन एक्ट, 2017 (HIRA) बनाया है।
    • आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के पास उपलब्ध नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरणों की स्थापना की है और 26 ने रियल एस्टेट अपीलीय न्यायाधिकरणों की स्थापना की है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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