डेली न्यूज़ (11 Nov, 2022)



आर्द्रभूमि संरक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

आर्द्रभूमि संरक्षण, मैंग्रोव, पीटलैंड्स, इको-सिस्टम

मेन्स के लिये:

आर्द्रभूमि और इसका महत्त्व, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट

चर्चा में क्यों?

इस एंथ्रोपोसीन युग में मानव हस्तक्षेप को पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के हर घटक में देखा जा सकता है। इस तरह के मानव की वजह से होने वाले परिवर्तनों के कारण झीलों, तालाबों जैसे उथले आर्द्रभूमि का नुकसान प्रमुख चिंता का विषय बन रहा है।

  • एंथ्रोपोसीन युग भूगर्भिक समय की एक अनौपचारिक इकाई है, जिसका उपयोग पृथ्वी के इतिहास में सबसे हालिया अवधि का वर्णन करने के लिये किया जाता है जब मानव गतिविधियों का ग्रह की जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ने लगा था।

उथले पानी की आर्द्रभूमि:

  • परिचय:
    • ये कम प्रवाह के साथ स्थायी या अर्द्ध-स्थायी जल क्षेत्र की आर्द्रभूमियाँ हैं। इनमें वर्नल पोंड (तालाब) व स्प्रिंग पूल, नमक झीलें और ज्वालामुखीय गड्ढा युक्त झीलें शामिल हैं।
    • ये पारिस्थितिक महत्त्व और मानव आवश्यकता के रूप में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं (जैसे कि पीने का पानी और अंतर्देशीय मत्स्य पालन)।
    • उथली प्रकृति होने के कारण सूरज की किरणें जल निकाय के तल में प्रवेश करती हैं।
    • तापमान (नियमित रूप से ऊपर-से-नीचे की ओर परिसंचरण तथा) निरंतर मिश्रण के साथ होने वाला एक समतापी प्रक्रम है, जो विशेष रूप से भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश में होता है।
  • चिंताएँ:
    • समय के साथ ये जल निकाय, पानी के साथ आने वाले तलछट से भर जाते हैं
    • इसलिये पानी की गहराई धीरे-धीरे कम हो जाती है। यह काफी स्पष्ट है कि तापमान और वर्षा प्रतिरूप में छोटे से बदलाव ने इस प्रकार के जल निकाय पर व्यापक प्रभाव डालते है।  
    • वर्ष 1901-2018 तक भारत के औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रीनहाउस गैस को ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ भूमि-उपयोग और भूमि-क्षेत्र परिवर्तन के लिये प्रेरित कारकों के रूप में भी ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
    • तापमान और गर्मी वितरण में इस तरह के क्षेत्रीय पैमाने पर बदलाव का असर वर्षा पैटर्न पर भी पड़ेगा। इसलिये भारत के प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों, मीठे पानी के संसाधनों और कृषि के लिये खतरा बढ़ रहा है, जो अंततः जैवविविधता, खाद्य, जल सुरक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य तथा समग्र रूप से समाज को प्रभावित करते हैं।
      • सूरजपुर पक्षी अभयारण्य (यमुना नदी बेसिन में शहरी आर्द्रभूमि) का एक उदाहरण जिसमें अक्तूबर 2019 में सूरजपुर आर्द्रभूमि में जल स्तर , उच्च शैवाल उत्पादन के साथ-साथ दुर्गंध संबंधी मुद्दों को कम किया।

आर्द्रभूमि:

  • परिचय:
    • आर्द्रभूमि ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ जल पर्यावरण और संबंधित वनस्पति एवं जंतु जीवन को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कारक उपस्थित होता है। वे वहाँ उपस्थित होते हैं जहाँ जल स्तर भूमि की सतह पर या उसके निकट होता है अथवा जहाँ भूमि जल से आप्लावित होती है।
    • वे स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच की संक्रमणकालीन भूमि हैं जहाँ जल स्तर आमतौर पर भूमि सतह पर या उसके निकट होती है अथवा भूमि उथले जल से ढकी होती है।
    • इन्हें प्रायः "प्रकृति का गुर्दा" और "प्रकृति का सुपरमार्केट" कहा जाता है, ये भोजन और पानी प्रदान करके लाखों लोगों की सहायता करने के साथ ही बाढ़ व तूफान की लहरों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
  • तटीय आर्द्रभूमि:
    • तटीय आर्द्रभूमि: यह भूमि और खुले समुद्र के बीच के क्षेत्रों में पाई जाती है जो तटरेखा, समुद्र तट, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों की तरह नदियों से प्रभावित नहीं होते हैं।
      • उष्णकटिबंधीय तटीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले मैंग्रोव दलदल इसका एक अच्छा उदाहरण है।
    • दलदल:
      • ये जल से संतृप्त क्षेत्र या पानी से भरे क्षेत्र होते हैं और गीली मिट्टी की स्थिति के अनुकूल जड़ी-बूटियों वाली वनस्पतियाँ इनकी विशेषता होती है। दलदल को आगे ज्वारीय दलदल और गैर-ज्वारीय दलदल के रूप में जाना जाता है।
    • स्वैंप्स:
      • ये मुख्य रूप से सतही जल द्वारा पोषित होते हैं तथा यहाँ पेड़ व झाड़ियाँ पाई जाती हैं। ये मीठे पानी या खारे पानी के बाढ़ के मैदानों में पाए जाते हैं।
    • बॉग्स:
      • बॉग्स दलदल पुराने झील घाटियाँ अथवा भूमि में जलभराव वाले गड्ढे हैं। इनमें लगभग सारा पानी वर्षा के दौरान जमा होता है।
    • मुहाना:
      • जहाँ नदियाँ समुद्र में मिलती हैं वहाँ जैवविविधता का एक अत्यंत समृद्ध मिश्रण देखने को मिलता है। इन आर्द्रभूमियों में डेल्टा, ज्वारीय मडफ्लैट्स और नमक के दलदल शामिल हैं।

आर्द्रभूमियों का महत्त्व:

  • अत्यधिक उत्पादक पारिस्थितिकी तंत्र: आर्द्रभूमि अत्यधिक उत्पादक पारिस्थितिक तंत्र होते हैं जो वैश्विक रूप से लगभग दो-तिहाई मछली प्रदान करते हैं।
  • वाटरशेड की पारिस्थितिकी में अभिन्न भूमिका: उथले पानी और उच्च स्तर के पोषक तत्त्वों का संयोजन जीवों के विकास के लिये आदर्श परिस्थिति होते हैं जो खाद्य जाल का आधार हैं, ये मछली, उभयचर, शंख और कीड़ों की कई प्रजातियों के भोजन प्रबंधन में सहायक होते हैं।
  • कार्बन प्रच्छादन: आर्द्रभूमि के सूक्ष्मजीव, पादप एवं वन्यजीव जल, नाइट्रोजन और सल्फर के वैश्विक चक्रों का अंग हैं। आर्द्रभूमि कार्बन को कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में वातावरण में छोड़ने के बजाय अपने पादप समुदायों एवं मृदा के भीतर संग्रहीत करती है।
  • बाढ़ की गति और मिट्टी के कटाव को कम करना: आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक अवरोधकों के रूप में कार्य करती हैं जो सतही जल, वर्षा, भूजल तथा बाढ़ के पानी को अवशोषित करती हैं एवं धीरे-धीरे इसे फिर से पारिस्थितिकी तंत्र में छोड़ती है। आर्द्रभूमि वनस्पति बाढ़ के पानी की गति को भी धीमा कर देती है जिससे मिट्टी के कटाव कमी आती हैं।
  • मानव और ग्रह जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण: आर्द्रभूमि मानव और पृथ्वी पर जीवन के लिये महत्त्वपूर्ण है। एक अरब से अधिक लोग जीवन यापन के लिये उन पर निर्भर हैं और दुनिया की 40% प्रजातियाँ आर्द्रभूमि में रहती हैं एवं प्रजनन करती हैं।

आर्द्रभूमि को खतरा:

  • शहरीकरण: शहरी केंद्रों के पास आवासीय, औद्योगिक और वाणिज्यिक सुविधाओं के विकास के कारण आर्द्रभूमि पर दबाव बढ़ रहा है। सार्वजनिक जल आपूर्ति को संरक्षित करने के लिये शहरी आर्द्रभूमि आवश्यक हैं।
    • दिल्ली वेटलैंड अथॉरिटी के अनुमान के मुताबिक, दिल्ली में 1,000 से अधिक झीलें, आर्द्रभूमि और तालाब हैं।
      • लेकिन इनमें से अधिकांश को बड़े पैमाने पर अतिक्रमण (नियोजित और अनियोजित दोनों), ठोस अपशिष्ट एवं निर्माण के मलबे के डंपिंग के माध्यम से होने वाले प्रदूषण का खतरा है।
  • कृषि: आर्द्रभूमि के विशाल हिस्सों को धान के खेतों में बदल दिया गया है। सिंचाई के लिये बड़ी संख्या में जलाशयों, नहरों और बांँधों के निर्माण ने संबंधित आर्द्रभूमि के जल स्वरूप को बदल दिया है।
  • प्रदूषण: आर्द्रभूमि प्राकृतिक जल फिल्टर के रूप में कार्य करती है। हालांँकि वे केवल कृषि अपवाह से उर्वरकों और कीटनाशकों को साफ कर सकते हैं लेकिन औद्योगिक स्रोतों से निकले पारा एवं अन्य प्रकार के प्रदूषण को नहीं।
    • पेयजल आपूर्ति और आर्द्रभूमि की जैवविविधता पर औद्योगिक प्रदूषण के प्रभाव को लेकर चिंता बढ़ रही है।
  • जलवायु परिवर्तन: वायु के तापमान में वृद्धि, वर्षा में बदलाव, तूफान, सूखा और बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड संचयन में वृद्धि तथा समुद्र के स्तर में वृद्धि भी आर्द्रभूमि को प्रभावित कर सकती है।
  • तलकर्षण: आर्द्रभूमि या नदी तल से सामग्री को हटाना। जलधाराओं का तलकर्षण आसपास के जल स्तर को कम करता है तथा निकटवर्ती आर्द्रभूमियों को सुखा देता है।
  • ड्रेनिंग: धरती पर गड्ढों को खोदकर, जो पानी इकट्ठा करके आर्द्रभूमि से पानी निकाला जाता है इससे आर्द्रभूमि संकुचित हो जाती है और परिणामस्वरूप जल स्तर गिर जाता है।

आर्द्रभूमि संरक्षण की दिशा में किये गए प्रयास:

आगे की राह

  • अनियोजित शहरीकरण और बढ़ती आबादी का मुकाबला करने के लिये आर्द्रभूमि प्रबंधन योजना, निष्पादन एवं निगरानी के संदर्भ में एक एकीकृत दृष्टिकोण होना चाहिये।
  • आर्द्रभूमि के समग्र प्रबंधन के लिये पारिस्थितिकीविदों, वाटरशेड प्रबंधन विशेषज्ञों, योजनाकारों और निर्णय निर्माताओं सहित शिक्षाविदों एवं पेशेवरों के बीच प्रभावी सहयोग।
  • वेटलैंड्स के महत्त्व के बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू कर उनके जल की गुणवत्ता के लिये वेटलैंड्स की निरंतर निगरानी करके वेटलैंड्स को होने वाली क्षति बचाने के लिये महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न: ‘‘यदि वर्षावन और उष्णकटिबंधीय वन पृथ्वी के फेफड़े हैं, तो निश्चित ही आर्द्रभूमियाँ इसके गुर्दों की तरह काम करती हैं।’’ निम्नलिखित में से आर्द्रभूमियों का कौन-सा एक कार्य उपर्युक्त कथन को सर्वोत्तम रूप से प्रतिबिंबित करता है? (2022)

(a) आर्द्रभूमियों के जल चक्र में सतही अपवाह, अवमृदा अंत:स्रवण और वाष्पन शामिल होते हैं।
(b) शैवालों से वह पोषक आधार बनता है, जिस पर मत्स्य, परुषकवची (क्रश्टेशिआई), मृदुकवची (मोलस्क), पक्षी, सरीसृप और स्तनधारी फलते-फूलते हैं।
(c) आर्द्रभूमियाँ अवसाद संतुलन और मृदा स्थिरीकरण बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
(d) जलीय पादप भारी धातुओं और पोषकों के आधिक्य को अवशोषित कर लेते हैं।

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • आर्द्रभूमि महत्त्वपूर्ण निस्यंदक (Filter) हैं। ये अवसाद को ट्रैप करती हैं, प्रदूषकों को हटाती हैं और जल को शुद्ध करती हैं। आर्द्रभूमियाँ अपरदन को भी नियंत्रित करती हैं। इस प्रकार आर्द्रभूमि अवसाद संतुलन एवं मृदा स्थिरीकरण को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

अतः विकल्प (c) सही है।


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. रामसर कन्वेंशन के तहत भारत सरकार की ओर से भारत के क्षेत्र में सभी आर्द्रभूमियों की रक्षा और संरक्षण करना अनिवार्य है।
  2. आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2010 भारत सरकार द्वारा रामसर कन्वेंशन की सिफारिशों के आधार पर तैयार किये गए थे।
  3. आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2010 में प्राधिकरण द्वारा निर्धारित आर्द्रभूमि के जल निकासी क्षेत्र या जलग्रहण क्षेत्रों को भी शामिल किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


प्रश्न. आर्द्रभूमि क्या है? आर्द्रभूमि संरक्षण के 'बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग' की रामसर अवधारणा की व्याख्या कीजिये। भारत के रामसर स्थलों के दो उदाहरण दीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)

स्रोत : डाउन टू अर्थ


बिम्सटेक के कृषि मंत्रियों की दूसरी बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

बिम्सटेक/BIMSTEC, IFPRI

मेन्स के लिये:

नेबरहुड फर्स्ट नीति, भारत से संबंधित और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते, वैश्विक समूह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने बंगाल की खाड़ी बहुक्षेत्रीय तकनीकी एवं आर्थिक सहयोग उपक्रम (बिम्सटेक) की दूसरी कृषि‍ मंत्री-स्तरीय बैठक की मेज़बानी की।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

  • भारत ने सदस्य देशों से कृषि क्षेत्र में परिवर्तन के लिये आपसी सहयोग को मज़बूत करने के लिये एक व्यापक क्षेत्रीय रणनीति विकसित करने में सहयोग करने का आग्रह किया।
  • इसने सदस्य देशों से एक पोषक भोजन के रूप में बाजरा के महत्त्व और उसके उत्पादों को प्रोत्साहित करने के लिये भारत द्वारा किये गए प्रयास-अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष - 2023 के दौरान सभी के लिये एक अनुकूल कृषि खाद्य प्रणाली और एक स्वस्थ आहार अपनाने का भी आग्रह किया।
  • कृषीय जैवविविधता के संरक्षण एवं रसायनों के उपयोग को कम करने के लिये प्राकृतिक और पारिस्थितिक कृषि को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
    • डिजिटल खेती और सटीक खेती के साथ-साथ भारत में 'वन हेल्थ' दृष्टिकोण के तहत कई पहलें भी साकार होने की दिशा में हैं ।
  • क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा, शांति और समृद्धि के लिये बिम्सटेक देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने पर मार्च 2022 में कोलंबो में आयोजित 5वें बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भारत के वक्तव्य पर प्रकाश डाला गया।
  • बिम्सटेक कृषि सहयोग (2023-2027) को मज़बूत करने के लिये कार्य योजना को अपनाया गया।
  • बिम्सटेक सचिवालय और अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं और कृषि कार्य समूह के तहत मत्स्य पालन एवं पशुधन उप-क्षेत्रों को लाने की मंज़ूरी दी गई है।

बिम्सटेक (BIMSTEC):

  • परिचय:
    • बिम्सटेक क्षेत्रीय संगठन है जिसमें सात सदस्य देश शामिल हैं: पाँच दक्षिण एशिया से हैं, जिनमें बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया से म्याँमार एवं थाईलैंड दो देश शामिल हैं।
    • यह उप-क्षेत्रीय संगठन 6 जून, 1997 को बैंकॉक घोषणा के माध्यम से अस्तित्व में आया।
    • बिम्सटेक क्षेत्र में लगभग 1.5 बिलियन लोग शामिल है, जो 2.7 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के साथ वैश्विक आबादी का लगभग 22% है।
    • बिम्सटेक सचिवालय ढाका में है।
    • संस्थागत तंत्र:
      • बिम्सटेक शिखर सम्मेलन
      • मंत्रिस्तरीय बैठक
      • वरिष्ठ अधिकारियों की बैठक
      • बिम्सटेक वर्किंग ग्रुप
      • व्यापार मंच और आर्थिक मंच
  • महत्त्व:
    • तेज़ी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में विकास सहयोग के लिये एक प्राकृतिक मंच के रूप में बिम्सटेक के पास विशाल क्षमता है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक धुरी के रूप में अपनी अनूठी स्थिति का लाभ उठा सकता है।
    • बिम्सटेक के बढ़ते मूल्यों को इसकी भौगोलिक निकटता, प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक और मानव संसाधनों तथा समृद्ध ऐतिहासिक संबंधों एवं क्षेत्र में गहन सहयोग को बढ़ावा देने के लिये सांस्कृतिक विरासत को महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
    • बंगाल की खाड़ी में हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण केंद्र बनने की क्षमता है, यह ऐसा स्थान है जहाँ पूर्व और दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्तियों के रणनीतिक हित टकराते हैं।
    • यह एशिया के दो प्रमुख उच्च विकास केंद्रों- दक्षिण और दक्षिण- पूर्व एशिया के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है।

बिम्सटेक की चुनौतियाँ:

  • बैठकों में विसंगति: बिम्सटेक ने हर साल मंत्रिस्तरीय बैठकें आयोजित करने और हर दो साल में शिखर सम्मेलन आयोजित करने की योजना बनाई, लेकिन 20 वर्षों में केवल पाँच शिखर सम्मेलन हुए हैं।
  • सदस्य देशों द्वारा उपेक्षित: ऐसा लगता है कि भारत ने बिम्सटेक का उपयोग केवल तभी किया है जब वह क्षेत्रीय विन्यास में SAARC के माध्यम से काम करने में विफल रहा और अन्य प्रमुख सदस्य देश जैसे कि थाईलैंड तथा म्याँमार बिम्सटेक के बज़ाय ASEAN की ओर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • व्यापक फोकस क्षेत्र: बिम्सटेक का फोकस बहुत व्यापक है, जिसमें कनेक्टिविटी, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि आदि जैसे सहयोग के 14 क्षेत्र शामिल हैं। यह सुझाव दिया जाता है कि बिम्सटेक को छोटे फोकस क्षेत्रों के लिये प्रतिबद्ध रहना चाहिये और उनमें कुशलतापूर्वक सहयोग करना चाहिये।
  • सदस्य देशों के बीच द्विपक्षीय मुद्दे: बांग्लादेश म्याँमार के रोहिंग्याओं के सबसे खराब शरणार्थी संकटों में से एक का सामना कर रहा है जो म्याँमार के रखाइन राज्य में क़ानूनी कार्यवाही करने से बच रहे हैं। म्याँमार और थाईलैंड के बीच सीमा पर संघर्ष चल रहा है।
  • BCIM: चीन की सक्रिय सदस्यता के साथ एक और उप-क्षेत्रीय पहल, बांग्लादेश-चीन-भारत-म्याँमार (BCIM) फोरम के गठन ने बिम्सटेक की अनन्य क्षमता के बारे में अधिक संदेह पैदा किया है।
  • आर्थिक सहयोग पर अपर्याप्त फोकस: अधूरे कार्यों और नई चुनौतियों पर ध्यानाकर्षण होने पर ज़िम्मेदारियों के बोझ बढ़ता है।
    • वर्ष 2004 में एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हेतु रूपरेखा के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बावज़ूद बिम्सटेक इस लक्ष्य से बहुत दूर है।

आगे की राह

  • सदस्य देशों के बीच बिम्सटेक मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की आवश्यकता है।
    • चूँकि यह क्षेत्र स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर रहा है और एकजुटता तथा सहयोग की आवश्यकता पर बल दे रहा है जिससे एफटीए बंगाल की खाड़ी को संपर्क, समृद्धि एवं सुरक्षा का पुल बना देगा।
  • भारत को इस धारणा का मुकाबला करना होगा कि बिम्सटेक एक भारत-प्रभुत्व वाला ब्लॉक है, इस संदर्भ में भारत गुजराल सिद्धांत का पालन कर सकता है जो द्विपक्षीय संबंधों में लेन-देन के प्रभाव को सशक्त करने का इरादा रखता है।
  • बिम्सटेक को भविष्य में नीली अर्थव्यवस्था, डिजिटल अर्थव्यवस्था और स्टार्ट-अप तथा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के बीच आदान-प्रदान तथा लिंक को बढ़ावा देने जैसे नए क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (पीवाईक्यू)  

प्रश्न. आपके विचार में क्या बिमस्टेक, सार्क (SAARC) की तरह एक समानांतर संगठन है? इन दोनों के बीच क्या समानताएँ और असमानताएँ हैं? इस नए संगठन के बनाए जाने से भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य कैसे प्राप्त हुए हैं? (मेन्स-2022)

स्रोत: पी.आई.बी.


नगर निकाय वित्त रिपोर्ट: RBI

प्रिलिम्स के लिये:

स्थानीय शासन, RBI, नगर निगम, GDP, GST।

मेन्स के लिये:

नगर निगम वित्त रिपोर्ट, RBI।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सभी राज्यों में 201 नगर निगमों (MCs) के लिये बजटीय आँकड़ों का संकलन और विश्लेषण करते हुए नगर निकाय निगम वित्त रिपोर्ट जारी की है।

  • RBI की रिपोर्ट 'नगर निगमों के लिये वित्तपोषण के वैकल्पिक स्रोतों' को अपने विषय के रूप में तलाशती है।

नगर निगम:

  • परिचय:
    • भारत में नगर निगम दस लाख से अधिक लोगों की आबादी वाले किसी भी महानगर/शहर के विकास के लिये ज़िम्मेदार एक शहरी स्थानीय निकाय है।
      • महानगर पालिका, नगर पालिका, नगर निगम, सिटी कारपोरेशन आदि इसके कुछ अन्य नाम हैं।
    • राज्यों में नगर निगमों की स्थापना राज्य विधानसभाओं के अधिनियमों द्वारा तथा केंद्रशासित प्रदेशों में संसद के अधिनियमों के माध्यम से की जाती है।
    • नगरपालिका अपने कार्यों के संचालन के लिये संपत्ति कर राजस्व पर अधिक निर्भर रहती है।
    • भारत में पहला नगर निगम वर्ष 1688 में मद्रास में स्थापित किया गया तथा उसके बाद वर्ष 1726 में बॉम्बे और कलकत्ता में नगर निगम स्थापित किये गए।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • भारत के संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद-40 को शामिल करने के अलावा स्थानीय स्वशासन की स्थापना के लिये कोई विशिष्ट प्रावधान नहीं किया गया था।
    • 74वें संशोधन अधिनियम, 1992 ने संविधान में एक नया भाग IX-A सम्मिलित किया है, जो नगर पालिकाओं और नगर पालिकाओं के प्रशासन से संबंधित है।
    • इसमें अनुच्छेद 243P से 243ZG शामिल हैं। इसने संविधान में एक नई बारहवीं अनुसूची भी जोड़ी। 12वीं अनुसूची में 18 मद शामिल हैं।

निष्कर्ष:

  • नगर निगमों (MCs) का खराब कामकाज:
    • भारत में स्थानीय शासन की संरचना के संस्थागतकरण के बावज़ूद नगरपालिका के कामकाज़ में कई खामियाँ हैं और उनके कामकाज़ में कोई सराहनीय सुधार नहीं हुआ है।
    • परिणामस्वरूप भारत में शहरी आबादी के लिये आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता और गुणवत्ता खराब बनी हुई है।
  • वित्तीय स्वायत्तता की कमी:
    • अधिकांश नगरपालिकाएँ केवल बजट तैयार करती हैं और बजट योजनाओं के खिलाफ वास्तविक समीक्षा करती हैं, लेकिन बैलेंस शीट और नकदी प्रवाह प्रबंधन के लिये अपने लेखा परीक्षण वित्तीय विवरणों का उपयोग नहीं करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण अक्षमताएँ देखी जाती हैं।
    • जबकि भारत में नगरपालिका बजट का आकार अन्य देशों के समकक्षों की तुलना में बहुत छोटा है, राजस्व में संपत्ति कर संग्रह और सरकार के ऊपरी स्तरों से करों एवं अनुदानों का अंतरण होता है, जिसके बावज़ूद वित्तीय स्वायत्तता की कमी बनी रहती है।
  • न्यूनतम पूंजीगत व्यय:
    • स्थापना व्यय, प्रशासनिक लागत और ब्याज तथा वित्त शुल्क के रूप में नगरपालिका का प्रतिबद्ध व्यय बढ़ रहा है, लेकिन पूंजीगत व्यय न्यूनतम है।
    • नगरपालिका बॉण्ड के लिये एक सुविकसित बाज़ार के अभाव में नगरपालिकाएँ ज़्यादातर बैंकों और वित्तीय संस्थानों से उधार व केंद्र / राज्य सरकारों से ऋण पर अपने संसाधन अंतराल को पूरा करने के लिये भरोसा करती हैं।
  • स्थिर राजस्व/व्यय:
    • भारत में नगरपालिका राजस्व/व्यय एक दशक से अधिक समय से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के लगभग 1% पर स्थिर है।
    • इसके विपरीत ब्राज़ील में सकल घरेलू उत्पाद का4% और दक्षिण अफ्रीका में सकल घरेलू उत्पाद का 6% नगरपालिका राजस्व / व्यय है।
  • अप्रभावी राज्य वित्त आयोग:
    • सरकारों ने नियमित और समयबद्ध तरीके से राज्य वित्त आयोगों (एसएफसी) का गठन नहीं किया है, जबकि उन्हें प्रत्येक पाँच वर्ष में स्थापित किया जाना अपेक्षित है। तदनुसार, अधिकांश राज्यों में, एसएफसी स्थानीय सरकारों को निधियों का नियम-आधारित अंतरण सुनिश्चित करने में प्रभावी नहीं रहे हैं।

सुझाव:

  • नगरपालिका को विभिन्न प्राप्ति और व्यय मदों की उचित निगरानी एवं प्रलेखन के साथ ठोस तथा पारदर्शी लेखांकन प्रथाओं को अपनाने व अपने संसाधनों को बढ़ाने के लिये विभिन्न प्रगतिशील बॉण्ड, भूमि-आधारित वित्तपोषण तंत्र का पता लगाने की आवश्यकता है।
  • शहरी जनसंख्या घनत्व में तेज़ी से वृद्धि, हालांकि बेहतर शहरी बुनियादी ढाँचे की मांग करती है, इसलिये स्थानीय सरकारों को वित्तीय संसाधनों के अधिक प्रवाह की आवश्यकता होती है।
  • समय के साथ नगर निगमों की राजस्व सृजन क्षमता में गिरावट के साथ ऊपरी स्तरों से करों और अनुदानों के हस्तांतरण पर निर्भरता बढ़ी है। इसके लिये नवोन्मेषी वित्तपोषण तंत्र की आवश्यकता है।
  • भारत में नगर पालिकाओं को कानून द्वारा अपने बजट को संतुलित करने की आवश्यकता है, और किसी भी नगरपालिका उधार को राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित करने की आवश्यकता है।
  • नगर निगम राजस्व उछाल में सुधार लाने के लिये, केंद्र तथा राज्य अपने GST (वस्तु और सेवा कर) का छठवाँ हिस्सा साझा कर सकते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न  

प्रश्न. भारत में पहला नगर निगम निम्नलिखित में से कहाँ स्थापित किया गया था? (2009)

(a) कलकत्ता
(b) मद्रास
(c) बॉम्बे
(d) दिल्ली

उत्तर: (B)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत में खाद्य तेल क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों, धारा सरसों हाइब्रिड (DMH -11)।

मेन्स के लिये:

GM फसलें और उनका महत्त्व, भारत का खाद्य तेल क्षेत्र और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र ने GM सरसों की पर्यावरणीय मंज़ूरी को चुनौती देने वाली याचिका में कहा कि भारत पहले से ही आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) फसलों से प्राप्त तेल का आयात और उपभोग कर रहा है।

  • इसके अलावा लगभग 9.5 मिलियन टन (MT) GM कपास बीज का वार्षिक उत्पादन होता है और 1.2 मिलियन टन GM कपास के तेल का उपभोग मनुष्यों द्वारा किया जाता है तथा लगभग 6.5 मिलियन टन कपास के बीज का उपयोग पशु आहार के रूप में किया जाता है।

भारत में खाद्य तेल क्षेत्र की स्थिति:

  • देश की अर्थव्यवस्था में स्थान:
    • भारत दुनिया में तिलहन के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है।
    • कृषि अर्थव्यवस्था में तेल क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
    • कृषि मंत्रालय द्वारा जारी आँंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-21 के दौरान नौ कृषित तिलहनों से 36.56 मिलियन टन अनुमानित उत्पादन हुआ है।
    • भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और वनस्पति तेल का नंबर एक आयातक है।
      • भारत में खाद्य तेल की खपत की वर्तमान दर घरेलू उत्पादन दर से अधिक है। इसलिये देश को मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को पूरा करने के लिये आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
      • वर्तमान में भारत अपनी खाद्य तेल की मांग का लगभग 55% से 60% आयात के माध्यम से पूरा करता है। इसलिये घरेलू खपत की मांग को पूरा करने के लिये भारत को तेल उत्पादन में स्वतंत्र होने की ज़रूरत है।
      • पाम तेल (कच्चा + परिष्कृत) आयातित कुल खाद्य तेलों का लगभग 62% है और मुख्य रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया से आयात किया जाता है, जबकि सोयाबीन तेल (22%) अर्जेंटीना और ब्राज़ील से आयात किया जाता है तथा सूरजमुखी तेल (15%) मुख्य रूप से यूक्रेन व रूस से आयात किया जाता है।
  • भारत में आमतौर पर उपयोग किये जाने वाले तेलों के प्रकार:
    • भारत में मूँगफली, सरसों, कैनोला/रेपसीड, तिल, कुसुम, अलसी, रामतिल/नाइज़र सीड और अरंडी पारंपरिक रूप से उगाई जाने वाली सबसे अच्छी तिलहन फसलें हैं।
    • सोयाबीन और सूरजमुखी का भी हाल के वर्षों में महत्त्व बढ़ गया है।
    • बगानी फसलों में नारियल सबसे महत्त्वपूर्ण है।
    • गैर-पारंपरिक तेलों में चावल की भूसी का तेल और बिनौला तेल सबसे महत्त्वपूर्ण हैं।
  • खाद्य तेलों पर निर्यात-आयात नीति:
    • खाद्य तेलों का आयात ओपन जनरल लाइसेंस (OGL) के तहत आता है।
    • किसानों, प्रसंस्करणकर्त्ताओं और उपभोक्ताओं के हितों में सामंजस्य स्थापित करने के लिये सरकार समय-समय पर खाद्य तेलों के शुल्क ढाँचे की समीक्षा करती है।

संबंधित सरकारी पहल:

  • भारत सरकार ने केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- पाम ऑयल शुरू किया, जिसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से पूर्वोत्तर क्षेत्र एवं अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में विशेष ध्यान देने के साथ कार्यान्वित किया जा रहा है।
    • वर्ष 2025-26 तक पाम तेल के लिये अतिरिक्त 6.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र का प्रस्ताव है।
  • वनस्पति तेल क्षेत्र में डेटा प्रबंधन प्रणाली में सुधार और इसे व्यवस्थित करने के लिये खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के तहत चीनी तथा वनस्पति तेल निदेशालय ने मासिक आधार पर वनस्पति तेल उत्पादकों द्वारा इनपुट ऑनलाइन जमा करने के लिये एक वेब-आधारित मंच (evegoils.nic.in) विकसित किया है।
    • पोर्टल ऑनलाइन पंजीकरण और मासिक उत्पादन रिटर्न जमा करने के लिये विंडो भी प्रदान करता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

आयातित खाद्य तेलों की मात्रा पिछले पाँच वर्षों में खाद्य तेलों के घरेलू उत्पादन से अधिक है।

सरकार विशेष मामले के रूप में सभी आयातित खाद्य तेलों पर कोई सीमा शुल्क नहीं लगाती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1

(b) केवल 2

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a)

प्रश्न. पीड़को के प्रतिरोध के अतिरिक्त वे कौन-सी संभावनाएँ है जिनके लिये आनुवंशिक रूप से रूपांतरित पादपो का निर्माण किया गया है?(2012)

1- सूखा सहन करने के लिये उन्हे सक्षम बनाना

2- उत्पाद में पोषकीय मान बढ़ाना

3- अंतरिक्ष यानों और स्टेशनों में उन्हें उगने और प्रकाश-संश्लेषण करने के लिये सक्षम बनाना

4- उनकी शेत्फ लाइफ बढ़ाना

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये

(a) केवल 1 और 2

(b) केवल 3 और 4

(c) केवल 1, 2 और 4

(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: C

व्याख्या:

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें (GM फसलें या बायोटेक फसलें) कृषि में उपयोग किये जाने वाले पौधे हैं, जिनके डीएनए को आनुवंशिक इंजीनियरिंग विधियों का उपयोग करके संशोधित किया गया है। अधिकतर मामलों में इसका उद्देश्य पौधे में एक नया लक्षण पैदा करना है जो प्रजातियों में स्वाभाविक रूप से नहीं होता है। खाद्य फसलों में लक्षणों के उदाहरणों में कुछ कीटों, रोगों, पर्यावरणीय परिस्थितियों, खराब होने में कमी, रासायनिक उपचारों के प्रतिरोध (जैसे- जड़ी-बूटियों के प्रतिरोध) या फसल के पोषक तत्त्व प्रोफाइल में सुधार शामिल हैं।

GM फसल प्रौद्योगिकी के कुछ संभावित अनुप्रयोग हैं:

पोषण वृद्धि - उच्च विटामिन सामग्री; अधिक स्वस्थ फैटी एसिड प्रोफाइल; अत: 2 सही है।

तनाव सहनशीलता - उच्च और निम्न तापमान, लवणता और सूखे के प्रति सहनशीलता; अत: 1 सही है।

ऐसी कोई संभावना नहीं है जो GM फसलों को अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष स्टेशनों में बढ़ने तथा प्रकाश संश्लेषण करने में सक्षम बनाती हो। अत: 3 सही नहीं है।

वैज्ञानिक कुछ आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें तैयार करने में सक्षम हैं जो सामान्य रूप से एक महीने तक ताज़ा रहती हैं। अत: 4 सही हैअतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

प्रश्न. बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II प्रौद्योगिकियों का उल्लेख किसके संदर्भ में किया गया है?

 (a) फसल पौधों का क्लोनल प्रवर्धन

(b) आनुवंशिक रूप से संशोधित फसली पौधों का विकास

(c) पादप वृद्धिकर पदार्थों का उत्पादन

(d) जैव उर्वरकों का उत्पादन

 उत्तर:B

व्याख्या:

बोल्गार्ड I बीटी कपास (एकल-जीन प्रौद्योगिकी) 2002 में भारत में व्यावसायीकरण के लिये अनुमोदित पहली बायोटेक फसल प्रौद्योगिकी है, इसके बाद वर्ष 2006 के मध्य में बोल्गार्ड II- डबल-जीन प्रौद्योगिकी, जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमोदन समिति, बायोटेक के लिये भारतीय नियामक निकाय द्वारा अनुमोदित फसलें ।

बोल्गार्ड I कपास एक कीट-प्रतिरोधी ट्रांसजेनिक फसल है जिसे बाॅलवर्म से निपटने के लिये डिज़ाइन किया गया है। यह जीवाणु बैसिलस थुरिंगिनेसिस से एक माइक्रोबियल प्रोटीन को व्यक्त करने के लिये कपास जीनोम को आनुवंशिक रूप से बदलकर बनाया गया था।

बोल्गार्ड II तकनीक में एक बेहतर डबल-जीन तकनीक शामिल है - cry1ac और cry2ab, जो बाॅलवर्म तथा स्पोडोप्टेरा कैटरपिलर से सुरक्षा प्रदान करती है, जिससे बेहतर बाॅलवर्म प्रतिधारण, अधिकतम उपज, कम कीटनाशकों की लागत एवं कीट प्रतिरोध के खिलाफ सुरक्षा मिलती है।

बोल्गार्ड I और बोल्गार्ड II दोनों कीट-संरक्षित कपास दुनिया भर में व्यापक रूप से बाॅलवर्म को नियंत्रित करने के पर्यावरण के अनुकूल तरीके के रूप में अपनाए जाते हैं। अतः विकल्प (b) सही उत्तर है।

मुख्य परीक्षा:

प्रश्न. किसानों के जीवन स्तर को सुधारने मं जैव प्रौद्योगिकी कैसे मदद कर सकती है? (2019)

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


भारत-बेलारूस संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

बेलारूस की अवस्थिति

मेन्स के लिये:

भारत-बेलारूस संबंध, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग पर भारत-बेलारूस अंतर-सरकारी आयोग का 11वाँ सत्र आयोजित किया गया।

Belarus

प्रमुख बिंदु

  • अंतर-सरकारी आयोग ने वर्ष 2020 में आयोग के दसवें सत्र के बाद हुए द्विपक्षीय सहयोग के परिणामों की समीक्षा की।
  • कुछ परियोजनाओं के संबंध में हुई प्रगति पर संतोष व्यक्त करते हुए, आयोग ने संबंधित मंत्रालयों और विभागों को ठोस परिणामों को अंतिम रूप देने के लिये व्यापार एवं निवेश क्षेत्रों में प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करने का भी निर्देश दिया।
  • भारत और बेलारूस ने फार्मास्यूटिकल्स, वित्तीय सेवाओं, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, भारी उद्योग, संस्कृति, पर्यटन तथा शिक्षा जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर ज़ोर देते हुए अपने सहयोग को व्यापक बनाने की अपनी प्रबल इच्छा दोहराई।
  • दोनों मंत्रियों ने अपने-अपने व्यापारिक समुदायों को पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग को आगे बढ़ाने के लिये इन क्षेत्रों में एक-दूसरे के साथ जुड़ने का निर्देश दिया।
  • दोनों पक्ष प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देने पर सहमत हुए।

भारत-बेलारूस संबंध:

  • राजनयिक संबंध:
    • बेलारूस के साथ भारत के संबंध परंपरागत रूप से मधुर और सौहार्दपूर्ण रहे हैं।
    • भारत, वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद बेलारूस को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
  • बहुपक्षीय मंचों पर समर्थन:
  • व्यापक भागीदारी:
    • दोनों देशों के बीच एक व्यापक साझेदारी है और विदेश कार्यालय परामर्श (FOC), अंतर-सरकारी आयोग (IGC), सैन्य तकनीकी सहयोग पर संयुक्त आयोग के माध्यम से द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मुद्दों पर विचारों के आदान-प्रदान के लिये तंत्र स्थापित किया गया है।
    • दोनों देशों ने व्यापार और आर्थिक सहयोग, संस्कृति, शिक्षा, मीडिया एवं खेल, पर्यटन, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी, कृषि, वस्त्र, दोहरे कराधान से बचाव, निवेश को बढ़ावा देने व संरक्षण सहित रक्षा एवं तकनीकी सहयोग जैसे विभिन्न विषयों पर कई समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • व्यापार और वाणिज्य:
    • आर्थिक क्षेत्र में वर्ष 2019 में वार्षिक द्विपक्षीय व्यापार कारोबार 569.6 मिलियन अमेरिकी डाॅलर का था।
    • वर्ष 2015 में भारत ने बेलारूस को बाज़ार अर्थव्यवस्था का दर्जा दिया और 100 मिलियन अमेरिकी डाॅलर की ऋण सहायता से भी आर्थिक क्षेत्र के विकास में मदद मिली है।
      • बाज़ार अर्थव्यवस्था का दर्जा बेंचमार्क के रूप में स्वीकार किये गए वस्तु का निर्यात करने वाले देश को दिया जाता है। इस स्थिति से पहले देश को गैर-बाज़ार अर्थव्यवस्था (NME) के रूप में माना जाता था
    • बेलारूस के व्यवसायियों को 'मेक इन इंडिया' परियोजनाओं में निवेश करने के लिये भारत के प्रोत्साहन का लाभ मिल रहा है।
  • भारतीय प्रवासी:
    • वर्तमान में 112 भारतीय नागरिक बेलारूस में रहते हैं इसके अलावा 906 भारतीय छात्र वहाँ राज्य चिकित्सा विश्वविद्यालयों में चिकित्सा की पढ़ाई कर रहे हैं।
    • भारतीय कला और संस्कृति, नृत्य, योग, आयुर्वेद, फिल्म आदि बेलारूस के नागरिकों के बीच लोकप्रिय हैं।
      • काफी संख्या में बेलारूस के युवा भी हिंदी और भारत के नृत्य रूपों को सीखने में गहरी रुचि रखते हैं।

आगे की राह

  • वैश्विक भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक आकर्षण केंद्र के एशिया में क्रमिक बदलाव को ध्यान में रखते हुए भारत के साथ सहयोग अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिये अतिरिक्त अवसर पैदा करता है।
  • बेलारूस को विविधतापूर्ण एशिया में कई भौगोलिक उप-क्षेत्रों के साथ संबंध स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • दक्षिण एशिया में भारत इन उप-क्षेत्रों में से एक हो सकता है, लेकिन इसके लिये बेलारूस की  पहल निश्चित रूप से भारत के राष्ट्रीय हितों और धार्मिक उद्देश्यों (National Interests and Sacred Meanings) के "मैट्रिक्स" के अनुरूप होनी चाहिये
  • साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग के लिये भी कुछ अवसर विद्यमान हैं।
  • बेलारूस भारतीय दवा कंपनियों हेतु यूरेशियन बाज़ार में "प्रवेश बिंदु" बन सकता है।
  • साझा विकास सहित सैन्य और तकनीकी सहयोग की संभावना का पूरी तरह से खुलासा नहीं किया गया है।
    • यह सिनेमा (बॉलीवुड) भारतीय व्यापार समुदाय और पर्यटकों के हित को प्रोत्साहित कर सकता है।
  • पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धति (आयुर्वेद + योग) के आधार पर बेलारूस में स्थापित किये जा रहे मनोरंजन केंद्रों द्वारा पर्यटन और चिकित्सा सेवाओं के निर्यात में अतिरिक्त वृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है।
  • आपसी हित बढ़ाने के लिये नए नवोन्मेषी विकास बिंदुओं की स्थापना तथा सफल विचारों को प्रोत्साहित करना और सक्रिय विशेषज्ञ कूटनीति संचार का प्रमुख महत्त्व है।

स्रोत : पी.आई.बी