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एडिटोरियल


भारतीय अर्थव्यवस्था

फार्मास्यूटिकल क्षेत्र को बढ़ावा

  • 31 Jan 2022
  • 11 min read

यह एडिटोरियल 28/01/2022 को ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित “Budgetary Support Could Propel Our Quest For Pharma Innovation” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के दवा उद्योग को बढ़ावा देने के लिये उठाए जा सकने वाले कदमों की चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारतीय दवा उद्योग अपनी सस्ती और उच्च गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य में सुधार लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हालाँकि मूल्य के संदर्भ में दुनिया के सबसे बड़े फार्मास्यूटिकल उत्पादकों में से एक बनने के लिये भारतीय दवा उद्योग को अभी भी R&D, पर्याप्त वित्तपोषण, दवाओं के लिये कच्चे माल के घरेलू विनिर्माण आदि विषयों में विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। उन्नत चिकित्सा और बायोफार्मा उत्पादों के क्षेत्र में भारत की प्रगति के लिये सरकार को राजकोषीय प्रोत्साहन और सक्षम नीतियाँ प्रदान कर एक अन्वेषण-उन्मुख और विज्ञान-संचालित दृष्टिकोण की ओर आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है। इसके साथ ही आवश्यक आधारभूत संरचना का भी विकास किया जाना चाहिये जो नवाचार को प्रेरित करने और भारतीय फार्मा एवं बायोफार्मा उद्योग को विश्व में उपयुक्त स्थान दिलाने के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति का समर्थन करे।

भारत का फार्मा क्षेत्र

  • ‘वैश्विक दवाखाना’: भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक है और वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता है। इसे ‘वैश्विक दवाखाना’ (Pharmacy to the world) के रूप में जाना जाता है। 
    • भारतीय दवा उद्योग विभिन्न टीकों की वैश्विक मांग के 50%, यू.एस. में जेनेरिक दवाओं की मांग के 40% और यू.के. में सभी दवाओं की मांग के 25% की पूर्ति करता है।
    • वर्तमान में एड्स (AIDS- Acquired Immune Deficiency Syndrome) से मुकाबले के लिये वैश्विक स्तर पर उपयोग की जाने वाली 80% से अधिक एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं (Antiretroviral Drugs) की आपूर्ति भारतीय दवा फर्मों द्वारा की जाती है।
  • अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी: भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग देश के लिये एक रणनीतिक उद्योग है, जो बड़े पैमाने पर लाभ प्रदान करता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019-20 में 37 बिलियन डॉलर मूल्य के साथ इसने GDP में प्रत्यक्ष रूप से 1.5% का योगदान दिया जबकि अप्रत्यक्ष रूप से 3% का योगदान दिया।
    • इस उद्योग की वैश्विक पहुँच भी है और यह वार्षिक रूप से 10 बिलियन डॉलर से अधिक का शुद्ध विदेशी मुद्रा अर्जक है।
  • वैश्विक हिस्सेदारी में प्रगति: वर्ष 1969 में भारतीय फार्मास्यूटिकल्स भारतीय बाज़ार में महज 5% हिस्सेदारी रखते थे जबकि शेष 95% हिस्सेदारी वैश्विक फार्मा की थी। वर्ष 2020 तक यह परिदृश्य बदल गया जहाँ भारतीय फार्मा की हिस्सेदारी लगभग 85% और वैश्विक फार्मा की हिस्सेदारी 15% थी।
    • भारत वैश्विक जेनेरिक बाज़ार में मूल्य के हिसाब से पहले से ही 20% से अधिक का योगदान दे रहा है, जहाँ भारतीय उत्पाद अमेरिकी दवाओं के 40% (मात्रा के अनुसार) का योगदान करते हैं।

चुनौतियाँ:

  • जटिल औषध विकास प्रक्रिया: नए, अत्याधुनिक उपचार का विकास करना एक जटिल और लंबी प्रक्रिया है।
    • वैज्ञानिक, तकनीकी और नियामक सीमितताएँ अत्यंत उच्च हैं जो औषध विकास को कठिन, अधिक समय लेने वाला और बहुत महँगा बनाते हैं।
  • R&D पर निम्न व्यय: अनुसंधान और विकास (R&D) पर भारत का वर्तमान सार्वजनिक व्यय उसके सकल घरेलू उत्पाद के 1% से भी कम है। इसकी तुलना में अन्य ‘ब्रिक्स’ देश, चीन, ब्राज़ील और रूस क्रमशः अपने सकल घरेलू उत्पाद का 2.1%, 1.3% और 1% से कुछ अधिक खर्च करते हैं।
    • इसके अलावा, भारत में वर्ष 2018-19 में R&D प्रोत्साहन कुल कर प्रोत्साहन का मात्र 7.5% था, जबकि फार्मा के लिये यह इसका मात्र 2.3% था।
  • वित्तपोषण की कमी: कई सरकारी साधनों की उपलब्धता के बावजूद पर्याप्त वित्तपोषण तक पहुँच में असमर्थता के कारण उद्यमियों की कई शानदार योजनाएँ प्रायः साकार नहीं हो पातीं।
  • चीन पर अत्यधिक निर्भरता: कई देशों को उच्च गुणवत्तायुक्त दवाओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता होने के बावजूद भारतीय दवा उद्योग संबंधित कच्चे माल, अर्थात सक्रिय दवा सामग्री (Active Pharmaceutical Ingredients- APIs) के लिये चीन पर अत्यधिक निर्भर है।  
    • भारतीय दवा निर्माता अपनी कुल थोक दवा सामग्री आवश्यकताओं का लगभग 70% चीन से आयात के माध्यम से पूरा करते हैं।
  • मूल्य सीमा: भारतीय दवा उद्योग को सरकार और नागरिक समाज दोनों की ओर से दबाव का सामना करना पड़ता है कि देश की आबादी के एक बड़े हिस्से के लिये वे जेनेरिक दवाओं को अधिकाधिक किफायती बनाए रखें, जबकि उल्लेखनीय है कि भारत में दवा के मूल्य पहले से ही विश्व में सबसे कम हैं।
    • जेनेरिक दवाओं के कम मूल्य पर अधिकाधिक बल दवा कंपनियों के शुद्ध मुनाफे पर असर डालता है।

आगे की राह

  • ग्लोबल बास्केट में मूल्य हिस्सेदारी की वृद्धि करना: मात्रा हिस्सेदारी (Volume Share) के अलावा भारत को अब मूल्य हिस्सेदारी (Value Share) पर भी पकड़ बनाने की ज़रूरत है। फार्मा मूल्य शृंखला को आगे बढ़ाने के लिये उसे नए बायोलॉजिक्स, बायोसिमिलर्स, mRNA व अन्य नई पीढ़ी के टीकों, ओर्फन ड्रग्स, एंटीमाइक्रोबियल्स, प्रीसिज़न मेडिसिन, सेल एवं जीन थेरेपी जैसे उभरते हुए अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
    • मूल्य संदर्भ में शीर्ष पाँच देशों में स्थान पाने और मात्रा के संदर्भ में पहला स्थान बनाने के लिये भारतीय फार्मा उद्योग को वर्तमान में 44 बिलियन डॉलर से वर्ष 2030 तक 120-130 बिलियन डॉलर और वर्ष 2047 तक 500 बिलियन डॉलर तक करने की आवश्यकता होगी।
  • R&D निवेश को बढ़ावा देना: अध्ययनों से पता चलता है कि अनुसंधान एवं विकास निवेश में औसतन 1% की वृद्धि से उत्पादन में 0.05- 0.15% तक की वृद्धि होती है।
    • भारत को वैश्विक फार्मास्यूटिकल इनोवेशन हब बनने के लिये अनुसंधान एवं विकास, विनिर्माण और डिजिटल रूपांतरण में घातीय निवेश करने की आवश्यकता होगी।
    • सरकार को R&D में निवेश को प्रोत्साहित करने और उद्योग की मदद कर सकने वाले विभिन्न वित्तपोषण तंत्रों का मूल्यांकन करने के लिये तत्काल एक व्यवस्था का निर्माण करना होगा। वित्त वर्ष 2022-23 का बजट फार्मा उद्योग को आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान कर सकने के लिये एक अच्छा अवसर हो सकता है।
    • अनुसंधान-संबद्ध प्रोत्साहन (Research-linked incentives- RLIs) इस उद्योग को R&D निवेश में वृद्धि के लिये प्रोत्साहन प्रदान कर सकने के साथ ही इसे सह-नवाचार के लिये शिक्षा जगत के साथ अत्यंत आवश्यक संलग्नता निर्माण हेतु प्रेरित कर सकते हैं।
  • लक्षित वित्तीय प्रोत्साहन: उत्पादन वृद्धि के लिये सरकार को डायग्नोस्टिक किट एवं अन्य चिकित्सा उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लक्षित वित्तीय प्रोत्साहन शुरू करना चाहिये, विशेष रूप से यह देखते हुए कि इन साधनों के विनिर्माण के लिये आवश्यक कच्चे माल हेतु आयात पर अत्यधिक निर्भरता बनी हुई है।
    • यह APIs विनिर्माण का एक बड़ा हिस्सा भारत में वापस लाने का भी एक अवसर है ताकि देश महत्त्वपूर्ण इनपुट्स के लिये आयात पर निर्भर न हो।
  • बेहतर दवा मूल्य निर्धारण नीति: भारतीय फार्मा उद्योग अब बड़े पैमाने पर विभिन्न चिकित्सीय स्थितियों के उपचार के लिये नए अणु विकसित करने की कगार पर है।
    • चूँकि नई दवाओं के विकास पर धन खर्च होता है, सरकार को ऐसी शर्तें सुनिश्चित करनी होगी कि नए अणुओं में निवेश पर पर्याप्त लाभ प्राप्त हो, जबकि भारत और विश्व के लिये नई दवाओं के उत्पादन के लिये दवा फर्म उत्तरदायी भी बने रहें।
    • एक ऐसे समय जब भारतीय दवा की कीमतें पहले से ही विश्व में सबसे कम हैं, आवश्यकता है कि दवा मूल्य निर्धारण नीति को सुसंगत बनाया जाए ताकि नए अणुओं में निवेश के लिये अधिशेष का सृजन हो, जबकि सस्ती स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने हेतु मूल्य स्तर उपयुक्त भी बने रहें।

अभ्यास प्रश्न: भारत के फार्मास्यूटिकल उद्योग को बढ़ावा देने के लिये उठाए जा सकने वाले कदमों की चर्चा कीजिये।

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