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भारत में भूख की विरोधाभाषी स्थिति

  • 03 May 2023
  • 17 min read

यह एडिटोरियल 02/05/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘India’s hunger paradox’’ लेख पर आधारित है। इसमें खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता के बावजूद भारत में व्याप्त भुखमरी की समस्याओं के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत ने पिछले चार दशकों से अधिक की समयावधि में खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता तो प्राप्त कर ली है, लेकिन इससे खाद्य सुरक्षा की गारंटी नहीं मिल सकी है। यह देखना पीड़ादायी है कि देश में अधिशेष खाद्य उपलब्धता के बावजूद भुखमरी की समस्या बनी हुई है।

  • वर्ष 2019-21 में आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) से पता चलता है कि भारत में छोटे बच्चों के एक बड़े अनुपात को खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है, जो उनके विकास और भविष्य की सेहत के बारे में चिंता उत्पन्न करता है। शून्य भुखमरी (zero hunger) के सतत् विकास लक्ष्य (SDG-2) की प्राप्ति के लिये भारत को खाद्य असुरक्षा को समाप्त करने और सभी के लिये पौष्टिक खाद्य तक वहनीय पहुँच सुनिश्चित करने हेतु रणनीतिक पहल करनी होगी।

आँकड़े क्या कहते हैं?

  • NFHS-5:
    • 6-23 माह आयु के शिशुओं की माताओं में से 18% ने बताया कि उनके बच्चे ने सर्वेक्षण से पूर्व के 24 घंटों में कोई आहार नहीं पाया था। इसे ‘शून्य-खाद्य’ (zero-food) की स्थिति कहा जाता है जो गंभीर खाद्य असुरक्षा से संबंधित गहन चिंताएँ उत्पन्न करता है।
    • शून्य-खाद्य की स्थिति 6-11 माह के शिशुओं के लिये 30%, 12-17 माह के शिशुओं के लिये 13% और 18-23 माह के शिशुओं के लिये 8% पाई गई।
    • शिशुओं के विकास की इस महत्त्वपूर्ण अवधि में पूरे दिन बिना आहार के रहने के गंभीर परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2022:
    • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index- GHI) 2022 में भारत 121 देशों के बीच 107वें स्थान पर रहा।
    • भारत की शिशु वेस्टिंग दर (कद के अनुरूप कम वजन) 19.3% दर्ज की गई, जो वर्ष 2014 (15.1%) और यहाँ तक कि वर्ष 2000 (17.15%) में दर्ज स्तरों से गिरावट की स्थिति को दर्शाता है।
    • देश में अल्पपोषण (undernourishment) की व्यापकता भी वर्ष 2018-2020 में 14.6% से बढ़कर वर्ष 2019-2021 में 16.3% हो गई।

वर्तमान परिमापन से संबद्ध समस्याएँ

  • मानवमितिक परिमापनों की सीमाएँ (Limitations of Anthropometric Measures):
    • भारत में छोटे बच्चों में पोषण की कमी की सीमा का आकलन करने के लिये स्टंटिंग और वेस्टिंग जैसे मानवमितिक विफलता के परिमापन अपर्याप्त हैं।
    • ये परिमापन कमियों की विशिष्ट प्रकृति पर मार्गदर्शन प्रदान नहीं करते हैं और बहुघटकीय हैं, जिससे किसी एक मंत्रालय या विभाग के लिये बच्चों के बीच कुपोषण को कम करने हेतु नीतियों की अभिकल्पना करना, उन्हें लागू करना और उनकी निगरानी करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
  • खाद्य समूहों में विशिष्ट कमी:
    • शून्य-खाद्य के आँकड़े विशिष्ट खाद्य समूहों में उल्लेखनीय कमियों या अभावों को प्रकट करते हैं।
      • 80% से अधिक बच्चों ने पूरे दिन में कोई भी प्रोटीन-युक्त खाद्य ग्रहण नहीं किया था, जबकि लगभग 40% ने कोई अनाज ग्रहण नहीं किया था।
      • दस में से छह बच्चे प्रतिदिन किसी भी रूप में दूध या दुग्ध उत्पाद का सेवन नहीं करते हैं।
  • पोषण 2.0 की भूमिका:
    • मिशन पोषण 2.0 (Mission Poshan 2.0) भारत में मातृ एवं बाल पोषण को समर्पित एक प्रमुख कार्यक्रम है।
    • हालाँकि कार्यक्रम के प्रदर्शन की प्रभावी ढंग से निगरानी और मूल्यांकन करने के लिये उपयुक्त खाद्य-आधारित मीट्रिक्स विकसित नहीं किये गए हैं।

भुखमरी के प्रमुख कारण

  • निर्धनता:
    • निर्धनता आहार के विकल्पों को अत्यंत सीमित करती है और भूख से संबंधित मौतों का प्रेरक कारक रही है।
    • खाद्य पदार्थों की सदैव उच्च कीमतें और विकास के मामले में क्षेत्रीय असमानताएँ लोगों के लिये संतुलित पोषण की वहनीयता को प्रभावित करती हैं।
  • संबद्ध कारक:
    • भुखमरी और संबंधित कुपोषण विभिन्न संबद्ध कारकों (जल एवं स्वच्छता से लेकर खाद्य पदार्थों की अभिगम्यता तक) का परिणाम है।
    • किसी व्यक्ति का ‘पोषण स्तर’ (nutritional quotient) लिंग, जाति, आयु जैसे जनसांख्यिकीय कारकों पर भी निर्भर करता है।
      • उदाहरण के लिये, हमारे समाज में बालिकाओं और वृद्ध जनों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया जाता है।
  • नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन का अभाव:
    • लगातार भुखमरी के पीछे एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण है योजनाओं और नीतियों का बदतर कार्यान्वयन।
      • समेकित बाल विकास सेवा (Integrated Child Development Services- ICDS) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) ने पर्याप्त कवरेज प्राप्त नहीं किया है।
  • जलवायु परिवर्तन:
    • अनियमित वर्षा और चरम घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति ने हर जगह कृषि गतिविधियों को प्रभावित किया है जिससे खाद्य उत्पादन के लिये प्रतिकूल स्थिति पैदा हो गई है।
    • वर्षा पैटर्न एवं कृषि मौसमों को प्रभावित करने वाली जलवायु परिवर्तनशीलता और सूखा एवं बाढ़ जैसी चरम जलवायु घटनाएँ संघर्ष और आर्थिक मंदी के साथ-साथ भुखमरी में वृद्धि के प्रमुख चालकों में शामिल हैं।
  • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (प्रच्छन्न भुखमरी):
    • भारत सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (micronutrient deficiency) के गंभीर संकट का सामना कर रहा है। इसके कारणों में खराब आहार ग्रहण, बीमारी या गर्भावस्था एवं स्तनपान के दौरान सूक्ष्म पोषक तत्वों की बढ़ी हुई आवश्यकता की पूर्ति नहीं होना शामिल हैं।

भुखमरी की समस्या के समाधान के लिये क्या आवश्यक है?

  • खाद्य उपभोग पर बेहतर आँकड़े की आवश्यकता:
    • भारत में खाद्य एवं आहार उपभोग से संबंधित आँकड़े की कमी समग्र आबादी के लिये नियमित आहार एवं पोषण संबंधी आकलन हेतु एक राष्ट्रीय प्रयास की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
    • भुखमरी को समाप्त करने और पोषण सुरक्षा में सुधार लाने हेतु साक्ष्य-आधारित नीतियाँ विकसित करने के लिये पौष्टिक आहार की उपलब्धता, अभिगम्यता और वहनीयता (विशेष रूप से वंचित और शिशुओं जैसी भेद्य आबादी के लिये) का परिमापन अत्यंत आवश्यक है।
  • शिशुओं पर प्राथमिक रूप से ध्यान देना:
    • शिशुओं के स्वस्थ विकास के लिये उनका पर्याप्त और वहनीय पौष्टिक आहार तक पहुँच होना आवश्यक है। सरकार को मातृ, नवजात और शिशु पोषण से संबंधित नीतियों एवं दिशानिर्देशों में शिशुओं के बीच आहार की मात्रा की वृद्धि को महज पूरक महत्त्व देने के बजाय प्राथमिक महत्त्व देना चाहिये।

सरकार की प्रमुख पहलें

  • ‘ईट राइट इंडिया’ आंदोलन (Eat Right India Movement):
    • यह भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की एक आउटरीच गतिविधि है जो नागरिकों को सही तरह से आहार ग्रहण करने की दिशा में प्रेरित करने पर लक्षित है।
  • पोषण अभियान (POSHAN Abhiyan):
    • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया पोषण अभियान स्टंटिंग, कुपोषण, एनीमिया (शिशुओं, महिलाओं और किशोर बालिकाओं में) को कम करने पर लक्षित है।
  • मध्याह्न भोजन (Mid-day Meal- MDM) योजना:
    • मध्याह्न भोजन योजना का उद्देश्य स्कूली बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार लाना है, जिसका स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति पर भी प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना:
    • यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित एक केंद्र-प्रायोजित योजना है। इस मातृत्व लाभ कार्यक्रम को जनवरी 2017 से देश के सभी ज़िलों में क्रियान्वित किया जा रहा है।
  • ‘फूड फोर्टिफिकेशन’:
    • ‘फूड फोर्टिफिकेशन’ या ‘फूड एनरिचमेंट’ चावल, दूध और नमक जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों में आयरन, आयोडीन, जिंक, विटामिन A एवं D जैसे प्रमुख विटामिनों एवं खनिजों को शामिल करने की क्रिया है ताकि उनके पोषण कंटेंट में सुधार हो सके।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013:
    • यह लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से सब्सिडीयुक्त खाद्यान्न की प्राप्ति के लिये 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी को कानूनी रूप से हक़दार बनाता है।
  • मिशन इंद्रधनुष:
    • यह 12 टीका-रोकथाम योग्य बीमारियों (Vaccine-Preventable Diseases (VPD) के विरुद्ध टीकाकरण के लिये 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को लक्षित करता है।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना:
    • वर्ष 1975 में शुरू की गई ICDS योजना 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को छह सेवाओं का एक पैकेज प्रदान करती है।

आगे की राह

  • शीर्ष स्तर की पहल की आवश्यकता:
    • भारत को खाद्य असुरक्षा को समाप्त करने और खाद्य तक वहनीय पहुँच को सुनिश्चित करने के लिये (छोटे बच्चों या शिशुओं पर विशेष और तत्काल ध्यान देने के साथ) प्रधानमंत्री कार्यालय के नेतृत्व में एक रणनीतिक पहल की आवश्यकता है।
  • सुदृढ़ निगरानी:
    • पोषण 2.0 जैसी पहलों के प्रदर्शन की निगरानी और मूल्यांकन के लिये शून्य-खाद्य मीट्रिक का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • कार्यक्रमों और हस्तक्षेपों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिये खाद्य सुरक्षा के आकलन हेतु उपयुक्त खाद्य-आधारित मीट्रिक्स विकसित करना आवश्यक है।
    • NFHS को पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये और वयस्कों के लिये विभिन्न खाद्य पदार्थों के उपभोग पर 24 घंटे के रिकॉल प्रश्नों का विस्तार करना चाहिये।
  • वैश्विक अभ्यासों को अपनाना:
    • खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation- FAO) द्वारा विकसित घरेलू स्तर की खाद्य असुरक्षा मॉड्यूल (Household-level food insecurity modules) को भारतीय परिवारों के बीच खाद्य असुरक्षा की सीमा के परिमापन के लिये अनुकूलित किया जा सकता है।
  • आकलन एवं जागरूकता:
    • खाद्य एवं आहार उपभोग को समझने के लिये संपूर्ण आबादी हेतु नियमित आहार एवं पोषण संबंधी आकलन की व्यवस्था स्थापित करने के लिये एक राष्ट्रीय प्रयास किया जाना चाहिये।
    • कुपोषण के संबंध में एक अखिल भारतीय जागरूकता अभियान चलाना समय की मांग है।

अभ्यास प्रश्न: भारत ‘शून्य भुखमरी’ के लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकता है और अपनी जनसंख्या के लिये खाद्य सुरक्षा किस प्रकार सुनिश्चित कर सकता है? इस लक्ष्य को प्राप्त करने में विद्यमान चुनौतियों की चर्चा करें और इन्हें संबोधित कर सकने के लिये आवश्यक उपायों के सुझाव दें।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

प्र. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना करने के लिये IFPRI द्वारा निम्नलिखित में से कौन-सा/से संकेतक हैं/हैं? (2016)

1. अल्पपोषण
2. चाइल्ड स्टंटिंग
3. बाल मृत्यु दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1
(B) केवल 2 और 3
(C) 1, 2 और 3
(D) केवल 1 और 3

उत्तर: (C)

व्याख्या:

  • अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI) की स्थापना वर्ष 1975 में हुई थी जो विकासशील देशों में गरीबी को स्थायी रूप से कम करने और भूख और कुपोषण को समाप्त करने के लिये अनुसंधान-आधारित नीति समाधान प्रदान करता है।
  • ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तरों पर भूख को व्यापक रूप से मापने और ट्रैक करने के लिए डिज़ाइन किया गया एक उपकरण है। भूख से निपटने में प्रगति और असफलताओं का आकलन करने के लिये हर साल GHI स्कोर की गणना की जाती है।
  • GHI के आयाम
    • अपर्याप्त भोजन की आपूर्ति
    • बाल मृत्यु दर
    • बाल कुपोषण।
  • GHI के संकेतक
    • अल्पपोषण (अपर्याप्त भोजन आपूर्ति); अतः 1 सही है।
    • 5 वर्ष से कम आयु में मृत्यु दर (बाल मृत्यु दर); अतः 3 सही है।
    • वेस्टिंग; स्टंटिंग अतः 2 सही है।

अतः विकल्प (C) सही उत्तर है


मुख्य परीक्षा

प्रश्न: खाद्य सुरक्षा विधेयक से भारत में भूख और कुपोषण समाप्त होने की उम्मीद है। विश्व व्यापार संगठन में उत्पन्न चिंताओं के साथ-साथ इसके प्रभावी कार्यान्वयन में विभिन्न आशंकाओं पर आलोचनात्मक चर्चा कीजिये। (वर्ष 2013)

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