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मसौदा चिकित्सा उपकरण विधेयक

  • 27 Jul 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

औषधि चिकित्सा उपकरण और प्रसाधन सामग्री विधेयक 2022, चिकित्सा उपकरण तकनीकी सलाहकार बोर्ड, ई-फार्मेसी।

मेन्स के लिये:

औषधि चिकित्सा उपकरण और प्रसाधन सामग्री विधेयक 2022, ई-फार्मेसी।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रस्तावित औषधि चिकित्सा उपकरण और प्रसाधन सामग्री विधेयक, 2022 का मसौदा जारी किया, जो मौजूदा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 तथा अन्य कई नियमों को प्रतिस्थापित कर देगा।

  • यह चिकित्सा उपकरणों के लिये एक अलग विनियमन बनाने पर केंद्रित है, जो नैदानिक परीक्षण या जाँच के दौरान आने वाली चोट और मृत्यु के लिये जुर्माने और कारावास का प्रावधान करता है और ई- फार्मेसियों के विनियमन का प्रयास करता है।

चिकित्सा उपकरण:

  • चिकित्सा उपकरण उद्योग इंजीनियरिंग और चिकित्सा का एक अनूठा मिश्रण है। इसमें उन मशीनों का निर्माण करना शामिल है जिनका उपयोग जीवन बचाने के लिये किया जाता है।
  • चिकित्सा उपकरणों में सर्जिकल उपकरण, डायग्नोस्टिक उपकरण जैसे- कार्डिएक इमेजिंग, सीटी स्कैन, एक्स-रे, मॉलिक्यूलर इमेजिग, एमआरआई और हाथ से प्रयोग किये जाने वाले उपकरणों सहित लाइफ सपोर्ट इक्विपमेंट जैसे- वेंटिलेटर आदि के साथ-साथ इम्प्लांट्स एवं डिस्पोज़ल तथा अल्ट्रासाउंड इमेजिंग शामिल हैं।

मसौदा विधेयक की मुख्य विशेषताएँ:

  • नैदानिक परीक्षण और जाँच हेतु प्रावधान:
    • उत्तराधिकारी को मुआवज़ा: यह लोगों या उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को नैदानिक परीक्षणों और दवाओं तथा चिकित्सा उपकरणों की जाँच के दौरान चोट लगने या मौत होने पर मुआवज़े का प्रावधान करता है।
      • यह मसौदा जाँचकर्त्ताओं पर परीक्षण के कारण आने वाली किसी भी प्रकार के भी चोट के लिये चिकित्सकीय प्रबंधन की जिम्मेदारी भी आरोपित करता है।
    • दंड एवं जुर्माना: मुआवज़े का भुगतान नहीं करने पर कारावास का प्रावधा, और मुआवज़े की राशि को दोगुना करने का प्रावधान इसमें शामिल किया गया है।
    • नैदानिक परीक्षणों का निषेध: यह केंद्रीय लाइसेंसिंग प्राधिकरण की अनुमति के बिना दवाओं और चिकित्सा उपकरणों के नैदानिक परीक्षण या नैदानिक जाँच को प्रतिबंधित करता है।
      • यदि निर्धारित प्रावधानों का पालन नहीं किया जाता है तो यह जाँचकर्त्ताओं और परीक्षण या जाँच के प्रायोजकों को प्रतिबंधित करने का प्रावधान करता है।
  • मेडिकल डिवाइसेस टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड: ड्राफ्ट बिल में मौजूदा ड्रग टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड की तर्ज पर मेडिकल डिवाइसेस टेक्निकल एडवाइज़री बोर्ड बनाने का प्रावधान है, जिसमें इन उपकरणों की इंजीनियरिंग का तकनीकी ज्ञान रखने वाले और उद्योग के सदस्य होंगे।
    • स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों के अलावा बोर्ड में परमाणु ऊर्जा विभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन एवं बायोमेडिकल टेक्नोलॉजी, बायोमैटिरियल्स और पॉलिमर टेक्नोलॉजी के क्षेत्र के विशेषज्ञ होंगे।

संबंधित मुद्दे:

  • मसौदा मुख्य रूप से ई-फार्मेसी से जुड़े मुद्दों तथा वे मौजूदा नियमों का उल्लंघन कैसे करते हैं, से संबंधित है:
  • वर्ष 1940 के कानून में ऑनलाइन फ़ार्मेसी के नियमन का शायद ही कोई प्रावधान है।
    • वर्तमान में ये सभी ऑनलाइन फार्मेसियाँ कानून के दायरे से बाहर हैं, इनमें से ज़्यादातर के पास दुकानों या भंडारण इकाइयों के लाइसेंस हैं।
    • वे बिना प्रिस्क्रिप्शन के दवाएँ देती हैं।
    • उल्लंघन के मामले में नियामक प्राधिकरणों को पता नहीं है कि इन कंपनियों के खिलाफ कानून के किस प्रावधान के तहत मुकदमा दायर करना है।
    • कभी-कभी ये कंपनियाँ किसी दूसरे राज्य से लाइसेंस प्राप्त कर अन्य राज्य में काम करती थीं।

भारत के चिकित्सा उपकरण उद्योग की वर्तमान स्थिति:

  • परिचय:
    • भारत में चिकित्सा उपकरण उद्योग के मौजूदा बाज़ार का आकार 11 अरब अमेरिकी डॉलर है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के उभरते क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है।
    • भारत में चिकित्सा उपकरण उद्योग में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ-साथ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) शामिल हैं जो अभूतपूर्व पैमाने पर बढ़ रहे हैं।
    • चिकित्सा उपकरण क्षेत्र पिछले 3 वर्षों में 15% की CAGR के साथ लगातार बढ़ रहा है।
    • भारत में चिकित्सा उपकरण उद्योग वृद्धि के लिये तैयार है और वर्ष 2025 तक इस क्षेत्र के बाज़ार का आकार 50 बिलियन अमेरिकी डॅालर तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • ब्राउनफील्ड और ग्रीनफील्ड सेटअप दोनों के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI की अनुमति है। मज़बूत FDI अंतर्वाह भारतीय बाज़ार में वैश्विक अभिकर्त्ताओं के भरोसे को दर्शाता है।
  • पहल:
    • चिकित्सा उपकरणों के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना:
      • चिकित्सा उपकरणों के निर्माण के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI) घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने और कैंसर देखभाल उपकरणों, रेडियोलॉजी तथा इमेजिंग उपकरणों, एनेस्थेटिक्स उपकरणों, प्रत्यारोपण आदि जैसे चिकित्सा उपकरणों के क्षेत्रों में बड़े निवेश को आकर्षित करने हेतु एक वित्तीय प्रोत्साहन का प्रस्ताव करती है।
    • चिकित्सा उपकरण पार्कों को बढ़ावा देना:
      • चिकित्सा उपकरण पार्कों को बढ़ावा देने का उद्देश्य बुनियादी ढाँचे के आधार को मज़बूत करना और घरेलू बाज़ार में चिकित्सा उपकरणों के लिये एक मज़बूत विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना है।
      • विश्व स्तरीय मानक परीक्षण और बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिये योजना के तहत अनुदान घरेलू उत्पादन हेतु गति का निर्माण करेगा और भारत में चिकित्सा उपकरणों की मूल्य शृंखला को मज़बूत करेगा।
        • इसके अतिरिक्त, इनके परिणामस्वरूप निर्माण की लागत में उल्लेखनीय रूप से कमी आने की उम्मीद है, जिससे देश में चिकित्सा उपकरणों की बेहतर पहुँच और क्षमता में वृद्धि होगी।
    • वर्ष 2014 में 'मेक इन इंडिया' अभियान के तहत चिकित्सा उपकरणों को एक ‘सनराइज़ सेक्टर के रूप में मान्यता दी गई है।

विधेयक की आवश्यकता

  • वर्तमान में देश में बेचे जाने वाले लगभग 80% चिकित्सा उपकरण, विशेष रूप से उच्च श्रेणी के उपकरणों का आयात किया जाता है।
  • अंतरिक्ष में भारतीय अभिकर्त्ताओं ने अब तक आमतौर पर कम लागत वाले उत्पादों, जैसे उपभोग्य एवं डिस्पोजेबल पर ध्यान केंद्रित किया है, जिससे विदेशी कंपनियों को उच्च मूल्य का हिस्सा मिल रहा है।
  • इसका लक्ष्य अगले 10 वर्षों में भारत की आयात निर्भरता को 80% से घटाकर लगभग 30% करना है और वर्ष 2047 तक चिकित्सा उपकरणों के लिये शीर्ष पाँच वैश्विक विनिर्माण केंद्रों में से एक बनना है।
  • इसका उद्देश्य चिकित्सा उपकरणों पर भारत के प्रति व्यक्ति खर्च को भी बढ़ाना है।
    • भारत में 47 अमेरिकी डॉलर की प्रति व्यक्ति खपत के वैश्विक औसत की तुलना में 3 अमेरिकी डॉलर पर चिकित्सा उपकरणों पर सबसे कम प्रति व्यक्ति खर्च है जो संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे विकसित देशों की प्रति व्यक्ति खपत 415 अमेरिकी डॉलर एवं जर्मनी की 313 अमेरिकी डॉलर की तुलना में काफी कम है।

आगे की राह

  • ई-फार्मेसियों को विनियमित करने के लिये मौजूदा नियमों, कानून में अधिक सरलता से बदलाव करने की आवश्यकता है।
  • बड़ी फार्मा कंपनियों के खिलाफ निवारक उपायों की ज़रूरत है क्योंकि नैदानिक परीक्षण के लिये नियम तो हैं लेकिन वे पर्याप्त नहीं है।
  • यदि कोई समस्या पाई जाती है तो दवाओं या उपकरणों को वापस करने का भी प्रावधान होना चाहिये।
  • पहुँच में वृद्धिं और आवश्यक दवाओं के तर्कसंगत उपयोग पर बल देना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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