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डेली न्यूज़


भारतीय अर्थव्यवस्था

नीली अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन

  • 04 Feb 2022
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नीली अर्थव्यवस्था की अवधारणा, डीप ओशन मिशन, सागरमाला परियोजना, इंटीग्रेटेड कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट, वर्ष 2030 तक न्यू इंडिया विज़न।

मेन्स के लिये:

ब्लू इकॉनमी की अवधारणा और इसका महत्त्व, ब्लू इकॉनमी पॉलिसी की आवश्यकता और संबंधित कदम, 2030 न्यू इंडिया विज़न के तहत भारत का दृष्टिकोण।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने कहा कि नीली अर्थव्यवस्था वर्ष 2030 तक भारत सरकार के न्यू इंडिया विज़न का छठा आयाम है।

वर्ष 2030 तक भारत का ‘न्यू इंडिया विज़न’:

  • भारत के केंद्रीय बजट, 2019 में वित्त मंत्री ने पिछले पाँच वर्षों में भारत में हुए परिवर्तनों पर प्रकाश डालते हुए विज़न 2030 का लक्ष्य रखा।
  • भारत वर्ष 2025 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर और वर्ष 2030 तक 10 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है।
  • ‘न्यू इंडिया विज़न-2030’ के आयाम इस प्रकार हैं:
    • दस ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिये भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढाँचा तैयार करना और जीवन को आसान बनाना।
    • असंख्य स्टार्टअप और लाखों नौकरियों वाले युवाओं के नेतृत्त्व में डिजिटल इंडिया।
    • विद्युत वाहनों और नवीकरणीय ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करके भारत को प्रदूषण मुक्त बनाना।
    • आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके ग्रामीण औद्योगीकरण के विस्तार के माध्यम से बड़े पैमाने पर रोज़गार का सृजन करना।
    • सभी भारतीयों के लिये सुरक्षित पेयजल की व्यवस्था के साथ स्वच्छ नदियाँ और लघु सिंचाई तकनीकों को अपनाकर सिंचाई में जल का कुशल उपयोग करना।
    • सागरमाला कार्यक्रम के प्रयासों में तेज़ीलाने के साथ भारत के तटीय और समुद्री मार्गों के माध्‍यम से देश के विकास को सशक्‍त बनाना।
    • हमारा अंतरिक्ष कार्यक्रम-गगनयान के माध्यम से भारत दुनिया के उपग्रहों को छोड़ने का “लाॅच पैड” बन चुका है
    • जैविक तरीके से सर्वाधिक खाद्यान्न उत्‍पादन और खाद्यान्न निर्यात में भारत को आत्मनिर्भर बनाना।
    • भारत को न्यूनतम सरकार, अधिकतम अभिशासन वाले एक ऐसे राष्ट्र का रूप देना जहाँ एक चुनी हुई सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाले सहकर्मियों और अधिकारियों के अभिशासन को मूर्त रूप दिया जा सकता है।
    • वर्ष 2030 तक स्वस्थ भारत और एक बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल एवं व्यापक आरोग्यकर प्रणाली के साथ-साथ आयुष्मान भारत व महिला सहभागिता भी इसके महत्त्वपूर्ण घटक होंगे।

ब्लू इकॉनमी:

  • ब्लू इकॉनमी की अवधारणा को बेल्ज़ियम के अर्थशास्त्री गुंटर पौली द्वारा वर्ष 2010 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘द ब्लू इकॉनमी: 10 इयर्स, 100 इनोवेशन्स और 100 मिलियन जॉब्स’ में प्रस्तुत किया गया था।
  • यह अवधारणा आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और नौकरियों के सृजन तथा महासागर पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य के लिये महासागरीय संसाधनों का सतत् उपयोग को संदर्भित करती है।
  • ब्लू इकॉनमी सामाजिक समावेश, पर्यावरणीय स्थिरता के साथ महासागरीय अर्थव्यवस्था के विकास के एकीकरण पर ज़ोर देती है, जो कि अभिनव व्यापार मॉडल के साथ संयुक्त है।
  • इसमें शामिल हैं-
    • अक्षय ऊर्जा: सतत् समुद्री ऊर्जा सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
    • मत्स्य पालन: सतत् मत्स्य पालन अधिक राजस्व, मछली उत्पादन और मछली के स्टॉक को बहाल करने में मदद कर सकता है।
    • समुद्री परिवहन: 80 प्रतिशत से अधिक अंतर्राष्ट्रीय वस्तुओं का व्यापार समुद्री मार्ग से किया जाता है।
    • पर्यटन: महासागरीय और तटीय पर्यटन रोज़गार में बढ़ोतरी करने के साथ-साथ आर्थिक विकास को बल दे सकता है।
    • जलवायु परिवर्तन: महासागर एक महत्त्वपूर्ण कार्बन सिंक (ब्लू कार्बन) के रूप में कार्य करते हैं और जलवायु परिवर्तन को कम करने में मददगार हो सकते हैं।
    • अपशिष्ट प्रबंधन: भूमि पर बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन के माध्यम से महासागरों के पारिस्थितिक तंत्र में सुधार किया जा सकता है।

‘ब्लू इकॉनमी’ का महत्त्व:

  • निवेश पर उच्च प्रतिलाभ: सतत् महासागरीय अर्थव्यवस्था हेतु उच्च स्तरीय पैनल द्वारा किये गए एक शोध के अनुसार, प्रमुख महासागरीय गतिविधियों में निवेश किये गए 1 अमेरिकी डॉलर के निवेश से पाँच गुना अधिक यानी 5 अमेरिकी डॉलर का रिटर्न मिलता है।
  • SDG के साथ तालमेल: यह संयुक्त राष्ट्र के सभी सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs), विशेष रूप से ‘SDG14’ 'पानी के नीचे जीवन' का समर्थन करता है।
  • सतत् ऊर्जा: नवीकरणीय ऊर्जा की बढ़ती मांग का समर्थन करते हुए अपतटीय क्षेत्रों में अपतटीय पवन, लहरों, ज्वारीय धाराओं सहित महासागरीय धाराओं एवं तापीय ऊर्जा के रूप में काफी बेहतर संभावनाएँ हैं।
  • भारत के लिये महत्त्व: नौ तटीय राज्यों, 12 प्रमुख और 200 छोटे बंदरगाहों में फैली 7,500 किलोमीटर से अधिक लंबी तटरेखा के साथ भारत की ‘ब्लू इकॉनमी’ परिवहन के माध्यम से देश के व्यापार के 95% का समर्थन करती है और इसके सकल घरेलू उत्पाद में अनुमानित 4% का योगदान करती है। 

‘ब्लू इकॉनमी’ को बढ़ावा देने हेतु उठाए गए कदम:

  • डीप ओशन मिशन: इसे गहरे महासागरों से जीवित एवं निर्जीव संसाधनों का दोहन करने के लिये प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के इरादे से शुरू किया गया था।
  • सतत् विकास हेतु ‘ब्लू इकॉनमी’ पर भारत-नॉर्वे टास्क फोर्स: दोनों देशों के बीच संयुक्त पहल को विकसित करने और उसका पालन करने हेतु वर्ष 2020 में दोनों देशों द्वारा संयुक्त रूप से इसका उद्घाटन किया गया था।
  • सागरमाला परियोजना: सागरमाला परियोजना बंदरगाहों के आधुनिकीकरण हेतु आईटी सक्षम सेवाओं के व्यापक उपयोग के माध्यम से बंदरगाह विकास के लिये एक रणनीतिक पहल है।
  • ओ-स्मार्ट: ओ-स्मार्ट एक अम्ब्रेला योजना है जिसका उद्देश्य सतत् विकास के लिये महासागरों और समुद्री संसाधनों का विनियमित उपयोग करना है।
  • एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन: यह तटीय और समुद्री संसाधनों के संरक्षण तथा तटीय समुदायों के लिये आजीविका के अवसरों में सुधार पर केंद्रित है।
  • राष्ट्रीय मत्स्य नीति: भारत में समुद्री और अन्य जलीय संसाधनों से मत्स्य संपदा के सतत् उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर 'ब्लू ग्रोथ इनिशिएटिव' को बढ़ावा देने हेतु एक राष्ट्रीय मत्स्य नीति मौजूद है।

आगे की राह 

  • भारत के विशाल समुद्री हितों के कारण ‘ब्लू इकॉनमी’ को देश की आर्थिक वृद्धि में काफी महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।
  • ब्लू इकॉनमी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और आम जनजीवन के कल्याण के लिये महत्त्वपूर्ण हो सकती है, हालाँकि यह आवश्यक है कि सतत् विकास एवं सामाजिक-आर्थिक कल्याण को केंद्र में रखा जाए।
  • भारत को विकास, रोज़गार सृजन, समानता और पर्यावरण की सुरक्षा के व्यापक लक्ष्यों को पूरा करने हेतु स्थिरता के साथ आर्थिक लाभों को संतुलित करने के लिये गांधीवादी दृष्टिकोण को अपनाना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.

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