जैव विविधता और पर्यावरण
ग्रेट निकोबार आइलैंड प्रोजेक्ट से संबंधित चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:ग्रेट निकोबार द्वीप (GNI), गैलेथिया खाड़ी, उष्णकटिबंधीय वर्षावन, लेदरबैक समुद्री कछुआ, गैलेथिया खाड़ी वन्यजीव अभयारण्य, तटीय विनियमन क्षेत्र, अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT), समुद्री भारत विज़न 2030। मेन्स के लिये:ग्रेट निकोबार द्वीप (GNI) परियोजना से संबंधित चिंताएँ और आगे की राह। |
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
चर्चा में क्यों?
ग्रेट निकोबार (GNI) पर प्रस्तावित 80,000 करोड़ रुपए की मेगा बुनियादी ढाँचा परियोजना के संदर्भ में पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं ने गंभीर चिंता व्यक्त की है।
- नीति आयोग की देखरेख में शुरू की गई इस परियोजना में गैलेथिया खाड़ी में एक ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा, एक ग्रीनफील्ड टाउनशिप और एक गैस-संचालित संयंत्र के साथ एक पर्यटन परियोजना शामिल है।
ग्रेट निकोबार आइलैंड प्रोजेक्ट से संबंधित चिंताएँ:
- पर्यावरणीय चिंता:
- वनोन्मूलन: इस परियोजना से लगभग 130 वर्ग किलोमीटर उष्णकटिबंधीय वर्षावन नष्ट होने से जैवविविधता की हानि के साथ पारिस्थितिक असंतुलन को बढ़ावा मिलेगा।
- पेड़ों की कटाई का प्रारंभिक अनुमान (8.65-9.64 लाख) वास्तविक संख्या से काफी कम पाया गया है, जो संभवतः 10 मिलियन पेड़ों से अधिक हो सकता है।
- वन्यजीवों पर प्रभाव: इस परियोजना से गैलेथिया खाड़ी वन्यजीव अभयारण्य (WLS) में लेदरबैक समुद्री कछुआ जैसी प्रजातियों को खतरा है।
- गैलेथिया खाड़ी वन्यजीव अभयारण्य (जिसे वर्ष 1997 में समुद्री कछुआ संरक्षण हेतु नामित किया गया था) को वर्ष 2021 में बंदरगाह के लिये डिनोटिफाइड किया गया, जो भारत की समुद्री कछुआ कार्य योजना (2021) के विपरीत है।
- प्रतिपूरक वनरोपण मुद्दे: प्राचीन निकोबार वनों की क्षतिपूर्ति, हरियाणा और मध्य प्रदेश में भूमि से की जा रही है, जिससे नष्ट हुई जैवविविधता की भरपाई नहीं हो पाती है।
- प्रवाल भित्तियों का विनाश: समुद्र तट तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ 1a) के अंतर्गत आता है, जिससे जहाज़ मरम्मत एवं अन्य औद्योगिक गतिविधियाँ समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा बन जाती हैं।
- वनोन्मूलन: इस परियोजना से लगभग 130 वर्ग किलोमीटर उष्णकटिबंधीय वर्षावन नष्ट होने से जैवविविधता की हानि के साथ पारिस्थितिक असंतुलन को बढ़ावा मिलेगा।
- विधिक चिंताएँ:
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त शेखर सिंह आयोग की 2002 की रिपोर्ट में जनजातीय आरक्षित क्षेत्रों और राष्ट्रीय उद्यानों में वृक्षों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने और कटाई से पहले वनरोपण की सिफारिश की गई थी, लेकिन इस नियम का पालन नहीं किया गया।
- जनजातीय परामर्श का अभाव: यह परियोजना शोम्पेन जैसे जनजातीय समुदायों के अधिकारों और अस्तित्त्व की उपेक्षा करती है, जिनका अस्तित्त्व इन वनों से गहराई से जुड़ा हुआ है।
- पारदर्शिता का अभाव: सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए पर्यावरणीय मंजूरी के विवरण को रोक रखा है, लेकिन विशेषज्ञों का तर्क है कि केवल हवाई अड्डे का ही रक्षा संबंध है, संपूर्ण परियोजना का नहीं।
- सरकार का दृष्टिकोण:
- विरोधाभासी दृष्टिकोण: गृह मंत्रालय परियोजना के विवरण को रोकने के लिये सुरक्षा चिंताओं का हवाला देता है, जबकि जहाज़रानी मंत्रालय उच्च स्तरीय पर्यटन को बढ़ावा देता है, जिससे रणनीतिक विरोधाभास उत्पन्न होता है।
- अनियोजित परिवर्द्धन: क्रूज टर्मिनल, जहाज़ निर्माण और EXIM बंदरगाहों जैसे नए परिवर्द्धन पर्यावरण पर अतिरिक्त दबाव उत्पन्न कर सकते हैं।
- वर्ष 2021 से वर्ष 2024 तक ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल की लागत 20% बढ़ गई। क्रूज़ टर्मिनल और जहाज़-मरम्मत सुविधाओं जैसे नए अतिरिक्त के साथ इसे और बढ़ाने की संभावना है।
नोट: तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना 2019 के तहत उपश्रेणी CRZ 1A में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील तटीय क्षेत्र शामिल हैं, जैसे जैवविविधता और स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण प्रवाल भित्तियों की उपस्थिति।
- शेखर सिंह आयोग की रिपोर्ट (वर्ष 2002) ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में विकासात्मक गतिविधियों के पर्यावरणीय और सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभावों का आकलन किया।
भारत के लिये ग्रेट निकोबार आइलैंड प्रोजेक्ट का क्या महत्त्व है?
- सामरिक महत्त्व: मलक्का, सुंडा और लोंबोक जलडमरूमध्य के निकट निकोबार का सामरिक स्थिति भारत को वैश्विक व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति के लिये महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों की निगरानी करने की अनुमति देता है।
- यह भारत की एक्ट ईस्ट पाॅलिसी 2014 और क्वाड की हिंद-प्रशांत रणनीति के अनुरूप है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा को मज़बूत करता है।
- एक ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा रक्षा तैनाती में तेज़ी लाएगा, जिससे चीनी नौसैनिक गतिविधि पर निगरानी रखने में भारत की क्षमता मज़बूत होगी।
- आर्थिक महत्त्व: अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल (ICTT) से सिंगापुर और कोलंबो जैसे विदेशी पत्तनों पर भारत की निर्भरता कम होने और भारत को वैश्विक ट्रांसशिपमेंट केंद्र के रूप में स्थापित करने, जहाज़ों और निवेश को आकर्षित करने की उम्मीद है।
- यह मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 और अमृत काल विज़न 2047 का हिस्सा है, जो भारत की दीर्घकालिक आर्थिक रणनीति में सहायक है।
- सतत् विकास: सतत् विकास सुनिश्चित करते हुए इस परियोजना से सिंगापुर और मालदीव जैसे उच्च स्तरीय पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता है।
- एक नया टाउनशिप व्यवसायों को आकर्षित करेगा, बेहतर बुनियादी ढाँचे के साथ जीवन स्तर में सुधार होगा, तथा न्यूनतम पर्यावरणीय प्रभाव के साथ नवीकरणीय ऊर्जा और सतत् आवास को बढ़ावा मिलेगा।
आगे की राह
- पारिस्थितिकी क्षति का न्यूनतमीकरण: क्रांतिक पर्यावासों की पहचान करने के उद्देश्य से एक व्यापक जैवविविधता मूल्यांकन का संचालन किये जाने की आवश्यकता है और साथ ही पर्यावरणीय कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये वैकल्पिक अवस्थानों की खोज की जानी चाहिये।
- पारिस्थितिक संतुलन के अनुरक्षण हेतु अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में क्षीण हो चुके वनों के पुनरुद्धार को प्राथमिकता दिये जाने की आवश्यकता है।
- जनजातीय अधिकार संरक्षण: शोम्पेन और निकोबारी लोगों के विस्थापन को न्यूनतम करना, उचित मुआवज़ा, आजीविका सहायता और कौशल विकास सुनिश्चित करना तथा समावेशी निर्णय लेने के लिये सामुदायिक परिषद की स्थापना करना।
- संस्थागत अनुवीक्षण का सुदृढ़ीकरण: अनुपालन और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये पर्यावरणविदों, स्थानीय प्रतिनिधियों और अधिकारियों के साथ एक स्वतंत्र निगरानी निकाय का गठन किया जाना चाहिये।
- संसाधन प्रबंधन: जलवायु-सहिष्णु बुनियादी ढाँचे और आपदा तत्परता का सुदृढ़ीकरण करते हुए सतत् जल, खाद्य और ऊर्जा प्रबंधन विकसित करने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. ग्रेट निकोबार द्वीप (जीएनआई) परियोजना के भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ने वाले प्रभाव का विश्लेषण करें तथा इसकी पर्यावरणीय और सामाजिक चुनौतियों पर प्रकाश डालें। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न. निम्नलिखित द्वीपों के युग्मों में से कौन-सा एक 'दश अंश जलमार्ग' द्वारा आपस में पृथक किया जाता है? (2014) (a) अंडमान एवं निकोबार उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. परियोजना 'मौसम' को भारत सरकार की अपने पड़ोसियों के साथ संबंधों की सुदृढ़ करने की एक अद्वितीय विदेश नीति पहल माना जाता है। क्या इस परियोजना का एक रणनीतिक आयाम है? चर्चा कीजिये। (2015) |
जैव विविधता और पर्यावरण
समुद्री घास का संरक्षण
प्रिलिम्स के लिये:समुद्री घास, कार्बन पृथक्करण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, ग्लोबल वार्मिंग, महासागरीय धाराएँ, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, महासागरीय अम्लीकरण, मन्नार की खाड़ी। मेन्स के लिये:समुद्री घास का महत्त्व और उससे संबंधित चिंताएँ। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है कि समुद्री घासों की संख्या में प्रतिवर्ष 1-2% की दर से कमी आ रही है तथा मानवीय गतिविधियों के कारण लगभग 5% प्रजातियाँ खतरे में हैं, जिससे जैवविविधता को संरक्षित करने के क्रम में वर्ष 2030 तक 30% समुद्री घासों को संरक्षित करने की आवश्यकता पर प्रकाश पड़ता है।
समुद्री घास क्या हैं?
- परिचय: समुद्री घास जलमग्न, फूलदार समुद्री जलीय पौधे हैं जो खाड़ी और लैगून जैसे उथले तटीय जल में उगते हैं।
- इनकी फूल और पत्तियों से जल के अंदर घने घास के मैदान बनते हैं।
- वर्गीकरण: समुद्री घास एलिसमैटेलिस गण से संबंधित है और लगभग 60 प्रजातियों के साथ 4 कुल में वर्गीकृत है।
- कुछ महत्त्वपूर्ण समुद्री घासें हैं सी काऊ ग्रास (Cymodocea serrulata), थ्रेडी समुद्री घास (Cymodocea rotundata), नीडल सी ग्रास (Syringodium isoetifolium), फ्लैट-टिप्ड सी ग्रास (Halodule uninervis) आदि।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- स्थलीय पौधों की तरह, समुद्री घास द्वारा प्रकाश संश्लेषण किया जाता है और इससे समुद्री जैवविविधता के साथ महासागरीय ऑक्सीजन के स्तर में वृद्धि होती है।
- समुद्री घास में लैंगिक और अलैंगिक दोनों तरह का निषेचन मिलता है।
- समुद्री घास के लिये खतरा:
- प्रदूषण: औद्योगिक, कृषि और शहरी अपशिष्ट समुद्री घास के मैदानों को नष्ट कर देते हैं।
- तटीय विकास: पर्यटन और बुनियादी ढाँचागत परियोजनाएँ नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को क्षति पहुँचाती हैं।
- जलवायु परिवर्तन: बढ़ते तापमान और महासागरीय अम्लीकरण से समुद्री घास का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
- कमज़ोर प्रवर्तन: मौजूदा कानूनों के बावजूद, संरक्षण प्रयासों का सख्त क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है।
समुद्री घास संरक्षण की स्थिति क्या है?
- वर्तमान स्थिति: समुद्री घास समुद्र तल के 0.1% भाग को कवर करती है, लेकिन यह समुद्री जीवन, प्रमुख मत्स्य पालन को बढ़ावा देती है, तथा उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण तटीय क्षेत्रों में पनपती है।
- भारत में समुद्री घास: भारत के समुद्री घास के मैदान 516.59 वर्ग किमी में फैले हैं, जो प्रति वर्ष प्रति वर्ग किमी 434.9 टन CO₂ एकत्र करते हैं, जिनका प्रमुख संकेंद्रण मन्नार की खाड़ी, पाक खाड़ी, अंडमान और निकोबार, लक्षद्वीप और कच्छ की खाड़ी में है।
- संरक्षण प्रयास:
- भारत की पहल
- वर्ष 2011-2020: मन्नार की खाड़ी और पाक खाड़ी में 14 एकड़ समुद्री घास को पुनर्स्थापित किया गया (85-90% सफलता दर)।
- पाक खाड़ी में प्रत्यारोपण के लिये बाँस के फ्रेम और नारियल की रस्सियों का उपयोग करते हुए समुदाय-नेतृत्व वाली परियोजनाएँ।
- वैश्विक प्रयास:
- समुद्री घास वाले 23.9% क्षेत्र समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) के अंतर्गत आते हैं। वर्जीनिया, USA में सफल पुनर्स्थापन (1,700 हेक्टेयर ज़ोस्टेरा मरीना)।
- भारत की पहल
समुद्री घास का क्या महत्त्व है?
- कार्बन पृथक्करण: समुद्री घासें समुद्री कार्बनिक कार्बन का 11% संग्रहित करती हैं और प्रतिवर्ष 83 मिलियन टन वायुमंडलीय कार्बन को अवशोषित करती हैं, जो वर्षावनों की तुलना में 35 गुना अधिक तेज़ी से कार्बन का पृथक्करण करती हैं।
- जैवविविधता हॉटस्पॉट: यह समुद्री प्रजातियों का पोषण करता है, जिसमें संकटग्रस्त डुगोंग (समुद्री गाय) और ग्रीन टर्टल शामिल हैं, तथा स्क्विड और कटलफिश जैसी व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण प्रजातियों को भी संरक्षित करता है।
- पारिस्थितिक महत्त्व: समुद्री घासस्थलों में 750 मछली प्रजातियाँ और 121 विलोपोन्मुखी समुद्री प्रजातियों पाई जाती हैं, जिनमें संकटापन्न डुगोंग (समुद्र गौ), हरे कछुए, स्क्विड और कटलफिश शामिल हैं।
- ये पारिस्थितिकी तंत्र वैश्विक मत्स्यपालन में 20% का योगदान देते हैं।
- तटीय संरक्षण: वे तलछट का प्रग्रहण कर जल की स्पष्टता में सुधार करते हैं, भूमि-आधारित प्रदूषकों का निस्यंदन करते हैं, और अपनी मूल तंत्रों के साथ समुद्र तल को स्थिर कर तटीय अपरदन की रोकथाम करते हैं।
- आजीविका और मत्स्य पालन: समुद्री घास मछलियों के लिये सुरक्षित प्रजनन स्थल प्रदान करती है और समुद्री जीवों को तीव्र धाराओं और परभक्षियों से बचाती है, तथा मत्स्य पालन और वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिये आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती है।
आगे की राह
- नीतिगत ढाँचे में एकीकरण: नीतिगत समर्थन, वित्त पोषण और संधारणीय प्रबंधन प्रथाएँ सुनिश्चित करने हेतु समुद्री घास संरक्षण को भारत की राष्ट्रीय जैवविविधता कार्य योजना में शामिल किया जाना चाहिये।
- समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) का विस्तार: समुद्री घास पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा और पुनर्स्थापना के लिये MPA को भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) के 2.5% से आगे विस्तारित किया जाना चाहिये।
- जलवायु रणनीति में मान्यता: जलवायु प्रतिबद्धताओं और कार्बन तटस्थता लक्ष्यों का समर्थन करने के लिये भारत की ब्लू कार्बन पहल में समुद्री घास को मान्यता दी जानी चाहिये।
- मूल्यांकन और वैश्विक सहयोग: इस संदर्भ में वैश्विक सहयोग महत्त्वपूर्ण है क्योंकि समुद्री घास से कार्बन पृथक्करण, तटीय संरक्षण और जैवविविधता संरक्षण के माध्यम से जलवायु शमन में सहायता मिलती है। IUCN को विलोपन को रोकने और संरक्षण प्रयासों को बढ़ाते हुए शीघ्र हस्तक्षेप के साथ उनकी स्थिति का आकलन करना चाहिये।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: Q. समुद्री घासस्थलों के पारिस्थितिक महत्त्व और मानवीय गतिविधियों के कारण उनके समक्ष विद्यमान चुनौतियों की विवेचना कीजिये। भारत में उनके संरक्षण के उपायों का सुझाव दीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. ब्लू कार्बन क्या है? (2021) (a) महासागरों और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों द्वारा प्रगृहीत कार्बन उत्तर:(a) |