डेली न्यूज़ (14 Oct, 2023)



वर्ल्ड इकोनाॅमिक आउटलुक: IMF

प्रिलिम्स के लिये:

वर्ल्ड इकोनाॅमिक आउटलुक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), यूक्रेन पर रूस का आक्रमण, मुद्रास्फीति, विश्व बैंक (WB)।

मेन्स के लिये:

वर्ल्ड इकोनाॅमिक आउटलुक, प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ, एजेंसियाँ एवं अन्य संरचनाएँ, जनादेश आदि।

स्रोत:इकोनाॅमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा वर्ल्ड इकोनाॅमिक आउटलुक, 2023 जारी किया गया है। जिसका शीर्षक ‘नेविगेटिंग ग्लोबल डाइवर्जेंस’ है। जिसके अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था में पहले के अनुमान से अधिक तीव्रता से वृद्धि होगी।

वर्ल्ड इकोनाॅमिक आउटलुक की मुख्य विशेषताएँ:

  • वैश्विक विकास पूर्वानुमान:
    • IMF का अनुमान है कि वर्ष 2023 में 3% वैश्विक GDP (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि होगी, जो उसके द्वारा जुलाई 2023 की पूर्वानुमानित वैश्विक GDP के समान है।
    • हालाँकि वर्ष 2024 के लिये वैश्विक GDP वृद्धि में जुलाई के पूर्वानुमान से 10 आधार अंक की कमी देखी गई है तथा यह घटकर 2.9% हो गई है।
  • चीनी अर्थव्यवस्था का पूर्वानुमान:
    • चीनी अर्थव्यवस्था के वर्ष 2023 में 5% की दर से बढ़ने की उम्मीद है जो वर्ष 2022 में इसकी 3% की वृद्धि से अधिक है।
    • चीन की वर्ष 2023 और वर्ष 2024 की वृद्धि के लिये IMF का अक्तूबर का पूर्वानुमान उसके जुलाई के अनुमान से 20 एवं 30 आधार अंक कम है, जो यह दर्शाता है कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को अपनी स्थिति कायम रखने में मुश्किल का सामना करना पड़ सकता है।
  • मुद्रास्फीति और मौद्रिक नीति:
    • IMF का अनुमान है कि वर्ष 2024 में वैश्विक मुद्रास्फीति 5.8% की दर से बढ़ेगी, जो तीन महीनों के अनुमानित 5.2% दर की वृद्धि से तीव्र/अधिक है तथा ये अनुमान सप्ताहांत की घटनाओं और उनके परिणामों का ब्यौरा नहीं देते हैं।
  • चिंताएँ और जोखिम:
    • मुद्रास्फीति से निपटने के लिये केंद्रीय बैंकों द्वारा लागू की गई सख्त मौद्रिक नीतियों के कारण, जो वर्ष 2022 में बढ़कर 8.7% हो गई तथा यूक्रेन पर रूस के आक्रमण, महामारी और आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के परिणामस्वरुप असमान वसूली के कारण, विकास पिछड़ गया है।
  • अनिश्चितताएँ और नकारात्मक जोखिम:
    • निवेश महामारी-पूर्व स्तर से कम है, जो उच्च ब्याज दरों और सख्त ऋण शर्तों से प्रभावित है।
    • IMF देशों को भविष्य के जोखिमों से बचाव के लिये राजकोषीय बफर का पुनर्निर्माण करने की सलाह देता है।
    • वैश्विक विकास दर के 2% से नीचे गिरने की संभावना लगभग 15% है, जिसमें वर्ष 2024 के लिये ऊँचाई पर पहुँचने तुलना में गिरने का जोखिम अधिक है।

भारत से संबंधित निष्कर्ष:

  • सत्र 2023-24 के लिये भारत की GDP 6.3% होगी, जो जुलाई 2023 से 20 आधार अंक की वृद्धि है।
  • भारत के लिये IMF का सत्र 2023-24 का विकास पूर्वानुमान अब लगभग वही है जो विश्व बैंक (WB) ने अपने भारत विकास अपडेट में अनुमान लगाया था।
  • भारत के सत्र 2024-25 की GDP वृद्धि का अनुमान 6.3% दर पर अपरिवर्तित है।
  • जून 2023 में समाप्त तिमाही में 7.8% की मज़बूत वृद्धि के बावजूद IMF ने सत्र 2023-24 के लिये भारत के सकल घरेलू उत्पाद के विकास में वृद्धि का अनुमान का अनुमान लगाया है, वार्षिक वृद्धि का आँकड़ा अभी भी RBI की मौद्रिक नीति समिति की 6.5% दर के अनुमान से कम है।

प्रमुख सिफारिशें:

  • आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये व्यावसायिक निवेश को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, जैसा कि अमेरिका में देखा गया है, जहाँ सुदृढ़ व्यावसायिक निवेश ने उन्नत विकास पूर्वानुमान में योगदान दिया है।
  • प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक विचलन, विशेष रूप से यूरोज़ोन में बारीकी से निगरानी की जानी चाहिये और कुछ क्षेत्रों में संकुचन या धीमी वृद्धि का कारण बनने वाले कारकों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • मुद्रास्फीति और मौद्रिक नीति के प्रबंधन में सावधानी बरतना। IMF ने इस बात पर ज़ोर दिया कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिये विश्व स्तर पर समकालिक केंद्रीय बैंकों के साथ सख्ती बरतना आवश्यक है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF):

  • IMF एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो वैश्विक आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देता है, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करता है तथा गरीबी को कम करने में सहायता करता है।
    • इसकी स्थापना वर्ष 1945 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन से की गई थी।
  • IMF का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित करना है, यह विनिमय दरों और अंतर्राष्ट्रीय भुगतान की प्रणाली है जो देशों (और उनके नागरिकों) को एक-दूसरे के साथ लेन-देन करने में सक्षम बनाती है।
    • अंततः यह उन देशों की सरकारों के लिये अंतिम उपाय का ऋणदाता बन गया, जिन्हें गंभीर मुद्रा संकट से जूझना पड़ा।
  • IMF द्वारा रिपोर्ट:
    • वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट।
    • वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक
      • यह सामान्यतः अप्रैल और अक्तूबर के महीनों में वर्ष में दो बार प्रकाशित किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. "रैपिड फाइनेंसिंग इंस्ट्रूमेंट" और "रैपिड क्रेडिट सुविधा" निम्नलिखित में से किसके द्वारा उधार देने के प्रावधानों से संबंधित हैं? (2022)

(a) एशियाई विकास बैंक
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम वित्त पहल
(d) विश्व बैंक

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • रैपिड फाइनेंसिंग इंस्ट्रूमेंट(RFI) त्वरित वित्तीय सहायता प्रदान करता है, यह भुगतान संतुलन आवश्यकताओं का सामना करने वाले सभी सदस्य देशों के लिये उपलब्ध है। RFI को सदस्य देशों की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये तथा वित्तीय सहायता को अधिक लचीला बनाने हेतु IMF को एक व्यापक सुधार के हिस्से के रूप में बनाया गया था। रैपिड फाइनेंसिंग इंस्ट्रूमेंट IMF की पूर्ववर्ती आपातकालीन सहायता नीति की जगह लेता है और इसका उपयोग विभिन्न परिस्थितियों में किया जा सकता है।
  • रैपिड क्रेडिट सुविधा (RCF) कम आय वाले देशों (LIC) की बिना किसी पूर्व शर्त के तत्काल भुगतान संतुलन (BoP) आवश्यकताओं की पूर्ति करता है, जहाँ एक पूर्ण आर्थिक कार्यक्रम की न तो आवश्यकता है और न ही यह व्यवहार्य है। RCF की स्थापना एक व्यापक सुधार के हिस्से के रूप में की गई थी ताकि वित्तीय सहायता को अधिक लचीला और संकट के समय LIC की विविध ज़रूरतों के अनुरूप बेहतर बनाया जा सके।
  • RCF के तहत तीन क्षेत्र हैं: (i) घरेलू अस्थिरता, आपात स्थिति जैसे स्रोतों की एक विस्तृत शृंखला के कारण तत्काल BoP ज़रूरतों के लिये एक "रेगुलर विंडो", (ii) अचानक, बहिर्जात झटके के कारण तत्काल BoP ज़रूरतों के लिये एक "एक्सोजेनस शॉक विंडो" और (iii) प्राकृतिक आपदाओं के कारण तत्काल BoP ज़रूरतों के लिये एक "लार्ज नेचुरल डिज़ास्टर विंडो" जहाँ क्षति सकल घरेलू उत्पाद के 20% के बराबर या उससे अधिक होने का अनुमान है।

प्रश्न. “स्वर्ण ट्रान्श” (रिज़र्व ट्रान्श) निर्दिष्ट करता है: (2020)

(a) विश्व बैंक की एक ऋण व्यवस्था
(b) केंद्रीय बैंक की किसी एक क्रिया को
(c) WTO द्वारा इसके सदस्यों को प्रदत्त एक साख प्रणाली को
(d) IMF द्वारा इसके सदस्यों को प्रदत्त एक साख प्रणाली को

उत्तर: (d)

प्रश्न. 'वैश्विक वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट' (2016) किसके द्वारा तैयार की जाती है?

(a) यूरोपीय केंद्रीय बैंक
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक
(d) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन

उत्तर: (b)

मेन्स:

प्रश्न: विश्व बैंक और IMF, जिन्हें सामूहिक रूप से ब्रेटन वुड्स की जुडवाँ संस्था के रूप में जाना जाता है, विश्व की आर्थिक एवं वित्तीय व्यवस्था की संरचना का समर्थन करने वाले दो अंतर-सरकारी स्तंभ हैं। विश्व बैंक और IMF कई सामान्य विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं, फिर भी उनकी भूमिका, कार्य एवं अधिदेश स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। व्याख्या कीजिये। ( 2013)


पर्यावास अधिकार और इसके निहितार्थ

प्रिलिम्स के लिये:

जनजातीय अधिकार और निहितार्थ, बैगा जनजातिविशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG), भारिया एवं कमार जनजाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006

मेन्स के लिये:

जनजातीय अधिकार और निहितार्थ प्रदान करना, केंद्र और राज्यों द्वारा आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ और इन योजनाओं का प्रदर्शन।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अगस्त 2023 में कमार PVTG को आवास अधिकार प्राप्त होने के ठीक बाद छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके बैगा विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (Particularly Vulnerable Tribal Group- PVTG) को आवास अधिकार प्रदान किये हैं।

  • बैगा PVTG छत्तीसगढ़ में ये अधिकार पाने वाला दूसरा समूह बन गया है।
  • छत्तीसगढ़ में सात PVTG (कमार, बैगा, पहाड़ी कोरबा, अबूझमाड़िया, बिरहोर, पंडो और भुजिया) हैं।

बैगा जनजाति:

  • बैगा (जादूगर) जनजाति मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में रहती है।
  • परंपरागत रूप से बैगा अर्द्ध-खानाबदोश जीवन जीते थे और झूम कृषि (जिसे ये बेवर या दहिया कहते हैं) करते थे, किंतु अब ये आजीविका के लिये मुख्य रूप से लघु वनोत्पाद (Minor Forest Produce-MFP) पर निर्भर हैं।
    • इनका प्राथमिक वन उत्पाद बाँस है।
  • गोदना (टैटू) बैगा संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, प्रत्येक आयु और शरीर के अंग पर इस अवसर हेतु एक विशिष्ट टैटू आरक्षित है।

पर्यावास अधिकार: 

  • परिचय:
    • पर्यावास अधिकार संबंधित समुदाय को उनके निवास के पारंपरिक क्षेत्र, सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं, आर्थिक और आजीविका के साधनों, जैवविविधता और पारिस्थितिकी के बौद्धिक ज्ञान, प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ उनकी प्राकृतिक और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा और संरक्षण पर अधिकार को मान्यता प्रदान करता है।
    • पर्यावास अधिकार पीढ़ियों से चले आ रहे पारंपरिक, आजीविका देने वाले और पारिस्थितिक ज्ञान की रक्षा एवं प्रचार करते हैं। वे PVTG समुदायों को उनके आवास स्थान विकसित करने हेतु सशक्त बनाने के लिये विभिन्न सरकारी योजनाओं और विभिन्न विभागों की पहलों को एकजुट करने में भी सहायता करते हैं।
      • वन अधिकारों की मान्यता (Recognition of Forest Rights- FRA) के अनुसार, "आवास" में प्रथागत आवास और विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTG)  तथा अन्य वन-निवासी अनुसूचित जनजातियों के आरक्षित व संरक्षित वन क्षेत्र शामिल हैं।
    • भारत में 75 PVTG में से केवल तीन जनजातियों के पास आवास अधिकार हैं- पहले मध्य प्रदेश में, उसके बाद कमार जनजाति और अब छत्तीसगढ़ में बैगा जनजाति।
  • पर्यावास घोषित करने की प्रक्रिया:
    • यह प्रक्रिया जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 में इस उद्देश्य के लिये दिये गए एक विस्तृत दिशानिर्देश पर आधारित है।
    • इस प्रक्रिया में संस्कृति, परंपराओं और व्यवसाय की सीमा निर्धारित करने के लिये पारंपरिक आदिवासी नेताओं के साथ परामर्श करना शामिल है।
    • आवासों को परिभाषित करने और उनकी घोषणा करने के लिये वन, राजस्व, जनजातीय एवं  पंचायती राज सहित राज्य-स्तरीय विभागों एवं UNDP टीम के बीच समन्वय आवश्यक है।
  • वैधानिकता:

PVTG की पहचान:

  • PVTG की पहचान तकनीकी पिछड़ेपन, स्थिर अथवा घटती जनसंख्या वृद्धि, अल्प साक्षरता स्तर, निर्वाह अर्थव्यवस्था और चुनौतीपूर्ण जीवन स्थितियों जैसे मानदंडों के आधार पर की जाती है।
  • आजीविका, शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य जैसे मामलों में वे असुरक्षित हैं।
  • जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा 18 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 75 PVTG की पहचान की गई है।
  • वर्ष 1973 में ढेबर आयोग ने आदिम जनजाति समूह (PTG) को एक विशेष श्रेणी के रूप में वर्गीकृत किया, जो अन्य जनजातीय समूहों के बीच अल्प विकसित हैं। वर्ष 2006 में भारत सरकार द्वारा PTG का नाम बदलकर PVTG कर दिया गया।

पर्यावास अधिकार का महत्त्व: 

  • संस्कृति और विरासत का संरक्षण:
    • जनजातीय अधिकार प्रदान करने से जनजातीय समुदायों की अद्वितीय सांस्कृतिक, सामाजिक और पारंपरिक विरासत को संरक्षित करने में सहायता मिलती है। यह उन्हें अपनी विशिष्ट भाषाओं, रीति-रिवाज़ों, प्रथाओं एवं पारंपरिक ज्ञान को बनाए रखने में सहायक के रूप में कार्य करता है।
  • सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय:
    • जनजातीय अधिकार इन समुदायों को वैधानिक मान्यता प्रदान करके, उनके जीवन को प्रभावित करने वाले निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करके तथा उन पर हुए अन्यायों का निवारण कर सशक्त बनाते हैं। यह सशक्तिकरण एक ऐसे समाज के निर्माण में मदद करता है जो अधिक न्यायसंगत और न्यायपूर्ण हो।
  • आजीविका की सुरक्षा:
    • कई जनजातीय समुदाय अपनी आजीविका के लिये अपने प्राकृतिक परिवेश पर निर्भर हैं। भूमि और संसाधनों पर अधिकार देने से यह सुनिश्चित होता है कि वे शिकार, संग्रहण, मत्स्यन एवं कृषि जैसे अपने पारंपरिक व्यवसायों को बनाए रख सकते हैं और अपनी आर्थिक भलाई का समर्थन कर सकते हैं।
  • सतत् विकास:
    • जनजातीय समुदायों को अधिकार देकर सरकारें सतत् विकास को बढ़ावा दे सकती हैं। स्वदेशी प्रथाएँ प्रायः स्थिरता और संरक्षण को प्राथमिकता देती हैं, जो पर्यावरण एवं समाज के समग्र कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • जैवविविधता का संरक्षण:
    • जनजातीय समुदायों के पास प्रायः अपने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र, वनस्पतियों, जीवों और स्थायी संसाधन प्रबंधन के बारे में विशिष्ट ज्ञान होता है। उनके अधिकारों को पहचानने से जैवविविधता के संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों के संधारणीय प्रबंधन में सहायता मिलती है।

निष्कर्ष:

  • जनजातीय अधिकार प्रदान करना एक अधिक समावेशी, न्यायपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण समाज को बढ़ावा देने के लिये मौलिक है जहाँ जनजातीय समुदायों सहित सभी नागरिकों के अधिकारों, संस्कृतियों व परंपराओं का सम्मान एवं सुरक्षा की जाती है।


प्रवासियों के लिये दूरस्थ मतदान की सुविधा

प्रिलिम्स के लिये:

प्रवासियों हेतु दूरस्थ मतदान, भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI), रिमोट ई.वी.एम. (R-EVM), इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM)

मेन्स के लिये:

प्रवासियों हेतु दूरस्थ मतदान, महत्त्व और चुनौतियाँ, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप एवं उनके डिज़ाइन तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

वर्ष 2022 के अंत में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India-ECI) ने घरेलू प्रवासी मतदान से संबंधित मुद्दों के समाधान हेतु रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (R-EVM) का प्रस्ताव रखा। इसका लक्ष्य वर्ष 2019 के आम चुनाव में 67.4% की मतदान दर में सुधार करना है।

  • लोकनीति- CSDS द्वारा सितंबर 2023 में एक सर्वेक्षण आयोजित किया गया था, जिसमें दिल्ली की झुग्गियों में रहने वाले 1,017 प्रवासियों को शामिल किया गया था, जिसमें 63% पुरुष एवं 37% महिलाएँ थीं, जिसका उद्देश्य यह समझना था कि क्या प्रस्तावित R-EVM प्रणाली राजनीतिक दलों द्वारा उठाई गईं कानूनी तथा तार्किक चिंताओं को दरकिनार करते हुए अपने इच्छित उपयोगकर्त्ताओं के बीच विश्वास का एक व्यवहार्य स्तर प्राप्त करेगी।

रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (R-EVM):

  • परिचय:
    • "R-EVM" शब्द का अर्थ "रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन" है। यह भारत निर्वाचन आयोग द्वारा प्रस्तावित प्रणाली है जिसका उद्देश्य उन प्रवासियों को मतदान की सुविधा प्रदान करना है जो अपने पंजीकृत निर्वाचन क्षेत्रों से दूर होने के कारण अपने वर्तमान गृह निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान करने में असमर्थ हैं।
      • R-EVM को घरेलू प्रवासी मतदान के मुद्दे को उजागर करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो उन पंजीकृत मतदाताओं को मतदान वोट डालने की सुविधा प्रदान करता है जो अपने गृह निर्वाचन क्षेत्रों से दूर चले गए हैं।
  • प्रमुख बिंदु:
    • पंजीकरण प्रक्रिया: दूरस्थ मतदान सुविधा का उपयोग करने में रुचि रखने वाले मतदाताओं को अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र के संबंधित रिटर्निंग अधिकारी (RO) के साथ पूर्व-अधिसूचित समय सीमा के भीतर पंजीकरण (ऑनलाइन या ऑफलाइन) करना होगा।
    • रिमोट पोलिंग स्टेशन: मतदाता के वर्तमान निवास के क्षेत्र में एक रिमोट पोलिंग स्टेशन स्थापित किया जाएगा, जो प्रवासी मतदाताओं को उस स्थान से रिमोट पोलिंग करने में सहायता प्रदान करेगा। 
    • एकाधिक निर्वाचन क्षेत्रों का प्रबंधन: RVM एक रिमोट पोलिंग बूथ से ही अधिकतम 72  निर्वाचन क्षेत्रों का मतदान करा सकती है जिससे विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों के मतदाताओं के लिये एक ही स्थान पर मतदान करना सरल हो जाता है।
    • मतदान प्रक्रिया: जब मतदाता रिमोट पोलिंग स्टेशन पर पीठासीन अधिकारी की उपस्थिति में अपने निर्वाचन क्षेत्र के वोटिंग कार्ड को स्कैन करता है तो संबंधित निर्वाचन क्षेत्र तथा उम्मीदवार की सूची आर.वी.एम. डिस्प्ले पर दिखाई देती है।
      • RVM में मौजूदा EVM के समान ही सुरक्षा प्रणाली और मतदान का अनुभव होता है तथा यह एक पेपर बैलेट शीट के बजाय उम्मीदवारों एवं उनके चुनाव चिह्नों को प्रस्तुत करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक बैलट डिस्प्ले का उपयोग करता है।
      • मतदाता RVM डिस्प्ले पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार का चयन कर सकते हैं। यह सिस्टम एक निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्येक उम्मीदवार के लिये मतों को एकत्र कर उनकी गिनती करेगा।
  • रिमोट वोटिंग का प्रयोग करने वाले देश:
    • एस्टोनिया, फ्राँस, पनामा, पाकिस्तान, आर्मेनिया आदि जैसे कुछ देश हैं, जो विदेश में अथवा अपने संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों से दूर रहने वाले नागरिकों के लिये रिमोट वोटिंग की सुविधा प्रदान करते हैं।

प्रवासी वोट का महत्त्व:

  • प्रवासन पैटर्न और उसके कारण:
    • दिल्ली में प्रवासी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे पड़ोसी राज्यों से आते हैं।
    • स्थानांतरण का सबसे बड़ा कारण (लगभग 58%), रोज़गार के बेहतर अवसर की तलाश करना, इसके बाद परिवार से संबंधित कारण (18%) तथा विवाह के कारण स्थानांतरण (13%) हैं।
  • प्रवासी जनसांख्यिकी और निवास अवधि:
    • दिल्ली में दीर्घकालिक प्रवासियों की उल्लेखनीय उपस्थिति है, जैसा कि अधिकांश प्रवासियों (61%) से संकेत मिलता है जो पाँच वर्ष से अधिक समय से शहर में रह रहे हैं।
    • हालाँकि बड़ी संख्या में अल्पकालिक प्रवासी, विशेष रूप से बिहार से, मौसमी रोज़गार के लिये दिल्ली आते हैं।
  • मतदाता पंजीकरण और चुनावी भागीदारी:
    • लगभग 53% प्रवासियों ने दिल्ली में मतदाता के रूप में पंजीकरण कराया है, जबकि 27% अपने गृह राज्यों में पंजीकृत हैं। प्रवासी, स्थानीय/पंचायत चुनावों की तुलना में राष्ट्रीय और राज्य-स्तरीय चुनावों में अधिक भाग लेते हैं।
  • मतदान के लिये गृह राज्यों में वापसी:
    • विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश के प्रवासी, मुख्यतः स्थानीय एवं राज्य विधानसभा चुनावों में वोट देने के लिये वापस जाकर अपने गृह राज्यों से संबंध बनाए रखते हैं।
    • मतदान हेतु वापसी के कारणों में वोट देने के अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग करना (40%) और चुनाव के मौसम को परिवार से मिलने के अवसर के रूप में उपयोग करना (25%) शामिल है।
  • रिमोट वोटिंग सिस्टम पर भरोसा:
    • 47% उत्तरदाता प्रस्तावित दूरस्थ मतदान प्रणाली पर भरोसा करते हैं, जबकि 31% ने अविश्वास व्यक्त किया है।
    • इस सिस्टम में उल्लेखनीय लिंग अंतर देखने को मिलता है, जिसमें पुरुष (50%), महिलाओं (40%) की तुलना में प्रणाली पर अधिक भरोसा दिखाते हैं। बेहतर शिक्षित व्यक्तियों को इस तरह के सिस्टम पर अधिक भरोसा होता है।

आगामी चिंताएँ और चुनौतियाँ:

  • EVM जैसी चुनौतियाँ:
    • प्रवासी मतदान के लिये बहु-निर्वाचन क्षेत्र RVM में EVM के समान मतदान अनुभव और सुरक्षा प्रणाली होंगे।
  • चुनावी कानूनों में संशोधन:
    • नई वोटिंग पद्धति को समायोजित करने के लिये रिमोट वोटिंग हेतु मौजूदा कानूनों जैसे कि पीपुल्स रिप्रेज़ेंटेशन एक्ट 1950 और 1951, द कंडक्ट ऑफ इलेक्शन रूल्स, 1961 तथा द रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल्स, 1960 में संशोधन की आवश्यकता है।
    • कानूनी संरचना को "प्रवासी मतदाता" को पुनः परिभाषित करने और यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि क्या वे अपने मूल निवास स्थान पर वोट करने संबंधी पंजीकरण बरकरार रखते हैं।
  • मतदाता पोर्टेबिलिटी और निवास: 
    • यह निर्धारित करना कि "साधारण निवास" और "अस्थायी अनुपस्थिति" की कानूनी संरचनाओं का सम्मान करते हुए मतदाता पोर्टेबिलिटी का प्रबंधन कैसे किया जाए, एक सामाजिक चुनौती है।
    • इसके अतिरिक्त, दूरस्थ मतदान की प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र की अवधारणा और दूरस्थता को परिभाषित करने की आवश्यकता है जो एक बाह्य निर्वाचन क्षेत्र, ज़िले या राज्य के बाहर है।
  • मतदान की गोपनीयता और प्रशासनिक चुनौतियाँ:
    • दूरदराज़ के क्षेत्रों में मतदान की गोपनीयता सुनिश्चित करते हुए मतदान प्रक्रिया की अखंडता और गोपनीयता बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • मतदाताओं की सटीक पहचान करने और प्रतिरूपण को रोकने के तरीकों को लागू करना एक निष्पक्ष एवं सुरक्षित दूरस्थ मतदान प्रणाली के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • मतदान कर्मियों को संगठित करना और यह सुनिश्चित करना कि दूरस्थ मतदान केंद्रों की प्रभावी ढंग से निगरानी की जाए, वर्तमान में तार्किक एवं प्रशासनिक चुनौतियाँ हैं।
  • तकनीकी चुनौतियाँ:
    • यह सुनिश्चित करना कि मतदाता दूरस्थ मतदान के लिये उपयोग की जाने वाली तकनीक और इंटरफेस से परिचित हैं, मतदाता भ्रम तथा त्रुटियों को रोकने के लिये आवश्यक है।
    • दूरस्थ मतदान के माध्यम से डाले गए वोटों की सटीक गिनती के लिये कुशल तंत्र स्थापित करना एक तकनीकी चुनौती है जिसमें सुधार किया जाना चाहिये।

आगे की राह:

  • मशीन-स्वतंत्र:
    • मतदान प्रक्रिया को सत्यापन योग्य और सटीक बनाने के लिये इसे मशीनी तौर पर स्वतंत्र, या सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर के तौर स्वतंत्र होना चाहिये, अर्थात, इसकी सत्यता की स्थापना केवल इस धारणा पर निर्भर नहीं होनी चाहिये कि EVM सही है।
  • संतुष्ट न होने पर रद्द करने का अधिकार:
    • मतदाता के पास संतुष्ट न होने पर वोट रद्द करने की शक्ति होनी चाहिये और वोट को रद्द करने की प्रक्रिया सरल होनी चाहिये तथा मतदाता को किसी के साथ बातचीत करने की आवश्यकता न हो।
  • आत्मविश्वास और स्वीकार्यता:
    • मतदाताओं, राजनीतिक दलों एवं चुनाव मशीनरी सहित चुनावी प्रक्रिया में सभी प्रतिभागियों के विश्वास और स्वीकार्यता पर विचार करना आवश्यक है।


अदृश्य E-अपशिष्ट

प्रिलिम्स के लिये:

अदृश्य E-अपशिष्ट, अपशिष्ट विद्युत एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE), संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (UNITAR), E-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम- 2016, विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) 

मेन्स के लिये:

अदृश्य E-अपशिष्ट, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन के संबंध में चिंताएँ

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय E-अपशिष्ट दिवस (14 अक्तूबर) के अवसर पर ब्रुसेल्स स्थित अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (WEEE) फोरम ने अदृश्य E-अपशिष्ट वस्तुओं की वार्षिक मात्रा की गणना करने के लिये संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान (UNITAR) को नियुक्त किया।

  • अदृश्य E-अपशिष्ट इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट को संदर्भित करता है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है, साथ ही इसके उपभोक्ता इसकी पुनर्चक्रण योग्य क्षमता को नज़रअंदाज कर देते हैं।
  • इस श्रेणी के अंतर्गत आने वाले कई इलेक्ट्रॉनिक वस्तुएँ, जैसे- केबल, ई-खिलौने, ई-सिगरेट, ई-बाइक, विद्युत उपकरण, स्मोक डिटेक्टर, USB स्टिक, पहनने योग्य स्वास्थ्य उपकरण और स्मार्ट होम गैजेट आदि हैं।

WEEE फोरम:

  • यह 'अपशिष्ट विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण' (या संक्षेप में 'WEEE') के प्रबंधन से संबंधित परिचालन जानकारी के संबंध में विश्व का सबसे बड़ा बहुराष्ट्रीय क्षमता केंद्र है।
  • यह विश्व भर के 46 WEEE उत्पादक उत्तरदायित्व संगठनों का एक गैर-लाभकारी संघ है और इसकी स्थापना अप्रैल 2002 में हुई थी।
  • WEEE फोरम अपने सदस्यों को सर्वोत्तम अभ्यास के आदान-प्रदान और अपने प्रतिष्ठित ज्ञान आधार टूलकिट तक पहुँच के माध्यम से अपने संचालन में सुधार करने तथा स्वयं को परिपत्र अर्थव्यवस्था के प्रवर्तकों के रूप में स्थापित करने का अवसर देता है।

अध्ययन के मुख्य तथ्य:

  • अदृश्य ई-अपशिष्ट की मात्रा:   
    • उपभोक्ता वार्षिक वैश्विक कुल लगभग 9 अरब किलोग्राम इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के लगभग छठे हिस्से की पहचान नहीं कर पाते हैं।
    • लगभग 35% अदृश्य ई-अपशिष्ट (लगभग 3.2 बिलियन किलोग्राम) ई-टॉय श्रेणी से आता है, जिसमें रेस कार सेट, इलेक्ट्रिक ट्रेन, ड्रोन और बाइकिंग कंप्यूटर शामिल हैं।
    • एक अनुमान के अनुसार, प्रतिवर्ष 844 मिलियन वेपिंग उपकरण त्याग दिये जाते हैं, जो अदृश्य ई-अपशिष्ट की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • अदृश्य ई-अपशिष्ट का मूल्य:
    • अदृश्य ई-अपशिष्ट का भौतिक मूल्य प्रत्येक वर्ष लगभग 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर होता है, जो मुख्य रूप से लोहे, तांबे और सोने जैसे घटकों के कारण इसके आर्थिक महत्त्व को दर्शाता है।
  • वैश्विक ई-अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण चुनौतियाँ:
    • विश्व स्तर पर ई-अपशिष्ट का केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही उचित रूप से एकत्र, उपचारित और पुनर्चक्रित किया जाता है।
      • यूरोप में उत्पन्न ई-अपशिष्ट का 55 प्रतिशत अब आधिकारिक तौर पर एकत्र और रिपोर्ट किया जाता है। फिर भी विश्व के अन्य हिस्सों में रिपोर्ट की गई औसत संग्रह दर 17 प्रतिशत से कुछ अधिक है।
    • अधिकांश कूड़ा-कचरा कूड़े के ढेर में डाल दिया जाता है, जला दिया जाता है, अवैध रूप से व्यापार किया जाता है, अनुचित तरीके से व्यवहार किया जाता है, या घरों में जमा कर दिया जाता है।
    • जन जागरूकता की कमी के कारण विश्व के विभिन्न हिस्सों में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था विकसित करने के प्रयासों में बाधा आती है, जिससे ई-अपशिष्ट प्रबंधन के लिये वैश्विक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
  • पर्यावरणीय चिंता:
    • अदृश्य ई-अपशिष्ट का अनुचित निपटान एक बड़ा पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न करता है, क्योंकि इन वस्तुओं में खतरनाक घटक, जैसे- सीसा, पारा और कैडमियम पाए जाते है, यदि ये उचित रूप से प्रबंधित नहीं किये गए तो मृदा एवं जल को दूषित कर सकते हैं।
  • सिफारिशें:
    • अदृश्य ई-अपशिष्ट एक अप्रयुक्त संसाधन का प्रतिनिधित्व करता है, अतः आर्थिक सुधार की क्षमता और इन मूल्यवान संसाधनों के पुनर्चक्रण के बारे में जागरूकता बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है।
      • उत्पन्न वैश्विक ई-अपशिष्ट में कच्चे माल का मूल्य वर्ष 2019 में अनुमानित 57 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। कुल मूल्य का प्रतिवर्ष छठा हिस्सा या 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य की सामग्री अदृश्य ई-अपशिष्ट की श्रेणी में आती है।
    • पुनर्चक्रण क्षमता को बढ़ाने और नवीकरणीय ऊर्जा, विद्युत गतिशीलता, उद्योग, संचार, एयरोस्पेस एवं रक्षा जैसे विभिन्न रणनीतिक क्षेत्रों में सामग्रियों की बढ़ती मांग को पूरा करने हेतु जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।

भारत में ई-अपशिष्ट के संबंध में प्रावधान:

  • ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 को वर्ष 2017 में अधिनियमित किया गया था, जिसमें नियम के दायरे में 21 से अधिक उत्पाद (अनुसूची- I) शामिल थे। इसमें कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (CFL) तथा अन्य पारा युक्त लैंप, साथ ही ऐसे अन्य उपकरण शामिल थे।
  • वर्ष 2011 में पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 द्वारा शासित 2010 के ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) विनियमों से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण नोटिस जारी किया गया था।
  • भारत सरकार ने ई-अपशिष्ट प्रबंधन प्रक्रिया को डिजिटल बनाने और दृश्यता बढ़ाने के प्रमुख उद्देश्य के साथ ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2022 अधिसूचित किया।
    • यह विद्युत तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों (जैसे- सीसा, पारा और कैडमियम) के उपयोग को भी प्रतिबंधित करता है, जो मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं।
  • जमा वापसी योजना (Deposit Refund Scheme) को एक अतिरिक्त आर्थिक साधन के रूप में पेश किया गया है जिसमें निर्माता बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री के समय जमा के रूप में एक अतिरिक्त राशि लेता है और इसे उपभोक्ता को ब्याज के साथ तब वापस करता है जब अंत में बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण वापस कर दिये जाते हैं।

निष्कर्ष: 

  • सतत् अपशिष्ट प्रबंधन तथा पर्यावरण संरक्षण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिये "अदृश्य ई-अपशिष्ट" के मुद्दे का समाधान करना अत्यावश्यक है।
  • अक्सर नज़रअंदाज की जाने वाली इन इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की पुनर्चक्रण क्षमता के बारे में जागरूकता बढ़ाना उनके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने, चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और ज़िम्मेदार पुनर्चक्रण पहल के माध्यम से उनके आर्थिक मूल्य को उजागर करने के लिये आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे और फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्रा का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे ज़हरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018)


आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण वार्षिक रिपोर्ट, 2022-2023

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, रोज़गार से संबंधित शर्तें।

मेन्स के लिये:

रोज़गार से संबंधित सरकार की पहल, वृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे।

स्रोत: पी.आई.बी 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने जुलाई 2022 से जून 2023 के दौरान किये गए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण के आधार पर आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) की वार्षिक रिपोर्ट 2022-2023 जारी की।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

सामान्य स्थिति में प्रमुख श्रम बाज़ार संकेतकों का अनुमान:

प्रमुख श्रम बाज़ार संकेतकों का अनुमान वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS):

प्रमुख बिंदु:

  • श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR):
    • LFPR को जनसंख्या में श्रम बल (यानी काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या काम के लिये उपलब्ध होने वाले) व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • श्रमिक जनसंख्या अनुपात (Worker Population Ratio- WPR):
    • WPR को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • बेरोज़गारी दर (Unemployment Rate- UR):
    • UR को श्रम बल में शामिल व्यक्तियों के बीच बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • गतिविधि स्थिति:
    • किसी व्यक्ति की गतिविधि की स्थिति निर्दिष्ट संदर्भ अवधि के दौरान व्यक्ति द्वारा की गई गतिविधियों के आधार पर निर्धारित की जाती है। जब गतिविधि की स्थिति सर्वेक्षण की तारीख से पिछले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित की जाती है, तो इसे व्यक्ति की सामान्य गतिविधि स्थिति के रूप में जाना जाता है।
    • गतिविधि स्थिति के प्रकार:
      • प्रमुख गतिविधि स्थिति (PS):
        • गतिविधि की वह स्थिति जिस पर एक व्यक्ति ने सर्वेक्षण की तारीख से पूर्व 365 दिनों के दौरान अपेक्षाकृत लंबा समय व्यतीत किया था, उसे व्यक्ति की सामान्य प्रमुख गतिविधि स्थिति माना जाता था।
      • सहायक आर्थिक गतिविधि स्थिति (SS):
        • किसी व्यक्ति की गतिविधि की वह स्थिति जिसमें वह सर्वेक्षण की तारीख से पहले 365 दिनों की संदर्भ अवधि के दौरान 30 दिनों या उससे अधिक के लिये कुछ आर्थिक गतिविधियाँ करता है, को व्यक्ति की सहायक आर्थिक गतिविधि स्थिति माना जाता था।
      • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS): 
        • सर्वेक्षण की तारीख से पहले पिछले 7 दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित गतिविधि स्थिति को व्यक्ति की वर्तमान साप्ताहिक स्थिति (CWS) के रूप में जाना जाता है।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण: 

  • परिचय:
    • यह भारत में रोज़गार तथा बेरोज़गारी की स्थिति को मापने के लिये सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के तहत NSO द्वारा आयोजित एक सर्वेक्षण है।
    • इसे NSO द्वारा अप्रैल 2017 में लॉन्च किया गया था।
  • PLFS का उद्देश्य:
    • वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना। 
    • प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति और CWS, दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना। 

रोज़गार हेतु सरकार की पहलें 

बेरोज़गारी के विभिन्न प्रकार:

  बेरोज़गारी का प्रकार

विवरण

प्रच्छन्न बेरोज़गारी

जिसमें आवश्यकता से अधिक कार्यरत लोग, जो मुख्य रूप से कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

मौसमी बेरोज़गारी

यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।

संरचनात्मक बेरोज़गारी

यह उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच बेमेल से उत्पन्न होती है।

चक्रीय बेरोज़गारी

यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।

तकनीकी बेरोज़गारी

यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है।

संघर्षात्मक बेरोज़गारी

संघर्षात्मक बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है।

सुभेद्य रोज़गार

इसका तात्पर्य है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से कार्य कर रहे हैं तथा इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा उपलब्ध नहीं है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोजगारी का सामान्यतः अर्थ होता है (2013)

(a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रमिक की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर: (c)

मेन्स

प्रश्न. भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धति का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)