कृषि अवसंरचना कोष
प्रिलिम्स के लियेकृषि अवसंरचना कोष, कोविड-19 संकट, पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप, कृषि उपज विपणन समिति मेन्स के लियेकृषि अवसंरचना कोष का संक्षिप्त परिचय एवं विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 'कृषि अवसंरचना कोष' के अंतर्गत केंद्रीय क्षेत्र की वित्तपोषण सुविधा योजना में कुछ संशोधनों को मंज़ूरी दी।
प्रमुख बिंदु
- शुरुआत : इसे 2020 में कोविड-19 संकट के विरुद्ध प्रोत्साहन पैकेज के रूप में 20 लाख करोड़ रुपए की घोषणा के साथ शुरू किया गया।
- उद्देश्य: फसल उपरांत बुनियादी ढाँचा प्रबंधन और सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के लिये व्यवहार्य परियोजनाओं में निवेश हेतु मध्यम-लंबी अवधि के ऋण वित्तपोषण की सुविधा प्रदान करना।
- केंद्र / राज्य / स्थानीय निकायों द्वारा प्रायोजित फसल एकत्रीकरण के लिये पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) परियोजनाओं के अलावा कोल्ड स्टोर, चेन वेयरहाउसिंग, ग्रेडिंग और पैकेजिंग इकाइयों, ई-ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म से जुड़े ई-मार्केटिंग पॉइंट्स की स्थापना के लिये धन उपलब्ध कराया जाएगा।
- अवधि: 13 वर्षों तक बढ़ाई गई (2032-33 तक)।
- विशेषताएँ:
- पात्र लाभार्थी:
- इस योजना के अंतर्गत पात्र लाभार्थियों में, प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PAC), विपणन सहकारी समितियों, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs), स्वयं सहायता समूहों (SHGs), किसानों, संयुक्त देयता समूहों (Joint Liability Groups- JLG), बहुउद्देशीय सहकारी समितियों, कृषि उद्यमियों, स्टार्टअपों और केंद्रीय/राज्य एजेंसी या स्थानीय निकाय प्रायोजित सार्वजनिक-निजी साझीदारी परियोजनाएँ आदि को शामिल किया गया है।
- राज्य एजेंसियों और कृषि उपज विपणन समितियों (APMC) के साथ-साथ सहकारी संगठनों, FPO तथा SHG के संघों के लिये पात्रता बढ़ा दी गई है।
- वित्तीय सहायता: पात्र लाभार्थियों को ऋण के रूप में बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा 1 लाख करोड़ रुपए प्रदान किये जाएंगे।
- पुनर्भुगतान के लिये अधिस्थगन न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम 2 वर्षों के अधीन भिन्न हो सकता है।
- ब्याज सबवेंशन: ऋणों पर 2 करोड़ रुपए की सीमा तक 3% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज सबवेंशन होगा। यह सबवेंशन अधिकतम सात साल की अवधि के लिये उपलब्ध होगा।
- CGTMSE योजना: इस वित्तपोषण सुविधा से ऋण प्राप्त करने वाले पात्र उधारकर्त्ताओं को 2 करोड़ रुपए तक के ऋण हेतु सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises-CGTMSE) योजना के तहत एक क्रेडिट गारंटी कवरेज़ उपलब्ध होगा।
- पात्र लाभार्थी:
- प्रबंधन: कोष का प्रबंधन और निगरानी एक ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली (Management Information System-MIS) प्लेटफॉर्म के माध्यम से की जाएगी। यह सभी योग्य संस्थाओं को कोष के तहत ऋण हेतु आवेदन करने में सक्षम बनाएगा।
- वास्तविक समय अर्थात् रियल टाइम निगरानी और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य एवं ज़िला स्तर की निगरानी समितियों का गठन किया जाएगा।
स्रोत : पी.आई.बी.
मानव-वन्यजीव संघर्ष
प्रिलिम्स के लिये:वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर मेन्स के लिये:भारत में मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति और उसे रोकने हेतु सरकार के प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर (World Wildlife Fund for Nature- WWF) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा 'ए फ्यूचर फॉर ऑल- ए नीड फॉर ह्यूमन- वाइल्डलाइफ कोएग्जिस्टेंस' (A Future for All–A Need for Human-Wildlife Coexistence) रिपोर्ट जारी की गई।
- इसमें बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict- HWC) प्रकाश डाला गया है।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष से संबंधित मौतों में विश्व की जंगली बिल्ली प्रजातियों की 75% से अधिक तथा कई अन्य स्थलीय एवं समुद्री मांसाहारी प्रजातियाँ जैसे- ध्रुवीय भालू, भूमध्यसागरीय मोंक सील एवं हाथी आदि बड़े शाकाहारी जीव प्रभावित होते हैं।
प्रमुख बिंदु:
संदर्भ:
- मानव-वन्यजीव संघर्ष (HWC) उन संघर्षों को संदर्भित करता है जो उस स्थिति में उत्पन्न होते हैं जब वन्यजीवों की उपस्थिति या व्यवहार मानव हितों या ज़रूरतों के लिये वास्तव में या प्रत्यक्ष आवर्ती खतरों का कारण बनता है जिसके कारण लोगों, जानवरों, संसाधनों तथा आवास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण:
- संरक्षित क्षेत्र का अभाव: समुद्री और स्थलीय संरक्षित क्षेत्र विश्व स्तर पर केवल 9.67% हिस्से को कवर करते हैं। अफ्रीकी शेर के लगभग 40% और अफ्रीकी एवं एशियाई हाथी रेंज के 70% क्षेत्र संरक्षित क्षेत्रों से बाहर हैं।
- वर्तमान में भारत के 35% टाइगर रेंज संरक्षित क्षेत्रों से बाहर हैं।
- वन्यजीव जनित संक्रमण: एक जूनोटिक बीमारी से उत्पन्न कोविड-19 महामारी लोगों, के पशुओं और वन्यजीवों के साथ घनिष्ठ जुड़ाव तथा जंगली जानवरों के अनियंत्रित उपभोग से प्रेरित है।
- जानवरों और लोगों के बीच घनिष्ठ, लगातार तथा विविध संपर्क के चलते पशु रोगाणुओं के लोगों में स्थानांतरित होने की संभावना बढ़ जाती है।
- अन्य कारण:
- शहरीकरण: आधुनिक समय में तेज़ी से हो रहे शहरीकरण और औद्योगीकरण ने वन भूमि को गैर-वन उद्देश्यों वाली भूमि में परिवर्तित कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप वन्यजीवों के आवास क्षेत्र में कमी आ रही है।
- परिवहन नेटवर्क: वन शृंखलाओं के माध्यम से सड़क और रेल नेटवर्क के विस्तार के परिणामस्वरूप सड़कों या रेल पटरियों पर दुर्घटनाओं में अनेक पशु मारे जाते है या वे घायल हो जाते हैं।
- बढ़ती मानव जनसंख्या: संरक्षित क्षेत्रों की परिधि के पास कई मानव बस्तियाँ स्थित हैं और स्थानीय लोगों द्वारा वन भूमि पर अतिक्रमण तथा भोजन एवं चारा आदि के संग्रह के लिये वनों के सीमित प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव बढ़ रहा है।
प्रभाव:
- वन्यजीवन तथा पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता पर मानव-पशु संघर्ष का प्रभाव हानिकारक एवं स्थायी हो सकता है। लोग आत्मरक्षा हेतु या हमले का शिकार होने से पूर्व ही हमला करने या प्रतिशोध में हत्या के उद्देश्य से जानवरों को मार सकते हैं, जिसके चलते संघर्ष में शामिल प्रजातियाँ विलुप्ति के कगार पर पहुँच सकती हैं।
- स्थानीय समुदायों पर प्रभाव: वन्यजीवों का लोगों पर सबसे स्पष्ट और प्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव उनके द्वारा किया गया हमला तथा पशुओं द्वारा फसलों या अन्य संपत्ति को हानि पहुँचाया जाना है।
- समानता पर प्रभाव: वन्यजीवों के साथ रहने की आर्थिक और मनोवैज्ञानिक लागत उस वन्यजीव के आस-पास रहने वालों को असमान रूप से चुकानी पड़ती है, जबकि एक प्रजाति के जीवित रहने का लाभ अन्य समुदायों तक वितरित होता है।
- सामाजिक गतिशीलता पर प्रभाव: जब कोई मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटना किसी किसान को प्रभावित करती है, तो वह किसान फसल को नुकसान पहुँचाने वाले वन्यजीव से रक्षा के लिये सरकार को दोषी ठहरा सकता है, जबकि एक संरक्षणवादी ऐसी घटनाओं के लिये किसानों (जो जंगली आवासों को साफ करते हैं) तथा उद्योगों को प्रमुख रूप से दोषी मानते हैं।
- सतत् विकास पर प्रभाव: ‘संरक्षण’ के संदर्भ में मानव-वन्यजीव संघर्ष एक ऐसा विषय है जो सतत् विकास लक्ष्यों से दृढ़ता से जुड़ा हुआ है क्योंकि विकास को बनाए रखने के लिये जैव विविधता प्राथमिक घटक है, यद्यपि इसका स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया है।
समाधान:
- संघर्ष से सह-अस्तित्व की ओर बढ़ना: मानव-पशु संघर्ष प्रबंधन का लक्ष्य लोगों और वन्यजीवों की सुरक्षा को बढ़ाना तथा सह-अस्तित्व का पारस्परिक लाभ अर्जित करना होना चाहिये।
- एकीकृत और समग्र कार्य: समग्र मानव-पशु संघर्ष प्रबंधन दृष्टिकोण प्रजातियों को उन्हीं क्षेत्रों में बनाए रखने (जीवित रखने) की अनुमति देता है जहाँ उनकी संख्या या तो कम हो चुकी होती है या वे विलुप्त हो चुके हैं।
- हमारे ग्रह पर पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और क्रियाविधि को बनाए रखने के लिये सभी प्रजातियों का होना आवश्यक है।
- सहभागिता: स्थानीय समुदायों की पूर्ण भागीदारी मानव-पशु संघर्ष को कम करने और मनुष्यों एवं वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ाने में मदद कर सकती है।
भारतीय परिदृश्य:
- भारत मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती चुनौती का सामना कर रहा है जो विकास के दबावों व बढ़ती आबादी, भूमि एवं प्राकृतिक संसाधनों की उच्च मांग से प्रेरित है जिसके परिणामस्वरूप वन्यजीवों के आवासों का नुकसान, विखंडन और क्षरण होता है।
- यह दबाव लोगों और वन्यजीवों के बीच संपर्क को तेज़ करता है क्योंकि वे प्रायः सीमाओं के स्पष्ट सीमांकन के बिना आवास स्थान साझा करते हैं।
- भारत में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2014-15 और वर्ष 2018-19 के बीच 500 से अधिक हाथियों की मौत हो गई, जिनमें से अधिकतर मानव-हाथी संघर्ष (Human-Elephant Conflict) से संबंधित हैं।
- इसी अवधि में 2,361 लोग हाथियों के हमले में मारे गए।
कुछ पहलें:
- मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रबंधन हेतु परामर्श: यह राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की स्थायी समिति (Standing Committee) द्वारा जारी किया गया है।
- सशक्त ग्राम पंचायत: परामर्श में वन्यजीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अनुसार, संकटग्रस्त वन्यजीवों के संरक्षण हेतु ग्राम पंचायतों को मज़बूत बनाने की परिकल्पना की गई है।
- बीमा राहत: मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण फसलों का नुकसान होने पर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (Pradhan Mantri Fasal Bima Yojna) के तहत क्षतिपूर्ति का प्रावधान शामिल है।
- पशु चारा: इसके तहत वन क्षेत्रों के भीतर चारे और पानी के स्रोतों को बढ़ाने जैसे कुछ महत्त्वपूर्ण कदम शामिल हैं।
- अग्रणीय उपाय: परामर्श में स्थानीय/राज्य स्तर पर अंतर-विभागीय समितियों के निर्धारण, पूर्व चेतावनी प्रणालियों को अपनाने, जंगली पशुओं से बचाव हेतु अवरोधों/घेराबंदी का निर्माण, 24X7 आधार पर संचालित निःशुल्क हॉटलाइन नंबरों के साथ समर्पित क्षेत्रीय नियंत्रण कक्ष, हॉटस्पॉट की पहचान और पशुओं के लिये उन्नत स्टाल-फेड फार्म (Stall-Fed Farm) आदि हेतु विशेष योजनाएँ बनाने तथा उनके कार्यान्वयन की अवधारणा प्रस्तुत की गई है।
- त्वरित राहत: संघर्ष की स्थिति में पीड़ित परिवार को अंतरिम राहत के रूप में अनुग्रह राशि के एक हिस्से का भुगतान 24 घंटे की भीतर किया जाए।
- राज्य-विशिष्ट:
- उत्तर प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018 में ऐसी घटनाओं के दौरान बेहतर समन्वय और राहत सुनिश्चित करने हेतु राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (State Disaster Response Fund) में सूचीबद्ध आपदाओं के तहत मानव-पशु संघर्ष को शामिल करने हेतु सैद्धांतिक रूप से मंज़ूरी दे दी है।
- उत्तराखंड सरकार (2019) ने क्षेत्रों में विभिन्न प्रजातियों के पौधों को उगाकर बायो फेंसिंग लगाने का कार्य किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने नीलगिरि हाथी कॉरिडोर (Nilgiris Elephant Corridor), हाथियों से संबंधित 'राइट ऑफ पैसेज' (Right of Passage) और क्षेत्र में होटल/रिसॉर्ट्स को बंद करने की पुष्टि की है।
- ओडिशा के अथागढ़ वन प्रभाग ने मानव-हाथी संघर्ष को रोकने के लिये जंगली हाथियों हेतु खाद्य भंडार को समृद्ध करने के लिये विभिन्न आरक्षित वन क्षेत्रों के अंदर सीड्स बम या बॉल (Seed Bombs) (या बम) का प्रयोग शुरू कर दिया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता
प्रिलिम्स के लिये:भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता (RSA), 2004 मेन्स के लिये:भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता (RSA), 2004 का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
भारत और नेपाल ने भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता (RSA), 2004 हेतु एक विनिमय पत्र (एलओई) पर हस्ताक्षर किये हैं।
- यह सभी अधिकृत कार्गो ट्रेन ऑपरेटरों को कंटेनर और अन्य माल को नेपाल ले जाने के लिये भारतीय रेलवे नेटवर्क का उपयोग करने की अनुमति देगा (भारत तथा नेपाल या तीसरे देश के बीच भारतीय बंदरगाहों से नेपाल तक)।
- अधिकृत कार्गो ट्रेन ऑपरेटरों में सार्वजनिक और निजी कंटेनर ट्रेन ऑपरेटर, ऑटोमोबाइल फ्रेट ट्रेन ऑपरेटर, विशेष माल ट्रेन ऑपरेटर या भारतीय रेलवे द्वारा अधिकृत कोई अन्य ऑपरेटर शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु:
रेल सेवा समझौता, 2004:
- रेल सेवा समझौता, 2004 को दोनों देशों के बीच रक्सौल (भारत) के रास्ते बीरगंज (नेपाल) से मालगाड़ी सेवाओं की शुरुआत के लिये रेल मंत्रालय, भारत सरकार और वाणिज्य मंत्रालय तथा नेपाल सरकार के बीच निष्पादित किया गया था।
- यह समझौता भारत और नेपाल के बीच रेल द्वारा आवाजाही का मार्गदर्शन करता है।
- समझौते की समीक्षा हर पाँच वर्ष में की जाएगी और इसे आपसी सहमति से अनुबंध करने वाले पक्षों द्वारा संशोधित (एक्सचेंज के पत्रों के माध्यम से) किया जा सकता है।
- अतीत में तीन अवसरों पर LoE के माध्यम से RSA में संशोधन किया गया है।
- ऐसा पहला संशोधन वर्ष 2004 में किया गया था।
- दूसरा एलओई वर्ष 2008 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय कार्गो की शुरूआत के समय हस्ताक्षरित किया गया था, जिसके लिये नई सीमा शुल्क प्रक्रियाओं की शुरूआत की आवश्यकता थी।
- तीसरे एलओई पर 2016 में हस्ताक्षर किये गए थे, जो कोलकाता/हल्दिया बंदरगाह के माध्यम से रेल परिवहन के मौजूदा प्रावधान के अलावा विशाखापत्तनम बंदरगाह तक/से रेल परिवहन यातायात को सक्षम बनाता है।
नवीनतम समझौते के लाभ:
- बाज़ार की ताकतों को संचालित करने की अनुमति: यह उदारीकरण नेपाल के रेल खंड में बाज़ार की ताकतों (जैसे उपभोक्ताओं और खरीदारों) को आने की अनुमति देगा और इससे दक्षता और लागत-प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होने की संभावना है, अंततः नेपाल के उपभोक्ताओं को इससे लाभ होगा।
- परिवहन लागत कम होगी: उदारीकरण विशेष रूप से ऑटोमोबाइल और कुछ अन्य उत्पादों के लिये परिवहन लागत को कम करेगा जिनकी ढुलाई विशेष वैगनों द्वारा होती है तथा यह दोनों देशों के बीच रेल कार्गो गतिविधियों को बढ़ावा देगा।
- क्षेत्रीय संपर्क में वृद्धि: नेपाल रेलवे कंपनी के स्वामित्व वाले वैगनों को भी IR मानकों और प्रक्रियाओं के अनुसार भारतीय रेलवे नेटवर्क पर नेपाल जाने वाले माल (कोलकाता/हल्दिया से विराटनगर/बीरगंज मार्गों पर आने वाली और बाहर जाने वाली) को ले जाने के लिये अधिकृत किया जाएगा।
- इस LoE पर हस्ताक्षर "नेबरहुड फर्स्ट" नीति के तहत क्षेत्रीय संपर्क बढ़ाने के भारत के प्रयासों में एक और मील का पत्थर है।
अन्य कनेक्टिविटी परियोजना:
- नेपाल तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है और एक तरफ तिब्बत की ओर खुला है जहाँ बहुत सीमित वाहनों की पहुँच है।
- भारत-नेपाल ने लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न संपर्क कार्यक्रम शुरू किये हैं।
- भारत में काठमांडू को रक्सौल से जोड़ने वाला इलेक्ट्रिक रेल ट्रैक बिछाने हेतु दोनों सरकारों के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
- भारत व्यापार और पारगमन व्यवस्था के ढाँचे के भीतर कार्गो की आवाजाही हेतु अंतर्देशीय जलमार्ग विकसित करना चाहता है, यह नेपाल को सागर (हिंद महासागर) के साथ सागरमाथा (माउंट एवरेस्ट) को जोड़ने के लिये समुद्र तक अतिरिक्त पहुँच प्रदान करता है।
- वर्ष 2019 में भारत और नेपाल ने संयुक्त रूप से एक सीमा पार पेट्रोलियम पाइपलाइन का उद्घाटन किया है।
- यह पाइपलाइन भारत के मोतिहारी से पेट्रोलियम उत्पादों को नेपाल के अमलेखगंज तक ले जाती है।
- यह दक्षिण एशिया की पहली सीमा पार पेट्रोलियम उत्पाद पाइपलाइन है।
नेबरहुड फर्स्ट नीति (Neighbourhood first policy)
- यह भारत की विदेश नीति का हिस्सा है जो सक्रिय रूप से भारत के सीमावर्ती पड़ोसियों के साथ संबंधों को सुधारने पर केंद्रित है जिसे मीडिया में नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी कहा जा रहा है।
- पीएम नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के शपथ ग्रहण समारोह में दक्षिण एशियाई देशों के सभी राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों को आमंत्रित करके इसकी अच्छी शुरुआत की गई थी और बाद में उन सभी के साथ व्यक्तिगत रूप से द्विपक्षीय वार्ता की गई, जिसे मिनी सार्क शिखर सम्मेलन करार दिया गया।
- वर्ष 2019 में दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में भारत ने बिम्सटेक देशों के प्रमुखों को आमंत्रित किया था।
भारत-नेपाल संबंध
- पड़ोसी: नेपाल, भारत का एक महत्त्वपूर्ण पड़ोसी है और सदियों से चले आ रहे भौगोलिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों के कारण वह हमारी विदेश नीति में भी विशेष महत्त्व रखता है।
- वर्ष 1950 की ‘भारत-नेपाल शांति और मित्रता संधि’ दोनों देशों के बीच मौजूद विशेष संबंधों का आधार है।
- सांस्कृतिक संबंध: भारत और नेपाल हिंदू धर्म एवं बौद्ध धर्म के संदर्भ में समान संबंध साझा करते हैं, उल्लेखनीय है कि बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी नेपाल में है और उनका निर्वाण स्थान कुशीनगर भारत में स्थित है।
- खुली सीमाएँ : दोनों देश न सिर्फ एक खुली सीमा और लोगों की निर्बाध आवाजाही को साझा करते हैं, बल्कि उनके बीच विवाह और पारिवारिक संबंधों जैसे घनिष्ठ संबंध भी हैं, जिसे 'रोटी-बेटी के रिश्ते' के रूप में जाना जाता है।
- बहुपक्षीय साझेदारी: भारत और नेपाल कई बहुपक्षीय मंचों को साझा करते हैं, जैसे- BBIN (बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल), बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation), गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) तथा दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (The South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) आदि।
मुद्दे:
- वर्ष 2017 में नेपाल ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) पर हस्ताक्षर किये, जिसने देश में राजमार्ग, हवाई अड्डे तथा अन्य बुनियादी ढाँचे के निर्माण की मांग की।
- BRI को भारत ने खारिज कर दिया था तथा नेपाल के इस कदम को चीन के प्रति झुकाव के तौर पर देखा जा रहा था।
- वर्तमान में भारत-नेपाल और चीन के बीच कालापानी (Kalapani), लिंपियाधुरा (Limpiyadhura), लिपुलेख (Lipulekh), ट्राइजंक्शन और सुस्ता क्षेत्र (पश्चिम चंपारण ज़िला, बिहार) को लेकर भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद है।
स्रोत : पी.आई.बी.
हैती के राष्ट्रपति की हत्या
प्रिलिम्स के लिये:हैती की भौगोलिक अवस्थिति,अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन, यूनेस्को, विश्व सीमा शुल्क संगठन मेन्स के लिये:हैती में राजनीतिक अस्थिरता का कारण, वर्तमान में भारत-हैती संबंधों की स्थिति |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में हैती के राष्ट्रपति जोवेनेल मोइस की ‘पोर्ट-औ-प्रिंस’ हैती में उनके निजी आवास पर हत्या कर दी गई।
प्रमुख बिंदु:
हैती:
- हैती कैरेबियन सागर में स्थित एक देश है जिसमें पश्चिमी हिस्पानियोला द्वीप का तीसरा हिस्सा और गोनावे, टोर्टु (टोर्टुगा), ग्रांडे केई तथा वाचे जैसे छोटे द्वीप शामिल हैं। इसकी राजधानी पोर्ट-औ-प्रिंस है।
- इसकी लगभग पूरी आबादी अफ्रीकी गुलामों के वंशजों की है, इसने वर्ष 1804 में फ्राँस से स्वतंत्रता प्राप्त की, यह संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद अमेरिका में दूसरा देश बना, जिसने खुद को औपनिवेशिक शासन से मुक्त किया।
- यह दुनिया का पहला स्वतंत्र अश्वेत नेतृत्व वाला गणतंत्र है।
- यह लगभग दो शताब्दियों तक स्पेनिश औपनिवेशिक शासन और एक सदी से अधिक फ्राँसीसी शासन के अधीन रहा।
- हालाँकि सदियों से आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक कठिनाइयों के साथ-साथ कई प्राकृतिक आपदाओं ने हैती को गरीबी और अन्य गंभीर समस्याओं से घेर रखा है।
- यह पश्चिमी गोलार्द्ध का सबसे गरीब देश है, विदेशी हस्तक्षेप, आर्थिक शोषण और तानाशाही शासन इसका एक दर्दनाक इतिहास रहा है।
हालिया अस्थिरता:
- हैती की नवीनतम राजनीतिक अस्थिरता जोवेनल मोइस (Jovenel Moise) के राष्ट्रपति पद के विवाद के इर्द-गिर्द घूमती है। उन्हें 2016 में पाँच वर्ष के कार्यकाल के लिये चुना गया था, लेकिन चुनाव परिणामों पर विवाद के कारण उन्होंने अगले वर्ष तक पदभार नहीं संभाला।
- जोवेनेल मोइस के प्रशासन के तहत हैती में राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति और खराब हो गई।
- जोवेनल मोइस ने प्रभावी रूप से कहा कि यह उन्हें सत्ता में एक और वर्ष बने रहने का हकदार बनाता है, इस दावे को हैती के विपक्ष ने खारिज कर दिया।
- फरवरी 2021 में जब मोइस के विरोधियों ने कहा कि उनका कार्यकाल समाप्त हो गया है, तो उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर दिया। जोवेनल मोइस ने इसे तख्तापलट का प्रयास बताया और 23 विरोधियों को गिरफ्तार किया गया।
- उस अवधि के दौरान अपहरण, बलात्कार तथा हत्या जैसे अपराधों में वृद्धि हुई है क्योंकि प्रतिद्वंद्वी गिरोह हैती की सड़कों पर नियंत्रण के लिये एक-दूसरे के साथ तथा पुलिस से झड़प करते रहे।
- मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं ने जोवेनल मोइस की सरकार पर प्रतिद्वंद्वी गिरोह से संबंध रखने का आरोप लगाया है।
- अब तक इस वर्ष में कम-से-कम 278 हाईटियन गिरोह से संबंधित लोग हिंसा में मारे गए हैं।
- अप्रत्याशित स्तर की हिंसा एवं उसके उपरांत होने वाला विस्थापन कई गौण मुद्दों को जन्म दे रहा है।
भारत-हैती संबंध
राजनीतिक:
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हैती के साथ भारत के संबंध मैत्रीपूर्ण रहे हैं, हालांँकि दोनों देशों के बीच बातचीत सीमित स्तर पर ही रही है।
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सितंबर 1996 में भारत द्वारा हैती के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किये गए। अक्तूबर 2014 में हैती ने नई दिल्ली में अपना एक मानद वाणिज्य दूत नियुक्त किया।
- अगस्त 1995 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) के तत्वावधान में एक शांति मिशन पर 140 सदस्यीय केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल ( (Central Reserve Police Force- CRPF) की टुकड़ी को हैती भेजा था।
- अक्तूबर 2008 में अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के तहत हैती में सुरक्षित एवं शांतिपूर्ण वातावरण की स्थापना करने के लिये भारत द्वारा गठित एक 140 सदस्यीय पुलिस इकाई (Formed Police Unit- FPU) संयुक्त राष्ट्र के स्थिरीकरण मिशन (मोनुस्को) में शामिल हुई।
- जुलाई 2019 में हैती में तैनात FPU की अंतिम इकाई को मोनुस्को मिशन के पूरा होने पर बुला लिया गया।
- हैती सरकार ने हाल के दिनों में बहुपक्षीय स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice- ICJ), यूनेस्को (UNESCO), अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organization) और विश्व सीमा शुल्क संगठन (World Customs Organization- WCO) के चुनावों सहित विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के चुनावों में भारतीय उम्मीदवारों का समर्थन किया है।
व्यापार:
- हैती के साथ भारत का व्यापार अभी सीमित ही है लेकिन हाल के वर्षों में भारतीय निर्यात में बढ़ोतरी हुई है।
- वर्ष 2018-19 के अंत तक दोनों देशों के मध्य दोतरफा व्यापार 93.10 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
- हैती को निर्यात की जाने वाली मुख्य वस्तुओं में फार्मास्युटिकल सामान, कपड़ा, रबर उत्पाद, सौंदर्य प्रसाधन और प्लास्टिक एवं लिनोलियम उत्पाद शामिल हैं।
- भारत ने कम विकसित देश अर्थात् विकाशील देशों हेतु एक विशेष संकेतक के रूप में हैती के उत्पादों के लिये शुल्क मुक्त पहुँच प्रदान की हुई है।
शैक्षिक:
- भारत ने भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) कार्यक्रम के तहत हैती (Haiti) को सहायता प्रदान की है।
- ITEC कार्यक्रम भारत में प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित करने, विदेशों में भारतीय विशेषज्ञों की प्रतिनियुक्ति, आपदा राहत हेतु सहायता, उपहार में उपकरण देने, अध्ययन दौरे और व्यवहार्यता अध्ययन/परामर्श सेवाएंँ प्रदान करता है।
- हैती के (Haitian) राजनयिक भी नियमित अंतराल पर विदेशी राजनयिकों के लिये व्यावसायिक पाठ्यक्रमों (Professional Course for Foreign Diplomats- PCFD) का लाभ उठाते रहे हैं।
- PCFD राजनयिकों के प्रशिक्षण के क्षेत्र में अर्जित ज्ञान और विशेषज्ञता को साझा करने में अपने मित्र देशों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है।
- हैती की अशिक्षित महिलाओं ने राजस्थान के बेयरफुट कॉलेज (Barefoot College in Rajasthan) में सौर ऊर्जा संचयन का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
आपदा राहत:
- भारत ने नवंबर 2007 में नोएल (Noel) तूफान से हुई क्षति के लिये हैती को मानवीय सहायता के रूप में 50,000 डॉलर मूल्य की दवाएँ दान कीं।
- जनवरी 2010 में 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की राहत सहायता दी गई थी। वर्ष 2011 तक तीन वर्षों के लिये वार्षिक 5,00,000 अमेरिकी डॉलर की राहत भी प्रदान की गई थी।
- भारत ने अक्तूबर 2016 में तूफान मैथ्यू (Mathew) के बाद हैती को 2,50,000 अमेरिकी डॉलर की आपातकालीन वित्तीय सहायता भी प्रदान की।
भारतीय समुदाय:
- हैती में भारतीय समुदाय छोटा है। इसमें करीब 70 सदस्य शामिल हैं और लगभग सभी भारतीय पासपोर्ट धारक हैं।
- उनमें से कई पेशेवर डॉक्टर, इंजीनियर, तकनीशियन हैं। कुछ निजी कारोबार में भी संग्लग्न हैं।
स्रोत: द हिंदू
हाथीपाँव रोग
प्रिलिम्स के लिये:हाथीपाँव रोग मेन्स के लिये:हाथीपाँव रोग से संबंधित मुद्दे और रोग के उन्मूलन हेतु भारतीय एवं वैश्विक कार्यक्रम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने हाथीपाँव (Lymphatic Filariasis) के उन्मूलन के लिये एक दवा अभियान शुरू किया है और कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद इस दवा अभियान को फिर से शुरू करने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
प्रमुख बिंदु:
परिचय:
- हाथीपाँव, जिसे आमतौर पर एलिफेंटियासिस (Elephantiasis) के रूप में जाना जाता है एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग (Neglected Tropical Disease- NTD) के रूप में माना जाता है। मानसिक स्वास्थ्य के बाद यह दूसरी सबसे अधिक अक्षम करने वाली बीमारी है।
- यह लसीका प्रणाली को नुकसान पहुँचा सकता है और शरीर के अंगों के असामान्य विस्तार को जन्म दे सकता है, जिससे दर्द, गंभीर विकलांगता और सामाजिक कलंक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- लसीका तंत्र वाहिकाओं और विशेष ऊतकों का एक नेटवर्क है जो समग्र द्रव संतुलन, अंगों एवं अंगों के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये आवश्यक है तथा महत्त्वपूर्ण रूप से शरीर की प्रतिरक्षा रक्षा प्रणाली का एक प्रमुख घटक है।
- हाथीपाँव एक वेक्टर जनित रोग है, जो फाइलेरियोइडिया (Filarioidea) कुल के नेमाटोड (राउंडवॉर्म) के रूप में वर्गीकृत परजीवियों के संक्रमण के कारण होता है। हाथीपाँव रोग का कारण धागेनुमा आकार के निम्नलिखित तीन प्रकार के फाइलेरियल परजीवी होते हैं-
- वुचेरेरिया बैनक्रोफ्टी (Wuchereria Bancrofti) हाथीपाँव के लगभग 90% मामलों के लिये उत्तरदायी होता है।
- ब्रुगिया मलाई (Brugia Malayi) अधिकाँश मामलों के लिये उत्तरदायी है।
- ब्रुगिया तिमोरी (Brugiya Timori) भी इस रोग का कारण है।
औषधीय उपचार:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) हाथीपाँव के वैश्विक उन्मूलन में तेज़ी लाने के लिये तीन औषधीय उपचारों की सिफारिश करता है।
- उपचार, जिसे आईडीए (IDA) के रूप में जाना जाता है, में आइवरमेक्टिन (Ivermectin), डायथाइलकार्बामाज़िन साइट्रेट (Diethylcarbamazine Citrate) और एल्बेंडाज़ोल (Albendazole) का संयोजन शामिल है।
- इन औषधियों को लगातार दो वर्षों तक दिया जाता है। वयस्क कृमि का जीवनकाल लगभग चार वर्षों का होता है, इसलिये वह व्यक्ति को कोई नुकसान पहुँचाए बिना स्वाभाविक रूप से मर जाता है।
भारतीय परिदृश्य:
- हाथीपाँव भारत के लिये गंभीर खतरा है। 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में अनुमानित 650 मिलियन भारतीयों को हाथीपाँव होने का खतरा है।
- विश्व में हाथीपाँव के 40% से अधिक मामले भारत में पाए जाते हैं।
- हाथीपाँव रोग के उन्मूलन की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्ष 2018 में ‘हाथीपाँव रोग के तीव्र उन्मूलन की कार्य-योजना’ (Accelerated Plan for Elimination of Lymphatic Filariasis- APELF) नामक पहल शुरू की थी।
- भारत ने इस रोग के उन्मूलन के लिये दोहरी रणनीति अपनाई है। इसके तहत हाथीपाँव निरोधक दो दवाओं (ईडीसी तथा एल्बेन्डाज़ोल- EDC and Albendazole) का प्रयोग, अंग विकृति प्रबंधन (Morbidity Management) और दिव्यांगता रोकथाम शामिल है।
- केंद्र सरकार दिसंबर 2019 से ट्रिपल ड्रग थेरेपी (Triple Drug Therapy) को चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ाने के लिये प्रयासरत है।
वैश्विक प्रयास:
- 2021-2030 के लिये WHO का नया रोडमैप: यह रोडमैप वर्ष 2030 तक 20 उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोगों की रोकथाम, उन्हें नियंत्रित करने और उन्मूलन करने के लिये है।
- हाथीपाँव उन्मूलन के लिये वैश्विक कार्यक्रम (GPELF):
- वर्ष 2000 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (Mass Drug Administration- MDA) के साथ संक्रमण को रोकने के लिये GPELF की स्थापना की ताकि रुग्णता प्रबंधन एवं विकलांगता रोकथाम (MMDP) के माध्यम से बीमारी से प्रभावित लोगों की पीड़ा को कम किया जा सके।
- GPELF द्वारा विश्व स्तर पर हाथीपाँव को एक सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में समाप्त करने का लक्ष्य वर्ष 2020 तक हासिल नहीं किया गया है । कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न समस्या के बावजूद WHO वर्ष 2030 तक इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये काम में तेज़ी लाएगा।
स्रोत: द हिंदू
कप्पा वेरिएंट: कोविड-19
प्रिलिम्स के लिये:कप्पा वैरिएंट, विश्व स्वास्थ्य संगठन मेन्स के लिये:विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विभिन्न कोरोना वायरस वेरिएंट का नामकरण एवं वर्गीकरण तथा इसका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश में कोविड-19 के कप्पा (Kappa) वेरिएंट के दो मामले दर्ज किये गए हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) के अनुसार, ‘कप्पा’ कोविड -19 के दो नवीनतम प्रकारों में से एक है, दूसरा वेरिएंट ‘डेल्टा’ है जिसकी उपस्थिति पहली बार भारत में दर्ज की गई थी।
- इससे पहले पेरू से एक नए वेरिएंट लैम्ब्डा की सूचना मिली थी।
प्रमुख बिंदु:
- भारत द्वारा नोवेल कोरोनावायरस के B.1.617.1 म्यूटेंट को "भारतीय संस्करण" कहे जाने पर आपत्ति जताए जाने के बाद WHO ने ग्रीक वर्णमाला का उपयोग करते हुए कोरोनावायरस के इस संस्करण को 'कप्पा' और B.1.617.2 को 'डेल्टा' नाम दिया था।
- डेल्टा और कप्पा संस्करण आपस में संबंधित हैं, जिसे पहले डबल म्यूटेंट या B.1.617 कहा जाता था।
- कप्पा कोविड-19 का नया रूप नहीं है बल्कि WHO के अनुसार अक्तूबर 2020 में इस वेरिएंट की पहचान सबसे पहले भारत में हुई थी।
- वर्तमान में यह WHO द्वारा 'वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट' के रूप में सूचीबद्ध है न कि 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' के रूप में में।
वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट:
- इस श्रेणी में उन वेरिएंट्स को शामिल किया जाता है जिनमें शामिल आनुवंशिक परिवर्तन पूर्णतः अनुमानित होते हैं और उन्हें संचारण क्षमता, रोग की गंभीरता या प्रतिरक्षा क्षमता को प्रभावित करने के लिये जाना जाता है।
- ये वेरिएंट्स कई देशों और जनसंख्या समूहों के बीच महत्त्वपूर्ण सामुदायिक प्रसारण का कारण होते हैं। समय के साथ मामलों की बढ़ती संख्या या अन्य स्पष्ट महामारी विज्ञान प्रभावों के साथ-साथ वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये एक उभरते जोखिम का सुझाव देने के उद्देश्य से इनकी की पहचान की जाती है।
वेरिएंट ऑफ कंसर्न:
- वायरस के इस वेरिएंट के परिणामस्वरूप संक्रामकता में वृद्धि, अधिक गंभीर बीमारी (जैसे- अस्पताल में भर्ती या मृत्यु हो जाना), पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी में महत्त्वपूर्ण कमी, उपचार या टीके की प्रभावशीलता में कमी या नैदानिक उपचार की विफलता देखने को मिलती है।
- अब तक ऐसे चार वेरिएंट (अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा) हैं, जिन्हें ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ के रूप में नामित किया गया है और इन्हें बड़ा खतरा माना जाता है।
- इन सभी का हाल ही में ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों के नाम पर नामकरण किया गया है, ताकि किसी एक विशिष्ट देश के साथ जुड़ाव से बचा जा सके।
चिंताएँ:
- कप्पा वेरिएंट कोई नया खतरा नहीं है और यह पहले भी उत्तर प्रदेश से एकत्र किए गए नमूनों में पाया गया था। कोविड वायरस का नया वेरिएंट न होने के कारण यह राज्य के लिये चिंता का विषय नहीं हैं।
- पहले भी इसे डेल्टा वेरिएंट की तुलना में कम खतरनाक माना जा चुका है।
आगे की राह:
- भारत, जो अभी भी महामारी दूसरी लहर से उबर रहा है, को सक्रिय रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि किसी भी नए संस्करण (वेरिएंट) के प्रसार को रोका जा सके।
- भारतीय विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों और जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों में व्यापक अनुसंधान आयोजित किये जाने तथा उन्हें वित्तपोषित, प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत किये जाने की आवश्यकता है।
जनजाति समुदायों हेतु ‘संयुक्त पत्र’
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय वन अधिनियम, 1927; वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972; ट्राइफेड मेन्स के लिये:जनजाति समुदायों हेतु ‘संयुक्त पत्र’ का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जनजातीय मामलों के मंत्रालय तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा एक ‘संयुक्त वक्तव्य’ (Joint Communication) पत्र पर हस्ताक्षर किये गए हैं , जिसका उद्देश्य आदिवासी समुदायों को वन संसाधनों के प्रबंधन में अधिक अधिकार प्रदान करना है।
वन संसाधन
- वन न केवल पेड़ों से आच्छादित जानवरों के आवास स्थल हैं बल्कि वे संसाधनों का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत भी हैं। वे स्वच्छ हवा, लकड़ी, ईंधन, फल, भोजन, चारा आदि के अलावा अनेक संसाधन प्रदान करते हैं। इन्हें वन संसाधन के रूप में जाना जाता है, जिन पर बहुत से लोगों की आजीविका और अस्तित्व निर्भर है।
- वनों से हमें संसाधन प्राप्त होते हैं, जिसकी वजह से इनका संरक्षण करना और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इन्हीं संसाधनों के कारण वनों का दोहन होता है।
- वन संरक्षण और बचाव हेतु पहलें:
- भारतीय वन अधिनियम, 1927; वन संरक्षण अधिनियम, 1980; राष्ट्रीय वन नीति, 1988; राष्ट्रीय हरित भारत मिशन; राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम; वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972.
प्रमुख बिंदु:
‘संयुक्त पत्र’ के विषय में:
- ‘संयुक्त पत्र, वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के अधिक प्रभावी कार्यान्वयन और वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों (Forest Dwelling Scheduled Tribes- FDSTs) तथा अन्य पारंपरिक वन निवासियों (Traditional Forest Dwellers- OTFDs) की आजीविका में सुधार हेतु उनकी क्षमता का दोहन करने से संबंधित है।
- राज्य के वन विभाग वन अधिकारों के दावों का सत्यापन, शामिल वन भूमि की मैपिंग और आवश्यक साक्ष्य के प्रावधान, अभिलेखों का प्रमाणीकरण, संयुक्त क्षेत्र निरीक्षण, जागरूकता सृजन आदि का कार्य करेंगे।
- देश भर में वन अधिकारों की मान्यता में कमी के कारण इसने आदिवासी और वनवासी समुदायों में अपनी भूमि से बेदखल होने की असुरक्षित भावना को जन्म दिया है।
- राज्य के वन विभाग द्वारा मूल्य शृंखलाओं के संवर्द्धन हेतु परियोजनाएंँ शुरू की जाएंगी, जिसमें प्राथमिक संग्राहकों के क्षमता निर्माण, कटाई के नए तरीके, गैर-इमारती वन उत्पादों (Non-Timber Forest Products- NTFP) का भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन शामिल है।
- विशिष्ट गैर-लकड़ी वन उत्पादों हेतु आपूर्ति शृंखला प्लेटफार्म के रूप में ट्राइफेड (TRIFED), आयुष मंत्रालय, एमएफपी (लघु वनोपज) संघों, वन धन केंद्रों (Van Dhan Kendras) आदि के सहयोग से नामित एक नोडल एजेंसी बनाई गई है।
वनवासी/आदिवासी और MFP:
- आदिवासी और अन्य वनवासी जैव विविधता के संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और वन क्षेत्र को बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन की दिशा में किये जा रहे प्रयासों में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।
- आदिवासी न केवल अपनी आजीविका हेतु वनों पर निर्भर हैं बल्कि उनकी परंपराएंँ भी वनों से जुड़ी हुई हैं।
- गैर-इमारती वन उत्पाद या लघु वन उत्पाद (Non-Timber Forest Products or Minor Forest Produce- MFP):
- MFP में पौधे की उत्पत्ति से संबंधित सभी गैर-लकड़ी वन उत्पाद शामिल हैं जिनमें बांँस, बेंत, चारा, पत्ते, गोंद, मोम, डाई, रेजिन और कई प्रकार के भोजन (नट, जंगली फल, शहद, लाख, टसर आदि) शामिल हैं।
- यह उन लोगों जो वनों में या उसके आसपास रहते हैं, के जीवन निर्वाह हेतु नकद आय प्रदान करते हैं ।
- वे अपने भोजन, फलों, दवाओं और अन्य उपभोग की वस्तुओं का एक बड़ा हिस्सा वनों से प्राप्त करते है तथा इन उत्पादों की बिक्री के माध्यम से नकद आय भी प्राप्त करते हैं।
- NTFP को MFP या गैर-लकड़ी वन उत्पाद ( Non-Wood Forest Produce- NWFP) के रूप में भी जाना जाता है।
- NTFP को आगे औषधीय और सुगंधित पौधों Medicinal And Aromatic Plants- MAP), तिलहन, फाइबर तथा फ्लॉस, रेजिन, खाद्य पौधों, बांँस और घास में वर्गीकृत किया जा सकता है।
वनवासियों के लिये पहल:
- सरकार ने अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 को अधिनियमित किया था, जिसे आमतौर पर वन अधिकार अधिनियम के रूप में जाना जाता है और इन समुदायों को वन के भीतर आजीविका एवं व्यवसाय के अधिकार को मान्यता दी है।
- एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS)
- प्रधानमंत्री वन धन योजना (PMVDY)
- पिछले कुछ वर्षों में न्यूनतम समर्थन मूल्य की श्रेणी में लघु वन उत्पादों (Minor Forest Produce) की संख्या को 10 से बढ़ाकर 86 किये जाने के कदम से अनुसूचित जनजाति के लोगों को अपनी आय और आजीविका की संभावनाओं को बेहतर करने में काफी मदद मिली है।
- वन विभागों सहित राज्य आदिवासी कल्याण विभाग भी वनवासियों के लिये मनरेगा और राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) का विस्तार करने के साथ-साथ कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करने एवं कृषि-वानिकी तथा बागवानी परियोजनाओं को गति देने के लिये रणनीति तैयार कर रहे हैं।
- स्थानीय स्वशासन में अनुसूचित जनजाति के जन प्रतिनिधियों के लिये क्षमता सृजन कार्यक्रम।
वन अधिकार अधिनियम, 2006
- यह अधिनियम पीढ़ियों से जंगलों में निवास कर रहे वन विस्थापित अनुसूचित जनजातियों (Forest Dwelling Scheduled Tribes- FDST) और अन्य पारंपरिक वन विस्थापितों (Other Traditional Forest Dwellers- OTFD) के लिये वन भूमि में वन अधिकारों एवं व्यवसाय को मान्यता देता है।
- अधिनियम के तहत वन अधिकारों का दावा उस सदस्य या समुदाय द्वारा किया जा सकता है, जिसकी कम-से-कम तीन पीढ़ियाँ (75 वर्ष) मुख्य रूप से अपनी जीविका की ज़रूरतों को पूरा करने हेतु 13 दिसंबर, 2005 से पहले तक वन भूमि क्षेत्र में निवास करती हो।
- यह वन में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों (FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (OTFD) की आजीविका तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के प्रबंधकीय शासन को मज़बूत करता है।
- ग्रामसभा को व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) या सामुदायिक वन अधिकार (CFR) या दोनों जो FDST और OTFD को दिये जा सकते हैं, की प्रकृति एवं सीमा को निर्धारित करने के लिये प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार है।
- यह अधिनियम चार प्रकार के अधिकारों को मान्यता देता है:
- शीर्षक अधिकार: यह एफडीएसटी और ओटीएफडी द्वारा की जा रही खेती वाली भूमि पर इन्हें स्वामित्व का अधिकार देता है लेकिन यह सीमा अधिकतम 4 हेक्टेयर तक ही होगी। स्वामित्व केवल उस भूमि के लिये है जिसमें वास्तव में संबंधित परिवार द्वारा खेती की जा रही है, जिसका तात्पर्य है कि कोई नई भूमि नहीं प्रदान की जाएगी।
- उपयोग संबंधी अधिकार: गौण वन उत्पादों, चरागाह क्षेत्रों, चरागाही मार्गों आदि के उपयोग का अधिकार प्रदान किया गया है।
- राहत और विकास संबंधी अधिकार: वन संरक्षण हेतु प्रतिबंधों के अध्ययन, अवैध ढंग से उन्हें हटाने या बलपूर्वक विस्थापित करने के मामले में पुनर्वास और बुनियादी सुविधाओं का अधिकार प्रदान किया गया है।
- वन प्रबंधन संबंधी अधिकार: इसमें सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनरुत्पादन, संरक्षण और प्रबंधन का अधिकार शामिल है, जिसे वे स्थायी उपयोग के लिये परंपरागत रूप से संरक्षित करते रहे हैं।