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भारतीय राजनीति

उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध

  • 02 Jul 2024
  • 16 min read

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, हिजाब, मूल अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले

मेन्स के लिये:

मूल अधिकार, न्यायपालिका, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महिला संबंधी मुद्दे, धर्म की स्वतंत्रता से संबंधित मामले

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 9 छात्राओं ने कॉलेज में लागू किये गए नए ड्रेस कोड को चुनौती देते हुए बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया। नए ड्रेस कोड के तहत कॉलेज परिसर में हिजाब, बुर्का, नकाब और धार्मिक पहचान दर्शाने वाले अन्य साधन के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

  • न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि ड्रेस कोड का निर्णय छात्रों के व्यापक शैक्षणिक हित को ध्यान में रखकर लिया गया था।

नोट

  • हाल ही में ताजिकिस्तान ने आधिकारिक तौर पर महिलाओं के लिये हिजाब पर प्रतिबंध लगाया जबकि वहाँ की 95% से अधिक जनसंख्या मुस्लिम है।
  • विभिन्न स्तर के प्रतिबंधों के साथ, यह जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया, बोस्निया, हर्ज़ेगोविना, फ्राँस, कनाडा, कज़ाकिस्तान, कोसोवो, किर्गिज़स्तान, रूस और उज़्बेकिस्तान में भी प्रतिबंधित है।
  • ईरान हिजाब आंदोलन:
    • ईरानी महिलाएँ हिजाब पहनने अथवा या न पहनने के अधिकार के लिये हमेशा से ही संघर्षरत रही हैं। वर्ष 1979 की क्रांति के बाद महिलाओं के लिये हिजाब अनिवार्य कर दिया गया जिसका लोगों ने विरोध किया। महिलाओं ने विभिन्न माध्यमों से लगातार इसका विरोध किया है, जिसमें "गर्ल ऑफ एंगेलाब स्ट्रीट" (जहाँ एक महिला ने अपने सफेद हेडस्कार्फ को एक छड़ी से बाँधकर हवा में लहराया, यह अनिवार्य हिजाब के विरूद्ध विरोध का एक मूक प्रदर्शन था) और महसा अमिनी की मृत्यु जैसी प्रमुख घटनाएँ शामिल हैं, जिसने चल रहे प्रतिरोध के लिये उत्प्रेरक का काम किया। सरकार के आदेश प्रवर्तन के बाद भी यह आंदोलन जारी है, जिसमें कई ईरानी, ​​पुरुष तथा महिलाएँ दोनों, अनिवार्य हिजाब का विरोध कर रहे हैं। 
    • ईरान में नए कानून के माध्यम से ईरानी महिलाओं के लिये हिजाब पहनना अनिवार्य कर दिया गया है तथा इस ड्रेस कोड का अनुपालन न करने वालों के ज़ुर्माने और कारावास का प्रावधान किया गया है।

मुख्य तर्क और न्यायालय का निर्णय क्या था?

  • छात्रों के तर्क:
    • छात्रों ने तर्क दिया कि कॉलेज का ड्रेस कोड उनकी धार्मिक स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन करता है। उनके अनुसार कॉलेज के पास इस प्रकार के प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं है, विशेषकर तब जब यह अल्पसंख्यक समुदायों की शिक्षा तक पहुँच में बाधा उत्पन्न करता है।
      • छात्रों ने तर्क दिया कि कॉलेज का नया ड्रेस कोड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करते हैं।
      • उन्होंने यह भी दावा किया कि यह निर्णय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता को बढ़ावा देना) विनियम, 2012 का उल्लंघन है, जिसका उद्देश्य SC, ST, OBC और अल्पसंख्यक समुदायों के लिये उच्च शिक्षा तक पहुँच बढ़ाना है।
  • कॉलेज प्रशासन के तर्क:
    • हालाँकि, कॉलेज प्रशासन ने तर्क दिया कि ड्रेस कोड सभी छात्रों पर लागू होता है, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय से हों। उन्होंने कहा कि नियमों के पीछे का उद्देश्य छात्रों के धर्म को उजागर न करना है।
      • उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 2022 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि हिजाब या नकाब पहनना इस्लाम को मानने वाली महिलाओं के लिये “आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है”
      • कॉलेज ने यह भी कहा कि यह एक आंतरिक मामला है और अनुशासन बनाए रखने के उसके अधिकार का हिस्सा है।
      • इसने माना कि ड्रेस कोड, जिसमें लड़कियों के लिये “कोई भी भारतीय/पश्चिमी असभ्य (non-revealing) ड्रेस” निर्धारित की गई है, धार्मिक और सामुदायिक सीमाओं से परे सभी छात्रों पर लागू होता है।
  • बंबई उच्च न्यायालय का फैसला:
    • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने छात्राओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि हिजाब पहनना एक "आवश्यक धार्मिक प्रथा" है तथा इस बात पर बल दिया कि ड्रेस कोड सभी छात्राओं पर समान रूप से लागू होता है, चाहे उनकी "जाति, पंथ, धर्म या भाषा" कुछ भी हो, जो उच्च शिक्षा में समानता को बढ़ावा देने के लिये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के नियमों का उल्लंघन नहीं करता है।
    • न्यायालय ने कहा कि छात्र के पोशाक के चयन के अधिकार और अनुशासन बनाए रखने के संस्थान के अधिकार के बीच, कॉलेज के "बड़े अधिकारों" को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, क्योंकि छात्रों से शैक्षणिक उन्नति के लिये संस्थान में आने की अपेक्षा की जाती है।
    • अदालत ने रेशम बनाम कर्नाटक राज्य, 2022 पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के वर्ष 2022 के फैसले पर भरोसा किया और उसके साथ "पूर्ण सहमति" व्यक्त की, जिसमें सरकारी कॉलेजों में हिजाब पर राज्य सरकार के प्रतिबंध को वैध ठहराया गया था।
  • सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती:
    • हालाँकि, हिजाब प्रतिबंध पर कर्नाटक उच्च न्यायालय का फैसला फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती के अधीन है, जहाँ 2 जजों की पीठ ने अक्तूबर 2022 में विभाजित फैसला सुनाया। मामला अब सर्वोच्च न्यायालय  की बड़ी बेंच या पीठ को सौंप दिया गया है।
      • बंबई उच्च न्यायालय के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में भी चुनौती दिये जाने की संभावना है।

कर्नाटक सरकार ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाया

  • वर्ष 2022 में, कर्नाटक सरकार ने सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब (सिर ढकने वाला कपड़ा) पहनने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश पारित किया। 
  • आदेश में कर्नाटक शिक्षा अधिनियम, 1983 की धारा 133(2) का हवाला दिया गया, जो राज्य को सरकारी स्कूलों के लिये निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करती है।
  • वर्ष 2013 में राज्य ने इस प्रावधान का इस्तेमाल करके यूनिफॉर्म को अनिवार्य बना दिया था। नवीनतम आदेश में कहा गया है कि हिजाब मुसलमानों के लिये एक अनिवार्य धार्मिक प्रथा नहीं है जिसे संविधान के तहत संरक्षित किया जा सके।

हिजाब के मुद्दे पर अब तक अदालतों ने क्या निर्णय दिया है?

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय, 2003:
    • फातिमा हुसैन सईद बनाम भारत एजुकेशन सोसाइटी मामले में न्यायालय ने माना कि कुरान में सिर पर दुपट्टा पहनने का निर्देश नहीं दिया गया है तथा यदि कोई छात्रा सिर पर दुपट्टा नहीं पहनती है तो इसे इस्लामी आदेशों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता।
  • 2015 केरल उच्च न्यायालय के मामले:
    • दो याचिकाओं में अखिल भारतीय प्री-मेडिकल प्रवेश परीक्षा के लिये ड्रेस कोड को चुनौती दी गई थी, जिसमें आधे आस्तीन वाले हल्के कपड़े और जूतों के स्थान पर चप्पल पहनने की बात कही गई थी।
    • केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Central Board of School Education- CBSE) ने तर्क दिया कि ड्रेस कोड अनुचित व्यवहार को रोकने के लिये बनाया गया है।
      • केरल उच्च न्यायालय ने CBSE को धार्मिक पोशाक पहनने के इच्छुक छात्रों के लिये अतिरिक्त उपाय लागू करने का निर्देश दिया।
  • आमना बिंट बशीर बनाम CBSE, 2016:
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि हिजाब पहनने की प्रथा एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, लेकिन CBSE नियम को रद्द नहीं किया गया। न्यायालय ने एक बार फिर वर्ष 2015 में "अतिरिक्त उपायों" और सुरक्षा उपायों की अनुमति दी।
  • केरल उच्च न्यायालय, 2018:
    • फातिमा तस्नीम बनाम केरल राज्य मामले में न्यायालय ने ईसाई मिशनरी स्कूल के सिर पर स्कार्फ पहनने की अनुमति न देने के निर्णय के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि स्कूल के "सामूहिक अधिकारों" को व्यक्तिगत छात्र अधिकारों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये।

हिजाब प्रतिबंध पर सर्वोच्च न्यायालय का विभाजित फैसला:

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के लिये संवैधानिक ढाँचा क्या है?

  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार: संविधान के भाग-3 (मौलिक अधिकार) के अनुच्छेद 25-28 सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करते हैं।
    • अनुच्छेद 25(1): ‘अंतःकरण की स्वतंत्रता और धर्म को मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने की स्वतंत्रता के अधिकार’ की गारंटी देता है। यह अधिकार स्वतंत्रता की नकारात्मक अवधारणा की गारंटी देता है- जिसका अर्थ है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि इस स्वतंत्रता का प्रयोग करने में कोई हस्तक्षेप या बाधा उत्पन्न न हो
    • अनुच्छेद 26: यह लेख सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के अधीन "धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने की स्वतंत्रता" प्रदान करता है।
      • यह धार्मिक संप्रदायों को धार्मिक एवं धर्मार्थ उद्देश्यों के लिये संस्थान स्थापित करने और साथ ही उन्हें बनाए रखने की अनुमति प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 27: किसी व्यक्ति को किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या उसके रख-रखाव में व्यय करने के लिये कोई कर देने हेतु बाध्य नहीं किया जाएगा।
    • अनुच्छेद 28: यह प्रावधान उन शैक्षणिक संस्थानों में लागू नहीं होता है जिनका प्रशासन तो राज्य कर रहा हो लेकिन उसकी स्थापना किसी विन्यास या न्यास के अधीन हुई हो।
      • राज्य (भारत का क्षेत्र) निधियों से पूर्णत: पोषित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाए।
  • इसके अतिरिक्त, संविधान के अनुच्छेद 29 तथा अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के हितों के संरक्षण से संबंधित हैं।

आगे की राह

  • न्यायिक सहमति तथा सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका: उच्च न्यायालय के निर्णयों को संरेखित करना एक उभरते न्यायिक दृष्टिकोण का संकेत प्रदान कर सकता है। स्पष्ट कानूनी ढाँँचे के लिये सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय महत्त्वपूर्ण होगा।
  • अधिकारों तथा संस्थागत आवश्यकताओं में संतुलन: चुनौती व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता एवं संस्थानों की ड्रेस कोड लागू करने की स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाने में है। प्रत्येक शैक्षणिक संदर्भ में इस पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
  • व्यापक दिशा-निर्देश एवं समावेशिता: राष्ट्रीय स्तर पर ड्रेस कोड संबंधी दिशा-निर्देशों के अभाव के कारण UGC की ओर से स्पष्ट नीतियों की आवश्यकता है, ताकि एकरूपता सुनिश्चित हो सके और साथ ही मौलिक अधिकारों की रक्षा भी हो सके।
    • समावेशिता को बढ़ावा देने के साथ-साथ विविध धार्मिक प्रथाओं से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये सभी हितधारकों को शामिल करते हुए परामर्श प्रक्रिया के माध्यम से ड्रेस कोड तैयार करना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

बॉम्बे उच्च न्यायालय का निर्णय हिजाब विवाद में एक महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम है, जो शैक्षणिक संस्थानों में ड्रेस कोड विनियमन की अनुमति पर न्यायालय के रुख की पुष्टि करता है। हालाँकि इसके लिये एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो छात्रों के मौलिक अधिकारों को बरकरार रखे और साथ ही शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता के साथ-साथ शैक्षणिक हितों को भी सुरक्षित रखे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में हिजाब विवाद को लेकर चल रही कानूनी और सामाजिक बहस पर बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्णय के संभावित प्रभाव पर चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. धर्मनिरपेक्षता की भारतीय अवधारणा धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी मॉडल से कैसे भिन्न है? चर्चा कीजिये। (2016)

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