WEF:वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2024
प्रिलिस्म के लिये:विश्व आर्थिक मंच, चरम मौसमी घटनाएँ, जनरेटिव AI, जलवायु परिवर्तन। मेन्स के लिये:वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2024: WEF, समावेशी विकास और इससे उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum - WEF) ने वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2024 जारी की है, जो तीव्र तकनीकी विकास, आर्थिक अनिश्चितता, ग्लोबल वार्मिंग और गंभीर वैश्विक जोखिमों के विरुद्ध आगामी दशकों में मानव के सामने आने वाले भविष्य के गंभीर खतरों पर प्रकाश डालती है।
- यह रिपोर्ट लगभग 1,500 विशेषज्ञों, उद्योग जगत के नेताओं और नीति निर्माताओं के सर्वेक्षण पर आधारित है।
वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- वैश्विक परिदृश्य में नकारात्मक परिवर्तन:
- वर्ष 2023 में संघर्ष, चरम मौसमी घटनाएँ और सामाजिक असंतोष सहित विभिन्न वैश्विक घटनाओं ने मुख्य रूप से नकारात्मक दृष्टिकोण में योगदान दिया है।
- AI संचालित गलत सूचना और दुष्प्रचार:
- गलत सूचना और दुष्प्रचार को अगले दो वर्षों में सबसे गंभीर जोखिमों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे प्रौद्योगिकी में तेज़ी से प्रगति नई समस्याएँ पैदा कर रही है या मौजूदा समस्याओं को बदतर बना रही है।
- यह चिंताजनक है कि ChatGPT जैसे जनरेटिव AI चैटबॉट्स के विकास से तात्पर्य है कि विशेष प्रतिभा वाले लोग अब जटिल सिंथेटिक सामग्री नहीं बना पाएँगे जिनका उपयोग लोगों के समूहों को नियंत्रित करने के लिये किया जा सकता है।
- AI-संचालित गलत सूचना और दुष्प्रचार एक जोखिम के रूप में उभर रहा है, क्योंकि संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, इंडोनेशिया, भारत, मैक्सिको तथा पाकिस्तान जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं सहित कई देशों में अरबों लोग वर्ष 2024 एवं उसके बाद के चुनावों में भाग लेने के लिये तैयार हैं।
- वैश्विक जोखिमों को आकार देने वाली संरचनात्मक शक्तियाँ:
- अगले दशक में वैश्विक जोखिमों को आकार देने वाली चार संरचनात्मक शक्तियाँ हैं: जलवायु परिवर्तन, जनसांख्यिकीय विभाजन, त्वरित प्रौद्योगिकीय और भू-रणनीतिक बदलाव।
- ये शक्तियाँ वैश्विक परिदृश्य में दीर्घकालिक परिवर्तनों का संकेत देती हैं, और उनकी अंतःक्रियाएँ अनिश्चितता और अस्थिरता में योगदान देंगी।
- पर्यावरणीय जोखिम की प्रमुखता:
- पर्यावरणीय जोखिम, विशेष रूप से चरम मौसम, सभी समय-सीमाओं में जोखिम परिदृश्य पर हावी रहते हैं।
- संभावित अपरिवर्तनीय परिणामों के साथ, जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता हानि और पृथ्वी प्रणालियों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के बारे में चिंताएँ स्पष्ट हैं।
- आर्थिक तनाव और असमानता:
- जीवनयापन की लागत का संकट, मुद्रास्फीति और आर्थिक मंदी जैसे आर्थिक जोखिम 2024 के लिये चिंताजनक हैं।
- आर्थिक अनिश्चितता निम्न और मध्यम आय वाले देशों को असंगत रूप से प्रभावित करेगी, जिससे संभावित डिजिटल अलगाव और बिगड़ते सामाजिक तथा पर्यावरणीय प्रभाव होंगे।
- सुरक्षा जोखिम और तकनीकी प्रगति:
- अगले दो वर्षों में अंतर्राज्यीय सशस्त्र संघर्ष को शीर्ष जोखिम रैंकिंग में एक नए प्रवेशकर्त्ता के रूप में पहचाना गया है।
- तकनीकी प्रगति, विशेष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता में, सुरक्षा जोखिम पैदा करती है क्योंकि वे गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं को विघटनकारी उपकरणों तक पहुँचने में सक्षम बनाती हैं, जिससे संभावित रूप से संघर्ष और अपराध में वृद्धि होती है।
- भू-राजनीतिक बदलाव तथा शासन चुनौतियाँ:
- वैश्विक शक्तियों के बीच विद्यमान व्यापक अंतराल, विशेष रूप से ग्लोबल नॉर्थ तथा साउथ के बीच, अंतर्राष्ट्रीय शासन में चुनौतियों का कारण बन सकता है।
- ग्लोबल साउथ में देशों का बढ़ता प्रभाव तथा भू-राजनीतिक तनाव सुरक्षा गतिशीलता को नया आकार दे सकता है एवं वैश्विक जोखिमों को प्रभावित कर सकता है।
संबंधित अनुसंशाएँ क्या हैं?
- निवेश एवं विनियमन का लाभ उठाने वाली स्थानीयकृत रणनीतियाँ अपरिहार्य जोखिमों के प्रभाव को कम कर सकती हैं तथा सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र इन लाभों को सभी तक पहुँचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- भविष्य को प्राथमिकता देने तथा अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयासों के माध्यम से विकसित एकल सफल प्रयास विश्व को एक सुरक्षित स्थान बनाने में मदद कर सकते हैं।
- नागरिकों, कंपनियों तथा देशों के वैयक्तिक प्रयास भले ही बहुत अधिक प्रभावशाली प्रतीत न हों किंतु वैश्विक जोखिम में कमी लाने में वे पर्याप्त प्रभाव डाल सकते हैं।
- विश्व में बढ़ते विखंडन के बावजूद मानव सुरक्षा तथा विकास के लिये निर्णायक जोखिमों को कम करने के लिये बड़े पैमाने पर सीमा पार सहयोग वर्तमान में भी आवश्यक है।
वैश्विक जोखिम क्या है?
- वैश्विक जोखिम को किसी घटना अथवा स्थिति के घटित होने की संभावना के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके घटित होने पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद, जनसंख्या अथवा प्राकृतिक संसाधनों के एक महत्त्वपूर्ण अनुपात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- वैश्विक जोखिम रिपोर्ट स्विट्ज़रलैंड के दावोस में फोरम की आगामी वार्षिक बैठक आयोजित होने से पूर्व विश्व आर्थिक मंच द्वारा प्रकाशित एक वार्षिक अध्ययन है।
विश्व आर्थिक मंच क्या है?
- परिचय:
- वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) एक स्विस गैर-लाभकारी संस्थान है जिसकी स्थापना वर्ष 1971 में जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में हुई थी।
- स्विस सरकार द्वारा इसे सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- मिशन:
- WEF वैश्विक, क्षेत्रीय और उद्योग जगत की परियोजनाओं को आकार देने हेतु व्यापार, राजनीतिक, शिक्षा क्षेत्र तथा समाज के अन्य प्रतिनिधियों को शामिल करके विश्व की स्थिति में सुधार के लिये प्रतिबद्ध है।
- संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष: क्लॉस श्वाब (Klaus Schwab)।
- WEF द्वारा प्रकाशित प्रमुख रिपोर्टों में से कुछ निम्नलिखित हैं:
- ऊर्जा संक्रमण सूचकांक (Energy Transition Index- ETI)
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट (Global Competitiveness Report)
- वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी रिपोर्ट (Global IT Report)
- WEF द्वारा INSEAD और कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर इस रिपोर्ट को प्रकाशित किया जाता है।
- ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट।
- वैश्विक यात्रा और पर्यटन रिपोर्ट (Global Travel and Tourism Report)।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. निम्नलिखित में से कौन विश्व के देशों के लिये “सार्वभौम लैंगिक अंतराल सूचकांक (ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स)” का श्रेणीकरण प्रदान करता है? (2017) (a) विश्व आर्थिक मंच उत्तर: (a) प्रश्न2. निम्नलिखित में से कौन विश्व आर्थिक मंच का संस्थापक है? (2009) (a) क्लॉस श्वाब उत्तर: (a) प्रश्न3. वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट किसके द्वारा प्रकाशित की जाती है? (2019) (a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष उत्तर: (c) |
गणतंत्र दिवस पर झाँकियों का चयन
प्रिलिम्स के लिये:गणतंत्र दिवस परेड, गणतंत्र दिवस पर झाँकियों का चयन, रक्षा मंत्रालय, विकसित भारत, भारत-लोकतंत्र की मातृका, संविधान दिवस। मेन्स के लिये:गणतंत्र दिवस पर झाँकियों का चयन, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनके डिज़ाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रक्षा मंत्रालय ने गणतंत्र दिवस परेड में अपनी झाँकी प्रदर्शित करने हेतु राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों (UT) के लिये एक रोलओवर योजना का प्रस्ताव पेश किया है।
- यह प्रस्ताव तब पेश किया गया है जब कुछ राज्यों की सरकारों ने वर्ष 2024 गणतंत्र दिवस परेड झाँकी का हिस्सा बनने की अनुमति नहीं देने के लिये केंद्र सरकार की आलोचना की है।
गणतंत्र दिवस परेड हेतु किन राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को चुना गया है?
- वर्ष 2024 के गणतंत्र दिवस परेड के लिये 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, लद्दाख, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना तथा उत्तर प्रदेश का चयन किया गया है।
- रक्षा मंत्रालय ने उन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये एक प्रावधान शामिल किया है जिन्हें गणतंत्र दिवस परेड हेतु भारत पर्व पर अपनी झाँकी दिखाने के लिये नहीं चुना गया है।
- भारत सरकार गणतंत्र दिवस समारोह के हिस्से के रूप में 26-31 जनवरी तक छह दिवसीय मेगा कार्यक्रम "भारत पर्व" का आयोजन करती है। यह वैकल्पिक कार्यक्रम ऐतिहासिक लाल किले पर होता है।
- सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिये एक चक्रीय कार्यक्रम (rotational plan) को अंतिम रूप दिया है कि प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश को तीन साल के चक्र (2024-2026) के अंदर गणतंत्र दिवस परेड में अपनी झाँकी प्रस्तुत करने का अवसर मिले।
- 28 राज्यों द्वारा सहमत चक्रीय पद्धति का उद्देश्य सभी क्षेत्रों को समान अवसर प्रदान करना, राजनीतिक पूर्वाग्रह के आरोपों को कम करना और अधिक समावेशी उत्सव को प्रोत्साहित करना है।
झाँकियों की चयन प्रक्रिया क्या है?
- परेड आयोजित करने के लिये ज़िम्मेदार मंत्रालय:
- रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence - MoD) परेड के संचालन और राज्यों तथा अन्य एजेंसियों के साथ समन्वय व्यवस्था के लिये ज़िम्मेदार है।
- राष्ट्रीय गौरव और देशभक्ति का पर्याय बन चुके इस समारोह की तैयारियाँ महीनों पहले से शुरू हो जाती हैं। इस प्रक्रिया में झाँकियों का चयन और सूचीबद्ध करना शामिल है।
- संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Culture), झाँकी की सांस्कृतिक और कलात्मक प्रकृति को देखते हुए, सांस्कृतिक प्रदर्शनों के मूल्यांकन तथा प्रचार में सहायता करते हुए, चयन प्रक्रिया में रक्षा मंत्रालय के साथ सहयोग करता है।
- चयन और सूचीबद्ध करना:
- परेड प्रतिभागियों के चयन के लिये एक मानक प्रक्रिया है। हर साल, आयोजन से कुछ महीने पहले, रक्षा मंत्रालय राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और विभागों को व्यापक विषय पर झाँकियों के लिये रेखाचित्र या डिज़ाइन प्रस्तुत करने के लिये आमंत्रित करता है।
- उदाहरण के लिये वर्ष 2024 का विषय 'विकसित भारत' और 'भारत-लोकतंत्र की मातृका' (भारत-लोकतंत्र की माता) है।
- स्केच या डिज़ाइन सरल, रंगीन, समझने में आसान होना चाहिये और सांख्यिकीय डेटा एवं अनावश्यक विवरण से बचना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, मंत्रालय बुनियादी दिशा-निर्देश जैसे: पर्यावरण-अनुकूल सामग्री और प्रौद्योगिकी का उपयोग साझा करता है, जिन्हें प्रस्ताव में शामिल किया जाना चाहिये ।
- झाँकी पर राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के नाम को छोड़कर लोगो लिखने या उपयोग करने की अनुमति नहीं है, जो सामने हिंदी में, पीछे अंग्रेज़ी में और झाँकी के किनारों पर क्षेत्रीय भाषा में हो सकता है।
- परेड प्रतिभागियों के चयन के लिये एक मानक प्रक्रिया है। हर साल, आयोजन से कुछ महीने पहले, रक्षा मंत्रालय राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों और विभागों को व्यापक विषय पर झाँकियों के लिये रेखाचित्र या डिज़ाइन प्रस्तुत करने के लिये आमंत्रित करता है।
- विशेषज्ञों की समिति:
- MoD प्रस्तावों की स्क्रीनिंग के लिये कला, संस्कृति, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, वास्तुकला और कोरियोग्राफी सहित अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करता है।
- इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (IGNCA) और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् (ICCR) द्वारा अनुशंसित प्रसिद्ध कलाकारों की विशेषज्ञ समिति ने चार चरण की बैठकों के बाद वर्ष 2024 परेड के लिये 16 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों की झाँकी का चयन किया।
- पहले चरण में, पैनल एक बुनियादी मूल्यांकन करता है और स्केच या डिज़ाइन में संशोधन का सुझाव देता है।
- एक बार जब किसी संशोधन के बाद डिज़ाइन स्वीकृत हो जाते हैं, तो प्रतिभागी पैनल के सामने प्रस्तावित झाँकी का त्रि-आयामी मॉडल प्रस्तुत करते हैं।
- अंतिम चयन के लिये विशेषज्ञों द्वारा इनकी जाँच की जाती है। केवल शॉर्टलिस्ट किये गए उम्मीदवारों को ही अगले राउंड के बारे में सूचित किया जाता है।
- MoD प्रस्तावों की स्क्रीनिंग के लिये कला, संस्कृति, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, वास्तुकला और कोरियोग्राफी सहित अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक समिति का गठन करता है।
गणतंत्र दिवस क्या है?
- 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ जिसे स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- गणतंत्र दिवस उस दिन की स्मृति में मनाया जाता है जब भारत ने एक लिखित संविधान प्राप्त किया तथा एक स्वतंत्र गणराज्य बन गया।
- 'गणतंत्र' पद इंगित करता है कि भारत में एक निर्वाचित प्रमुख है जिसे राष्ट्रपति कहा जाता है।
- भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को संविधान सभा द्वारा अंगीकृत किया गया एवं 26 जनवरी 1950 को क्रियान्वित हुआ।
- 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
- 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाने के लिये चुना गया क्योंकि इसी दिन वर्ष 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस (Indian National Congress- INC) ने ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वराज अथवा भारतीय स्वतंत्रता की घोषणा की थी।
- दिसंबर 1929 में आयोजित कॉन्ग्रेस के लाहौर सत्र के दौरान, पूर्ण स्वराज प्रस्ताव पारित किया गया था। इस सत्र की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई थी।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. 26 जनवरी, 1950 को भारत की वास्तविक संविधानिक स्थिति क्या थी? (2021) (a) लोकतंत्रात्मक गणराज्य उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. 'प्रस्तावना' में 'गणतंत्र' शब्द से संबंधित प्रत्येक विशेषण की विवेचना कीजिये। क्या वर्तमान परिस्थितियों में उनका बचाव संभव है? (2013) |
प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री अनुसूचित जाति अभ्युदय योजना, केंद्र प्रायोजित योजना, प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना, बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजना, अनुसूचित जाति मेन्स के लिये:अनुसूचित जनजातियों के लिये कल्याण योजनाएँ, अनुसूचित जनजातियों के लिये सुरक्षा उपाय, सरकारी पहल |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने प्रधान मंत्री अनुसुचित जाति अभ्युदय योजना (PM-AJAY) पर प्रकाश डाला, जो प्रधान मंत्री आदर्श ग्राम योजना (PMAGY), अनुसूचित जाति उपयोजना के लिये विशेष केंद्रीय सहायता (SCA से SCSP) ,और बाबू जगजीवन राम छात्रावास योजना (BJRCY) सहित तीन केंद्र प्रायोजित योजनाओं को मिलाकर एक व्यापक योजना है।
- वित्तीय वर्ष 2021-22 में शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य कौशल विकास, आय-सृजन योजनाओं और विभिन्न पहलों के माध्यम से रोजगार के अवसर पैदा करके अनुसूचित जाति समुदायों का उत्थान करना है।
PM-AJAY की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- उद्देश्य:
- कौशल विकास, आय-सृजन योजनाओं और अन्य पहलों के माध्यम से अतिरिक्त रोज़गार के अवसर पैदा करके अनुसूचित जाति समुदायों में गरीबी को कम करना।
- भारत के आकांक्षी ज़िलों/अनुसूचित जाति बहुल ब्लॉकों और अन्य जगहों पर गुणवत्तापूर्ण संस्थानों में पर्याप्त आवासीय सुविधाएँ प्रदान करके साक्षरता बढ़ाना तथा स्कूलों एवं उच्च शिक्षण संस्थानों में अनुसूचित जाति के नामांकन को प्रोत्साहित करना।
- PM-AJAY के घटक:
- अनुसूचित जाति बहुल ग्रामों का "आदर्शग्राम" के रूप में विकास:
- इस घटक को पहले प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना (PMAGY) के नाम से जाना जाता था।
- इस घटक का उद्देश्य अनुसूचित जाति-बहुल ग्रामों का एकीकृत विकास सुनिश्चित करना है।
- सामाजिक-आर्थिक विकास आवश्यकताओं के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचा प्रदान करना।
- चिह्नित सामाजिक-आर्थिक संकेतकों (निगरानी योग्य संकेतक) में लक्ष्य सुधार।
- निगरानी योग्य संकेतक 10 डोमेन में वितरित किये गए हैं। इन डोमेन में पेयजल और स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा पोषण, सामाजिक सुरक्षा, ग्रामीण सड़कें एवं आवास, ऊर्जा व स्वच्छ ईंधन, कृषि पद्धतियाँ, वित्तीय समावेशन, डिजिटलीकरण और आजीविका एवं कौशल विकास जैसे महत्त्वपूर्ण पहलू शामिल हैं।
- अनुसूचित जाति और गैर-अनुसूचित जाति आबादी के बीच असमानता को समाप्त करना।
- सभी अनुसूचित जाति के बच्चों के लिये कम-से-कम माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा पूरी करना सुनिश्चित करना।
- मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को बढ़ाने वाले कारकों का पता लगाना।
- विशेषकर बच्चों और महिलाओं में कुपोषण की घटनाओं को समाप्त करना।
- उपलब्धियाँ:
- आदर्श ग्राम घटक के तहत, वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान कुल 1834 गाँवों को आदर्श ग्राम घोषित किया गया है।
- ज़िला/राज्य-स्तरीय परियोजनाओं के लिये 'सहायता अनुदान':
- इस घटक को पूर्व में अनुसूचित जाति उपयोजना के लिये विशेष केंद्रीय सहायता के रूप में जाना जाता था।
- इस योजना का लक्ष्य निम्नलिखित प्रकार की परियोजनाओं के लिये अनुदान के माध्यम से अनुसूचित जाति का सामाजिक-आर्थिक विकास करना है:
- व्यापक आजीविका परियोजनाएँ:
- ऐसी परियोजनाएँ जो अनुसूचित जाति के लिये स्थायी आय उत्पन्न करने अथवा सामाजिक उन्नति के लिये एक संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती हैं, उन्हें ही शुरू किया जाएगा।
- ये परियोजनाएँ अधिमानतः निम्नलिखित में से दो या अधिक का संयोजन होनी चाहिये:
- कौशल विकास:
- कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय के मानदंडों के अनुसार कौशल पाठ्यक्रम तैयार करना। सरकार द्वारा संचालित कौशल विकास गतिविधियों के संचालन के लिये संबंधित सुविधाएँ तथा बुनियादी ढाँचा प्रदान करना। इसके अंतर्गत कौशल विकास संस्थानों को भी वित्त पोषित किया जा सकता है।
- लाभार्थियों/परिवारों के लिये परिसंपत्तियों के निर्माण/अधिग्रहण हेतु अनुदान:
- योजना के अंतर्गत एकल व्यक्तिगत परिसंपत्ति वितरण होगा। हालाँकि, यदि परियोजना में लाभार्थियों/परिवारों के लिये आजीविका सृजन के लिये आवश्यक परिसंपत्तियों के अधिग्रहण/निर्माण का प्रावधान है तो ऐसी परिसंपत्तियों के अधिग्रहण/निर्माण के लिये लाभार्थी द्वारा लिये गए ऋण के लिये वित्तीय सहायता, प्रति लाभार्थी/घर 50,000 रुपए अथवा परिसंपत्ति लागत का 50 प्रतिशत तक जो भी कम हो, तक होगी।
- बुनियादी ढाँचे का विकास:
- परियोजना से संबंधित बुनियादी ढाँचे तथा छात्रावासों एवं आवासीय विद्यालयों का विकास किया जाएगा।
- विशेष प्रावधान:
- अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिये कुल अनुदान का 15 प्रतिशत तक विशेष रूप से व्यवहार्य आय उत्पन्न करने वाली आर्थिक विकास योजनाएँ/कार्यक्रम के संचालन का प्रावधान।
- बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये कुल अनुदान का 30 प्रतिशत तक उपयोग किया जाएगा।
- जो कौशल विकास के लिये कुल निधि का कम-से-कम 10 प्रतिशत हो।
- कौशल विकास के लिये कुल निधि का कम-से-कम 10% उपयोग किया जाएगा।
- उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन तथा विपणन में लगी अनुसूचित जाति महिला सहकारी समितियों को बढ़ावा देना।
- व्यापक आजीविका परियोजनाएँ:
- उपलब्धियाँ:
- वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान अनुदान सहायता घटक के तहत 17 राज्यों के लिये परिप्रेक्ष्य योजना को मंज़ूरी दी गई है।
- उच्च शिक्षण संस्थानों में छात्रावासों का निर्माण:
- यह अनुसूचित जाति के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने और स्कूल छोड़ने की दर को कम करने में सक्षम तथा प्रोत्साहित करता है, इसे राज्य सरकारों, केंद्रशासित प्रदेश प्रशासनों एवं केंद्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों/संस्थानों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।
- छात्रावासों के निर्माण/विस्तार के लिये लागत मानदंड निम्नानुसार होंगे:
- उत्तर पूर्वी क्षेत्र: प्रति कैदी 3.50 लाख रुपए।
- उत्तरी हिमालयी क्षेत्र: प्रति कैदी 3.25 लाख रुपए।
- गंगा के मैदान और निचले हिमालयी क्षेत्र: प्रति कैदी 3.00 लाख रुपए।
- लड़कों के छात्रावासों के लिये भी 100% केंद्रीय सहायता - पहले यह राज्य के साथ लागत साझा करती थी।
- छात्रावासों के निर्माण/विस्तार के लिये लागत मानदंड निम्नानुसार होंगे:
- सफलता:
- वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान कुल 15 नए छात्रावासों को मंज़ूरी दी गई है।
- यह अनुसूचित जाति के छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने और स्कूल छोड़ने की दर को कम करने में सक्षम तथा प्रोत्साहित करता है, इसे राज्य सरकारों, केंद्रशासित प्रदेश प्रशासनों एवं केंद्रीय व राज्य विश्वविद्यालयों/संस्थानों के माध्यम से कार्यान्वित किया जाता है।
- अनुसूचित जाति बहुल ग्रामों का "आदर्शग्राम" के रूप में विकास:
सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न1. वर्ष 2001 में आर.जी.आई. ने कहा कि दलित जो इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, वे एक भी जातीय समूह नहीं हैं क्योंकि वे विभिन्न जाति समूहों से संबंधित हैं। इसलिये उन्हें अनुच्छेद 341 के खंड (2) के अनुसार अनुसूचित जाति (SC) की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता है, जिसमें शामिल करने हेतु एकल जातीय समूह की आवश्यकता होती है। (2014) प्रश्न2. क्या राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये संवैधानिक आरक्षण के क्रियान्वयन का प्रवर्तन करा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018) |
प्रोजेक्ट टाइगर
प्रिलिम्स के लिये:प्रोजेक्ट टाइगर, टाइगर रिज़र्व, पग-मार्क विधि, बाघ गणना, कैमरा-ट्रैप विधि, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, महत्त्वपूर्ण बाघ आवास (CTH), राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), टाइगर टास्क फोर्स, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 मेन्स के लिये:प्रोजेक्ट टाइगर तथा बाघों की संख्या के संरक्षण में इसका योगदान। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में टाइगर रिज़र्व (55) की स्थापना तथा महत्त्वपूर्ण वन्यजीव संरक्षण कानूनों को कार्यांवित कर समय के साथ बाघ संरक्षण पहल में विकास किया गया है।
- हालाँकि वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 तथा वन अधिकार अधिनियम, 2006 के उल्लंघन के कारण वन प्रशासन तथा वनवासियों के बीच टाइगर रिज़र्व में संघर्ष की स्थिति बढ़ गई है।
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दो प्रमुख कार्यक्रमों प्रोजेक्ट टाइगर (PT) एवं प्रोजेक्ट एलीफेंट को प्रोजेक्ट टाइगर एंड एलीफेंट (Project Tiger and Elephant- PTE) के रूप में एकीकृत करने की घोषणा की।
बाघ संरक्षण में कौन-सी कमियाँ हैं?
- वन्यजीव संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2006 के तहत विकास परियोजनाओं के लिये "बाघ के वन" के डायवर्ज़न पर रोक नहीं लगाई गई तथा यदि वन्यजीवों से मानव जीवन को खतरा होता है तो उन्हें अंतिम उपाय के रूप में मारने की अनुमति दी जाती है।
- सरकार ने वर्ष 2009 में FRA नियमों को अधिसूचित करने तथा अधिनियम को क्रिर्यांवित करने की योजना बनाई।
- किंतु नवंबर 2007 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) ने एक आदेश पारित किया जिसमें मुख्य वन्यजीव वार्डनों को 800-1,000 वर्ग किमी. के क्षेत्र वाले क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स (CTH) को अंकित करने का प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिये 13 दिनों का समय दिया गया।
- परिणामस्वरूप सरकार ने WLPA की धारा 38 (V) के प्रावधानों का अनुपालन किये बिना 12 राज्यों में 26 टाइगर रिज़र्व को संबद्ध अधिसूचना जारी की।
- सिमिलिपाल, ओडिशा में टाइगर रिज़र्व, क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स में बफर क्षेत्र का अभाव था।
- 2012 में ही उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्देश के बाद शामिल किया गया था, जिसने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को तीन महीने का अल्टीमेटम दिया था।
- टाइगर टास्क फोर्स ने पाया कि बंदूकें, गार्ड और बाड़ का उपयोग करने का दृष्टिकोण बाघों की रक्षा नहीं कर रहा था, और वन/वन्यजीव नौकरशाही और बाघों के साथ सह-अस्तित्व रखने वालों के बीच बढ़ता संघर्ष आपदा का एक प्रकार था।
बाघ संरक्षण के लिये पहल:
प्रोजेक्ट टाइगर:
- परिचय:
- प्रोजेक्ट टाइगर भारत में एक वन्यजीव संरक्षण पहल है जिसे वर्ष 1973 में शुरू किया गया था।
- प्रोजेक्ट टाइगर का प्राथमिक उद्देश्य समर्पित टाइगर रिज़र्व बनाकर बाघों की आबादी के प्राकृतिक आवासों में अस्तित्त्व और रखरखाव सुनिश्चित करना है।
- 9,115 वर्ग किमी में फैले केवल नौ अभ्यारण्यों से शुरू होकर, इस परियोजना ने वन्यजीव संरक्षण प्रयासों में एक आदर्श बदलाव को चिह्नित किया है।
- बाघ गणना की विधि:
- वर्ष 1972 में पहली बाघ ज़नगणना की अविश्वसनीय पग-चिह्न विधि ने कैमरा-ट्रैप विधि जैसी अधिक सटीक तकनीकों का मार्ग प्रशस्त किया।
- बाघों की जनसंख्या में वृद्धि:
- 1972 में पहली बाघ जनगणना में 1,827 बाघों की गिनती के लिये अविश्वसनीय पग-चिह्न पद्धति का उपयोग किया गया था।
- 2022 तक, बाघों की आबादी 3,167-3,925 होने का अनुमान है, जो प्रतिवर्ष 6.1% की वृद्धि दर को दर्शाता है।
- अब भारत विश्व के तीन-चौथाई बाघों का घर है।
- टाइगर रिज़र्व:
- 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर 9,115 वर्ग कि.मी. में फैले नौ अभ्यारण्यों के साथ शुरू हुआ। 2018 तक यह विभिन्न राज्यों में 55 रिज़र्व तक बढ़ गया था, जो कुल 78,135.956 वर्ग किमी या भारत के भूमि क्षेत्र का 2.38% था।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:
- वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 वन्य जीवों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों की सुरक्षा, उनके आवासों के प्रबंधन, वन्य जीवों, पादपों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (Wildlife (Protection) Act- WLPA), 1972 में बाघ संरक्षण के लिये आधार तैयार किया गया। इसने राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की स्थापना की, राज्य सरकारों के पक्ष में अधिकारों को अलग किया तथा क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स (Critical Tiger Habitat- CTH) की अवधारणा को पेश किया।
- वर्ष 2006 में WLPA में संशोधन से राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority- NTCA) और एक व्यापक बाघ संरक्षण योजना का निर्माण हुआ।
- इसने बाघ संरक्षण, वन संरक्षण और स्थानीय समुदायों की भलाई के बीच अविभाज्य संबंध को स्वीकार करते हुए, पूर्व के कैप्टिव संरक्षण दृष्टिकोण से बदलाव को चिह्नित किया।
टाइगर टास्क फोर्स:
- वर्ष 2005 में बाघ संरक्षण के बारे में चिंताओं से प्रेरित टाइगर टास्क फोर्स के गठन ने पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। टास्क फोर्स ने मौजूदा रणनीति में कमियों को उजागर किया जो हथियारों, वनरक्षकों एवं बाड़ों पर बहुत अधिक निर्भर थी।
वन अधिकार मान्यता अधिनियम, 2006 क्या है?
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के अधिनियमन ने समुदायों में प्रथागत एवं पारंपरिक वन अधिकारों को मान्यता दी।
- इसने ग्राम सभाओं को अपनी सीमाओं के भीतर वन संसाधनों और जैवविविधता का लोकतांत्रिक ढंग से प्रबंधन करने का अधिकार दिया।
- महत्त्वपूर्ण वन्यजीव पर्यावास (Critical Wildlife Habitat- CWH):
- वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act- FRA) ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA) के तहत क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) की भाँति एक 'क्रिटिकल वाइल्डलाइफ हैबिटेट' (CWH) की शुरुआत की।
- हालाँकि एक महत्त्वपूर्ण अंतर यह था कि एक बार CWH अधिसूचित हो जाने के बाद, इसे गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये पुनर्निर्देशित नहीं किया जा सकता था। बातचीत के दौरान आदिवासी आंदोलनों द्वारा इस विशेष खंड पर ज़ोर दिया गया था।
- क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट्स (CTH) 42,913.37 वर्ग किमी. या राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के अंतर्गत 26% क्षेत्र को कवर करता है।
- वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act- FRA) ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA) के तहत क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट (CTH) की भाँति एक 'क्रिटिकल वाइल्डलाइफ हैबिटेट' (CWH) की शुरुआत की।
- ग्राम सभाओं को अपनी पारंपरिक सीमाओं के भीतर जंगल, वन्य जीवन और जैवविविधता की सुरक्षा, संरक्षण एवं निगरानी करने का अधिकार दिया गया था।
निष्कर्ष:
वर्ष 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर से लेकर वर्ष 2006 के संशोधनों द्वारा NTCA के निर्माण तक की यात्रा बाघ संरक्षण और टिकाऊ सह-अस्तित्व के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। सामुदायिक सशक्तीकरण का एकीकरण, वन अधिकारों की मान्यता और वन्यजीव संरक्षण के लिये एक सूक्ष्म दृष्टिकोण वन्यजीव संरक्षण में एक समग्र प्रतिमान प्रदर्शित करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन-सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (2021) (a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (d) प्रश्न 2. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 (b) केवल 2 और 3 (c) केवल 3 (d) 1, 2 और 3 उत्तर: (a) |
विश्व रोज़गार और सामाजिक आउटलुक: रुझान 2024
प्रिलिम्स के लिये:अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO), बेरोज़गारी, श्रम बाज़ार, G20 देश, अनौपचारिक कार्य। मेन्स के लिये:विश्व रोज़गार और सामाजिक आउटलुक: रुझान 2024। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने विश्व रोज़गार और सामाजिक आउटलुक: रुझान 2024 रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया गया है कि वैश्विक बेरोज़गारी दर वर्ष 2024 में बढ़ने वाली है और बढ़ती असमानताएँ एवं स्थिर उत्पादकता चिंता का कारण हैं।
रिपोर्ट के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- बिगड़ती आर्थिक स्थितियों के बीच लचीलापन:
- बिगड़ती आर्थिक स्थितियों के बावजूद, वैश्विक श्रम बाज़ारों ने बेरोज़गारी दर और नौकरियों के अंतर दर (रोज़गार रहित व्यक्तियों की संख्या जो नौकरी खोजने में रुचि रखते हैं) दोनों में सुधार के साथ आश्चर्यजनक लचीलापन दिखाया है।
- वैश्विक बेरोज़गारी रुझान:
- वर्ष 2023 में वैश्विक बेरोज़गारी दर 5.1% थी, जो वर्ष 2022 की तुलना में मामूली सुधार है।
- हालाँकि रिपोर्ट में श्रम बाज़ार के बिगड़ते परिदृश्य का अनुमान लगाया गया है, वर्ष 2024 में अतिरिक्त 20 लाख श्रमिकों के नौकरियों की तलाश करने की उम्मीद है, जिससे वैश्विक बेरोज़गारी दर 5.2% तक बढ़ जाएगी।
- असमान पुनर्प्राप्ति:
- महामारी से उबरना असमान है, नई कमज़ोरियों और कई संकटों के कारण व्यापक सामाजिक न्याय की संभावनाएँ कम हो रही हैं।
- बेरोज़गारी दर और नौकरियों के अंतर दर दोनों के संदर्भ में, उच्च एवं निम्न आय वाले देशों के बीच मतभेद बने रहते हैं।
- वर्ष 2023 में उच्च आय वाले देशों में बेरोज़गारी अंतराल दर 8.2% था जबकि निम्न आय वाले देशों में यह 20.5% थी।
- इसी प्रकार र्ष 2023 में उच्च आय वाले देशों में बेरोज़गारी दर 4.5% पर बनी रही जबकि कम आय वाले देशों में यह 5.7% थी।
- आय असमानता में वृद्धि:
- आय असमानता में वृद्धि हुई है तथा अधिकांश G20 देशों में प्रयोज्य आय में गिरावट आई है।
- वास्तविक प्रयोज्य आय में कमी को कुल मांग तथा अधिक निरंतर आर्थिक सुधार के लिये एक नकारात्मक कारक के रूप में देखा जाता है।
- प्रयोज्य आय निवल आय प्रदर्शित करती है। यह करों के बाद शेष राशि को संदर्भित करती है।
- आय असमानता में वृद्धि हुई है तथा अधिकांश G20 देशों में प्रयोज्य आय में गिरावट आई है।
- कामकाज़ी गरीबी की स्थिति:
- वर्ष 2020 के बाद संबद्ध क्षेत्र में तेज़ी से गिरावट के बावजूद अत्यधिक गरीबी में रहने वाले श्रमिकों की संख्या (क्रय शक्ति समता के संदर्भ में प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2.15 अमेरिकी डॉलर से कम आय) वर्ष 2023 में लगभग 1 मिलियन बढ़ गई।
- मध्यम निर्धनता (PPP के संदर्भ में प्रति व्यक्ति प्रति दिन USD3.65 से कम आय) में रहने वाले श्रमिकों की संख्या 2023 में 8.4 मिलियन बढ़ गई।
- कामकाज़ी गरीबी एक चुनौती के रूप में बनी रहने की संभावना है।
- अनौपचारिक कार्य दरों की स्थिति:
- अनौपचारिक कार्य की दरों में स्थिरता रहने की उम्मीद है जो वर्ष 2024 में वैश्विक कार्यबल का लगभग 58% है।
- श्रम बाज़ार का असंतुलन:
- महामारी से पहले श्रम बाज़ार में भागीदारी की दर की वापसी विभिन्न समूहों के बीच भिन्न-भिन्न रही है।
- महिलाओं की भागीदारी में तेज़ी से वापसी हुई है, परंतु लैंगिक अंतर अभी भी बना हुआ है, विशेषकर उभरते और विकासशील देशों में।
- .युवा बेरोज़गारी दर और NEET (रोज़गार, शिक्षा या प्रशिक्षण में नहीं) श्रेणी उच्च बनी हुई है, जिससे दीर्घकालिक रोज़गार संभावनाओं के लिये चुनौतियां खड़ी हो रही हैं।
- उत्पादकता में कमी:
- महामारी के बाद थोड़े समय के लिये उत्पादकता में वृद्धि तो देखी गई किंतु श्रम उत्पादकता पिछले दशक में देखे गए निम्न स्तर पर लौट आई है।
- कौशल की कमी और बड़े डिजिटल एकाधिकार के प्रभुत्व सहित बाधाओं के साथ, तकनीकी प्रगति और बढ़े हुए निवेश के बावजूद उत्पादकता वृद्धि धीमी बनी हुई है।
- अनिश्चित परिदृश्य और संरचनात्मक चिंताएँ:
- हाल ही में देखे गए असंतुलन केवल महामारी का परिणाम मात्र नहीं है बल्कि संरचनात्मक चुनौतियाँ भी इसका कारण हो सकती हैं। कार्यबल संबंधी चुनौतियाँ व्यक्तिगत आजीविका और व्यवसाय दोनों के लिये खतरा पैदा करती हैं।
- गिरते जीवन स्तर, कमज़ोर उत्पादकता, निरंतर मुद्रास्फीति और अधिक असमानता सामाजिक न्याय तथा सतत् पुनर्प्राप्ति के प्रयासों को क्षीण करती है। रिपोर्ट इन चुनौतियों से प्रभावी ढंग से और शीघ्रता से निपटने की आवश्यकता पर जोर देती है।
- सकारात्मक वास्तविक मज़दूरी:
- भारत और तुर्की में वास्तविक मज़दूरी अन्य G20 देशों की तुलना में "सकारात्मक" है, लेकिन उपलब्ध डेटा 2021 के सापेक्ष 2022 का संदर्भ देता है। इसका तात्पर्य यह है कि वैश्विक चुनौतियों के बावजूद, भारत में वेतन वृद्धि मुद्रास्फीति से आगे निकलने में कामयाब रही है, जिससे वास्तविक मज़दूरी में सुधार में योगदान मिला है।
- अन्य G20 देशों में वास्तविक मज़दूरी में गिरावट देखी गई; गिरावट विशेष रूप से ब्राज़ील (6.9%), इटली (5%) और इंडोनेशिया (3.5%) में देखी गई।
अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है?
- परिचय:
- इसे वर्ष 1919 में प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने वाली वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में बनाया गया था, इस विश्वास को प्रतिबिंबित करने के लिये कि सार्वभौमिक तथा स्थायी शांति केवल तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
- यह वर्ष 1946 में संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी बन गई।
- यह एक त्रिपक्षीय संगठन है, जो अपनी तरह का एकमात्र संगठन है जो अपने कार्यकारी निकायों में सरकारों, नियोक्ताओं एवं श्रमिकों के प्रतिनिधियों को एक साथ लाता है।
- इसे वर्ष 1919 में प्रथम विश्व युद्ध को समाप्त करने वाली वर्साय की संधि के हिस्से के रूप में बनाया गया था, इस विश्वास को प्रतिबिंबित करने के लिये कि सार्वभौमिक तथा स्थायी शांति केवल तभी प्राप्त की जा सकती है जब यह सामाजिक न्याय पर आधारित हो।
- सदस्य:
- कुल 187 सदस्य देशों के साथ भारत ILO का संस्थापक सदस्य है।
- 2020 में भारत ने ILO के शासी निकाय की अध्यक्षता ग्रहण की।
- मुख्यालय:
- जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड
- पुरस्कार:
- वर्ष1969 में, ILO को राष्ट्रों के बीच भाईचारा और शांति में सुधार करने, श्रमिकों के लिये सभ्य कार्य और न्याय प्रदान करने के साथ-साथ अन्य विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिये नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन 138 और 182 किससे संबंधित हैं? (2018) (a) बाल श्रम उत्तर: (a) |