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शासन व्यवस्था

प्रवासियों के लिए दूरस्थ मतदान

  • 19 Jan 2023
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 17/01/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Election Commission’s initiative to enfranchise migrant voters is a step in the right direction” लेख पर आधारित है। इसमें चुनावी प्रक्रिया में प्रवासियों की भागीदारी के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत के पिछले आम चुनाव (वर्ष 2019) में इसके अर्हत नागरिकों के 91% से अधिक पंजीकृत थे, जिनमें से 67% ने मतदान में भाग लिया। इसने देश के इतिहास में सबसे अधिक मतदाता भागीदारी को दर्ज किया। वर्ष 1951 के भारत के पहले आम चुनाव में केवल 17% नागरिक पंजीकृत थे और उनमें से केवल 4% ने मतदान में भागीदारी की थी।

यद्यपि यह चिंता का विषय है कि अर्हत मतदाताओं में से एक तिहाई (यानी लगभग 30 करोड़ लोग) मतदान में भागीदारी नहीं करते। इसमें शहरी उदासीनता और भौगोलिक बाधाओं  जैसे कई कारकों का योगदान है और इनमें से ही एक प्रमुख कारक है विभिन्न कारणों से आंतरिक प्रवासियों द्वारा मतदान कर सकने की असमर्थता।

  • निर्वाचन आयोग (EC) ने पूर्व में इस समस्या को संबोधित करने के लिये ‘घरेलू प्रवासियों पर अधिकारियों की समिति’ (Committee of Officers on Domestic Migrants) का गठन किया था। वर्ष 2016 में प्रस्तुत इस समिति की रिपोर्ट ने समाधान के रूप में ‘दूरस्थ मतदान’ या ‘रिमोट वोटिंग’ (remote voting) की अनुशंसा की थी। इस गंभीर समस्या को आगे और संबोधित करने के लिये निर्वाचन आयोग ने सभी मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय एवं राज्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को इस मुद्दे को हल करने के लिये कानूनी, प्रशासनिक एवं वैधानिक परिवर्तनों पर चर्चा करने के लिये आमंत्रित किया था।

रिमोट वोटिंग क्या है?

  • ‘रिमोट वोटिंग’ उन सभी साधनों को संदर्भित करता है जो मतदाताओं को मतदान के लिये पंजीकृत मतदान केंद्र के अलावा अन्य स्थानों से मतदान करने की अनुमति देते हैं। ऐसे दूरस्थ मतदान स्थान विदेश में या देश में कहीं भी स्थापित हो सकते हैं।
  • इसमें इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग तंत्र और गैर-इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग तंत्र, दोनों ही शामिल हैं।

रिमोट वोटिंग की आवश्यकता क्यों है?

  • प्रवासियों को मतदान सक्षम करना:
    • मतदाता अपने पंजीकरण के स्थान से दूसरे शहरों और स्थानों पर शिक्षा, रोज़गार एवं अन्य उद्देश्यों के लिये पलायन करते हैं। उनके लिये अपने मतदान के प्रयोग हेतु अपने पंजीकृत मतदान केंद्रों तक लौटना दुरूह होता है।
    • पाया गया है कि उत्तराखंड में दुमक और कलगोठ जैसे गाँवों में लगभग 20-25% पंजीकृत मतदाता अपने निर्वाचन क्षेत्रों में अपना मत डालने में असमर्थ होते हैं क्योंकि उन्हें अपने गाँव/राज्य से बाहर जाना पड़ता है।
  • मतदान प्रतिशत में कमी:
    • वर्ष 2019 के आम चुनावों के दौरान कुल 910 मिलियन मतदाताओं में से लगभग 300 मिलियन मतदाताओं ने मत नहीं डाला।
  • असंगठित श्रमिकों के पंजीकरण में वृद्धि :
    • सरकार के ई-श्रम (e-SHRAM) पोर्टल पर लगभग 10 मिलियन प्रवासी श्रमिक पंजीकृत हैं। यदि दूरस्थ मतदान परियोजना लागू की जाती है तो इसके दूरगामी प्रभाव होंगे।
  • मत तक पहुँच का अभाव:
    • मत तक पहुँच के इस मौलिक अधिकार से प्रवासी श्रमिकों को दो तरह से वंचित किया जाता है:
      • सर्वप्रथम, एक मतदाता को केवल उस निर्वाचन क्षेत्र में मतदान करने के लिये नामांकित किया जा सकता है जहाँ के वे ‘स्थायी निवासी’ हैं।
      • दूसरा, वे अपने पंजीकृत निर्वाचन क्षेत्र में केवल व्यक्तिगत रूप से मतदान के माध्यम से ही अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं।

रिमोट वोटिंग से संबद्ध समस्याएँ

  • सुरक्षा और अखंडता:
    • रिमोट वोटिंग प्रणालियाँ हैकिंग, धोखाधड़ी और हेरफेर के अन्य रूपों के प्रति संवेदनशील हैं।
    • इससे अविश्वसनीय और गलत चुनाव परिणाम प्राप्त हो सकते हैं, संपूर्ण चुनाव की अखंडता ही कमज़ोर पड़ सकती है।
      • मतदाता गोपनीयता और अंतिम परिणामों की अखंडता की रक्षा के लिये चुनावों में हमेशा उच्च स्तर की सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
  • रिमोट वोटिंग की पहुँच:
    • ऑनलाइन मतदान में भाग लेने के लिये सभी नागरिकों के पास इंटरनेट या आवश्यक तकनीक तक पहुँच की कमी हो सकती है।
    • इसी तरह, मेल-इन मतपत्र (Mail-in Ballots) कुछ दूरस्थ क्षेत्रों तक नहीं पहुँच सकने या समय पर वितरित नहीं हो सकने की समस्या से ग्रस्त हो सकते हैं।
    • इसके अलावा, विदेश में रह रहे सभी नागरिक मतदान करने के लिये दूतावासों या वाणिज्य दूतावासों की यात्रा करने में सक्षम नहीं होंगे।
    • इससे नागरिकों के कुछ समूह मताधिकार से वंचित हो सकते हैं और यह चुनाव परिणामों को विकृत कर सकता है।
  • सत्यता और सत्यापन:
    • इसके अलावा, एक मतदाता सत्यापन प्रणाली (voter verification system ) जो बायोमेट्रिक सॉफ्टवेयर (जैसे कि चेहरे की पहचान) का उपयोग करती है, मतदाता पहचान में गलत सकारात्मक या नकारात्मक परिणाम दे सकती है; इस प्रकार धोखाधड़ी या नागरिकों की मताधिकारी से वंचित करने की सुविधा दे सकती है।
  • इंटरनेट कनेक्शन और मैलवेयर सुरक्षा:
    • विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्शन वाले मतदाताओं पर निर्भरता रखनी होगी। कुछ देशों में इंटरनेट की पहुँच एवं उपलब्धता और ई-सरकारी सेवाओं का उपयोग सीमित है।
    • मतदाताओं के उपकरणों में सॉफ्टवेयर त्रुटियाँ या मैलवेयर भी मत देने की सक्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।
  • चुनाव और प्रचार पर असर:
    • दूरस्थ मतदान सैद्धांतिक रूप से बड़े दलों और अमीर उम्मीदवारों को एक अतिरिक्त बढ़त प्रदान कर सकता है जो पूरे निर्वाचन क्षेत्र में और उसके बाहर अपना प्रचार कर सकते हैं।

भारत में प्रवासी जनसंख्या की स्थिति

  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में आंतरिक प्रवासियों की संख्या 450 मिलियन है, जो वर्ष 2001 की जनगणना से 45% की वृद्धि को दर्शाती है।
  • इनमें से 26% प्रवास (117 मिलियन) एक ही राज्य के भीतर अंतर-ज़िला प्रकृति का होता है, जबकि 12% प्रवास (54 मिलियन) अंतर्राज्यीय होता है।
  • आधिकारिक और स्वतंत्र विशेषज्ञ, दोनों ही स्वीकार करते हैं कि इस संख्या को कम करके आँका गया है।
  • केवल अल्पकालिक और चक्रीय प्रवास ही 60-65 मिलियन प्रवासियों तक विस्तृत हो सकता है, जो उनके परिवार के सदस्यों सहित 100 मिलियन की संख्या तक पहुँच सकता है। इनमें से आधे अंतर्राज्यीय प्रवासी हैं।

आगे की राह

  • चुनावी अखंडता बनाए रखना:
    • सत्यापन प्रक्रिया के एक भाग के रूप में एक ऑनलाइन मतदान प्रणाली को यह प्रदर्शित करना चाहिये कि उसने चुनावी अखंडता बनाए रखी है और मतदान या मिलान प्रक्रियाओं के दौरान कोई हेरफेर नहीं हुआ है।
  • हितधारकों की स्वीकार्यता:
    • यह महत्त्वपूर्ण है कि दूरस्थ मतदान की कोई भी प्रणाली चुनाव प्रणाली के सभी हितधारकों—मतदाताओं, राजनीतिक दलों और चुनाव मशीनरी के विश्वास और स्वीकार्यता को ध्यान में रखे।
    • दूरस्थ मतदान की सफलता का निर्धारण करने में हितधारकों की स्वीकार्यता एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
    • हितधारकों द्वारा दूरस्थ मतदान को स्वीकार किये जाने के लिये, इसे पारंपरिक व्यक्तिगत रूप से मतदान (in-person voting) के एक व्यवहार्य और सुरक्षित विकल्प के रूप में देखा जाना चाहिये।
    • उन्हें आश्वस्त होने की आवश्यकता है कि यह मतदान का एक वैध एवं मान्य तरीका है और इससे परिशुद्ध एवं निष्पक्ष परिणाम प्राप्त होंगे।
  • विश्वास और पारदर्शिता:
    • यहाँ तक कि सभी उचित कानूनी ढाँचे के साथ भी एक ऑनलाइन मतदान प्रणाली का उपयोग करना व्यर्थ होगा यदि सरकार या आम जनता को इसकी सुरक्षा, अखंडता और परिशुद्धता पर भरोसा नहीं हो।
      • इस परिदृश्य में, ऑनलाइन मतदान तकनीक की पारदर्शिता सुनिश्चित करने, अंतिम परिणामों के प्रति विश्वास पैदा करने में मदद करने के लिये विभिन्न पारदर्शिता उपायों को विकसित करने की आवश्यकता है।
  • सुरक्षित तकनीक:
    • मतदान प्रक्रिया की हैकिंग और हेरफेर को रोकने के लिये दूरस्थ मतदान के लिये उपयोग की जाने वाली तकनीक सुरक्षित और हेरफेर-रोधी होनी चाहिये। इसमें एन्क्रिप्शन, बहु-कारक प्रमाणीकरण और नियमित सुरक्षा ऑडिट जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
  • मतदाता सत्यापन:
    • दूरस्थ मतदान प्रक्रिया में यह सुनिश्चित करने के लिये एक सुदृढ़ मतदाता सत्यापन तंत्र शामिल होना चाहिये कि केवल पात्र मतदाता ही अपने मतपत्र डालने में सक्षम हों।
    • इसमें वोटर आईडी सत्यापन, बायोमेट्रिक ऑथेंटिकेशन या डिजिटल सिग्नेचर जैसे तरीके शामिल हो सकते हैं।
  • लेखापरीक्षा और पारदर्शिता:
    • मतगणना की परिशुद्धता एवं अखंडता को सत्यापित करने के लिये स्पष्ट नियमों एवं प्रक्रियाओं के साथ ही दूरस्थ मतदान प्रक्रिया को लेखापरीक्षा योग्य एवं पारदर्शी होनी चाहिये।
    • इसमें स्वतंत्र लेखा परीक्षकों की सहायता लेना और मतगणना के विस्तृत आँकड़ों एवं परिणामों का प्रकाशन करना शामिल हो सकता है।
  • मतदाता शिक्षा:
    • मतदाता शिक्षा और जागरूकता अभियान यह सुनिश्चित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि मतदाता निर्वाचन प्रक्रिया को समझें और आत्मविश्वास से तथा परिशुद्ध रूप से अपना मत दूरस्थ रूप से डाल सकें।
  • कानूनी ढाँचा:
    • दूरस्थ मतदान के लिये नियमों, प्रक्रियाओं और उत्तरदायित्वों को रेखांकित करने वाला एक स्पष्ट और सुदृढ़ कानूनी ढाँचा यह सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक है कि पूरी प्रक्रिया पारदर्शी और जवाबदेह है।

अभ्यास प्रश्न: भारत में प्रवासियों के लिये दूरस्थ मतदान को लागू करने की व्यवहार्यता एवं संलग्न चुनौतियों पर विचार कीजिये।

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