कृत्रिम बुद्धिमत्ता का कार्बन फुटप्रिंट
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स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीक में प्रगति के साथ इसका ऊर्जा-गहन संचालन पर्यावरण संबंधी गंभीर चिंताएँ उत्पन्न करता है। इन चुनौतियों के बावजूद स्पाइकिंग न्यूरल नेटवर्क्स और लाइफलॉन्ग लर्निंग जैसी उन्नत प्रगति जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का समाधान करने की क्षमता के साथ AI के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये आशाजनक मार्ग प्रदान कर सकती है।
स्पाइकिंग न्यूरल नेटवर्क्स और लाइफलॉन्ग लर्निंग क्या हैं?
- स्पाइकिंग न्यूरल नेटवर्क (SNN):
- SNN एक प्रकार का कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क है जो मानव के मस्तिष्क की तंत्रिका संरचना से प्रेरित है।
- पारंपरिक ANN, डेटा को संसाधित करने के लिये निरंतर संख्यात्मक मानों का उपयोग करते हैं जबकि SNN, क्रियाकलाप के विभिन्न स्पाइक्स अथवा पल्स के आधार पर कार्य करते हैं।
- जिस प्रकार मोर्स कूट संदेशों को संप्रेषित करने के लिये बिंदुओं और डैश के विशिष्ट अनुक्रमों का उपयोग करता है, उसी प्रकार SNN सूचना को संसाधित करने तथा संचारित करने के लिये स्पाइक्स के पैटर्न अथवा समय का उपयोग करते हैं। यह ठीक उसी प्रकार है जिस प्रकार मस्तिष्क में न्यूरॉन्स विद्युत आवेगों के माध्यम से संचार करते हैं जिन्हें स्पाइक्स कहा जाता है।
- स्पाइक्स की यह द्विआधारी, सभी अथवा कोई नहीं (All-or-None) विशेषता SNN को ANN की तुलना में अधिक ऊर्जा-कुशल बनाते हैं क्योंकि वे केवल स्पाइक होने पर ऊर्जा का उपभोग करते हैं जबकि ANN में कृत्रिम न्यूरॉन्स सदैव सक्रिय रहते हैं।
- स्पाइक्स की अनुपस्थिति में, SNN उल्लेखनीय रूप से ऊर्जा की कम खपत करते हैं जो उनकी ऊर्जा-कुशल प्रकृति में योगदान देता है।
- क्रियाकलाप और घटना-संचालित प्रसंस्करण विशिष्टता के कारण ANN की तुलना में SNN की ऊर्जा-कुशल क्षमता 280 गुना अधिक है।
- SNN के ऊर्जा-कुशल गुण उन्हें अंतरिक्ष अन्वेषण, रक्षा प्रणालियों और स्व-चालित कारों सहित विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये उपयुक्त बनाते हैं, जहाँ ऊर्जा संसाधन सीमित हैं।
- संबद्ध विषय में शोध किये जा रह हैं जिनका उद्देश्य SNN को और अधिक अनुकूलित करना तथा व्यावहारिक अनुप्रयोगों की एक विस्तृत शृंखला हेतु उनकी ऊर्जा दक्षता का उपयोग करने के लिये शिक्षण एल्गोरिदम विकसित करना है।
- लाइफलॉन्ग लर्निंग (L2):
- लाइफलॉन्ग लर्निंग (L2) अथवा लाइफलॉन्ग मशीन लर्निंग (LML) एक मशीन लर्निंग प्रतिमान है जिसमें अधिगम (Learning) की निरंतर प्रक्रिया शामिल है। इसमें पूर्व में किये गए कार्यों से ज्ञान संचय करना और भविष्य में सीखने तथा समस्या-समाधान में सहायता के लिये इसका उपयोग करना शामिल है।
- L2, ANN की उनकी समग्र ऊर्जा मांगों को कम करने की एक रणनीति के रूप में कार्य करता है।
- नए कार्यों हेतु ANN को क्रमिक रूप से प्रशिक्षित करने इसके पूर्व के ज्ञान का लोप हो जाता है जिसके पारिणामस्वरूप इसके संचालन प्रक्रिया में परिवर्तन के साथ शुरुआत से प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है जिससे AI से संबंधित उत्सर्जन में वृद्धि होती है।
- L2 में एल्गोरिदम का एक संग्रह शामिल है जो AI मॉडल को पूर्व के ज्ञान के न्यूनतम लोप के साथ कई कार्यों हेतु क्रमिक रूप से प्रशिक्षित होने में सक्षम बनाता है।
- यह दृष्टिकोण पुनः प्रशिक्षण की आवश्यकता के बिना मौजूदा ज्ञान के माध्यम से नई चुनौतियों के अनुकूल होते हुए निरंतर अधिगम की सुविधा प्रदान करता है।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता का कार्बन फुटप्रिंट अधिक क्यों है?
- ऊर्जा की बढ़ती खपत:
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता के कार्बन फुटप्रिंट का आशय AI सिस्टम के निर्माण, प्रशिक्षण और उपयोग के दौरान उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैस की मात्रा से है।
- AI की बढ़ती मांग से प्रेरित डेटा केंद्रों का प्रसार, विश्व की ऊर्जा खपत में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
- अनुमानित रूप से वर्ष 2025 तक वैश्विक स्तर पर उत्पादित विद्युत के कुल उपभोग में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का योगदान 20% तक हो सकता है और साथ ही विश्व के कुल कार्बन उत्सर्जन में इसका योगदान लगभग 5.5% हो सकता है।
- AI प्रशिक्षण उत्सर्जन:
- GPT-3 और GPT-4 जैसे बड़े AI मॉडल को प्रशिक्षित करने में पर्याप्त ऊर्जा की खपत होती है और व्यापक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जित होता है।
- अनुसंधान के अनुसार एक एकल AI मॉडल के प्रशिक्षण के दौरान होने वाला कार्बन उत्सर्जन कई कारों के संपूर्ण उपयोग के दौरान होने वाले उत्सर्जन के समान हो सकता है।
- GPT-3 प्रतिवर्ष 8.4 टन CO₂ उत्सर्जित करता है। 2010 के दशक की शुरुआत में AI बूम की शुरुआत के बाद से लार्ज लैंग्वेज मॉडल (ChatGPT के संचालन से संबंधित तकनीक का प्रकार) के रूप में जाने जाने वाले AI सिस्टम की ऊर्जा आवश्यकताएँ 300,000 गुना बढ़ गई हैं।
- GPT-3 और GPT-4 जैसे बड़े AI मॉडल को प्रशिक्षित करने में पर्याप्त ऊर्जा की खपत होती है और व्यापक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जित होता है।
- हार्डवेयर की खपत:
- AI की कंप्यूटेशनल मांगें एनवीडिया जैसी कंपनियों द्वारा प्रदान किये गए GPU जैसे विशेष प्रोसेसर पर काफी हद तक निर्भर करती हैं, जो पर्याप्त विद्युत की खपत करते हैं।
- ऊर्जा दक्षता में सुधार के बावजूद ये प्रोसेसर अधिक ऊर्जा की खपत करते हैं।
- AI की कंप्यूटेशनल मांगें एनवीडिया जैसी कंपनियों द्वारा प्रदान किये गए GPU जैसे विशेष प्रोसेसर पर काफी हद तक निर्भर करती हैं, जो पर्याप्त विद्युत की खपत करते हैं।
- क्लाउड कंप्यूटिंग दक्षता:
- AI परिनियोजन के लिये आवश्यक प्रमुख क्लाउड कंपनियाँ कार्बन तटस्थता एवं ऊर्जा दक्षता के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करती हैं।
- डेटा केंद्रों में ऊर्जा दक्षता में सुधार के प्रयासों द्वारा आशाजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं, कंप्यूटिंग कार्यभार में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद ऊर्जा खपत में केवल मामूली वृद्धि हुई है।
- AI परिनियोजन के लिये आवश्यक प्रमुख क्लाउड कंपनियाँ कार्बन तटस्थता एवं ऊर्जा दक्षता के प्रति प्रतिबद्धता प्रदर्शित करती हैं।
- पर्यावरण संबंधी चिंताएँ:
- AI में तीव्र प्रगति तात्कालिक पर्यावरणीय चिंताओं पर बोझ बढ़ा सकती है, जो AI विकास एवं तैनाती में स्थिरता के प्रति संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
- AI के आशाजनक भविष्य के बावजूद, इसके पर्यावरणीय प्रभाव के संबंध में चिंताएँ बनी हुई हैं, विशेषज्ञों द्वारा AI परिनियोजन में कार्बन पदचिह्न पर अधिक विचार करने का आग्रह किया है।
- AI में तीव्र प्रगति तात्कालिक पर्यावरणीय चिंताओं पर बोझ बढ़ा सकती है, जो AI विकास एवं तैनाती में स्थिरता के प्रति संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
AI का वॉटर फुटप्रिंट
- AI का वॉटर फुटप्रिंट AI मॉडल चलाने वाले डेटा केंद्रों में बिजली उत्पादन एवं शीतलन के लिये उपयोग किये जाने वाले जल से निर्धारित होता है।
- वॉटर फुटप्रिंट में प्रत्यक्ष रूप से जल की खपत (शीतलन प्रक्रियाओं से) एवं अप्रत्यक्ष रूप से जल की खप (विद्युत उत्पादन के लिये) शामिल होती है।
- वॉटर फुटप्रिंट को प्रभावित करने वाले कारकों में AI मॉडल प्रकार एवं आकार, डेटा सेंटर स्थान तथा दक्षता, के साथ-साथ विद्युत उत्पादन स्रोत शामिल हैं।
- GPT-3 जैसे बड़े AI मॉडल को प्रशिक्षित करने में 700,000 लीटर तक शुद्ध जल की खपत हो सकती है, जो 370 BMW कारों या 320 टेस्ला इलेक्ट्रिक वाहनों के उत्पादन के बराबर है।
- 20 से 50 Q&A सत्रों के दौरान, ChatGPT जैसे AI चैटबॉट्स के साथ पारस्परिक क्रियाओं पर 500 CC तक जल का उपयोग हो सकता है।
- बड़े मॉडल आकार वाले GPT-4 से जल की खपत बढ़ने की आशा है, लेकिन डेटा उपलब्धता के कारण सटीक आँकड़ों का अनुमान लगाना कठिन है।
- डेटा सेंटर से उत्पन्न ऊष्मा के कारण जल-सघन शीतलन प्रणालियों का उपयोग करते हैं, जिससे शीतलन एवं विद्युत उत्पादन के लिये शुद्ध जल की आवश्यकता होती है।
जलवायु परिवर्तन के समाधान में AI कैसे मदद कर सकता है?
- उन्नत जलवायु मॉडलिंग: जलवायु मॉडल में सुधार करने एवं अधिक सटीक भविष्यवाणियाँ करने के लिये AI बड़ी मात्रा में जलवायु डेटा का विश्लेषण कर सकता है, जिससे जलवायु संबंधी व्यवधानों की आशंका तथा अनुकूलन में सहायता प्राप्त होती है।
- पदार्थ विज्ञान (Material Science) में प्रगति: AI-संचालित अनुसंधान पवन टर्बाइनों एवं विमानों के लिये हल्की तथा मज़बूत सामग्री विकसित कर सकता है, जिससे ऊर्जा की खपत कम हो सकती है।
- न्यूनतम संसाधन उपयोग, बेहतर बैटरी भंडारण तथा बढ़ी हुई कार्बन कैप्चर क्षमताओं के साथ सामग्री डिज़ाइन करना स्थिरता प्रयासों में योगदान देता है।
- कुशल ऊर्जा प्रबंधन: AI प्रणाली नवीकरणीय स्रोतों से विद्युत के उपयोग को अनुकूलित करते हैं और साथ ही ऊर्जा खपत की निगरानी भी करते हैं तथा स्मार्ट ग्रिड, विद्युत संयंत्रों एवं विनिर्माण में दक्षता के अवसरों की पहचान करते हैं।
- पर्यावरण की निगरानी: उच्च-स्तरीय प्रशिक्षित AI प्रणाली वास्तविक समय में बाढ़, वनों की कटाई एवं अवैध मछली पकड़ने जैसे पर्यावरणीय परिवर्तनों का पता लगा सकते हैं और साथ ही उन पर भविष्यवाणी भी कर सकते हैं।
- छवि विश्लेषण के माध्यम से फसल पोषण, कीट अथवा रोग संबंधी के मुद्दों की पहचान करके धारणीय कृषि में योगदान देता है।
- दूरस्थ डेटा संग्रहण: AI-संचालित रोबोट आर्कटिक तथा महासागरों जैसे चरम वातावरण में डेटा एकत्रित करते हैं, जिससे दुर्गम क्षेत्रों में अनुसंधान एवं निगरानी सक्षम हो जाती है।
- डेटा सेंटरों में ऊर्जा दक्षता: AI-संचालित समाधान सुरक्षा मानकों को बनाये रखते हुए ऊर्जा खपत को कम करने के लिये डेटा सेंटर संचालन को अनुकूलित करते हैं।
- उदाहरण के लिये, गूगल द्वारा कृत्रिम बुद्धिमत्ता निर्मित की गई है जो अपने डेटा केंद्रों को विद्युत वितरण के लिये उपयोग की जाने वाली विद्युत की मात्रा को संरक्षित करने में सक्षम है। फर्म की AI अनुसंधान कंपनी, डीपमाइंड द्वारा विकसित मशीन लर्निंग का उपयोग करके केंद्रों को ठंडा रखने हेतु उपयोग की जाने वाली ऊर्जा को 40% तक कम करना संभव था।
AI को टिकाऊ कैसे बनाया जा सकता है?
- ऊर्जा उपयोग में पारदर्शिता:
- AI कार्बन फुटप्रिंट का मानकीकरण माप निर्माताओं को विद्युत की खपत एवं कार्बन उत्सर्जन का सटीक आकलन हेतु सक्षम बनाता है।
- स्टैनफोर्ड के एनर्जी ट्रैकर एवं माइक्रोसॉफ्ट के उत्सर्जन प्रभाव डैशबोर्ड जैसी पहल AI के पर्यावरणीय प्रभाव की निगरानी के साथ तुलना करने की सुविधा भी प्रदान करती हैं।
- AI कार्बन फुटप्रिंट का मानकीकरण माप निर्माताओं को विद्युत की खपत एवं कार्बन उत्सर्जन का सटीक आकलन हेतु सक्षम बनाता है।
- मॉडल चयन तथा एल्गोरिदमिक अनुकूलन:
- सरल कार्यों के लिये छोटे एवं अधिक केंद्रित AI मॉडल चुनने से ऊर्जा एवं कंप्यूटेशनल संसाधनों का संरक्षण होता है।
- विशिष्ट कार्यों के लिये सबसे कुशल एल्गोरिदम का उपयोग करने से ऊर्जा की खपत कम हो जाती है।
- कंप्यूटेशनल सटीकता पर ऊर्जा दक्षता को प्राथमिकता देने वाले एल्गोरिदम को लागू करने से विद्युत उपयोग कम हो जाता है।
- क्वांटम कंप्यूटिंग में प्रगति:
- क्वांटम प्रणाली की असाधारण कंप्यूटिंग शक्ति कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क (ANN) तथा स्पाइकिंग न्यूरल नेटवर्क (SNN) दोनों के लिये प्रशिक्षण तथा अनुमान कार्यों में तीव्रता लाने की क्षमता रखती है।
- क्वांटम कंप्यूटिंग बेहतर कंप्यूटेशनल क्षमताएँ प्रदान करती है जो काफी बड़े पैमाने पर AI के लिये ऊर्जा-कुशल समाधानों की खोज की सुविधा प्रदान कर सकती है।
- क्वांटम कंप्यूटिंग की शक्ति का उपयोग करने से AI प्रणाली की दक्षता तथा स्केलेबिलिटी में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकता है, जो सतत् AI प्रौद्योगिकियों के विकास में योगदान देगा।
- नवीकरणीय ऊर्जा अपनाना:
- प्रमुख क्लाउड प्रदाताओं को डेटा केंद्रों को 100% नवीकरणीय ऊर्जा के साथ संचालित करने के लिये प्रतिबद्ध होना चाहिये।
- हार्डवेयर डिज़ाइन में उन्नति:
- Google की टेंसर प्रोसेसिंग यूनिट (TPU) जैसे विशिष्ट हार्डवेयर AI सिस्टम की गति और ऊर्जा दक्षता को बढ़ाते हैं।
- AI अनुप्रयोगों के लिये विशेष रूप से तैयार अधिक ऊर्जा-कुशल हार्डवेयर का विकास स्थिरता प्रयासों में योगदान देता है।
- Google की टेंसर प्रोसेसिंग यूनिट (TPU) जैसे विशिष्ट हार्डवेयर AI सिस्टम की गति और ऊर्जा दक्षता को बढ़ाते हैं।
- नवोन्वेषी शीतलन प्रौद्योगिकियाँ:
- लिक्विड इमर्शन कूलिंग और अंडरवाॅटर डेटा केंद्र पारंपरिक शीतलन विधियों के लिये ऊर्जा-कुशल विकल्प प्रदान करते हैं।
- अंडरवाॅटर (पानी के नीचे) डेटा केंद्रों और अंतरिक्ष-आधारित डेटा केंद्रों जैसे कूलिंग सॉल्यूशन की खोज में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का प्रयोग होता है तथा पर्यावरणीय प्रभाव को कम करता है।
- सरकारी सहायता और विनियमन:
- AI के कार्बन उत्सर्जन और स्थिरता की पारदर्शी रिपोर्टिंग के लिये नियम स्थापित करना।
- AI बुनियादी ढाँचे के विकास में नवीकरणीय ऊर्जा और संधारणीय प्रथाओं को अपनाने को प्रोत्साहित करने के लिये कर प्रोत्साहन प्रदान करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है ? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) Q2. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं ? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:Q 2. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेन्स को सरकार का अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है"। विवेचना कीजिये। (2020) |
समग्र प्रगति कार्ड
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय शैक्षिक और अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (NCERT), निष्पादन मूल्यांकन, समीक्षा और समग्र विकास के लिये ज्ञान का विश्लेषण, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मेन्स के लिये:राष्ट्रीय शैक्षिक और अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (NCERT), शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकारी पहल। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय शैक्षिक और अनुसंधान प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने एक नवीन 'समग्र प्रगति कार्ड' (HPC) पेश किया है, जो कक्षाओं में बच्चे की शैक्षणिक प्रदर्शन के अतिरिक्त, पारस्परिक संबंधों, आत्म-निरीक्षण, रचनात्मकता और भावनात्मक अनुप्रयोगों की प्रगति को मापेगा।
नोट: HPCs को निष्पादन मूल्यांकन, समीक्षा और समग्र विकास के लिये ज्ञान का विश्लेषण द्वारा तैयार किया गया है, जो NCERT के तहत एक मानक-निर्धारण निकाय है, यह मूलभूत चरण (कक्षा 1 और 2), प्रारंभिक चरण (कक्षा 3 से कक्षा 5) और मध्य चरण (कक्षा 6 से 8) के लिये है। यह सुझाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप है।
समग्र प्रगति कार्ड (HPC) क्या है?
- परिचय:
- यह छात्रों के शैक्षणिक प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिये एक नवीन दृष्टिकोण है जो अंकों अथवा ग्रेड पर पारंपरिक निर्भरता से भिन्न है।
- इसके बजाय, यह एक व्यापक मूल्यांकन प्रणाली पर आधारित है जो छात्र के विकास और अधिगम के अनुभव के विभिन्न पहलुओं पर केंद्रित है।
- विशेषताएँ:
- HPC मॉडल के तहत, छात्र सक्रिय रूप से उन कक्षीय गतिविधियों से जुड़ते हैं जिसमें उन्हें अवधारणाओं की अपनी समझ का प्रदर्शन करते हुए कई कौशल और दक्षताओं को क्रियान्वित करने के लिये निरंतर प्रोत्साहित किया जाता है।
- कार्य निष्पादित करते समय उन्हें जिस कठिनाई स्तर का सामना करना पड़ता है, मूल्यांकन प्रक्रिया में उस पर भी विचार किया जाता है।
- शिक्षक सहयोग, रचनात्मकता, सहानुभूति, मनन और तैयारी जैसे विभिन्न आयामों में छात्रों की ताकत तथा कमज़ोरियों का आकलन करने में काफी मदद मिलती है।
- यह शिक्षकों को उन क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करता है जहाँ छात्रों को अतिरिक्त सहायता अथवा मार्गदर्शन की आवश्यकता पड़ सकती है।
- HPC की एक खास बात यह है कि छात्रगण प्रत्यक्ष तौर पर मूल्यांकन प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं।
- छात्रों को अपने स्वयं के प्रदर्शन के साथ-साथ अपने सहपाठियों के प्रदर्शन का आकलन करने, उनके सीखने के अनुभवों और सीखने के परिवेश में अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है।
- इसके अतिरिक्त HPC में माता-पिता को उनके बच्चे के सीखने के विभिन्न पहलुओं के संबंध में उनकी राय मांगकर मूल्यांकन प्रक्रिया में उनका एकीकरण किया जाता है, जिसमें गृहकार्य पूरा करना, कक्षा में भागीदारी और घर पर पाठ्येतर गतिविधियों के साथ मोबाइल के उपयोग का संतुलन शामिल है।
- आवश्यकता:
- पठन सामग्री के समरण के अतिरिक्त, HPC छात्रों के बीच विश्लेषण, महत्त्वपूर्ण सोच और वैचारिक स्पष्टता सहित उच्च-स्तरीय कौशल के मूल्यांकन को प्राथमिकता देता है।
- NEP के निर्देशों के अनुरूप, स्कूल शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा वर्ष 2023 में प्रस्तुत की गई थी, जो साक्ष्य के व्यवस्थित संग्रह के माध्यम से छात्र की प्रगति का आकलन करने की दिशा में परिवर्तन का समर्थन करती है।
- इसके अतिरिक्त, NCF SE छात्रों को स्वयं की अधिगम प्रक्रिया का अनुवीक्षण करने में सशक्त बनाने के लिये सहकर्मी और स्व-मूल्यांकन विधियों को बढ़ावा देता है।
- छात्रों की प्रमुख दक्षताओं की व्यापक समझ प्राप्त करने के लिये NCF SE विविध कक्षा मूल्यांकन विधियों, जैसे परियोजना, वाद-विवाद, प्रस्तुति, परीक्षण, अन्वेषण और रोल प्ले को शामिल करने का सुझाव देता है। HPC का अभिकल्पन इन सुझावों के अनुरूप है।
परख क्या है?
- परिचय:
- परख/PARAKH का शुभारंभ राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 के कार्यान्वयन के भाग के रूप में किया गया था जिसमें एक मानक-निर्धारण निकाय के स्थापना की परिकल्पना की गई जिसका उद्देश्य मूल्यांकन हेतु नए प्रतिरूप और नवीनतम शोध के संबंध में विद्यालय बोर्डों को सलाह देना तथा उनके बीच सहयोग को बढ़ावा देना था।
- यह NCERT की एक घटक इकाई के रूप में कार्य कारती है।
- इसे राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (National Achievement Survey- NAS) और राज्य उपलब्धि सर्वेक्षण (State Achievement Survey- SAS) जैसे समय-समय पर लर्निंग आउटकम टेस्ट आयोजित करने का भी कार्य सौंपा गया है।
- यह प्रमुख रूप से तीन मूल्यांकन क्षेत्रों पर कार्य करता है जिनमें व्यापक मूल्यांकन, स्कूल-आधारित मूल्यांकन तथा परीक्षा सुधार शामिल है।
- उद्देश्य:
- समान मानदंड और दिशा-निर्देश: भारत के सभी मान्यता प्राप्त स्कूल बोर्डों के लिये छात्र मूल्यांकन एवं निर्धारण हेतु मानदंड, मानक और दिशा-निर्देश निर्धारित करना।
- मूल्यांकन पैटर्न में सुधार: यह 21वीं सदी की कौशल आवश्यकताओं को पूरा करने की दिशा में अपने मूल्यांकन पैटर्न को बदलने के लिये स्कूल बोर्डों को प्रोत्साहित करेगा।
- मूल्यांकन में असमानता को कम करना: यह राज्य एवं केंद्रीय बोर्डों में एकरूपता लाएगा जो वर्तमान में मूल्यांकन के विभिन्न मानकों का पालन करते हैं, जिससे स्कोर में व्यापक असमानताएँ उत्पन्न होती हैं।
- बेंचमार्क मूल्यांकन:बेंचमार्क मूल्यांकन ढाँचा रटने पर ज़ोर देने पर रोक लगाने में सहायता प्रदान करेगा, जैसा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में परिकल्पना की गई है।
स्कूली शिक्षा हेतु NCF क्या है?
- परिचय:
- स्कूली शिक्षा के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF-SE), NEP 2020 के दृष्टिकोण के आधार पर इसके कार्यान्वयन को सक्षम करने के लिये विकसित की गई है।
- NCF-SE का सूत्रीकरण NCERT द्वारा किया जाएगा। अग्रिम पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए, NCF-SE दस्तावेज़ को प्रति 5 से 10 वर्ष में एक बार पुनः परीक्षित और अद्यतन किया जाएगा।
- उद्देश्य:
- NCF-SE भारत में पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों के साथ ही शिक्षण प्रथाओं को विकसित करने हेतु एक दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करता है।
- इसके उद्देश्यों में रटने (दोहराकर याद करने) से हटकर सीखने, शिक्षा को वास्तविक जीवन की स्थितियों से जोड़ने, परीक्षाओं को अधिक लचीला बनाने के साथ-साथ पाठ्यपुस्तकों से परे पाठ्यक्रम को समृद्ध बनाना शामिल है।
- NCF-SE का उद्देश्य सीखने को आनंददायक, बाल-केंद्रित एवं आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना भी है। यह माध्यमिक विद्यालय के छात्रों की काउंसलिंग के लिये दिशा-निर्देश प्रदान करता है साथ ही सभी आयु समूहों के लिये अनिवार्य भी है।
भारत में शिक्षा से संबंधित कानूनी एवं संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- कानूनी प्रावधान:
- सरकार ने प्राथमिक स्तर (6-14 वर्ष) के बच्चों हेतु शिक्षा का अधिकार अधिनियम के हिस्से के रूप में सर्व शिक्षा अभियान लागू किया है।
- माध्यमिक स्तर (14-18 आयु वर्ग) की ओर बढ़ते हुए, सरकार ने राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के माध्यम से SSA को माध्यमिक शिक्षा तक बढ़ा दिया है।
- उच्च शिक्षा की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के माध्यम से सरकार द्वारा उच्च शिक्षा, जिसमें {स्नातक (UG), स्नातकोत्तर (PG) तथा MPhil/PhD} को संबोधित किया जाता है।
- इन सभी योजनाओं को समग्र शिक्षा अभियान की छत्र योजना के अंतर्गत शामिल कर दिया गया है।
- संवैधानिक प्रावधान:
- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों के अनुच्छेद 45 के प्रारंभ में यह निर्धारित किया गया था कि सरकार को संविधान के लागू होने के 10 वर्षों के भीतर 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिये निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करनी चाहिये।
- इसके अलावा, अनुच्छेद 45 में एक संशोधन ने छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिये प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा को शामिल करने के लिये इसके दायरे को व्यापक बना दिया।
- इस लक्ष्य की पूर्ति न होने के कारण 86वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2002 ने अनुच्छेद 21A पेश किया, जिससे प्रारंभिक शिक्षा को निदेशक सिद्धांत के बदले मौलिक अधिकार का दर्जा दिया गया।
शैक्षिक सुधारों से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?
- प्रौद्योगिकी संवर्द्धित शिक्षण पर राष्ट्रीय कार्यक्रम
- समग्र शिक्षा अभियान
- प्रज्ञाता
- मध्याह्न भोजन योजना
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
- PM SHRI स्कूल
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 5 उत्तर- (d) मेन्स:Q1. जनसंख्या शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021) Q2. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) |
कोयला रसद योजना और नीति
प्रिलिम्स के लिये:कोयला रसद योजना और नीति, भारत में कोयला क्षेत्र, कोयले के प्रकार, कोकिंग कोयला, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, COP28, कार्बन कैप्चर और स्टोरेज मेन्स के लिये:भारत के लिये कोयले से संबंधित चुनौतियाँ, भारत के ऊर्जा क्षेत्र की आधारशिला के रूप में कोयला |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
भारत ने “कोयला रसद योजना और नीति” (Coal Logistics Plan and Policy) नामक पहल का शुभारंभ कर कोयला क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया जिसका उद्देश्य कोयला परिवहन का आधुनिकीकरण करना है।
कोयला रसद योजना और नीति क्या है?
- पृष्ठभूमि: भारत में कोयला रसद का मुद्दा लंबे समय से बना हुआ है, विशेषकर ग्रीष्म ऋतु के दौरान जब विद्युत की बढ़ती मांग के कारण ऊर्जा संयंत्रों को कोयले की कमी का सामना करना पड़ता है।
- कोयले के परिवहन (विभिन्न कार्यों के लिये कोयले को ले-जाना ले-आना) में अमूमन चुनौतियाँ उत्पन्न होती रही हैं जिसके कारण कोयला आपूर्ति में व्यवधान का समाधान करने के लिये भारतीय रेल को विशेष उपाय लागू करने की आवश्यकता होती है।
- परिचय: कोयला रसद योजना और नीति का उद्देश्य कोयला रसद को अधिक वहनीय, कुशल तथा पर्यावरण के अनुकूल बनाकर इसमें वृद्धि करना है।
- इसमें भंडारण, लोडिंग, अनलोडिंग और विद्युत संयंत्रों, इस्पात मिलों, सीमेंट कारखानों तथा वॉशरी तक कोयले की डिलीवरी जैसे विभिन्न पहलू शामिल हैं।
- यह फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी (FMC) परियोजनाओं में रेल-आधारित प्रणाली की ओर एक रणनीतिक बदलाव का प्रस्ताव करता है जिसका लक्ष्य रेल रसद लागत में 14% की कमी के साथ वार्षिक लागत में 21,000 करोड़ रुपए की बचत करना है।
- अपेक्षित परिणाम: यह वायु प्रदूषण में कमी करने, यातायात के भार को कम करने और प्रति वर्ष लगभग कार्बन उत्सर्जन में 100,000 टन की कमी करने में सहायता प्रदान करेगा।
- इसके अतिरिक्त देशभर में वैगनों के औसत टर्नअराउंड समय में 10% की बचत की उम्मीद है।
भारत में कोयला क्षेत्र की स्थिति क्या है?
- कोयला: कोयला प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला ज्वलनशील अवसादी शैल (Sedimentary Rock) है जिसमें मुख्य रूप से हाइड्रोकार्बन सहित कार्बन होता है।
- यह लाखों वर्षों में पादप सामग्री के संचय और अपघटन से बनता है। दाब और ऊष्मा के माध्यम से इस कार्बनिक पदार्थ में भौतिक तथा रासायनिक परिवर्तन होते हैं एवं अंततः यह कोयले में परिवर्तित हो जाता है।
- भारत में कोयला भंडार: भारत का कोयला भंडार देश के पूर्वी और मध्य भागों में केंद्रित है।
- प्रमुख कोयला उत्पादक राज्य ओडिशा, छत्तीसगढ़ एवं झारखंड के साथ-साथ मध्य प्रदेश के कुछ भाग शामिल हैं और वे भारत में घरेलू कच्चे कोयले के प्रेषण का 75% योगदान करते हैं।
- भारत में कोयले के प्रकार एवं क्लस्टर:
- एन्थ्रेसाइट: 80% से 95% तक कार्बन सामग्री के साथ, यह मुख्य रूप से जम्मू और कश्मीर में सीमित मात्रा में मौजूद है।
- बिटुमिनस कोयला: 60% से 80% कार्बन युक्त, यह मुख्य रूप से झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है।
- लिग्नाइट: इसकी विशेषता इसकी कार्बन सामग्री 40% से 55% के साथ ही उच्च नमी का स्तर होता है एवं यह मुख्य रूप से तमिलनाडु, पुडुचेरी, गुजरात, राजस्थान तथा जम्मू और कश्मीर के क्षेत्रों में पाया जाता है।
- पीट: 40% से कम कार्बन सामग्री के साथ यह लकड़ी जैसे कार्बनिक पदार्थ से कोयले में परिवर्तन के प्रारंभिक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।
- भारत के लिये कोयले का महत्त्व: कोयला भारत में सबसे महत्त्वपूर्ण और प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला जीवाश्म ईंधन है। यह देश की 55% ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करता है।
- देश की औद्योगिक विरासत का निर्माण स्वदेशी कोयले पर किया गया था। वर्तमान में भारत की 70% विद्युत मांग ताप विद्युत संयंत्रों से पूरी होती है, जो मुख्य रूप से कोयले से संचालित होते हैं।
- पिछले चार दशकों में भारत में वाणिज्यिक प्राथमिक ऊर्जा खपत में लगभग 700% की वृद्धि हुई है।
- वर्तमान में प्रति व्यक्ति खपत प्रति वर्ष लगभग 350 किलोग्राम तेल के बराबर है, जो विकसित देशों की तुलना में अभी भी कम है।
- भारत में कोयले का आयात: वर्तमान आयात नीति ओपन जनरल लाइसेंस के तहत कोयले के अप्रतिबंधित आयात की अनुमति देती है।
- इस्पात, विद्युत एवं सीमेंट क्षेत्रों के साथ-साथ कोयला व्यापारी सहित उपभोक्ता अपनी व्यावसायिक आवश्यकताओं के आधार पर कोयले का आयात कर सकते हैं।
- इस्पात क्षेत्र घरेलू उपलब्धता को पूरा करने तथा गुणवत्ता में सुधार के लिये मुख्य रूप से कोकिंग कोयले का आयात करता है।
- विद्युत तथा सीमेंट जैसे अन्य क्षेत्र, कोयला व्यापारियों के साथ अपनी-अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये गैर-कोकिंग कोयले का आयात करते हैं।
भारत के लिये कोयले से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?
- पर्यावरणीय प्रभाव: कोयला खनन और दहन वायु एवं जल प्रदूषण, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, निर्वनीकरण तथा प्राकृतिक वन्य आवास के विनाश में योगदान करते हैं। ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इन पर्यावरणीय प्रभावों से निपटना एक बहुत बड़ी चुनौती है।
- स्वास्थ्य जोखिम: कोयले की धूल, कणिका पदार्थ और कोयले पर चलने वाले विद्युत संयंत्रों से हानिकारक उत्सर्जन के संपर्क में आने के कारण कोयला खदानों तथा विद्युत संयंत्रों के निकट रहने वाले समुदायों के लिये स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होता है, जिससे श्वसन संबंधी बीमारियाँ एवं अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास: कोयला खनन परियोजनाओं के लिये भूमि अधिग्रहण में प्रायः समुदायों का विस्थापन और आजीविका में व्यवधान शामिल होता है।
- प्रभावित आबादी का उचित पुनर्वास एक चुनौती बना हुआ है, कई समुदायों को सामाजिक और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
- तकनीकी बाधाएँ: कार्बन कैप्चर और स्टोरेज जैसी स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों में प्रगति के बावजूद, उच्च लागत तथा तकनीकी चुनौतियों के कारण भारत में इन प्रौद्योगिकियों को व्यापक रूप से अपनाना सीमित है।
- नवीकरणीय ऊर्जा में संक्रमण: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की देश की प्रतिबद्धता के बीच भारत में कोयला क्षेत्र को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और जलवायु परिवर्तन शमन उद्देश्यों को पूरा करने के बीच संतुलन बनाना एक बहुत बड़ी बाधा है।
- COP28 में, भारत ने कोयला के उपयोग को पूरी तरह से "चरणबद्ध तरीके से समाप्त" करने के बजाय "चरणबद्ध तरीके से कम करने" का समर्थन किया।
भारत कोयले के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के बजाय चरणबद्ध तरीके से कम करने का समर्थन क्यों करता है?
- ऊर्जा सुरक्षा: कोयला वर्तमान में भारत की ऊर्जा सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो देश की विद्युत उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा प्रदान करता है।
- कोयले के उपयोग को अचानक समाप्त करने से ऊर्जा आपूर्ति में बाधा आ सकती है, जिसका असर उद्योगों, व्यवसायों और घरों पर पड़ सकता है।
- आर्थिक निमित्त: कोयला खनन और संबंधित उद्योग लाखों नौकरियों का समर्थन करते हैं तथा भारत की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
- बुनियादी ढाँचा निवेश: भारत ने विद्युत संयंत्रों और संबंधित सुविधाओं सहित कोयला आधारित बुनियादी ढाँचे में पर्याप्त निवेश किया है।
- कोयले के प्रयोग को समय से पूर्व बंद करने से परिसंपत्तियों को हानि होगी और निवेश बर्बाद हो जाएगा, जिससे अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
आगे की राह
- ऊर्जा दक्षता में सुधार: खनन और परिवहन से लेकर विद्युत उत्पादन तथा खपत तक कोयला मूल्य शृंखला में ऊर्जा दक्षता बढ़ाने से ऊर्जा की खपत एवं पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकता है।
- इसके अतिरिक्त, कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों में उच्च दक्षता, कम उत्सर्जन (HELE) प्रौद्योगिकियों के प्रयोग से ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करते हुए कोयला उद्योग में उत्सर्जन को काफी कम किया जा सकता है।
- ऊर्जा स्रोतों में विविधता: भारत को सौर, पवन, जलविद्युत और बायोमास जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाकर अपने ऊर्जा मिश्रण में विविधता लाने को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- इस विविधीकरण से कोयले पर निर्भरता में कमी लाने में मदद मिलेगी तथा अधिक सतत् व अनुकूलनीय ऊर्जा प्रणाली में योगदान मिलेगा।
- स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों की ओर संक्रमण: कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण सहित स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान व विकास में निवेश, कोयला आधारित विद्युत उत्पादन के पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है।
- सतत् खनन प्रथाओं को बढ़ावा देना: भूमि सुधार, जल संरक्षण और जैवविविधता संरक्षण सहित पर्यावरण की दृष्टि से सतत् खनन प्रथाओं को लागू करना, कोयला खनन कार्यों के पर्यावरणीय फुटप्रिंट को कम कर सकता है।
- पर्यावरणीय मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये नियमों और प्रवर्तन तंत्र को मज़बूत करना आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) प्रश्न 2. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारतीय कोयले का/के अभिलक्षण है/हैं? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग अपने सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में बहुत कम प्रतिशत का योगदान देते हैं। विवेचना कीजिये। (2021) प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, कोयला खनन विकास के लिये अभी भी अपरिहार्य है।" विवेचना कीजिये। (2017) |