डेली न्यूज़ (13 Jan, 2025)



स्विट्ज़रलैंड में बुर्का पर प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

उच्चतम न्यायालय, बुर्का , मौलिक अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मामले

मेन्स के लिये:

मौलिक अधिकार, न्यायपालिका, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिलाओं के मुद्दे, धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित मामले।

स्रोत: IE

चर्चा में क्यों?

स्विट्ज़रलैंड में बुर्का अथवा नकाब से चेहरा ढकने वाले वस्त्रों पर प्रतिबंध लगाया गया है, जो 1 जनवरी 2025 से लागू हो गया है।

  • स्विट्जरलैंड में मार्च 2021 में एक राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह के माध्यम से बुर्का और नकाब पहनने पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया गया था। इस निर्णय ने भारत में भी इस बहस को तेज़ कर दिया है।

नोट: स्विट्जरलैंड के अलावा, फ्राँस, बेल्जियम, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया और कनाडा जैसे देशों ने भी बुर्का और नकाब से चेहरे को ढकने वाले वस्त्रों पर प्रतिबंध लगाया है।

बुर्का प्रतिबंध पर कर्नाटक सरकार

  • वर्ष 2022 में, कर्नाटक सरकार ने सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में बुर्का (सिर ढकने वाला कपड़ा) पहनने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित किया।
  • आदेश में कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 की धारा 133(2) का हवाला दिया गया, जो राज्य को सरकारी स्कूलों के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करती है।
  • वर्ष 2013 में राज्य ने इस प्रावधान के तहत यूनिफॉर्म को अनिवार्य बना दिया था। नवीनतम आदेश में कहा गया है कि बुर्का मुसलमानों के लिये एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है जिसे संविधान के तहत संरक्षित किया जा सके।

ईरानी बुर्का आंदोलन

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: वर्ष 1979 की ईरानी क्रांति के बाद, महिलाओं के लिये बुर्का अनिवार्य कर दिया गया, जिसके कारण दशकों तक विरोध चला।
  • विरोध प्रदर्शन और प्रतीकवाद: "गर्ल ऑफ एन्घेलैब स्ट्रीट" जैसे प्रतिष्ठित प्रदर्शन, जिसमें एक महिला ने एक छड़ी पर अपना सफेद स्कार्फ लहराया, ड्रेस कोड के खिलाफ अवज्ञा का प्रतीक है।
  • कथित तौर पर बुर्का के सख्त पालन के कारण महसा अमीनी की मौत के बाद विरोध प्रदर्शन फिर से भड़क उठे, जिसके कारण व्यापक प्रदर्शन हुए।
  • सरकारी कार्रवाई: ईरान में बुर्का की अनिवार्यता लागू की गई, जिसका पालन न करने पर ज़ुर्माना और कारावास का प्रावधान गया है, जिससे सामाजिक तनाव में वृद्धि हो रही है।
  • वर्तमान में इस आंदोलन को पुरुषों और महिलाओं दोनों का समर्थन प्राप्त है, जो अनिवार्य ड्रेस कोड का विरोध करते हैं, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और महिलाओं के अधिकारों की व्यापक मांग को दर्शाता है।

भारत में बुर्का पहनने की स्थिति क्या है?

  • आमना बिंत बशीर बनाम सीबीएसई, 2016 : आमना बिंत बशीर बनाम सीबीएसई, 2016 में, केरल उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बुर्का पहनना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, लेकिन सीबीएसई ड्रेस कोड को बरकरार रखा तथा 2015 की तरह अतिरिक्त उपाय और सुरक्षा उपायों की अनुमति दी।
  • केंद्रीय विद्यालय शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने तर्क दिया कि ड्रेस कोड अनुचित व्यवहार को रोकने के लिये बनाया गया है। 
  • केरल उच्च न्यायालय, 2018: फातिमा थस्नीम बनाम केरल राज्य, 2019 में, मामला दो लड़कियों से जुड़ा था, जो सिर पर स्कार्फ़ पहनना चाहती थीं और ईसाई मिशनरी स्कूल ने सिर पर स्कार्फ़ पहनने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। 
  • अदालत ने स्कूल के निर्णय के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि स्कूल के "सामूहिक अधिकारों" को व्यक्तिगत छात्र अधिकारों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
  • रेशम बनाम कर्नाटक राज्य, 2022: मार्च 2022 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने सरकारी कॉलेजों में बुर्का पर राज्य सरकार के प्रतिबंध को वैध ठहराया। 
  • उच्च न्यायालय ने प्रतिबंध को बरकरार रखते हुए कहा कि बुर्का पहनना आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है और यह प्रतिबंध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करता है।
  • सुप्रीम कोर्ट द्वारा विभाजित फैसला, 2022 : रेशम बनाम कर्नाटक राज्य, 2022 मामले में सुप्रीम कोर्ट की 2 जजों की बेंच ने विभाजित फैसला सुनाया। मामले को अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच को भेज दिया गया है।

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के लिये संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान भाग III (मौलिक अधिकार) में निहित अनुच्छेद 25-28 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी दी गई है :
    • अनुच्छेद 25(1): "अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने के अधिकार " को सुनिश्चित करता है। यह एक नकारात्मक स्वतंत्रता प्रदान करता है जहाँ राज्य धार्मिक प्रथाओं में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
    • अनुच्छेद 26: "धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता" प्रदान करता है, जिससे धार्मिक संप्रदायों को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, धार्मिक तथा धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थाओं की स्थापना एवं  प्रबंधन करने की अनुमति मिलती है।
    • अनुच्छेद 27 : धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को सुदृढ़ करते हुए राज्य को किसी विशेष धर्म को बढ़ावा देने या बनाए रखने के लिये नागरिकों को कर देने के लिये बाध्य करने से रोकता है।
    • अनुच्छेद 28 : शैक्षिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा को विनियमित करता है, राज्य द्वारा वित्त पोषित या राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थानों में धार्मिक शिक्षा को प्रतिबंधित करता है, सिवाय जहाँ स्पष्ट रूप से अनुमति दी गई हो।
  • इसके अतिरिक्त, अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करते हैं तथा उनकी विशिष्ट पहचान की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

ऐसे प्रतिबंध के पक्ष और विपक्ष में तर्क क्या हैं?

  • पक्ष में तर्क:
    • एकरूपता और अनुशासन: ड्रेस कोड लागू करने से शैक्षणिक संस्थानों में एकरूपता और अनुशासन को बढ़ावा मिलता है।
      • यह प्रत्यक्ष धार्मिक चिह्नों के प्रदर्शन को रोकता है तथा धार्मिक विभाजनों से मुक्त एक तटस्थ स्थान बनाए रखता है।
    • लैंगिक समानता: बुर्का और इसी प्रकार की प्रथाओं को प्रायः पितृसत्ता के उपकरण के रूप में देखा जाता है जो लैंगिक असमानता को बनाए रखते हैं और महिलाओं की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करते हैं।
    • समाज में एकीकरण: ऐसी प्रथाओं पर रोक लगाने से व्यापक समाज में एकीकरण को बढ़ावा मिलता है  तथा दृश्यमान धार्मिक चिह्नों के कारण होने वाले संभावित अलगाव से बचा जा सकता है।
    • मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं है: मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं हैं और उचित प्रतिबंधों के अधीन हैं। 
      • अनुच्छेद-25 के अंतर्गत धर्म का अधिकार अन्य मौलिक अधिकारों को दरकिनार नहीं कर सकता, विशेषकर सरकारी वित्तपोषित शैक्षणिक संस्थानों में
    • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: ऐसे प्रतिबंधों का उद्देश्य गुमनामी (Anonymity) को रोकना भी है, जो पहचान में बाधा उत्पन्न कर सकती है, शस्त्रों को छिपाने के लिये वस्त्रों के दुरुपयोग को रोकना तथा उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में सार्वजनिक सुरक्षा को बढ़ाना है।
      • उदाहरण के लिये: वर्ष 2019 में श्रीलंका में ईस्टर बम विस्फोट में आत्मघाती हमलावर जनता के साथ घुलमिल गए थे। 
  • प्रतिबंध के विरुद्ध तर्क:
    • धार्मिक स्वतंत्रता: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म का पालन करने और उसे मानने के अधिकार को सुनिश्चित करता है, ऐसी प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने से अलगाव की भावना उत्पन्न हो सकती है तथा सामाजिक तनाव बढ़ सकता है।
    • स्वायत्तता और विकल्प: प्रतिबंध लगाने से व्यक्तिगत स्वतंत्रता और व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं के अपने परिधान के बारे में चुनाव करने के अधिकार का उल्लंघन होता है।
    • शिक्षा पर प्रभाव: बुर्का पर प्रतिबंध लगाने से रूढ़िवादी पृष्ठभूमि की छात्राएँ स्कूल जाने से हतोत्साहित हो सकती हैं, जिससे उनकी शिक्षा और सशक्तीकरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
      • उदाहरण के लिये: वर्ष 2019-20 में अधिकांश राज्यों में मुस्लिम लड़कियों की स्कूल उपस्थिति दर हिंदू लड़कियों की तुलना में कम थी।
      • उदाहरण के लिये उत्तर प्रदेश में, जहाँ केवल 63.2% मुस्लिम लड़कियाँ स्कूल जाती हैं, वहीं 81% हिंदू लड़कियाँ स्कूल जाती हैं।
    • इस प्रकार के प्रतिबंध शिक्षा तक पहुँच में भी बाधा उत्पन्न कर सकते हैं, रूढ़िवादी पृष्ठभूमि की लड़कियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं तथा इन समूहों को और अधिक कमज़ोर कर सकते हैं।

निष्कर्ष

बुर्का /बुर्का पर बहस व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सामाजिक मूल्यों और संस्थागत अनुशासन के साथ संतुलित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है। जबकि धार्मिक अधिकार संविधान के अंतर्गत संरक्षित हैं, ये निरपेक्ष नहीं हैं और इन्हें लोक व्यवस्था एवं समानता के साथ संरेखित किये जाने की आवश्यकता है। न्यायिक निर्णय समावेशिता एवं लैंगिक समानता पर बल देते हैं, जो संवाद को बढ़ावा देने और ऐसी नीतियों के निर्माण के महत्त्व को रेखांकित करते हैं जो शिक्षा तक पहुँच में बाधा डाले बगैर या समुदायों को हाशिये पर रखे बिना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सम्मान करती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)  

मेन्स:

1. धर्मनिरपेक्षतावाद की भारतीय संकल्पना धर्मनिरपेक्षतावाद के पाश्चात्य मॉडल से किन-किन बातों से भिन्न है? चर्चा कीजिये। (2016)

2. क्या सहिष्णुता, सम्मिलन एवं बहुलता मुख्य तत्व हैं? जो धर्मनिरपेक्षता भारतीय के रूप का निर्माण करते हैं? तर्कसंगत उत्तर दें। (2022)

3. स्वतंत्र भारत में धार्मिकता किस प्रकार सांप्रदायिकता में रूपांतरित हो गई है, इसका एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए धार्मिकता एवं सांप्रदायिकता के मध्य विभेदन कीजिये। (2017)


फेक न्यूज़ के खिलाफ सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम

प्रिलिम्स के लिये:

मेटा, चुनाव, डीप फेक, जन गण मन, प्रेस काउंसिल अधिनियम, 1978, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) अधिनियम, 2000, सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम, उपयोगकर्ता-जनित संदर्भ।

मेन्स के लिये:

भारत में फेक न्यूज़, सोशल मीडिया विनियमन से संबंधित मुद्दे

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

फेसबुक और इंस्टाग्राम की मूल कंपनी मेटा मेटा द्वारा अपने तृतीय-पक्ष पेशेवर तथ्य-जाँच कार्यक्रम को समाप्त करने के साथ इसे एलन मस्क के X प्लेटफॉर्म के समान सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम के साथ रूपांतरित किया गया है।

  • मेटा के अनुसार तथ्य-जाँच करने वाले संगठनों द्वारा पक्षपातपूर्ण तरीके से व्यवहार किया गया है और सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम से पक्षपात की आशंका कम होगी।
  • विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि तथ्य-जाँचकर्त्ताओं के स्थान पर समुदाय-आधारित नेटवर्क लाने से भारत में फेक न्यूज़ में वृद्धि हो सकती है।

सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम क्या है?

  • परिचय: यह X की एक पहल है, जिसका उद्देश्य फेक न्यूज़ का मुकाबला करना तथा उपयोगकर्त्ता-जनित संदर्भ के माध्यम से सामग्री की गुणवत्ता को बढ़ाना है।
    • यह केवल केंद्रीकृत मॉडरेशन टीमों पर निर्भर रहने के बजाय उपयोगकर्त्ताओं को सशक्त बनाने पर केंद्रित है।
    • कम्युनिटी नोट्स को पहली बार वर्ष 2021 में ट्विटर द्वारा 'बर्डवॉच' नामक कार्यक्रम के रूप में शुरू किया गया था।
  • कार्य: उपयोगकर्त्ता उन पोस्ट पर नोट्स प्रदान करते हैं जिनमें स्पष्टीकरण या अतिरिक्त संदर्भ की आवश्यकता होती है।
    • नोट्स केवल तभी दिखाई देते हैं जब विविध समूह उनकी सटीकता एवं उपयोगिता पर सहमत हो जाते हैं।
  • एल्गोरिदमिक समीक्षा: रेटिंग प्रणाली से यह सुनिश्चित होता है कि केवल सबसे संतुलित एवं व्यापक रूप से समर्थित नोट ही सार्वजनिक रूप से दिखाई दें। इससे पक्षपात को कम करने तथा निष्पक्षता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है।
  • कोई संपादकीय निरीक्षण नहीं: पारंपरिक तथ्य-जाँच या मॉडरेशन के विपरीत, नोट्स को प्लेटफाॅर्म कर्मचारियों द्वारा संपादित या क्यूरेट नहीं किया जाता है बल्कि यह पूरी तरह से समुदाय द्वारा संचालित हैं।

पेशेवर तथ्य जाँचकर्त्ता

  • पेशेवर तथ्य-जाँचकर्त्ता ऐसे व्यक्ति या संगठन हैं जो डिजिटल दौर में फेक न्यूज़ से निपटने के लिये सार्वजनिक दावों का सत्यापन करते हैं।
    • भारत में मेटा द्वारा 15 भाषाओं में सामग्री को कवर करने वाले 11 स्वतंत्र, प्रमाणित तथ्य-जाँच संगठनों के साथ सहयोग किया जाता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ: पेशेवर तथ्य-जाँचकर्त्ता प्रशिक्षित, स्वतंत्र तथा गैर-पक्षपाती होते हैं जो पारदर्शी दावा सत्यापन के लिये साक्ष्य-आधारित तरीकों एवं नैतिक संहिताओं का उपयोग करते हैं।
  • प्रमुख उदाहरण: अंतर्राष्ट्रीय प्लेटफॉर्म में पोलिटिफैक्ट, FactCheck.org और स्नोप्स शामिल हैं जबकि भारत-विशिष्ट प्लेटफॉर्म में ऑल्ट न्यूज़, फैक्टली और बूम लाइव शामिल हैं।

भारत में सामुदायिक नोट्स कार्यक्रम के संबंध में क्या चिंताएं हैं?

  • फेक न्यूज़ के प्रति संवेदनशीलता: पेशेवर तथ्य-जाँचकर्त्ताओं के बिना, अप्रशिक्षित उपयोगकर्त्ताओं को पूर्वाग्रहों तथा फेक न्यूज़ की पहचान करने में कठिनाई हो सकती है।
    • निगरानी के बगैर राजनीतिक या पक्षपातपूर्ण सामग्री प्रभावी हो सकती है, जो जनसंख्या के बड़े भाग को गुमराह कर सकती है।
  • उपयोगकर्त्ताओं पर ज़िम्मेदारी डालना: उपयोगकर्त्ता द्वारा चिह्नित सामग्री से संबंधित गलत आसूचना को दूर करने में विलंब हो सकता है, क्योंकि कंपनियाँ ज़िम्मेदारी को जनता पर डाल देती हैं, जिसके परिणामस्वरूप असंगतताएँ उत्पन्न होती हैं और फेक न्यूज़ के फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
  • वैचारिक पूर्वाग्रह: तटस्थ तथ्य-जाँच के बिना सामग्री राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण हो सकती है, जिससे हेरफेर और ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिल सकता है, विशेष रूप से राजनीतिक रूप से आवेशित वातावरण में जो बहुसंख्यकवादी विचारों को लागू कर सकता है।
  • वित्तीय और तकनीकी चुनौतियाँ: मेटा जैसे प्लेटफॉर्मों से समर्थन खोने से तथ्य-जाँचकर्त्ताओं का दायरा सीमित हो सकता है, फेक न्यूज़ के विरुद्ध संघर्ष कमज़ोर हो सकता है और सामग्री सत्यापन में अंतराल रह सकता है।
  • विविधता और संदर्भ: भारत की सांस्कृतिक और राजनीतिक विविधता समुदाय-आधारित तथ्य-जाँच को चुनौतीपूर्ण बनाती है, क्योंकि इसकी व्याख्याएँ भिन्न हो सकती हैं।
    • जटिल मुद्दों की सटीक व्याख्या के लिये पेशेवर विशेषज्ञता की आवश्यकता हो सकती है, जो उपयोगकर्त्ता उपलब्ध नहीं करा सकते।

तथ्य-जाँच क्यों आवश्यक है?

  • निष्पक्ष पत्रकारिता: तथ्य-जाँच से मीडिया की विश्वसनीयता सुनिश्चित होती है, पारदर्शिता बढ़ती है, तथा झूठे दावों को सही करके और सटीक समाचार सुनिश्चित करके फेक न्यूज़ का सामना होता है, विशेष रूप से सोशल मीडिया पर।
  • राजनीतिक अखंडता: तथ्य-जाँच, फेक न्यूज़ का सामना करके और मतदाताओं को गुमराह करने से रोकने के लिये राजनीतिक दावों की पुष्टि करके चुनावी अखंडता सुनिश्चित करती है।
  • तकनीकी नवाचार: डीप फेक, वायरल अफवाहों और हेरफेर किये गए मीडिया के उदय के कारण पेशेवर पत्रकारों को सामग्री की जाँच और सत्यापन की आवश्यकता होती है।
  • जवाबदेही: तथ्य-जाँचकर्त्ता अतिश्योक्ति या झूठ की जाँच करके और उसे उज़ागर करके यह सुनिश्चित करते हैं कि सत्ता में बैठे लोग सच्चाई के उच्च मानकों पर खरे उतरें।

भारत में फेक न्यूज़ के लोकप्रिय उदाहरण

  • वर्ष 2013 में मुज़फ्फरनगर में हुए दंगों में फर्जी वीडियो के कारण सांप्रदायिक भावनाएँ भड़क उठीं
  • यूनेस्को ने 'जन गण मन' को विश्व का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रगान घोषित किया है (व्हाट्सएप के अनुसार)
  • 2000 रुपए के नोट में GPS ट्रैकिंग नैनो चिप (नवंबर 2016)
  • एक भारतीय राजनेता ने भारतीय सड़कों के LED-विद्युतीकरण को दिखाने के लिये रूसी सड़कों की तस्वीर का इस्तेमाल किया
  • गृह मंत्रालय (MHA) की वार्षिक रिपोर्ट में भारतीय सीमा पर फ्लडलाइटिंग दिखाने के लिये स्पेन-मोरक्को सीमा की तस्वीर का इस्तेमाल किया गया

फेक न्यूज़ से निपटने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • विधिक परिभाषा का अभाव: अधिकांश देशों (भारत समेत), जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये सुदृढ़ कानून वाले देश भी शामिल हैं, में फेक न्यूज़ की स्पष्ट विधिक परिभाषा का अभाव है, जिससे इसे प्रभावी रूप से विनियमित करने के प्रयास जटिल हो जाते हैं।
    • एक अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सही सूचनाओं की तुलना में झूठी खबरें 70% अधिक तीव्रता से फैलती हैं।
  • विनियमन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में संतुलन: फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने के प्रयासों को प्रायः सेंसरशिप के रूप में देखे जाने का खतरा होता है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कंटेंट मॉडरेशन संबंधी प्रथाओं पर विवाद उत्पन्न होता है।
  • पुनः साझाकरण की निष्क्रियता: उपयोगकर्त्ताओं की एक बड़ी संख्या अनजाने में गैर-सत्यापित सामग्री साझा करती है, जिससे दुर्भावनापूर्ण आशय के बगैर फेक न्यूज़ फैलती है, जिसे दंडात्मक उपायों से संबोधित करना कठिन होता है।
  • प्लेटफॉर्म की जवाबदेही: सुरक्षित बंदरगाह संरक्षण के कारण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की जवाबदेही सीमित है, जिससे उपयोगकर्त्ता-जनित सामग्री के लिये उन्हें उत्तरदायी ठहराना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • भाषा और क्षेत्रीय विविधता: 22 से अधिक आधिकारिक भाषाओं और सैकड़ों बोलियों वाले भारत को फेक न्यूज़ से निपटने में अद्वितीय चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि BBC के एक अध्ययन (2019) से पता चला है कि फेक न्यूज़ प्रायः अंग्रेज़ी या हिंदी की तुलना में क्षेत्रीय भाषाओं में तेज़ी से फैलती हैं।
  • डीपफेक का उदय: डीपट्रेस लैब्स (2019) के अनुसार ऑनलाइन डीपफेक वीडियो की संख्या प्रत्येक 6 माह में दोगुनी हो गई, जिसमें 96% फेक न्यूज़ या शोषण से संबंधित थे।
    • डीपफेक टूल्स वर्तमान में व्यापक रूप से सुलभ हैं, जिससे दुर्भावनापूर्ण कर्त्ताओं की बाधाएँ कम हो गई हैं। 

भारत में फेक न्यूज़ की रोकथाम से संबंधित क्या प्रावधान हैं?

  • भारतीय प्रेस परिषद (PCI): प्रेस परिषद अधिनियम, 1978 के अंतर्गत मीडिया आउटलेट्स द्वारा पेशेवर कदाचार या फेक न्यूज़ प्रसारित करने की दशा में PCI को इनकी परिनिंदा करने अथवा चेतावनी देने का अधिकार है।
  • समाचार प्रसारणकर्ता संघ (NBA): NBA एक स्व-नियामक निकाय है जो निजी टेलीविजन समाचार चैनलों पर प्रसारित सामग्री की गुणवत्ता और सटीकता पर बेहतर नियंत्रण सुनिश्चित करता है।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC): हिंसा, सांप्रदायिक अशांति भड़काने या धार्मिक भावनाओं के अपमान संबंधी फेक न्यूज़ से निपटने के लिये IPC (भारतीय न्याय संहिता) की धारा 153 और 295 का उपयोग किया जा सकता है। 
  • मानहानि कानून: वह व्यक्ति जिसकी मानहानि हुई है, IPC की धारा 499 के तहत मामला दर्ज करा सकता है, जबकि धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि के लिये दो वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66: सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में साइबर अपराधों जैसे पहचान चोरी (धारा 66C), प्रतिरूपण द्वारा छल (धारा 66D), निजता उल्लंघन (धारा 66E), अश्लील सामग्री के पारेषण (धारा 67) आदि संबंधी दंडों का प्रावधान है।

आगे की राह

  • बहुभाषी मॉडरेशन: क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों में फेक न्यूज़ का पता लगाने के लिये ए.आई.-संचालित साधन विकसित किये जाने चाहिये। क्षेत्रीय सामग्री की निगरानी में सुधार के लिये भाषाविदों और स्थानीय तथ्य-जाँचकर्त्ताओं के साथ सहयोग किया जाना चाहिये।
  • प्लेटफॉर्म की जवाबदेही: फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों को, विशेष रूप से चुनावों के दौरान, फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने के लिये सुदृढ़ मॉडरेशन प्रणाली में निवेश कर जवाबदेही सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • नैतिक पत्रकारिता: संपादन संबंधी कड़े दिशा-निर्देशों का क्रियान्वन करना, सामग्री का स्वतंत्र ऑडिट करना और फेक न्यूज़ प्रसारित करने के लिये पत्रकारों को जवाबदेह ठहराना मीडिया में विश्वास बनाए रखने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
  • जन जागरूकता: सरकारें और गैर सरकारी संगठन जनता को फेक न्यूज़ के खतरों और सूचना की पुष्टि करने के महत्त्व के बारे में शिक्षित करने के लिये जागरूकता अभियान आयोजित कर सकते हैं, जिससे गलत सूचना के प्रसार को कम करने में मदद मिलेगी।
  • मीडिया साक्षरता कार्यक्रम: नागरिकों द्वारा डिजिटल साधनों का ज़िम्मेदारीपूर्ण उपयोग करने हेतु स्कूल पाठ्यक्रम के एक भाग के रूप में मीडिया साक्षरता और समालोचनात्मक चिंतन को शामिल किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. तथ्यों के प्रभावी जाँच तंत्र के क्रियान्वन में भारत के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं और इन चुनौतियों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में साइबर सुरक्षा घटनाओं पर रिपोर्ट करना निम्नलिखित में से किसके/किनके लिये विधितः अधिदेशात्मक है? (2017) 

  1. सेवा प्रदाता 
  2.  डेटा सेंटर   
  3.  कॉर्पोरेट निकाय 

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. साइबर सुरक्षा के विभिन्न तत्त्व क्या हैं? साइबर सुरक्षा की चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए समीक्षा कीजिये कि भारत ने किस हद तक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा रणनीति सफलतापूर्वक विकसित की है। (2022)


विमुक्त जनजातियों से संबंधित चुनौतियाँ और विकास

प्रिलिम्स के लिये:

इदाते आयोग की रिपोर्ट, भारत में खानाबदोश, अर्द्ध खानाबदोश और विमुक्त जनजातियाँ (NTs, SNTs और DNTs), राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोगकंजर, नट, पारधी और सपेरा, छठी अनुसूची। 

मेन्स के लिये:

विमुक्त जनजातियाँ (DNT), खानाबदोश जनजातियाँ (NT) और अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियाँ (SNT) से संबंधित मुद्दे, चुनौतियाँ और उपाय।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारत में विमुक्त जनजातियों (DNT), खानाबदोश जनजातियों (NT) और अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियों (SNT) के समक्ष अनेक चुनौतियाँ हैं, जिनमें अधिकांश राज्यों द्वारा जाति प्रमाण-पत्र देने से मना करना भी शामिल है। 

  • भारत सरकार द्वारा विमुक्त/घुमंतू/अर्द्ध-खानाबदोश (SEED) समुदायों के आर्थिक सशक्तीकरण की योजना शुरू करने के बावजूद, विभिन्न अन्य मुद्दों के कारण इन समुदायों में असंतोष बढ़ रहा है।

NTs, SNTs और DNTs के समक्ष आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ कौन सी हैं?

  • ऐतिहासिक अन्याय: ब्रिटिश शासन के दौरान इन जनजातियों को आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के तहत आपराधिक जनजाति करार दिया गया, जिससे उन्हें पीढ़ियों तक कलंक का सामना करना पड़ा।
    • वर्ष 1952 में विमुक्त होने के बावजूद, इनके प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण बने रहने से इनके सामाजिक तथा आर्थिक समावेश पर प्रभाव पड़ रहा है।
    • ऐतिहासिक रूप से, खानाबदोश जनजातियों एवं विमुक्त जनजातियों को कभी भी निजी भूमि या घर का स्वामित्व प्राप्त नहीं था।
  • अवर्गीकृत समुदाय: इदाते आयोग (2017) ने कुल 1,526 DNT, NT और SNT समुदायों की पहचान की।
    • इन 1,526 चिन्हित समुदायों में से 269 समुदाय अभी भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणियों के अंतर्गत वर्गीकृत नहीं हैं।
    • इसी प्रकार इन समुदायों के कई लोग 29 राज्यों में जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने में असमर्थ हैं जिससे कल्याणकारी योजनाओं तक उनकी पहुँच सीमित हो जाती है।
    • कई अनुमानों के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 25 करोड़ से अधिक है फिर भी इनमें से अनेक लोगों के पास बुनियादी पहचान का अभाव है।
  • कार्यान्वयन में कमी: इदाते आयोग की सिफारिशों (जिनमें स्थायी आयोग तथा जाति-जनगणना को शामिल करने सहित अन्य प्रावधान शामिल हैं) पर अभी तक विचार नहीं किया गया हैं।
    • देरी और लोगों तक पहुँच की कमी के कारण SEED योजना को सीमित सफलता मिली है। SC/ST/OBC योजनाओं के साथ लाभ की ओवरलैपिंग के कारण लाभार्थी की पहचान में मुश्किलें आती हैं।
  • प्रतिनिधित्व का अभाव: DNT समुदायों के लिये नेतृत्व के पदों की कमी बनी हुई है तथा खानाबदोश और अर्द्ध-खानाबदोश समुदायों (DWBDNC) के विकास व कल्याण हेतु बोर्ड में कोई पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं है।

इदाते आयोग, 2014 

  • परिचय: इसकी स्थापना वर्ष 2014 में भीकू रामजी इदाते के नेतृत्व में विमुक्त, खानाबदोश और अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियों (DNT) की राज्यव्यापी सूची संकलित करने के लिये की गई थी।
  • अधिदेश: इनके द्वारा अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) श्रेणियों से बाहर रखे गए लोगों को पहचानना एवं उनके कल्याण के लिये कल्याणकारी उपायों की सिफारिश करना, अधिदेशित किया गया था।
  • अनुशंसाएँ:
    • DNT, SNT और NT के लिये विधिक दर्ज़ा सहित एक स्थायी आयोग बनाया जाए।
    • अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग की सूची में न पहचाने गए व्यक्तियों को अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणी में शामिल किया जाए।
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में तृतीय अनुसूची को शामिल करके विधिक और संवैधानिक सुरक्षा उपायों को बढ़ाना ताकि अत्याचारों को रोका जा सके और समुदाय के सदस्यों के बीच सुरक्षा की भावना बहाल की जा सके।
    • महत्त्वपूर्ण जनसंख्या वाले राज्यों में इन समुदायों के कल्याण के लिये एक अलग विभाग की स्थापना करना।
    • DNT परिवारों की अनुमानित संख्या और वितरण का निर्धारण करने के लिये उनका गहन सर्वेक्षण किये जाने की आवश्यकता है।

नोट: विमुक्त जनजातियों (DNT) के लिये एक स्थायी आयोग की स्थापना करने के बजाय, सरकार ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के तहत DWBDNC की स्थापना की, यह कहते हुए कि एक स्थायी आयोग SC, ST और OBC के लिये मौज़ूदा राष्ट्रीय आयोगों के साथ संघर्ष करेगा

DNT, NT और SNT कौन हैं?

  • परिचय: विमुक्त जनजाति शब्द का तात्पर्य उन समुदायों से है, जिन्हें कभी आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया था, जिसे ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किया गया था।
    • वर्ष 1952 में भारत सरकार द्वारा इन अधिनियमों को समाप्त कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप इन समुदायों की अधिसूचना समाप्त हो गई।
    • इनमें से कुछ समुदाय जो विमुक्त घोषित किये गये थे, वे भी खानाबदोश थे।
      • खानाबदोश और अर्द्ध-खानाबदोश समुदायों को उन लोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो प्रत्येक समय एक स्थान पर रहने के बजाय एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करते रहते हैं।
    • अधिकांश DNT अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणियों में आते हैं, कुछ DNT अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग श्रेणियों में शामिल नहीं हैं।
  • वितरण: विमुक्त जनजातियाँ विभिन्न समुदायों को शामिल करती हैं, जिनमें से प्रत्येक की सांस्कृतिक प्रथाएँ, भाषाएँ और सामाजिक-आर्थिक स्थितियाँ अद्वितीय हैं। समुदायों में कंजर, नट, पारधी और सपेरा शामिल हैं।
    • अनुमानतः दक्षिण एशिया में विश्व की सबसे बड़ी खानाबदोश जनसंख्या है। भारत में लगभग 10% आबादी NT, SNT और DNT की है। 
    • जबकि लगभग 150 विमुक्त जनजातियाँ हैं, खानाबदोश जनजातियों की आबादी में लगभग 500 अलग-अलग समुदाय शामिल हैं। 
  • DNT, NT और SNT समुदायों के लिये प्रमुख समितियाँ/आयोग:
    • संयुक्त प्रांत (वर्तमान उत्तर प्रदेश) में आपराधिक जनजाति अन्वेषण समिति, 1947 की स्थापना की गई।
  • अनंतशयनम अयंगर समिति, 1949।
    • इस समिति की सिफारिश के आधार पर आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 को निरस्त कर दिया गया।
  • काका कालेलकर आयोग (जिसे प्रथम OBC आयोग भी कहा जाता है), 1953।
  • बी.पी. मंडल आयोग, 1980
    • आयोग ने NT, SNT और DNT समुदायों के मुद्दे से संबंधित कुछ सिफारिशें भी कीं।
  • संविधान के कार्यकरण की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग (NCRWC), 2002 ने माना कि DNT को अनुचित तरीके से अपराध प्रवण के रूप में कलंकित किया गया है और कानून एवं व्यवस्था तथा सामान्य समाज के प्रतिनिधियों द्वारा उनके साथ दुर्व्यवहार तथा शोषण किया गया है।
  • रेनके आयोग (2005): आयोग ने उस समय उनकी जनसंख्या लगभग 10 से 12 करोड़ होने का अनुमान लगाया था।

विमुक्त/घुमंतू/अर्द्ध-घुमंतू (SEED) समुदायों के आर्थिक सशक्तीकरण की योजना क्या है?

  • परिचय: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा फरवरी 2022 में विमुक्त, घुमंतू, अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के आर्थिक सशक्तीकरण के लिये योजना शुरू की गई थी।
  • उद्देश्य और घटक: इसका उद्देश्य इन छात्रों को सिविल सेवा, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, MBA आदि जैसे व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिये निःशुल्क प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग प्रदान करना है।
  • विशेषताएँ: इसके तहत वर्ष 2021-22 से आगामी पाँच वर्षों की अवधि में 200 करोड़ रुपए का व्यय सुनिश्चित किया गया है।
    • DWBDNC को इस योजना के कार्यान्वयन का कार्य सौंपा गया है।

विमुक्त/घुमंतू/अर्द्ध-घुमंतू समुदायों के लिये भारत द्वारा क्या प्रयास किये गए हैं?

  • DNT के लिये डॉ. अंबेडकर प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति: यह केंद्र प्रायोजित योजना वर्ष 2014-15 में ऐसे DNT छात्रों के कल्याण के लिये शुरू की गई थी जो SC, ST या OBC के अंतर्गत नहीं आते हैं।
  • DNT बालक और बालिकाओं के लिये छात्रावास निर्माण की नानाजी देशमुख योजना: 2014-15 में शुरू की गई यह केंद्र प्रायोजित योजना राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों/केंद्रीय विश्वविद्यालयों के माध्यम से कार्यान्वित की जाती है।
    • इस कार्यक्रम का लक्ष्य उन DNT छात्रों को छात्रावास आवास उपलब्ध कराना है जो SC, ST या OBC श्रेणी में नहीं आते हैं।

आगे की राह

  • नीति कार्यान्वयन: शीघ्र कार्रवाई कर अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग ढाँचे के भीतर DNT समुदायों का वर्गीकरण करना। नियमित जाति वर्गीकरण के साथ-साथ जाति प्रमाण पत्र जारी किये जाने चाहिये। जैसे SC-DNT, ST-DNT।
    • SEED योजना का सुदृढ़ीकरण: सक्रिय गैर-सरकारी संगठन (NGO) की भागीदारी और जागरूकता अभियान के माध्यम से जनसंपर्क में सुधार किया जाना चाहिये।
      • पात्रता प्रक्रियाओं को सरल बनाया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि सभी पात्र परिवारों को शिक्षा, आवास और आजीविका सहायता प्राप्त हो सके।
    • पहचान और प्रतिनिधित्व: इन समुदायों की वास्तविक जनसंख्या और सामाजिक-आर्थिक स्थिति जानने के लिये जाति-आधारित जनगणना आयोजित की जानी चाहिये।
      • आरक्षित नेतृत्व भूमिकाओं के माध्यम से नीति निर्माण में सामुदायिक प्रतिनिधित्व को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • संस्थागत सुधार: DNT कल्याण की देखरेख के लिये स्पष्ट अधिदेश के साथ एक स्थायी आयोग की स्थापना की आवश्यकता है। शिकायतों के समाधान के लिये ज़िला स्तरीय शिकायत समितियों का गठन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. विमुक्त और घुमंतू जनजाति समुदायों के समक्ष विद्यमान सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये और उनके उत्थान के लिये नीतिगत उपायों का सुझाव दीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत के 'चांगपा' समुदाय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. वे मुख्य रूप से उत्तराखंड राज्य में रहते हैं। 
  2. वे पश्मीना बकरियों को पालते हैं जिनसे उन्नत ऊन प्राप्त होता है।
  3. इन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b) 


मुख्य:

प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों (ST) के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये, राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017)


स्वामी विवेकानंद की 162 वीं जयंती

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय युवा दिवस, स्वामी विवेकानंद, राष्ट्रीय युवा नीति 2014, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद रॉक मेमोरियल, वेदांत, योग, नव-वेदांत, उपनिषद, गीता, बुद्ध, रामकृष्ण मिशन, धर्म संसद,  सतत् विकास लक्ष्य, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020

मेन्स के लिये:

स्वामी विवेकानंद का योगदान। राष्ट्र निर्माण में युवाओं की भूमिका

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय युवा दिवस (स्वामी विवेकानंद की 162 वीं जयंती) पर, प्रधानमंत्री ने विकसित भारत युवा नेता संवाद 2025 में भाग लिया।

  • महान आध्यात्मिक नेता, दार्शनिक एवं विचारक स्वामी विवेकानंद की स्मृति में 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाया जाता है।
  • राष्ट्रीय युवा नीति 2014 में युवाओं की परिभाषा 15-29 आयु वर्ग के व्यक्तियों के रूप में की गई है, जो भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 40% है।

विकसित भारत युवा नेता संवाद क्या है?

  • परिचय: यह एक ऐसा मंच है जिसका उद्देश्य युवाओं को राष्ट्र निर्माण में शामिल करना है जो प्रधानमंत्री के स्वतंत्रता दिवस पर बिना किसी राजनीतिक संबद्धता वाले 1 लाख युवाओं को राजनीति में शामिल करने के आह्वान के अनुरूप है।
  • भागीदारी: इस आयोजन में 15-29 वर्ष की आयु के 3,000 युवा एक साथ आए, जिनका चयन योग्यता आधारित, बहु-चरणीय प्रक्रिया (जिसे विकसित भारत चैलेंज कहा जाता है) के माध्यम से किया गया।
  • विषयगत फोकस: इसमें युवा नेताओं द्वारा भारत के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण दस विषयगत क्षेत्रों पर विचार प्रस्तुत किये गए जिनमें प्रौद्योगिकी, स्थिरता, महिला सशक्तीकरण, विनिर्माण तथा कृषि शामिल हैं।

स्वामी विवेकानंद के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • स्वामी विवेकानंद (जिनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था) एक भिक्षु और रामकृष्ण परमहंस के प्रमुख शिष्य थे।
    • वर्ष 1893 में खेतड़ी राज्य के महाराजा अजीत सिंह के अनुरोध पर उन्होंने अपने पूर्व नाम 'सच्चिदानंद' को बदलकर ' विवेकानंद ' रख लिया।
  • आत्मज्ञान: मान्यताओं के अनुसार 1892 में स्वामी विवेकानंद साधना करने के लिये कन्याकुमारी के तट से हिंद महासागर में एक विशाल शिला (जिसे बाद में विवेकानंद रॉक मेमोरियल कहा गया) तक तैरकर गए थे।
    • उन्होंने वहाँ तीन दिन और तीन रातें बिताई, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। 
  • योगदान:  
    • दार्शनिक: उन्होंने विश्व को वेदांत और योग के भारतीय दर्शन से परिचित कराया।
      • उन्होंने ' नव-वेदांत' का प्रचार-प्रसार किया, जो पश्चिमी दृष्टिकोण से हिंदू धर्म की व्याख्या थी तथा वे आध्यात्मिकता को भौतिक प्रगति के साथ जोड़ने में विश्वास करते थे।
    • आध्यात्मिक: मानवीय मूल्यों पर विवेकानंद का संदेश उपनिषदों, गीता और बुद्ध एवं ईसा के उदाहरणों से लिया गया है, जिसमें आत्मबोध, करुणा और निस्वार्थ सेवा पर ज़ोर दिया गया है।
      • उन्होंने सेवा के सिद्धांत का समर्थन किया। जीव की सेवा करना शिव की उपासना के समान है।
      • उन्होंने अपनी पुस्तकों में सांसारिक सुख और आसक्ति से मोक्ष (मुक्ति) प्राप्त करने के चार मार्ग बताए- राजयोग, कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग।
    • पुनरुत्थानवाद: उन्होंने हमारी मातृभूमि के पुनरुद्धार के लिये शिक्षा पर ज़ोर दिया। उन्होंने मानव-निर्माण और चरित्र-निर्माण वाली शिक्षा की वकालत की।
  • मूल शिक्षाएँ:  
    • युवा: उन्होंने युवाओं को सफलता के लिये अपने लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहने के लिये प्रोत्साहित किया तथा चुनौतियों का सामना करने में समर्पण के महत्त्व पर बल दिया। 
      • स्वामीजी लोहे जैसी माँसपेशियों और फौलाद जैसी नसों वाला युवा चाहते थे। उनका दृढ़ मत था कि युवाओं को शारीरिक रूप से मज़बूत और मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिये।
    • नैतिकता: नैतिकता एक आचार संहिता है जो एक व्यक्ति को एक अच्छा नागरिक बनने के लिये मार्गदर्शन करती है और पवित्रता, हमारा सच्चा दिव्य स्व या आत्मा होने के नाते, हमारे वास्तविक स्वरूप को दर्शाती है।
    • धर्म: उनके अनुसार, धर्म परम सत्य का सार्वभौमिक अनुभव है जो असहिष्णुता, अंधविश्वास, हठधर्मिता और पुरोहितवाद से मुक्त है।
    • शिक्षा: विवेकानंद ने ऐसी शिक्षा पर ज़ोर दिया जिससे छात्रों का सहज ज्ञान और शक्ति उजागर हो, चरित्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित हो और उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिये आत्मनिर्भर बनाए।
    • तर्कसंगतता: उन्होंने आधुनिक विज्ञान की पद्धतियों और परिणामों का पूर्ण समर्थन किया और विश्वास के पक्ष में तर्क-शक्ति को अस्वीकार नहीं किया।
    • राष्ट्रवाद: उनका राष्ट्रवाद मानवतावाद और सर्वहितवाद पर आधारित है, जो भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं। 
      • उनका राष्ट्रवाद जनसामान्य के प्रति चिंता, स्वतंत्रता, समानता और कर्म योग पर आधारित है- जो निस्वार्थ सेवा के माध्यम से राजनीतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता का मार्ग है।
  • संबद्ध संगठन: उन्होंने सेवा, शिक्षा और आध्यात्मिक उत्थान के आदर्शों का प्रचार करने के लिये वर्ष 1897 में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की।
    • वर्ष 1899 में उन्होंने बेलूर मठ की स्थापना की जो उनका स्थायी निवास बन गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबोधन: उन्होंने वर्ष 1893 में शिकागो में आयोजित धर्म संसद को संबोधित किया, जिसमें उन्होंने हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व किया।
    • जुलाई 1896 में उन्होंने लंदन में लंदन हिंदू एसोसिएशन के एक सम्मेलन को संबोधित किया।

INDIAN PHILOSOPHY

विवेकानंद से संबंधित विचार

  • जिस देश में लाखों लोगों के पास खाने को कुछ नहीं है और जहाँ कुछ हज़ार साधु-संत और ब्राह्मण उन गरीबों का खून चूसते हैं और उनकी उन्नति के लिए कोई चेष्टा नहीं करते, क्या वह धर्म है या पिशाच का नृत्य? - स्वामी विवेकानंद
  • यह मत भूलो कि निम्न वर्ग, अज्ञानी, गरीब, अनपढ़, मोची, सफाई कर्मचारी सब हमारे भाई हैं - स्वामी विवेकानंद
  • जहाँ तक बंगाल का प्रश्न है, विवेकानंद को आधुनिक राष्ट्रवादी आंदोलन का आध्यात्मिक जनक माना जा सकता है -सुभाष चंद्र बोस।

राष्ट्रीय युवा नीति (NYP) 2014

  • NYP 2014: यह भारतीय युवाओं को अपनी संपूर्ण क्षमता हासिल करने और देश के विकास में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये सशक्त बनाने हेतु युवा मामले और खेल मंत्रालय द्वारा एक नीतिगत ढाँचा है।
  • NYP 2024: सरकार ने NYP 2014 की समीक्षा की और उसे अद्यतन किया है, नवीन NYP 2024 के लिये एक प्रारूप जारी किया। 
    • यह प्रारूप भारत में युवा विकास के लिये दस वर्षीय दृष्टिकोण की रूपरेखा प्रस्तुत करता है, जो सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के अनुरूप है। 
    • यह पाँच मुख्य क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करता है: शिक्षा, रोज़गार, युवा नेतृत्व, स्वास्थ्य एवं सामाजिक न्याय, तथा सामाजिक समावेशन के प्रति प्रतिबद्धता रखता है।
  • प्रमुख बिंदु निम्नलिखित हैं:
    • वर्ष 2030 तक युवा विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये एक स्पष्ट योजना।
    • करियर और जीवन कौशल में सुधार हेतु राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के साथ संरेखण।
    • नेतृत्व और स्वयंसेवा के अवसरों को मजबूत करना तथा युवाओं को सशक्त बनाने के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
    • स्वास्थ्य देखभाल, विशेषकर मानसिक स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य को बढ़ावा देना तथा खेल और फिटनेस को बढ़ावा देना।
    • हाशिये पर पड़े युवाओं के लिये सुरक्षा, न्याय और सहायता सुनिश्चित करना।

निष्कर्ष

विकसित भारत युवा नेता संवाद और स्वामी विवेकानंद की शिक्षाएँ युवा सशक्तीकरण, नैतिक नेतृत्व और समग्र विकास पर ज़ोर देती हैं। NYP 2024 जैसे राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाते हुए, इन पहलों का उद्देश्य युवाओं को शिक्षा, आत्मनिर्भरता और तर्कसंगतता से लैस करना है ताकि भारत के आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करते हुए भारत के स्थायी भविष्य को आकार दिया जा सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: “एक मज़बूत, तर्कसंगत और नैतिक युवा एक विकसित भारत की आधारशिला है।” विवेकानंद की शिक्षाओं के प्रकाश में टिप्पणी कीजिये।