डेली न्यूज़ (14 Aug, 2023)



तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023

प्रिलिम्स के लिये:

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023, तटीय जलकृषि प्राधिकरण, सी-वीड फार्मिंग, प्रदूषक भुगतान सिद्धांत, एंटीबायोटिक्स

मेन्स के लिये:

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 से संबंधित प्रमुख प्रावधान

चर्चा में क्यों?

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 को भारतीय संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है। इस संशोधन का लक्ष्य अस्पष्टताओं को दूर करना, प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और उभरती जलीय कृषि प्रथाओं को एकीकृत करना है।

तटीय जलकृषि प्राधिकरण अधिनियम, 2005:

  • तटीय जलकृषि का आशय समुद्र तट अथवा मुहाने पर समुद्री अथवा खारे जलीय वातावरण में मछली, शंख और जलीय पादपों जैसे जलीय जीवों की खेती से है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य तट के करीब समुद्री भोजन की खेती में शामिल प्रक्रियाओं की देख-रेख और विनियमन के लिये तटीय जलकृषि प्राधिकरण नामक एक विशेष संगठन की स्थापना करना है।
  • अधिनियम के अनुसार, सरकार का कर्त्तव्य है कि वह धारणीय तटीय जलकृषि की प्रथा सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कार्रवाई करे।

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक, 2023 से संबंधित प्रमुख प्रावधान:

  • तटीय जलकृषि गतिविधियों के दायरे में वृद्धि:
    • तटीय जलकृषि का विस्तार: यह संशोधन विधेयक इस अधिनियम के दायरे में तटीय जलकृषि की सभी गतिविधियों को व्यापक रूप से कवर करने के लिये व्यापक आधार वाली "तटीय जलकृषि" का प्रावधान करता है और तटीय जलकृषि के अन्य कार्य क्षेत्रों के बीच मूल अधिनियम में मौजूद अस्पष्टता को दूर करता है।
    • उभरती जलकृषि प्रथाओं का समावेश: इस संशोधन के तहत झींगा पालन के साथ ही पर्यावरण के अनुकूल तटीय जलकृषि के नए रूपों जैसे- केज कल्चर, सी वीड कल्चर, बाई-वाल कल्चर, मरीन ऑर्नेमेंटल फिश कल्चर आदि को शामिल किया गया है।
      • इन गतिविधियों में भारी राजस्व उत्पन्न करने और तटीय मछुआरा समुदायों, विशेष रूप से मछुआरा महिलाओं के लिये बड़े पैमाने पर रोज़गार के अवसर पैदा करने की भी क्षमता है।
    • नो डेवलपमेंट ज़ोन (NDZ) के भीतर जलकृषि इकाइयों को सुविधा प्रदान करना: इस अधिनियम के माध्यम से हैचरी, ब्रूडस्टॉक मल्टीप्लिकेशन सेंटर (BMC),और न्यूक्लियस ब्रीडिंग सेंटर (NBC) जैसे प्रतिष्ठानों को अब हाई टाइड लाइन (HTL) से 200 मीटर के भीतर संचालित करने की अनुमति दे दी गई है।
      • संशोधन का उद्देश्य वर्ष 2005 के मूल CAA अधिनियम की धारा 13(8) की व्याख्या द्वारा उत्पन्न पूर्व की अस्पष्टताओं को हल करना है, जिसमें तटीय जलीय कृषि को CRZ प्रतिबंधों से बाहर रखा गया था।
  • विनियामक प्रक्रियाओं को सरल बनाना एवं व्यावसायिक सुगमता को बढ़ावा देना:
    • पंजीकरण में संशोधन: मूल अधिनियम में पंजीकरण के बिना तटीय जलकृषि करने पर 3 वर्ष तक की कैद का प्रावधान है। यह पूरी तरह से नागरिक प्रकृति के अपराध के लिये बहुत कठोर सज़ा प्रतीत होती है और इसलिये इस संशोधन विधेयक में प्रावधान किया गया है कि नागरिक अपराधों के गैर-अपराधीकरण के सिद्धांत के अनुसार इस अपराध हेतु ज़ुर्माने जैसी उपयुक्त नागरिक अनुकूल प्रणाली अपनाई जाएगी।
    • संचालनात्मक लचीलापन: संशोधन स्वामित्व या गतिविधि के आकार में परिवर्तन के मामले में पंजीकरण प्रमाणपत्रों को संशोधित करने के प्रावधान प्रस्तुत करते हैं।
      • वे प्रशासनिक लचीलेपन में वृद्धि करते हुए तटीय जलकृषि प्राधिकरण को नवीनीकरण आवेदनों में देरी के लिये चक्रवृद्धि लागत वसूलने का अधिकार भी देते हैं।
  • पर्यावरण संरक्षण एवं अनुपालन:
    • उत्सर्जन एवं अपशिष्टों के लिये मानक: संशोधन तटीय जलकृषि प्राधिकरण को जलीय कृषि इकाइयों से उत्सर्जन अथवा अपशिष्टों के लिये मानक स्थापित करने का अधिकार देता है, जिससे मालिकों को इन मानकों का पालन करने के लिये उत्तरदायी ठहराया जाता है।
    • प्रदूषक भुगतान सिद्धांत: यह संशोधन 'प्रदूषक भुगतान सिद्धांत' को बनाए रखता है, जिसके अंर्तगत जलीय कृषि इकाई मालिकों को प्राधिकरण द्वारा मूल्यांकन किये गए किसी भी पर्यावरण-संबंधी हानि या विध्वंस की लागत वहन करने के लिये बाध्य किया जाता है।
    • पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में निषेध: संशोधन पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों अथवा महत्त्वपूर्ण भू-आकृति विज्ञान विशेषताओं वाले क्षेत्रों में तटीय जलीय कृषि गतिविधियों पर रोक लगाते हैं, जिससे कमज़ोर पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा बढ़ जाती है।
  • बीमारियों की रोकथाम के प्रयास और धारणीय कृषि प्रथाओं का विकास:
    • एंटीबायोटिक-मुक्त जलीय कृषि: एंटीबायोटिक दवाओं एवं औषधीय रूप से सक्रिय पदार्थों के उपयोग पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाकर, संशोधन जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं,साथ ही पर्यावरण के प्रति जागरूकता में वृद्धि भी करते हैं।

भारत में तटीय जलकृषि की स्थिति:

  • भारत की तटरेखा लगभग 7,517 कि.मी. लंबी है और इसमें तटीय जलकृषि के विकास की व्यापक संभावनाएँ हैं। भारत में प्रमुख तटीय जलकृषि जीवों की प्रजातियाँ झींगा (Shrimp), मछली (Fish), केकड़ा (Crab), सीप (Oyster), मसल्स (Mussel), सी-वीड (Seaweed) और मोती (Pearl) हैं।
    • पिछले 9 वर्षों में भारत में झींगा उत्पादन में 267% की वृद्धि हुई है।
  • देश के समुद्री खाद्य निर्यात में दोगुना प्रभाव देखा गया, जो वर्ष 2013-14 के 30,213 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 63,969 करोड़ रुपए हो गया
    • विशेष रूप से इन निर्यातों में बड़ा हिस्सा झींगा का है।
  • आंध्र प्रदेश, गुजरात, ओडिशा और तमिलनाडु जैसे प्रमुख तटीय राज्यों ने तटीय जलकृषि झींगा उत्पादन और उसके बाद के निर्यात के विस्तार को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

निष्कर्ष:

तटीय जलकृषि प्राधिकरण (संशोधन) विधेयक [Coastal Aquaculture Authority (Amendment) Bill], 2023 के नियमों को स्पष्ट करके स्थायी प्रथाओं को बढ़ावा देने तथा पर्यावरण की सुरक्षा करके भारत के जलकृषि क्षेत्र को बढ़ाता है। यह SDG 14 (जल के नीचे जीवन/Life Below Water) के अनुरूप है और ज़िम्मेदार आर्थिक विकास तथा पारिस्थितिक कल्याण के लिये भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से किस एक में मैंग्रोव वन, सदापर्णी वन और पर्णपाती वनों का संयोजन है? (2015)

(a) उत्तरी तटीय आंध्र प्रदेश
(b) दक्षिण-पश्चिम बंगाल
(c) दक्षिणी सौराष्ट्र
(d) अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. ‘नीली क्रांति’ को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्यपालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये। (2018)

स्रोत: पी.आई.बी


स्वास्थ्य और तंदरुस्ती से जुड़े सेलिब्रिटीज़ के लिये अतिरिक्त दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

स्वास्थ्य और तंदरुस्ती से जुड़े सेलिब्रिटीज़ के लिये अतिरिक्त दिशा-निर्देश, भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम और भ्रामक विज्ञापनों के लिये समर्थन हेतु दिशा-निर्देश, 2022, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019, उपभोक्ता कल्याण कोष

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य और तंदरुस्ती से जुड़े सेलिब्रिटीज़ के लिये अतिरिक्त दिशा-निर्देश

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत उपभोक्ता मामले विभाग ने स्वास्थ्य और तंदरुस्ती क्षेत्र से जुड़े सेलिब्रिटीज़, इनफ्लूएंसर और वर्चुअल इनफ्लूएंसर के लिये अतिरिक्त दिशा-निर्देश जारी किये हैं, इसके तहत स्वास्थ्य विशेषज्ञ के रूप में प्रस्तुति/विज्ञापन करते समय उनके लिये अस्वीकरण प्रदान करना अनिवार्य कर दिया गया है।

  • ये दिशा-निर्देश पहले से ही स्थापित भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम और भ्रामक विज्ञापनों के लिये समर्थन हेतु दिशा-निर्देश, 2022 का विस्तारित रूप है।
  • अतिरिक्त दिशा-निर्देशों का उद्देश्य भ्रामक विज्ञापनों, निराधार दावों से निपटना और स्वास्थ्य तथा तंदरुस्ती संबंधी विज्ञापनों में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है।

दिशा-निर्देश के प्रमुख बिंदु:

  • स्वास्थ्य प्रमाणपत्रों का प्रकटीकरण:
    • मान्यता प्राप्त संस्थानों से प्रमाणित चिकित्सकों और स्वास्थ्य तथा फिटनेस विशेषज्ञों को जानकारी साझा करते समय उत्पादों या सेवाओं को बढ़ावा देने अथवा स्वास्थ्य संबंधी कोई भी दावा करते समय यह बताना अनिवार्य होगा कि वे प्रमाणित स्वास्थ्य/फिटनेस विशेषज्ञ और चिकित्सा व्यवसायी हैं।
  • स्पष्ट अस्वीकरण/डिस्क्लेमर प्रदान करना अनिवार्य:
    • स्वास्थ्य विशेषज्ञ अथवा चिकित्सा व्यवसायी के रूप में सेलिब्रिटीज़, इनफ्लूएंसर और वर्चुअल इनफ्लूएंसर को जानकारी साझा करते समय, उत्पादों या सेवाओं को बढ़ावा देते समय या कोई स्वास्थ्य संबंधी दावे करते समय स्पष्ट अस्वीकरण देना होगा।
    • उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उत्पादों या सेवाओं का विज्ञापन देखने वाले यह जन सकें कि उनकी पुष्टि को पेशेवर चिकित्सा सलाह, निदान अथवा उपचार के विकल्प के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
    • समर्थनकर्ताओं द्वारा अपने दर्शकों को आहार, व्यायाम या दवा की दिनचर्या में कोई भी महत्त्वपूर्ण बदलाव करने से पहले स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों से सलाह लेने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • पर्याप्त उचित परिश्रम:
    • किसी भी उत्पाद या सेवा का समर्थन करने से पहले समर्थनकर्ताओं को पर्याप्त परिश्रम करना होगा। वे अधिमानतः समर्थन से पहले उत्पाद या सेवा का यथासंभव उपयोग या उपभोग कर सकते हैं।
    • इनफ्लूएंसर और वर्चुअल इनफ्लूएंसर को झूठे, भ्रामक या अतिरंजित दावे करने से बचना चाहिये जो संभावित रूप से उपभोक्ताओं को गुमराह कर सकते हैं।
  • प्रकटीकरण की सीमा:
    • प्रकटीकरण या अस्वीकरण की आवश्यकता उन अनुमोदनों, प्रचार और उदाहरणों पर लागू होती है जहाँ स्वास्थ्य संबंधी दावे किये जाते हैं।
    • खाद्य पदार्थों, न्यूट्रास्यूटिकल्स, रोग की रोकथाम, उपचार, इलाज, चिकित्सीय स्थितियाँ, पुनर्प्राप्ति विधियाँ और प्रतिरक्षा वृद्धि जैसे विषय इन नियमों के दायरे में आते हैं।
  • सामान्य स्वास्थ्य सलाह के लिये छूट:
    • स्वास्थ्य और तंदुरुस्ती से संबंधित सामान्य सलाह, जो विशिष्ट उत्पादों, सेवाओं, स्वास्थ्य स्थितियों या परिणामों से संबंधित नहीं है, इन नियमों से मुक्त है।
      • उदाहरण के लिये "पानी पिएँ और हाइड्रेटेड रहें," "नियमित रूप से व्यायाम करें" तथा "पर्याप्त नींद लें" जैसी सलाह हेतु छूट है।
  • विशिष्ट व्यक्तिगत विचार और व्यावसायिक सलाह:
    • जो सेलेब्रिटीज़ स्वयं को स्वास्थ्य विशेषज्ञ के रूप में पेश करते हैं, उन्हें अपनी व्यक्तिगत राय और पेशेवर सलाह के बीच स्पष्ट रूप से अंतर सुनिश्चित करना चाहिये।
    • उन्हें विश्वसनीय साक्ष्य के बिना विशिष्ट स्वास्थ्य दावे करने के प्रति आगाह किया जाता है। सटीक चिकित्सा सलाह हेतु दर्शकों को स्वास्थ्य पेशेवरों से परामर्श करने के लिये प्रोत्साहित करने की अनुशंसा की जाती है।
  • प्रवर्तन और दंड:
    • इन दिशा-निर्देशों का सक्रिय अनुवीक्षण और कार्यान्वयन उपभोक्ता मामले विभाग द्वारा किया जाएगा।
    • उल्लंघन पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 और अन्य प्रासंगिक कानूनी प्रावधानों के तहत ज़ुर्माना लगाया जा सकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


चीन में अत्यधिक अपस्फीति की चिंता

प्रिलिम्स के लिये:

चीन में अत्यधिक अपस्फीति की चिंताएँ, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, अपस्फीति, मुद्रास्फीति, सकल घरेलू उत्पाद, ऋण, थोक मूल्य सूचकांक

मेन्स के लिये:

चीन में अत्यधिक अपस्फीति की चिंता, चीन में अपस्फीति का भारत पर प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो ने बताया कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) में जुलाई 2023 में एक वर्ष पहले की तुलना में 0.3% की गिरावट आई, जिससे देश में अपस्फीति (Deflation) की स्थिति उत्पन्न हुई।

अपस्फीति:

  • परिचय:
    • अपस्फीति मुद्रास्फीति के विपरीत स्थिति है। यह अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के समग्र मूल्य स्तर में निरंतर और सामान्य कमी को संदर्भित करती है।
    • अपस्फीति के माहौल में उपभोक्ता समय के साथ समान राशि के लिये अधिक वस्तुएँ एवं सेवाएँ खरीद सकते हैं।
    • हालाँकि अपस्फीति विभिन्न कारणों से हो सकती है, जैसे- उपभोक्ता मांग में कमी, माल की अधिक आपूर्ति, तकनीकी प्रगति जो उत्पादन लागत को कम करती है या केंद्रीय बैंकों द्वारा सख्त मौद्रिक नीतियाँ।
      • चीन के मामले में उपभोक्ता मांग में कमी और आर्थिक मंदी इसका कारण है।

  • प्रभाव:
    • सकारात्मक:
      • कम ब्याज दर: अपस्फीति की स्थिति में केंद्रीय बैंक उधार लेने तथा व्यय के लिये  प्रोत्साहित करने हेतु ब्याज दरें कम कर सकते हैं। कम ब्याज दरों से व्यवसायों और उपभोक्ताओं के लिये उधार लेने की लागत कम हो सकती है, संभावित रूप से निवेश, उपभोग तथा आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल सकता है।
      • बेहतर बचत प्रोत्साहन: अपस्फीति बचत को प्रोत्साहित कर सकती है क्योंकि समय के साथ पैसे का मूल्य बढ़ता है। बचतकर्ताओं के पैसे के मूल्य में वृद्धि की अधिक संभावना होती है, जो उन्हें भविष्य के लिये और अधिक बचत करने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है तथा दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता में योगदान कर सकता है।
      • आर्थिक दक्षता: अपस्फीति व्यवसायों को अधिक कुशल बनने और उनके संचालन को सुव्यवस्थित करने के लिये प्रेरित कर सकती है। गिरती कीमतें कंपनियों को लाभप्रदता को बनाए रखने के लिये लागत कम करने, नवाचार करने और अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनने के लिये प्रोत्साहित कर सकती हैं। दक्षता के चलते उत्पादकता में लाभ और दीर्घकालिक आर्थिक विकास हो सकता है।
      • निश्चित-आय लाभार्थियों के लिये अनुकूल: जो लोग निश्चित-आय हेतु निवेश पर भरोसा करते हैं, जैसे कि पेंशन योजना या निश्चित वार्षिकी वाले सेवानिवृत्त लोग, अपस्फीति से लाभान्वित हो सकते हैं। चूँकि पैसे का मूल्य बढ़ता है, जिससे उनकी निश्चित आय में  अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि होती है, जिससे उन्हें आय का एक स्थिर और विश्वसनीय स्रोत मिलता है।
    • नकारात्मक:
      • आर्थिक संकुचन का नीचे की ओर बढ़ना: जब उपभोक्ताओं को कीमतों में और गिरावट की आशंका होती है, तो वे खरीदारी में देरी करते हैं, जिससे वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम हो जाती है। मांग में कमी से उत्पादन में गिरावट की स्थिति देखी जा सकती है, व्यापार राजस्व कम हो सकता है और यहाँ तक कि कर्मियों की छंटनी भी हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता खर्च में कमी आ सकती है।
        • यह चक्र आर्थिक संकुचन, नौकरी छूटने और वित्तीय अस्थिरता का एक निचला चक्र (Downward Spiral) उत्पन्न कर सकता है।
      • व्यावसायिक राजस्व में कमी लाना: कम कीमतें व्यवसाय के राजस्व को कम कर देती हैं, जिससे मुनाफा और निवेश कम हो जाता है तथा संभावित रूप से अधिक बेरोज़गारी होती है क्योंकि मांग में कमी के कारण कंपनियाँ उत्पादन कम कर देती हैं।
      • महँगा सेवा ऋण: अपस्फीति से ऋण का वास्तविक बोझ बढ़ सकता है। जैसे-जैसे कीमतें गिरती हैं, ऋण का मूल्य स्थिर रहता है या वास्तविक रूप से बढ़ भी जाता है। इससे व्यक्तियों, व्यवसायों और सरकारों के लिये अपने ऋण दायित्वों का प्रबंधन करना अधिक कठिन हो सकता है।
        • अपस्फीति के समय ऋण चुकौती पर खर्च किये गए प्रत्येक डॉलर की सापेक्ष क्रय शक्ति कीमतों में गिरावट के पहले की तुलना में अधिक होती है।
    • हालाँकि आर्थिक परिस्थितियाँ जटिल हो सकती हैं और अपस्फीति के वास्तविक प्रभाव किसी अर्थव्यवस्था की विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर भिन्न हो सकते हैं

चीन में अपस्फीति के कारण:

  • ज़ीरो-कोविड पॉलिसी :
    • चीनी अर्थव्यवस्था एक साल से अधिक समय से संघर्ष कर रही है। सबसे प्रमुख कारण उसकी भारी-भरकम ज़ीरो-कोविड पॉलिसी थी, जिसमें कोरोनोवायरस के प्रसार को रोकने के प्रयास में पूरे शहरों को कभी-कभी हफ्तों के लिये बंद कर दिया गया था।
  • प्रॉपर्टी और बैंकिंग सेक्टर में मंदी:
    • संपत्ति क्षेत्र, जिसका हाल के वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 20% से 30% के बीच योगदान रहा है, को गंभीर मंदी का सामना करना पड़ा है, कई प्रमुख डेवलपर्स अपने ऋणों का भुगतान करने में असमर्थ हैं और कई परियोजनाएँ अधूरी रह गई हैं।
    • बैंकिंग क्षेत्र पर कई स्थानीय सरकारी एजेंसियों (जिनके राजस्व में भारी गिरावट आई) को दिये गए बुरे ऋणों के कारण भी काफी दबाव है।
  • बेरोज़गारी:
    • युवा श्रमिकों के बीच बढ़ती बेरोज़गारी भी एक अन्य समस्या है, 16 से 24 वर्ष की आयु के लोगों के लिये आधिकारिक बेरोज़गारी दर 21% है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि वास्तविक आँकड़ा इससे काफी अधिक है।

चीन की अवस्फीति का भारत और विश्व पर प्रभाव:

  • भारत:
    • सकारात्मक प्रभाव: यदि चीनी अर्थव्यवस्था की धीमी दर (जिसे वर्तमान में अपस्फीति माना जा रहा है) के कारण उसकी अर्थव्यवस्था में निवेश में कमी आती है, तो भारत विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिये संभावित विनिर्माण केंद्र के रूप में उभर सकता है।
    • यदि भारत के आर्थिक सुधारों में तेज़ी लाई जाए तो आने वाले समय में भारत एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र बन सकता है।
    • नकारात्मक प्रभाव: चीन, भारत से लौह अयस्क के सबसे बड़े आयातकों में से एक है। पूर्वी एशियाई देश लगभग 70% लौह-अयस्क भारत से आयात करते हैं
    • अतः चीन की अर्थव्यवस्था की गति धीमी होने का मतलब होगा कि चीन के आयात की मात्रा घटने से इसका प्रभाव कुछ हद तक भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है।
  • विश्व स्तर पर:
    • वैश्विक आपूर्ति शृंखला: 
      • कई वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ चीन के साथ जटिल रूप से जुड़ी हुई हैं। यदि अपस्फीति और कमज़ोर मांग के कारण चीन के निर्यात क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, तो आपूर्ति शृंखला में उत्पन्न होने वाला व्यवधान विश्व भर के उद्योगों को प्रभावित कर सकता है, जिसमें भारत (चीन से मध्यवर्ती वस्तुओं पर निर्भर) भी शामिल है।
    • वैश्विक विकास: 
      • चीन, विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा इसकी आर्थिक स्थिति का वैश्विक विकास पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
      • अपस्फीति के कारण चीन की आर्थिक गतिविधियों में भारी गिरावट से विश्व में वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम हो सकती है, जो वैश्विक आर्थिक विकास की मंदी में योगदान कर सकती है।
    • केंद्रीय बैंक एवं मौद्रिक नीति: 
      • चीन की अपस्फीति के जवाब में विभिन्न देशों के केंद्रीय बैंकों को मौद्रिक नीति के प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
      • वैश्विक मांग कम होने से मुद्रास्फीति का दबाव कम हो सकता है, साथ ही यह ब्याज दर नीतियों को प्रभावित कर सकती है।

आगे की राह

  • भारत सहित दुनिया भर के नीति निर्माताओं को इन विकासों पर अति-सूक्ष्म दृष्टि रखने तथा संभावित नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिये रणनीति बनाने की आवश्यकता होगी।
  • अपस्फीति के प्रभावों में बढ़ा हुआ ऋण बोझ, परिवर्तित उपभोक्ता व्यवहार, कम व्यावसायिक निवेश तथा मौद्रिक नीति के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकता है।
  • अपस्फीति को संबोधित करने के लिये मांग को बढ़ावा देने तथा आर्थिक विकास को फिर से गति प्रदान करने के लिये राजकोषीय प्रोत्साहन एवं मौद्रिक नीति उपायों के संयोजन की आवश्यकता होगी।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन अपस्फीति का उचित वर्णन करता है? (2010)

(a) यह किसी मुद्रा के मूल्य में अन्य मुद्राओं की तुलना में अचानक गिरावट है।
(b) यह अर्थव्यवस्था के वित्तीय और वास्तविक दोनों क्षेत्रों में लगातार मंदी है।
(c) यह वस्तुओं और सेवाओं के सामान्य मूल्य स्तर में लगातार गिरावट है।
(d) यह एक निश्चित अवधि में मुद्रास्फीति की दर में गिरावट है।

उत्तर: (c)

स्रोत: द हिंदू


भारत के जल संसाधनों के प्रबंधन और संरक्षण में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

नदियों को जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना, राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम, PMKSY, अमृत सरोवर मिशन, जल जीवन मिशन

मेन्स के लिये:

भारत के जल संसधनों के प्रबंधन और संरक्षण में सुधार

चर्चा मे क्यों?

हाल ही में जल शक्ति राज्य मंत्री ने लोकसभा में एक लिखित जवाब में भारत की जल संसाधन प्रबंधन रणनीतियों और संरक्षण प्रयासों के विषय में बहुमूल्य जानकारी प्रदान की।

  • सरकार द्वारा की गई पहलें जल की कमी से संबंधित चुनौतियों का हल करने और इस बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन का धारणीय उपयोग सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

भारत के जल संसाधनों के प्रबंधन से संबंधित पहलें:

  • नदियों को जोड़ने के लिये राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना:
    • इसे वर्ष 1980 में अधिशेष बेसिनों से जल की कमी वाले क्षेत्रों में पानी पहुँचाने के लिये तैयार किया गया।
    • राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (National Water Development Agency- NWDA) ने नदियों को जोड़ने की परियोजना के तहत 30 इंटरलिंकिंग परियोजनाओं (प्रायद्वीपीय घटक के तहत  16 और हिमालयी घटक के तहत 14) की पहचान की है।
      • हालाँकि नदियों को जोड़ने वाली परियोजनाएँ काफी हद तक भागीदार राज्यों के मध्य जल बँटवारे की आम सहमति पर निर्भर करती हैं।
  • राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन कार्यक्रम (National Aquifer Mapping and Management Program- NAQUIM):
    • यह केंद्रीय भूजल बोर्ड (Central Ground Water Board- CGWB) द्वारा भूजल प्रबंधन और विनियमन (GWM&R) योजना के तहत कार्यान्वित, एक केंद्रीय प्रायोजित योजना है।
    • यह कार्यक्रम जलभृतों (जल धारण करने वाली संरचनाओं/Water-Bearing Formations) का मानचित्रण करता है, उनका वर्णन करता है और जलभृत प्रबंधन योजनाएँ विकसित करता है।
    • इसका लक्ष्य पूरे देश में भूजल संसाधनों का सतत् प्रबंधन करना है।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) - हर खेत को पानी (HKKP) - भूजल (GW):
    • यह योजना कृषि तक जल पहुँच बढ़ाने और किसानों को कुशल सिंचाई को बढ़ावा देने के लिये लॉन्च की गई है।
    • इसमें खेत में जल उपयोग दक्षता को बढ़ाना, उसमें टिकाऊ संरक्षण प्रथाएँ लागू करना शामिल है।
    • कृषि एवं किसान कल्याण विभाग PMKSY के "प्रति बूँद अधिक फसल (Per Drop More Crop)" घटक को लागू कर रहा है।
      • PMKSY- "प्रति बूँद अधिक फसल" मुख्य रूप से सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली) के माध्यम से खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता पर केंद्रित है।
    • यह योजना वर्ष 2015-16 से परिचालित है तथा खेत स्तर पर जल संरक्षण को बढ़ावा देती है।
    • कमांड एरिया डेवलपमेंट एंड वॉटर मैनेजमेंट (Command Area Development & Water Management- CADWM) प्रोग्राम को PMKSY - HKKP के तहत लाया गया है।
      • CAD कार्यों को शुरू करने का मुख्य उद्देश्य निर्मित सिंचाई क्षमता के उपयोग को बढ़ाना तथा सहभागी सिंचाई प्रबंधन (Participatory Irrigation Management- PIM) के माध्यम से स्थायी आधार पर कृषि उत्पादन में सुधार करना है।
  • मिशन अमृत सरोवर
    • यह जल निकायों के संरक्षण के लिए आज़ादी का अमृत महोत्सव के भाग के रूप में लॉन्च किया गया।
    • प्रत्येक ज़िले में 75 जल निकायों का विकास और कायाकल्प करने का लक्ष्य है।
  • जल जीवन मिशन:
    • इसका लक्ष्य 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को पीने योग्य नल का पानी उपलब्ध कराना है।
    • पानी की कमी और सूखाग्रस्त क्षेत्रों में नल के पानी की आपूर्ति पर ध्यान देना।
    • इसमें थोक जल अंतरण और क्षेत्रीय जल आपूर्ति योजनाएँ शामिल हैं।
  • जल शक्ति अभियान:
    • यह कार्यक्रम जल संरक्षण और प्रबंधन के लिए संकटग्रस्त ज़िलों में आयोजित किया जा रहा है।
    • कैच द रेन अभियानसभी जिलों, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों को कवर करने के लिये लॉन्च किया गया।
    • इसका उद्देश्य वर्षा जल को एकत्रित करना है।
  • जल उपयोग दक्षता एवं निष्पादन मूल्यांकन अध्ययन:
    • केंद्रीय जल आयोग,सिंचाई परियोजनाओं हेतु अध्ययन को बढ़ावा देता है।
    • इसका मुख्य उद्देश्य जल उपयोग दक्षता और संरक्षण प्रथाओं में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना है।
  • अटल भूजल योजना:
    • यह सात राज्यों अर्थात् हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के 81 जिलों की 8,774 ग्राम पंचायतों में जल संकट वाले क्षेत्रों में कार्यरत केंद्रीय योजना है।
    • अटल भूजल योजना का उद्देश्य सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से देश के प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में भूजल प्रबंधन में सुधार करना है।
  • राष्ट्रीय एकीकृत जल संसाधन विकास आयोग (NCIWRD):
    • यह विभिन्न परिदृश्यों के लिए अनुमानित जल आवश्यकताओं पर रिपोर्ट तैयार करता है।
    • यह जल संसाधनों की योजना और प्रबंधन के लिए अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी (National Disaster Management Agency- NDMA):
    • यह आपदा चेतावनी और प्रबंधन के लिये जल-संबंधित डेटा और प्रौद्योगिकियों का उपयोग करती है।
    • यह चेतावनी के समय पर प्रसार के लिये NavIC जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग करती है।
  • "सही फसल" अभियान:
    • इसे जल-तनावग्रस्त क्षेत्रों में जल-कुशल फसल विकल्पों (Water-Efficient Crop Choices) को प्रोत्साहित करने के लिये लॉन्च किया गया।
    • यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य और टिकाऊ फसल कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. 'एकीकृत जलसंभर विकास कार्यक्रम' को कार्यान्वित करने के क्या लाभ हैं? (2014)

  1. मृदा के बह जाने की रोकथाम
  2. देश की बारहमासी नदियों को मौसमी नदियों से जोड़ना
  3. वर्षा-जल संग्रहण तथा भौम-जलस्तर का पुनर्भरण
  4. प्राकृतिक वनस्पतियों का पुनर्जनन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • एकीकृत जलसंभर विकास कार्यक्रम (Integrated Watershed Development Programme- IWDP) को ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
  • IWDP का मुख्य उद्देश्य मृदा, वनस्पति आवरण और जल जैसे नष्ट हुए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन, संरक्षण एवं विकास करके पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करना है। कथन 1, 3 और 4 मृदा, जल एवं वनस्पति फसल के संरक्षण और विकास के तरीकों का वर्णन करते हैं तथा IWDP में शामिल हैं।
  • जलसंभर विकास से तात्पर्य जलसंभर क्षेत्र के भीतर सभी संसाधनों [प्राकृतिक (जैसे भूमि, जल, पौधे, जानवर) और मानव] के संरक्षण, पुनर्जनन तथा विवेकपूर्ण उपयोग से है। अतः 1, 3 और 4 सही हैं।
  • हालाँकि देश की बारहमासी नदियों को मौसमी नदियों से जोड़ने का काम जलसंभर विकास कार्यक्रम के तहत नहीं किया जाता है। अतः 2 सही नहीं है।
  • इसलिये विकल्प (C) सही उत्तर है।

प्रश्न. पृथ्वी ग्रह पर अधिकांश ताज़ा पानी बर्फ की चोटियों और ग्लेशियरों के रूप में मौजूद है। शेष मीठे जल में से सबसे बड़ा अनुपात:

(a) वायुमंडल में नमी और बादलों के रूप में पाया जाता है
(b) मीठे पानी की झीलों और नदियों में पाया जाता है
(c) भूजल के रूप में मौजूद है
(d) मिट्टी की नमी के रूप में मौजूद है

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. भारत की राष्ट्रीय जल नीति का उल्लेख कीजिये। उदाहरण के तौर पर गंगा नदी को लेते हुए नदी जल प्रदूषण नियंत्रण और प्रबंधन के लिये अपनाई जा सकने वाली रणनीतियों पर चर्चा कीजिये। भारत में खतरनाक अपशिष्टों के प्रबंधन एवं प्रबंधन के कानूनी प्रावधान क्या हैं? (2013)

प्रश्न. “भारत में घटते भूजल संसाधनों का आदर्श समाधान जल संचयन प्रणाली है।” इसे शहरी क्षेत्रों में कैसे प्रभावी बनाया जा सकता है? (2018)

प्रश्न. जल तनाव (Water Stress) क्या है? भारत में क्षेत्रीय स्तर पर यह कैसे और क्यों भिन्न है? (2019)

स्रोत: पी.आई.बी.


औषधि-परीक्षण प्रक्रिया से जानवरों को हटाना

प्रिलिम्स के लिये:

ऑर्गेनॉइड्स, ऑर्गन्स-ऑन-चिप, 3D बायोप्रिंटिंग, नया औषधि और नैदानिक परीक्षण नियम,  2019, औषध और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940, ड्रग्स कंट्रोलर जनरल, इंडिया

मेन्स के लिये:

प्रमुख उभरती वैकल्पिक परीक्षण विधियाँ, भारत में नैदानिक ​​परीक्षणों का नियामक तंत्र

चर्चा में क्यों? 

भारत सरकार ने हाल ही में नए औषधि और नैदानिक ​​परीक्षण नियम, 2023 में एक संशोधन पेश किया है। यह संशोधन अनुसंधान, विशेष रूप से औषध/दवा परीक्षण में जानवरों के उपयोग से संबंधित नैतिक एवं वैज्ञानिक चिंताओं को संबोधित करता है।

  • यह कदम शोधकर्त्ताओं को नई औषधियों के परीक्षण के लिये नवीन गैर-पशु और मानव-प्रासंगिक तरीकों का उपयोग करने के लिये अधिकृत करता है जिससे अधिक सटीक, कुशल व नैतिक रूप से संरेखित औषध विकास प्रक्रियाओं के युग की शुरुआत होगी।

वर्तमान औषधि-विकास परिदृश्य:

  • हर औषध की अवधारणा (Conception) से लेकर बाज़ार में आने तक उसकी प्रभावकारिता और संभावित दुष्प्रभावों का आकलन करने के लिये कठोर परीक्षणों की एक शृंखला शामिल होती है। परंपरागत रूप से इस प्रक्रिया में जानवरों पर उम्मीदवार अणुओं का परीक्षण शामिल होता है, विशेष रूप से चूहों या चूहों जैसे कृंतकों के साथ-साथ गैर-कृंतकों जैसे- कैनाइन (Canines) और प्राइमेट्स (Primates) पर। हालाँकि इस दृष्टिकोण की महत्त्वपूर्ण सीमाएँ हैं:
    • प्रजातियों का उपयुक्त रूप से सुमेलित न होना: मनुष्यों में उम्र, आनुवंशिकी, आहार और पहले से मौजूद बीमारियों जैसे कारकों के कारण जटिल जैविक विविधताएँ होती हैं। 
      • यहाँ तक कि गैर-कृंतक पशु मॉडल भी दवाओं के प्रति जटिल मानवीय प्रतिक्रिया को पूरी तरह से प्रदर्शित नहीं कर सकते हैं।
    • उच्च विफलता दर: पशु और मानव प्रतिक्रियाओं के बीच अत्यधिक अंतर किसी दवा की विकास प्रक्रिया में उच्च विफलता दर में योगदान देता है।
      • फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में प्रगति के बावजूद, पशु परीक्षण में पास होने वाली अधिकांश दवाएँ मानव नैदानिक ​​परीक्षणों के दौरान विफल हो जाती हैं।
  • इन सीमाओं को देखते हुए विश्व स्तर पर शोधकर्त्ता वैकल्पिक परीक्षण विधियाँ खोज कर रहे हैं जो मानव जीव विज्ञान और प्रतिक्रियाओं को बेहतर ढंग से प्रदर्शित कर सकते हैं।

प्रमुख उभरती वैकल्पिक परीक्षण विधियाँ:

  • ऑर्गेनॉइड: ऑर्गेनॉइड 3D कोशिकीय संरचनाएँ हैं जो शरीर के विशिष्ट अंगों जैसा व्यवहार करती हैं।
    • मानव कोशिकाओं या स्टेम कोशिकाओं से विकसित ये लघु अंग मानव शरीर विज्ञान(Human Physiology) का अधिक सटीक प्रतिनिधित्व प्रदान करते हैं, जिससे शोधकर्त्ताओं को मानव संदर्भ में दवाओं की अंतःक्रियाओं का अध्ययन करने में मदद मिलती है।
  • ऑर्गन्स-ऑन-चिप: ये मानव कोशिकाओं से जुड़े छोटे उपकरण हैं, जो शरीर के भीतर रक्त प्रवाह और सेलुलर इंटरैक्शन की नकल करते हैं।
    • ये चिप्स प्रमुख शारीरिक गुणों को दोहराते हैं और शोधकर्त्ताओं को अधिक सटीक दवा परीक्षण के लिये एक मंच प्रदान करते हुए कोशिकीय संपर्क और रासायनिक संकेतों का विश्लेषण करने की अनुमति देते हैं। 
  • 3D बायोप्रिंटिंग: 3D बायोप्रिंटिंग तकनीक में रोगी-विशिष्ट कोशिकाओं का उपयोग करके जटिल मानव ऊतकों और अंगों के निर्माण को सक्षम बनाया जाता है।
    • यह प्रगति जीव विज्ञान में व्यक्तिगत विविधताओं को पूरा करते हुए वैयक्तिकृत दवा परीक्षण दृष्टिकोण के विकास की अनुमति देती है।

उभरते तरीकों को समायोजित करने के लिये वैश्विक नियामक बदलाव: 

  • यूरोपीय संघ ने वर्ष 2021 में गैर-पशु परीक्षण विधियों की ओर संक्रमण के लिये एक प्रस्ताव पारित किया।
  • अमेरिका ने वर्ष 2022 में FDA आधुनिकीकरण अधिनियम 2.0 पेश किया, जो दवा परीक्षण के लिये मानव-प्रासंगिक प्रणालियों के उपयोग की अनुमति देता है।
  • इसके साथ ही दक्षिण कोरिया और कनाडा ने भी पशु परीक्षण के विकल्पों को बढ़ावा देने के लिये कानून पेश किया।
  • मार्च 2023 में नई औषधि और नैदानिक ​​परीक्षण नियम 2019 को संशोधित करके, भारत ने इस विश्वव्यापी प्रवृत्ति को अपनाने के साथ नई दवाओं को विकसित करने की प्रक्रिया में मानव-आधारित परीक्षण तकनीकों को शामिल करना भी संभव बना दिया।

भारत में नैदानिक ​​परीक्षणों का नियामक तंत्र:

  • भारत में नैदानिक ​​परीक्षणों को नियंत्रित करने वाले प्रमुख कानून हैं: ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट-1940, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया एक्ट, 1956 तथा सेंट्रल काउंसिल फॉर इंडियन मेडिसिन एक्ट, 1970, जैविक सामग्री के आदान-प्रदान के लिये दिशा-निर्देश (MOH ऑर्डर, 1997)।
  • भारत में नैदानिक ​​परीक्षण आयोजित करने की पूर्व शर्तें हैं:
    • (DCGI)भारत के औषधि महानियंत्रक (DCGI) से अनुमति
    • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री नियमावली के अंतर्गत स्थापित आचार समिति से अनुमोदन।
    • ICMR द्वारा संचालित वेबसाइट पर पंजीकरण अनिवार्य

भारत के लिये नियामक बदलाव से संबंधित चुनौतियाँ एवं अवसर:

  • बहु-विषयक विशेषज्ञता: ऑर्गेनॉइड व ऑर्गन-ऑन-चिप जैसी तकनीकों का विकास और कार्यान्वयन करने के लिये कोशिका जीव विज्ञान एवं सामग्री विज्ञान से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तथा फार्माकोलॉजी तक विविध विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है।
    • भारत को मौज़ूदा सूचना अंतराल को समाप्त करने के लिये बहु-विषयक प्रशिक्षण और संसाधन-निर्माण में निवेश करना चाहिये।
  • संसाधन स्थानीयकरण: आयातित अभिकर्मकों, सेल-कल्चर सामग्रियों और उपकरणों पर वर्तमान निर्भरता संसाधन संबंधित चुनौतियाँ पैदा करती है।
    • आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिये भारत को सेल-कल्चर, सामग्री विज्ञान और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में एक मज़बूत बुनियादी ढाँचा विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • मानकीकरण और दिशा-निर्देश: प्रयोगशाला संबंधी प्रोटोकॉल में निरंतर बदलाव करने से असंगत डेटा प्राप्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
    • विभिन्न प्रयोगशालाओं में विश्वसनीय और तुलनीय परिणाम सुनिश्चित करने के लिये सुस्पष्ट दिशा-निर्देश एवं  गुणवत्ता मानदंड को परखना अत्यंत आवश्यक है।
    • नियामक निकायों को कोशिका-आधारित और जीन-संपादन-आधारित चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के अनुकूल होना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), केंद्रीय प्रायोजित योजना, वामपंथी उग्रवाद (LWE)

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान, महत्त्व एवं चिंताएँ

चर्चा में क्यों?

14 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों ने अभी तक शिक्षा मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर नहीं किया है, जिसमें प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान (PM-USHA) के अंर्तगत आगामी तीन वर्षों तक धन प्राप्त करने के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के कार्यान्वयन को अनिवार्य किया गया है। 

MoU की आवश्यकता और राज्यों द्वारा चिंताएँ:

  • आवश्यकता :
    • MoU में योजना, कार्यान्वयन और निगरानी, बेहतर एकीकरण के लिये राज्य के प्रस्तावों को NEP के साथ संरेखित करने के प्रावधान शामिल हैं।

    • यह योजना राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों को उनकी आवश्यकताओं के अनुसार गतिविधियों के लिये अधिक प्रभावी संसाधन आवंटन तथा घटकों को सुव्यवस्थित करने हेतु लचीलापन प्रदान करती है।

    • इसके अतिरिक्त राज्य नामांकन अनुपात, लिंग समानता एवं हाशिये पर रहने वाले समुदायों के जनसंख्या अनुपात जैसे संकेतकों के आधार पर लक्षित ज़िलों की पहचान कर सकते हैं।

  • चिंताएँ:

    • कुछ राज्य सरकारों ने समझौता ज्ञापन पर असंतोष व्यक्त किया है, क्योंकि यह NEP सुधारों को लागू करने के लिये अतिरिक्त वित्त की समस्या का समाधान नहीं करता है।
    • PM-USHA खर्चों के 40% के लिये राज्य ज़िम्मेदार हैं, लेकिन उक्त समझौता ज्ञापन NEP से संबंधित बदलावों के लिये वित्तपोषण तंत्र को लेकर स्पष्टता प्रदान नहीं करता है।

PM-USHA योजना:

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान (Rashtriya Uchchatar Shiksha Abhiyan- RUSA) योजना को जून 2023 में "प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा अभियान PM-USHA" के रूप में लॉन्च किया गया।
      • RUSA, एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में अक्तूबर 2013 में शुरू की गई थी, जिसका लक्ष्य पूरे देश में उच्च शिक्षा संस्थानों को रणनीतिक वित्तपोषण प्रदान करना है।
    • यह केंद्रित है:
      • उच्च शिक्षा तक समान पहुँच और समावेशन पर।
      • गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और सीखने की प्रक्रियाओं के विकास पर।
      • गैर-मान्यता प्राप्त संस्थानों की मान्यता में सुधार पर।
      • ICT-आधारित डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर।
      • बहुविषयक के माध्यम से रोज़गार क्षमता बढ़ाने पर।
  • उद्देश्य:
    • मौजूदा राज्य उच्च शिक्षण संस्थानों के निर्धारित मानदंडों और मानकों की अनुरूपता सुनिश्चित करके एवं गुणवत्ता आश्वासन ढाँचे के रूप में मान्यता को अपनाकर उनकी समग्र गुणवत्ता में सुधार करना।
    • राज्य के उच्च शिक्षण संस्थानों में शासन, शैक्षणिक और परीक्षा सुधार सुनिश्चित करना और एक तरफ स्कूली शिक्षा और दूसरी तरफ रोज़गार बाज़ार के साथ पुराने और आगामी संबंध स्थापित करना, ताकि आत्म-निर्भर भारत का निर्माण किया जा सके।
    • उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसंधान और नवाचारों के लिये एक सक्षम माहौल बनाना।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
  • मेरू रूपांतरण: यह बहु-विषयक शिक्षा और अनुसंधान की सुविधा के लिये 35 मान्यता प्राप्त राज्य विश्वविद्यालयों में से प्रत्येक को 100 करोड़ रुपए का समर्थन करता है।
    • मॉडल डिग्री कॉलेज: यह योजना नए मॉडल डिग्री कॉलेजों की स्थापना के लिए प्रावधान प्रदान करती है।
    • विश्वविद्यालयों का संवर्द्धन: विश्वविद्यालयों के विकास कार्यों के लिये उन्हें अनुदान आवंटित किया जाता है।
    • सुदूर और आकांक्षी क्षेत्रों पर फोकस: प्रधानमंत्री उच्चत्तर शिक्षा अभियान (PM-USHA) का लक्ष्य दूरस्थ, वामपंथी उग्रवाद (LWE) से प्रभावित क्षेत्र, आकांक्षी ज़िलों और कम सकल नामांकन अनुपात (GER) वाले क्षेत्रों तक पहुँचना है।
    • लैंगिक समावेशन और समानता के लिये समर्थन: यह योजना राज्य सरकारों को लैंगिक समावेशन और समानता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के माध्यम से बेहतर रोज़गार के लिये कौशल को उन्नत करने में सहायता करती है।

निष्कर्ष:

  • MoU की शर्तों को लेकर कई राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और शिक्षा मंत्रालय के बीच मौजूदा गतिरोध PM-USHA योजना के तहत NEP सुधारों के वित्तपोषण के बारे में चिंताओं को दर्शाता है।
  • हालाँकि मतभेदों को सुलझाने के लिये चर्चा जारी है, MoU का सफल कार्यान्वयन NEP लक्ष्यों के एकीकरण और विभिन्न भारतीय राज्यों में उच्च शिक्षा गुणवत्ता बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता, साक्ष्य अधिनियम में आमूल-चूल परिवर्तन

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय न्याय संहिता विधेयक 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक 2023, भारतीय साक्ष्य विधेयक 2023, आतंकवाद, सशस्त्र विद्रोह, मृत्युदंड

मेन्स के लिये:

भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने लोकसभा में तीन विधेयक पेश किये जिनका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में लागू किये गए भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को निरस्त कर उनमें बदलाव करना है। ये विधेयक इस प्रकार हैं:

  • भारतीय दंड संहिता 1860 के स्थान पर भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023
  • दंड प्रक्रिया संहिता 1898 के स्थान पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023
  • साक्ष्य अधिनियम, 1872 के स्थान पर भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023

नोट: 

  • भारतीय दंड संहिता (IPC) भारत की आपराधिक संहिता है जिसे वर्ष 1833 के चार्टर अधिनियम के अंर्तगत वर्ष 1834 में स्थापित पहले कानून आयोग के अनुरूप वर्ष 1860 में तैयार किया गया था।
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) भारत में आपराधिक कानून के प्रशासन के लिये प्रक्रियाएँ प्रदान करती है। इसे वर्ष 1973 में अधिनियमित किया गया और 1 अप्रैल 1974 को प्रभावी हुआ।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, जो मूल रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1872 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा भारत में पारित किया गया था, भारतीय न्यायालयों में साक्ष्य की स्वीकार्यता को नियंत्रित करने वाले नियमों और संबद्ध मुद्दों का एक सेट शामिल है।

भारतीय न्याय संहिता विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ:

  • यह विधेयक आतंकवाद एवं अलगाववाद, सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह, देश की संप्रभुता को चुनौती देने जैसे अपराधों को परिभाषित करता है, जिनका पहले कानून के विभिन्न प्रावधानों के अंर्तगत उल्लेख किया गया था।
  • यह राजद्रोह के अपराध को निरस्त करता है, जिसकी औपनिवेशिक अवशेष के रूप में व्यापक रूप से आलोचना की गई थी जो स्वतंत्र अभिव्यक्ति तथा असहमति पर अंकुश लगाता है।
  • यह मॉब लिंचिंग के लिये अधिकतम सज़ा के रूप में मृत्युदंड का प्रावधान करता है, जो हाल के वर्षों में एक खतरा रहा है।
  • इसमें विवाह के झूठे वादे कर महिलाओं के साथ यौन संबंध स्थापित करने पर 10 वर्ष की कैद का प्रस्ताव है, जो धोखे और शोषण का एक सामान्य रूप है।
  • विधेयक विशिष्ट अपराधों के लिये सज़ा के रूप में सामुदायिक सेवा का प्रावधान करता है, जो अपराधियों को सुधारने और जेलों में भीड़ को कम करने में मदद कर सकता है।
  • विधेयक में चार्ज शीट दाखिल करने के लिये अधिकतम 180 दिनों की सीमा तय की गई है, जिससे अभियोजन की प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है और अनिश्चितकालीन देरी को रोका जा सकता है।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ:

  • यह परीक्षणों, अपीलों और गवाही की रिकॉर्डिंग के लिये प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ावा देता है, जिससे कार्यवाही के लिये वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग की अनुमति मिलती है।
    • यह विधेयक यौन हिंसा से बचे लोगों के बयान की वीडियो-रिकॉर्डिंग को अनिवार्य बनाता है, यह कदम साक्ष्यों को संरक्षित करने और ज़बरदस्ती या हेर-फेर को रोकने में सहायता कर सकता है।
  • यह विधेयक पुलिस को शिकायत की स्थिति के बारे में 90 दिनों में सूचित करना अनिवार्य करता है, जिससे जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ेगी।
  • CrPC की धारा 41A को धारा 35 के रूप में पुनः क्रमांकित किया जाएगा। इस परिवर्तन में एक अतिरिक्त सुरक्षा शामिल है, जिसमें कहा गया है कि कम से कम पुलिस उपाधीक्षक (Deputy Superintendent of Police- DSP) रैंक के किसी अधिकारी की पूर्व मंज़ूरी के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है, विशेषकर ऐसे दंडनीय अपराधों के लिये जिसके 3 वर्ष से कम की सज़ा हो अथवा अपराध 60 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्ति द्वारा किया गया हो।
  • इस विधेयक के अनुसार पुलिस को सात वर्ष या उससे अधिक की सजा वाले मामले को वापस लेने से पहले पीड़ित से परामर्श करना अनिवार्य है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि न्याय से किसी प्रकार का समझौता नहीं हो।
  • यह फरार अपराधियों पर न्यायालय द्वारा उनकी अनुपस्थिति में मुकदमा चलाने और सजा सुनाने की अनुमति देता है।
  • यह मजिस्ट्रेटों को ई-मेल, SMS, व्हाट्सएप मेसेज आदि जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के आधार पर अपराधों का संज्ञान लेने का अधिकार देता है, जिससे साक्ष्य संग्रह और सत्यापन की सुविधा मिल सकती है।
  • मृत्यु की सजा के मामलों में दया याचिका राज्यपाल के पास 30 दिनों के भीतर और राष्ट्रपति के पास 60 दिनों के भीतर दाखिल की जानी है।
    • राष्ट्रपति के निर्णय के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकेगी।

भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • यह विधेयक बिल इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को किसी भी उपकरण या सिस्टम द्वारा उत्पन्न या प्रसारित किसी भी जानकारी के रूप में परिभाषित करता है जो किसी भी माध्यम से संगृहीत या पुनर्प्राप्त करने में सक्षम है।
  • डिजिटल डेटा के दुरुपयोग अथवा इसमें किसी प्रकार का बदलाव होने से रोकने के लिये, यह विधेयक इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकार्यता, जैसे प्रामाणिकता और विश्वसनीयता हेतु विशिष्ट मानदंड निर्धारित करता है।
  • यह DNA साक्ष्य जैसे सहमति, कालानुक्रमिक दस्तावेज आदि की स्वीकार्यता के लिये विशेष प्रावधान प्रदान करता है, जो जैविक साक्ष्य की सटीकता और विश्वसनीयता को बढ़ा सकता है।
  • यह विशेषज्ञ की सलाह को मेडिकल राय, लिखावट विश्लेषण जैसे साक्ष्यों के रूप में मान्यता देता है, जो किसी मामले से संबंधित तथ्यों या परिस्थितियों को स्थापित करने में सहायता कर सकता है।
  • यह आपराधिक न्याय प्रणाली के मूल सिद्धांत के रूप में निर्दोषता की धारणा का परिचय देता है, जिसका अर्थ है कि अपराध के आरोपी प्रत्येक व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि उचित संदेह से परे दोषी साबित न हो जाए।

स्रोत: द हिंदू