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डेली न्यूज़

  • 09 May, 2023
  • 57 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद 2023

प्रिलिम्स के लिये:

जलवायु वित्त, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC), ग्लोबल स्टॉकटेक, पीटर्सबर्ग संवाद

मेन्स के लिये:

जलवायु वित्त और इसका महत्त्व, जलवायु परिवर्तन की राजनीति, संवेदनशील समुदायों एवं देशों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

जर्मनी और संयुक्त अरब अमीरात, जो कि जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (United Nations Framework Convention on Climate Change- UNFCCC) के पक्षकारों के 28वें सम्मेलन (COP28) की मेज़बानी कर रहे हैं, ने 1-2 मई, 2023 को बर्लिन, जर्मनी में जलवायु परिवर्तन पर पीटर्सबर्ग संवाद आयोजित किया। 

पीटर्सबर्ग संवाद: 

  • पीटर्सबर्ग जलवायु संवाद संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (United Nations Climate Change Conferences- COP) से पहले आयोजित एक वार्षिक उच्च स्तरीय राजनीतिक एवं अंतर्राष्ट्रीय मंच है।
  • इसकी शुरुआत वर्ष 2010 में जर्मनी की पूर्व चांसलर एंजेला मर्केल ने की थी।
  • इस फोरम का उद्देश्य पक्षकारों के जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों में सफल वार्ताओं की तैयारी करना है
  • इसका केंद्रीय लक्ष्य बहुपक्षीय जलवायु वार्ताओं और राज्यों के बीच विश्वास को मज़बूत करना है।
  • यह संवाद जलवायु अनुकूलन, जलवायु वित्त और नुकसान एवं क्षति से निपटने पर केंद्रित है।

प्रमुख बिंदु 

  • स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण की आवश्यकता: 
  • वैश्विक नवीकरणीय लक्ष्य: 
    • जर्मनी के विदेश मंत्री ने अगले जलवायु सम्मेलन में नवीकरणीय ऊर्जा के संभावित वैश्विक लक्ष्य को लेकर चर्चा की शुरुआत की। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में त्वरित कटौती करने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से कम करना: 
    • COP28 के अध्यक्ष ने वर्ष 2030 तक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने और उसके बाद वर्ष 2040 तक दोगुना करने का आह्वान किया। उन्होंने प्रतिभागी देशों से नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता निर्माण में तेज़ी लाने तथा जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से कम करते हुए व्यवहार्य एवं लागत प्रभावी शून्य-कार्बन विकल्पों पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह किया।
  • जलवायु वित्त की स्थिति: 
    • विकसित देशों ने वर्ष 2009 में COP15 के दौरान वर्ष 2020 तक प्रतिवर्ष 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रदान करने का वादा किया था और वे ऐसा करते आए हैं।
      • हालाँकि हाल ही के एक अनुमान के मुताबिक, अकेले उभरते बाज़ारों के लिये वर्ष 2030 तक सालाना 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की जलवायु वित्त की जरूरत है, इससे पता चलता है कि वित्तीय क्षतिपूर्ति की तत्काल आवश्यकता है।
  • वैश्विक वित्तीय प्रणाली में तत्काल परिवर्तन आवश्यक: 
    • उपरोक्त संवाद में वैश्विक वित्तीय प्रणाली में तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता को रेखांकित किया गया ताकि विश्व के सबसे जलवायु सुभेद्य देशों के लिये जलवायु वित्त का प्रबंधन किया जा सके।
      • वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का बोझ गरीब देशों पर नहीं डालना चाहिये क्योंकि वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा के लिये वे सबसे कम ज़िम्मेदार हैं।
  • ग्लोबल स्टॉकटेक: 
    • वर्ष 2023 ग्लोबल स्टॉकटेक का वर्ष है, जिसका उद्देश्य यह आकलन करना है कि क्या मौजूदा प्रयास हमें पेरिस समझौते में निर्धारित उद्देश्यों तक पहुँचने में सक्षम बनाएंगे।
      • पिछले दो वर्षों से रिपोर्ट पर कार्य चल रहा है और इसके सितंबर 2023 में प्रकाशित होने का अनुमान है।
        • केंद्रीय मंत्री भारतीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कहा कि पहले ग्लोबल स्टॉकटेक के नतीजे इस बात पर केंद्रित होने चाहिये कि कैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, कार्रवाई और प्रतिक्रियाएँ विकासशील देशों की विकासात्मक प्राथमिकताओं पर असर डालती हैं, जिसमें गरीबी उन्मूलन भी शामिल है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदानों और उन्नत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के अगले दौर को सूचित करने के लिये स्थायी जीवनशैली तथा टिकाऊ खपत पर एक संदेश देने की कोशिश करनी चाहिये।

जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा के लिये भारत की पहल:

  • जलवायु परिवर्तन के लिये राष्ट्रीय अनुकूलन कोष (NAFCC):
    • इसे वर्ष 2015 में भारत के विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति संवेदनशील राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन की लागत को पूरा करने हेतु स्थापित किया गया था।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष:
    • यह कोष स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये बनाया गया था और इसे उद्योगों द्वारा कोयले के उपयोग पर लगने वाले प्रारंभिक कार्बन कर के माध्यम से वित्तपोषित किया गया था।
  • यह एक अंतर-मंत्रालयी समूह द्वारा शासित है जिसका अध्यक्ष वित्त सचिव होता है।
    • इसका जनादेश जीवाश्म और गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित क्षेत्रों में नवीन स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकी के अनुसंधान एवं विकास का वित्तपोषण करना है।
  • राष्ट्रीय अनुकूलन कोष:
    • इस निधि की स्थापना वर्ष 2014 में आवश्यकता और उपलब्ध धन के बीच के अंतर को कम करने के उद्देश्य से 100 करोड़ रुपए के कोष के साथ की गई थी।
    • यह कोष पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के तहत संचालित है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. वर्ष 2015 में पेरिस में UNFCCC की बैठक में हुए समझौते के संदर्भ में निम्नलिखित कथनो में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016) 

  1. इस समझौते पर संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों ने हस्ताक्षर किये और यह वर्ष 2017 में लागू होगा।  
  2. यह समझौता ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को सीमित करने का लक्ष्य रखता है जिससे इस सदी के अंत तक औसत वैश्विक तापमान की वृद्धि उद्योग-पूर्व स्तर (pre-industrial levels) से 2ºC या कोशिश करे की 1.5ºC से भी अधिक न होने पाए।
  3. विकसित देशों ने वैश्विक तापन में अपनी ऐतिहासिक ज़िम्मेदारी को स्वीकारा और जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये विकासशील देशों की सहायता हेतु 2020 से प्रतिवर्ष 1000 अरब डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यू.एन.एफ.सी.सी.सी.) के सी.ओ.पी. के 26वें सत्र के प्रमुख परिणामों का वर्णन कीजिये। इस सम्मेलन में भारत द्वारा की गई वचनबद्धताएँ क्या हैं? (2021) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारतीय अर्थव्यवस्था

असम में मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क

प्रिलिम्स के लिये:

मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क, भारतमाला परियोजना

मेन्स के लिये:

आधारभूत संरचना, अर्थव्यवस्था में लॉजिस्टिक सेक्टर का महत्त्व, मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क, भारतमाला परियोजना

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन एवं जलमार्ग और आयुष मंत्री ने असम के जोगीघोपा में भारत के पहले अंतर्राष्ट्रीय मल्टी-मोडल लॉजिस्टिक्स पार्क (MMLP) के निर्माण स्थल का दौरा किया, ताकि अब तक हुई प्रगति की समीक्षा की जा सके।

  • मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क से पूर्वोत्तर में कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलने की संभावना है।

इस परियोजना का दायरा:

  • पार्क को सरकार की महत्त्वाकांक्षी भारतमाला परियोजना के तहत विकसित किया जा रहा है।
  • यह पार्क नेशनल हाईवे एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड (NHIDCL) द्वारा बनाया जा रहा है।
  • पार्क को सड़क, रेल, वायु और जलमार्ग से जोड़ा जाएगा। 
  • इसे ब्रह्मपुत्र के साथ 317 एकड़ भूमि में विकसित किया जा रहा है।
  • इस परियोजना से भूटान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों के साथ-साथ इस क्षेत्र के लिये बड़ी संभावनाओं की उम्मीद है। 

मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क (MMLP): 

  • परिचय: 
    • MMLP एक परिवहन हब है जो रसद आपूर्ति का कुशल संचालन सुनिश्चित करने के लिये परिवहन के विभिन्न साधनों को एकीकृत करता है।
    • ये लॉजिस्टिक्स पार्क सामान्यतः प्रमुख परिवहन नोड्स, जैसे- बंदरगाहों, हवाई अड्डों और राजमार्गों के पास स्थित होते हैं।
    • यह भंडारण, वितरण और मूल्यवर्द्धित सेवाओं जैसे- पैकेजिंग और लेबलिंग की सुविधाओं के साथ रसद आपूर्ति की एक बड़ी मात्रा की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किये गए हैं।
  • लाभ: 
    • बेहतर आपूर्ति शृंखला दक्षता:
      • परिवहन के अनेक तरीकों को एकीकृत कर MMLP विभिन्न स्थानों के बीच सामान ले जाने में लगने वाले समय को कम कर सकते हैं। ये आपूर्ति शृंखला को सुव्यवस्थित करने और समग्र दक्षता में सुधार लाने में सहायक हैं। 
    • कम लॉजिस्टिक लागत: 
      • MMLP भंडारण और परिवहन हेतु साझा सुविधाएँ और बुनियादी ढाँचा प्रदान करके रसद आपूर्ति लागत को कम कर सकते हैं, जिसका उपयोग कई कंपनियों द्वारा किया जा सकता है। ये परिचालन लागत को कम करने और लाभप्रदता में सुधार करने में सहायता करते हैं।
    • उन्नत सुरक्षा व संरक्षा:
      • वस्तु और लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु MMLP में अक्सर उन्नत सुरक्षा प्रणालियाँ एवं प्रोटोकॉल होते हैं। ये चोरी, क्षति तथा अन्य सुरक्षा मुद्दों को रोकने में मदद करते हैं जो आपूर्ति शृंखला को प्रभावित कर सकते हैं।
    • पर्यावरणीय लाभ: 
      • वस्तु के परिवहन आवृत्ति की संख्या को कम करके MMLP कार्बन उत्सर्जन और परिवहन से जुड़े अन्य पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने में मदद कर सकते हैं।
  • भारत में MMLP की स्थिति: 
    • आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (Cabinet Committee on Economic Affairs- CCEA) ने भारतमाला परियोजना के तहत 35 MMLP विकसित करने हेतु सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways- MoRTH) को अधिकृत किया है।
      • MMLP को बंगलूरू, चेन्नई, गुवाहाटी और नागपुर लागू किया जा रहा है।
    • MMLP को सार्वजनिक निजी भागीदारी (Public Private Partnership- PPP) के तहत डिज़ाइन, बिल्ड, फाइनेंस, ऑपरेट और ट्रांसफर (DBFOT) मोड पर विकसित किया जाना है।
    • भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways and Logistics Management- NHAI) के पूर्ण स्वामित्त्व वाला विशेष उद्देश्य वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) राष्ट्रीय राजमार्ग और लॉजिस्टिक्स प्रबंधन (National Highways and Logistics Management- NHLML) प्रस्तावित MMLP के अधिकांश हिस्से को PPP मोड में बनाने की योजना बना रहा है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में औद्योगिक गलियारों का क्या महत्त्व है? औद्योगिक गलियारों को चिह्नित करते हुए उनके प्रमुख अभिलक्षणों को समझाइये। (2018) 

स्रोत: पी.आई.बी.


कृषि

भारत का नवीनतम कृषि निर्यात डेटा

प्रिलिम्स के लिये:

खाद्य मूल्य सूचकांक, भारत का निर्यात-आयात डेटा और रुझान, सरकारी योजनाएँ 

मेन्स के लिये:

कृषि निर्यात और आयात के पीछे प्रमुख कारक, निर्यात को बढ़ावा देने के लिये सरकारी उपाय, आगे की चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वाणिज्य विभाग द्वारा जारी अनंतिम आँकड़ों से पता चला है कि 31 मार्च, 2023 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में भारत के कृषि निर्यात और आयात दोनों ने नई उँचाई हासिल की है।

  • आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2022-23 के दौरान कुल कृषि निर्यात 53.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर और आयात 35.69 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो इनके पिछले वर्ष के रिकॉर्ड को पार कर गया। 
  • परिणामी कृषि व्यापार अधिशेष 17.82 बिलियन अमेरिकी डॉलर से मामूली रूप से घटकर 17.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।

India's-Agricultural

निर्यात में वृद्धि के पीछे मुख्य कारक:

  • वर्ष 2013-14 और 2015-16 के बीच मुख्य रूप से वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण भारत का कृषि निर्यात 43.25 बिलियन अमेरिकी डॉलर से गिरकर 32.81 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जैसा कि संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के खाद्य मूल्य सूचकांक (FFPI) में परिलक्षित होता है।
    • हालाँकि आयात में वृद्धि जारी रही जिससे कृषि व्यापार अधिशेष में गिरावट आई।
  • हाल के वर्षों में FFPI में सुधार हुआ है जिसने भारत की कृषि वस्तुओं को विश्व स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बना दिया है, इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2020-2023 के दौरान निर्यात में वृद्धि हुई है।

FAO का खाद्य मूल्य सूचकांक:

  • FFPI खाद्य वस्तुओं की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में मासिक परिवर्तन का एक उपाय है। यह अनाज, तिलहन, डेयरी उत्पाद, मांस और चीनी के लिये परिवर्तनों को मापता है।
  • आधार अवधि: 2014-16
  • FFPI तब बढ़ता है जब अंतर्राष्ट्रीय खाद्य कीमतें बढ़ती हैं।

प्रमुख निर्यात योगदानकर्त्ता: 

  • हाल के दिनों में समुद्री उत्पाद, चावल और चीनी भारत के कृषि निर्यात के लिये प्रेरक शक्ति के रूप में शामिल रहे हैं। 
    • समुद्री उत्पाद: समुद्री उत्पाद का निर्यात वर्ष 2013-14 के 5.02 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 8.08 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
    • चावल: इस अवधि के दौरान चावल का निर्यात भी 7.79 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 11.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
      • यह गैर-बासमती चावल द्वारा संचालित है जो कि दोगुने से अधिक हो गया है। दूसरी ओर, प्रीमियम कीमत वाले बासमती चावल में गिरावट देखी गई है।
      • बासमती चावल का निर्यात मुख्य रूप से फारस की खाड़ी के देशों और कुछ हद तक अमेरिका एवं ब्रिटेन को किया जाता है। गैर-बासमती चावल का निर्यात अधिक विविध है।
      • गैर-बासमती चावल के कारण भारत अब थाईलैंड को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे बड़ा चावल निर्यातक है।
    • चीनी: तीसरा सबसे बड़ा कारक चीनी निर्यात में हालिया वृद्धि है, जो वर्ष 2017-18 के 810.90 मिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2022-23 में 5.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गई है।
      • इस प्रक्रिया में भारत, ब्राज़ील के बाद दुनिया के नंबर 2 निर्यातक के रूप में उभरा है।

निर्यात साधनों में अन्य पिछड़े और घाटे की वस्तुओं का व्यापार: 

  • मसाले: मसाला निर्यात जिसमें वर्ष 2013-2021 के दौरान वृद्धि देखी गई थी, हालाँकि यह तब से स्थिर है।
  • भैंस: भैंस के मांस के निर्यात में भी गिरावट आई है जो वर्ष 2014-15 में 4.78 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अपने चरम निर्यात को दोबारा नहीं प्राप्त कर सका।
  • तेल खली, कच्ची कपास और ग्वार गम: तेल खली, कच्ची कपास और ग्वार गम में कमी उल्लेखनीय रूप से अधिक देखी गई। हालाँकि वर्ष 2022-2023 में तीनों का निर्यात वर्ष 2011-12 के अपने शिखर से बहुत दूर था।
    • आनुवंशिक रूप से संशोधित BT कपास की खेती और उच्च वैश्विक कीमतों ने भारत को प्राकृतिक फाइबर का विश्व का शीर्ष उत्पादक (चीन से आगे) एवं नंबर 2 निर्यातक (अमेरिका के बाद) बनने में सक्षम बनाया है।
      • क्योंकि BT कपास की उपज में सुधार कम हो रहा है और नियामक प्रणाली नई जीन प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर रोक लगाती है, जिससे देश कपास के शुद्ध निर्यातक से आयातक बन गया है।
    • वर्ष 2003-2004 से 2013-2014 तक वैश्विक कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि से ग्वार-गम (शेल तेल और गैस उत्पादन में इस्तेमाल किया जाने वाला गाढ़ा एजेंट) तथा ऑयल मील/तेल खली के निर्यात में लाभ हुआ।
      • हाल के कोविड महामारी के उपरांत की वृद्धि नहीं देखी गई क्योंकि आंशिक रूप से घरेलू फसल की कमी के कारण विशेष रूप से कपास एवं सोयाबीन में निर्यात हेतु पर्याप्त अधिशेष का उत्पादन नहीं हुआ है।

Agri-Export

आयात साधनों में प्रमुख योगदानकर्त्ता:   

  • भारत की आयातित कृषि उपज के साधनों/टोकरी में इसके निर्यात की तुलना में कृषि उत्पादों का प्रभुत्त्व कम है।
    • इन आयातों में सबसे महत्त्वपूर्ण वनस्पति तेल है, जिसका आयात वर्ष 2019-20 और 2022-23 के बीच मूल्य के संदर्भ में दोगुने से भी अधिक हो गया है।
  • आयात भारत की वनस्पति तेल आवश्यकताओं का लगभग 60% को पूरा करता है, जबकि दालों के आयात पर निर्भरता अब मुश्किल से 10% ही है।
    • दालों के आयात का मूल्य भी घटकर आधा हो गया है, यह वर्ष 2016-17 के 4.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से घटकर 2022-23 में 1.9 अमेरिकी डॉलर हो गया है।
  • मसालों, काजू और कपास का आयात, जिसका भारत पारंपरिक रूप से एक शुद्ध निर्यातक रहा है, में वृद्धि देखी गई है।
    • मसालों के आयात में बढ़ोतरी कीमतों में कम प्रतिस्पर्द्धात्मकता को दर्शाती है, जबकि स्थिर अथवा घरेलू उत्पादन में गिरावट के परिणामस्वरूप कपास का आयात बढ़ा है। 

Agri-Import

व्यापार क्षेत्र में जोखिम:

  • अंतर्राष्ट्रीय कीमतें: अप्रैल 2023 के नवीनतम FFPI आँकड़े मार्च 2022 और वर्ष 2022-23 के औसत से नीचे है। खाद्य कीमतों में कमी से निर्यात आय में कमी आ सकती है, विशेष रूप से उन उत्पादों के लिये जो अधिक मूल्य संवेदनशील हैं।
  • घरेलू मुद्रास्फीति: वर्ष 2024 के राष्ट्रीय चुनावों से पहले खाद्य उत्पादों में मुद्रास्फीति की संभावना है, जो सामान रूप से निर्यात-आयात व्यापार को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है।
    • घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये सरकार द्वारा किये गए उपाय जैसे कि गेहूँ और टूटे दाने वाले चावल के निर्यात पर प्रतिबंध तथा सभी नॉन  हुए गैर-बासमती चावल शिपमेंट पर 20% शुल्क लगाने से कृषि व्यापार पर और प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
    • यदि स्थिति सामान्य नहीं होती है तो निर्यात में और अधिक अंकुश लगाए जाने की उम्मीद है, यदि मानसून के मौसम में असामान्य वर्षा होती है तो आयात में और उदारीकरण होने की संभावना है।

कृषि निर्यात को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा किये गए उपाय:

  • कृषि निर्यात नीति (2018): इसका उद्देश्य भारत को कृषि क्षेत्र में वैश्विक शक्ति बनाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिये भारतीय कृषि की निर्यात क्षमता का दोहन करना है।
  • 'निर्यात हब के रूप में ज़िला' पहल: इस पहल का लक्ष्य सभी ज़िलों में निर्यात उत्पादों और सेवाओं को चिह्नित करना और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिये एक प्रणाली की स्थापना करना है। इसका उद्देश्य विदेशी निर्यात बाज़ारों तक पहुँचने में लघु व्यवसायों, किसानों और MSME की सहायता करना है।
  • निर्दिष्ट कृषि उत्पादों के लिये परिवहन और विपणन सहायता: यह कृषि उत्पादों के निर्यात के लिये माल ढुलाई के नुकसान को कम करने हेतु  केंद्रीय क्षेत्र की एक योजना है।
  • निर्यात हेतु व्यापार अवसंरचना योजना (TIES): इसका उद्देश्य निर्यात अवसंरचना में अंतर को कम करके देश की निर्यात प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि करना है। 
  • मार्केट एक्सेस इनिशिएटिव्स (MAI) योजना: इस योजना का उद्देश्य भारतीय निर्यातकों के लिये बाज़ार विकास गतिविधियों का समर्थन करके भारत के निर्यात को बढ़ावा देना है। यह योजना निर्यात प्रोत्साहन गतिविधियों हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • APEDA की निर्यात प्रोत्साहन योजनाएँ:  APEDA ने कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिये वित्तीय सहायता, बाज़ार पहुँच आदि जैसी कई योजनाएँ शुरू की हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसे कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है? (2020)

  1. सभी फसलों की कृषि उपज के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करना
  2. प्राथमिक कृषि साख समितियों का कंप्यूटरीकरण
  3. सामाजिक पूंजी विकास
  4. किसानों को मुफ्त बिजली की आपूर्ति
  5. बैंकिंग प्रणाली द्वारा कृषि ऋण की माफी
  6. सरकारों द्वारा कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं की स्थापना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1, 2 और 5 
(b) केवल 1, 3, 4 और 5 
(c) केवल 2, 3 और 6 
(d) 1, 2, 3, 4, 5 और 6 

उत्तर: c 


प्रश्न. 'राष्ट्रीय कृषि बाज़ार' योजना को लागू करने के क्या लाभ/फायदे हैं? (2017)

  1. यह कृषि वस्तुओं के लिये एक अखिल भारतीय इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग पोर्टल है।
  2. यह किसानों को उनकी उपज की गुणवत्ता के अनुरूप कीमतों के साथ राष्ट्रव्यापी बाज़ार तक पहुँच प्रदान करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: c 


मेन्स:  

प्रश्न. भारत में कृषि उत्पादों के परिवहन और विपणन में मुख्य बाधाएँ क्या हैं? (2020) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

ड्रग रिकॉल

प्रिलिम्स के लिये:

ड्रग रिकॉल, मानक गुणवत्ता विहीन, औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940, भारत के औषधि महानियंत्रक, CDSCO

मेन्स के लिये:

भारत में ड्रग रिकॉल कानून की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक फार्मास्यूटिकल कंपनी ने अनजाने में दवाओं के गलत लेबल वाले बैच को बाज़ार में उतार दिया, जो कि अस्वीकृत दवाओं की बिक्री की समस्या एवं भारत में ड्रग रिकॉल कानून की आवश्यकता को उजागर करता है।

  • जबकि इस तरह के रिकॉल अमेरिका में नियमित रूप से होते हैं, जिसमें भारतीय कंपनियाँ भी शामिल हैं, लेकिन भारत में ऐसा नहीं देखा जाता है।

ड्रग रिकॉल:

  • ड्रग रिकॉल तब होता है जब प्रेस्क्रिप्शन या ओवर-द-काउंटर दवा को उसके हानिकारक या साइड इफेक्ट के कारण बाज़ार से हटा दिया जाता है।
  • ड्रग रिकॉल एक विपणन किये गए दवा उत्पाद को हटाने या सही करने की प्रक्रिया है जो किसी दवा की सुरक्षा, प्रभावकारिता या गुणवत्ता को नियंत्रित करने वाले कानूनों और नियमों का उल्लंघन करती है।
  • ड्रग रिकॉल सामान्यतः तब जारी किया जाता है जब कोई उत्पाद दोषपूर्ण, दूषित, गलत लेबल वाला पाया जाता है या रोगियों के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा हेतु जोखिम उत्पन्न करता है।
  • ड्रग रिकॉल का लक्ष्य प्रभावित उत्पाद को बाज़ार से हटाकर जनता को नुकसान से बचाना है और उन उपभोक्ताओं हेतु उपाय या धन वापसी की सुविधा प्रदान करना है जिन्होंने पहले ही उत्पाद खरीद लिया है।

भारत में ड्रग रिकॉल कानून की आवश्यकता: 

  • भारत को यह सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रीय ड्रग रिकॉल कानून होना आवश्यक है कि एक बार दवा का मानक गुणवत्ता विहीन (Not of Standard Quality- NSQ) होने का पता चलने पर पूरे बैच को बाज़ार से हटा दिया जाना चाहिये। 
    • वर्तमान में, बाज़ार से घटिया दवाओं के पूरे बैच को वापस लेने के लिये भारत में कोई कानून नहीं है।
  • राज्य दवा नियामक ऐसी स्थिति में अधिक-से-अधिक अपने राज्य से दवाओं के किसी विशेष बैच को वापस लेने का आदेश दे सकते हैं, लेकिन यह देखते हुए कि भारत एक साझा बाज़ार है, यह संभव है कि दवाओं का एक ही बैच कई राज्यों में वितरित हो।
  • ऐसे मामले में एक केंद्रीय दवा नियामक का होना काफी आवश्यक है जो राष्ट्रीय रिकॉल को क्रियान्वित और समन्वित कर सके।
  • वर्ष 1976 में इसे एक प्रमुख मुद्दे के रूप में चिह्नित करने के बावजूद भारत में अभी भी दवाओं को वापस लेने के संबंध में एक राष्ट्रीय कानून का अभाव है।
    • नतीजतन, सरकारी विश्लेषकों द्वारा दवाओं को NSQ घोषित करने के बाद भी पूरे भारत से इस प्रकार की दवाओं को वापस लेने की कोई वास्तविक व्यवस्था नहीं है।

भारत में घटिया दवाओं के लिये नियामक ढाँचे की कमी का कारण: 

  • स्थिति के प्रति उदासीनता और विशेषज्ञता की कमी: 
    • जटिल औषधि नियमन मुद्दों से निपटने के मामले में सरकार का औषधि नियामक निकाय वैसा नहीं है जैसी उसे होना चाहिये। स्थिति के प्रति उदासीनता, क्षेत्र में विशेषज्ञता की कमी और सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा की तुलना में दवा उद्योग के विकास को सक्षम करने में अधिक रुचि आदि इसके विभिन्न प्रमुख कारकों में से हैं। 
  • खंडित नियामक संरचना: 
    • भारत में नियामक संरचना अत्यधिक खंडित है, प्रत्येक राज्य का अपना दवा नियामक है।
    • लेकिन विखंडन के बावज़ूद एक राज्य में निर्मित दवाएँ देश भर के सभी राज्यों में बेची जा सकती हैं। 
  • केंद्रीकृत नियामक का विरोध: 
    • दवा उद्योग और राज्य दवा नियामकों दोनों ने नियामक शक्तियों के अधिक केंद्रीकरण का विरोध किया है।
    • एक राज्य में नियामक की अक्षमता दूसरे राज्यों के रोगियों के लिये प्रतिकूल हो सकती है, जहाँ नागरिकों के पास अक्षम नियामक को जवाबदेह ठहराने की शक्ति अथवा चयन क्षमता की कमी होती है। 
  • सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं: 
    • ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार को इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है और सुधार के लिये नागरिक समाज की ओर से कोई निरंतर मांग भी नहीं की जाती है।
    • सरकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के बजाय दवा उद्योग के विकास में अधिक निवेश करती है। संभवतः ऐसी धारणा है कि सख्त विनियमन दवा उद्योग के विकास को धीमा कर सकता है।

ऐसे किसी भी कानून को बनाने में देरी के निहितार्थ: 

  • यदि गैर-मानकीकृत दवाओं को बाज़ार से तुरंत हटाया नहीं गया तो इसका उपभोक्ताओं पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है, जिसमें बीमार पड़ना और मौत हो जाना भी शामिल है। हालाँकि भारत में ड्रग रिकॉल की प्रक्रिया अक्सर धीमी और अप्रभावी होती है, जिससे जनता के लिये खतरनाक स्थिति पैदा हो जाती है।
  • अगर सरकार घटिया दवाओं को वापस लेने की त्वरित कार्रवाई नहीं करती है, तो यह लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के प्रति जवाबदेही और ज़िम्मेदारी में कमी का संकेत है।
  • इसके अतिरिक्त इन दवाओं को वापस लेने में देरी करने से स्वास्थ्य सेवा प्रणाली और सरकार में जनता का विश्वास कम हो सकता है।

भारत में ड्रग विनियमन: 

  • औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम:
    • केंद्रीय और राज्य नियामकों को औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम, 1940 तथा नियम 1945 के तहत औषधियों एवं सौंदर्य प्रसाधनों के नियमन की ज़िम्मेदारी दी गई हैं।
    • यह आयुर्वेदिक, सिद्ध, यूनानी दवाओं के निर्माण के लिये लाइसेंस जारी करने हेतु नियामक दिशा-निर्देश प्रदान करता है। 
  • केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organisation- CDSCO)
    • यह देश में दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों, निदान और उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता एवं गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न मानक तथा उपाय निर्धारित करता है।
    • नई दवाओं और नैदानिक परीक्षणों के मानकों के बाज़ार प्राधिकरण को नियंत्रित करता है।
  • भारत का औषधि महानियंत्रक (DCGI):
    • DCGI भारत सरकार के CDSCO के विभाग का प्रमुख है, जो भारत में रक्त और रक्त उत्पादों, IV तरल पदार्थ, टीके एवं सीरम (Sera) जैसी दवाओं की निर्दिष्ट श्रेणियों के लाइसेंस के अनुमोदन के लिये ज़िम्मेदार है।
    • DCGI भारत में दवाओं के निर्माण, बिक्री, आयात और वितरण के लिये भी मानक तय करता है।

आगे की राह

  • यदि स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता स्वीकार करते हैं कि नशीली दवाओं के नियमन में कोई समस्या है और प्रणालीगत सुधार के लिये कहते हैं, तो वे सुधार की मांग करने वाली आवाज़ों में शामिल हो जाएंगे। वर्तमान में भारत में दवा की गुणवत्ता के साथ समस्या को स्वीकार करने में भी अनिच्छा प्रकट होती है।
  • एक प्रभावी रिकॉल तंत्र बनाने के लिये दवाओं को वापस लेने की ज़िम्मेदारी को केंद्रीकृत करना होगा, एक प्राधिकरण के पास देश भर से विफल दवाओं को वापस लेने तथा कंपनियों को उत्तरदायी ठहराने की कानूनी शक्ति हो। इसके अतिरिक्त विफल दवा बैचों को खोजने और जब्त करने की भी शक्ति हो।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

भ्रामक खाद्य विज्ञापनों को कम करना

प्रिलिम्स के लिये:

FSSAI, CCPA, FSS अधिनियम 2006, उपभोक्ता कल्याण निधि, केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद, उपभोक्ता संरक्षण नियम, 2021

मेन्स के लिये:

भ्रामक खाद्य विज्ञापनों को कम करना

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने खाद्य व्यवसाय ऑपरेटरों (FBO) को खाद्य सुरक्षा तथा मानक (विज्ञापन एवं दावे) विनियम, 2018 के उल्लंघन में लिप्त पाया है तथा उन्हें भ्रामक दावों को कम करने लिये कहा है।

चिंताएँ:  

  • FSSAI ने पता लगाया है कि न्यूट्रास्यूटिकल उत्पादों, परिष्कृत तेल, दालों, आटा, बाज़रा उत्पादों और घी बेचने वाली कुछ कंपनियाँ अपने उत्पादों के बारे में झूठे दावे कर रही हैं। ये दावे वैज्ञानिक रूप से सिद्ध नहीं हुए हैं और उपभोक्ताओं को गुमराह कर सकते हैं।
    • इन मामलों को FSSAI ने लाइसेंसिंग अधिकारियों को संदर्भित किया है, जो अपने भ्रामक दावों को वापस लेने या संशोधित करने के लिये कंपनियों को नोटिस जारी करेंगे।
    • अनुपालन करने में विफलता के परिणामस्वरूप उनके लाइसेंस के दंड, निलंबन या रद्दीकरण हो सकते हैं, क्योंकि झूठे दावे या विज्ञापन करना खाद्य सुरक्षा और मानकों (FSS) अधिनियम, 2006 की धारा -53 के तहत एक दंडनीय अपराध है।
  • भ्रामक खाद्य विज्ञापनों से संबंधित चिंताएँ मुख्य रूप से किसी उत्पाद के पोषण, लाभ और संघटक मिश्रण के बारे में किये गए झूठे या निराधार दावों के इर्द-गिर्द घूमती हैं।  
  • यह समस्या विभिन्न खाद्य श्रेणियों में व्यापक है और उल्लंघनकारी खाद्य विज्ञापनों की एक महत्त्वपूर्ण संख्या रही है।
  • इसके अतिरिक्त खाद्य को प्रभावित करने वालों द्वारा गैर-प्रकटीकरण भी एक प्रमुख चिंता का विषय है। भ्रामक विज्ञापनों से उपभोक्ताओं को भ्रम हो सकता है और यदि वे झूठे दावों के आधार पर गलत भोजन विकल्प चुनते हैं तो उनके स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है।

उपभोक्ता संरक्षण और भ्रामक विज्ञापनों से निपटने हेतु पहलें:  

  • खाद्य सुरक्षा और मानक (विज्ञापन और दावे) विनियम, 2018: यह विशेष रूप से भोजन (और संबंधित उत्पादों) से संबंधित है, जबकि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के नियम माल, उत्पादों और सेवाओं को कवर करते हैं
  • केबल टेलीविज़न नेटवर्क नियम, 1994: यह निर्धारित करता है कि विज्ञापनों को लेकर यह अनुमान नहीं लगाना चाहिये कि इसमें "कुछ विशेष या चमत्कारी या अलौकिक संपत्ति या गुणवत्ता है, जिसे साबित करना मुश्किल है।
  • FSS अधिनियम 2006: किसी बीमारी, विकार या विशेष मनोवैज्ञानिक स्थिति की रोकथाम, उपशमन, उपचार या इलाज हेतु उपयुक्तता का सुझाव देने वाले उत्पाद के दावे निषिद्ध हैं, जब तक कि FSS अधिनियम, 2006 के नियमों के तहत विशेष रूप से अनुमति नहीं दी जाती है।
  • उपभोक्ता कल्याण कोष: इसे उपभोक्ताओं के कल्याण को बढ़ावा देने और उनकी रक्षा करने हेतु केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर (Central Goods and Services Tax- CGST) अधिनियम, 2017 के तहत स्थापित किया गया था।
    • कुछ उदाहरण: उपभोक्ता संबंधित मुद्दों पर अनुसंधान और प्रशिक्षण को बढ़ावा देने हेतु प्रतिष्ठित संस्थानों/विश्वविद्यालयों में उपभोक्ता कानून पीठों/उत्कृष्टता केंद्रों का निर्माण। उपभोक्ता साक्षरता एवं जागरूकता बढ़ाने के लिये परियोजनाएँ।
  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद: इसका उद्देश्य उपभोक्ता संरक्षण कानूनों की निगरानी और उन्हें लागू करके उपभोक्ता शिक्षा की सुविधा प्रदान करके एवं उपभोक्ता निवारण तंत्र प्रदान करके उपभोक्ता हितों की रक्षा करना है। इसके अलावा परिषद उपभोक्ता-हितैषी नीतियों तथा पहलों को भी बढ़ावा देती है।
  • उपभोक्ता संरक्षण नियम, 2021: यह नियम उपभोक्ता आयोग के प्रत्येक स्तर के आर्थिक अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करते हैं। नियमों ने उपभोक्ता शिकायतों पर विचार करने हेतु आर्थिक क्षेत्राधिकार को संशोधित किया।
  • उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020: ये नियम बाध्यकारी हैं, न कि सलाहकारी। विक्रेता सामान वापस लेने या सेवाओं को वापस लेने या धन वापसी से इनकार नहीं कर सकते हैं, अगर ऐसे सामान या सेवाएँ दोषपूर्ण, कम, देर से वितरित की जाती हैं या यदि वे प्लेटफॉर्म पर दिये गए विवरण को पूरा नहीं करती हैं।

पैकेज्ड फूड को दिये जाने वाले टैग:

  • प्राकृतिक: 
    • खाद्य उत्पाद को 'प्राकृतिक' के रूप में संदर्भित किया जा सकता है यदि यह किसी मान्यता प्राप्त प्राकृतिक स्रोत से प्राप्त एकल खाद्य है और इसमें कुछ भी नहीं मिलाया गया है।
    • इसे केवल मानव उपभोग हेतु उपयुक्त बनाने के लिये संसाधित किया जाना चाहिये। पैकेजिंग भी रसायनों एवं परिरक्षकों के बिना की जानी चाहिये।
      • समग्र खाद्य पदार्थ पौधे और प्रसंस्कृत घटकों के मिश्रण को 'प्राकृतिक' नहीं कहा जा सकता है, इसके बजाय वे 'प्राकृतिक अवयवों से बने' कहे जाएंगे।
  • ताज़ा: 
    • खाद्य पदार्थ जिन्हें बिना किसी अन्य प्रसंस्करण के केवल धोया, छीला, प्रशीतित, छँटनी या काटा गया है, जो उनकी मूलभूत विशेषताओं को संशोधित करता है, उन्हें केवल "ताज़ा" कहा जा सकता है।
    • यदि खाद्य पदार्थ को किसी भी तरह से उसके शेल्फ लाइफ को बढ़ाने के लिये संसाधित किया जाता है, तो उसे "ताज़ा" के रूप में लेबल नहीं किया जा सकता है।
    • खाद्य किरणन (irradiation) एक नियंत्रित प्रक्रिया है जो अंकुरण, पकने में देरी जैसे प्रभावों को प्राप्त करने के लिये और कीड़ों, परजीवियों एवं सूक्ष्मजीवों को मारने में विकिरण ऊर्जा का उपयोग करती है।
    • यदि कोई उत्पाद तैयार होने के तुरंत बाद जम जाता है, तो इसे "ताज़े जमे हुए (freshly frozen)" "जमे हुए ताज़े (fresh frozen)" के रूप में लेबल किया जा सकता है। 
      • हालाँकि अगर इसमें एडिटिव्स हैं या ये किसी अन्य आपूर्ति शृंखला प्रक्रिया से गुज़रे हैं, तो इसे "ताज़ा" के रूप में लेबल नहीं किया जा सकता है।
  • शुद्ध: 
    • शुद्ध का उपयोग एकल-घटक खाद्य पदार्थों के लिये किया जाना चाहिये जिसमें कुछ भी अतिरिक्त नहीं जोड़ा गया है और जो सभी परिहार्य संदूषण से रहित है।
      • यौगिक खाद्य पदार्थों को 'शुद्ध' के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है, लेकिन यदि वे उल्लिखित मानदंडों को पूरा करते हैं, तो उन्हें 'शुद्ध सामग्री से बना' कहा जा सकता है।
  • असली: 
    • असली/ओरिजिनल का उपयोग एक फॉर्मूलेशन से बने खाद्य उत्पादों का वर्णन करने के लिये किया जाता है, जिसकी उत्पत्ति के विषय में पता लगाया जा सकता है जिसमें समय के साथ कोई बदलाव नहीं आता है।
    • उनमें किसी भी प्रमुख सामग्री में कोई बदलाव नहीं किया जाता है। इसी तरह इसका उपयोग एक विशिष्ट प्रक्रिया का वर्णन करने के लिये किया जा सकता है जो समय के साथ अनिवार्य रूप से अपरिवर्तित है, हालाँकि उस उत्पाद का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है। 
  • पोषण संबंधी दावे: 
    • खाद्य विज्ञापनों में पोषण संबंधी दावे किसी उत्पाद की विशिष्ट सामग्री अथवा किसी अन्य खाद्य पदार्थ के साथ तुलना के बारे में हो सकते हैं। एक खाद्य पदार्थ में तुलनीय खाद्य पदार्थ के समान पोषण मूल्य होना चाहिये यदि यह दावा करता है कि इसमें किसी अन्य खाद्य पदार्थ के समान पोषक तत्त्व की मात्रा है।
    • पोषण संबंधी दावे या तो किसी उत्पाद की विशिष्ट सामग्री अथवा किसी अन्य खाद्य पदार्थों के साथ तुलना के बारे में हो सकते हैं। 

आगे की राह 

  • कंपनियों को अपने दावों का समर्थन करने के लिये तकनीकी और नैदानिक सबूत देने की आवश्यकता है। विज्ञापनों को भी इस प्रकार संशोधित किया जाना चाहिये ताकि उपभोक्ता उनकी सही व्याख्या कर सकें।
  • FSSAI और राज्य खाद्य प्राधिकरणों को FBO के व्यापक और विश्वसनीय आँकड़ों को सुनिश्चित करने और FSS अधिनियम के बेहतर प्रवर्तन और प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिये अपने अधिकार क्षेत्र के तहत खाद्य व्यावसायिक गतिविधियों का सर्वेक्षण करना चाहिये।
  • चोट या मृत्यु के मामलों में मुआवज़े और ज़ुर्माने की सीमा बढ़ाने तथा खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं जैसी पर्याप्त बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने की आवश्यकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 ने खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954 को प्रतिस्थापित किया है।
  2. भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवा के महानिदेशक के प्रभार के अंतर्गत आता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (a) 

व्याख्या:

  • यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त निकाय है। इसे खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत स्थापित किया गया है, यह विभिन्न अधिनियमों तथा आदेशों को समेकित करता है जिसने अब तक विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में खाद्य संबंधी मुद्दों के समाधान में सहायता की है।
  • खाद्य मानक और सुरक्षा अधिनियम, 2006 को खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954, फल उत्पाद आदेश, 1955 जैसे कई अधिनियमों एवं आदेशों के स्थान पर लाया गया। अतः कथन 1 सही है।
  • FSSAI का नेतृत्त्व एक गैर-कार्यकारी अध्यक्ष द्वारा किया जाता है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है। वह भारत सरकार के अंतर्गत सचिव पद के समकक्ष हो अथवा सचिव पद से नीचे कार्यरत न रहा हो। FSSAI स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक के अधीन नहीं है। अतः कथन 2 सही नहीं है।
  • FSSAI को मानव उपभोग के लिये सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु खाद्य पदार्थों के लिये विज्ञान आधारित मानकों को निर्धारित करने तथा उनके निर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को विनियमित करने के लिये बनाया गया है।
  • अतः विकल्प (a) सही है।

स्रोत : द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत, अमेरिका, UAE और सऊदी अरब बुनियादी ढाँचा पहल पर चर्चा

प्रिलिम्स के लिये:

I2U2 पहल, अब्राहम समझौते

मेन्स के लिये:

भारत सहित समूह और समझौते और भारत के हित को प्रभावित करने वाले

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में सऊदी अरब सरकार ने भारत, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों (NSAs) की एक विशेष बैठक की मेज़बानी की।

बैठक की मुख्य विशेषताएँ: 

  • चर्चा का उद्देश्य देशों के बीच संबंधों को मज़बूत करना है ताकि क्षेत्र के विकास और स्थिरता में वृद्धि हो।
  • यह बैठक बुनियादी ढाँचे को लेकर क्षेत्रीय पहल पर केंद्रित थी।
  • बैठक में भारत और दुनिया से जुड़ाव के साथ एक अधिक सुरक्षित और समृद्ध मध्य-पूर्व क्षेत्र के साझा दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने की मांग की गई।
  • परियोजनाओं पर चर्चा के दौरान खाड़ी देशों को रेलवे नेटवर्क के माध्यम से जोड़ने और क्षेत्र को "दो बंदरगाहों" से शिपिंग लेन द्वारा भारत से जोड़ने की योजना पर प्रकाश डाला गया है।
  • इस पहल का विचार I2U2 द्वारा पिछले 18 महीनों में आयोजित वार्ता के दौरान सामने आया।
    • I2U2 क्वाड, "दक्षिण एशिया को मध्य-पूर्व से संयुक्त राज्य अमेरिका तक जोड़ने का काम करता है जो आर्थिक प्रौद्योगिकी और कूटनीति को बढ़ावा देता है"।

I2U2 क्वाड: 

  • परिचय: 
    • I2U2 भारत, इज़रायल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका द्वारा गठित एक नया समूह है।
    • इसे वेस्ट एशियन क्वाड भी कहा जाता है।
  • उद्देश्य: 
    • यह मध्य-पूर्व और एशिया में आर्थिक एवं राजनीतिक सहयोग के विस्तार पर केंद्रित है।
    • इस ढाँचे का उद्देश्य अवसंरचना, प्रौद्योगिकी और समुद्री सुरक्षा हेतु समर्थन एवं सहयोग को बढ़ावा देना है।
  • I2U2 का गठन:
    • I2U2 की शुरुआत अब्राहम समझौते के बाद अक्तूबर 2021 में हुई थी।
      • अब्राहम समझौते ने इज़रायल और कई अरब खाड़ी देशों के बीच संबंधों को सामान्य किया है।
  • I2U2 का पहला शिखर सम्मेलन: 
    • I2U2 का पहला आभासी शिखर सम्मेलन 14 जुलाई, 2022 को हुआ।
    • यह शिखर सम्मेलन यूक्रेन में संघर्ष के परिणामस्वरूप वैश्विक खाद्य और ऊर्जा संकट पर केंद्रित था।

भारत हेतु I2U2 का महत्त्व:

  • अब्राहम समझौते से लाभ: 
    • भारत को संयुक्त अरब अमीरात और अन्य अरब राज्यों के साथ अपने संबंधों को जोखिम में डाले बिना इज़रायल के साथ संबंधों को मज़बूत करने हेतु अब्राहम समझौते का लाभ मिलेगा।
  • बाज़ार का लाभ:
    • भारत एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार है। यह हाई-टेक और अत्यधिक मांग वाले सामानों का एक विशाल उत्पादक है। इस समूह से भारत को लाभ होगा।
  • गठबंधन: 
    • यह भारत को राजनीतिक गठबंधन, सामाजिक गठबंधन बनाने में मदद करेगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. I2U2 (भारत, इज़रायल, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका) समूहन वैश्विक राजनीति में भारत की स्थिति को किस प्रकार रूपांतरित करेगा? (2022) 

स्रोत: द हिंदू


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