इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

एक राष्ट्र एक चुनाव की संभावनाओं का अन्वेषण

  • 27 Sep 2024
  • 29 min read

यह संपादकीय 25/09/2024 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित "GOI, think through ONOE" पर आधारित है। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि "एक राष्ट्र, एक चुनाव" (ONOE) के कार्यान्वयन के लिये राजनीतिक समझौते की आवश्यकता है, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा अपने संसदीय कार्यकाल का लघुकरण करना भी शामिल है। यह शासनकला राज्यों के बीच आम सहमति को संवर्द्धित कर सकता है, मतदाता मतदान को बढ़ाते हुए एक निष्पक्ष संक्रमण सुनिश्चित कर सकता है और भारत में चुनावों के उत्सव के महत्त्व को परिरक्षित कर सकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE)संघवाद, लोकसभा, राज्य विधानसभा, भारत का निर्वाचन आयोग, आदर्श आचार संहिता, 18वीं लोकसभा चुनाव , इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM)वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT), राष्ट्रपति की शक्तियाँ, राष्ट्रपति शासन , दलबदल विरोधी कानून, अविश्वास प्रस्ताव 

मेन्स के लिये:

भारत में निर्वाचन संबंधी सुधारों का महत्त्व

देशभर में एक साथ चुनाव आयोजित कराने के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के साथ, "एक राष्ट्र, एक चुनाव (ONOE)" का विचार एक बार पुनः भारत के राजनीतिक परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण संकर्षण के साथ उपस्थित हुआ है। इसके पक्ष में समर्थन देने वालों का तर्क है कि यह उपागम चुनावों में अंतराल के कारण होने वाली निरंतर व्यवधानों को न्यूनीकृत करके शासन को बेहतर बना सकता है, जिससे सरकारें अल्पकालिक निर्वाचन संबंधी कार्यनीतियों के बजाय दीर्घकालिक नीति कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं। इसके अतिरिक्त, यह संभावित रूप से कई चुनाव आयोजन से संबंधित लागतों को कम कर सकता है और निर्वाचन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित कर सकता है, जिससे शासन में स्थिरता और पूर्वानुमेयता की भावना को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

यद्यपि, इस प्रस्ताव ने विवाद को भी जन्म दिया है, जिससे संघवाद और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिये इसके निहितार्थों के विषय में गंभीर चिंताएँ प्रस्तुत हुई हैं। आलोचकों ने चेतावनी दी है कि एक साथ चुनाव कराने से स्थानीय मुद्दे निष्प्रभ हो सकते हैं और क्षेत्रीय दल हाशिये पर जा सकते हैं, राष्ट्रीय दलों को लाभ मिल सकता है और राजनीतिक विविधता कम हो सकती है। इसके अतिरिक्त, रसद संबंधी चुनौतियों और विविध जनसांख्यिकी में निष्पक्ष प्रतिनिधित्व की आवश्यकता पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिये क्योंकि भारत इस महत्त्वपूर्ण परिवर्तन का अन्वेषण कर रहा है।

एक राष्ट्र, एक चुनाव क्या है?

  • परिभाषा: ONOE भारत में  लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को संदर्भित करता है।
    • कुछ मामलों में, इसमें स्थानीय निकाय चुनाव भी शामिल हो सकते हैं, जैसे नगर पालिकाओं और पंचायतों के लिये चुनाव।
  • उद्देश्य: ONOE का मूल उद्देश्य सरकार के विभिन्न स्तरों पर निर्वाचन चक्रों को संरेखित करते हुए चुनावों को एक साथ या एक निर्धारित समय सीमा के भीतर आयोजित करना है। 
    • इसके लिये महत्त्वपूर्ण संवैधानिक संशोधनों और विभिन्न चुनाव संबंधी विधियों और प्रक्रियाओं में परिवर्तन की आवश्यकता होगी।
  • ऐतिहासिक संदर्भ: भारत में वर्ष 1951 से वर्ष 1967 तक समकालिक चुनाव हुए, जिसके दौरान लोकसभा और अधिकांश राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए
    • यद्यपि, राजनीतिक कारणों और विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह प्रथा समाप्त हो गई।
    • 1960 के दशक में राजनीतिक अस्थिरता और दलबदल के कारण निर्वाचन चक्र में और अधिक विविधता आ गई।

एक राष्ट्र, एक चुनाव के क्या लाभ हैं?

  • लागत न्यूनीकरण: एक साथ चुनाव कराने से सुरक्षा कार्मिकों, मतदान कर्मचारियों और निर्वाचन संबंधी सामग्री जैसे संसाधनों में महत्त्वपूर्ण बचत हो सकती है।
    • भारत में लोकसभा चुनावों की लागत में काफी वृद्धि हुई है, जो वर्ष 1951-52 के पहले चुनाव में 10.5 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2019 में 50,000 करोड़ रुपये हो गई है।
    • यह महत्त्वपूर्ण वृद्धि विगत् कुछ दशकों में निर्वाचन प्रक्रिया की बढ़ती जटिलताओं और पैमाने को प्रदर्शित करती है।
    • इसके अतिरिक्त, सुव्यवस्थित प्रक्रियाओं के कारण भारत निर्वाचन आयोग (ECI) की परिचालन लागत कम हो सकती है।
  • शासन सातत्य: कम चुनावों से अल्पकालिक निर्वाचन संबंधी कार्यनीति और आदर्श आचार संहिता के कारण उत्पन्न "नीतिगत पक्षाघात" को कम किया जा सकता है, साथ ही संसाधनों पर दबाव, निरंतर प्रचार और राजनीतिक दलों के बीच भ्रष्टाचार को भी कम किया जा सकता है।
  • व्यवधान न्यूनीकरण: कम चुनाव आयोजित होने से सार्वजनिक जीवन में व्यवधान कम होगा, जिससे मतदान केंद्रों के रूप में प्रायः उपयोग किये जाने वाले शैक्षणिक संस्थानों को लाभ होगा।
    • इसके अतिरिक्त, शिक्षकों को अन्य सरकारी सेवा कर्मियों की तरह चुनाव ड्यूटी और प्रशिक्षण में लगाया जाता है, जिससे उनका वास्तविक कार्य बाधित होता है
    • इस प्रकार, ONOE अधिकारियों को निर्वाचन संबंधी कर्तव्यों के बजाय शासन पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देकर प्रशासनिक दक्षता को संवर्द्धित कर सकता है।
  • मतदाताओं की भागीदारी में वृद्धि: समर्थकों का तर्क है कि एक साथ चुनाव कराने से "चुनावी क्लांति" कम हो सकती है, जिससे संभावित रूप से मतदाताओं की भागीदारी और मतदान प्रतिशत में वृद्धि हो सकती है।
  • सुव्यवस्थित प्रचार: राजनीतिक दलों को संकेंद्रित प्रचार प्रयासों से लाभ हो सकता है, जिससे छोटे दलों को प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्द्धा करने का बेहतर अवसर प्राप्त हो सकता है।
  • आर्थिक लाभ : कोविंद समिति की रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि एक साथ चुनाव होने के बाद वाले वर्ष में भारत की राष्ट्रीय वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर विगत् वर्ष की तुलना में 1.5% अधिक हो सकती है।
    • रिपोर्ट में यह भी संकेत दिया गया है कि एक साथ चुनाव होने से राजकोषीय घाटे में 1.28% की वृद्धि तथा सार्वजनिक व्यय में 17.67% की वृद्धि हो सकती है।
    • इसके अतिरिक्त, चुनावों की निरंतरता कम होने से काले धन का अंतर्वाह कम हो सकता है और राजनीतिक संदान के लिये व्यवसायों पर दबाव कम हो सकता है18वीं लोकसभा के चुनावों के दौरान निर्वाचन आयोग ने 10,000 करोड़ रुपये जब्त किये थे
  • संशोधित चुनाव अनुवीक्षण: एक साथ चुनावों की केंद्रित प्रकृति संशोधित चुनाव अनुवीक्षण की सुविधा प्रदान कर सकती है।
  • प्रशासनिक दक्षता संवृद्धि:  समर्थकों का तर्क है कि संयुक्त चुनाव कराने से प्रशासनिक दक्षता संवर्द्धित हो सकती है
    • एक साथ चुनाव कराने से प्रशासनिक कार्य में लगने वाला समय कम होगा तथा निर्वाचन प्रक्रिया में लगने वाले संसाधनों को मुक्त करके सुरक्षा में सुधार होगा।

एक राष्ट्र, एक चुनाव की चुनौतियाँ क्या हैं?

  • संघवाद के लिये खतरा: राष्ट्रीय और राज्य चुनावों को एक साथ कराने से स्थानीय मुद्दे प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे चुनावी विमर्श पर हावी हो सकते हैं। 
  • इसका परिणाम यह हो सकता है कि राष्ट्रीय दल क्षेत्रीय समस्याओं को निष्प्रभ कर देंगी, जिससे स्थानीय चिंताओं और ज़रूरतों का प्रतिनिधित्व कम हो जाएगा, जिन्हें प्रायः राज्य स्तरीय दल ही सबसे उपयुक्त तरीके से समझते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, समन्वित निर्वाचन ढाँचे में, छोटे क्षेत्रीय दलों को अधिक धन और अधिक प्रभाव वाले दलों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने में कठिनाई हो सकती है, जिससे राजनीतिक विविधता कम हो सकती है और क्षेत्रीय मुद्दे निष्प्रभ हो सकते हैं
    • एक साथ मतदान से कम जानकारी वाले या पहली बार मतदान करने वाले मतदाता भ्रमित हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अज्ञानतापूर्ण विकल्प सामने आ सकते हैं और अधिक मत अवैध हो सकते हैं, जो लोकतंत्र को कमज़ोर कर सकता है।
  • संभार तंत्र संबंधी चुनौतियाँ: एक साथ चुनाव आयोजित करने से भारत निर्वाचन आयोग और सुरक्षा बलों के संसाधनों और क्षमताओं पर भारी दबाव पड़ेगा।
    • एक साथ चुनाव कराने के लिये इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीनों की बड़ी मात्रा में खरीद की आवश्यकता होगी।
    • कार्मिक, लोक शिकायत, विधि एवं न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति (वर्ष 2015) ने अनुमान लगाया था कि इन मशीनों की अधिप्राप्ति के लिये लगभग 9,284.15 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी।
    • विविध क्षेत्रों में रसद संबंधी चुनौतियों के कारण चुनावों की सत्यनिष्ठता और सुचारू कार्यान्वयन पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • संवैधानिक चिंताएँ: ONOE को कार्यान्वित करने के लिये संविधान और लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) में महत्त्वपूर्ण संशोधन की आवश्यकता होगी, जिससे संभवतः इसके मूल ढाँचे में परिवर्तन आएगा। 
    • कुछ संशोधनों के लिये अनुच्छेद 368 के अंतर्गत एक तिहाई सदस्यों के विशेष बहुमत की आवश्यकता होगी तथा भारत के आधे से अधिक राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी
    • ऐसे परिवर्तन राष्ट्रपति और राज्य के राज्यपालों की मौजूदा शक्तियों का अतिक्रमण कर सकते हैं, जिससे शक्ति संतुलन और भारत के संसदीय लोकतंत्र की प्रकृति पर प्रश्न उठ सकते हैं।
  • शासन संबंधी निर्वात: राजनीतिक संकटों के प्रतिउत्तर में समय से पहले चुनाव कराने में सुनम्यता की कमी के कारण उन राज्यों में लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन लागू रह सकता है, जहाँ सरकारें बीच में ही गिर जाती हैं। 
    • इससे शासन में निर्वात उत्पन्न हो सकता है, जिससे नागरिकों को संकटपूर्ण समय के दौरान पर्याप्त प्रतिनिधित्व या निर्णयन का अधिकार नहीं मिल पाएगा।
  • उत्तरदायित्व न्यूनीकरण: बार-बार चुनाव होने से प्रतिनिधि सतर्क रहते हैं, परंतु विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि कम बार चुनाव होने से उत्तरदायित्व न्यून हो सकते हैं, जिससे मतदाताओं के असंतोष व्यक्त करने की संभावना सीमित हो सकती है। 
    • इससे निर्वाचित पदाधिकारियों में आत्मसंतुष्टि उत्पन्न हो सकती है तथा मतदाताओं की आवश्यकताओं और चिंताओं के प्रति उनकी संवेदनशीलता कम हो सकती है।
  • चुनाव मशीनरी पर दबाव: देशभर में एक साथ  स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिये भारत निर्वाचन आयोग पर काफी दबाव होगा।
    • किसी भी प्रणालीगत विफलता या अनियमितता के दूरगामी परिणाम हो सकते हैं , जिससे निर्वाचन प्रक्रिया और संस्थाओं में जनता का विश्वास कम हो सकता है।

ONOE पर विभिन्न समितियों ने क्या सिफारिशें की हैं?

  • एक साथ चुनाव कराने पर उच्च स्तरीय समिति: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने हाल ही में भारत में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जैसा कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने सिफारिश की थीप्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं-
    • चरणबद्ध कार्यान्वयन: दो चरणों में एक साथ चुनाव-
      • प्रथम चरण: लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ आयोजित करना।
      • दूसरा चरण: पहले चरण के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव (पंचायत और नगर पालिका) आयोजित करना।
    • संविधान संशोधन: कोविंद समिति ने संविधान में 15 संशोधन प्रस्तावित किये, जिसके लिये दो संविधान संशोधन विधेयक की आवश्यकता थी।
      • पहला विधेयक: एक साथ निर्वाचन प्रणाली में परिवर्तन को संबोधित करता है और यदि लोकसभा या राज्य विधानसभा अपने कार्यकाल समाप्त होने से पहले भंग हो जाती है तो नए चुनाव कराने की अनुमति देता है। इस विधेयक को राज्य के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।
      • दूसरा विधेयक: स्थानीय निकाय चुनावों और एकल मतदाता सूची की स्थापना पर केंद्रित है। इस विधेयक को भारत के आधे से अधिक राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी
    • नए संवैधानिक अनुच्छेद:
      • अनुच्छेद 82A : एक साथ चुनाव कराने की सुविधा प्रदान करने का प्रस्ताव। 
      • राष्ट्रपति द्वारा "नियत तिथि" अंकित करने वाली अधिसूचना।
      • इस तिथि के बाद गठित सभी विधानसभा लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के साथ समाप्त हो जाएंगी।
      • अनुच्छेद 327 में संशोधन करके एक साथ चुनाव कराने के लिये संसद की शक्ति का विस्तार किया गया।
    • शीघ्र विघटन प्रबंधन:
      • अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन करके लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये "पूर्ण अवधि" और "अवधि समाप्त" की शब्दावली को स्पष्ट किया गया है।
      • भंग विधानसभाओं के स्थान पर गठित विधानसभा आगामी एक साथ होने वाले चुनावों से पहले केवल शेष अवधि तक ही कार्य करेंगी।
    • स्थानीय निकाय चुनाव और मतदाता सूची:
      • दूसरा विधेयक एक नया अनुच्छेद 324A प्रस्तावित करता है, जो संसद को यह सुनिश्चित करने का अधिकार देता है कि स्थानीय चुनाव आम चुनावों के साथ-साथ हों।
      • नया अनुच्छेद 325(2) सभी चुनावों के लिये एकल मतदाता सूची प्रस्तुत करता है, जिसका प्रबंधन ECI द्वारा किया जाएगा, जिससे राज्य निर्वाचन आयोगों की भूमिका परामर्शी क्षमता तक सीमित हो जाएगी।
      • संभार-तंत्र विचारणा: इन सिफारिशों के कार्यान्वयन के लिये निर्बाध निर्वाचन प्रक्रिया सुनिश्चित करने हेतु सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच व्यापक योजना और समन्वय की आवश्यकता होगी।
  • पूर्व अनुशंसाएँ :
    • विधि आयोग कार्य पत्र (वर्ष 2018) :
      • एक साथ चुनाव कराने के लिये संविधान और लोकप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया जाएगा।
      • त्रिशंकु विधानसभाओं में गतिरोध को रोकने के लिये दलबदल विरोधी कानून को संशोधित किया जाएगा।
      • अतिरिक्त सुनम्यता के लिये चुनाव अधिसूचना जारी करने की छह महीने की सीमा बढ़ाई जाएगी।
    • कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी संसदीय स्थायी समिति (वर्ष 2015):
      • वर्ष 2015 की रिपोर्ट में बेहतर राजनीतिक स्थिरता के लिये समकालिक चुनावों के लाभों पर बल दिया गया।
      • समिति ने कहा कि एक साथ चुनाव कराने के लिये EVM और VVPAT सहित व्यापक संसाधनों की आवश्यकता होगी, जिसकी अनुमानित लागत लगभग 9,284.15 करोड़ रुपये है, साथ ही महत्त्वपूर्ण संभार-तंत्र और संवैधानिक चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला।
      • संविधान के कार्यकरण की समीक्षा के लिये राष्ट्रीय आयोग: उनकी वर्ष 2002 की रिपोर्ट शासन में निरंतरता को बढ़ावा देने के लिये एक साथ चुनाव कराने का समर्थन करती है।
      • नीति आयोग: वर्ष 2017 कार्यपत्र निर्वाचन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और लोकतंत्र को सुदृढ़ करने के लिये एक साथ चुनाव कराने का समर्थन करता है।

आगे की राह क्या होनी चाहिये?

  • राष्ट्रीय संवाद: ONOE के संबंध में समर्थन का आकलन करने और चिंताओं का समाधान करने के लिये राजनीतिक दलों, नागरिक समाज संगठनों और विशेषज्ञों को सम्मिलित करते हुए व्यापक संवाद और चर्चा का आयोजन किया जा सकता है।
    • इस संवाद का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होना चाहिये कि विविध दृष्टिकोणों को ध्यान में रखा जाए, ताकि पहल के विषय में आम सहमति बनाने में सहायता मिल सके।
    • उदाहरण के लिये, ONOE पर उच्च स्तरीय समिति ने नागरिकों से 20,000 से अधिक प्रतिक्रियाएँ एकत्र की हैं, जिनमें से 81% ने एक साथ चुनाव की अवधारणा के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है।
  • क्रमिक कार्यान्वयन : प्रमुख कार्यक्रमों से शुरुआत करके चरणबद्ध दृष्टिकोण पर विचार किया जा सकता है, जो कुछ राज्य चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ संरेखित करता है। 
    • इससे अवधारणा का वास्तविक दुनिया में परीक्षण संभव हो सकेगा, जिससे हितधारकों को चुनौतियों की पहचान करने और देशव्यापी कार्यान्वयन से पहले आवश्यक समायोजन करने में सहायता मिलेगी।
  • विधिक उपक्रम: ONOE के लिये एक सुदृढ़ विधिक ढाँचा स्थापित करने के लिये विधि विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में आवश्यक संवैधानिक संशोधनों और विधायी परिवर्तनों का प्रारूप तैयार किया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, जैसा कि ECI ने सुझाव दिया है, समय से पहले विघटन को रोकने के लिये, अविश्वास प्रस्ताव में नामित उत्तराधिकारी के लिये विश्वास प्रस्ताव सम्मिलित होना चाहिये।
      • यदि विघटन अपरिहार्य है, तो राष्ट्रपति आगामी चुनाव तक प्रशासन चला सकते हैं, यदि शेष अवधि कम है; अन्यथा, मूल अवधि के लिये पुनः चुनाव होने चाहिये। इसी तरह के प्रावधान विधान सभाओं पर भी लागू होते हैं।
    • इस प्रक्रिया में व्यापक विचार-विमर्श शामिल होना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रस्तावित संशोधन लोकतांत्रिक सिद्धांतों और संविधान की अखंडता को बनाए रखें।
  • संघवाद का संरक्षण: यह सुनिश्चित करने के लिये उपाय तैयार किया जा सकता है कि राज्य-विशिष्ट मुद्दे चुनावी चर्चाओं में केंद्रीय बने रहें, साथ ही क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को संरक्षण और प्रोत्साहन देने के तरीकों पर भी विचार किया जा सकता है। 
    • इससे भारत के संघीय ढाँचे के भीतर विभिन्न हितों की विविधता और प्रतिनिधित्व के संधारण में सहायता मिलेगी।
  • निर्वाचन आयोग का सुदृढ़ीकरण: ONOE से संबंधित वर्द्धित ज़िम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये निर्वाचन आयोगों की क्षमताओं और स्वतंत्रता को संवर्द्धित किया जा सकता है।
    • इसमें एक साथ चुनाव कराने के लिये तकनीकी अवसंरचना को उन्नत करना तथा मानव संसाधन में वृद्धि शामिल हो सकता है।
    • अधिक EVM और VVPAT प्रणालियों में निवेश किया जा सकता है तथा एक साथ चुनावों को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये मतदाता पंजीकरण, मतदान और परिणाम सारणीकरण के लिये तकनीकी समाधान विकसित किया जा सकता है।
  • क्षमता निर्माण: एक साथ चुनावों के कुशल प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिये निर्वाचन अधिकारियों, सुरक्षा कर्मियों और अन्य हितधारकों के लिये व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम कार्यान्वित किया जा सकता है।
    • इन कार्यक्रमों को चुनाव प्रशासन और संकट प्रबंधन में सर्वोत्तम प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहभागिता: निर्वाचन संबंधी सुधारों से संबंधित अनुभवों और सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के लिये अन्य देशों तथा अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहभाग किया जा सकता है। 
    • वैश्विक उदाहरणों से सीख लेने से मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्राप्त हो सकती है तथा ONOE के कार्यान्वयन में संभावित नुकसान से बचने में सहायता मिल सकती है।
    • उदाहरण के लिये, दक्षिण अफ्रीका में हर पांच वर्ष में राष्ट्रीय असेंबली और प्रांतीय विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव होते हैं तथा राष्ट्रपति का चुनाव असेंबली द्वारा किया जाता है। 
      • इसके विपरीत, स्वीडन और जर्मनी हर चार वर्ष में अपने प्रधानमंत्रियों और चांसलरों का चुनाव करते हैं, जबकि ब्रिटेन में हर पांच वर्ष में निश्चित अवधि के चुनाव होते हैं।
  • आर्थिक नियोजन: संक्रमण काल ​​के दौरान संभावित आर्थिक व्यवधानों को न्यून करने के लिये कार्यनीति विकसित करके निर्वाचन-संबंधी व्यय में परिवर्तन के लिये तत्पर किया जा सकता है।
    • इसमें नए निर्वाचन ढाँचे को समायोजित करने के लिये संसाधन आवंटन और बजट की योजना बनाना शामिल है।
  • सार्वजनिक परामर्श: ONOE के निहितार्थों के विषय में नागरिकों को शिक्षित करने के लिये व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया जा सकता है।

निष्कर्ष

"एक राष्ट्र, एक चुनाव" का प्रस्ताव भारत के निर्वाचन परिदृश्य के लिये एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो शासन की दक्षता के संवर्द्धन और बार-बार होने वाले चुनावों से जुड़ी लागतों को कम करने का वादा करता है। जबकि प्रस्तावक सुव्यवस्थित प्रशासन और बेहतर नीति ध्यानकेंद्रण की क्षमता पर बल देते हैं, परंतु संघवाद, स्थानीय प्रतिनिधित्व और कार्यान्वयन की व्यावहारिक चुनौतियों पर प्रभाव के विषय में महत्त्वपूर्ण चिंताएँ अभी भी बनी हुई हैं। 

यद्यपि भारत इस जटिल मुद्दे पर विचार कर रहा है, इसलिये इस पर गहन विचार-विमर्श, विविध दृष्टिकोणों पर विचार तथा यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि कोई भी सुधार लोकतंत्र और प्रतिनिधित्व में समानता के सिद्धांतों को अभिपुष्ट करे।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की अवधारणा पर चर्चा कीजिये। इसके संभावित लाभों और चुनौतियों का, विशेष रूप से संघवाद, शासन और निर्वाचन संबंधी सत्यनिष्ठता के संबंध में मूल्यांकन कीजिये। 

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. भारत का निर्वाचन आयोग पाँच-सदस्यीय निकाय है।
  2. संघ का गृह मंत्रालय, आम चुनाव और उप-चुनावों दोनों के लिये चुनाव कार्यक्रम तय करता है।
  3. निर्वाचन आयोग मान्यता-प्राप्त राजनीतिक दलों के विभाजन/विलय से संबंधित विवाद निपटाता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. "लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के एक ही समय में चुनाव, चुनाव-प्रचार की अवधि और व्यय को तो सीमित कर देंगे, परंतु ऐसा करने से लोगों के प्रति सरकार की जवाबदेही कम हो जाएगी।" चर्चा कीजिये। (2017)

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2