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जैव विविधता और पर्यावरण

अंडमान और निकोबार के लिये एक सतत् भविष्य की रूपरेखा

  • 17 Aug 2024
  • 26 min read

यह एडिटोरियल 14/08/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “How a wildlife sanctuary in the Great Nicobar Island was made to vanish” लेख पर आधारित है। इसमें पर्यावरणीय कुप्रबंधन और कानूनी पैंतरेबाजी की भयावह वास्तविकता को सामने लाया गया है जो भारत के तटीय क्षेत्रों, विशेष रूप से अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल रहा है।

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रेट निकोबार द्वीप परियोजना, गैलाथिया खाड़ी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, प्रवाल भित्ति, एक्ट ईस्ट नीति, अंडमान और निकोबार कमांड, वर्ष 2014 की हिंद महासागर सुनामी, नवीकरणीय ऊर्जा, मलक्का जलडमरूमध्य, जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल, एल नीनो दक्षिणी दोलन। 

मेन्स के लिये:

भारत के लिये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का महत्त्व, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ।

गैलाथिया खाड़ी में 42,000 करोड़ रुपए के ट्रांसशिपमेंट पोर्ट के इर्द-गिर्द केंद्रित ग्रेट निकोबार आइलैंड प्रोजेक्ट भारत में विकास महत्त्वाकांक्षाओं और पर्यावरण संरक्षण के बीच के तनाव को प्रकट करता है। इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता—जिसमें लुप्तप्राय समुद्री कछुओं और स्थानिक निकोबार मेगापोड के नेस्टिंग स्थल के साथ ही कोरल कॉलोनियाँ और मैंग्रोव शामिल हैं, के बावजूद अधिकारियों ने कई विवादास्पद निर्णय लेते हुए परियोजना को आगे बढ़ाया है। इन निर्णयों में वन्यजीव अभयारण्य को गैर-अधिसूचित करना, स्पष्ट उल्लंघनों के बावजूद पर्यावरण मंज़ूरी प्रदान करना और क्षेत्र के तटीय विनियमन क्षेत्र के दर्जे को पुनः वर्गीकृत करना शामिल है।

यह मामला वृहत-स्तरीय विकास परियोजनाओं को समायोजित करने के लिये पर्यावरण विनियमनों को कमज़ोर करने के प्रयास को उजागर करता है। इस प्रक्रिया में संदिग्ध प्रशासनिक दाँव-पेंच, समीक्षा समितियों में संभावित हितों का टकराव और वैज्ञानिक साक्ष्य एवं संरक्षण अनिवार्यताओं की उपेक्षा करना शामिल है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में विकास लक्ष्यों के भारत के प्रयास दीर्घकालिक पर्यावरणीय लागतों और भारत के पर्यावरण संरक्षण ढाँचे की अखंडता के बारे में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करते हैं। यह एक अधिक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित करता है जो गंभीरता से आर्थिक आकांक्षाओं के साथ-साथ पारिस्थितिक संरक्षण पर विचार करे।

भारत के लिये अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह का क्या महत्त्व है?

  • ब्लू इकोनॉमिक गेटवे: ये द्वीप प्रमुख शिपिंग मार्गों के चौराहे पर स्थित हैं, जो भारत की ब्लू इकोनॉमी पहलों के लिये अपार संभावनाएँ प्रदान करते हैं।
    • ग्रेट निकोबार में प्रस्तावित ट्रांसशिपमेंट पोर्ट का उद्देश्य इस रणनीतिक स्थान का लाभ उठाना है।
    • यह संभावित रूप से प्रतिवर्ष 4 मिलियन ट्वेन्टी-फुट इक्विवेलेंट यूनिट्स (TEUs) का संचालन कर सकता है, जो सिंगापुर जैसे प्रमुख बंदरगाहों का प्रतिस्पर्द्धी बन सकता है।
    • द्वीप समूह की समृद्ध समुद्री जैव विविधता मत्स्य पालन, जलकृषि और समुद्री जैवप्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में भी अवसर प्रदान करती है, जो भारत की आर्थिक वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
  • पारिस्थितिकीय भंडार: अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैव विविधता का ‘हॉटस्पॉट’ है, जहाँ 9,100 से अधिक जीव-जंतु प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
    • अंडमान में प्रवाल भित्तियाँ  11,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत हैं, जबकि निकोबार में इनका प्रसार 2,700 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तक है।
    • लेदरबैक कछुए और निकोबार मेगापोड जैसी प्रमुख प्रजातियों के लिये ये नेस्टिंग स्थल हैं।
    • यह अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र न केवल वैज्ञानिक अनुसंधान को समर्थन प्रदान करता है, बल्कि भारत को वैश्विक जैव विविधता संरक्षण प्रयासों में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भी स्थापित करता है।
  • भू-राजनीतिक लाभ: ये द्वीप दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की रणनीतिक पहुँच की महत्त्वपूर्ण रूप से वृद्धि करते हैं तथा इसकी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति के लिये आधार का कार्य करते हैं।
    • ये इंडोनेशिया से महज 90 समुद्री मील की दूरी पर स्थित हैं, जो भारत को आसियान देशों के साथ कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य संलग्नता के लिये प्रवेश द्वार प्रदान करते हैं।
    • वर्ष 2001 में स्थापित अंडमान एवं निकोबार त्रिसेवा कमान चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का मुकाबला करते हुए क्षेत्र में शक्ति प्रदर्शन और संयुक्त अभियान चलाने की भारत की क्षमता को बढ़ाती है।
  • बंगाल की खाड़ी में प्रथम प्रतिक्रियाकर्त्ता: ये द्वीप अपनी अवस्थिति के कारण संपूर्ण बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के लिये आपदा प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • वे सुनामी और चक्रवातों के लिये पूर्व चेतावनी प्रणाली के क्रियान्वयन में भूमिका निभाते हैं, जहाँ भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) द्वारा प्रमुख निगरानी स्टेशनों का संचालन किया जाता है।
    • वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई सुनामी के दौरान इन द्वीपों ने राहत प्रयासों के समन्वय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
      • प्रस्तावित अवसंरचना विकास का उद्देश्य इस क्षमता को बढ़ाना है तथा भारत को क्षेत्रीय मानवीय संकटों में एक विश्वसनीय प्रथम प्रतिक्रियादाता के रूप में स्थापित करना है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: अनुमान है कि अंडमान अपतटीय बेसिन में हाइड्रोकार्बन का बड़ा भंडार मौजूद हैं।
    • इन संसाधनों को विकसित करने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा में व्यापक वृद्धि हो सकती है और आयात पर निर्भरता कम हो सकती है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा, विशेषकर महासागरीय तापीय ऊर्जा रूपांतरण और ज्वारीय ऊर्जा के लिये इन द्वीपों की क्षमता सतत् विकास और ऊर्जा नवाचार के लिये भी अवसर प्रस्तुत करती है।
  • सांस्कृतिक मेलजोल: अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह छह स्थानीय जनजातियों के निवास क्षेत्र हैं, जिनमें सेंटिनलीज़ जनजाति भी शामिल है जो विश्व के अंतिम संपर्कविहीन समुदाय में से एक है।
    • यह अद्वितीय सांस्कृतिक विविधता भारत के लिये स्वदेशी जीवन शैली के संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करने का उत्तरदायित्व एवं अवसर दोनों प्रस्तुत करती है।
    • द्वीप समूह का बहुसांस्कृतिक समाज, मुख्य भूमि भारत, म्याँमार और औपनिवेशिक इतिहास के प्रभावों से मिश्रित होकर भारत की सांस्कृतिक कूटनीति एवं समावेशी विकास मॉडल का सूक्ष्म रूप प्रस्तुत करता है।

अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • संकट में स्वर्ग – पर्यावरण क्षरण: अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह अपनी अद्वितीय जैव विविधता को संरक्षित करने और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के बीच एक गंभीर दुविधा का सामना कर रहे हैं।
    • ग्रेट निकोबार में प्रस्तावित 42,000 करोड़ रुपए के ट्रांसशिपमेंट पोर्ट से महत्त्वपूर्ण पर्यावासों के लिये खतरा है।
      • इस परियोजना को समायोजित करने के लिये गैलेथिया खाड़ी वन्यजीव अभयारण्य की अधिसूचना रद्द करना संरक्षण पर विकास को प्राथमिकता देने का उदाहरण प्रस्तुत करता है।
    • यदि यह प्रवृत्ति जारी रही तो इससे अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति उत्पन्न हो सकती है, जिसका संभावित रूप से जैव विविधता और जलवायु विनियमन पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • भू-राजनीतिक बिसात: इन द्वीपों की रणनीतिक अवस्थिति, लाभप्रद होने के बावजूद, उन्हें हिंद-प्रशांत भू-राजनीतिक तनाव के केंद्र में रखती है।
    • हिंद महासागर में चीन की बढ़ती उपस्थिति—जिसकी पुष्टि उसकी ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ रणनीति से होती है, महत्त्वपूर्ण सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न कर रही हैं।
    • मलक्का जलडमरूमध्य से निकटता, जिससे भारत का लगभग 40% व्यापार परिवहन होता है, रणनीतिक जटिलता की वृद्धि करती है।

  • अवसंरचनात्मक कमी: अपने रणनीतिक महत्त्व के बावजूद ये द्वीप गंभीर अवसंरचनात्मक कमी से ग्रस्त हैं।
    • 572 द्वीपों में से केवल 38 पर ही लोगों का वास है और उनके बीच संपर्क भी सीमित है।
    • राजधानी पोर्ट ब्लेयर मुख्य भूमि से 1,200 किमी से अधिक दूर है, जिससे रसद एवं संसाधन आवंटन जटिल हो जाता है।
  • ‘सांस्कृतिक चौराहा’: अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह की मूल जनजातियाँ, जिनमें जारवा , ओंज और सेंटिनली शामिल हैं , आधुनिकीकरण और बाहरी संपर्क के कारण अस्तित्व संबंधी खतरों का सामना कर रही हैं।
    • ग्रेट अंडमानी लोगों की संख्या 1850 के दशक में 5,000 से घटकर वर्ष 2021 में केवल 59 रह गई।
    • जारवा क्षेत्र से गुज़रते अंडमान ट्रंक रोड के निर्माण से परस्पर संपर्क और संभावित शोषण में वृद्धि हुई है।
  • पर्यटन की कठिन राह: पर्यटन इन द्वीपों के लिये एक प्रमुख आर्थिक चालक है और यहाँ पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
    • यद्यपि इससे आर्थिक लाभ प्राप्त होता है, लेकिन स्थानीय संसाधनों और पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव भी पड़ता है।
    • द्वीपों को संवहनीय अवसंरचना विकास, अपशिष्ट प्रबंधन और संवेदनशील क्षेत्रों की सुरक्षा में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
  • जलवायु भेद्यता: ये द्वीप जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सर्वाधिक खतरा रखते हैं और इन्हें समुद्र-स्तर में वृद्धि, चक्रवात की तीव्रता में वृद्धि तथा वर्षा के बदलते पैटर्न से खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
    • जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने वर्ष 2050 तक इन द्वीपों के निचले इलाकों के जलमग्न होने की आशंका जताई है।
    • वर्ष 2010 में समुद्र की सतह की तापमान विसंगतियों और एल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) के कारण बड़े पैमाने पर प्रवाल विरंजन की घटना हुई, जिसके परिणामस्वरूप साउथ बटन द्वीप, हैवलॉक द्वीप, नॉर्थ बे, चिड़ियाटापु और रेडस्किन द्वीप में लगभग 70% जीवित प्रवाल नष्ट हो गए।
  • प्राकृतिक आपदा हॉटस्पॉट: अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह भूकंपीय रूप से सक्रिय ज़ोन V में अवस्थित है, जिससे वे भूकंप और सुनामी के लिये अत्यधिक संवेदनशील हैं।
    • वर्ष 2004 में हिंद महासागर में आई विनाशकारी सुनामी, जिसने इन द्वीपों को बुरी तरह प्रभावित किया था, इस भेद्यता को उजागर करती है।
    • वर्ष 2009 में पोर्ट ब्लेयर के निकट 7.5 तीव्रता का भूकंप आया था, जिससे व्यापक क्षति हुई थी और इन द्वीपों के लिये भूकंपीय खतरा बने रहने का संकेत मिला था।
    • इन द्वीपों की अवस्थिति और स्थलाकृति के कारण, विशेषकर मानसून के मौसम में, भूस्खलन की संभावना भी बनी रहती है।

अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के संबंध में भारत क्या कदम उठा सकता है?

  • सतत् अवसंरचना विकास: एक व्यापक सतत् अवसंरचना योजना लागू की जाए, जहाँ नवीकरणीय ऊर्जा, जल संरक्षण और पर्यावरण-अनुकूल अपशिष्ट प्रबंधन को प्राथमिकता दी जाए।
    • डीजल जनरेटर पर निर्भरता कम करने के लिये सौर एवं पवन ऊर्जा प्रतिष्ठानों के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
    • जल की कमी को दूर करने के लिये वर्षा जल संचयन प्रणालियाँ और अलवणीकरण संयंत्र स्थापित किये जाएँ।
    • पुनर्चक्रण और कंपोस्टिंग पर बल देते हुए एक सुदृढ़ अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली स्थापित की जाए।
    • सुनिश्चित किया जाए कि सभी नए निर्माण कार्य हरित भवन मानकों का पालन करें तथा उनमें स्थानीय सामग्रियों और जलवायु प्रत्यास्थता के लिये अनुकूलित पारंपरिक डिज़ाइनों को शामिल किया जाए।
  • तटीय और समुद्री संरक्षण में वृद्धि करना: नो-टेक ज़ोन’ (no-take zones) का विस्तार कर और कड़े प्रवर्तन उपायों को लागू कर मौजूदा समुद्री संरक्षित क्षेत्र नेटवर्क को सुदृढ़ किया जाए।
    • अवैध मत्स्यग्रहण की समस्या से निपटने और लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करने के लिये जल के नीचे ड्रोन एवं उपग्रह इमेजिंग जैसी उन्नत निगरानी प्रौद्योगिकियों में निवेश किया जाए।
    • समुदाय आधारित संरक्षण कार्यक्रम विकसित किया जाए, जहाँ स्थानीय मछुआरों को संवहनीय अभ्यासों और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी में संलग्न किया जाए।
    • एक व्यापक प्रवाल पुनर्स्थापन कार्यक्रम लागू किया जाए, जिसमें कृत्रिम भित्तियों के साथ-साथ प्रत्यास्थी प्रवाल प्रजातियों का सक्रिय रूप से पुनःरोपण किया जाना शामिल हो।
    • इन द्वीपों के जल की अद्वितीय जैव विविधता का अध्ययन और संरक्षण करने के लिये एक समर्पित समुद्री अनुसंधान केंद्र की स्थापना की जाए।
  • सांस्कृतिक अभयारण्य – स्वदेशी विरासत का संरक्षण करना: अतिक्रमण और अवांछित संपर्क को रोकने के लिये स्वदेशी जनजातियों के क्षेत्रों के आसपास बफ़र ज़ोन स्थापित किये जाएँ।
    • सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम विकसित किये जाएँ जो आधुनिक चिकित्सा को पारंपरिक अभ्यासों के साथ जोड़ते हों और स्वदेशी ज्ञान का सम्मान करते हों।
    • पारंपरिक भाषाओं, रीति-रिवाजों और पारिस्थितिक ज्ञान के दस्तावेज़ीकरण एवं संरक्षण के लिये एक स्वदेशी ज्ञान एवं संस्कृति केंद्र की स्थापना की जाए।
    • जनजातीय क्षेत्रों के निकट पर्यटन पर कड़े नियम लागू किये जाएँ और उल्लंघन पर भारी जुर्माना लगाया जाए।
    • स्वदेशी समुदायों को अपने अधिकारों का दावा करने तथा उनकी भूमि को प्रभावित करने वाली निर्णयन प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी के लिये विधिक एवं प्रशासनिक सहायता प्रदान की जाए।
  • हरित पर्यटन – पारिस्थितिकी पर्यटन और सतत् आगंतुक प्रबंधन: एक व्यापक पारिस्थितिकी पर्यटन रणनीति विकसित की जाए जो प्रत्येक द्वीप की वहन क्षमता के अध्ययन के आधार पर आगंतुकों की संख्या को सीमित कर सके।
    • पर्यावरण-अनुकूल आवासों और टूर ऑपरेटरों के लिये एक प्रमाणन कार्यक्रम लागू किया जाए, जहाँ संवहनीय अभ्यासों को प्रोत्साहित किया जाए।
    • द्वीपों के अद्वितीय पारिस्थितिकी तंत्र और संस्कृतियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए गहन, शैक्षिक अनुभव का सृजन किया जाए तथा संरक्षण जागरूकता को बढ़ावा दिया जाए।
  • आपदा प्रत्यास्थता – प्रकृति के प्रकोप के विरुद्ध सुदृढ़ीकरण: भूकंपीय, सुनामी, चक्रवात और भूस्खलन चेतावनियों को एकीकृत करते हुए एक बहु-जोखिम पूर्व-चेतावनी प्रणाली का विकास किया जाए, ताकि सभी बसे हुए द्वीपों तक सूचना एवं चेतावनी का त्वरित प्रसार सुनिश्चित हो सके।
    • भूकंपीय गतिविधि, तूफानी लहरों और भूस्खलन के जोखिमों को ध्यान में रखते हुए सख्त भवन संहिता और भूमि-उपयोग विनियमनों को लागू किया जाए तथा मौजूदा महत्त्वपूर्ण अवसंरचना को इनके अनुकूल बनाया जाए।
    • नियमित सामुदायिक तैयारी अभ्यासों और जागरूकता कार्यक्रमों के साथ द्वीपों में आपदा-रोधी आश्रयों और निकासी मार्गों का एक नेटवर्क विकसित किया जाए।
    • आपदा प्रतिरोधी अवसंरचना और प्रकृति आधारित समाधान (जैसे कि मैंग्रोव पुनरुद्धार और प्रवाल भित्ति संरक्षण) के निर्माण में निवेश किया जाए, ताकि तूफ़ानों एवं सुनामी के विरुद्ध ये प्राकृतिक अवरोधक के रूप में कार्य कर सकें, साथ ही जैव विविधता को भी बढ़ाया जा सके।
  • जलवायु परिवर्तन के लिये अनुकूली रणनीतियाँ: एक व्यापक जलवायु परिवर्तन अनुकूलन योजना को लागू किया जाए, जिसमें समुद्र-स्तर में वृद्धि का मानचित्रण और सभी बसे हुए द्वीपों के लिये भेद्यता आकलन शामिल हो।
    • प्रकृति आधारित तटीय रक्षा प्रणालियों का विकास किया जाए, जिसमें मैंग्रोव पुनरुद्धार को पारगम्य समुद्री दीवारों जैसे इंजीनियर्ड समाधानों के साथ संयोजित करना शामिल है।
    • जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाया जाए, जहाँ लवण-सहिष्णु फसल किस्मों और जल-कुशल कृषि तकनीकों को बढ़ावा दिया जाए।
    • चरम मौसमी घटनाओं के लिये एक पूर्व-चेतावनी प्रणाली स्थापित की जाए, साथ ही समुदाय-आधारित आपदा तैयारी कार्यक्रमों का निर्माण हो।
    • स्थानीय प्रभावों की निगरानी करने तथा विशिष्ट अनुकूलन रणनीति विकसित करने के लिये एक समर्पित जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र की स्थापना की जाए।
  • द्वीप संपर्क – संवहनीय परिवहन नेटवर्क: इलेक्ट्रिक नौकाओं, सौर ऊर्जा चालित जल टैक्सियों और पर्यावरण-अनुकूल भूमि परिवहन विकल्पों को संयुक्त करते हुए एक एकीकृत एवं संवहनीय परिवहन प्रणाली का विकास किया जाए।
    • शहरी क्षेत्रों में वाहनों के प्रवाह को अनुकूलतम करने तथा उत्सर्जन को कम करने के लिये स्मार्ट यातायात प्रबंधन प्रणाली लागू की जाए।
  • ब्लू इकोनॉमी को बढ़ावा देना: संवहनीय जलकृषि परियोजनाएँ विकसित की जाएँ, देशी प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित किया जाए और अपशिष्ट को न्यूनतम करने के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों को अपनाया जाए।
    • एक संवहनीय उद्योग के रूप में समुद्री शैवाल की खेती में निवेश किया जाए जो कार्बन पृथक्करण (carbon sequestration) में योगदान देगा और वैकल्पिक आजीविका भी प्रदान करेगा।
    • द्वीपों की समुद्री जैव विविधता के संभावित औषधीय एवं औद्योगिक अनुप्रयोगों का पता लगाने के लिये एक समुद्री जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र की स्थापना की जाए।
    • प्रशिक्षण कार्यक्रमों, उपकरण आधुनिकीकरण और उत्तरदायी तरीके से सी-फ़ूड पकड़ने के लिये प्रोत्साहन (incentives) प्रदान करने के माध्यम से संवहनीय मत्स्यग्रहण अभ्यासों को बढ़ावा दिया जाए।
  • द्वीप विकास के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: सभी बसे हुए द्वीपों तक हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी का विस्तार किया जाए, ताकि दूरस्थ कार्य के अवसर उपलब्ध हो सकें और शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा तक बेहतर पहुँच सुनिश्चित हो।
    • वायु एवं जल गुणवत्ता, वन्यजीवों की गतिविधियों और पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य की रियल-टाइम निगरानी के लिये IoT-आधारित पर्यावरण निगरानी प्रणालियाँ लागू की जाएँ।

अभ्यास प्रश्न: भारत की समुद्री सुरक्षा और विदेश नीति में अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह के रणनीतिक महत्त्व की चर्चा कीजिये। इन द्वीपों के समक्ष कौन-सी चुनौतियाँ मौजूद हैं और उनके सतत विकास एवं सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये?

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. द्वीपों के निम्नलिखित में से कौन-सा युग्म 'दस डिग्री चैनल' द्वारा एक-दूसरे से अलग किया जाता है? (2014)

(a) अंडमान और निकोबार
(b) निकोबार और सुमात्रा
(c) मालदीव और लक्षद्वीप
(d) सुमात्रा और जावा

उत्तर: (a)


प्रश्न . निम्नलिखित में से किसमें प्रवाल भित्तियांँ हैं? (2014)

  1. अंडमान और निकोबार द्वीप समूह 
  2. कच्छ की खाड़ी  
  3. मन्नार की खाड़ी  
  4. सुंदरबन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न . निम्नलिखित में से किस स्थान पर शोम्पेन जनजाति पाई जाती है? (2009)

(a) नीलगिरि पहाड़ियाँ
(b) निकोबार द्वीप समूह
(c) स्पीति घाटी
(d) लक्षद्वीप द्वीप समूह

उत्तर: (b)

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