सामाजिक न्याय
वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट: IFPRI
- 14 May 2022
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु परिवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI), मेन्स के लिये:जलवायु परिवर्तन और खाद्य प्रणालियों का मुद्दा। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) ने वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट: जलवायु परिवर्तन और खाद्य प्रणाली जारी की है, जिसमें दर्शाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2030 तक भारत में भूख का जोखिम 23% तक बढ़ सकता है।
निष्कर्ष:
- भारत:
- जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2030 तक भारत का खाद्य उत्पादन 16% गिर सकता है तथा भूख के जोखिम वाले लोगों की संख्या 23% तक बढ़ सकती है।
- यह अनुमान एक ऐसे मॉडल का हिस्सा है जिसका उपयोग खाद्य उत्पादन, खाद्य खपत (प्रति व्यक्ति प्रतिदिन किलो कैलोरी), प्रमुख खाद्य वस्तु समूहों के शुद्ध व्यापार और भूख के जोखिम वाली आबादी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का समग्र मूल्यांकन करने के लिये किया गया था।
- वर्ष 2030 में भूख से पीड़ित भारतीयों की संख्या 73.9 मिलियन हो जाने की आशंका है तथा यदि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को शामिल किया जाए, तो यह बढ़कर 90.6 मिलियन हो जाएगी।
- समान परिस्थितियों में समग्र खाद्य उत्पादन सूचकांक 1.6 से घटकर 1.5 रह जाएगा।
- खाद्य उत्पादन सूचकांक में उन खाद्य फसलों को शामिल किया जाता है जिन्हें खाने योग्य माना जाता है और जिनमें पोषक तत्त्व होते हैं। कॉफी और चाय को इससे बाहर रखा गया है, क्योंकि खाद्य होने के बावजूद उनका कोई पोषक मूल्य नहीं है।
- एक सकारात्मक टिप्पणी यह है कि जलवायु परिवर्तन भारतीयों की औसत कैलोरी खपत को प्रभावित नहीं करेगा तथा जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य में भी यह वर्ष 2030 तक वर्तमान के समान लगभग प्रति व्यक्ति 2,600 किलो कैलोरी प्रतिदिन रहने का अनुमान है।
- वर्ष 2100 तक पूरे भारत में औसत तापमान 2.4 डिग्री सेल्सियस से 4.4 डिग्री सेल्सियस के बीच बढ़ने का अनुमान है। इसी प्रकार भारत में गर्मी की लहरों के वर्ष 2100 तक तिगुना होने का अनुमान है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2030 तक भारत का खाद्य उत्पादन 16% गिर सकता है तथा भूख के जोखिम वाले लोगों की संख्या 23% तक बढ़ सकती है।
- वैश्विक:
- आधारभूत अनुमानों से संकेत मिलता है कि जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में 2050 तक वैश्विक खाद्य उत्पादन 2010 के स्तर से लगभग 60% बढ़ जाएगा।
- जनसंख्या और आय में अनुमानित वृद्धि के कारण विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों, विशेष रूप से अफ्रीका में उत्पादन और मांग में वृद्धि का अनुमान लगाया है।
- उच्च आय वाले देश अधिक फल और सब्जियों, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ तथा पशु-स्रोत खाद्य पदार्थ सहित उच्च आहार मूल्य वाले खाद्य पदार्थों की ओर बढ़ रहे हैं।
- वर्ष 2030 तक दक्षिण एशिया और पश्चिम तथा मध्य अफ्रीका में मांस का उत्पादन दोगुना एवं वर्ष 2050 तक तीन गुना होने का अनुमान है।
- इस वृद्धि के बावजूद विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति खपत का स्तर विकसित देशों की तुलना में आधे से भी कम रहेगा।
- प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की मांग तिलहनी फसलों के बढ़ते उत्पादन में भी दिखाई देती है: 2050 तक दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिम व मध्य अफ्रीका में उत्पादन दोगुने से अधिक होने की उम्मीद है।
खाद्य उत्पादन का जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव:
- खाद्य प्रणाली संबंधी गतिविधियों में खाद्यान्न का उत्पादन, उसका परिवहन और व्यर्थ खाद्यान्न को कचरा -स्थल पर संग्रहीत करना शामिल है, ये गतिविधियाँ ग्रीनहाउस गैस (GHG) का उत्सर्जन कर जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है।
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन स्रोतों में से पशुधन उत्पादन का भी योगदान है, यह मानव गतिविधियों से हुए वैश्विक उत्सर्जन का अनुमानित 14.5% है।
- जुगाली करने वाले जानवरों का मांस (जैसे मवेशी और बकरियाँ) विशेष रूप से अधिक उत्सर्जन करती हैं।
- यदि मांस और डेयरी-उत्पादों के सेवन का वैश्विक रुझान जारी रहता है, तो वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने की संभावना अभी भी बेहद कम है।
- यही कारण है कि मांस और डेयरी-उत्पादों की खपत में तत्काल व नाटकीय कमी, ऊर्जा के उपयोग, परिवहन तथा अन्य स्रोतों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी, विनाशकारी जलवायु परिवर्तन से बचने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- मांस और डेयरी-उत्पादों की प्रति व्यक्ति सबसे अधिक खपत वाले अमेरिका जैसे देशों पर खाद्य शृंखला में कम अपव्यय की ज़िम्मेदारी तुलनात्मक रूप से सबसे ज़्यादा बनती है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आहार आदतों में बदलाव लाने के लिये उपभोक्ताओं को शिक्षित करने से कहीं अधिक आवश्यकता उन राष्ट्रीय नीतियों में बदलाव करने की होगी जो अधिक पादप-केंद्रित आहार का समर्थन करते हैं।
वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट की अनुशंसाएँ:
- अनुसंधान और विकास में निवेश:
- प्रौद्योगिकी नवाचारों के लिये अनुसंधान और विकास में अधिक निवेश की आवश्यकता है, जैसे कि सिंचाई प्रणाली और कोल्ड चेन, जो ‘स्थायी खाद्य प्रणाली’ में परिवर्तन को तेज कर सकते हैं।
- इस तरह के नवाचारों में सार्वजनिक निवेश को मौजूदा स्तरों से दोगुना किया जाना चाहिये, यह सुनिश्चित करना चाहिये कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों की खाद्य प्रणालियों में कम-से-कम 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर का कम प्रवाह हो।
- भूमि और जल संसाधनों का प्रबंधन:
- भूमि और जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन होना चाहिये।
- नीति को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि विकास लक्ष्यों में कोई "अवांछनीय व्यापार-बंद" न हो एवं जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में और योगदान न करते हुए उत्पादकता बढ़ाने के लिये आवश्यक अतिरिक्त ऊर्जा एवं जीवाश्म ईंधन के बीच संतुलन खोजना होगा।
- स्वस्थ आहार और सतत् खाद्य उत्पादन:
- स्वस्थ आहार और टिकाऊ खाद्य उत्पादन को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
- अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और ‘रेड मीट’ की खपत को कम करने से पारिस्थितिक पदचिह्न में सुधार होगा।
- कुशल मूल्य शृंखला:
- मूल्य शृंखलाओं को और अधिक कुशल बनाने तथा "मुक्त एवं खुले" व्यापार का समर्थन करने की आवश्यकता है, जिसे रिपोर्ट में "जलवायु-स्मार्ट कृषि व खाद्य नीतियों का एक अभिन्न अंग" कहा गया है।
- सामाजिक सुरक्षा:
- सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के माध्यम से गरीब ग्रामीण आबादी की रक्षा की जानी चाहिये, जो जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों के खिलाफ कृषि से अपना जीवन यापन करते हैं।
- ये कार्यक्रम अनिश्चित भविष्य से निपटने का एक तरीका है, जिनसे हम उम्मीद करते हैं।
- सतत् उत्पादन हेतु वित्तपोषण:
- रिपोर्ट आजीविका बढ़ाने के साथ-साथ अधिक टिकाऊ उत्पादन और खपत में बदलाव के लिये पर्याप्त रूप से वित्तपोषण के महत्त्व पर ज़ोर देती है।
अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI):
- वर्ष 1975 में स्थापित IFPRI विकासशील देशों में गरीबी को कम करने, भूख और कुपोषण को समाप्त करने हेतु अनुसंधान-आधारित नीति समाधान प्रदान करता है।
- IFPRI का दृष्टिकोण भूख और कुपोषण मुक्त विश्व का निर्माण करना है।
- यह पांँच रणनीतिक अनुसंधान क्षेत्रों पर केंद्रित है:
- जलवायु-लोचशीलता और सतत् खाद्य आपूर्ति को बढ़ावा देना।
- सभी के लिये स्वस्थ आहार एवं पोषण को बढ़ावा देना।
- समावेशी तथा कुशल बाज़ार, व्यापार प्रणाली और खाद्य उद्योग का निर्माण।
- कृषि एवं ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को बदलना।
- संस्थाओं और शासन को सुदृढ़ बनाना।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):प्रश्न. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना के लिये IFPRI द्वारा उपयोग किये जाने वाले संकेतक निम्नलिखित में से कौन सा/से है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) व्याख्या:
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