इन्फोग्राफिक्स
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भूगोल
बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में मानव बस्तियों में वृद्धि
प्रिलिम्स के लिये:बाढ़ क्षेत्र, जलवायु परिवर्तन, विश्व बैंक की रिपोर्ट मेन्स के लिये:बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में मानव बस्तियों में वृद्धि के कारक, बाढ़ प्रबंधन |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
विश्व बैंक द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन के अनुसार, विश्व भर के कुछ सबसे जोखिम वाले बाढ़ क्षेत्रों में मानव बस्तियों में वर्ष 1985 के बाद से 122% की वृद्धि देखी गई है, जिससे लाखों लोगों का जीवन जलवायु परिवर्तन के कारण घटित होने वाली बाढ़ जैसी आपदाओं की वजह से अधिक जोखिमपूर्ण हो गया है। मानव बस्तियों की यह वृद्धि मुख्य रूप से मध्यम और निम्न आय वाले देशों में देखी गई है।
- दूसरी ओर, सबसे सुरक्षित क्षेत्रों की मानव बस्तियों में 80% की वृद्धि देखी गई।
अध्ययन के प्रमुख बिंदु:
- बस्तियों के विस्तार का वैश्विक परिदृश्य:
- अधिकांश देशों, विशेष रूप से पूर्वी एशिया में शुष्क क्षेत्रों की तुलना में नियमित बाढ़ वाले क्षेत्रों और बाढ़ की सर्वाधिक संभावना वाले क्षेत्रों में बस्तियों में अधिक वृद्धि देखी गई।
- लीबिया, जहाँ सितंबर 2023 में विनाशकारी बाढ़ आई थी, बाढ़ से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में बस्तियों में 83% की वृद्धि देखी गई।
- वर्ष 2022 और वर्ष 2023 दोनों में पाकिस्तान में बाढ़ के विनाशकारी परिणाम देखे गए, यहाँ बाढ़ संभावित क्षेत्रों में बस्तियों में 89% की वृद्धि देखी गई।
- अपवाद वाले उल्लेखनीय क्षेत्र:
- संयुक्त राज्य अमेरिका में ड्राई सेटलमेंट्स (आर्द्रभूमि, दलदली अथवा बाढ़ के मैदानों वाले क्षेत्र में बाढ़ मुक्त भूमि का एक क्षेत्र) में 76% की वृद्धि हुई, जबकि बाढ़ के सर्वाधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में बस्तियों में केवल 46% की वृद्धि देखी गई।
- अति आर्द्र क्षेत्रों की तुलना में अधिक ड्राई सेटलमेंट्स वाले अन्य देशों में भारत, फ्राँस, स्वीडन, ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, जापान और कनाडा शामिल हैं।
बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में मानव बस्तियों में वृद्धि का कारण:
- ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर प्रवासन: देश में आर्थिक विकास के साथ-साथ जलमार्गों के निकट शहरीकरण में वृद्धि होना स्वाभाविक है। शहर में जनसंख्या वृद्धि के साथ ही बस्तियों का अक्सर बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में विस्तार होता जाता है।
- उदाहरण के लिये: तंज़ानिया का दार एस सलाम इस समस्या का सबसे अच्छा उदाहरण है, जहाँ मत्स्य पालन से जुड़े एक गाँव की जनसंख्या सात मिलियन से अधिक तक पहुँच गई है।
- आर्थिक कारक: निम्न आय वाली आबादी के लिये सुरक्षित और बाढ़ के कम जोखिम वाले क्षेत्रों में बसना मुश्किल होता है। घर-परिवार के जीवन यापन के लिये सीमित आर्थिक संसाधनों के कारण उन्हें बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में रहने के लिये मजबूर होना पड़ सकता है।
- नियामक प्रवर्तन का अभाव: कुछ देशों में भूमि-उपयोग योजना और ज़ोनिंग/क्षेत्रीकरण नियमों के प्रभावी ढंग से लागू न होने के परिणामस्वरूप पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में बस्तियों का विस्तार हो सकता है।
- सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध: कुछ समुदायों का बाढ़-प्रवण क्षेत्रों से गहरा सांस्कृतिक अथवा ऐतिहासिक संबंध रहा है और बाढ़ के जोखिमों के बावजूद वे इन क्षेत्रों में रहना या बसना पसंद करते हैं।
- पर्यटन और मनोरंजन: तटीय एवं नदी तटीय क्षेत्र, बाढ़ प्रवण होने के बावजूद पर्यटकों और मनोरंजन प्रेमियों को आकर्षित करते हैं।
- ऐसे में रिसॉर्ट्स, होटल और वेकेशन होम्स की मांग इन क्षेत्रों में बस्तियों में वृद्धि का कारण हो सकती है।
नोट:
- बाढ़ क्षेत्रों में बस्तियों के विस्तार से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम नहीं होता है। दोनों मुद्दे आपस में संबद्ध हैं, जिससे जोखिम और संवेदनशीलता बढ़ती जा रही हैं। लोगों को दीर्घकालिक जलवायु जोखिमों के बदले आश्रय एवं आजीविका की तत्काल ज़रूरतों को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- इससे ऐसे निर्णय लिये जा सकते हैं जो अल्पकालिक निर्वहन पर अधिक केंद्रित हों।
आगे की राह
- भूमि उपयोग हेतु सख्त नीतियाँ: कठोर भूमि उपयोग के सख्त नियमों को लागू किया जाना चाहिये जो उच्च जोखिम वाले बाढ़ क्षेत्रों में नए निर्माण कार्यों पर रोक लगाते हैं या उन्हें प्रतिबंधित करते हैं।
- बाढ़-प्रवण क्षेत्रों को 'नो-बिल्ड' ज़ोन के रूप में नामित कर इन प्रतिबंधों को लगातार लागू किया जाना चाहिये।
- बुनियादी ढाँचे में निवेश: बेहतर बाढ़ सुरक्षा, प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और बाढ़ क्षेत्र मानचित्रण सहित समुत्थानशील बुनियादी ढाँचे में निवेश करने की आवश्यकता है।
- मौजूदा बस्तियों में बाढ़ के प्रभाव को कम करने के लिये जल निकासी प्रणालियों में सुधार कियी जाने की आवश्यकता है।
- सरकारी समर्थन और पुनर्वास सहायता: सरकार बाढ़ क्षेत्र के निवासियों को बाढ़-प्रवण क्षेत्रों से सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन की पेशकश कर सकती है।
- साथ ही सरकार को बाढ़ की घटनाओं के दौरान जान-माल के नुकसान को कम करने के लिये बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में आपातकालीन अनुक्रिया और तैयारियों के उपायों को सुनिश्चित और सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
- सार्वजनिक जागरूकता और शिक्षा: नागरिकों को बाढ़-प्रवण क्षेत्रों से जुड़े जोखिमों के बारे में शिक्षित करने के लिये सार्वजनिक जागरूकता अभियान शुरू करने की आवश्यकता है।
- बाढ़ से बचाव हेतु तैयारियों और ऐसे क्षेत्रों में रहने से बचने के महत्त्व पर समुदाय-आधारित शिक्षा कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्सप्रश्न. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारंबारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने के लियेये तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016) प्रश्न. भारत में दशलक्षीय नगरों जिनमें हैदराबाद एवं पुणे जैसे स्मार्ट सिटीज़ भी सम्मिलित हैं, में व्यापक बाढ़ के कारण बताइये। स्थायी निराकरण के उपाय भी सुझाइए। (2020) प्रश्न. भारत के प्रमुख नगर बाढ़ दशाओं से अधिक असुरक्षित होते जा रहे हैं। विवेचना कीजिये। (2016) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में खाद्य मुद्रास्फीति
प्रिलिम्स के लिये:मुद्रास्फीति, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), मौद्रिक नीति समिति (MPC), उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (CFPI), लोकसभा, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MPC) मेन्स के लिये:किसानों पर बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति का प्रभाव और देश के व्यापक आर्थिक संकेतक। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल के दिनों में उपभोक्ता खाद्य कीमतें वार्षिक रूप से 9.9% अधिक थीं, खाद्य मुद्रास्फीति अब काफी हद तक अनाज और दालों तक सीमित है तथा सरकार को उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं दोनों की चिंताओं पर समान रूप से ध्यान देना आवश्यक है।
भारत में खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति और अवस्फीति का हालिया परिदृश्य:
- अनाज और दालों में मुद्रास्फीति:
- अनुमान से पता चलता है कि खाद्य मुद्रास्फीति दो वस्तुओं द्वारा: अनाज (11.9%) और दालें (13%) क्रमशः जुलाई व अगस्त में तेज़ी से बढ़ी है।
- इस दौरान सब्ज़ियों की वार्षिक खुदरा मूल्य वृद्धि इससे भी अधिक, क्रमशः 37.4% और 26.1%, रही।
- सबसे अच्छा संकेतक टमाटर रहा, जिसकी खुदरा मुद्रास्फीति इस अवधि के दौरान क्रमशः 202.1% और 180.3% रही।
- इस दौरान सब्ज़ियों की वार्षिक खुदरा मूल्य वृद्धि इससे भी अधिक, क्रमशः 37.4% और 26.1%, रही।
- अनुमान से पता चलता है कि खाद्य मुद्रास्फीति दो वस्तुओं द्वारा: अनाज (11.9%) और दालें (13%) क्रमशः जुलाई व अगस्त में तेज़ी से बढ़ी है।
- सरकार की रणनीति के कारण आवश्यक वस्तुओं में अवस्फीति:
- अधिकांश सरकारें स्वाभाविक रूप से राजनीतिक कारणों की वज़ह से उत्पादकों पर उपभोक्ताओं की संख्या अधिक होने से उपभोक्ताओं को विशेषाधिकार देती हैं।वर्तमान परिदृश्य में सरकार को अन्य समस्याओं के अतिरिक्त, विशेष रूप से दो कृषि/खाद्य वस्तुओं के उत्पादकों को प्राथमिकता देनी चाहिये, ये हैं:
- वनस्पति तेल निर्माता:
- वर्तमान में (अक्तूबर माह) में सोयाबीन की कटाई और विपणन शुरू हो गया है, लेकिन तिलहन पहले से ही सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से निचले स्तर पर व्यापार कर रहा है।
- वर्तमान में सोयाबीन की मांग में विशेषकर तेल और भोजन के रूप में, (सोयाबीन से निर्मित पशुधन आहार सामग्री के रूप में उपयोग किया जाने वाला अवशिष्ट तेल रहित केक) कमी दर्ज़ की गई है।
- बाज़ार में मंदी का एक बड़ा कारण खाद्य तेल का आयात है। भारत का वनस्पति तेल आयात वर्ष 2022-23 में 17 मिलियन टन (mt) के उच्च स्तर तक पहुँचने का अनुमान है।
- दुग्ध उत्पादक:
- वर्तमान में दूध पाउडर, मक्खन या घी की खरीदारी में कमी दर्ज़ की गई है। त्यौहारों (दशहरा-दिवाली) के बाद, आमतौर पर सर्दियों में जब दुग्ध उत्पादन चरम पर होता है, दुग्ध उत्पादों की खरीद में कमी आती है।
- वनस्पति वसा के साथ मिलावटी घी की बिक्री में कथित वृद्धि ने उद्योग की समस्याओं को और बढ़ा दिया है। आयातित तेलों, विशेषकर ताड़ के तेलों की कीमतों में गिरावट ने मक्खन एवं घी में सस्ते वसा के मिश्रण को और अधिक बढ़ा दिया है।
- आवश्यक वस्तुओं के रूप में गेहूँ और चावल:
- परिणामस्वरूप प्रभावी वितरण के अभाव में अधिक आपूर्ति के कारण बाज़ार की कीमतों में गिरावट आ सकती है।
- अधिक उत्पादन: भारत में किसान प्रायः गेहूँ और चावल जैसी MSP-समर्थित फसलों का उत्पादन बढ़ाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को चुनौती देते हैं। इस अतिउत्पादन से बाज़ार में बहुतायत हो सकती है, जिससे कीमतें MSP से निचले स्तर तक पहुँच सकती हैं।
- अपर्याप्त खरीद और वितरण: सरकार MSP निर्धारित करती है और किसानों से फसल खरीदती है, हालाँकि खरीद बुनियादी ढाँचा एवं वितरण प्रणाली अक्षम हो सकती है, जिससे खरीद में देरी तथा उपभोक्ताओं को अनाज का अपर्याप्त वितरण होता है।
- वनस्पति तेल निर्माता:
- अधिकांश सरकारें स्वाभाविक रूप से राजनीतिक कारणों की वज़ह से उत्पादकों पर उपभोक्ताओं की संख्या अधिक होने से उपभोक्ताओं को विशेषाधिकार देती हैं।वर्तमान परिदृश्य में सरकार को अन्य समस्याओं के अतिरिक्त, विशेष रूप से दो कृषि/खाद्य वस्तुओं के उत्पादकों को प्राथमिकता देनी चाहिये, ये हैं:
उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (CFPI):
- उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति (Consumer Food Price Inflation- CFPI), मुद्रास्फीति की एक विशिष्ट माप है जो विशेष रूप से उपभोक्ता की वस्तुओं और सेवाओं में खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तन पर केंद्रित है।
- यह उस दर की गणना करता है जिस दर से किसी सामान्य परिवार द्वारा उपभोग किये जाने वाले खाद्य उत्पादों की कीमतें समय के साथ बढ़ रही हैं।
- CFPI व्यापक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) का एक उप-घटक है, जहाँ भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) दर की गणना करने के लिये CPI-संयुक्त (CPI-C) का उपयोग करता है।
- CFPI विशिष्ट खाद्य पदार्थों के मूल्य परिवर्तन को ट्रैक करता है जो सामान्यतः घरों में उपभोग किया जाता है, जैसे अनाज, सब्जियाँ, फल, डेयरी उत्पाद, मांस और अन्य खाद्य पदार्थ।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI):
- CPI मुद्रास्फीति, जिसे खुदरा मुद्रास्फीति के रूप में भी जाना जाता है, वह दर है जिस पर उपभोक्ताओं द्वारा व्यक्तिगत उपयोग के लिये खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें समय के साथ बढ़ती हैं।
- यह भोजन, कपड़े, आवास, परिवहन और चिकित्सा देखभाल सहित सामान्यतः घरेलू वस्तुओं की खरीद एवं सेवाओं की लागत में बदलाव का आकलन करता है।
- CPI के निम्नलिखित चार प्रकार हैं:
- औद्योगिक श्रमिकों (Industrial Workers- IW) के लिये CPI
- कृषि मज़दूरों (Agricultural Labourers- AL) के लिये CPI
- ग्रामीण मज़दूरों (Rural Labourers- RL) के लिये CPI
- शहरी गैर-मैनुअल कर्मचारियों (Urban Non-Manual Employees- UNME) के लिये CPI।
- इनमें से प्रथम तीन के आँकड़े श्रम और रोज़गार मंत्रालय में श्रम ब्यूरो (Labor Bureau) द्वारा संकलित किये जाते हैं, जबकि चौथे प्रकार की CPI को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) द्वारा संकलित किया जाता है।
खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति के कारण:
- आपूर्ति और मांग में असंतुलन: जब खाद्य आपूर्ति और उसकी मांग के बीच असंतुलन होता है, तो कीमतें बढ़ने लगती हैं।
- विषम मौसम की घटनाएँ, फसल की विफलता या कीट संक्रमण जैसे कारक कृषि उत्पादों की आपूर्ति को कम कर सकते हैं, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं।
- इसके विपरीत मांग में वृद्धि, शायद जनसंख्या वृद्धि या उपभोक्ता प्राथमिकताओं में परिवर्तन के कारण यदि आपूर्ति बरकरार नहीं रह पाती है तो कीमतें भी बढ़ सकती हैं।
- उत्पादन लागत: किसानों के लिये बढ़ती उत्पादन लागत से खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ सकती हैं। इसमें ईंधन, उर्वरक और श्रम लागत जैसे व्यय शामिल हैं।
- ऊर्जा की कीमतें: ऊर्जा की लागत, विशेष रूप से ईंधन, खाद्य आपूर्ति शृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कारक है। तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से खेतों से दुकानों तक खाद्य उत्पादों को लाने के लिये परिवहन लागत में वृद्धि हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं के लिये कीमतें बढ़ सकती हैं।
- मुद्रा विनिमय दरें: विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव खाद्य कीमतों को प्रभावित कर सकता है, खासकर उन देशों के लिये जो आयातित खाद्य पदार्थों पर बहुत अधिक निर्भर हैं। कमज़ोर घरेलू मुद्रा आयातित भोजन को और अधिक महंगा बना सकती है, जिससे मुद्रास्फीति में योगदान हो सकता है।
- व्यापार नीतियाँ: व्यापार नीतियाँ और टैरिफ, आयातित एवं घरेलू स्तर पर उत्पादित खाद्य की कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं। आयात पर प्रतिबंध से उपलब्ध खाद्य उत्पादों की विविधता सीमित हो सकती है और संभावित रूप से कीमतें बढ़ सकती हैं।
- सरकारी नीतियाँ: सब्सिडी, मूल्य नियंत्रण या विनियमों के रूप में सरकारी हस्तक्षेप खाद्य कीमतों को प्रभावित कर सकते हैं। सब्सिडी उत्पादन की लागत को कम कर सकती है, जबकि मूल्य नियंत्रण मूल्य वृद्धि को सीमित कर सकता है।
- वैश्विक घटनाएँ: भू-राजनीतिक संघर्ष, महामारी एवं व्यापार व्यवधान जैसी वैश्विक घटनाएँ खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर सकती हैं और खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी का कारण बन सकती हैं। उदाहरण के लिये, कोविड-19 महामारी ने विश्व के कई हिस्सों में खाद्य उत्पादन और वितरण को बाधित कर दिया।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु पैटर्न में दीर्घकालिक परिवर्तन खाद्य उत्पादन पर प्रभाव डाल सकते हैं। अधिक और गंभीर मौसम की घटनाएँ, जैसे सूखा या बाढ़, फसलों को नुकसान पहुँचा सकती हैं तथा पैदावार कम कर सकती हैं, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं।
- कृषि उत्पादकता को बढ़ावा:
- फसलों की पैदावार और पशुधन की उत्पादकता में सुधार के लिये कृषि अनुसंधान और प्रौद्योगिकी में निवेश करने की आवश्यकता है।
- क्षमता बढ़ाने और उत्पादन लागत कमआगे की राह करने के लिये संधारणीय कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना चाहिये।
- खाद्य आपूर्ति शृंखलाओं का सुदृढ़ीकरण:
- भोजन के खराब होने और बर्बादी को कम करने के लिये परिवहन एवं भंडारण के बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये।
- यह सुनिश्चित करने के लिये वितरण नेटवर्क में सुधार करना चाहिये ताकि भोजन उपभोक्ताओं तक कुशलतापूर्वक पहुँच सके।
- व्यापार और बाज़ार एकीकरण को बढ़ावा:
- आवश्यक खाद्य पदार्थों पर व्यापार बाधाओं और शुल्कों को हटाने की आवश्यकता है।
- खाद्य उत्पादों की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता है।
- प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना और एकाधिकार शक्ति को कम करना:
- बड़े कृषि व्यवसायों द्वारा बाज़ार की एकाग्रता और मूल्य हेरफेर को रोकने के लिये एकाधिकारी व्यापार विरोधी कानून लागू किया जाना चाहिये।
- कीमतों को प्रतिस्पर्द्धी बनाए रखने के लिये खाद्य क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को प्रोत्साहित करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रिलिम्स:प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. एक मत यह भी है कि राज्य अधिनियमों के तहत गठित कृषि उत्पाद बाज़ार समितियों (APMCs) ने न केवल कृषि के विकास में बाधा डाली है, बल्कि यह भारत में खाद्य मुद्रस्फीति का कारण भी रही है। समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2014) |
आंतरिक सुरक्षा
रक्षा बलों के बीच एकीकरण
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) ने इस बात पर प्रकाश डाला कि तीनों रक्षा सेवाओं के बीच एकीकरण के लिये नौ कार्यक्षेत्रों की पहचान की गई है जिसमें रसद, खुफिया, सूचना प्रवाह, प्रशिक्षण, प्रशासन, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन और रखरखाव आदि शामिल हैं।
- 'थिएटरीकरण' (परिचालन दक्षता बढ़ाने के लिये एक सामान्य कमांडर के तहत एक ही थिएटर में तीनों सेवाओं की इकाइयों को एकीकृत करना) की प्रक्रिया सशस्त्र बलों द्वारा किये गए पुनर्गठन प्रयास का हिस्सा है, जिसे रक्षा बलों के एकीकरण और एकीकृत थिएटर कमांड के निर्माण के माध्यम से पूरा किया जाएगा।
तीनों रक्षा सेवाओं के बीच एकीकरण (Integration Among Three Defense Services):
- भारत में तीनों रक्षा सेवाओं के एकीकरण में इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड (ITC), चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का कार्यालय, साइबर एवं स्पेस कमांड की स्थापना, संसाधन साझाकरण एवं संयुक्त प्रशिक्षण और अभ्यास सुनिश्चित करना शामिल है।
- इंटीग्रेटेड थिएटर कमांड:
- एकीकृत थियेटर कमांड में सुरक्षा और रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण किसी भौगोलिक क्षेत्र के लिये एक ही कमांड के अधीन तीनों सशस्त्र सेनाओं (थल सेना, वायुसेना और नौसेना) के एकीकृत कमांड की परिकल्पना की गई है।
- इन बलों (थल सेना, वायुसेना और नौसेना) के कमांडर अपनी क्षमताओं और एवं संसाधनों के साथ किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना करने में सक्षम होंगे।
- एकीकृत थिएटर कमांड किसी एक विशिष्ट सेवा के प्रति जवाबदेह नहीं होगा।
- तीनों बलों का एकीकरण संसाधनों के दोहराव को कम करेगा। एक सेवा के तहत उपलब्ध संसाधन को अन्य सेवाओं में भी उपयोग किया जा सकेगा।
- सेनाएँ एक-दूसरे को बेहतर तरीके से जान पाएंगी, जिससे रक्षा प्रतिष्ठान की एकजुटता मज़बूत होगी।
- शेकतकर समिति ने 3 एकीकृत थिएटर कमांड बनाने की सिफारिश की है- चीन सीमा के लिये उत्तरी कमांड, पाकिस्तान सीमा के लिये पश्चिमी कमांड और समुद्री भूमिका के लिये दक्षिणी कमांड।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में संयुक्त कमांड:
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक संयुक्त कमांड है।
- यह भारतीय सशस्त्र बलों का पहला त्रि-सेवा थिएटर कमांड है, जो भारत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पोर्ट ब्लेयर में स्थित है।
- इसका गठन वर्ष 2001 में द्वीपों में सैन्य परिसंपत्तियों की तेज़ी से तैनाती बढ़ाकर दक्षिण-पूर्व एशिया और मलक्का जलडमरूमध्य में भारत के रणनीतिक हितों की रक्षा के लिये किया गया था।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में एक संयुक्त कमांड है।
- अन्य त्रि-सेवा कमांड, स्ट्रैटेजिक फोर्सेज़ कमांड (SFC), देश की परमाणु परिसंपत्तियों की डिलीवरी और परिचालन नियंत्रण की देखभाल करता है।
- वर्तमान स्थिति:
- भारतीय सशस्त्र बलों के पास वर्तमान में 17 कमांड हैं। थल सेना और वायुसेना की 7-7 कमांड हैं। नौसेना के पास 3 कमांड हैं।
- प्रत्येक कमांड का नेतृत्व एक 3-स्टार रैंक का सैन्य अधिकारी करता है।
तीनों सेवाओं के बीच एकीकरण में हाल के विकास:
- CDS की नियुक्ति और सैन्य मामलों के विभाग (DMA) का निर्माण रक्षा बलों के एकीकरण और उन्नति की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।
- विशेष रूप से सैन्य मामलों से संबंधित कार्य DMA के दायरे में आएंगे। पहले ये कार्य रक्षा विभाग (DoD) के अधिदेश थे।
- CDS: जैसा कि वर्ष 1999 में कारगिल समीक्षा समिति द्वारा सुझाया गया था, यह सरकार का एकल-बिंदु सैन्य सलाहकार है।
- यह तीनों सेनाओं के कामकाज़ की देख-रेख और उनका समन्वय करता है।
- DMA के प्रमुख के रूप में CDS को अंतर-सेवा खरीद निर्णयों को प्राथमिकता देने का अधिकार प्राप्त है।
- CDS का महत्त्व:
- सशस्त्र बलों और सरकार के बीच तालमेल: CDS रक्षा मंत्रालय की नौकरशाही और सशस्त्र सेवाओं के बीच बेहतर सहयोग को बढ़ावा देता है।
- संचालन में संयुक्तता: पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (COSC) को निष्क्रिय कर दिया गया है क्योंकि CDS संचालन में अधिक संयुक्तता को बढ़ावा देता है।
- भारतीय वायुसेना (IAF) की चिंताएँ:
- इस मॉडल के संबंध में सेना और नौसेना द्वारा थिएटर कमांड का समर्थन करने के बावजूद IAF को अपनी हवाई संपत्तियों के विभाजन, कमांड के नामकरण, थिएटर कमांड के नेतृत्व एवं प्रमुखों की शक्तियों के कम होने को लेकर चिंता है।
- नई यूनिफार्म:
- ब्रिगेडियर, मेजर जनरल, लेफ्टिनेंट जनरल और जनरल रैंक के सभी अधिकारी एक ही रंग के बेरेट, रैंक के सामान्य बैज, समान बेल्ट बकल एवं जूते पहनेंगे तथा कंधों पर लेन्यार्ड/डोरी को हटाने का प्रस्ताव है।
- हाल ही में लोकसभा में अंतर-सेवा संगठन (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक, 2023 पेश किया गया ताकि नामित सैन्य कमांडरों, चाहे वे किसी भी सेवा से संबंधित हों, को सैनिकों का कार्यभार संभालने और अनुशासन लागू करने का अधिकार दिया जा सके।
अंतर-सेवा संगठन (कमांड, नियंत्रण और अनुशासन) विधेयक, 2023:
- इस प्रणाली में पाँच संयुक्त सेवा कमांड- पश्चिमी, पूर्वी, उत्तरी, समुद्री और वायु रक्षा के शामिल होने की संभावना है।
- केंद्र सरकार एक अंतर-सेवा संगठन का गठन कर सकती है, जिसमें एक संयुक्त सेवा कमांड शामिल हो सकता है।
- यह अंतर-सेवा संगठनों के कमांडर-इन-चीफ/ऑफिसर-इन-कमांड को अनुशासन बनाए रखने एवं थल सेना, नौसेना और वायुसेना के सभी कर्मियों के कर्त्तव्यों का उचित निर्वहन सुनिश्चित करने में सशक्त बनाएगी।
- किसी अंतर-सेवा संगठन का कमांडर-इन-चीफ या ऑफिसर-इन-कमांड ऐसे अंतर-सेवा संगठन का प्रमुख होगा।
सामाजिक न्याय
भारत में अनुसूचित क्षेत्र
प्रिलिम्स के लिये:भारत में अनुसूचित क्षेत्र, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित क्षेत्र और अनुसूचित जनजाति आयोग, अनुच्छेद 244(1), अनुच्छेद 244(2), छठी अनुसूची, स्थानीय स्वशासन मेन्स के लिये:भारत में अनुसूचित क्षेत्र, केंद्र और राज्यों द्वारा आबादी के कमज़ोर वर्गों के लिये कल्याणकारी योजनाएँ व इन योजनाओं का प्रदर्शन |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत की आबादी में अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribes- ST) की हिस्सेदारी 8.6% है, ये भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में निवास करते हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 244 अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन संबंधी एक महत्त्वपूर्ण प्रावधान है।
अनुसूचित क्षेत्र:
- परिचय:
- अनुसूचित क्षेत्र भारत के 11.3% भूमि क्षेत्र को कवर करते हैं, जहाँ भारत की आबादी में 8.6% की हिस्सेदारी वाले अनुसूचित जनजाति समुदाय निवास करते हैं।
- अनुसूचित क्षेत्र वाले घोषित 10 राज्य हैं: आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश।
- वर्ष 2015 में केरल ने 2,133 बस्तियों, पाँच ग्राम पंचायतों और पाँच ज़िलों के दो वार्डों को अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित करने का प्रस्ताव रखा, इसे अभी तक केंद्र सरकार की मंज़ूरी नहीं मिली है।
- अनुसूचित क्षेत्र चिह्नित किये जाने हेतु मानदंड:
- किसी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने वाले मार्गदर्शक मानदंडों में जनजातीय आबादी की प्रधानता, सघनता, आकार, एक प्रशासनिक इकाई के रूप में व्यवहार्यता तथा आसपास के क्षेत्रों की तुलना में आर्थिक पिछड़ापन शामिल हैं।
- वर्ष 2002 के अनुसूचित क्षेत्र और अनुसूचित जनजाति आयोग अथवा भूरिया आयोग ने वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार 40% अथवा इससे अधिक जनजातीय आबादी वाले क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र घोषित करने की सिफारिश की थी।
- संवैधानिक प्रावधान और शासन:
- अनुच्छेद 244 (1) असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अतिरिक्त अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों पर पाँचवीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू करता है।
- अनुच्छेद 244 (2) उपर्युक्त राज्यों पर छठी अनुसूची के प्रावधानों को लागू करता है।
- जनजातीय सलाहकार परिषद: भारत के राष्ट्रपति अनुसूचित क्षेत्रों को अधिसूचित करते हैं और अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्य अनुसूचित जनजाति के कल्याण संबंधी मामलों पर राज्यपाल को सलाह देने के लिये एक जनजातीय सलाहकार परिषद की स्थापना करते हैं।
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996: यह ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने के साथ ही प्रत्यक्ष लोकतंत्र के माध्यम से पर्याप्त अधिकार प्रदान करता है व स्थानीय स्वशासन को प्राथमिकता देता है।
- वर्ष 1995 में अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत राज के विस्तार के प्रावधानों की सिफारिश करने के लिये गठित भूरिया समिति ने अनुसूचित क्षेत्र वाले गाँवों को पंचायती राज में शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन यह कार्य अभी तक नहीं किया गया है।
- भारत के राष्ट्रपति भारत के अनुसूचित क्षेत्रों को अधिसूचित करते हैं। अनुसूचित क्षेत्रों वाले राज्यों को 20 ST सदस्यों वाले एक जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन करना अनिवार्य है।
- यह समीति ST के कल्याण के संबंध में उन्हें भेजे गए मामलों पर राज्यपाल को सलाह देती है। इसके बाद राज्यपाल अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में प्रत्येक वर्ष राष्ट्रपति को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
- वर्ष 1995 में अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत राज के विस्तार के प्रावधानों की सिफारिश करने के लिये गठित भूरिया समिति ने अनुसूचित क्षेत्र वाले गाँवों को पंचायती राज में शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन यह कार्य अभी तक नहीं किया गया है।
अनुसूचित क्षेत्रों से संबंधित चिंताएँ:
- आदिवासी संगठनों की मांगों के बावजूद, भारत की ST आबादी का एक बड़ा हिस्सा (59%) अनुच्छेद 244 के अंतर्गत नहीं आता है, जिससे वे अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होने वाले कानूनों के तहत संरक्षित अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।
- नौकरशाह तंत्र में व्यवहार्य ST-बहुमत प्रशासनिक इकाइयों की अनुपस्थिति एक आम समस्या रही है, जिसके कारण अनुसूचित क्षेत्रों के कुछ हिस्सों को गैर-अधिसूचित करने की मांग उठी है।
- उन्हें भूमि अधिग्रहण, पुनरुद्धार, पुनर्वासन में उचित प्रतिकार तथा पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 और जैविक विविधता अधिनियम, 2002 सहित अनुसूचित क्षेत्रों पर लागू होने वाले कानूनों के तहत संरक्षित किये गये अधिकारों से वंचित किया गया है।
भारत में अनुसूचित जनजातियों से संबंधित प्रावधान:
- परिभाषा:
- भारतीय संविधान में ST की मान्यता के लिये कोई मानदंड परिभाषित नहीं है। जनगणना-1931 के अनुसार, ST को "बहिष्कृत" और "आंशिक रूप से बहिष्कृत" क्षेत्रों में निवास करने वाली "पिछड़ी जनजाति" कहा जाता है।
- सर्वप्रथम प्रांतीय विधानसभाओं में "पिछड़ी जनजातियों" के लिये प्रतिनिधित्व का प्रावधान भारत सरकार अधिनियम 1935 द्वारा लाया गया था।
- संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 366(25) के अनुसार ST की परिभाषा:
- "ST" उन जनजातियों, आदिवासी समुदायों अथवा उन जनजातियों व समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों को संदर्भित करता है, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।
- अनुच्छेद 366(25) के अनुसार ST की परिभाषा:
- कानूनी प्रावधान:
- अस्पृश्यता के विरुद्ध नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955।
- अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989।
- पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (PESA), 1996
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006।
आगे की राह
- सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जहाँ ST सबसे बड़ा सामाजिक समूह है, किंतु उनके आवास अथवा आवासों के समूह अनुसूचित क्षेत्रों के बाहर हैं, उन क्षेत्रों की निकटता पर विचार किये बिना अनुसूचित क्षेत्रों के रूप में अधिसूचित किया जाएगा।
- FRA (वन अधिकार अधिनियम) 2006 के तहत वन भूमि पर "सामुदायिक वन संसाधन" क्षेत्र और राजस्व भूमि के भीतर प्रथागत सीमा, जहाँ लागू हो, को इन गांवों की भौगोलिक सीमाओं में जोड़ा जाना चाहिये। संबंधित राज्य कानूनों में उचित संशोधन से यह संभव हो सकता है।
- राजस्व ग्राम, पंचायत, तालुका और ज़िले की भौगोलिक सीमाओं को फिर से निर्धारित करने की आवश्यकता होगी ताकि ये पूरी तरह से अनुसूचित क्षेत्र बनाए जा सकें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (d) प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची में कुछ राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और नियंत्रण के लिये विशेष प्रावधान हैं?(2008) (a) तीसरा उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) प्रश्न. सरकार ने अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (PESA) अधिनियम को 1996 में अधिनियमित किया। निम्नलिखित में से कौन-सा एक उसके उद्देश्य के रूप में अभिज्ञात नहीं है? (2013) (a) स्वशासन प्रदान करना उत्तर: (c) प्रश्न. अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अधीन, व्यक्तिगत या सामुदायिक वन अधिकारों अथवा दोनों की प्रकृति एवं विस्तार के निर्धारण की प्रक्रिया को प्रारंभ करने के लिये कौन प्राधिकारी होगा? (2013) (a) राज्य वन विभाग उत्तर: (d) प्रश्न. भारत के संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूची में किससे संबंधित प्रावधान हैं? (2015) (a) अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 244, अनुसूचित व आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है। इसकी पाँचवीं सूची का क्रियान्वयन न हो पाने से वामपंथी पक्ष के चरमपंथ पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण कीजिये। (2013) प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद से अनुसूचित जनजातियों (ST) के खिलाफ भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो मुख्य विधिक पहल क्या हैं? (2017) प्रश्न. क्या कारण है कि भारत में जनजातियों को ‘अनुसूचित जनजातियाँ’ कहा जाता है? भारत के संविधान में प्रतिष्ठापित उनके उत्थान के लिये प्रमुख प्रावधानों को सूचित कीजिये। (2016) |
शासन व्यवस्था
भारत में पुलिस जाँच की एक विश्वसनीय संहिता की आवश्यकता
प्रिलिम्स के लिये:भारत का सर्वोच्च न्यायालय, मलिमथ समिति, पुलिस सुधार मेन्स के लिये:भारत में पुलिस व्यवस्था से संबंधित चुनौतियाँ, पुलिस सुधार पर समितियाँ/आयोग। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल के एक फैसले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने दोषियों (जो अपराध या गलत कार्य के लिये दोषी नहीं पाए गए) को बरी करने संबंधी कानूनों में खामियों को नियंत्रित करने हेतु "सुसंगत और भरोसेमंद जाँच संहिता" की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- न्यायालय ने पुलिस जाँच में खामियों का हवाला देते हुए वर्ष 2013 के अपहरण और हत्या मामले में 3 आरोपियों को बरी कर दिया, जिसके बाद ये टिप्पणियाँ आईं।
पुलिस जाँच के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
- सर्वोच्च न्यायालय ने आपराधिक न्याय प्रणाली के सुधारों पर न्यायमूर्ति वी.एस. मलिमथ समिति की वर्ष 2003 की रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें इस तर्क पर ज़ोर दिया गया था कि "दोषियों का सफल अभियोजन सत्य की गहन और सावधानीपूर्वक खोज एवं साक्ष्यों के संग्रह पर निर्भर करता है जो स्वीकार्य व संभावित दोनों हैं"।
- न्यायालय ने वर्ष 2012 में भारत के विधि आयोग की रिपोर्ट का हवाला देकर कहा कि दोषसिद्धि की कम दर के कारणों में "पुलिस द्वारा अयोग्य, अवैज्ञानिक जाँच और पुलिस एवं अभियोजन के बीच उचित समन्वय की कमी" शामिल है।
भारत में सुसंगत और विश्वसनीय पुलिस जाँच संहिता की आवश्यकता:
- पुलिस जाँच में उन खामियों को रोकने के लिये, जिसके कारण तकनीकी आधार पर दोषियों को बरी कर दिया जाता है, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने उजागर किया है।
- जाँच और साक्ष्य संग्रह के मानकों में सुधार करने के लिये, जो अक्सर अयोग्य एवं अवैज्ञानिक होते हैं, जैसा कि भारत के विधि आयोग ने बताया है।
- आपराधिक न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता और वैधता को बढ़ाने के लिये, जो अक्सर भ्रष्टाचार, राजनीतिक हस्तक्षेप एवं मानवाधिकारों के उल्लंघन से प्रभावित होती है।
- अपराधियों के खिलाफ सफल अभियोजन सुनिश्चित करने के लिये, विशेषकर हत्या, बलात्कार, आतंकवाद आदि जैसे गंभीर अपराधों से जुड़े मामलों में।
- पीड़ितों, गवाहों और आरोपियों के अधिकारों एवं हितों की रक्षा करने के लिये, जिन्हें अक्सर जाँच प्रक्रिया के दौरान उत्पीड़न, धमकी तथा ज़बरदस्ती का सामना करना पड़ता है।
भारत में पुलिस जाँच के लिये मलिमथ समिति की सिफारिशें:
- परिचय:
- मलिमथ समिति की स्थापना वर्ष 2000 में गृह मंत्रालय द्वारा की गई थी, जिसका उद्देश्य भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार करना था। इसने वर्ष 2003 में “आपराधिक न्याय प्रणाली के सुधार पर समिति की रिपोर्ट” नामक अपनी रिपोर्ट में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत कीं।
- समिति की अध्यक्षता कर्नाटक और केरल उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी.एस. मलिमथ ने की।
- समिति की राय थी कि मौजूदा प्रणाली "अभियुक्तों के पक्ष में है और अपराध के पीड़ितों को न्याय दिलाने पर पर्याप्त ध्यान केंद्रित नहीं करती है।"
- पुलिस जाँच के लिये सिफारिशें:
- पैनल ने जिज्ञासु जाँच प्रणाली के तत्त्वों को शामिल करने का सुझाव दिया जिसका उपयोग फ्राँस और जर्मनी जैसे देशों में किया जाता है और इसकी निगरानी न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है।
- समिति ने जाँच विभाग को विधि एवं व्यवस्था से अलग करने का सुझाव दिया।
- इसने जाँच की गुणवत्ता में सुधार करने की दिशा में राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग और राज्य सुरक्षा आयोगों की स्थापना की भी सिफारिश की।
- इसने कई उपायों का सुझाव दिया, जिसमें अपराध डेटा की देखरेख करने के लिये प्रत्येक ज़िले में एक अतिरिक्त SP की नियुक्ति, संगठित अपराध से निपटने के लिये विशेष दस्तों का संगठन और अंतर-राज्य या अंतर्राष्ट्रीय अपराधों की जाँच के लिये अधिकारियों की एक टीम के आलावा पोस्टिंग, स्थानांतरण आदि से निपटने के लिये एक पुलिस स्थापना बोर्ड का गठन करना शामिल है।
- पुलिस हिरासत को अब 15 दिनों तक सीमित कर दिया गया है। समिति ने सुझाव दिया कि इसे 30 दिनों तक बढ़ा दिया जाए और गंभीर अपराधों के मामले में चार्ज शीट दाखिल करने के लिये 90 दिनों का अतिरिक्त समय दिया जाए।
अपराधिक न्याय प्रणाली:
- आपराधिक न्याय प्रणाली कानूनों, प्रक्रियाओं एवं संस्थानों का समूह है जिसका उद्देश्य सभी लोगों के अधिकारों और सुरक्षा को सुनिश्चित करते हुए अपराधों को रोकना, उनका पता लगाना, मुकदमा चलाना तथा दंडित करना है।
- इसकी चार उपप्रणालियाँ हैं:
- विधानमंडल (संसद)
- प्रवर्तन (पुलिस)
- न्यायनिर्णयन (न्यायालय)
- सुधार (कारावास, सामुदायिक सुविधाएँ)
- भारत की आपराधिक न्याय प्रणालियों का विकास विभिन्न शासकों के अधीन हुआ है, भारत में आपराधिक कानूनों को ब्रिटिश शासन के दौरान संहिताबद्ध किया गया था, जो आज भी काफी हद तक अपरिवर्तित हैं। बाद में 1833 के चार्टर अधिनियम के तहत वर्ष 1834 में स्थापित पहले कानून आयोग के अनुसार वर्ष 1860 में भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) का मसौदा तैयार किया गया था।
- दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC) भारत में आपराधिक कानून के प्रशासन के लिये प्रक्रियाएँ प्रदान करती है। इसे वर्ष 1973 में अधिनियमित किया गया और यह 1 अप्रैल 1974 को प्रभावी हुआ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित में से किस सुधार के लिये भारत सरकार द्वारा वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया था? (2008) (a) पुलिस सुधार उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न भारत में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एन.एच.आर.सी.) सर्वाधिक प्रभावी तभी हो सकता है, जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने वाले अन्य याँत्रिकत्वों (मकैनिज़्म) द्वारा पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिपण्णी के प्रकाश में, मानव अधिकार मानकों की प्रोन्नति करने और उनकी रक्षा करने में, न्यायपालिका और अन्य संस्थानों के प्रभावी पूरक के रूप में एन.एच.आर.सी की भूमिका का आकलन कीजिये। (2014) |
शासन व्यवस्था
OTT प्लेटफार्मों का विनियमन
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI), न्यायाधिकरण, दूरसंचार विवाद निपटान अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT), ओवर-द-टॉप (OTT)। मेन्स के लिये:ओ.टी.टी. प्लेटफार्मों को उनकी विकसित और गतिशील प्रकृति, न्यायाधिकरण, विवाद निवारण तंत्र के कारण विनियमित करने में सरकार के सामने आने वाली चुनौतियाँ। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
दूरसंचार विवाद निपटान अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) ने फैसला सुनाया है कि हॉटस्टार जैसे ओवर द टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं तथा ये इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी (MeitY) मंत्रालय द्वारा अधिसूचित सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 द्वारा शासित हैं।
- TDSAT के अनुसार OTT प्लेटफॉर्म ट्राई अधिनियम, 1997 के दायरे से बाहर हैं क्योंकि उन्हें केंद्र सरकार से किसी अनुमति या लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है।
- यह आदेश ऑल इंडिया डिजिटल केबल फेडरेशन (AIDCF) द्वारा स्टार इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (STAR) के खिलाफ एक याचिका की प्रतिक्रिया के रूप में था।+ AIDCF ने स्टार द्वारा हॉटस्टार पर विश्व कप मैचों की मुफ्त स्ट्रीमिंग को चुनौती देते हुए दावा किया कि यह अनुचित और TRAI नियमों के खिलाफ है।
ओटीटी प्लेटफॉर्म रेग्युलेशन पर विवाद:
- MoC और MeitY के बीच संघर्ष:
- दूरसंचार नियामक ट्राई और दूरसंचार विभाग (DoT), संचार मंत्रालय (MoC) का MeitY के साथ विवाद हो गया कि ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफार्मों को किसे विनियमित करना चाहिये, क्योंकि देश में इंटरनेट आधारित संचार सेवाओं के लिये नियामक ढाँचे की प्रकृति को लेकर बहस चल रही है।
- DoT ने ओ.टी.टी प्लेटफार्मों को दूरसंचार सेवाओं के रूप में वर्गीकृत करने और उन्हें दूरसंचार ऑपरेटरों की तरह विनियमित करने की मांग की।
- ट्राई ने ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म को कैसे विनियमित किया जाए, इस पर अलग से एक परामर्श पत्र जारी किया है।
- दूरसंचार विभाग के साथ सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की असहमति:
- सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का मानना है कि व्यापार नियमों के आवंटन के तहत, इंटरनेट आधारित संचार सेवाएँ DoT के अधिकार क्षेत्र का हिस्सा नहीं हैं।
- हालाँकि इस मामले में चर्चा व्हाट्सएप जैसी ओटीटी संचार सेवाओं के आसपास केंद्रित है।
- TRAI द्वारा OTT सेवाओं को विनियमित करने का प्रयास:
- TRAI ने सबसे पहले व्हाट्सएप, ज़ूम और गूगल मीट जैसी ओ.टी.टी. संचार सेवाओं के लिये एक विशिष्ट नियामक ढाँचे के निर्माण के विरुद्ध सिफारिश की थी।
- वर्तमान में TRAI द्वारा इन सेवाओं को विनियमित करने पर पुनर्विचार करने के रुख के कारण विभिन्न संबद्ध मंत्रलायों और विभागों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया है।
ओटीटी (OTT) प्लेटफाॅर्म:
- परिचय:
- ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म ऑडियो तथा वीडियो होस्टिंग और स्ट्रीमिंग सेवाएँ हैं, ये शुरू-शुरू में कंटेंट होस्टिंग प्लेटफॉर्म थे, लेकिन बाद में ये लघु फिल्मों, फीचर फिल्मों, वृत्तचित्रों व वेब-सीरीज़ के निर्माण एवं रिलीज तक विस्तारित हो गया।
- ये प्लेटफॉर्म विभिन्न प्रकार के कंटेंट प्रदान करते हैं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करके उपयोगकर्त्ताओं को उनके द्वारा देखे जाने वाले कंटेंट की प्रकृति एवं प्रकार के आधार पर अन्य कंटेंट का सुझाव देता है।
- सेवाएँ:
- अधिकांश ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म पर कुछ कंटेंट निःशुल्क होते हैं और कुछ ऐसे कंटेंट जो आम तौर पर अन्यत्र उपलब्ध नहीं होते हैं, जिन्हें प्रीमियम कंटेंट कहा जाता है, के लिये मासिक सदस्यता शुल्क का भुगतान करना पड़ता है।
- प्रीमियम कंटेंट का निर्माण और विपणन आमतौर पर ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म द्वारा स्वयं स्थापित प्रोडक्शन हाउसों के सहयोग से किया जाता है।
- उदाहरण:
- नेटफ्लिक्स, डिज़्नी+, हुलु, अमेज़ॅन प्राइम वीडियो, पीकॉक, क्यूरियोसिटीस्ट्रीम, प्लूटो टीवी एवं अन्य।
- ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म को विनियमित करने वाले कानून:
- वर्ष 2022 में केंद्र सरकार ने ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म को विनियमित करने के लिये सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 अधिसूचित किया।
सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021:
- सोशल मीडिया द्वारा अधिक सतर्कता बरता जाना:
- मुख्य तौर पर आईटी नियम (2021) सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म को अपने प्लेटफाॅर्म पर कंटेंट/सामग्री के संबंध में अधिक सतर्कता बरतने का आदेश देता है।
- ये नियम ओ.टी.टी. प्लेटफाॅर्म के लिये आचार संहिता और त्रि-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र के साथ एक सॉफ्ट-टच स्व-नियामक तंत्र स्थापित करते हैं।
- साथ ही प्रत्येक प्रसारक को सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ पंजीकृत एक स्व-नियामक निकाय का सदस्य बनना होगा तथा संबद्ध शिकायतों का समाधान करना होगा।
- शिकायत निवारण तंत्र:
- प्लेटफाॅर्म के निवारण तंत्र के शिकायत अधिकारी का कार्य उपयोगकर्त्ताओं की शिकायतें दर्ज करना और उनका समाधान करना है।
- उससे 24 घंटे के अंदर शिकायत की प्राप्ति की सूचना देने और 15 दिनों के अंदर उचित तरीके से उसका निपटान करने की अपेक्षा की जाती है।
- प्लेटफॉर्म पर किसी अन्य माध्यम से इसकी पहुँच और प्रसार को भी अक्षम किया जाना चाहिये।
- प्लेटफाॅर्म के निवारण तंत्र के शिकायत अधिकारी का कार्य उपयोगकर्त्ताओं की शिकायतें दर्ज करना और उनका समाधान करना है।
- गोपनीयता नीतियाँ:
- सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की गोपनीयता नीतियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि उपयोगकर्त्ताओं को कॉपीराइट सामग्री और ऐसी किसी भी चीज़ को प्रसारित न करने के विषय में शिक्षित किया जाता है जिसे अपमानजनक, नस्लीय या जातीय रूप से आपत्तिजनक, पैडोफिलिक के रूप में माना जा सकता है, जो भारत की एकता, अखंडता, रक्षा, सुरक्षा या संप्रभुता को हानि पहुँचा सकती हैं या विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध या किसी भी समकालीन कानून का उल्लंघन करती हैं।
दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण (Telecom Disputes Settlement and Appellate Tribunal- TDSAT):
- स्थापना:
- TRAI अधिनियम, 1997 में संशोधन: TRAI अधिनियम को वर्ष 2000 में संशोधित किया गया, जिसने TRAI के न्यायिक और विवादपूर्ण कार्यों को संभालने के लिये एक दूरसंचार विवाद निपटान एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) की स्थापना की।
- उद्देश्य: TDSAT की स्थापना निम्नलिखित के बीच किसी भी विवाद का निपटारा करने हेतु की गई थी:
- एक लाइसेंसकर्त्ता और एक लाइसेंसधारी
- दो या दो से अधिक सेवा प्रदाता
- एक सेवा प्रदाता और उपभोक्ताओं का एक समूह
- इसकी स्थापना TRAI के किसी भी निर्देश, निर्णय या आदेश के विरुद्ध अपील सुनने और निपटाने के लिये भी की गई थी।
- संरचना:
- TDSAT में एक अध्यक्ष और दो अन्य सदस्य होते हैं, जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाती है।
- सदस्यों का चयन भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
- संरचना:
- न्यायाधिकरण में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त एक अध्यक्ष और दो सदस्य होते हैं।
- पात्रता:
- अध्यक्ष: कोई व्यक्ति अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति के लिये तब तक योग्य नहीं होगा जब तक कि वह सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश न हो।
- अन्य सदस्य: वह भारत सरकार में सचिव या केंद्र/राज्य सरकार में किसी समकक्ष पद पर रहा हो।
- कार्यालय की अवधि: TDSAT के अध्यक्ष और अन्य सदस्य अधिकतम चार वर्ष या सत्तर वर्ष (अध्यक्ष के लिये), जो भी पहले हो, की अवधि के लिये पद पर बने रहेंगे।
- अध्यक्ष के अलावा अन्य सदस्यों के मामले में अधिकतम आयु पैंसठ वर्ष है।
- TDSAT की शक्तियाँ और अधिकार क्षेत्र:
- सिविल कोर्ट/नागरिक न्यायालयों के पास किसी भी मामले पर विचार करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है जिसके पास TDSAT को निर्धारित करने का अधिकार हो।
- TDSAT द्वारा पारित आदेश सिविल कोर्ट के डिक्री(किसी सक्षम न्यायालय के निर्णय की औपचारिक अभिव्यक्ति) के रूप में निष्पादन योग्य है, ट्रिब्यूनल के पास सिविल कोर्ट की सभी शक्तियाँ होती हैं।
- यह सिविल प्रक्रिया संहिता द्वारा निर्धारित प्रक्रिया से बंधा नहीं है बल्कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है।
- TRAI अधिनियम, 1997 (संशोधित), सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2008 और भारतीय विमान पत्तन आर्थिक नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 2008 के तहत ट्रिब्यूनल द्वारा दूरसंचार, प्रसारण, IT और विमान पत्तन के टैरिफ मामलों पर अधिकार क्षेत्र का प्रयोग किया जाता है।
- वर्ष 2004 में प्रसारण और केबल सेवाओं को शामिल करने के लिये TRAI अधिनियम का दायरा बढ़ाया गया था। इसके अलावा वर्ष 2017 में वित्त अधिनियम के बाद TDSAT के अधिकार क्षेत्र को उन मामलों को शामिल करने के लिये बढ़ा दिया गया था जो पहले साइबर अपीलीय न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र में थे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में दूरसंचार, बीमा, विद्युत् आदि जैसे क्षेत्रकों में स्वतंत्र नियामकों का पुनरीक्षण निम्नलिखित में से कौन करते/करती हैं? (2019)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. सूचना प्रौद्योगिकी समझौतों (ITA) का उद्देश्य हस्ताक्षरकर्त्ताओं द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर सभी करों और प्रशुल्कों को कम करके शून्य पर लाना है। ऐसे समझौतों का भारत के हितों पर क्या प्रभाव होगा? (2014) |
सामाजिक न्याय
ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023
प्रिलिम्स के लिये:ग्लोबल हंगर इंडेक्स, ईट राइट इंडिया मूवमेंट, पोषण अभियान (राष्ट्रीय पोषण मिशन), प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013, मिशन इंद्रधनुष, समेकित बाल विकास सेवा योजना मेन्स के लिये:भारत में गरीबी और भुखमरी से संबंधित मुद्दे |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
वर्ल्डवाइड और वेल्थुंगरहिल्फ द्वारा संयुक्त रूप से जारी किये गए वैश्विक भुखमरी सूचकांक/ग्लोबल हंगर इंडेक्स, 2023 में भारत 125 देशों में से 111वें स्थान पर है, यह भारत में भुखमरी के गंभीर स्तर को दर्शाता है।
- इस इंडेक्स में भारत के पडोसी देशों; पाकिस्तान (102वें), बांग्लादेश (81वें), नेपाल (69वें) और श्रीलंका (60वें) ने भारत से बेहतर स्थान हासिल किया।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक:
- परिचय:
- वैश्विक भूख सूचकांक (Global Hunger Index- GHI) एक सहकर्मी-समीक्षा रिपोर्ट है, जिसे कंसर्न वर्ल्डवाइड और वेल्थुंगरहिल्फे द्वारा वार्षिक आधार पर प्रकाशित किया जाता है।
- GHI एक उपकरण है जिसे वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर भूख को व्यापक रूप से मापने और ट्रैक करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो समय के साथ भूख के कई आयामों को दर्शाता है।
- GHI स्कोर की गणना भूख की गंभीरता को दर्शाते हुए 100-बिंदु पैमाने पर की जाती है- 0 सबसे अच्छा स्कोर है और 100 सबसे खराब स्कोर को दर्शाता है।
नोट: कंसर्न वर्ल्डवाइड एक अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी संगठन है जो विश्व के सबसे गरीब देशों में गरीबी और पीड़ा से निपटने के लिये समर्पित है।
- वेल्थुंगरहिल्फे जर्मनी में एक निजी सहायता संगठन है। इसकी स्थापना वर्ष 1962 में "फ्रीडम फ्रॉम हंगर कैंपेन " के जर्मन खंड के रूप में की गई थी।
- गणना:
- प्रत्येक देश के GHI स्कोर की गणना एक सूत्र के आधार पर की जाती है जो चार संकेतकों को जोड़ता है, जो भूख की बहुआयामी प्रकृति को रेखांकित करते हैं:
- अल्पपोषण: जनसंख्या का वह हिस्सा जिसका कैलोरी सेवन अपर्याप्त है;
- चाइल्ड स्टंटिंग: पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों से संबंधित आंकड़ों की हिस्सेदारी उनकी उम्र के अनुसार कम है, जो दीर्घकालिक कुपोषण को दर्शाता है;
- चाइल्ड वेस्टिंग: पाँच वर्ष से कम उम्र के ऐसे बच्चों की हिस्सेदारी, जिनका वज़न उनकी लंबाई के अनुसार कम है, गंभीर कुपोषण को दर्शाता है;
- शिशु मृत्यु दर: अपने पाँचवें जन्मदिन से पहले मरने वाले बच्चों की हिस्सेदारी, अपर्याप्त पोषण और अस्वास्थ्यकर वातावरण की गंभीर स्थिति दर्शाती है।
- प्रत्येक देश के GHI स्कोर की गणना एक सूत्र के आधार पर की जाती है जो चार संकेतकों को जोड़ता है, जो भूख की बहुआयामी प्रकृति को रेखांकित करते हैं:
- सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के साथ संरेखण:
- अल्पपोषण की व्यापकता SDG 2.1 का एक संकेतक है, जो सभी के लिये सुरक्षित, पौष्टिक और पर्याप्त भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
- बच्चों का बौनापन और दुबलापन दर SDG 2.2 के संकेतक हैं, जिसका लक्ष्य सभी प्रकार के कुपोषण को समाप्त करना है।
- शिशु मृत्यु को कम करना SDG 3.2 का लक्ष्य है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स, 2023 के प्रमुख बिंदु:
- भारत का GHI स्कोर:
- स्कोर विश्लेषण:
- वर्ष 2023 में भारत का GHI स्कोर 28.7 है, जिसे GHI भुखमरी की गंभीरता के मापदंड के अनुसार "गंभीर" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- यह भारत के वर्ष 2015 के GHI स्कोर 29.2 में सुधार को दर्शाता है।
- इसके अतिरिक्त, वर्ष 2000 में 38.4 और वर्ष 2008 में 35.5 के चिंताजनक GHI स्कोर की तुलना में भारत ने महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
- वर्ष 2023 में भारत का GHI स्कोर 28.7 है, जिसे GHI भुखमरी की गंभीरता के मापदंड के अनुसार "गंभीर" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- संबंधित डेटा और संदर्भ:
- बच्चों में बौनापन 35.5% प्रचलित है (भारत का राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) 2019-2021)
- भारत में अल्पपोषण की व्यापकता 16.6% है (विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति रिपोर्ट 2023)
- भारत में बच्चों में वेस्टिंग दर लगभग 18.7% (भारत का NFHS, 2019-21) है, जो रिपोर्ट में सभी देशों में सबसे अधिक है।
- पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर 3.1% है (बाल मृत्यु अनुमान के लिये संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी समूह जनवरी 2023)
- स्कोर विश्लेषण:
- भुखमरी का वैश्विक रुझान:
- GHI 2023 रिपोर्ट के अनुसार, बेलारूस, बोस्निया और हर्जेगोविना, चिली, चीन शीर्ष रैंक वाले देशों हैं (यानी यहाँ भुखमरी का स्तर निम्न है ) और यमन, मेडागास्कर, मध्य अफ्रीकी गणराज्य सूचकांक में सबसे नीचे हैं।
- समग्र विश्व के लिये GHI 2023 स्कोर 18.3 है, जिसे मध्यम (Moderate) माना जाता है, वर्ष 2015 के बाद से इसमें न्यूनतम सुधार हुआ है।
- वर्ष 2017 के बाद से अल्पपोषण (Undernourishment) की व्यापकता 572 मिलियन से बढ़कर लगभग 735 मिलियन हो गई है।
- GHI ने स्थिरता के लिये जलवायु परिवर्तन, संघर्ष, आर्थिक आघात, कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध सहित विभिन्न संकटों को उत्तरदायी माना है।
- इन संकटों ने सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को बढ़ा दिया है एवं विश्व भर में भुखमरी कम करने की प्रगति में बाधा उत्पन्न की है।
GHI रिपोर्ट 2023 पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया:
- कार्यप्रणाली की आलोचना: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने रिपोर्ट की पद्धति के विषय में चिंता जताई है, जिसमें "गंभीर पद्धतिगत मुद्दे" और "दुर्भावनापूर्ण इरादे" पर प्रकाश डाला गया है।
- सरकार के पोषण ट्रैकर के डेटा से पता चलता है कि बच्चों में वेस्टिंग की दर 7.2% से कम है, जो GHI के 18.7% के रिपोर्ट किये गए आँकड़ों के विपरीत है।
- बाल स्वास्थ्य पर ध्यान: सरकार ने कहा कि चार GHI संकेतकों में से तीन बच्चों के स्वास्थ्य से संबंधित हैं और पूरी जनसंख्या का पूर्ण प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं।
- न्यूनतम आबादी सर्वेक्षण: सरकार ने "कुपोषित जनसंख्या का अनुपात" संकेतक की सटीकता के विषय में संदेह व्यक्त किया, क्योंकि यह एक कम आबादी पर किये गये सर्वेक्षण पर आधारित है।
- जटिल कारक: सरकार का तर्क है कि स्टंटिंग और वेस्टिंग जैसे संकेतक स्वच्छता, आनुवंशिकी, पर्यावरण और भोजन उपयोग सहित विभिन्न जटिल कारकों के परिणाम हैं तथा केवल भुखमरी के लिये ज़िम्मेदार नहीं हैं।
- सरकार ने यह भी बताया कि शिशु मृत्यु दर केवल भुखमरी का परिणाम नहीं हो सकती है, यह दर्शाता है कि अन्य कारक भी इसमें भूमिका निभा रहे हैं।
भुखमरी से संबंधित अन्य शब्द:
शब्द |
परिभाषा |
अल्पपोषण (Undernourishment) |
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कुपोषण (Undernutrition) |
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अनाहार/दुर्भिक्ष (Famine) |
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भारत में भुखमरी के लिये ज़िम्मेदार कारक
- सामाजिक आर्थिक असमानताएँ और गरीबी: व्यापक गरीबी और सामाजिक आर्थिक असमानताएँ भारत में भुखमरी के मूलभूत निर्धारक हैं।
- गरीबी के कारण अपर्याप्त भोजन ,आवश्यक पोषण तथा स्वास्थ्य सेवाएँ वहन करने में समस्या उत्पन्न होती है।
- प्रच्छन्न भुखमरी: भारत गंभीर सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी (जिसे प्रच्छन्न भुखमरी के रूप में भी जाना जाता है) का सामना कर रहा है।
- इस समस्या के कई कारण हैं, जिनमें खराब आहार, बीमारी और गर्भावस्था तथा स्तनपान के दौरान सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की ज़रूरतों को पूरा करने में विफलता शामिल है।
- अकुशल कृषि पद्धतियाँ और खाद्य वितरण: कृषि पद्धतियों में अक्षमताएँ, जिनमें इष्टतम से कम फसल की पैदावार और फसल के बाद के नुकसान शामिल हैं जो अपर्याप्त खाद्य उपलब्धता में योगदान करती हैं।
- इसके अलावा खाद्य वितरण और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में बाद में हुई कमी ने कमज़ोर आबादी तक भोजन के प्रवाह को प्रतिबंधित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भोजन की कमी और कीमतें बढ़ गई , जो गरीबों को असंगत रूप से प्रभावित करती हैं।
- लैंगिक असमानता और पोषण संबंधी असमानताएँ: लिंग आधारित असमानताएँ भारत में भूख और कुपोषण की समस्या को बढ़ाती हैं।
- महिलाओं और लड़कियों को अक्सर घरों में भोजन की असमान पहुँच का अनुभव होता है, उन्हें छोटे हिस्सा या कम गुणवत्ता वाला आहार मिलता है।
- यह असमानता, मातृ एवं शिशु देखभाल की मांग के साथ मिलकर उन्हें उच्च पोषण संबंधी जोखिमों में डालती है, जिससे दीर्घकालिक कुपोषण की स्थिति उत्पन्न होती है।
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय तनाव: भारत जलवायु परिवर्तन से संबंधित पर्यावरणीय तनावों, जैसे बदलते मौसम पैटर्न, विषम मौसम की घटनाओं और प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अतिसंवेदनशील है।
- ये कारक कृषि उत्पादन को बाधित कर सकते हैं, जिससे फसल बर्बाद हो सकती है और भोजन की कमी हो सकती है।
- पोषण संबंधी कार्यक्रमों के लिये लेखापरीक्षा का अभाव: यद्यपि देश में पोषण में सुधार के मुख्य घटक के साथ कई कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है, लेकिन स्थानीय शासन स्तर पर पोषण संबंधी लेखापरीक्षा तंत्र न्यूनतम या इसका अभाव है।
भुखमरी के उन्मूलन हेतु भारत की पहलें:
आगे की राह
- सामाजिक लेखापरीक्षण और जागरूकता: पोषण पर जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ, स्थानीय अधिकारियों को शामिल करते हुए सभी ज़िलों में मध्याह्न भोजन योजना के सामाजिक लेखापरीक्षण को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- कार्यक्रम की बेहतर निगरानी के लिये सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाना चाहिये।
- समुदाय-संचालित पोषण शिक्षा कार्यक्रमों की शुरुआत की जानी चाहिये जो संतुलित आहार, भोजन तैयार करने और स्थानीय भाषाओं में पोषण के महत्त्व के बारे में जागरूकता को बढ़ाते हैं, विशेष रूप से महिलाओं एवं बच्चों को लक्षित करते हुए।
- PDS योजना का विस्तार: पौष्टिक भोजन की उपलब्धता में पारदर्शिता, विश्वसनीयता और वहनीयता को बढ़ाने के लिये सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को पुनर्जीवित किया जाना चाहिये, जिससे आर्थिक रूप से वंचित लोगों को लाभ होगा।
- भोजन की बर्बादी को कम कर भुखमरी का निराकरण: भंडारण और शीत भंडारण सुविधाओं में सुधार करके भोजन की बर्बादी के मुद्दों का समाधान करने की आवश्यकता है।
- इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रेफ्रिज़रेशन के अनुसार, यदि विकासशील देशों में विकसित देशों के समान स्तर का प्रशीतन बुनियादी ढाँचा उपलब्ध होता, तो वे 200 मिलियन टन भोजन या अपनी खाद्य आपूर्ति का लगभग 14% भाग बचा पाने में सक्षम होते, जिससे भुखमरी और कुपोषण से निपटने में मदद मिलती।
- मोबाइल पोषण क्लीनिक: मोबाइल पोषण क्लीनिक जैसी सुविधाओं की शुरुआत की जानी चाहिये जो बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य मूल्यांकन, आहार परामर्श तथा उन्हें पूरक आहार प्रदान करने के लिये सुदूर व वंचित क्षेत्रों का दौरा करें।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना के लिये IFPRI द्वारा उपयोग किये जाने वाले संकेतक निम्नलिखित में से कौन सा/से है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न: खाद्य सुरक्षा विधेयक से भारत में भूख और कुपोषण समाप्त होने की उम्मीद है। विश्व व्यापार संगठन में उत्पन्न चिंताओं के साथ-साथ इसके प्रभावी कार्यान्वयन में विभिन्न आशंकाओं पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिये। (वर्ष 2013) |