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नीतिशास्त्र

गीता: निस्वार्थ जीवन जीने एवं मरने की कला

  • 03 Oct 2022
  • 6 min read

मेन्स के लिय:

नैतिकता और मानव इंटरफेस

चर्चा में क्यों?

जीवन और मृत्यु दोनों ही सिद्धांतों में गांधीजी की अटूट आस्था भगवद्गीता के प्रति उनके प्रेम से आकार ग्रहण करती है और हम सभी के अनुसरण हेतु एक आदर्श उदाहरण है।

महात्मा गांधी:

  • मोहनदास करमचंद गांधी (2 अक्तूबर, 1869 - 30 जनवरी, 1948), जिन्हें 'राष्ट्रपिता' के रूप में याद किया जाता है, ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी नेता थे।
  • उन्हें महात्मा (महान-आत्मा) गांधी की उपाधि से सम्मानित किया गया था।
  • उनका जीवन गरीबी उन्मूलन, महिलाओं के अधिकारों और अस्पृश्यता की प्रथा के उन्मूलन जैसे कई अन्य महान कार्यों के लिये समर्पित रहा।
  • वह अहिंसा दर्शन के अग्रदूत थे जिसने दुनिया भर में नागरिक अधिकार का नेतृत्त्व करने वालों को प्रेरित किया।
  • उनके जन्मदिन, 2 अक्तूबर को भारत में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है और अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में सम्मानित किया जाता है।

गांधी के जीवन में भगवद्गीता का महत्त्व:

  • नि:स्वार्थ कर्म का उपदेश:
    • गांधी के अनुसार, गीता हमें बताती है कि अनुशीलन करने योग्य केवल एक ही इच्छा है और वह यह है कि हम महसूस करें कि हम आत्मा (या स्वयं) हैं तथा शाश्वत आनंद प्राप्त करने हेतु उनके (ईश्वर) (अर्थात, उनके सर्वोच्च गुणों के अधिकारी) जैसा बनने की इच्छा रखें। न कि भौतिक वस्तुओं जैसे नाम, धन, दुनियादारी आदि के पीछे भागते रहें।
      • यह आत्म-अनुभूति की प्रक्रिया है, जिसमें यह समझना आवश्यक है कि हम आत्मा हैं (शरीर और मन नहीं) एवं अपने कर्म के कारण जीवन-मृत्यु के अंतहीन चक्र में फँस गए हैं।
      • कर्म का सीधा सा मतलब है कि किसी भी विचार, भाषण या दूसरों पर किये गए कार्यों का हमारे जीवन में एक समान परिणाम होगा।
  • कर्म की भूमिका:
    • गीता स्वीकार करती है कि दुनिया के निरंतर गतिशील रहने के लिये कर्म (चाहे मानसिक या शारीरिक) करने की आवश्यकता होती है।
      • गीता के अनुसार, "फल की इच्छा किये बिना कर्म करते रहो।"
    • कर्मों के फल का त्याग गीता का केंद्रीय संदेश है।
    • त्याग का अर्थ परिणामों के प्रति उदासीनता नहीं है बल्कि त्यागी वह है जो अपने कर्तव्य को हर्ष और संपूर्णता के साथ करता है तथा कर्म के फल की इच्छा रहित रहता है।
  • सत्य और अहिंसा:
    • गांधी का मानना था कि जब कोई जीवन में गीता की शिक्षा का पालन करता है, तो वह अहिंसा और सत्य का पालन करने के लिये बाध्य होता है।
      • गांधी जी के अनुसार, अहिंसा को सभी प्राणियों के विचारों, शब्दों और कार्यों को कोई नुकसान नहीं पहुँचाने वाली अवस्था के रूप में वर्णित किया गया है।
    • यह न केवल हिंसक कार्रवाई करने से बचाता है, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका भी है।
    • चूँकि यह सभी जीवित जीवों तक व्याप्त है, इसमें शाकाहारी भोजन, स्थायी जीवन शैली और पर्यावरण की सुरक्षा शामिल है।
      • क्योंकि जब फल की इच्छा नहीं होगी, तो जीवं में असत्य या हिंसा का कोई स्थान नहीं होगा।
      • किसी भी असत्य या हिंसा का कारण अहंकार से भरी हुई इच्छा की पूर्ति में निहित होता है। उदाहरण के लिये हत्या, चोरी आदि पाप बिना आसक्ति के नहीं किये जा सकते।
  • मानवजाति की सेवा के माध्यम से परमेश्वर की सेवा:
    • गीता में संदेश है कि मानव जाति को एक-दूसरे की सेवा भगवान की सेवा के रूप में करनी चाहिये और गांधी ने इस संदेश का दृढ़ता से पालन किया।
    • उन्होंने बताया है कि कैसे आत्मा की स्वाभाविक प्रगति निःस्वार्थता और पवित्रता की ओर ले जाती है।
    • यही कारण है कि भारत के लोगों के जीवन की स्वतंत्रता और बेहतरी के लिये वह अपना पूरा जीवन सहजता से समर्पित करने में सक्षम रहे।
    • उनका मानना था कि अंतिम क्षणों में हम जैसा सोचते हैं वैसा ही बनते हैं और ऐसा करके व्यक्ति अगले जन्म में भगवान (या पूज्य गुरुओं) के गुणों एवं प्रकृति को प्राप्त कर सकता है।
    • लेकिन मरने के क्षण में ऐसा होने के लिये, व्यक्ति को आसक्ति और द्वेष से मुक्त जीवन जीना होगा और इसके लिये उसके दिल में सभी के लिये प्यार एवं क्षमा का भाव होना चाहिये। एक बार जब हम इन कौशलों में महारत हासिल कर लेते हैं, तो हमें जो शांति मिलती है उसे साधना में लगाना चाहिये।

स्रोत: लाइवमिंट

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