विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
कोविड-19 का लैम्ब्डा वेरिएंट
- 07 Jul 2021
- 5 min read
प्रिलिम्स के लिये:लैम्ब्डा वेरियंट, डेल्टा वेरिएंट मेन्स के लिये:कोविड-19 वायरस के विभिन्न वेरियंट तथा उनसे संबंधित समस्याएँ एवं समाधान |
चर्चा में क्यों?
कोविड-19 के डेल्टा वेरिएंट (Delta Variant) के मामलों में बढ़ोतरी के पश्चात् लैम्ब्डा वेरिएंट (Lambda Variant) नामक एक नया वेरिएंट सामने आया है।
- पेरू में लैम्ब्डा वेरिएंट काफी प्रभावशाली है, किंतु भारत में अभी तक इसका कोई मामला दर्ज नहीं हुआ है।
प्रमुख बिंदु
लैम्ब्डा वेरिएंट के विषय में:
- इसकी पहचान पहली बार दिसंबर 2020 में पेरू में की गई थी। लैम्ब्डा वेरिएंट, दक्षिण अमेरिकी देशों में कोविड-19 का प्रमुख प्रकार है, जिसमें 81% नमूने पाए गए हैं।
- कुछ समय पूर्व तक यह केवल इक्वाडोर और अर्जेंटीना सहित कुछ चुनिंदा दक्षिण अमेरिकी देशों में केंद्रित था, लेकिन अप्रैल के बाद से इसके मामले को 25 से अधिक देशों में पाया गया है।
- पूर्व में C.37 (वैज्ञानिक नाम) के रूप में प्रसिद्ध इस वेरिएंट को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने सातवें और नवीनतम ‘वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट’ (Variant of Interest) के रूप में नामित किया है।
- अन्य चार वेरिएंट्स को 'वेरिएंट ऑफ कंसर्न' (Variants of Concern) के रूप में नामित किया गया है।
वेरिएंट ऑफ इंटरेस्ट:
- इस श्रेणी में उन वेरिएंट्स को शामिल किया जाता है जिनमें शामिल आनुवंशिक परिवर्तन पूर्णतः अनुमानित होते हैं और उन्हें संचारण क्षमता, रोग की गंभीरता या प्रतिरक्षा क्षमता को प्रभावित करने के लिये जाना जाता है।
- ये वेरिएंट्स कई देशों और जनसंख्या समूहों के बीच महत्त्वपूर्ण सामुदायिक प्रसारण का कारण भी बने हैं।
वेरिएंट ऑफ कंसर्न:
- वायरस के इस वेरिएंट के परिणामस्वरूप संक्रामकता में वृद्धि, अधिक गंभीर बीमारी (जैसे- अस्पताल में भर्ती या मृत्यु हो जाना), पिछले संक्रमण या टीकाकरण के दौरान उत्पन्न एंटीबॉडी में महत्त्वपूर्ण कमी, उपचार या टीके की प्रभावशीलता में कमी या नैदानिक उपचार की विफलता देखने को मिलती है।
- अब तक ऐसे चार वेरिएंट (अल्फा, बीटा, गामा और डेल्टा) हैं, जिन्हें ‘वेरिएंट ऑफ कंसर्न’ के रूप में नामित किया गया है और इन्हें बड़ा खतरा माना जाता है।
- इन सभी का हाल ही में ग्रीक वर्णमाला के अक्षरों के नाम पर नामकरण किया गया है, ताकि किसी एक विशिष्ट देश के साथ जुड़ाव से बचा जा सके।
चिंताएँ:
- लैम्ब्डा वेरिएंट’ के स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) में कम-से-कम सात महत्त्वपूर्ण उत्परिवर्तन होते हैं (जबकि डेल्टा संस्करण में तीन होते हैं) जिससे कई प्रकार के प्रभाव हो सकते हैं, जिसमें प्राकृतिक संक्रमण या टीकाकरण के माध्यम से बनाए गए एंटीबॉडी में स्थानांतरण क्षमता में वृद्धि की संभावना या एंटीबॉडी के प्रतिरोध में वृद्धि शामिल है।
- कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन ही वह घटक है जो मानव प्रोटीन के साथ मिलकर संक्रमण की प्रक्रिया शुरू करता है।
- ‘लैम्ब्डा वेरिएंट’, अल्फा और गामा वेरिएंट (क्रमशः यूके और ब्राज़ील में उत्पन्न वायरस) की तुलना में अधिक संक्रामक है।
- एक अध्ययन से यह पता चला है कि लैम्ब्डा संस्करण (Lambda Variant) के खिलाफ चीन की सिनोवैक वैक्सीन (कोरोनावैक) की प्रभावशीलता काफी कम है।
आगे की राह
- भारत, जो अभी भी महामारी दूसरी लहर से उबर रहा है, को सक्रिय रूप से सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि किसी भी नए संस्करण (वेरिएंट) के प्रसार को रोका जा सके।
- भारतीय विश्वविद्यालयों, मेडिकल कॉलेजों और जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों में व्यापक अनुसंधान आयोजित किये जाने तथा उन्हें वित्तपोषित, प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत किये जाने की आवश्यकता है।