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शासन व्यवस्था

हेट स्पीच

  • 07 Oct 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भाषण की स्वतंत्रता, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA), हेट स्पीच

मेन्स के लिये:

संसद और राज्य विधानमंडलों की संरचना, कामकाज, कामकाज़ का संचालन, शक्तियाँ और विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और नेशनल इलेक्शन वॉच (NEW) के हालिया विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में बड़ी संख्या में सांसदों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले दर्ज हैं।

  • कुल 107 संसद सदस्यों (सांसदों) और विधान सभा सदस्यों (विधायकों) के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण के मामले दर्ज हैं।
  • ऐसे निष्कर्ष सत्ता के पदों पर बैठे लोगों के बीच नैतिक आचरण की आवश्यकता को उजागर करते हैं।

टिप्पणी:

  • NEW वर्ष 2002 से शुरू एक राष्ट्रव्यापी अभियान है जिसमें 1200 से अधिक गैर-सरकारी संगठन (NGO) और अन्य नागरिक-नेतृत्व वाले संगठन शामिल हैं जो भारत में चुनाव सुधार, लोकतंत्र एवं शासन में सुधार पर एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं।
  • ADR एक भारतीय गैर सरकारी संगठन (NGO) है जिसकी स्थापना 1999 में नई दिल्ली में हुई थी।

हेट स्पीच

  • परिचय:
    • भारत के विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट में घृणास्पद भाषण को मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन अभिविन्यास, धार्मिक विश्वास और इसी तरह के संदर्भ में परिभाषित व्यक्तियों के एक समूह के खिलाफ नफरत को उकसाने वाला बताया गया है।
      • भाषण का संदर्भ यह निर्धारित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि यह नफरत फैलाने वाला भाषण है या नहीं।
    • यह नफरत, हिंसा, भेदभाव और असहिष्णुता को उकसाकर लक्षित व्यक्तियों एवं समूहों के साथ-साथ बड़े पैमाने पर समाज को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • भारत में हेट स्पीच की कानूनी स्थिति:
    • भाषण की स्वतंत्रता और हेट स्पीच:
      • अनुच्छेद 19(2) इस अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाता है, इसके उपयोग और दुरुपयोग को संतुलित करता है। 
        • संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, गरिमा, नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि अथवा किसी अपराध को भड़काने के हित में प्रतिबंधों की अनुमति है।
    • भारतीय दंड संहिता:
      • IPC की धारा 153A तथा 153B:
        • समूहों के बीच शत्रुता और घृणा उत्पन्न करने वालों को दंडित करना।
      • IPC की धारा 295A: 
        • दंडात्मक कृत्यों से संबंधित है जो जानबूझकर अथवा दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से एक वर्ग के व्यक्तियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाते हैं।
      • धारा 505(1) तथा 505(2): 
        • ऐसी सामग्री के प्रकाशन और प्रसार को अपराध मानना जो विभिन्न समूहों के बीच दुर्भावना या घृणा उत्पन्न कर सकती है।
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951:
      • RPA, 1951 की धारा 8: 
        • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अवैध उपयोग के लिये दोषी ठहराए गए व्यक्ति को चुनाव लड़ने से रोकता है।
      • RPA की धारा 123(3A) तथा 125:
        • चुनावों के संदर्भ में नस्ल, धर्म, समुदाय, जाति या भाषा के आधार पर भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता अथवा घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देने पर रोक लगाता है और साथ ही इसे भ्रष्ट चुनावी प्रथाओं के अंतर्गत शामिल करता है।
    • अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989:
    •  नागरिक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम, 1955:
      • यह मौखिक अथवा लिखित शब्दों के माध्यम से या संकेतों एवं दृश्य प्रस्तुतियों द्वारा अथवा अस्पृश्यता को उकसाने एवं प्रोत्साहित करने पर दंड का प्रावधान करता है।

घृणास्पद भाषण से संबंधित न्यायिक मामले: 

  • शाहीन अब्दुल्ला बनाम भारत संघ और अन्य, 2022:
    • भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कहा कि जब तक विभिन्न धार्मिक समुदाय सद्भाव से रहने के लिये सक्षम नहीं होंगे, तब तक बंधुत्व स्थापित नहीं हो सकता।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने देश में नफरत फैलाने वाले भाषणों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है और सरकारों एवं पुलिस अधिकारियों को औपचारिक शिकायत दर्ज होने की प्रतीक्षा किये बिना ऐसे मामलों में स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
  • प्रवासी भलाई संगठन बनाम भारत संघ, 2014 मामला:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने नफरत हेट स्पीच को दंडित नहीं किया क्योंकि यह भारत में किसी भी कानून में मौज़ूद नहीं है। इसके बजाय सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायिक अतिरेक के विवाद से बचने के लिये विधि आयोग से इस मुद्दे का समाधान करने का अनुरोध किया।
  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ, 2015:
    • संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्र भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार से संबंधित सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 A के बारे में मुद्दे उठाए गए थे, जहाँ न्यायालय ने चर्चा, वकालत तथा उत्तेजना के बीच अंतर किया और माना कि पहले दो अनुच्छेद 19(1) का सार थे।

हेट स्पीच के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उजागर करना:

  • हेट स्पीच के परिणामों के बारे में शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना, साथ ही व्यक्तियों एवं समाज पर इसके हानिकारक प्रभावों को उजागर करना।
  • मौज़ूदा कानूनों को मज़बूत करना या विशेष रूप से नफरत फैलाने वाले भाषण को लक्षित करने वाले नए कानून स्थापित करना, जो मीडिया साक्षरता, संवाद, जवाबी भाषण, स्व-नियमन एवं नागरिक समाज की भागीदारी जैसे अन्य उपायों से पूरक हों।
    • ये उपाय हेट स्पीच को फैलने से रोकने, इसके आख्यानों को चुनौती देने, वैकल्पिक आवाज़ों को बढ़ावा देने और सहिष्णुता एवं सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं।
  • विधायकों के लिये आचार संहिता स्थापित करना और लागू करना, हेट स्पीच हेतु सांसदों एवं राजनीतिक दलों को ज़िम्मेदार ठहराना तथा इसके प्रसार को हतोत्साहित करने के लिये मीडिया नैतिकता को बढ़ावा देना आवश्यक है।

निष्कर्ष:

सत्ता के पदों पर बैठे लोगों के बीच नैतिक आचरण की तत्काल आवश्यकता है। हेट स्पीच के दूरगामी परिणाम होते हैं, जो सामाजिक सद्भाव और व्यक्तिगत कल्याण के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं। इस मुद्दे को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये, शिक्षा को बढ़ावा देना, कानून को मज़बूत करना और आचार संहिता लागू करना देश में सहिष्णुता, सम्मान एवं ज़िम्मेदार शासन की संस्कृति को बढ़ावा देने में आवश्यक कदम हैं।

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