डेली न्यूज़ (09 Feb, 2024)



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पंचायती राज संस्थाओं की वित्त व्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक, पंचायती राज संस्थान, राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान योजना

मेन्स के लिये:

भारत में पंचायतों का कार्य प्रणाली, पंचायती राज संस्थाएँ, स्थानीय स्वशासन, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिये 'पंचायती राज संस्थानों की वित्त व्यवस्था' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, यह रिपोर्ट भारत के पंचायती राज संस्थानों की वित्तीय कार्यप्रणाली पर प्रकाश डालती है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • राजस्व संरचना:
    • पंचायतों को अपने राजस्व का केवल 1% करों के माध्यम से प्राप्त होता हैं।
    • उनका अधिकांश राजस्व का स्रोत केंद्र और राज्यों द्वारा प्रदान किये गए अनुदान हैं
      • डेटा के अनुसार राजस्व का 80% केंद्र सरकार के अनुदान और 15% राज्य सरकार के अनुदान से प्राप्त होता है।
  • राजस्व आँकड़े:
    • वित्तीय वर्ष 2022-23 में पंचायतों ने कुल 35,354 करोड़ रुपए का राजस्व प्राप्त किया।
      • उन्होंने अपने कर राजस्व से केवल 737 करोड़ रुपए अर्जित किये। पंचायतें ये राजस्व पेशे और व्यापार पर कर, भूमि राजस्व, स्टाम्प और रजिस्ट्रीकरण शुल्क, संपत्ति पर कर तथा सेवा कर के माध्यम से अर्जित करती हैं।
      • निर्दिष्ट वित्तीय वर्ष के दौरान गैर-कर राजस्व 1,494 करोड़ रुपए का था, इनका मुख्य स्रोत ब्याज भुगतान और पंचायती राज कार्यक्रम थे।
    • गौरतलब है कि पंचायतों को केंद्र सरकार से 24,699 करोड़ रुपए और राज्य सरकारों से 8,148 करोड़ रुपए का अनुदान प्राप्त हुआ।
  • प्रति पंचायत राजस्व:
    • औसतन प्रत्येक पंचायत ने अपने कर राजस्व से केवल 21,000 रुपए और गैर-कर राजस्व से 73,000 रुपए अर्जित किये।
    • इसके विपरीत, केंद्र सरकार से प्राप्त होने वाले अनुदान में प्रति पंचायत को लगभग 17 लाख रुपए प्रदान किये गए तथा राज्य सरकार ने प्रति पंचायत को 3.25 लाख रुपए की अनुदान राशि प्रदान की।
  • राज्य राजस्व हिस्सेदारी और अंतर-राज्यीय असमानताएँ:
    • अपने-अपने राज्य के राजस्व में पंचायतों की हिस्सेदारी वर्तमान समय भी न्यूनतम ही है।
      • उदाहरण के लिये, आंध्र प्रदेश में पंचायतों की राजस्व प्राप्तियाँ राज्य के राजस्व का केवल 0.1% है, जबकि उत्तर प्रदेश में यह आँकड़ा सभी राज्यों में सबसे अधिक, 2.5% है।
    • प्रति पंचायत अर्जित औसत राजस्व के संबंध में राज्यों में काफी भिन्नताएँ हैं।
      • 60 लाख रुपए और 57 लाख रुपए प्रति पंचायत के औसत राजस्व के साथ केरल तथा पश्चिम बंगाल क्रमशः सबसे अग्रणी हैं।
      • असम, बिहार, कर्नाटक, ओडिशा, सिक्किम और तमिलनाडु में प्रति पंचायत राजस्व 30 लाख रुपए से अधिक था।
      • प्रति पंचायत 6 लाख रुपए से भी कम राजस्व के साथ आंध्र प्रदेश, हरियाणा, मिज़ोरम, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों का औसत राजस्व काफी कम है।
  • RBI की सिफारिशें:
    • RBI अधिक विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देने और स्थानीय नेताओं व अधिकारियों के सशक्तीकरण की सिफारिश की है। यह पंचायती राज की वित्तीय स्वायत्तता एवं स्थायित्व में वृद्धि करने में मदद करता है।
    • इस रिपोर्ट के अनुसार PRI पारदर्शी बजटिंग, राजकोषीय अनुशासन, संवर्द्धन प्राथमिकता में सामुदायिक भागीदारी, कर्मचारियों के प्रशिक्षण और निगरानी व मूल्यांकन जैसे तत्त्वों को अंगीकृत कर उपलब्ध संसाधन उपयोग में वृद्धि कर सकते हैं।
    • इसके अतिरिक्त, इसमें PRI की कार्यप्रणाली के बारे में जन जागरूकता बढ़ाने और प्रभावी स्थानीय शासन के लिये जन भागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

पंचायतों द्वारा सामना की जाने वाली वित्तीयन की समस्याओं का कारण क्या है?

  • सीमित कराधान: 
    • उपकर और करारोपण के संबंध में PRI की शक्तियाँ सीमित हैं। राज्य सरकार प्रदान की जाने वाली धनराशि बहुत कम होने के साथ ही, जनता के बीच लोकप्रियता खोने के भय से आवश्यक धन जुटाने के विरुद्ध होते हैं।
  • कम क्षमता और उपयोग: 
    • PRI के पास शुल्क, टोल, किराया आदि जैसे विभिन्न स्रोतों से अपना राजस्व उत्पन्न करने की क्षमता और कौशल की कमी एक अन्य समस्या मानी जा सकती है।
    • खराब नियोजन, अनुवीक्षण और जवाबदेही तंत्र के कारण उन्हें धन के कुशलतापूर्वक तथा प्रभावी प्रयोग को लेकर भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
  • राजकोषीय विकेंद्रीकरण: 
    • सरकार के उच्च स्तर द्वारा पंचायतों को वित्तीय शक्तियों और कार्यों का अपर्याप्त हस्तांतरण स्वतंत्र रूप से संसाधन जुटाने की उनकी क्षमता में बाधा उत्पन्न करता है। सीमित राजकोषीय विकेंद्रीकरण स्थानीय शासन तथा सामुदायिक सशक्तीकरण को कमज़ोर बनाता है।

पंचायतों की वित्तीय निर्भरता के परिणाम क्या हैं?

बाहरी स्रोतों से वित्तीयन पर निर्भरता के कारण सरकार के उच्च स्तरों का हस्तक्षेप अधिक होता है।

राज्य सरकारों द्वारा धन जारी करने में होने वाले विलंब के कारण पंचायत निजी धन का उपयोग करने के लिये मज़बूर होते हैं।

कुछ क्षेत्रों ने प्रमुख योजनाओं के तहत धन नहीं मिलने, जिससे उनके कामकाज पर असर पड़ा है, की भी सूचना दी है।

मार्च, 2023 में ग्रामीण विकास और पंचायती राज पर स्थायी समिति ने कहा कि 34 में से 19 राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों को वित्त वर्ष 2023 में राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान योजना के तहत कोई धनराशि प्राप्त नहीं हुई।

पंचायती राज संस्थान (PRI) क्या है?

  • 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा पंचायती राज संस्थानों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और एक समान संरचना (PRI के तीन स्तर), चुनाव, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा महिलाओं के लिये सीटों का आरक्षण व निधि के अंतरण एवं PRI के कार्य और पदाधिकारी की एक प्रणाली स्थापित की गई।
    • पंचायतें तीन स्तरों पर कार्य करती हैं: ग्राम सभा (गाँव अथवा छोटे गाँवों का समूह), पंचायत समितियां (ब्लॉक परिषद) और ज़िला परिषद (ज़िला स्तर पर)।
  • भारत के संविधान का अनुच्छेद 243G राज्य विधानसभाओं को पंचायतों को स्व-सरकारी संस्थानों के रूप में कार्य करने का अधिकार और शक्तियाँ प्रदान करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • पंचायतों के वित्तीय सशक्तीकरण के लिये भारतीय संविधान का अनुच्छेद 243H, अनुच्छेद 280(3)(bb) और अनुच्छेद 243-I निम्नलिखित प्रावधान करता है:
    • अनुच्छेद 243H राज्य विधानमंडलों को करों, शुल्कों, टोल और शुल्क लगाने, एकत्र करने के लिये पंचायतों को अधिकृत करने की शक्ति प्रदान करता है। यह उन्हें शर्तों व सीमाओं के अधीन, इन करों, शुल्कों, टोलों और शुल्कों को पंचायतों को सौंपने की भी अनुमति भी प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 280(3) (bb) के अनुसार यह केंद्रीय वित्त आयोग का कर्तव्य है कि वह राज्य में पंचायतों के संसाधनों की पूर्ति के लिये राज्य की समेकित निधि को बढ़ाने के लिये राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर आवश्यक उपायों के बारे में राष्ट्रपति से सिफारिश करे।
    • अनुच्छेद 243-I के अनुसार राज्यपाल प्रत्येक पाँच वर्ष में राज्य वित्त आयोग के गठन का आदेश देता है। इन आयोगों का कार्य पंचायतों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करने तथा राज्यपाल को निम्नलिखित विषयों के संबंध में सलाह देना है:
      • राज्य और पंचायतों के बीच करों, कर्त्तव्यों, टोल तथा शुल्क के वितरण का मार्गदर्शन करने वाले सिद्धांत, जिसमें उनके संबंधित हिस्सेदारी व पंचायतों के विभिन्न स्तरों के बीच आवंटन शामिल हैं।
      • पंचायतों की वित्तीय स्थिति में सुधार के उपाय।
      • राज्यपाल द्वारा संदर्भित कोई अन्य वित्त संबंधी मामले।
    • पंचायती राज मंत्रालय पंचायती राज और पंचायती राज संस्थाओं से संबंधित सभी मामलों की देखरेख करता है। इसकी स्थापना मई 2004 में की गई थी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है (2017)

(a) संघवाद का
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का
(c) प्रशासकीय प्रत्यायोजन का
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र का

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य क्या सुनिश्चित करना है? (2015)

  1. विकास में जन-भागीदारी
  2. राजनीतिक जवाबदेही
  3. 3.लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  4. वित्तीय संग्रहण (फ़ाइनेंशियल मोबिलाइज़ेशन)

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न 1. भारत में स्थानीय शासन के एक भाग के रूप में पंचायत प्रणाली के महत्त्व का आकलन कीजिये। विकास परियोजनाओं के वित्तीयन के लिये पंचायतें सरकारी अनुदानों के अलावा और किन स्रोतों को खोज सकती हैं? (2018)

प्रश्न 2. आपकी राय में भारत में शक्ति के विकेंद्रीकरण ने ज़मीनी-स्तर पर शासन परिदृश्य को किस सीमा तक परिवर्तित किया है? (2022)

प्रश्न 3. सुशिक्षित और व्यवस्थित स्थानीय स्तर शासन-व्यवस्था की अनुपस्थिति में 'पंचायतें' और 'समितियाँ' मुख्यतः राजनीतिक संस्थाएँ बनी रही हैं न कि शासन के प्रभावी उपकरण। समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिये। (2015) 


CBSE द्वारा क्रेडिट प्रणाली की शुरुआत

प्रिलिम्स के लिये :

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020, नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क, एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट्स, परख, पीएम स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया (PM e-VIDYA), निपुण भारत मिशन, पीएम ई-विद्या पहल

मेन्स के लिये:

NEP 2020 की प्रमुख विशेषताएँ और शिक्षा से संबंधित सरकार की पहलें

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020 द्वारा अनुशंसित क्रेडिट प्रणाली को लागू करने की अपनी योजना के तहत कक्षा 9, 10, 11 और 12 के शैक्षणिक ढाँचे में महत्त्वपूर्ण बदलाव की योजना बना रहा है।

  • इस कदम का उद्देश्य एक एकीकृत ढाँचा प्रस्तुत करके शिक्षा परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव लाना है जो व्यावसायिक और सामान्य शिक्षा के बीच अंतर को समाप्त करता है।

क्रेडिट प्रणाली क्या है? 

  • परिचय: क्रेडिट प्रणाली शिक्षा में उपयोग की जाने वाली एक विधि है जिसका उपयोग किसी छात्र द्वारा सीखने की क्षमता को मापने एवं उसका आकलन करने के लिये किया जाता है।
    • यह विभिन्न पाठ्यक्रमों या सीखने की गतिविधियों को पूरा करने एवं विषयवस्तु में निपुणता प्रदर्शित करने के लिये आवश्यक समय तथा प्रयास के आधार पर संख्यात्मक मान प्रदान करता है, जिसे क्रेडिट के रूप में जाना जाता है।
  • NEP 2020 के अनुसार क्रेडिट प्रणाली का उद्देश्य: क्रेडिट प्रणाली का उद्देश्य NEP 2020 द्वारा प्रस्तावित, व्यावसायिक तथा सामान्य शिक्षा के बीच अकादमिक समानता स्थापित करना और साथ ही दो शिक्षा प्रणालियों के बीच गतिशीलता को सुविधाजनक बनाना है।
  • NCrF: यह स्कूलों तथा उच्च शिक्षा में प्रशिक्षण और कौशल विकास के एकीकरण के लिये एक एकीकृत क्रेडिट ढाँचा है।
    • एक छात्र के क्रेडिट को एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट में डिजिटल रूप से सहेजा जाएगा और उससे जुड़े डिजीलॉकर खाते के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा।
    • अपने संबद्ध स्कूलों में इसे लागू करने के लिये CBSE ने वर्ष 2022 में एक उपसमिति का गठन किया जिसने सुझाव दिया कि वर्तमान शैक्षणिक ढाँचे को NCrF के साथ संरेखित करने के लिये कैसे फिर से डिज़ाइन किया जाना चाहिये।

CBSE उपसमिति ने क्या सुझाव दिये?

  • सांकेतिक शिक्षण: प्रस्तुत सुझावों के अनुसार एक शैक्षणिक वर्ष में 1,200 सांकेतिक शिक्षण घंटे होंगे, जो छात्रों के लिये 40 क्रेडिट के बराबर होंगे।
    • सांकेतिक शिक्षण से तात्पर्य एक औसत छात्र द्वारा निर्दिष्ट परिणाम प्राप्त करने के लिये आवश्यक निर्धारित समय से है।
    • छात्रों को उत्तीर्ण होने के लिये प्रतिवर्ष शिक्षण के लिये कुल 1,200 घंटे सुनिश्चित करने के लिये विषयों को विशिष्ट घंटे आवंटित किये जाते हैं।
  • कक्षा 9 और 10 की पाठ्यक्रम संरचना: कक्षा 9 और 10 में छात्रों को 10 विषय पढना आवश्यक है जिसमें तीन भाषाएँ तथा सात मुख्य विषय शामिल हैं
    • तीन भाषाओं में से, कम-से-कम दो भारतीय भाषाएँ होनी चाहिये (जैसे– हिंदी, संस्कृत अथवा अंग्रेज़ी)।
    • सात मुख्य विषयों में गणित और संगणन बुद्धिमता, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान, कला, शारीरिक शिक्षा तथा कल्याण, व्यावसायिक शिक्षा एवं पर्यावरण शिक्षा शामिल हैं।
  • कक्षा 11 और 12 की पाठ्यक्रम संरचना: कक्षा 11 और 12 में छात्रों को छह विषयों का अध्ययन करना आवश्यक है जिसमें दो भाषाएँ एवं चारा मुख्य विषय तथा एक वैकल्पिक विषय होंगे।
    • इन दो भाषाओं में कम-से-कम एक भारतीय भाषा का होना अनिवार्य है।

माइक्रो-क्रेडेंशियल्स क्या हैं?

  • परिचय: माइक्रो-क्रेडेंशियल सत्यापित अधिगम उद्देश्यों के साथ लघु अधिगम अभ्यास हैं जो तीन अलग-अलग बुनियादी, मध्यवर्ती और उन्नत स्तरों पर भौतिक, ऑनलाइन अथवा हाइब्रिड प्रारूपों में उपलब्ध हैं।
    • यह औपचारिक डिग्री कार्यक्रम अपनाने में असक्षम कामकाजी पेशेवरों और महत्त्वाकांक्षी शिक्षार्थियों को सेवाएँ प्रदान करते हैं।
  • प्रदाता और उपयोग: Atingi, Coursera, edX और अन्य जैसी विभिन्न संस्थाएँ माइक्रो-क्रेडेंशियल्स प्रदान करती हैं। वैश्विक स्तर पर यह कई विश्वविद्यालयों द्वारा भी प्रदान किये जाता है और आने वाले समय में इन संस्थानों की संख्या में वृद्धि होने का अनुमान है।
  • औपचारिक डिग्रियों के साथ तुलना: माइक्रो-क्रेडेंशियल्स स्नातक डिग्री जैसे मैक्रो-क्रेडेंशियल्स, जिनके लिये कई वर्षों के अध्ययन की आवश्यकता होती है, से भिन्न होते हैं।
    • औपचारिक डिग्रियों में पूर्णतः व्यवस्थित तरीकों से व्याख्यान, प्रयोगशालाओं आदि में किसी शिक्षार्थी द्वारा दिये गए समय के आधार पर 'क्रेडिट' का प्रयोग किया जाता है, जबकि माइक्रो-क्रेडेंशियल कुछ निश्चित दक्षताओं को प्राप्त करने के आधार पर क्रेडिट प्रदान किया जाता है
  • क्षमता: NEP 2020 में कौशल-आधारित शिक्षा और कुशल कर्मचारियों की तलाश करने वाले नियोक्ताओं पर बल दिये जाने के साथ ही भारत में माइक्रो-क्रेडेंशियल्स की मांग बढ़ रही है।
    • भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) को मौजूदा शैक्षणिक ढाँचे और NEP 2020 के साथ सामंजस्य बिठाते हुए अपने शिक्षण कार्यक्रमों में उन्हें एकीकृत करने पर विचार करना चाहिये।

NEP 2020 की अन्य प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?

  • परिचय: NEP 2020 का लक्ष्य "ज्ञान के क्षेत्र में भारत को एक वैश्विक महाशक्ति" बनाना है। स्वतंत्रता पश्चात् यह भारत में शिक्षा के ढाँचे में किया गया तीसरा बड़ा सुधार है।
    • इससे पूर्व की दो शिक्षा नीतियाँ वर्ष 1968 तथा वर्ष 1986 में प्रस्तुत की गई थीं।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • सार्वभौमिक पहुँच तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा: इसका उद्देश्य प्री-प्राइमरी से कक्षा 12 तक शिक्षा के सभी स्तरों पर सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना है।
      • 3-6 वर्ष के बीच के सभी बच्चों के लिये गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करना।
    • नई पाठ्यचर्या और शैक्षणिक संरचना: इसके तहत 5+3+3+4 की एक नई संरचना की प्रस्तुति की गई।
      • यह कला और विज्ञान, पाठ्यचर्या तथा पाठ्येतर गतिविधियों एवं व्यावसायिक व शैक्षणिक धाराओं के बीच एकीकरण को बढ़ावा देता है।
    • मूल्यांकन सुधार और समानता: एक नए राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र, परख (PARAKH) की स्थापना की गई।
    • यह वंचित क्षेत्रों और समूहों के लिये एक पृथक लैंगिक समावेशन निधि तथा विशेष शिक्षा क्षेत्र का प्रावधान करता है।
    • प्रौद्योगिकी एकीकरण: प्रौद्योगिकी एकीकरण के लिये राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी फोरम (NETF) की स्थापना की गई।
    • वित्तीय निवेश और समन्वय: शिक्षा क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के 6% तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
      • यह समन्वय और गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने के लिये केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड की सहायता करेगा।
      • यह 'लाइट बट टाइट' विनियमन का समर्थन करता है।
    • सकल नामांकन अनुपात (GER) लक्ष्य: इसके तहत वर्ष 2030 तक प्रीस्कूल से माध्यमिक स्तर तक GER को 100% तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
      • व्यावसायिक शिक्षा सहित उच्च शैक्षणिक संस्थानों में GER को वर्ष 2035 तक 50% तक पहुँचाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
      • इसके तहत एकाधिक प्रवेश/निकास विकल्पों के साथ समग्र और बहु-विषयक शिक्षा का प्रस्ताव किया गया।
  • NEP 2020 के तहत की गई प्रमुख पहल:

https://www.youtube.com/watch?v=NuLLgis33q0 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का भारत की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है? (2012)

  1. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत
  2. ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय निकाय 
  3. पाँचवीं अनुसूची 
  4.  छठी अनुसूची  
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3, 4 और  5 
(c) केवल 1, 2 और 5 
(d) 1, 2, 3, 4 और 

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)


धन्यवाद प्रस्ताव

प्रिलिम्स के लिये:

धन्यवाद प्रस्ताव, संसद, राज्यसभा, 75वाँ गणतंत्र दिवस, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, खादी और ग्रामोद्योग

मेन्स के लिये:

संसद, संसद में प्रस्ताव, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

स्रोत: पी. आई. बी.

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा का जवाब दिया। सदन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि 75वाँ गणतंत्र दिवस देश की यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर है और राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण के दौरान भारत के आत्मविश्वास की चर्चा की।

धन्यवाद प्रस्ताव क्या है?

  • धन्यवाद प्रस्ताव एक संसदीय प्रक्रिया है जिसमें संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण के प्रति आभार या प्रशंसा व्यक्त करने के लिये एक औपचारिक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जाता है।
    • राष्ट्रपति का अभिभाषण सरकार की नीति का विवरण होता है और इसे सरकार द्वारा तैयार किया जाता है। इसमें पिछले वर्ष के दौरान सरकार की विभिन्न गतिविधियों तथा उपलब्धियों की समीक्षा शामिल है एवं उन नीतियों, परियोजनाओं व कार्यक्रमों को निर्धारित किया गया है जिन्हें सरकार महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों से संबंधित आगे बढ़ाना चाहती है।
  • अनुच्छेद 87 में प्रावधान है कि लोकसभा के प्रत्येक आम चुनाव के बाद पहले सत्र के प्रारंभ में और प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र के प्रारंभ में राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों को एक साथ संबोधित करेगा तथा संसद को सत्र आहूत करने के कारणों के बारे में सूचित करेगा।
    • किसी भी सदन की प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले नियम अभिभाषण में संदर्भित मामलों पर चर्चा के लिये समय के आवंटन का प्रावधान करेंगे।
    • इस तरह के संबोधन को 'विशेष संबोधन' कहा जाता है और यह एक वार्षिक विशेषता भी है।
  • ब्रिटेन में 'राजशाही/सिंहासन से भाषण' (Speech From The Throne) के समान राष्ट्रपति के अभिभाषण पर संसद के दोनों सदनों में 'धन्यवाद प्रस्ताव' नामक एक प्रस्ताव के माध्यम से चर्चा की जाती है।
    • संशोधन अभिभाषण में निहित मामलों के साथ-साथ उन मामलों को भी संदर्भित कर सकते हैं जिनका सदस्य की राय में अभिभाषण उल्लेख करने में विफल रहा है।
      • यदि किसी भी संशोधन को सदन के समक्ष रखा जाता है तथा स्वीकार किया जाता है तो धन्यवाद प्रस्ताव संशोधित रूप में स्वीकार किया जाता है।
    • चर्चा के समापन पर प्रस्ताव पर मतदान कराया जाता है।
  • धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा प्रधानमंत्री या किसी अन्य किसी मंत्री द्वारा उत्तर दिये जाने पर समाप्त हो जाती है। इसके तुरंत बाद संशोधन निपटाए जाते हैं और धन्यवाद प्रस्ताव मतदान के लिये रखा जाता है तथा स्वीकृत किया जाता है।
  • धन्यवाद प्रस्ताव सदन में पारित होना चाहिये अन्यथा यह सरकार की हार मानी जाती है। यह उन तरीकों में से एक है जिसके माध्यम से लोकसभा में सरकार अविश्वास में आ सकती है।
  • धन्यवाद प्रस्ताव की प्रक्रिया में सदस्य उन मामलों का उल्लेख नहीं कर सकते जो केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष उत्तरदायित्व से संबंधित नहीं हैं अथवा बहस में राष्ट्रपति के नाम का उल्लेख नहीं कर सकते हैं जो इसकी परिसीमा को दर्शाती है। 

राष्ट्रपति के अभिभाषण से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था:
  • समष्टि-अर्थशास्त्र की स्थिरता:
    • सरकार ने समष्टि-अर्थशास्त्र (Macroeconomic) की स्थिरता पर ध्यान केंद्रित किया जिसके परिणामस्वरूप भारत 'कमज़ोर 5' से 'शीर्ष 5' अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ।
      • समष्टि-अर्थशास्त्र स्थिरता का आशय एक ऐसी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से है जिसकी बाह्य कारकों के प्रति संवेदनशीलता कम हुई है जिसके परिणामस्वरूप निरंतर विकास की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं।
      • यह वैश्विक बाज़ार में मुद्रा और ब्याज के उतार-चढ़ाव के विरुद्ध एक बफर के रूप में कार्य करता है।
        • मुद्रा में उतार-चढ़ाव, अत्यधिक ऋण भार और अनियंत्रित मुद्रास्फीति के कारण आर्थिक संकट एवं सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में गिरावट आ सकती है।
  • प्रभावशाली निर्यात आँकड़े: 
    • भारत के निर्यात में पर्याप्त वृद्धि देखी गई, जो बढ़कर 775 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गया, जो देश के आर्थिक लचीलेपन को दर्शाता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि: 
    • FDI प्रवाह दोगुना वृद्धि हुई, जिससे भारत की आर्थिक शक्ति में वृद्धि हुई।
    • वर्ष 2014-2015 में भारत 45.15 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर था और तब से लगातार आठ वर्षों तक रिकॉर्ड FDI प्रवाह तक पहुँच गया है। वर्ष 2021-22 में अब तक का सबसे अधिक 83.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FDI दर्ज किया गया।
      • वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 71 बिलियन अमेरिकी डॉलर (अनंतिम आँकड़ा) का FDI प्रवाह दर्ज किया गया है।
  • खादी और ग्रामोद्योग में तेज़ी: 
    • वित्तीय वर्ष 2013-14 से वित्तीय वर्ष 2022-23 तक खादी और ग्रामोद्योग उत्पादों की बिक्री चार गुनी हो गई, जो स्वदेशी उद्योगों को समर्थन देने वाली पहल की सफलता को दर्शाती है।
  • आयकर रिटर्न में बढ़ोतरी: 
    • वर्ष 2023-2024.आयकर रिटर्न दाखिल करने वाले लोगों की संख्या निर्धारण वर्ष (AY) 2013-14 में लगभग 3.25 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2023-2024 लगभग 8.25 करोड़ हो गई।
  • मज़बूत विदेशी मुद्रा भंडार: 
  • पीएम-किसान सम्मान निधि योजना: 
    • पीएम-किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को 2.8 लाख करोड़ रुपए से अधिक प्राप्त हुए, जो कृषि आजीविका का समर्थन करने के लिये सरकार की प्रतिबद्धता पर ज़ोर देता है।
  • किसानों के लिये ऋण: 
    • पिछले एक दशक में किसानों के लिये बैंकों से आसान ऋण में तीन गुना वृद्धि हुई है, जिससे कृषक समुदाय की वित्तीय कल्याण सुनिश्चित हुआ है।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की सफलता: 
    • राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की सफलता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस योजना के तहत किसानों को 30,000 करोड़ रुपए का प्रीमियम भुगतान किया गया और उन्हें 1.5 लाख करोड़ रुपए का दावा (Claim) प्रदान किया गया।
  • राम मंदिर निर्माण:
    • राष्ट्रपति ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के ऐतिहासिक अवसर पर प्रकाश डाला।
      • उन्होंने मंदिर निर्माण की सदियों पुरानी आकांक्षा की पूर्णता पर प्रकाश डालते हुए इसे राष्ट्र के लिये सांस्कृतिक दृष्टि से एक महान व बड़ी उपलब्धि बताया।
    • राष्ट्रपति ने अयोध्या में पाँच दिनों के अभिषेक समारोह के दौरान 13 लाख श्रद्धालुओं की विशाल उपस्थिति का हवाला देते हुए विरासत स्थल संबंधी पर्यटन को बढ़ावा देने में सरकार की भूमिका को रेखांकित किया।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न. भारत की संसद् किसके/किनके द्वारा मंत्रिपरिषद् के कृत्यों के ऊपर नियंत्रण रखती है? (2017)

  1. स्थगन प्रस्ताव
  2. प्रश्न काल
  3. अनुपूरक प्रश्न

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न.1 आपकी दृष्टि में, भारत में कार्यपालिका की जवाबदेही को निश्चित करने में संसद कहाँ तक समर्थ है? (2021)

प्रश्न.2 क्या आपके विचार में भारत का संविधान शक्तियों के कठोर पृथक्करण के सिद्धांत की स्वीकार नहीं करता है, बल्कि यह 'नियंत्रण एवं संतुलन' के सिद्धान्त पर आधारित है? व्याख्या कीजिये। (2019)


डीप टेक के लिये भारत का महत्त्वाकांक्षी प्रयास

प्रिलिम्स के लिये:

डीप टेक स्टार्टअप्स, डीप टेक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा, क्वांटम कंप्यूटिंग

मेन्स के लिये:

डीप टेक स्टार्टअप्स और भारत

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

अंतरिम बजट प्रस्तुत करने के दौरान वित्तमंत्री ने अनुसंधान और विकास क्षेत्र की पहलों के लिये दीर्घावधि, अल्प लागत अथवा शून्य-ब्याज़ ऋण प्रदान करने के उद्देश्य से 1 लाख करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की।

  • उन्होंने रक्षा क्षेत्र में डीप-टेक क्षमताओं का विस्तार करने के लिये एक नए कार्यक्रम के शुभारंभ का आश्वासन दिया जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में डीप-टेक स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिये एक व्यापक नीति तैयार की जाएगी। इस कार्यक्रम का शुभारंभ वर्षांत में किया जा सकता है।

डीप टेक क्या है?

  • परिचय:
    • डीप टेक अथवा डीप टेक्नोलॉजी स्टार्टअप्स व्यवसायों के एक वर्ग को संदर्भित करती है जो भौतिक इंजीनियरिंग नवाचार अथवा वैज्ञानिक खोजों व प्रगति के आधार पर नए उत्पाद विकसित करती हैं।
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता, उन्नत सामग्री, ब्लॉकचेन, जैव-प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, ड्रोन, फोटोनिक्स तथा क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे गहन प्रौद्योगिकी क्षेत्र प्रारंभिक अनुसंधान से व्यावसायिक अनुप्रयोगों की ओर तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं।
  • डीप टेक की विशेषताएँ:
    • प्रभाव: डीप टेक नवाचार बहुत मौलिक हैं और मौजूदा बाज़ार को बाधित करते हैं तथा एक नवीन विकास करते हैं। डीप टेक पर आधारित नवाचार अक्सर जीवन, अर्थव्यवस्था और समाज में व्यापक परिवर्तन लाते हैं।
    • समयावधि और स्तर: प्रौद्योगिकी को विकसित करने और बाज़ार में उपलब्धता के लिये डीप टेक की आवश्यक समयावधि सतही प्रौद्योगिकी विकास (जैसे मोबाइल एप एवं वेबसाइट) से कहीं अधिक है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता को विकसित होने में दशकों लग गए और यह अभी भी पूर्ण नहीं है।
    • पूंजी: डीप टेक को अक्सर अनुसंधान और विकास, प्रोटोटाइप, परिकल्पना को मान्य करने एवं प्रौद्योगिकी विकास के लिये प्रारंभिक चरणों में पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है।

डीप टेक क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना: डीप टेक जलवायु परिवर्तन, भुखमरी, महामारी, ऊर्जा तक पहुँच, सतत् आवागमन और साइबर सुरक्षा सहित जटिल वैश्विक मुद्दों का समाधान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। ये नवाचार गंभीर सामाजिक तथा पर्यावरणीय चुनौतियों का आशाजनक समाधान प्रदान करते हैं।
  • वैज्ञानिक उन्नति: डीप टेक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, जैव-प्रौद्योगिकी, क्वांटम कंप्यूटिंग और अन्य क्षेत्रों के अत्याधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान तथा प्रौद्योगिकी संबंधी विकास शामिल है। इन क्षेत्रों में प्रगति मानव ज्ञान तथा समझ की सीमाओं में विस्तार करती है जिससे समग्र रूप से समाज को लाभ होता है।
  • आर्थिक विकास और प्रतिस्पर्द्धात्मकता: डीप टेक में निवेश के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा, अत्यधिक मूल्य वाली नौकरियों के सृजन तथा उद्यमशीलता को प्रोत्सहान प्रदान कर आर्थिक विकास की वृद्धि को गति प्रदान की जा सकती है। डीप टेक नवाचार में अग्रणी देश तथा उद्यम अन्य देशों से निवेश, प्रतिभा एवं सहयोग के अवसरों को आकर्षित कर वैश्विक बाज़ार में अपनी स्थिति को सशक्त करते हैं।
  • आपदा प्रबंधन: डीप टेक समाधान आपदा के दौरान बचाव और तत्परता प्रयासों में योगदान करते हैं। उदाहरण के लिये AI-संचालित प्रिडिक्टिव मॉडल अधिक सटीकता के साथ तूफान तथा भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान करने में सहायता कर सकते हैं जिससे जोखिम की स्थिति में लोगों का बचाव करने तथा संसाधनों के अधिक कुशल उपयोग को सक्षम बनाया जा सकता है।
  • आतंकवाद की रोकथाम: डीप टेक उन्नत अनुवीक्षण प्रणाली, बायोमेट्रिक पहचान तकनीक और पूर्वानुमानित विश्लेषण उपकरण के विकास को सक्षम बनाती है जो आतंकवाद से निपटने में सहायक हैं।
    • ये प्रौद्योगिकियाँ विधिविरुद्ध गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों की पहचान करने तथा उनको ट्रैक करने, आतंकवादी नेटवर्क को बाधित करने और भविष्य में होने वाले हमलों की रोकथाम करने में मदद करती हैं।

भारत के डीप टेक स्टार्टअप्स की स्थिति क्या है?

  • बल और अवसर:
    • भारत में एक बढ़ती प्रौद्योगिकी संस्कृति और अत्यधिक कुशल वैज्ञानिकों तथा निपुण अभियंताओं का एक बड़ा समूह मौजूद है। यह देश को डीप टेक समाधानों के विकास और व्यापक उपयोग में सहायता प्रदान करता है।
    • वर्ष 2021 के अंत में भारत में 3,000 से अधिक डीप-टेक स्टार्टअप्स मौजूद थे जो कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मशीन लर्निंग (ML), इंटरनेट ऑफ थिंग्स, बिग डेटा, क्वांटम कंप्यूटिंग, रोबोटिक्स आदि जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों से संबंधित थे।
    • NASSCOM के अनुसार भारत में डीप-टेक स्टार्टअप्स ने वर्ष 2021 में उद्यम क्षेत्र में 2.7 बिलियन अमरीकी डालर अर्जित किये तथा वर्तमान में देश के समग्र स्टार्टअप इकोसिस्टम में इनकी हिस्सेदारी 12% से अधिक है।
    • पिछले दशक में भारत का डीप टेक इकोसिस्टम 53% बढ़ा है और वर्तमान में यह अमेरिका, चीन, इज़राइल व यूरोप जैसे विकसित बाज़ारों के समान है।
      • भारत के डीप टेक स्टार्ट-अप में बंगलुरू का योगदान 25-30% है, इसके बाद दिल्ली-NCR (15-20%) और मुंबई (10-12%) का स्थान है।
  • संभावित योगदान:
    • भारत में डीप टेक की उन्नति, शीघ्र अपनाने, बौद्धिक संपदा साझा करने, स्वदेशी ज्ञान विकास और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता है। 
      • इससे प्रौद्योगिकियों, कुशल कार्यबल विकास, उद्यमशीलता और प्रौद्योगिकी निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
    • डीप-टेक स्टार्ट-अप ड्रोन डिलीवरी एवं कोल्ड चेन मैनेजमेंट से लेकर जलवायु कार्रवाई और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं।

सरकार डीप टेक स्टार्टअप्स के लिये पारिस्थितिकी तंत्र कैसे स्थापित कर रही है?

  • सरकार परिवर्तनकारी प्रौद्योगिकी क्षेत्रों जैसे गतिशीलता, बैटरी भंडारण तथा क्वांटम प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और नवाचार को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रही है।
    • नेशनल मिशन ऑन ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी एंड बैटरी स्टोरेज और राष्ट्रीय क्वांटम मिशन जैसी पहल इन प्रयासों के उदाहरण हैं।
  • नीति रूपरेखा का विकास:
    • डीप टेक्नोलॉजी में लगे व्यवसायों के लिये एक सहायक वातावरण बनाने के लिये डिज़ाइन किये गए नियमों का एक सेट वर्ष 2023 में पूरा किया गया था। वर्तमान में सरकार की मंजूरी के लिये नेशनल डीप टेक स्टार्टअप पॉलिसी (NDTSP) की मांग की जा रही है।
    • नीति के उद्देश्य: NDTSP को प्रौद्योगिकी स्टार्टअप के सामने आने वाली विशिष्ट चुनौतियों का समाधान करने और उन्हें विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा और सहयोग करने के लिये एक अनुकूल मंच प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • प्रमुख फोकस क्षेत्रः NDTSP कई प्रमुख क्षेत्रों की रूपरेखा तैयार करता है जिन पर इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये ध्यान देने की आवश्यकता है:
      • दीर्घकालिक वित्तपोषण के अवसर: डीप टेक स्टार्टअप्स को फलने-फूलने में सक्षम बनाने के लिये निरंतर वित्तीय सहायता हेतु तंत्र बनाना।
      • बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था: डीप टेक्नोलॉजी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये कर लाभ प्रदान करना।
      • कर प्रोत्साहन: डीप टेक्नोलॉजी क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये कर लाभ प्रदान करना।
      • अनुकूल नियामक ढाँचा: ऐसे नियम विकसित करना जो अनुपालन तथा सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए गहन तकनीकी स्टार्टअप के विकास का समर्थन एवं सुविधा प्रदान करते हैं।
      • मानक और प्रमाणपत्र: डीप टेक्नोलॉजी उत्पादों एवं सेवाओं में गुणवत्ता तथा विश्वसनीयता सुनिश्चित करने के लिये उद्योग मानक और प्रमाणन निर्धारित करना।
      • प्रतिभा पोषण: कुशल पेशेवरों के विकास में निवेश करना तथा गहन प्रौद्योगिकी नवाचार के लिये अनुकूल प्रतिभा को बढ़ावा देना।
      • उद्योग-शिक्षा सहयोग: ज्ञान के आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ावा देने के लिये उद्योग, अनुसंधान संस्थानों एवं शैक्षिक प्रतिष्ठानों के बीच संबंधों को सुविधाजनक बनाना।
      • इन महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को संबोधित करके NDTSP का लक्ष्य एक मज़बूत और टिकाऊ पारिस्थितिकी तंत्र के लिये आधार तैयार करना है जो गहन तकनीकी स्टार्टअप परिदृश्य में नवाचार एवं विकास को बढ़ावा देता है।
  • राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) कार्यान्वयन: सरकार ने राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) की स्थापना की है, जिसका उद्देश्य अनुसंधान उन्नति के लिये विभिन्न क्षेत्रों के बीच तालमेल स्थापित करना है।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि निजी क्षेत्र से प्राप्त NRF के बजट का लगभग 70% प्रदान करेगा, जो पाँच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपए होगा।

डीप टेक परियोजनाओं के सामने क्या चुनौतियाँ हैं?

  • निवेश पर उच्च जोखिम और दीर्घकालिक रिटर्न: डीप टेक परियोजनाओं को प्राय: अनुसंधान और विकास में महत्त्वपूर्ण अग्रिम निवेश की आवश्यकता होती है, साथ ही  बाज़ार तक पहुँचने एवं राजस्व अर्जित करने में वर्षों या दशकों का समय लग सकता है। यह उन्हें पारंपरिक निवेशकों के लिये कम आकर्षक बनाता है,परिणामस्वरूप यह कम जोखिम वाले और कम अवधि वाले उद्यम के रूप में निर्मित होते हैं।
  • विशिष्ट प्रतिभा की कमी: डीप टेक परियोजनाओं के लिये अत्यधिक कुशल और अनुभवी शोधकर्त्ताओं, इंजीनियरों एवं उद्यमियों की आवश्यकता होती है, जिनकी आपूर्ति कम है तथा मांग अधिक है। विशेष रूप से उभरते बाज़ारों में डीप टेक स्टार्टअप के लिये ऐसी प्रतिभा को ढूँढना और बनाए रखना कठिन तथा महँगा हो सकता है।
  • बाज़ार की तैयारी का अभाव: डीप टेक परियोजनाओं को नियामक, नैतिक, सामाजिक या पर्यावरणीय बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है जो उनकी स्वीकार्यता और स्केलेबिलिटी को सीमित करते हैं। उन्हें संभावित ग्राहकों तथा हितधारकों को उनके समाधानों के मूल्य एवं व्यवहार्यता के बारे में शिक्षित व समझाने की भी आवश्यकता हो सकती है, जो जटिल और अपरिचित हो सकते हैं।
  • भारत में अपर्याप्त अनुसंधान निधि: 2% GDP आवंटन के लक्ष्य के बावजूद भारत में अपर्याप्त अनुसंधान निधि बनी हुई है। जबकि अनुसंधान एवं विकास पर पूर्ण खर्च बढ़ गया है, सकल घरेलू उत्पाद के सापेक्ष अनुपात में गिरावट आई है, जो वर्तमान में 0.65% है, जो वैश्विक औसत 1.8% से काफी कम है।
  • यह वित्तीय कमी वैज्ञानिक रूप से उन्नत देशों के साथ भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बाधित करती है, जो महत्त्वपूर्ण अनुसंधान गतिविधियों के लिये समर्थन में कमी की चिंताजनक प्रवृत्ति का संकेत देती है।
  • वैज्ञानिक समुदाय के भीतर संदेह: सरकार के प्रयासों के बावजूद, वैज्ञानिक समुदाय के भीतर संदेह बरकरार है। कई लोग अनुसंधान के वित्तपोषण के लिये केवल निजी क्षेत्र पर निर्भर रहने की प्रभावशीलता पर संदेह करते हैं। उनका तर्क है कि सरकारी फंडिंग महत्त्वपूर्ण बनी हुई है और निजी निवेश की उम्मीदें अत्यधिक आशावादी हो सकती हैं।
  • वित्तीय अपर्याप्तता: नवाचार पर सरकार के फोकस के बावजूद, प्रमुख विभागों के लिये बजटीय वृद्धि मामूली है। उदाहरणतः वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) और अंतरिक्ष विभाग में मामूली वृद्धि देखी जा रही है, जबकि अन्य को बजट में कटौती का सामना करना पड़ रहा है।
  • नौकरशाही बाधाएँ: धन उपलब्ध होने पर भी, देरी और नौकरशाही बाधाएँ अक्सर उनके प्रभावी वितरण में बाधा बनती हैं। जटिल प्रक्रियाएँ परियोजना के वित्तपोषण में रुकावट उत्पन्न करती हैं, जिससे अनुसंधान प्रशासनिक प्रगति में बाधित होती है।

आगे की राह

  • अनुसंधान निधि में सार्वजनिक-निजी भागीदारी की भूमिका में वृद्धि: हाल की सरकारी पहल अनुसंधान एवं विकास निवेश को बढ़ावा देने के लिये निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने की दिशा में बदलाव का सुझाव देती है। सिर्फ सार्वजनिक वित्त पोषण की सीमाओं को स्वीकार करते हुए, उद्योग, अनुसंधान संस्थानों और शैक्षिक निकायों के बीच सहयोग बढ़ाने के प्रयास चल रहे हैं।
  • निधियों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना: 1 लाख करोड़ रुपए के कोष का उद्देश्य अनुसंधान और विकास में लगे स्टार्टअप तथा निजी क्षेत्र के उद्यमों के लिये प्रारंभिक वित्त पोषण प्रदान करना है।
    • हालाँकि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि आवंटित निधि का उचित उपयोग हो, समय पर धनराशि जारी करने का भार भी उठाया जाना चाहिये।
  • बौद्धिक संपदा अधिकारों को सुदृढ़ बनाना: डीप टेक स्टार्टअप अपने नवाचारों की रक्षा करने और प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त हासिल करने के लिये अपनी बौद्धिक संपदा (IP) पर विश्वास करते हैं। सरकार IP पंजीकरण तथा प्रवर्तन प्रक्रिया को सुव्यवस्थित एवं सरल बना सकती है व IP से संबंधित मामलों पर गहन तकनीकी स्टार्टअप को अधिक जागरूकता और सहायता प्रदान कर सकती है।
    • निजी क्षेत्र और शिक्षा जगत भी गहन तकनीकी स्टार्टअप के बीच IP निर्माण तथा व्यावसायीकरण को प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत कर सकते हैं।
  • मानव पूंजी और प्रतिभा पाइपलाइन का निर्माण: सरकार, निजी क्षेत्र तथा शिक्षा जगत गहन तकनीकी शिक्षा एवं प्रशिक्षण की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ाने के लिये मिलकर काम कर सकते हैं, एवं गहन तकनीकी प्रतिभाओं हेतु एक-दूसरे से जुड़ने, सहयोग करने व सीखने के अधिक अवसर उत्पन्न कर सकते हैं।
    • सरकार भारत में विदेशी तकनीकी प्रतिभाओं की गतिशीलता और आप्रवासन की सुविधा भी प्रदान कर सकती है, तथा उन्हें भारत में काम करने व रहने के लिये अधिक आर्थिक प्रोत्साहन एवं लाभ भी प्रदान कर सकती है।

निष्कर्ष:

अनुसंधान एवं विकास के लिये 1 लाख करोड़ रुपए के फंड की सरकार की घोषणा, साथ ही डीप टेक क्षमताओं को मज़बूत करने की पहल, भारत की नवाचार यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण समय का संकेत देती है। हालाँकि राह में चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं जिन पर सावधानीपूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता है।

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. अटल नवप्रवर्तक (इनोवेशन) मिशन किसके अधीन स्थापित किया गया है? (2019)

(a) विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग
(b) श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय
(c) नीति आयोग
(d) कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. कोविड-19 महामारी ने विश्वभर में अभूतपूर्व तबाही उत्पन्न की है। तथापि, इस संकट पर विजय पाने के लिये  प्रौद्योगिकीय प्रगति का लाभ स्वेच्छा से लिया जा रहा है। इस महामारी के प्रबंधन के सहायतार्थ प्रौद्योगिकी की खोज कैसे की गई, उसका एक विवरण दीजिये। (2020)